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Full text of "Amrici Darshan Ka Itihas"

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सेसेकृ 
ह्वर खप्ल्पु० गमादर 


भरनुवावक्‌ 
भोमप्रकाञ्च दीपक 


पएमृष्वानी एषरेमी 


प्रष्ठ 
हिन्बस्तापी एष्डेपी 
एपाहुप्याद 


प्रपत पंस्करण ५० १६६४ 
भूप ८५० ए 


(गणि 1946 (णणणण> एवार्धाजा 
ए८८९ पि पा6111 त्णपषटाण८ 
(८) 1957 70८ [णप] 
कए ८८3 [०८ 


विपय-पवेश 


मिष चामा परिस्थिधिर्यौ मे द्निक विशार द्री धमयेका मे पने 
हैके पनुप्यके इरिषहामर्मे पष्िीयहै। प्रगर उमषो कुषं दुतम कीना 
खष्ी है, ठो रोम-एान्नाम्य शौ पम्विम पएताब्दिो से) एष परह्ाीप परख 
श्मिमाद्ने प्देदुएसोग स्वरिहैपरौर पक रष्टरक्ा निर्माण भमै मे धप 
हए 8 । एक पररषटिय राग्प प्नौर बहुरेटीप सोग ! पप्य षतो पोर पयो 
षौ भौद्धिक पर्प्पे एरु नपमल हैभौर्पीध हीषलषाप ब्डोहैः 
प्रमोदो बिभारकौषारी बप्ती बहुरे छामप्रो सेयनीदै तदिति 
कुना देसी है पोरप्रग क्समे भ) प्रठिस्प रमर शठे उनमें कर रपोदिोषौ 
प्रयोगारमक प्रभिङ्ल्ममा क ापृषहिक प्रमाग विख पदे ष्ठः 


स्यैनी चमं प्रभारक प्रमरी्मी प्रानिमाधिर्यो के प्राय सम्पशरे प्रर प्यापार 
के पती प्रयास, धुद्ामादो पनित प्रजापिपत्य ग पोर प्रपर षामा के 
बयान, करदो के सोगो दवारा बसामी पवो नयी दस्ठियौ पर्ष 'ाध्यापिमक' 
मीव पिया शन प्रोर प्राज्ञान सुर पूं शे षहिठ कलापे, जन 
पद्तसरवाद एमिस्वानी श्गुयवभार पोर घाप्ाग्ववार दटालपी पास्पुकशा 
प्र शपीठ पूना षड ( पापि ) पमे-उपुदाय, असूर भोयो कष स्क, 
भेट षयाम प्री इानून मौर वैम्बर-भमरीग्ये मभीपा ढे पएतिकातं 
केनिर्माण मेप्तषमी भापोरप्य बहुणोभाहाभरहाहै) यष मिरभके 
माणक भोरे पर इमे विचा भूम्या पोर प्रापाम भो भोजमषाकररेमे 
वापी बहुलता रे सिद वैषा चुना चाहिये) 

पमरकौ लोग पपी वीक पमरप केदारे मे प्राभनिक पदमा 
शषौ केप्रादी हे भ्पोकि पदप नरक्व एक रादनीटिक्‌ पोर ध्ापिक गयम 
षुत ष्णु देष्के पम्दु बं दिष्ट दकि पंस महेषाये ब) 
सके है जिते ते द्य पमरोको दियस्द रो प्प दिपिप् भिर भोर 
स्पानीय भ' भवाति का ह! प्पू-दनेहड णो मीयोतिष्‌ ए बिदियमे 
जपस्य मे एर प्रोग-शा कोना है, धुदनाया प्रौ९ पयसरशायी मारमा शा 
भरदहै-रो मिष्ोर्तो निवी परम्परा, भः एमन ढे प्यच्वधरौए 
परतिर्वे मिच कर सोमानी प्यिबार गौ भ्रमरीकी प्रमिम्यक्ि बम पयी। 
भजितिया प्रर सकफे रक्षिणी पचि चे गएवान्विर पौर सोधयाग्विष् 
पाप्य यपा बहरेपोयता के चो येद क पस्पारेषा अनुव मिप्मास 


( ५ ) 


पिनिमालात्मनन भाद । दिषा्ये के गो पाम्दोहम पगे सम्ब है, उपेते 
ज्मो किए बापयन्य गमाम कमैहप्टिसे जो इनक ाप-तापङे चङे नहो 
हए, उनग्धे रेतिष्धद्िक स्यास्या धारस्य है । 
दु स्वाभि महेत्मपूं प्रनुभरूति ध शरणा कि भमरीश्चे पेमा षषे 
श्वापिक परिशिव है, यह श कि रमी उदी के पभ्य मे ममयेको जीबन प्रोर 
विषा कम एष यम्मीर छकटक पाना रना पडा 1 वषट बीत यया सेक्िनि 
जिम ब्रमस्पाप्रो खं षष्ट रलह ा, धै प्रव मी उतर प्रौर दक्षिणाकेभन 
पोर विष्ठा पर घां ह है । राजनीतिक भोर भाषिक पट रष्व प्रौर 
कदु के इरा समा हृ, शन्तु स्वट्सरवा ममा प्यैर द्वु शि यम्पीर 
कमस्याए्‌-- ब भपनी प्रहत मे ही देसी है कि उननय कमी कमर स्मयो हैतं महौ 
हषे श्वा भौरङ्करपीदी मे छलका पुन निस्य पौर पृष" प्रष्वपन कृष्ना 
पेमा--प्राण मौ पमस का सोसि कर प्फ ह । उमरे मृह-पद के प्रनुमब 
मै पमदीकिो क्म यह जवना प्ररागदङ्येहैषिवे सवस किसी बिोड-पातसे 
गष्ठी वरम्‌ एक ऋण्ठि धे पृङर कट निके ह पोर पह किस्पाबहारिष४ भोर 
वानि वोन प्रकर ऋ घमस्यां र्य # खाषभोर उष्िपूर्णं पयोद 
मुल्व भार्पमी । रदे मे छम्वि धनापे रलम ढे एव सत्ट नित्य के रपर 
बिखर संपा से निपरमे के लिने कोई नवे उपाय कोगये भय प्दरप्टिप 
्याघ् पपरपा रहा है। पण्वर्पटग सम्बन्धो पौर निहेपी नी्िर्मोके णि 
भिदधम्ट पमरीकी दष्टो क श्छ रेठिहसिकर परपरतय टो छमग्ना पन्य रेणे 
क पारं केलिए मृहामण तिद्ध हो धष्ठा ६1 रारदैथि मे मसे नोदिव 
पोर भरमपन्देदवादके भो बहुतां को एक भदाम्ये पूं के पमरीक ष्टि 
भोर श्यन्ति कं एन्दम्‌ सै छगम्ना बाहे जिसय पषा हमारे मियो को 
म्मीरता पोर मर्यादा प्रदात करती रहती है ¦ इरके फस्वस्य प्रमरकी शोय 
निष्कम षी प्वाभ्या ठन सोमो क्ये पेखा कुश्च मिष रौपिसके है जो 
पमन्ये है कवे इष तमन एक्‌ परन्तपौ स्पिि बे है! 
परमरी दर्प के ईविष्ाठकार के लिए, घात मृस्प पौर वैिस्ता सम्बन्धी 
पमराङमी छिढान्टों क पिद्मे दिनो शिक्ञारे पड्ने वासौ पगृषठिमो क स्यप्टीकष्ल 
मगष उवते कलिन्‌ श्वं कै । वोनो पताण्दी म्‌ पमरष दारीनिरे भिफाएमारा 
बे एकस परक पोर देखा स्वर मिकरषठिव हुषा ह भिक बिङिप्टा महत्वं 
व । खम मेको कोई शीय पम्पवक्ठो गहीह । सिनतु एवमे गह्वरे कहै, 
जिर परक प्ररेप घ्म भये ह! पपि स्य मे यह पराद्य दर्पति शे 
ग्घ पतो के कय को षरिएठि है यो धव जोशिठ नहो, दमत भिड़ विजार 
मासि शपनिकतेके श्प मूले तिकिपम बेम्न पोर एष्र पोर 


(४) 


मामा प्रौर दधिण की बराल स्ययस्पा ने एक प्रास्ठीय जेतिरवावं भौर गुणामी 
पर प्राषारिति पपेठन्तर को ब्म दिया | दन बोनों कोषो ढे बीच मभ्य पोर 
पूवी प्ौपचोगिक श्रमे, हम प्राह्िक जिञ्जर्मो प्रजिभिों प्रौर वजीबाद शार 
पाते है । मिहीसिपी बाटी के घोडे येशाना मे जिसका कपि-बन स्मटल्न किसानों 
मै निमिव किया एष बिषिष्ट भेद ंस्छपि पौर साक्ठान्तिक संस्पार्मो को 
बिकसित सिमा भो मिषा बसे एतां क पयोर पष्क दुरे हुए खमाज के 
परवुकूम भी। यषां सेष्ट धुरं मिषठौरीरमे पीर उक प्राख-पाय देष ॐ 
मोगोजिक्‌ केन्द्रे एक पादपंबादी राष्टबाद का बिक्मस हुप्रा जिसनै उततर 
पौर शिण के बीच मृढपुठ के खंकृट ङे समयपौर बार म एक महस्मपूं 
भूमिक निपामी । निषटतम पती मे प्रषान्ं महाखामर क ठट पर एक प्म 
धांछतिष्ठ पेत का निर्माण हमा ६ । प्राची षये पोर धुते इ श्वेतते प्राचीके 
कुठ भिभार भी प्रहस पिये भौर पर्जिम ( पश्विमी ममरीका ) शो रष््ीय 
शपि शय एक प्रमिन्र भ॑म बनाया । 
इस बहुष्ठा के पाव पायामी पूर्य मे म्याय कर ध्ना स्सप्टतः पषम्भष 
ह । से माप्य कए चखा हर इतिषठासक्मर को करना पड़ता है, घामम्ी पोर 
परम्प के प्रनण् समूह घ देखी निषार-पाराए्‌ चुनी पद है पमरीकी रिमामो 
पर लिन जौषण्ठ परमाव दीणबीवी प्रतीठ ह्येता है) प्रौर प्रपती तिषा 
पुस्तक के एय धंस्करण के लिए मैने सेवन प्रमरीकमो जिचरारफे घारदुत कत्थ 
चुने ह । प्रमरकनमे श्रे पी जिदेषी पूर्णतः भिजाहीप नहीं होवा । प्परकी 
स्कति क इमास धंस्कति पर कष प्रभाग प्डले घ हौ है । फिर मी प्रमरीकी 
दत ऋ निप्यो प्रोर छ्दाबसी यं बहूव कृ रेषा दै जिषे दैतिष्मिक सष्वमं 
मर कर प्रकिक दोणमम्य बनाने कुमे प्ाबप्यस्या है । 
सयु राज्य छा राजनीतिक स्प-निर्णारण पठे कल मे हुमा चिस 
पर्पपयुखार पकुट-काब ह्य नादा कै । फएमस्वस्ष इमारी राष्ट्रीय संस्याप्रो 
केडनिको पुदड-कखके उत नित्रारो के धष्दर्वं पं खमभ्य जाप्ष्ताहै जो 
ऋ भलुपिवो से म्यच हए है प्रोर गहय कुह सार्बनिक है । सन्तु हमारी राप्टरीष 
संस्वारमोके इय निर्मा-कखके पते मौर बावर्मे भी स्थानीय परम्परप्‌ 
रीष जा स्वती सार्बभिक महौ हे स्तु पमरीम्पे जिारके मठममे द्रि 
मी जिनका महत्बपूणं योम मिषा के सिए न्पू-दयलैण्ड क पुटताजारिर्भो 
का प्तैदंबा्व दक्षस्य मौर परिथिम के केतिहर पादं चैस्खन का उग्र सोष्ठम्न 
पापुसिस्ट प्रादा (प्रदरो एदी के पभन्तिम माय में पर्थश्न पर प्ार्बजतिक 
चेयष््रण भ्रौर पाचिक घमाववा के षपपेक) बिनिन्र परयो के पर्मापदडेस प्ङृधि 
पोर माथ के जिक्मठबादी वलेन पघामाजिक पुमटन प्रीर म्पबस्था के 


(४) 


श्राया प्रौर दक्षि शौ बगान प्यगस्मा यै एक प्रास्तीय जेनिरवाव प्रौर पुनामौ 
पर प्रावार्वि पपंठत्भषो त्म दिवा | इन्नो सेर्नोगे बीच मप्य भौर 
पूर्वी मोदोगिक तेत सं हम प्राहृतिक बिक्षलो प्रगिधियों भोर पूथीगाप शाबर 
पाते है । मिषीपिपी पाटी के भो पदाना मे जिया हृपि-बत स्वदन्भ क्ता 
भै नि्िव क्षिपा एकु बिष्ठिष्ट परेषु ष्टि पोर लाकवान्निष पंस्पार्परो शो 
बिकिठ स्पा णो विप्रास बुरे इलाह के पोर पथिकः वुे हुए समाज ष 
भुकृल भी । पहा सेष्ट परुः मिसौरीर्मे भीर रसे पराख-पा देष ष 
मौमातिष्‌ केम्रमे एक पारुनादी राष्टृवाद का विकास हुमा जिषमे उर 
पौर दसिणि के बीच पृहपुद के पंषटट के मय प्रौर बारे एक महत्वपूणौ 
भूमिक्य निमायी । निकटतम प्रतीत से प्रान्त मष्ासामर के ठट पर एष धलग 
शाक्तिक देत का निर्मल हुषा है । पराजीषी पोरे इष दोन प्राीके 
कृष भिचा मी प्रहणे प्रौर परिम ( पर्विगी प्रमदीका) के रटीय 
परति क एक पमि प्र॑म बनाया । 
षस बहुता $ साप प्रामामी पूर्य मं त्पाप र्‌ छक्ना स्पष्टतः प्रसम्मष 
ह । शे बाप्प होकर वैषा हर इएलिषठाखक्मर को करना पदता &, छाम प्रौर 
परम्प के प्रनस्त घमू से देसी भिथार-पाराए्‌ दूननी पड़ी है पमरीकी प्मागो 
पर जिलकम जौषण्ठं प्रमाय दी्णंजीनी प्रतीत हौलाहै। प्रौर पपली इतिद्वास- 
पृस्वक कै एए पस्करा के लिए यैने केवल प्रमरोषी मिजारके घाप्ृत क्त 
चरभे ह। पमरोक्र्भे को मी बिषेषी पूर्णप भिजाीय महीं होवा । पी 
संष्छि का हमारी पंत्कृति पर कृष प्रमाब पहले ही है । फिर भी भ्रमरी 
देन क जिपर्नो पौर एम्दषशी पे बहत शुष देषा है मिते रेविहासिक सन्दमं 
मं र कर प्रणिन बोगमम्म बलाे कमे प्ाबप्यष्ताहै। 
मुक्त राज्य छा एजमीविक स्प-निर्षारण दैसे कद में हुमा निपे 
परप्पस्रयुषार प्रबुढ-काल शहा जाता है ! फलस्वस्म हमारी राष्ट्रीय संस्यारो 
के इचिषो प्रबुद-काके न बिच्रारोके घन्वमं म्‌ शमम भाध्क्ठाहै नो 
ऋं भ्तिो मे ष्व ए है पीर बहुन कुद मावंनिक है । दन्द हमारे पष्टौय 
संस्वाप्रोके प निर्माण-क्ल के पहृशे पोर बादर्मे मी स्थानीय परम्परापे 
ख़्ीषहै जा उतनी सामनि महौ है किन्तु प्रमरीष्ये भिषार्योके चलम षि 
मी जिका मह्मपृणं योग है- {साड के निए श्यू-दमसैलडके शुदरताबागिर्यो 
क्न प्केटोवाब शदिएा पीर पिचम कै ज्ेतिष्र प्राद्र जैशखन का यप्र तोक 
पापुभिस्ट प्ाग्योहल (प्रखण्डबी धरी के प्रनतिम माग मे परथेठल्ध पर घा्भनिक 
नियच्रण प्रोर पायिरू मानता कै समर्थक) विभिन्न पर्वो क प्मोपदेदे प्रपि 
भ्नौरं खमाज @ बिङापषादी दर्णत सामायिष मंगठ्म घौर ब्यषस्वा के 


(४ ) 


श्वावा प्रौर ददिणा कौ इमान स्वमत्या मै पक पाम्ठीम सेनिहराद प्रोरगुसामी 
पर प्रापारित पर्पत्तकोषन्म दषा ए्लदोनों केतके बीच मध्य पौर 
पूवीं प्रौयोगिक पेष मे हम प्राकृशिक विक्षामो प्रयिधि्वो पौर पृजीबाद भाबर 
पे है । मिसीधिपी भाटो क्श मैदानो मे जिघका इृपि-धम स्वतग्भ कानों 
वै निभिव क्या एष बिषठिष्ट बरे पति भोर पाष्वान्निक संस्मपोको 
पिकसिव क्प जो मिष्ठाल गुते इलां के प्रौर प्रपिक वुमे हेषु समाय के 
धतुगूत बी) यही दष्ट सुं मिसोपीर्पे प्रौर उसके प्राठ-पाख शेष के 
भोगोतिक केसर म एक प्रादपेगादी रष्टृषाद श्रा षिका हमा जिसने छत्तर 
पौर द्धि के बौषवृहयुद केंकट ॐ एमयधौर दाद मं एक मषठत्षप्यं 
शरूमिषर निमापी । निकटतम प्रतीव मे प्राग्व महारागर फ वट पर एक प्रन 
घातक पेष का निर्मणि हप है । परा्ी षम प्रद युते षत पजने प्राची के 
शृण. लिणार सौ दह्र स्तय पैर पष्प ( परिब भमधीक्ध } कने रष्टीप 
घसति का एक प्रभिच्रप्र॑ग बनापा। 

स बहुता के साव मामामी पष्ट मं प्याब कर घना स्तष्टतः प्रसम्मब 
है) पुरे बाध्य होकर, वैच इर इतिह्मणक्ार हो करना पदता है घाम्ी पौर 
परम्परा के प्रणन्त मू से धु िषार-मारापे चुनी पदी ह भ्रपरीदमै मामो 
पर जिलक्म जीबन प्रमा दीभंयीगी प्रतीत हौवा है। प्रौर प्रपतौ इतिदाष- 
पुस्तक के इष संस्करण्‌ के किए सैम केवल प्रमरीकौ विचार फे घारदूव एत्व 
शूने ९। परमर्म श्र भी भिदेषी पूंछ भिजतीग पी होठा । पष्क 
संस्कृति का इमाए पष्क पर श्रष् प्रमाय पहलेखे ष्टौ है ! फिर प्री प्रमरीषी 
दन के भियो प्रौर्‌ एम्नामली मे बहुठ श्च दसा { जिते रतिङपमिक स्वभ 
र्मे र कर प्रणि बोपगम्ब बनाने टी प्राबप्यश्ता ै। 

यट राण्य कम राजनीकिक सूप-निरषारष तये काञ्च मेहरा जिच 
परम्पणनुखार प्रुदध-काल क्य नादा ६ । शस्यल्म मापे रषी संस्यापो 
क चि को प्रबुद-परक ठन विशारो ङे सम्दभं मे घमम्प भाघक्ठाहै बो 
भद्‌ कति ष्य हुए ह प्रोर बहव कुष्ठ साबेतरिक है । प्तू हमा पष्टौय 
संस्वाप्रोके एम भिर्माण-कासके पले ध्र वाद्ये मी स्पातीम परम्परापं 
खी गो उतनी र्मत्र नहौ ह चिन्त पममरीष्ी निषारोके ष्ठनमेफठिर 
सी जगदा सङ््मपूणं सोय है--मिषाल के सिए स्वू-पतेरङ के धुदछागाधि्यो 
श्य प्तेरोकाब शिरा प्रौर पष्तिम के छेतिहर पादं जैकयन का सप्र सोक 
पापूलिस्ट प्ाग्दोदन (प्रयराबीं घी के प्रन्विम पाग मेँ पर्वतल् पर पागजनिक 
भियच्वणं भोर पाभिक समाता के छम्ेक) भििश्र पज्च के बर्मोप्देप प्रति 
भ्रौर माज के बिश्यदगारो दसेन प्ामाचिक सेगठ्न प्रौर स्यव्स्ा के 


(६ }) 


भोखिमा रस प्रौर भाग इई ( केवत परवप्रलनामहौप्तं) की प्न्ठिकारी 
पीदरीकेश्नमङ्ै इम समय दक रस जस्तुकामिर्माणक्षर दमा ह, मिसे पामहीर 
पर परमदषी दंनके छ्पमेजाना गता) रन प्रीर राप्गिकि धिक्ते 
र्टृष्यापी ठचि रत्पत्र कए बाते ये व्यक्ति प्रमरीष्टी संहति कै बारमिष् 
चरतो के प्रदिनिभिभे। दन्तु भे ध्षतिकश्यद्टिग नहीरहगये। बस्ति 
भ्रपते को प्रमरीर् दा्प्रनिक भी नहा एमम्पेषे। ये बहुदेणीमि पारमाए्‌भी बा 
पूरोप क दार्णनिर धान्दोनमों कं धमस्छ बी प्रोर शृूरोपीय जिभार की ता्ेतरिक 
समस्पाभों कै सन्वं मे का्परठ पी । रयेल हादण्डेद प्रीरभो ६, मूर 
प्ा्सटीन बरसल हस्म प्मौर फपिड पपमकरे, कारमप ऋिरर बैरन 
ान्यायता री° एत्र एशियट हैरोस्ड लासक कोर्गां उना्टनो भीर रिष 
की रथनार््रो $ हरा प्रटमाभ्टिक पार है धो गगन उहोपन मिली उसके परमाज 
मृं एक निष्मिप्ट भमरीष्धी भिजार का यह रदप एम्मब ग हेता । करर प्रष्मरकी 
यैटान्विष् बाय" पिते दिनौ भमरीष्मे मथ" पर बदरो ६ै-बह मंब जिका 
निमखि मरं षटी $ प्रारम्म कष के महाम्‌ प्मरीभ्रपों तै फिवा पौर फिर पिले 
शको के विदषन्यापौ पानो क सिये चला प्प्‌ दिया । पपि वे हषाएं भरणग 
प्रला र्नो ख श्रमती 8 पौर भिभिन्र प्रगृतियां स्टाच् करती नि्तु ने एक्‌ 
बिष्ट धमरीकयि परनुष्ध्या क्षा सूज करे मं मौ साम इई । चो निणार 
श्यषस्वार्‌ पोर जाय % पिपाएं ए प्तमय सपु सज्य मे उपस्किदि § उमे 
इतनी कार्म एष्यनिष्ठा भौर सारिका ६ कि रेप पौर भिवे ये पामाम्यव 
रकी पोर ध्यान रपा गाये । 


विषय कप 


विपयरषेश 


१ उपनियेश-कीलोन प्रभरीका में प्तेटोवाद प्रौर प्रनुमयवाद 
(२) श्यू-पपैम्ड & द्ुदताभादिमों शे जेटोवागी परमण 
(र) परे का पवित्रवायादो सिदाम्त 
(द) प्रमारणाद 


२ भमरोकोा का प्रबुढ-कास 
(१) शंन शतताश्‌ 
(२) षवि 
९) स्वहा श्य सिद्धत्व 
(८) पामिष् एवतष्वता 
(५) एदार ष्म 
(६) स्वत षिषार 
(9) प्राकृतिक दन 


¶ ्ष्टरवाद शरीर लोक्तच 
(१) दिग षष्टूगाद 
(२) घ्ामान्प जत 
(द) रुषा भमरीक 
(४) सौमान्ति के एपृशाय प्रर जिद 
५५) प्ववन्वाप्रौर धंश 
(६) परार्मादौ शोषदन्व 
(४) माधव भीर मैप 


४ शपिवादिवा 
(१) एररेपरारमक पुन 
(२) उदारमाियों वे सद्गाद 
(१) मानि श्पंन का द्य 
{५} मेतिक मनन्पियो का पर्योन 
(४) पपपोदमो पपार्मबारढेश्पन्‌ 
सनरवैष्य शये समाप्य शष्ट 


दष 
धरर 
ण्श्१्‌ 
1. 
ण्ठ 


११७४ 
रे 
११५ 
११ 
१५१ 


१६६ 


# भ्रमरीषी दरपन क इतिदिष 


भये । घमंकेरैजर्मे पोप निरुप परषिकृो भा शूनीती देते बामे पुषारबादी 
प्रादोलन भरसे भो मुस्यठः भमेनी हरये प्लस स्विदूरसेर प्रौर सिस्वते 
कमे । एम प्रोस्टम्ट सुपाग्बावी पवभन की कर्‌ आाराए बनी । सयुर बाण 
फ मूल प्रबतंड जान कास्विति धे । ये पमंको भकं (पम्‌-संमञन, के माप्यमसे 
ईष्वर प्रोर मनुप्यके श्रौ एक प्रष्मर फा मम्धैता (परषिदा) माने यै। 
भिरजा-से् डा शयम-संजातन णते गामी पपररम षै परिपर (रेत्बिटरी) के 
माम प्र यै प्स्विटीरियन कडलाए्‌ । पमं को पूर्णतः दुध कले मे जिष्वास कणे 
कष्ारणा हनं घुदतावादी मी कडा प्या! पसम पारम्म मे इं पूमीनाट 
कहा पया (समव चेवा नाम पर)। बादमे षरे परोप मेश मघ के 
सिए पुमाए्वादी चै" का प्रपोम होर तया । 
परसय पारा भानाभैश्टसरू (पुल बपरिस्माजादौ,सोरगो क्षी णी अिराक् प्रमार 
शस्यत जर्मनी पं सोलहमौ एताम्ती क पूवं म हुप्रा । इसके नैता परम्बर माम 
के एक पादरी ध इष पान्दोघन फ पमषक तै क गार रम्प-पक्तिके बिष्ट 
बगोह शै भो प्रसफल रहे । पुषारयादी प्रान्वोसर्नो मे पह एक पराङाप्ठबाषी 
प्रा्दोसन भा जिये सुवारवाव का भामपख कहा जा सक्वा है । ये निनी प्रास्वा 
को मात्य बेप्रौर बम-समुशाय र्मे प्ववनतरवा प्रौर एमागदा के पिदान्तषो 
पदाभि धम्पत्ि षी सीमा टक ते जते ध । धैएव मँ हुए बपतिस्मा की बैषधा 
कोस स्वीह्मर श्रै क श्रा निरोभिगो ¢ एह एनः बपविस्मागागी शहा । 
तीखरी बारा पम॑सदेएवािपा ( एवजिलिस्र ) शे पी 1 ये मभिक प्यल्िमदौ 
बे प्रौर तके पिभाएे पे रहस्यथाद्‌ शमी पुट भा। एके प्रपुक वेता बास्प 
बेरी जान बैसती पीर जाजं काटप्म्डभे । पेष्यार्मे बिष्ाघश्रो ही पृद्धि 
क्म मार्ग मान्ते पे । भर्म-सवेद क प्रचाराय एष निष्वाप्र को फैलाना एमष्न 
एरेष्य भा । प्रेम पमषषा पान्ति को ये जि्वाछ का माप्वम मानते बे । बैवछिक 
भुकिता में मिस्वास कएने के कारण पे पमितठाभावी (पायदटिस्ट) मी कलाप । 
षन पस्य पापो क प्रन्त्यव मी बवे उप-बाराएे भी । नाना प्रकारक 
मेद-निभेर्वो भै बसंस्पक सम्प्ररापोको अन्म दिया) बस्तुतः हरं मिचारमादा 
के प्रश्दए भिमिश्र पमा कम्पे ङसि भे प्रौर कररा-बरा ये पभन्वर मवी 
भपारापमो पौर पम्प्रशयो शरो जतम देतैये। एामाजिक द॑नके धेष से एक 
ष्दाहप्ण कं तो घामाजिक प्रर ( घोर काटकट ) विडधाप्त क ठोन पभ्य 
प्रमप्रो मेसो पौर मोक नैषां निगर्येषठो प्रेरणादी वहा होशूष 
रजतत्व केपमर्बकुे ¦ जिचारके हर वेभर्पे दमौ ही स्विविबी। 
पमरीश्ये इविषा पुतः जापरणा-ष्रल क पन्ठ प्रौर पाभूनिक्कत के परम्म 
भ धूह हेच है । पमरीक्पे िष्टस ध्रौर दिजार-ारा पर एवप्रे प्रपि प्रता 


४. प्रमरीश शर्पन का इतिहष 


मये । भमंकेधेतरमे पोप बे निर्वृ पपिर का शुलोही देने पलि पुषाएषादी 
प्ौदो्न चसे भो मुस्यदः बमंनी हामेड प्ट स्विदूजरसेड प्रर शयभिस्वात मं 
कैम 1 इम प्ोरेस्टेन्ट सुपारबावी प्रदो्तत की कर षाण धमो । सर्वपषुष भारा 
के मूल प्रयु जान कास्मिनये) ये परमको अमं (पर्म-संपठन। कै माप्यमसे 
हमर पौर मवुप्यके बीप एक प्रर षा एमभ्येवा (परघमिषा) मानवे बे। 
गिरजा छा कायं-यंणासन करे बास प्रपरेडों षी परिषद्‌ (परेस्विटयी) के 
लाम पर ये प्रस्विदीरियन करहसाए । धर्मो पृणंत घुट शरे मे विष्वा कै 
के कारणा द मुदवावादी मी कडा पया । म॑स प्रारम्म मे एह इ्यूमरीनाट 
कहा गया (घंमबतः तेता माम पर) बादमे घारे पृषे मेष्य मतं के 
सिए यृपाए्वादी शरं का प्रयो हामै घणा । 

दुसरी चारा प्रानाबैश्टस्ट (पुन बपटिस्माबादै, लोगो कौ भी जिषका प्रसार 
भस्यव जर्मनी मं सोषहृदौ एवाग्यी के पूवर्दि मे हुमा । शके मेता मृष्मरमाम 
केः एक पाद्री धै) इष पा्दो्णके एमर्थक9 भ्ं दार एम्प-दकति के षिष्ड 
भि्रोड न्वयि भो प्रसष़न रे । सुषारारौ धम्शेशगो मे यह एक पराषाप्यनादी 
प्ाष्यौसन भा जिते सुमारबाद शा मामप कडा भा सकता है । ये निजी प्रासा 
को मानवे मे भौर बं-खमुवाय र्मे स्मतम्त्रवा प्रर मानवा $ धिदाम्वको 
पापदापिष्ठ पम्पचि श्ये छमा ठक ते बते थ । पैपव में हुए बपतिस्मा भम भैण 
षोपस्पोकारषएो के कारणा बिरोषियों ते षं पुतः भपतिप्माबादी श्रा । 

दौषरी धारा बमं छेपनादियां ( एवांजे्िस्ट ) कमी थी । पे पपिक स्महिषादी 
चे प्रौरइनके विभार्यो में रहस्यवाद भी पुट भा। इएके प्रमुत्र नेवा बस्स 
भती लान भैमी भोर जायं भ्दाष्टष्रीचये। ये्सारमे बिष्वसकोषी मुषि 
का मामं मापते भे | भमं-दिके प्र्ारदठारा इछ दिप्याप् कौ कैलाना एक्का 
ण्देपवं पा। पेम प्रभा घान्तिष्ो ये जिस्म का माप्पयम मागठे ध । भेपद्ििक 
धुचिता में गिरवा कजे क कपर यै पथित्रताबादी (पापदिस्ट) मी कलाप । 

एत पुङ्प णाराप्रोके प्रष्ठ्ंत नी बरहुेटी उप-पाएपुं बी । ताता प्रकारके 
मद-भिमेयो गै भटुमर॑स्मक प्म्परदामो को जभ्म दिया स्तुतः इर भिारवाय 
के प्रन्दर जिमिश्च परमाव करभे शङ यै भौर करा-करा घे परत्र धमी 
रापो पौर पम्प्र्व) को जन्म देते$। सामाजिक दर्प के दौर से एष 
जषाहस्ण तं तो एामाजि प्रयुषन् ( सोप ऋटक्ट } सिान् के तीन ध्य 
परक्रम मं स्सा प्नौर लोक पिबा धिद्ेद्येको परेरणादो बाहू 
राजठलत के प्रमर्कपे । भिषारके हर धेतर्मेरेमीहीस्विनिनी। 

पमरीषी इविषा पुन गागण्ण-काप फ पन्त रौर पाषुनिषकाए गे भराएम 
मे धुकूषहोता दै । प्रमरीश एविषास श्रौर भिभार-ारा पर घमस प्रमि प्राव 


परमरीषी दर्प का इिषिप 


पाभारिव एभ्य संपठनीं केप्तिए एक बेपामिष़ चिदाप्ठ अन गमा प्रास्वाकी 
जत्तुनदश्डच्राने पर्‌ भी बहुत दिनो खकः उनकी र्या पर प्रागा रहा । 

चम -समुदापवादी परुठताबार को परम्परा का सोत हमे पुनः ज्रागरणाष्टामीन 
प्मेदेवाद मेँ प्र बिपिप्टव पौटर रेमृष (१५११-०२) मे मिहहाहै। बे पष 
प्ख मानषवादी ^ प्रोर्‌ प्वेटोगारौ ये 1 उन्दने परस्तुबारी प्रास्भीपता ४ त्को 
प्नौर भापाययाग शी षडु तीडी प्रालोधना षे, भिधेपतः उसके पदाभ-निर्पणु 
धरोर बिधेय पो क्री गो ममं भिस्कुस प्य प्रवीठ हुए । ११६१ में र्हि 
करम्जिनकार> स्वीष्मए कर पिपा पीर माहम्छ श्यै पमं सगोप्ी" {१५७२) मे 
परेसिटीििन"^ मव कै जष्ड ष्क पुट पप-मुदापबादी सिदात्त का समर्षन 
कृएणे के कयरणा उन्हुं काप कुख्यात मिपौ । प्रस्मिरौरिवत भोमों भ उनके सिराम्व 
को प्रत्पभिक भाफूताम्निक पौर श्य कारणा शबिल्कूषर बाहिमात प्रीर पाठम" 


१ पुम बागस्ठकाल ५, पमपाह्ं क्षी तीमः ताप कर पूतागी 
प्रौर रोमी रदनाप्रां का परप्ययत करै बलो के लिए प्रयु । प्रपरेनीप्‌ 
ष्टननिस्ट) ।-पचुर 

२. प्रतु के वार्तिक भिजारौ का प्रापार एष पूल-जिभागन है) एतम्‌ 
एष प्नोए् तो भूल प्स्व (पदार्थ) है जिन्‌ सृष्टि टी तमी बस्तुमोंक्म 
बाक्स्ल क्िवावातकर्ता है। प्ररष्तूके प्रतार पे परल ताव ई-बस्तू, 
बरिमाण पृ शम्बन्य स्वा यल, पुद्रा प्रधिकार, छिपा प्रौर प्रामेष । 
षूवरी प्रोर भिपेय प्रपात भे हती बते ह नोर पदपोङे बरेदेषहीभा 
सक्ती है । सपरेजौ प ष्टेगोरीकः पौर ५ोण्किनिष्त"- पनु» 

३ धात्‌ कस्मिन्‌ (१५ ९ १५६४८) गुदतागारौ भिवारथारा कछ भूल 
पर्त जिल्हमि ईस्वर दवा णार ढे लिए बिधिष्ट स्यश्िय के अयता 
लिडान्त प्रधिषारिति प्विया। यहु लिदाम्त शडताबातिषों ब वषु भादा 
दत्व करते प सहायक हृप्रा क्वे ई्वरके ह्मे हए दूत ह ।- प्रु, 

भ परेप्विरौप्यिन पच टी पन -तोष्टो (परापताड) जिसपर घम्बण्यित धे 
(पर्ल प्रत्त पा देए) हे बर्माषिदारी पोर पप्रज भाम तेते हु नाप्व 
भवर रन्द्र मे श्रटेष्ेश्ट मठन्ुफाधियो ऋ एक यड्‌ या बद्‌ छन्त प पोरेव्रे्ड 
स्त ाकी फल भानेके दाद कनको एक तंषोष्टौ हुं । 

५ प्ेपिटीप्यिन--शुडहाबादिपों का सम्प्रदायो मिर्जा हे तनौ 
लोगीं हारा लौ बरत समान्‌ भ्रजिक्मर बले परप्रखों दवारा धरातल फ क्िडान्त 
को मानवा पा 1 एसा प्रहार पुर्व स्शोटर्मड प्‌ हृप्रा ।- प्रतु 


उपगिरि कालीम पमरीका में षकेटोगाद प्रर प्रनुमददाद ४ 


कहकर रयो मरना करौ 1 चेन्ट ा्थो-लोम्य्‌ म हत्यारोह) म उन हप 
हा पपी) एत प्क ठे योमन श्रौर उमकी पृषु, शनोतेदी र एक 
प्ोरटेन्ट चन्त प्रर हीर भमाने मे माप दिया प॑न में उनकी पृष्पदेन 
मवी ङिन्ेरोके मिषार पर प्राषारिठ एक प्रय कै दमाबाद माद्रेदको 
उक्ते एस्णीम भोर भर्दूगाशो भस्यस प्रमाण के ठक पे परष्ि मौतिकः 
पोर उपयाम कठा कर एवं पुन्जनिव भोर भ्यबस्मित सया । बे कमास्न को 
पमाएङके मिज्ञाम दो प्रेक्षा पमारा मिक्ता मार्से े--ममूप्य को यम 
दिको पूणस कणे की कला! दन डा ध्यमस्मिव वैठ $ पारा पन्ति 
प््वरधोर सिषे कौ सता विदां) वादक जिष्लेपण शरी ए #साको 
खद्धेते पाननिम्कार भहा । तषाप्य षये दूसरी पासा को उनहोतं निरण॑ब मा 
हिष्बास शह जो रन सभी षो वोशमे षो लाह भिम ये पर्ण करता है । 
देम शे प्पनो पिषारप्यष्वा क समन मुश्यतः उसके तदणिक मूम्यके 
प्राणार पर किया ! सेति दणके शरु सिप्यो ने बिेयत॒मेषठामदधन के भर्मन्‌ 
छषोर्मे, कै एन, परसर्टेड नामके एष पठन ते नाक विपि का मिकास 
लामो पौर निष्ठाने केर केष मे एक दिद्व-किपके म मेंिना 1 भर्सटेढ 
कर "एम्ाोपोध्यिः (बिस्व-पोष, १६३०) पुद्धतापावी धमष फा एर ोकपरिम 
ग्रर् बल गडा! इते परिद्माणास्व $ परविरि्ठ तीम प्रय दृखपिपय भाते षये-- 
शऋाषटेषिटिवा दक्ितािया दिमापू के गन भौर पादह शय जाग रेममा्ानिया 
हमातमक निपि तै पस्तुद लापो श्वी प्वस्वा जिससे मुद म्ब्यो शोर द्ाग 
षि एका का प्ठा श्तै, भौर श्परारिज्लोनिपा' भाग पौर प्रस्तर तेनो 
परा्-तरह्मो तव्यो चौर सिणान्तो काप, बोमाटे तौर भरकर 
मि्ार-श्यस्ना कषे मान है । हान्त, या समी विपर्यो शो श्पनी परि 
कषे गसि दरफन क्य धामान्य शए्यपा मनुष्य की पहन (परषहतरिम) भिक 
धनुरा (हनि) धकसा मे परिषिविद करना भने तकं दि पनुप्य का 
सिमिाण रस्य का एक प्तिस्पन्‌ बन दाप्‌) 

धर बित्ियप रेभ्विस भे ८५८० रेख की जिजर-ग्यवस्मा क्ये $ैमििम 





९ वेष्ट बाधतिोम्पू दिष्ट, २४ परमस्थ, १५७२ शो प्रार्ने हप्र, शस 
चै प्रेषटेष्ट भताुपाधियो का हय्कोड । इह पटना ठे ची पश्यत" रली 
देवराएभ पेपी का हाव वा] हां पेरिस वै ९७ दित तड चसता 
ापौरदेणकेप्र्य पार्षद मीदेलागयी १ पतृदर भने तात्र हप्रा 1 


धतुभाव है हि दमे लपमद भथा हुवार भटेष्टेष्ट (नो पताम नीना, 
कर्ति ये) मरे ने (--स्वुर 


॥) परमरीको रफ का एतिरप 


जिष्वनिद्चासप में परमिष्ट कराया, जह उने कैम्जिज $ प्यीटोजाद मी प्रमिति 
मं घहायवावी। ग़ दिवार-ग्यदस्मा पमं-पमुदायबाद के समर्पय का प्राषाए 
अन गयी | कैस्तिज मे धुटताबाद ढे परिनिभि बे तेगडेन्डर रिच्‌ सन, बाय 
डोतामे, ेरमनी बुटन प्रौर तियेप्वः भिसिबम एम्ख मितष्म रबनाएं प्राएम्मिक 
समूद के सरिसं दपान-पस्यबती। १६७२ मं एम्सतै रेमूष षी रना 
'डादसेमिरक्य मिद कमेर्टरी) (वार टीका सहित) य एष्‌ संस्करण प्रष्मणिवि 
क्ष्या! एसी पं मिम्टल वै प्रपनी पुस्यक र्स्ययुषष शोफ बिभररंप्राफ 
लाजिष बैष्ड प्रान दौ छिस घाफ़ पोटष्शेयुस ( पीटररेमुस फ़ ष्नपर 
प्माजारित एक्का की स्वापताएं , प्रकाषिव ी। रेगुष के दर्णन भ्रौ 
भ्रखंबिराप्मक बरमंाल^ क्न लोशप्रिय बमाने बाते पर्य भुदतागावी प्मणाङ्मी पै 
जििपम पक्गि्स ओन प्रस्टन प्रौर भामघ हकर । 

प्यू-दगमैर "भाने के पते हकर तै फैम्निय मे रिद्‌ सग प रेयु फा दरपन 
पद्म षा। त्वू-धसेड जावर ये इस भिार-म्यमस्पा के एषापि जाषकार 
प्रसिपाःश बै प्रौर स्यू -दमलेषट के पादरियों $ एकं पर्या शिसित समर $ घाप 
मिलकर कर रण्ये तकृ बमं-समुदायवावका शदाषनिक समन क्रैष््ेः 
ध्य गसेव म एष दानिक श्ुदतामाद ते एक निदिभित बौपिक परम्म का 
निर्माण छिपा जिसके मस्य धंग भै बर्म-त॑नीप नयो शा सिद्धाश्ठ रौर 
'्टेषलोलाजिना ( कलापो छौ स्वनस्वा ) का मास्जीप बिका] 

मूरोपर्म श्सुष के दन भीर प्रसमिवात्मक भर्मष्टात्वर श्र प्रापमिक्‌ ्षदय 
सामान ध्यक्ति को ठेते बीदिक प्रौङार प्रान करमां पा जिस बहू पादरिपोके 
जिरोषाभिक्रर एंस्काए विधियो की पराबस्यकता पौर प्रविष्टि संस्भाप्रो टी क्ति 
को परमाप कर सके । दंगलिस्तान मे बमं-सपदायनादी प्रपि प्रपिक्‌पर्ह् 
प्राप्रा कर षण्यपे कि दंगलिस्तानी बर्बर क मान्य प्रौर प्रपिप्ठ्वि प्परमोकैरप 
मे मिरला-केभो श प्रषदिारमक सिदाम्टो ढे प्रा्ार पर परपला गठन करे षी 
प्युमधि मिल सकेलो । यच्चपि बे कास्मिने के पिडान्तोः छा परार कणेष्टेकि 
भी रापो को पिज प्रजाभिपत्य ( होती कामगवष्य ) बम जाना बाहिर, 
दवितु पपत कर्म पर बे प्रगत नही कर घते दे । दप भिपरीत स्वृ -दंनतेद 





१ पर्प को चरं (बमे-दपम्न) ढे साध्यम ष्ठे हंस्वर प्रौर प्रनुष्यङे 
दीष एर प्रकार का परम्टीता माते बश्ला पिदडप्त 1 भप्रेजी च कदेषाम्ट 
बनिपालोणौ ।-- प्लु 

२ हपक्तिस्ताम शरौ रातौ एलिजाजेग वअथम हरा स्वापित परम -सगठन 
स्वसितै ईपपिस्तान रा रादाही भरणं क्य पी प्रवात होता 1 --प्रदुर 


अृपनिमेए-काधीन्‌ प्रमधैका से प्तेटोबह्द भोर प्रनुमबदाद ४ 


फे छोरे्ोरे स्वव मुय भगे या निरामो भो परघमिगर्पो या 
पामातिकू पमूभल्शो क प्रय शठा १ शररनधोरे रापो मा ष्ठो केस्परम 
सगथ कला समभ चा, नमे धो द्यरा शूने ण्ये दंपभिरारी पौर पारी 
हूस्मरीय निम्मा भये लापू करे १ ति्‌ सयु स्वव उरदागी हो । षोलापम 
निलये १६५१ पै श्डाहि “वार्य षमूर्यं सम्भे {खाक रम्यका 
निर्म "हमा वरेष्यथाधौर परेम इमाए ष्चिषहाप्रा्रार पा। मद्रपि 
धान्तरिर पौर पस्य एभ्यके प्रि णो उसा गियम-दे धा प्रादरमे माग) 
प्रर प्ोरेधर वेस पिर भे रीका बौ हप है ! "उदव एवामी के धपा 
जगदु मे म्वुग-देयसेदाप्ं को धनुपम नाने वाता षमी रुरव धर्मं 
घ्नो ष उनको मलम करफे रमु बत्तु एष रिपिष्टं समाज वनामै बाता 
उनका यह स््रव॑-खिद्ध सिदाम्ह पा कि शष्वरीय प्रगुक््पा की प्रसि 
सजगौति मे दष्यमाम्‌ जबे-मायं शै एक चथेपरंषिरासे प्राकृत है) येष्पि 
तपूपसेर के करमप्ास्तिमो तै मपी पीिकर्पो सेवी प्देप्रारीकते षे 
प्राल्ठं सकत ली पौर एष तिदैपादिषमददुक भं हा स्वत पीर पणा ब्रहण 
भरसी, दु ्रामाम्य भ्यष्ठि प्राये भत कर प्रपते प्रसुमिरारमकः प्पिष्र्योषो 
ममा सड पौर उरते भरे-भरे परियो इय ंबालिव परमतो को क्षीण 
करकैः उन सोष्ठय का स्प दिवा। निषदे, पादपो त परपरम शीबृरठिके 
दिवा परामाद ठदई किसु मुषा पीड मै, जिसे मुषा पाद्री भीष, एष वीव 
पृषएको पोरणिपरेप प्पान गी टिषा। पूरे षष्ठे म जोजोद मूरोपमें 
भुश्यठेः परिमा के बिपेपापकिर्यो के बिष्ट मप्यमजांका कित्राहधो, बहु 
पमयेकम मे स्वतस्व रागवति पमुदर्मो के निर्माण शा ठे प्रापार बन पी! 
इन प्मुदर्शो मे पद्मो कौ पछि भीरे-गीरे प्रमाप्तहो गयो मौर प्रतिप्ययी 
अष्ट शक्वरी ए जह ठक उण्दोरे स्वयं “ामाम्प' शोर्पोके दृष्टिकोण षो 
पपन धिषा स्परे लयर न्‌ यात्र स्यापारौ साहि के पंजी मिनिमोम 
भेम पिष प्रभापिपतप । दे दोनो होमेन दाषाक्ते वै लेकिन पौरे-पौरे ए 
पिष्ट प्रषाएकौ प्ववस्नषठाका विकरह हमा, निस्य पवैटोगाशी पादपंवाद 
पौर पान्थ { म्ू-केपरेष्वातरिफो ऋ वप्यताम ) व्यापारिक मृदधिका पिप्र 
था । ईवत "बवन" प्रौए दिपान स्ट पमाभिप्त्या का विधर्‌ दतिया“ 
मान्पता ढा प्रापार गब पया ¦ 
शव शशद्यदागौ पतैटागश्ये दस्रा ( रदस्य )* मौर प्रहि पमं 
१ पेष प्िशर टौ शृ वर्वेड माण्ड (शपूयादं १६१६}, पृष्ठ ४१७॥ 
२. आहति -अन्‌ रा हिद, पर्षद्‌ ईष्वर च िषात्र रिषतू 
पणप्रर्ष के दृषद्‌ तरत हे च बद 1 -प्रतुर 


ष्ट परमर्म दछन का एतिहाष 


कमी भौर शंस्या पापासो से पीरे-ीरे धरोर शु शुं मचैवम क्म मे हपा । 
कापा मष बा कि इुदलामादी स्यष्टह- बारमिस के यु्ठनियमों पौर प्रसमिशा पर 
खमे निरमर्षं ये जिना मे त्वे पाने दै । उने जिजार-म्बस्वा प्रारम्मदे 
हौ बाएमिन पर भापार्िि होते की भपेका आस्वबिकृ क्प मे दानि परकिकिधी 1 
जव म्पू-दपसेड मे छ्रपम पथि घोकताभिक पातन के हित मृ 
हहापिकरसियो परौए पषरियो क निष्ठ श्रहति-प्रतत' पपिष््णे को मनबानेका 
प्रवाघ्र क्षा गमा ठो लवनं वितृप्रोधमे उसका प्रमाभकारी उततर दिपा भौर 
पुदत्ाषादी दरपन के सण्धमं मं भाहृकिक स्वदार्भो $ एमन को "कष्ट 
स्बतग्दताप्मा का समर्णम कड कर उसकी न्त्विक़ी। 
पवतन्भता के धो ङ्प है प्राृतिक्र ( हमारी प्रवि प्रव भैसी प्रष्टहै 

मेरा तार्यं स्सये ६ ) पौर नागरिक पा स्रबीय । पडे प्रकार की प्वत्पता 
भुप्य प्रौर पुमो ब पन्य प्राणिर्मो के जिए मान्‌ है । इमे मनुष्य को मनुष्व 
हके छाप पपते षहय-पम्भन्प मे भो कुण भी बाहे करते की स्वतन्ता होती ४1 
पह पच्छा भ्रौर बुर शनो कर स्वता है । मइ स्थतत्व्वा सचा छे भमेष 
पौर प्रसंमह ह प्रौर प्रषिषटतम व्पायपूणं घवा काय पौ रासे भी प्रकृको 
सद्य साई सकती । इय स्वतस्वता को कायम रञ्गे प्रौर दका उपमोष करणै पे 
मनुष्य में बुराई बढृतौ हे पोर पीरे-पीरे अह बिषेकहीन पथपरो ध जी भया-युजण 
हो नारा ६ै- पणं उन्दुलचा ते समी पम हप्र कोवा है ( वयात धपण 
1न्तप्रत३ कलल 0ात } । यह स्त्य भौर हाण्विका बहे महान्‌ दुष, 
बह बगली पयुहै, जिस सुबमि भोर एमित श्रना छमी र्विरीय बिपाधों का 
सपय ६। दरे प्रकारकी स्वव्तताको वै नागरिष प्रा घंवीय बढता ह । 
ईश्वर प्नौर मनुष्यकं बीजण्मी प्रसंभिदाके प्यं पे नैतिक नियमा भौर 
भ्यो श प्रापसी एजमैतिक प्रसमिराप्रो प्रौर घंविषा्गो के सन्द यं पे नैतिक 
स्वतम्बता पौ कडा जा धका है । यह स्तम्भा पला का हुचि ण्य भौर 
उदेष्व ६ भौर रस्के जिना बहौ ड़ पफ्ती । पह केवल परश्छा ष्याम पौर 
हेमानवापी शमी प्वतल्शठा है । इच स्वटन्कता छ्य (न केवश पपदी सम्पत्ति बस्कि) 
प्राज्या पढ़े तो पपन जौगन को भी कतरे मे लकष प्रापको समरन रना 
है) "या स्वतत्वता एकरम्मे सचाकैप्रषीनरह रही कामम ण्बीपरौर 
छपयोग की जाती है ह उही प्रकर श स्वहत्नवा ह जिसके षप घा हमें 
भुके पन्वा ६।^ 


२ जाम्‌ चिरत, एिस्टरो घ्राण र्पू-दनरतंड केभ्त कन्य होस्पर हाप 
जारित (यृ १९६०८) कव २, पुष्ट २१०८२१९ । 


उपतितेफ-काहोन प्रमदैषा मे केटोकाद पोर पमुमवभाद ६ 


हम्प कानो बही उत्तस्ह्ेदा। ङि मीये सागरा परसिदाल्मणः 
एवतम्यताते पथिकाभिक सामने प्रायो । सान मास्यते दृदधतागारौ एष्टिक्य भेव 
घोल द्विया । ज उन्मे इषिठि म्वा छि धर मनूप्य दर मैतिक भपमा का 
निभार्‌ द्धो शवा गाए' छा शवां स्वत तरा के प्रसुमिशातमष पमेषास क 
मर भम्‌-निपेलत मामाजिक-पगुबन्य के चिटाम्ठ को भैती पृदनगोटे ते स्री 
म्पास्पाह्ीभी, राजा सकता । प्रष्टठाकी चैहनाङे तदमिक हाप धरोर 
परेद म्वापाणिहाके भिष्दभरुही हूं लीके सराम-माय लोर के निमनणो 
{ श्ाप्येड ) श म्पूचपलेर ये पविकाभिकि स्वागत हप्र पौर प्रन्वव निद्र 
क्म प्रौचित्य सिद करभे के मिए उमा रखपयोय निया ममा) 

षामाजिक पिदन्तं क ामणो गाव हु बही प्रद्तिष वनभ धाजमी 
ट । $म्तिय का प्पेटोषाद म्पूरम के जिहान के उदयके धाप्‌ नि्टसे सम्ब 
जा पोर जब २७०० के सममग बेन, न्पूटत परए लोर श्वे राते न्यम 
मे रसण्ष है, चा षडेते पीपही रेपषारी प्रन्पोकषी पुरामी पड शुषे 
जौविक्तो प्रौर च्गातशपाकास्पान हि तिमा । 


प्रेम का पषिश्रताषादो' सिद्धाम् 


धुदवाबादी अभजे को पृण स्वाप्ना होने के पै हयै र्मे 
प्षित्ाषारिमो द म्वध्िवादी पथुहुनुम भाप भिं भर॑ताद्धी प्राम्रौरपर 
दतत सिप्रतिेषषारी-- वामि प्ररायङ्शाषादा कृषते बे पीर धमनी 
सागुददिक पाप्मा का पूरं सश्र माम कर जिनसे मयदखातपे) पाते 
क्षरः पोर प्मानपैष्टिरूभ्शोग श्ये, फिर मेबोदिर्ट* । यै घमी “उम्र 
१ पापटिरप--मोटेस्टेष्ट हस्प्ररायी पे पडा, शुचिता, पा माधनापमषदाकी 
बृ के तिर्‌ सहुकी एवाष्दी म प्राप्न प्रा्दोलन (धरन 
२ भाय एाक्ठ द्वा सुदो एताददो ङ्के पम्यमु स्वारित लत निहन्म 
भाषि लाप 'तितर-पाक है) एते पुष्य ष्डिष्त हैषा शो 
जादी प्रर प्मिमप प्रा्र्स 1 - प्रचुर 
१ पेपदयशोन बपतिस्मा की देयता प्रस्वीहार करणे केयर पुग 
अषतिरतावारी कलते है? प्रोटेषटेम्ट कुपार्वाद षी एष प्रप्य पूरणं 
पाशा 1 पै निग प्रत्या प्रर एनातता शो मानते है; प्‌ श्राण्दोलण मुक्यतः 
जवेन) म्‌ पता बहु एके समथ त श विद्‌ भी सिपि 1 पु 
४ धटे तौर पर मम्‌-किद्रषारियो फ सिर प्रपुक (ष्ठु, 


१० भमर ष्ठन का इषिरः 


पा पुनष््रात भो प्रौर बैकि भुतिष्ो मानते प। तवरे कौ षमभ्कर 
पावादी सोन स्मेह उत्पथ करते भा भामिक माभ प्रषणता फ मिष सौम्या 
भ्रौरज्ान पर पोरदनै श्वे 

म्पद्छिवाद प्रौर भमं-ंणगादका मृससंबपं महान्‌ गागर्णा फ कषरम 
डारसये कैसा बव पूरपीय पदिभव्रायाद परीर धर्म-पदेषवबाद, पमषक पहुचे 
श्रोर षम्होमै जनसंस्याषे बडे स्मे को पीप्रही प्रमाबिटठ कर हिया। 
शुरव्रामादिरथी म एस घनं को धवसे भविक ठीव्रता पे प्रगुमव करी भाते प्रीर 
समरस भविक देङ्गी तै उखा उपाय रमे बाजे धोमापन एरभम्‌"स बे । उनि 
रेमुसभाव भीर कैम्विजके प्तेटोजाद का प्थ्वमन वेल कक्िनिमे कियाना 
(सभबन्रः दैमुएल णोप्सन कै पिप्य ङ्पर्मे भो कु समप तक उनके पर्याप 
भै) | सितु जिन दिनोमे केलेज मभ ठी डमर पृस्वकामवभूरेपधि पामा 
जिस्म भव-लान' शै मुख्य पुस्तं बी भोर रन्धरोगे कपा बाप्छन पै बरी रस्सुष्वा 
धे उकं परा 1 €ो शप॑निक रथाप तै रणे बिदेपतः प्रमामिठद्धिपा लौकिका 
“एते (भिबस्) प्रौर हैन रौ पृष्ठ “देन एष्पायरी इन दु दी प्रोरिजिगल 
पाप प्रषर पादपा प्रोपः प्ूदी दैन्ड धृतं (सौन्वयं प्रौर दबुरा सम्बन्पौ हमारे 
जिषाराकरे मूप्स्नोत की एक लोभ) । पहसौ पुस्वक उरे १७१७ पी 
भत्रे कलिजमेहीये पभरौरदूखरी १७१ के शगमग जवने नान्यद मे एष 
युष पादो थे | उलका निषी षामिकद् १०९२९२५४ गपो पृ खबपे पषिक 
तीग्रपाधौर १७६४ मे उनके गिरजा म पुनस्त्पान' या जागरण पूरू 
क्षो पमा) इन क्या मे उन्होनै नये शसौनिकों क घाण-पाब एक प्रन्य रचना 
शोभी भार-बार पड़ा जिते पूड्ठामादौ पम॑ंखासी परिभित वै मिन्गुषो 
एवद्‌ घ के सिपु निष्प नहत्वपूरो बन मयी--येदरोषान माद्दिक्ट श्री भ्यारेरिषको- 
भैभ्टिका निवाला (हैदान्छिक-स्याबहारिक परमघाम) भो एक घोकपिय प्री 
छंस्करता में पी स्पलन्ब धी । वात मास्टृक्ट हासड के परसंनिदातमक बर्मरािर्यो 
धि निरस स्म्जद होने पर भी हालेड मे पजित्रताबाद के सुस्वाप्रेमषठिषे। 
इ पूरोपीम पजिष्रवाबादने एडभर्‌ पशनो पर्मस्मके केत्र्मे "महान्‌ भापरणण 
के श्रप्रिड प्रौर प्रमरीशौ पविर्बठाबादे केलिए वैमार करयिया। शीमही 
एरबय्‌ स "ष-म्पोविपो के-दैते धुदधदानादौ जिनक्प मुक्ताव बा्िक ग्यक्तिमाद 
ष्प्रीरषा भौर जिनं पुलक्त्वात मं मागिया बीदिष ठा बन गवै । 
उन्हति एक धरन का लिमा॑एा म्म्य भो निजौ पीत्रता प्रौर पमकासौण बौदिषक 
पारो $ पेप्ट निक्षमणा शी षष्टि घ प्ररयधिकृ प्रमषिवराधी पा! प्रगले भ्रध्याम 


१ पए्ाजेरिकूतिर-4पता यै बछि के प्रचार का प्रान्टोतन्‌ ।--प्रवु* 


चप्न्तिम कत्वात्‌ प्रमरौडा मे प्ठेटोकाद पोर प्रनुमदबाद ११ 


मेहमदेलगेष्धि वेजनिषठो केस्पमं लकभौर्‌ प्यूदनक्‌ प्रहि उगकाक्पा 
हष्टि्नोण चा । यङ माण सम्बल उन दारा प्ितरतावादी प्रमाव मेः मन्तग॑त 
पुवा्ादी पर्प के धणोपनसे है । 
भक शस पिड्धाम्नदे कि माढन क सरस विभारही चिन्तन बा भूद 

सथ है भौए हनेरके रेपिक पावना प्ठिम्द ये स्वेद प्रय षण्डे 

एष्मददठङे श्दाक्िईृत्कर भे पनुणड एकप्रकार के माबानुमब प्राह 
शकता ६, "मनुष्य के प्रि ईश्वरीय विषानाका पोचित्पसिद दले कषाय 
नषि जैसा पुटताबादियो शरीर मस्य ठक्नाबादी पमे-पद्धिपा ने कमनेष्ीबेष्टा 
ष्येषी। उन्हे माव्कादिपूवागत्माम्‌ हिसि प्दार उने मन शष्विरक्रौ पूणं 
धरषेणस्मि्ठा के पिदन्वश् दियपकरता भावव तङि ईएणरमें एक 
पा्तपिकि मभुर धातम्बः रनर नहीष्या परया! र्का प्रपना प्रमाब्पासी 
बरुन उदुत करणे बम्प ै-- 

श्भपनपति हो मर रिमापमं सष्वर को स्॑पस्मिष्ठा क पिस्य फ बिष 

पराप्तम प्ररीषों किथटं मिसे शि मनन्त शीवमकेसिए्‌ कुगते पौर भिये 
आहि परस्वीक्पर कदे, हयेषा के सिए नयः हो शा भ्रनन्द्पत तक नर 
पाना एदेषे का पएोद़दे) पुमेयड्‌ एक भपानक विदन्त पवतर दावराया। 
सेन्धिन मु भह मम प्रश्छी हर या अष एत्र शो एष ठषप्िमचा क 
प्रति पौर प्रपनी निरबामि इण्छाक धनुमरार गन्दा क त्िपएु मगूरपपोषै 

प्थणप्था करें ठमष्भ्माय के परतरि मै पराप्त पौर पूर्ण प्म्ुप्टदी 
भपा 1 हन्तु मैयष गहीदता सषवाभाषि कैणेपाक्रिठि माप्यमदवैषम 
भाः प्राप षठा रेशा) उस मप भौर षष परमप यार तष पुषे कपना भी 
गहे भी कि पे (तरोप परेरा का शेः भरषाषार्छ प्रथ दा । ककत पवना 

द्यी किप्रबयै मपि पूरदष्टद्च पाठापा प्रौरभेी ठरमुदिं दष्केम्याय 
धरोर धौचि्य को समयो पी) धोर्‌ से उन छमी पकार्पो प्रर प्राप्यो 

का पन्तङोनया 1 उ्दिनिम पाङ्र दक एवर क्यो म्रदिमा दे सम्क्ण्प 

मकरे विमाय घं एष पार्ये परिवतेन प्रायाहै। देता छि निरुप 

शं पर्प, कमी करदस्य मरिद उदेहौ ही दि सकर जिर वर दया 

कलादि ष्पा करे पौर जहे गदे रप्ये सयो करे) स्वयं प्रीर मरणे 

एप्बग्ध से ईरदर्को पूय हदए्िमिला प्रोरम्यामङे पम्बन्बमे मेद्य निप्र 

नाह पात्व प्रतीह होक्रा है भिवमा सती हभ्टिमाबर मन्युक मुमबमप 

मृ 1 कमरे क्म, बुष समयोपरदेमा ही दाख) शिशु अगम रिप्वायदधे 

फर ईर दे भभपष्िमि्ता केः सप्दन्प यं बा भुर दिषु त्त प्रक्र 

भा प्गुमव हठा । उष घमपङ्के मादु महवा मुम भवत जिरषाम 1 


१२ प्रमरीषरौ श्यल षा एविषहास 


है भन्‌ एकु प्रानस्यपूणं भिष्वास हुषा है। यर प्िदान्व य॒मे भह 
प्मानश्दायद़र श्योतिग्प प्रौर मनुर प्रतीव हृम्रा ¢ । ईष्वर श्च पर्णं 
सषंपच्िमच्ता स्वीक्तर करने मे मुके प्रानष्ड मिमता है ! किन मेरा प्रथम निवात 
यैसानदी गा! 
स्वर मरोर वैवी बस्तुप्ो मं इस प्रश्ररके प्राररिक मधुर प्रान्दष् 
जिका पनुमब पे बार मे शुमा हमा द, पहला प्रसर णो ममे माश उम 
समप प्रावा जवम बाएमितके बेम पडे (1 टिमोबी 1 १०) पब 
प्ननस्ठ पक्र, प्रदम ररे एकमात्र ज्ञानी हैष्ठर ढे तरिए हमेणा प्रौर कमेण 
म प्रौर सम्मान । भामीन। एन भर्म्णेकोपदते हुए दैवी ङ्प की महिमा 
कौ एक्‌ माबा मेरी प्राह्मा में पाईं भोर भैस उमे फैलकरद्धा पपी । एक्‌ 
शमी भावना भो मरं छारे पूर्वं भनुमष ते बिच मित्त पी । पर्मपन्नो के फो 
पर्व मुफेकमी एन षां चैते महीकीये) रने प्रपने मनम्‌ पोचाषिकैठा 
महिमापूर्णं बह सहै, प्रौर गै कटवा मुखी बाद प्रगरयै उष लपका 
परानन्द पा षष्ठं भौर स्वगं मे उसे मिल बाड प्रौरहमेषामे निएभैसे ष्सी 
मेच्ौबाद। 
शके भादश्वी बरपर्पोष्ी मेरी भावमा धीरे-ीरे बहुवी ध्पी प्रौर 
प्रणिङ्धामिक जीगन्ध ह पौर श्रमे बह भराच्ठरिष्‌ मधुरम प्रपि परापा। हर 
ब्युकाक्ेप बदल गपा प्रीर दषा प्रतीठ हुषा बैस सगमग इर भरद मे ईष्वर 
की महिमा छी एक छान्त मधुर चापा भा प्रतष्ठिपापयोहो। ^ 
शलमभम हर भस्तु" षी बात महत्मपूटं ट, षपोकि ये प्रागे बताते दकि षष 
नेमो भावना का पंस्कार उषरं एषकान्ठधरिपताषी धरोर प्रति के पाष समामम 
श प्रोरके पमा! दूषरी पौर उनके पदिक कामं प्रौर पामाजिक पम्बत्व समु 
एक भीभो प्रषोगति श्वी स्मिति पीर दपा मप्र जतिै भो श्माप्यारमिक 
अतो ड सम्बल्पमं भवनीस्म मैषङ़नी' । प्रौर रये रु पुम {परा 
कि उनके पाख शारो भरट पोर परेणानो उन्न कृण बासा मानै के 
पर्वाप् कारण वै पौर पहरि सार कमी बरवेगा गही! बे मं प्रौर प्रार्म 
ष्टि कमी माचना' ये चिम्ठितिवै भो दन्हे ध्रपनेमे पौर प्श्य घोर्भोमे दिर 
देतीभौ प्रौर षने पूं मम्भीष्ठा चे चिङा-- 
'पिष्ठसे पिर्णे मेरी बङी कामना फीट किवैटूटा शिति लेकर ईस्मरङे 
चष्णो वर प. मोर जवय बिनयशरीरष्छा कराह तोयै यह नह ष्छ 
१ क्रे एथ» पष्ट प्मौर वामत एष» भान्छत हारा लम्पामित, 
भाषत पएबद्ल स्मि्ष्टेगिब पेतेरयम्तः ( म्बुपयदं १९१५) प्रष्ठ 
६० | 


उषगिवेष-हसीन पमरष मे प्तेटोशर प्रोर प्रपुयवनार १६ 


कर एष्ता ङि पुमे केव उतना हो रिनय हो जितना पष्य पवाध्यो म ये 
गृहा है कि एतम जिवला विनमहै बहु उक छप्‌ उपपुकत ही सषा है, 
सद भरे क्निप, छारी भनुप्य-गाति मे गते प्गिक जिनपपोष म होना 
तीच्छापूसं धहश्पष् हेमा । ^? 
शष प्रकार एरवर्‌घ रे दमा सं एष स्योर्ण कामना दित हृ एकपात 
गह भिन्वा किह्स्वरं शौ घषंपछिमछा एन्यः एर सग्यापी शोर धषी 
उरेष्व दम जापएमोकामनाशरो प्मौगतार्मे बदसरे प्रौरनैषिक उदाराषो 
भ्पनि्पेम य} 
पिके श्य ये स्वयं पे प्नूममर कौ एस प्यास्या कै ध्रापार पर, भोषिकि 
स्पृ बामराङा्तः म ामिकरेमः केम षये देद्धकर प्रौर पराप 
स्य पे पमिभरवावारो पमा प्रमाणसे बे एष रिम्प पोर प्रसौकिकि ण्पोतिः 
भें बिष्ाष्ठ षरे कगे जिसे वाया ईष्वर प्रपने धापको प्रम्तसु मे ध्यक कषा 
हि । उमहोने सामा छे एवम्धपा ढि भ्थ्राहविक ममूपयो मे प्रप पाप ध्रौर पीड 
सम्मम्बी षो विष्वा फे है पह रष्व प्रौ प्राभ्यातिमष् ग्बोति उसतरे भिम्न 
ह| क्कि पहु पाप्पातियष प्रौर दिभ्य श्पोति शक्मना पर पडे बसा को 
प्रमागमहीहै* हि बहे धाध्वारिमद्र ष्यति प्रेरणा पे भिष्मं मिदबस्तु 
है, मह किप भवे ध्विडान्व को ष्वरू सही करती दिमाय को कां नको स्वापतारे 
नष्टौ सुती रवर, छामा परलोके उम्बन्ध मे कोई नवी बतनदौ 
शिश्ाची ,* प्रर महि प्मनुप्णो दा षम सम्बरी हैर प्रमाबी द्रपििकोण 
पह परध्वततिकृ रोर रिग्य ज्बोति नहो शेता) ^ यई श्रौ महिमाकी 
वस्तर्निक पगना दै 1 
“पह मह एथता कि एस्वर पवित प्रौर कपा है, पौर ठस पति्वा तीर 
कृपा के सीन्दमे पौद्प्राराण्यस्य ष्टो माना इतन पनर ६) मपु भीख हेवा 
है, एकै ताकि निंव म, धोर्‌ उषद्यो मिद्य के प्रास््ाचममे प्रन्ठर 1 
की ष्ठु के उकहष्टहा के परिक्पित ताकि निरय ते मौर उसे मामु 
पौर प्रौ्धवं ध माषता मव परन्दर है) पडते क पराणार श्वम मासमे 


बही, शष्ठ ७००१ | 

प्एुक दिष्य घौर पलौमिकि स्योति ^ षै, एष्य १०२) 
बही पष्ट १४४) 

अही, दष्ट १०५) 

बही, शष्ठ १०५॥। 

ही, एष्ट १०६ 


= < == > ~ 


1, प्रमी दसन का परिदा 


&, उदम भम्बन्य केव परिया धि है नेसिलि {खरी यात कम मम्बन्ध हदय 
ध जर ह्दयरमे की प्सु के षोन्दयं प्रौर भतृभूचता शे भनूमूति शोषी दै, 
वो प्रमस्यद्ी्येप्रणशूएैमेहूवयदो गुद मिसनाहै! ' 

एदषद्‌ घ को निस्वाप भा किमाह जिस प्रकार प्रमाणा कीमौनक्र 
पष्प भरे प्रामुमपिक प्रमाण एष बाते लिपु उनके पास बहुेरे बेम 
मनुय क ह्वर मे परानन्द मिता ६\ छिष्तुबेष्ठबाठकी प्रौरमौ मत 
कुरते हैरिर्त्लर प्रति प्रेमा शवमेकी ब्यम में मिलन भाला पल 
स्वामाभिक भावनां नद्य ट श्यारि प्यक होने जाक पापन्‌ स्वामामिष गी 
ह) साका प्रनुपरठ के हुए पएश्वर्वक्ा विष्वाघ्भा कि स्वामाषियः 
वंयथा म पंश्क्म पम कै प्रम्विम प्रादेण' पाया निवि येवा ६ । 
इसके मिपदीत रस परशौलिष, माबनामे हत्व श्ये मीमा की प्रमुमूतिया 
प्राया सं उसी खमम सतश्च होटी है धम प्रसर एष्बष्ए ङे प्ररो्िकया 
परित परेम के पिए भे प्यानपू्क एर पनुमणबादौ ठक निर्मितं स्मया । 

हि पलुमगनादी प्रष्टिकोणते षे घन्ुष्ट भ॒शठकृर उन्हाने रसी मभार 
को पु प्तेटेवादौ स्म दिपा । उन्मि म केष पविभतागापिमो फी पिष्टा 
कि दत्व ठक हदय" केद्वारा ही पहनावा पकता 'दिमाम केद्ठाराषही 
अभ्किबहं भीक मह पवितः पा प्रलौतिर प्रेम प्रञिष सृष्टि प्रपि परेम &। 
ऊरहेनि प्पे रस्विष्व माभ के परति उशता मा प्रष्विरष को प्रप्ठित्िकी 
पमयि" का । सारे पआरषविष मा नैकि प्पृद्ए केव एस पश्वे स्पुग की 
प्रतिष्वामा प्रर परिणाम है। ईस प्राषार निरपेएा $ मातेबीमवामादी कपर 
मे कों %ैपिक भाबः डी दै, भरन्‌ स्वयं प्रस्िस्व की उक्तप्टषा प्रध्वित्र 
के परमो मं धमुपात्र पौर घामंभत्य शी स्क्टता है । पत्रस्वस्म र्िमार्ो मे 
मित्ते बाला सम्पूर्य प्राभमिष् मोर मोनिक सौन्रौ या उक्त्या, परम £! 
प्रौर चनम हे जो भृच मलदा दै पवो प्रस्व इस क्प पं देवाना 
षका कै । * 

एष्ग्प भे शिभ्यकला शटी बारणा पर प्रभासि रेषु ङे प्नोरोगार को 
पलेटोनी पेम के प पञतरपाषादी पत्रक र्म मे पुन निर्मिठ द्धा । रण्हेनि 
पह मिशकुल स्पष्ट कर बिमा कि उना (पमिकमेभ वा उदारा माभ मा 
मातर माभप्रभणता कणी है। पहु धापूमबिक धरोर भनुमबभाडी “भाभना' § । 
पौर निर्म ही पहल श्ेकरनोर्यो फोपरेरखादै म षामि पूगस्त्वाना क 


९ धौ, एषठ १०७। 
२. "नोद्ल पान दी पाए । 


उपनिषेण-खसीन प्रमरैष्च मे प्वेटोषाद भौर सनुमवभाव ), 


परान्दोत्माद भरे "नुप; एष्डस्स कय श्धामिके धनुग पर्‌ मिभपः' 
(्रिराश्ड भान रेति पेपेकपस) बहुल हौ प्रालोबतापूणं है प्रर "हा स्पबहार 
या म्पाब्रहारिक पवि सम्बन्धौ उनको धारणा न रहस्यवाद दै न पत्प्ाहं ) म 
षीम्दये दी प्लेठोती पामन प्रोद छमेदनपरौसलठा से मिपि पुदखवागादी धौम्पवा ह | 
लेनिन म्बू हते ङे धुदतानारि्ो सिए, प्के पं पौर परिणाः 
खशि शरे बाते थै । जह मार्यप्यटन के युवा एथ्यर ए गै प्रोस्टन $ प्रमितं 
अर्मके पमा पमृप्यश्ये नि्॑रतामे हस्वरष्ी महिमा का उपदे द्मा ₹ 
पप्श्य जदष्देस्त प्रमाद पठा} कम्थिनवादी स्विपा-पूर्ं मौर मिरु मिः 
ष्विद्धात्न मूष श्रप्न्वाक्रा सिदाम्ठ पूमेनिरसंप नैष्क पौर उदार # 
लिटा एषु पित्र प्रजाभिएत की पर्यविदाकंङ्प मे महौ भरन्‌ हषर 
प्रति प्रेम एष पान्ठरिकण रा एंेदलात्मषठः पमिश्यकि केप मे पुर्बीदि 
हो स करी मी पी पौर प्रयागो मी ) (मभ-्मो्िमों पीर शूषं ज्योति 
ष्य पतर प्रविकरपिकु स्पष्ट होमे के ्ठाप सुदताभाव पौर पचिक्तागाद मपे 
जिद्मते की एव्गय्‌घ के चेटा दबिग्रपिरु धष्दागहारिक चिद दं । भष सौः 
प्रौर उने भीकम का हे ठाम तकं पिर्मो ेलामी पुनद पोट हकः 
तै पर्पंमिदाण को लोकप्रिय भर्णाका लरत करके म्यू-मणेधडे भ 
शत्यो मे मिममबेदध मागम भोर पामिक्ता भा पुनद्डधार श सकेभमि 
स्वीहति क्म परम्परा फिरते भलाना बाहा तोम एक प्रलोकृप्रिप धशपपंक 
पमुदरगये पौर भरम्ठेपं दे केवत काल्विमनादिरयो का एक प्रीरा-पाङट रहः 
जित्व दा्मिषट गिदत्ता तो पी, लेकिन गो माम पे प्रशोकपिय बा! पातम 
किए, पौर “वित्रदेम केषहितरपे, एरबद्‌ सक समर्थको को पिस्विरीरि 
सोमौ हेषएम्बदध होमा पष 1 प्रेप्विटीरििनि गो मै उनके दफमको भरष्ट दि 
मके पषिवदाबाद ढा स्वागत सिया एलः भ्वद्धिमाद दे एवान पर ( बेपकन 
शपू एम मे ) प्रोटर्रेम्ट बेपूटिर्प ^ के एक्‌ परस्विटौरिवन स्वको, शार 
चणका दलः का केफोपूत टन वमाने श्रषैष्यभ्यो प्राये | 
९ नेषुट-- लोतो घताभ्रौ ब दण्मैपिय्र सोयोला द्वारा प्यार 
स॑पमत (धतः शा घमा) के परस्य निवरा श्प धर्दो को सवा 
कदत का (श्तु 
९ देन्निए, एवरा स्रा एली षी पुप्तशा वी भूमट् पोह हिरि 
पठ, मेष ए एतेकट शिदिशयत कर्द" (१८२०), जोक भुला धरार! ज्या 
"मेषि छत्तर दिदे, ९००० १६०० (शपा, १६०६ } मे 
देशित, परप्ठ ५११५६२1 मके पतिरिकठ भोति प्ता “दी किप्षएत , 
दन्‌ बालिथिणित, रिपू माह रेलिजव [> (तितबर, १६.४६) भी देक्रिपु। 


१६ श्रमयैकी दछन का इषिाप 


केवस प्यूदनसष्मे बगिकि सारे रेष संहो द्णन पौर पविष्ताषादमे गी 
उल ह, पोर जिर र्य फ सिए परबरूखते प्रपाया गये पू 
प्रसफलता मि । 


भसारयाव 


पवाषादी साग्धीयता स्वर फो काके घन्वमं मं देती भी पारण के 
सम्ब मे शद्धो । शेङिन $ैम्निज ॐ प्तोटोबापियो मं जो लाय रेमुष क प्रनुबामी 
नही से उन्ूः पदाभं की वाञ्ीप भारणार्मोषा एत कएने की नित्त 
उनी मही णी। बे सत्ववर्पन ( प्रान्टोमाजी )) मे देाद्स कमी ममी 
प्पापताभां ठ पथिक भिण्त्ति भे । रेद्‌ भ ने प्रसारिव पादं प्रर धैबारिक 
पापको भ्वर्‌ किमा पा उसे उश्च होने बाली बर्मपाक्ञीय कसिनिाष्नो 
पर हेग मोर क भिषेप शम ते निषार सवा । फिर, ह्वर हैष 2 मोरका 
उतर जिसे स्पूटन रै भी शेदुरावा यह भा कि ईष्वर प्रसापि है, भोर भौपिक 
बस्तुपों का मस्ठिल्व पयस प्नौर देष-बिस्ठार मं रईप्वरकेदिमाप्रमे है। एषके 
फसस्व्म स्पूटन्‌ ने पूणां भराकाष (देमूसोम्पूर प्ये) को धैवक्म माना प्रौर 
जोलाषनं एङ्‌ स मे तत्परा घरे उन प्रुरणा किया । 

प॑र च प्रका प्रौरगठि सेबंचिटकर्दं तो संठार श्च हत्त मह 
होगी कि तभकेदहोयान क्ता न मीखाल भूरा भ्रमकन छापा पारवर्घी 
मं प्मपारद्सी भभ्वमिपाप्राजाद,ल एमी नषर्षी ततरल, म भीमा, त पूषा ष 
घ, नरम, त लोपपन, न प्रसार धै प्राङृति स विस्तार, न पनुपाद, त परीर, 
मं परात्मा ) णर धृष्टि कश्या हो ? जिष्चय ही एका धस्ठित्व भोरक्ही नदी 
हेष हवठिप पिमागरमे है।\ 

"मै" खमश्वा ह प हप्भ्यकि के लिए स्वगधिर है दि धाशाप्र प्रावष्यक 
प्रनम्त भीम प्रौर सर्वभ्यापौ है । नेन प्रश्ाहि डि मै सारपाफ श्टु- मै 
पडले ही ध्तनो भात कड चुका हुक प्राकाप ईस्वर ई।१ 

१ ्रोम्टोनाजौ--दस्ुपर या प्रस्टित्य के हार-ताद हा तेडान्तिक प्रप्य 

९ शोफ बीपम्नः, कलेरेल्त एथ स्ट प्रौर थामस एव बोन्तित हारा 
सम्पारित लोलावन एडषदु्ञं॒पपिजेस्टे्वि घण्तेषम्य (-्वमाकं ११११) म्‌, 
ग्ड २२-९३। 

३ नोर्ह प्रात्‌ बी मरग्ड। 


श्त प्रमरीष्धो दतेन का एवि 


भावगाद्‌ सम्बन्धी परपती पारणा मे कृष्न परिष्व छिपा भोर रणता के एक 
भार्गवाषी सिदाप्ठ पर जोरदिया। षो प्रे दिश्रिन डदि पार पोरिभिनल 
सिन षिकन्डेह (मूत परा ङे मष्टात्‌ ईमाईं सिटास्व खा ममन, मे जिष्ठ 
प्रकाष्मन +७५प मे जाकर हुपा उदोतै प्रागदयद सम्बन्म कै गिजारक्षाख्फन 
कर्पा, चैता घममग री षमय ह्युम मी कर बे । देवा प्रतीव होवा हैकि 
एषम्‌ घने पपनी प्रासाजना का विका ष्युम घे प्रसम, प्ववस्तस्यमे भवि 
पौर निश्चय ही उनके सर्य बिर्हुल भिश्च भे ! उम्होनि घरे "माप्यभिर कायो 
का जिरोप क्षिपा प्रौर धारौ कारणा क घोषे स्वरे सिरंहुय निषानमे 
प्रारोपिठ पा । बर जम्‌ पे एकमात्र कर्ताः ६। मोविष बत्ुए्‌ उषे 
हारा माप्यमङे स्परे प्रु हही ह तेष दरप्रठस मौतिकं बस्दुएे श्रमामो 
कासो केष्षमरमे कायं नही करती । 
पृष भस्विल्व भ्रमसे श मेया रेष-निस्वारके ममेय गेये 
प्रस्विल्ल का एधित ऋरणा तौ शो घक्ठा भये उप पूरव मे कि षड्‌ (पमं 
परस्ठितव) एक पुग पसे या एक पार मीष षी एरी प्र र्य हेवा पौर बीच 
के देए-काम्न पे कोट प्रस्वित्व त हठा । पदे जित पदार्था का प्रसवित्र इर 
पूर्वापर परमे ह्र कै निमि पंश्स प्रौरप्चिका परिणाम हषे 
पक्ता है 1 
हते निष्चप हौ यहे नतीजा निदहेया कि ईश्वर इरा सजति 
जस्तुप्रो का परिरणस पम्मू स्प मेँ एक निरा्चर पूजन कै समान ६, या ईष्वर 
द्वारा पूत्ब मये खन भस्वुप्रो $ उनके प्रस्वित्व के हर षण मंधूमनङे 
घमान ¶ै।^ 
प्रति कासाएकमप्रौरबाङुघ यी रपर प्रन्तगंत प्राता है, रष्क 
पारे निपरम प्रौर भितिपां समस्मा पौर निपमितठा निष्वस्वा प्रौए्भगन पक 
निरु छ जिषान है ! एय मर्ष मं बम्द्‌ प्रीर्‌ उषके पारे पर) $ प्रमित 
कहौ लारी रहना पौर निरल्छर प्रम्वित्वश्रषषा पी पूरी ट एक निरहप 
जिन परनिपरर है । कारणा ढि प्रवर पिष्मे षषम प्वनिपाप्रकरयारं 
याप्रतिरोण बा पुष्त्व मा भिषार, भा बेटनायाष्ो धम्य निर्मरस्वु नी, 
तो ममो भिक प्राबस्यक बहौ मि भरवले वगा मीदैषाह्ीहो। खारा मिर्मए 
शरित्त्वि यो श्ुद्ठ मषे, एक समस्म गतिम है, इर समप ब्रबुरता षै प्रौर 
भाप पराठा, हर वणा साहोवाै, चये बसतो के रेप उत पर पकृतै गते 


९ डाश्द्िति प्राह प्रोरिजितस सित ्षिष्धेद, फास्ट प्रौर बान्ततष्टी 
प्र, पर्ठ १११ ११४ । 


सपनिमेय-कामौम पयदीषय मं त्ेरोडा* पोर प्रतुमयणाद १ 


प्रमाप हरक्षए मे हेहै) पोर घमष्ुषसमक्पमं ई्वरये धाताहै 
षये पदे पका; हम रती (ईष्वर) मु बीनिट है यतिह पोर प्रपना 
भरस्व रशे है ! 

ण्दद्य शा पिदा ति स्वर एद्‌ का मृगम क्रमे वासा है, गेवस 
परम्पसप शाम्बिनबा" को मार उमश्ये वापडीही मदीना बक्कि म्वैटमप्मोर 
साक क दिभारो पर प्राषारिव, हर बम्तु मे ह्वर की ष्यासि षे पका मे एक्‌ ठो 
तरपा । पह पियाम्त बस्तु (वटर) के प्रसिति इनेषटार महीक्एठापा। 
पख्म दपन पारि बस्तु का पर्ति प्रौर छथ्पाएीनठा ईष्वरर्मे षी हठी है । 
साह पदाषै भा पदार्थो के पस्वित्व ठे इमा करा पा भमा शमर पदार्पष 
पिक क्छ ह । ईर प्रस्त है, निरन्तर पूमगपील दै 1 पोर पह याग्नि 
श्यषएएता मा भागस्पष सम्दम्पो से नभयर करता बा । मह बान ध्यात देते मोप 
९ एरमष्‌ स ङे परनू्ार मानगौम संड्स्पो का प्रस्ति्व भी रस्मरीय सकम्प तें 
हैः प्रौरबे ईेर्षर्मे हो च््पिपील होते ह) एरबड षके माोव्वाद दा तासालिक 
परहठि्ादी स्वर भौविषवाद कानी प्मिनियनभादर कभा) एम्षर्स ॐ 
मा्वाद दा निरोपी क्म का माषषादपा। 

पमपैकनो दरपन मदय छमय परसारडादो पिदधा्ठो ए प्रदुर्माय का पपिः 
प्मापक महव एस बरर्मेह दिवे पस्य प्रण भिनस इत विधन्तो श्च णम 
हैषा तवे पर्णो षमप्मोएहो यपे) प्ररीष्य म मागा का प्रमार कास्यभ 
पे एक पनाध्यी शद शार हु पोर प्रघारवारौ माडबाय भा सत्प शम । 


१ शष्ट परप्ठ १६९५ १६८; 
२ हालरस्वाषो प्रोरेर्टम्ट पर्मपाछी प्ापिनिन के प्िद्ाल्त, निरी 
कास्ता तिपोदत- ईष्षरष्ारा पूरथनिर्यय ढे तिदधाम्त क्षा निरोध वमि} 


१ कलि परा्रणातो बार्निङ (२६९८५ २०५१) भो शुष्य मर्दसे 
पप्लध्त्‌ र्दे; पनु 


दुरा भ्रध्याय 


श्रपरीका का प्रबुद्ध काल 


दर्शन सत्ताख्वृ 


प्रतुढवा कौ दानिक परिमापा कही श्वे जा घकती विप प्रमरीक्नं 
जहौ एसा ङ्प दये कम पाहिर्पिरः पौर एक्ये प्रषिक सपि पा | इणदेष 
र्मे मागबी तर्कमुयि का कों भ्यवस्तरित निस्पसं धी हमान कोई निस्वकोप 
लको विजार-दर्घन न कोर पिचार-प्यषस्पा । फिरमी हमारे इतिहासा 
कों प्रम्न काथ दषा रही है जिम पोर्यो क र्ेभनिक धिरो क्च दवेता 
निष्ट सम्बन्ब शार्धनिक प्रष्लो से रहा इ । पमरौकार्मे कन्तिकासी पीड 
डौरिक नीषनको सपुचित रपम मम्मनै क लिए हरमे हारो द्रत्बो बा 
भ्मृष्ठास्न प्रौर तीठिष्ास्त्र श्यै म्पवस्ाप्रो पा मतनणौल एवाण्ठ भौ रथनापरो 
कोन ेडकर सार्वजनिक जीगन के केता पर-रएजद्मीमय दर्तवेग्नो प्रौर 
राजनैतिक मंभो समावारपर््रा पौर पापणा पीस्किपों पर--मणर शमनी 
होमी । धमै मेश्मी मी शौनक बिरार क्र सामाजिक काव मेदस 
प्रषिक निकट सम्बन्् मही डा । पचपि पमिप शार्णनिकं भिषार दात्कालिक 
द्यौ पे मिद्िष्ट प्रमस्यापरो कै साबंमौमिक हल ोगतेपे फिर मी प्रु 
कै भिभाति को केवल पुतिकरणा कह करटो देने ते शाम ही चतपा। एस 
घम धरमरीकी बोषेनकास्वप्रपृल तस्य बपाङ्िम केव संखारो प्ररं 
प्रौर्‌ पाष्माएुं प्मरौकापर कन्व बीं बम्दि पमरीकौ सार्वजनिक जौवनके 
भता स्मये मी प्रप्नी शचियों पौर कमोके पगर साग॑मोमिक महो धा प्रभिड 
ग्यापक प्सो के सम्बन्ध मं सदपुण चिन्दित भै । उतर्मे पमुख भनुप्य-बाति ए 
सतो भा उचित ध्रादर' णा । यह शकर पादय होवा शि भवै बठंमान 
नि मम्मैढेलियेबे प्रतीय प्नौर मनिष्ये किती एर छद वेद्ये 91 


र्र्‌ प्मरीक्ी दर्छन षा इतिहास 


लोगो य वक्रे श्रराब' सों फी सरदार पी । + १८५५ मे बरत 
षो श्रदंबलि ते हए, एक भमन उराएावी मे प्रमरीष्े संति मँ 
प्वततरतता के पणौ ह्वाख पर घा प्रष् क्विप । १ प्रौर १८६६ य हिषननै 
सिलवा - 


श्बेएरपरन ढे सिदाम्व स्वतन्त्र समाज म परिभापाए्‌ं पौर स्वरपि सिगाग्त 
$) फिर मी रतसे इनकार कएने प्रौर बथयै में सफयता कय बढ़ रिष्ठावा किप 
धाता है । एक्‌ दहु बदरे जोय पे अमङ-दमक्‌ मयो छामाम्पा' कवा है । बरूर 
चिरं घ उन 'स्वयंसिद भू" श्डदेताहै। प्रन्प लोम मपए्तक देते है 
किबे (धिदात्त) “श्व गरातिर्वो' पर सायर हेते ै। ये प्रभिष्पच्ध्प भापस 
प्री हु निरुपा के परप्रूतहै, षठरमेना &ै। > 

क्तु एष॒ प्रतिपा ठे पह प्रमाणित मही हाता कि प्रबुद-स घशरपुज 
प्रु मही बा । षरे भिपरीठ हरमे प्रमरीष्टौ शापैनिका मं उन महान्‌ पिनो षी 
स्मृति मै शापस जामे शथे प्रवृति ममिकप्रषिक भोर कामनाभरे ङ्प रगे मिती है, 
प्रर कारं मी प्रमरीक्र भिजारक्‌ जो केवल प्राध्यापक ही वीह कपी-भी 
क्र जिचारमम्न हो कर उष रपवोगिवा प्रौर स्वव तता कौ एणा किै त्रिता 
नहीं रह कठा बो पस पमम र्दन को प्रा भी। 


परहित 


प्रबुद-काष का प्रारम्म प्राप्मवोप में हृधरा प्रौर प्रस्त भयम । उषी 
प्रारभ्मिक प्र्जियों म भर्मघास्तीय प्राघाबाव चे सार्॑मौमिषक परित प बिष््ास 
सत्प हुभरा । प्रमरीकम मं एष जि्ेपता को षट मेष नै प्मृञ्लता प्रदान षी 

१ रेषरौ भा क्रे एषमल्ड रसिन सवर्षर ( स्पूाश्टं १६२१९) 
पृष्ठ ४ दतो प्रहार जार्ज फिर. पतौधिपातांजी फार दी पारव (रि चमर, 
१४) किरौषत १९ प्रप्याप । 

२ चे. घ्री स्यलो रदेन प्रवल्डतुगजेन एंड जोट (सिज्छिनाटी, १६१) 
ष्ठ १९१५॥ 

६ एष्ट एलेरो र्ग हार सम्पाहि दी रादटिग् प्रा बोम जेणरसत 
इाभिंषहत्‌ २४ ३) छि उडत शर (?) पष्ठ २६१२८] 


प्रमरोक्म भप प्रबुट-काष् 


मो ए वृढ पासवरकष परमछासदी दे धार्‌ लाका पपे वैसे गा 
कष्य समे ॐ } उनहेति न सेय भ्यां शसो मे मिभन्ध' (परे दु 
गुर } लिहे मत्क बटपर नाट, हौ मौ ठु हु का सब्र होता 
शठ मलाई क्तेः । प्रपमे पन्छकरण से प्ररिठ होर भे हर काठ में दकम 
दे) उदारता मौर स्खारैप्रेम' सम्बम्यी एडम को धारणा मे विपय ईर 
१, पनीर साम स्वयं भयनी परासमा को होता है 1 दू पमिक कटर धुदतामारिमा 
भे उदारवा ष बृषे की मलाई करम के पयं मे सम्य । उन मह कर्पा 
भीस्म दारको उनि धपे यम ये पिक धपे प्रियो केमुशर्गे है) 
पर मो रथना षरेषमन छिसासफरः श दम्म की एरवप्रभम प्रभरीडी 
प्रिम्प्छपि यं है, लो प्रयि मे पौजित्म प्ररं रेव के कक पर 
प्रापारिह ई) बरलर की र्ना एताश डी प्राप रेसिर्जन" { भर्म का छस्य ) 
प्रयेही शमे रना भभु बिशलोरो प्रतिक पमदास्ण। कषा धोरत्वतामे 
तषी म्पबस्वारमो के स्य मं तामपि लाकप्रिमता मिखी । साकमौमिक स्वरीप 
भिषा भ निषणाप्ठ सू-पवङड के समृद्ध शिपिप्टषगं मे भपिकाविष माग्प 
हु 1 दोलास्टन की एषना नच्ुरत रेिडन' (प्राह्तिक षम्‌) फो भूव सोनो भे 
प्डमपोः ससक परछा कौ । दैप बन्न मे शे प्रपमी एना एपिका' 
(नीवि) क भाषार बनाया । गोताष्टन का प्रमुखरण शरे (ए उन्दने षान 
प्र हरभस्ु ेप्राबवेराही प्यवहारकरता है, जैसी बहु पषमुष दहै, 
"न्ड के प्रनुषार", भोर पिमे मन्‌प्य के ता्‌ रतक् प्यबहार पुथ (नि सन्द 
ध्रमम्द } के तिप रलश्क्यियये पणोकेषश्पमेदेषाहै 
हमे भाहि कि स्वेदनधीत प्रौए वष्टनापर्क, ठामाभिर पौर पनस्मर्‌ 
तषमे यमे हम पपनी ्ासी प्रहि पौर कतागपिषो ष्याम मे र्ं। 
भरतः पई (हैमाय प्पान) पासच्मरमे भौर प्रनन्त का वक तारी मागबौम 
आति पौर सारी भविक ष्यस्व कौ महार पोर गु होमा । फस्वह्म, भगु 
पथैर्‌ भे भारे, या धमदिप-नुद देष करयनिक टै, प्रोर बौ दक बह प्रासा 
की मतां प्रर पुश पे भेल महो दाता, महौ ठक बहुमता मी रह भाता, 
भरि रल प्रकृति बुर नीद शात्‌ है \ यही सत पमः अपार मेकां 
तीह, बहौ तक साबनिकू मलार से उ्सकायेनन्‌ हो पौर षासारिकि मम 
कैवारेये मी महावर घास्मवये ठसकायेल महो पौर महु एमाय 
मर्ता परौर सुङ सुषदरणंठ प्रवस्बमव सत्य प्रौर षतो क्षी प्रष्टि के समस्य 
है पाभस्युष्‌, भमरम प्रोर कमयं बस्तमर्मेषैदेहै ्वी श्प स्ट देषो 
प्र उनके छषस्य ह असिक उनका पप्तिम है} कण्ण दि उं षारनगिक 
सेमे काप यहुमाननाहै षिते मभि है पोर यह उनशी भक्ति 


५; भ्रमपोकषी दप॑त बन एतिहास 


कफिबहमारो गौरिक मानिक प्रौर भ्गश्वर पक्ति टो दषो पूवा ये 
प्रन्तत सूल बधैर्ये । ^ 
बेनणामिग पलित प श कज गालास्टन श्ये पुस्वकपद्ीधी बिक जव 

मे कुघ्र विलोके बिए लन्दर्मेये ठो रहने ठसष्टी छपा भीकाम का 
शा । एन्हु हैसी पारमवुष्टि हप्यास्सद लगी प्मौर प्रपनी र्ना डितरछन पणि 
चिबर्टी दैष्ड सेदेषिटी व्केढर एष्ड पेत (स्वतत्तता प्रर प्राबयकठा पारष्दप्नौर 
पीड़ा पर निडर) मे ठका मजाक एतै में पछंनीय सफसना मिषी । फकखिन 
प्ाणारिष मानमौपता एः एष पपरिष्कव भोर मेचिष्यमय किसु प्रमबप्राघी 
प्रतिक भ । रण्होने पूरी वरह पौर प्रमाक़ारो रोहिते प्रपते की बगयेवा मे 
प्रौर उपवोपी पोजनाप्रो मँ धरगाया । उनकी खदृडण की कसा" प्रोर पुष्र 
रिज" जिं मामतौर पर मितष्ययिना भौर पूंजीवादौ चैतिकता का निस्य 
माना भावा है, उनके भ्रपमै म॑तानुष्ठार परमा करने के प्रपास' बै । फेकलिन 
को प्रसरीका मे समच एक्‌ ऋन्दिकारौ भादेति बनाने बाती भो धी रनक 
बिचार प्रर मैरिषता शी पूरं धांखारिकठा । माकम (म्पृ-दयतेऽ-बापियो का 
ब्पस्य-नाम) प्रात्मगुष्टि को बहुत कच्च प्रपमे प्रदर धमाये रने के प्रथाना 

र्ति क्णेकरो की प्रारमतुस्टि षा भी कुष प्र प्रात कर छिपा । शुडताबादी 
पवृ क पानि मस्य के घम्बन्व मँ तनके भ्रन्धर प्रर्मयुप्टि की माषना धी । 
शेकिनि उण्होषि उल पर पे पविना का प्राबरणा उवार कर उन्हुं एष पूर्यतः 

चेपमोमिदाबषी प्वाषार पर प्रहिप्रसि किया । पपुप्रए फिक्यूयं प्रह्मनङ' (पुपर 
रिचर्ड पाग) के पाठक को कभी पह प्ेह नही होया कि उषमे प्रस्तुत कष्ाबती 
अन प्रर घरल घमः गौरिक पन॑ पोर पमसाप्य पृश की उपतम्बि बी। 

कारो शते बू दी घ्ामन्प प्रर पारमी मरीशातीषै, किमु फटिति शी 

प्ाप्मकषा या सेमी प्र्भिक्‌ रहैशमरणार (डदक्म) पर उनषम प्राएम्मि्ष 
एचनाप्रो फो पदृकर हम रेख स्वं है कि ठठ पमंसतास्मीय बाताबरणा प्रो 
प्ादम्बर के बीच ध्ररल समम श्री उन्म शोज क पौ कितनी प्वुता षत्काद 
पौर प्रालोचनालम़ ईैमागदारौ बी । 

म कभी-कभी विडादषरवं प्रौर हम करना हमे जङ़ाप्रिनाना भो 
भिव क्षे पनृतति शुषा बहौ बुरी प्राष्य बम जतौ है बाचवीवमे करदुता 
लाने घौर उपे जवान फ प्रठिरिच शस्ये ठे लोगो के प्रतिं क्लोम पौर घामव 

१ हब परीररोल सनडर हारा सम्पादित स्समुएल चान्न, परपदे 
धरार किग्त कालेज हिम करिपर एरढ राद्पम्ति (भ्युप १९२६ ) खरम 
य पृष्ठ स्८। 


भमरीका श प्रबुड-कात रेष 


भूदा सत्यश्च होती है, जिने मित्वा हा स्वौ है) भासिक चिनार पर्‌ प्पे 
पा शशव पर पुष मह भाव प मी भी । ववो मेने देषा ह रि 
पमा म्यम बहु कम पते ई पनाय बशो, मिरपमिासर्ो दे 
सोमो पौर घामलौर्‌ पर एडिनिदय (स्कोर श्रो रययानी -पनुर) पते 
हए छम अश्रकेसोोके) 

“पृक मिष्वासं हो पया छि सत्प मानदाय धौर निष्ट जीगनं मे सुक 
ढे लिए पिकतम महत्व षी! ? 

श परार पलित त भुरवाबाधिगो मं पीरेनीरे पा र्दे एर दानिक 
परजिन शने परणं सौर प्रश्ट हप पिया ) बहृव-कं चैव स्प भे वे सममन 
श्ये भि सुददाषादौ वैलिकता' शे ए बम्प पभिम्यदि हने के पमाणा 
उषा ए रउपयोणिवाबादो प्राभार मो पा । व्ृष्पनेस-कसिर्यो का पृटताबारी 
हेता उक कास्मितवार केः कारण उरूरी नही षा, पैसा हि प्रामौर परर माना 
जाता बम्किमबामैरड का निर्माण कटं शो उनके प्च क क्षरण अस्मो 
जा। धीर प्रन्दएत्माः या पाप कमी मविमाक्त, भो प्रापष्ठीर पर पन प्रौर 
माम्य ङे पू-भिर्वाररा के काप्मितभादौ धिदा््वो कषा फल ममम्धे जाती है 
प्रस्य पौर पष्य कारय नवी भ्य ष्टी गस्तिपों क बीन की कठोर 
पाभस्यफवा्पो मे मितेमा ! पादरी प्मान रक््ठपे किणो बृर्ध कफराभसूरो 
ष्टो, पतर उवङ लिए प्रदिशषि प्रौरभो शपा प्राये धप निष्ठि बोपिव करे । 

बैन्याभिते पकतिन ते प्यास क्त्या कि ुदठाणारी ष्णो को रषे 
प्री षञेरा के सा कापम एं हलिनि उनष्टी पर्मपाज्ीय मन्यवा का पूरी 
हण्ड परित्पाय कर्‌ दे 1 उने सीमान्वे्ेशीय ैविग्धा श्न एक उषपोमिठाभादी 
प्रा्ाददे कदु उसे प्रानुमरविक मान्या प्रश्न श्यै 1 ४ उम भिधैप मषलटा 
मितौ । फेकहिन जेप्रारो भावक बदति षयो ष्य प्रसारक्हा, स्सिरोप 
मेरा ऋ पपणेाप भे पुम पर शं परमाव नही गा । हेम्नि मेरी पक पप 
महपौष्ि बद कायं इए कारपणुरेतदहौ कि बहु (ईवरीम प्रेरणा) 
उकका जपे करती है यादव कारण प्रण्ये नह्रिमद्‌ रना प्ररे रेवी 
है, हन्तु एायद वे कराये मिपि एठ शरण कयि मदे हयो (क स्वयं श्रपनी परहति 
मे, छार पिकिमधि ो देख हए, हमारे लिप्‌ भ्रेष या रषा प्रादे एम्‌ 
क्ष्ण तिव भवाहाद्धिवे हमरे निए लामरायकभे !* कएने कावदतोहो 
भादबाद्येभो जो पेभ्लिन मे छिछर कटी प्रयर प्राप क्षु उपभम्य करणा 





१ हेजानिनं एतिन पाटो्ायप्दो 1 
१.९्द्‌ 1 


६ धमरीगे दन का एतिहाष 


बाहे है, ठो उसे सावद्य सपन पै है-- महापार मौन, ष्पत्वा हेष 
मिभ्ययिता चश्चौव, निप्ड स्याव धादि प्रौर धगर कोषं प्रमाणा मांगा 
तो फेकलिन स्वम सपने प्रोर खपनिभेध के प्नुमब ष्टो प्रमाणा ङ्प मे परप्तूत कर 
श्ष्तेगै। 
दिनि शो इष दर्प कौ सरशता भो लगमप साल्मी है परलर जाती 
& 1 खापिन-मृम्यो मे प्यान कन्धित र्षटर पेक्लिगे उसो निपिष्टता का प्रदपेन 
कषत है, जिये पूरोपौय लोग “ममरीरैपनः कहते ¶ । पूर्त होने के 
कार पन्तिमि पूरम्यो की धवे ङ्प मु परिमापा भा नष पायी कपी हेही 
है, कपौक्गि धमरौकय मं (प्रौर दरप्रघलं समी जषह) साध्य प्रारम्म ्ैहीमोर 
पमाघानी से स्मोकारकरममियै जते बहुत दृं मैते हौ जैसे ग्वे बर्मोको 
प्रपना लेते & । वौयिष्ट व्िबरणख रप्र केश्य उन पूव-तजीकृति मिती 
रहती हि ध्रौर गंभीरता ते उनी प्रासोषना क्म का प्रभसर पावहदीक्मी 
प्रावा है। पपती परठादादो निचार-म्वमस्पा को स्वयं एष साप्य केद्यमे 
प्रविभ्ट्वि कौ में फेशुलिन क्रोशं श्नि नगौ षी। वे पहमनिकर चलतैने 
हितोगोकेप्पने सग्यष्टतेहैकि गे गुरू पौर प्रयृष्ठितण स्विषठिपे षता 
शाहते ई पीर यहष्टि पत केवल प्रमङगापमम समाय के बास्तनिक स्यो का 
फपमोग कएने का एाजन ह । जश्वी घोता पीर वस्वी रना मवुप्य को स्वस्म 
प्मृद भोर भचिमान्‌ बनावा है । स्मस्स्व पमूदधि प्रौरह्कान मानवी जीवन 
षी प्ाहयिरु षस्य के बीन क सिए यह पर दुरा महौ है नैर्िन फेष्लिन 
षै एप्एोको दूषोर्मे इर्मसेषाईं मौ मही प्राधा) उसषम ध्यात केवत 
जीवत ङे जल्दी ोवा प्रीप जलदौ उय्ना' भजे प्यकी प्रीरहै। 
दर छमयो मे मानभीप पादर्षो वर्पत नतहोनेकरे कारण धुदधवानावी 
च्डगृण भतो प्ररस्तू शी नीति के पमयिपेप्रौर म दूंजीवारी म्माजसामिषता 
का पहोयान । भर पूडीगादौ बैठिष्वा प किष कास्जान प्रहुएक्िमाधो 
परम्प पग शेषां प्यदलो का क्गोकिवे मो जीवनके प्रगुष्ातषका पेन 
है । फार जजन कय परम्पयगत चि्रए जिनप बयादुता पक्चाचठाप निर्धना 
पयवे को बजि करना प्रौर प्षमापील पागनाके स्पते कपा बाठाहै) 
एुढताभारौ सहयो कौ मात्या का प्राषारवो ठाई भमान हीना विदु 
ने षरा सद्र मही बै । दारं वैति परम्परा घे यह्‌ घम्बन्ब-धिण्तेद भिदे 
पेहलिग वै प्रयै दछन मै व्यक्त श्वा यान्की पोर ईषां भरिषो के वैपरीत्य 
का ममं ह । पह ममरीष्मे प्रबुठाकेखामागपयस्य ष्यभौ ममं है । प्रमदैषी 
परबुङधा परपर स्दादहारिक परहिः प्रौर पर्पनिप्ये्त मानबीयता के श्य सकर 
* किन का पनुखरणा करौ तो असक तित बही होता जिमी परोप 


पभयका का प्रवुदध-चन १७ 


मे धाणवी हेकिनि बहुपरष्िवि क भवुङ पम्य के प्रपनाष्र पोर एष 
व्शरपम षा निमि करक, धवि स्द्िगव मागं पर्‌ भ । उभर एमिन 
र भरव माषना घ विग्धिम होकर भिषक शरण होने पने शयुलो 
श्म पृूप्ौद्‌ भुभ्ठिति जीवगे खापनक्स्पयेदेलापा ये घषर सिट 
धष निरु प्वियोभिवा मोर भरावसीन ष्यसाय को छामद्री भन मवे) 


प्वतव्रता का सिद्धान्त 


पमष रे बाहर मिस्वान मे ङ्ध (ानिपामेन्ट-घम्क्क) समू को + इ 

भो धर्मा भिसो बह धुयवाबादी विग्रह की शी ष्रपज प्रर उसकी परिशति 
श ।षान साक राजनैतिक सुन ने एन बहि भिरोपियो क भविष्ठाण 
पामहापिक़ भकम परमिस स्प मे मोद्प पे-परमेणानिक प्रषिकार 
पयि भौर पुरा } मेर मेमौ पटी पार भृडताभाद एक धम्‌ 
निपेस एषृ मेहर स्तन्भया ङ पक छिदाग्व मेः भिक हप्र । वेशि पादरिो 
मण शरा बेल षी सिमा शयानाय अम ) 
मि प पे भरर रमे पे शु पपपा्ापिमा का 


पि मभा पि भिरे उक्षे का भि स्वरी घर्मो 
क रपनिकेषो$गापियो म्प्य भागो नो उपर म्पाभाद करने भाल 


भमा षै । भ मरक द्त काो 
(कः भ) एप क्प्वाहै, पौर प्रस्व पसक पानो शा मा कररता 
¢।५ भी सर भ मदनो रपा ह क के पपे 
प निशा न मवपादन श्ण के षाव पपे उपे के भन्विम धा हिसये 


शान भिषरत्यून दी शोभिनियम ध्रा पातर प्रौबर हो पेषष्स भ्राश 
पैन" (मवृष्ो क प्रवेषो षर मता के (तपान्‌ का मत्व (हिसार 
१४७००) दृष्ठ रप्पून ॥ 


२९ प्रमरीकौ दर्शन का एतिषास 


चाहते है तो उठे प्राबस्यड सापन वे है-मिनावार गौम ष्यगस्पा संष्य 
मितश्यपिता ट्चोग, निष्ट स्पायप्रादि। प्रौर प्रवर कोर प्रमाण परागता, 
तो प्कलिन स्वयं प्पने प्रौर उपनिबेर्मो कै प्नुमब श्रो प्रमाण श्य म परस्ुत भर 
सक्ैषे। 
दासंनिश्मं कौ एष शणंत की सरलता भो शयमम धादमी ट भरर भाती 
द । साभत-मृत्पौ मे ध्यान हेनितं रञ्हर परेदमिन उसी बिधिप्टता का प्रष्पैत 
करे ह जि पृेपीय लोग प्रमरीफीपन कहते । पूम्बीषत हागे ष 
कारण प्रभ्विम सूर्यो की सेत श्य म्‌ पपिमिप्य आ चर्चा छायव ही कमी होती 
है, भ्यौहि भ्रमरा मे (पौर दरमपस धमी वयह) घाध्य धार्म मेंद्ैपरोर 
परा्ानी से स्वीक्मर कर सकिये भते है बुष कुष बैठे ही जैमे बभ्वै पमो 
परपना सेवै है । भौरि भाताबर्ा कि पम के परमे उ पूति मि्ी 
रषी &, प्रौ गमीरा य उनषटौ प्राल्ोचना कर्मे छा मसर णायद ही कमी 
पाठा है) प्रपभो भुट्ठागादौ निषार-प्यभस्मा को त्वम एष साम्य कस्य 
परविष्ठिव कए मे लिन को कोरर रथि नहौ ली । मे पड मागर चते षे 
किलोगोंकेप्रपने शष्वहेतेहैफि मे पु प्रौर प्रषुष्ट्ठि' स्थिति मे खना 
शाते ह प्रौर बह दि भल केवले प्रयकासमय माज के भास्वमिक लर्यो का 
उपमोग षट श साभ है । “ष्टी सोना प्रौर जश्टी एठ्ना मनुष्य को स्वस्व 
घमृद प्रौर बुद्धिमान्‌ बनाठा है ¦ स्वस्य प्मुरि प्रौर ह्वात मानवीय भौन 
कौ पराहधिक स्मो क बगल # पिए यह पूत बुरा मही है) सेकिगि पलित 
शम वदृपर्णो ये मूभोमे ह्मे कों भी नही प्रा्ठा। उसका ध्यातं केवत 
श्रीगन ढे जल्दी पोना प्रौर भत्वी उटना बाले पकी पोर । 
पूमरे पोरे मानशीम प्रा कायन त हाने षि कारा भूङ्ठाषादी 
श्दृयणं म छो धरस्तु षी नीहि" के पर्ये प्रौर भ पूंडीषादी प्पागपापिकता 
का यप्तोगान । भ्रगर भुडताषादी वैविषठा ने किलो कस्मान प्र्णक्िितो 
परम्परा मा सद्ोक्ा भ्पाक्िबे मी श्रीगनङे धयुघापनका रन 
है) ईहां जीषत श्न परम्यणएयदं चितरख जितम दयामुता पर्थात्ताप निर्षनता 
प्रपते का वेचि हरना भौर मापी भावनाके स्यते क्वा नाताहै। 
युताबारी सदपुणो टो माम्पवा का पावार तो खाई बरम॑घाल्र हीषा विपु 
बे ईषारं घदुपुरा नही भे । {खा भैविक परम्पग धे यङ छम्बन्प-भिण्येद जिम 
फेकसित प्रपत दर्थन मे प्वरू स्पा याती प्रौर तां चरिजिं फ बैपरीत्व 
कामम ह । पह पमरौष्मे प्रबुदवा ङे छामाम्यस्प शय मी मर्म । प्रमद 
प्रषुदना प्रमर श्वाभहारिक पर्षि प्रौर पमनिरपेत मालबीक्ता के चम्य जकर 
_ पलि काध्नुदप्यक्र्लौ ता उपदा करिष्य भद्री होट वदी मूरोपशे 


प्वतम्प्रता का सिद्धान्त 


षमेतेष के षाह इगक्निस्वान के ह्धिगि (पानिमामग्ट खम) चमृदश्रो १६८ 
मेषो सशता मिष बह पयवाथादी बिहु हीर्ब्प्वधौर उक्र परिधि 
गौबोत बो के पजन 


ष्ठन मे षम क्कि बिरोपियो ड पभरषिकाय 
तवम पेनिरपेश्च स्प मे मौव पे-षएंमेपानिक भरमिश्मर 


रेत श्रमरीकी श्णत का तिह 


मै मौजमा्तो तै सीषी-सावी चमं धै प्रसम्बद पपौ करे है किमे प्पे 
भ्रपिकरों प्रौर म्याय स्बटल्ता पोर मानवीय प्रह्ठि ढे पद्यर्मे बीट्राये 
सरे । बे ष्तिष्ामकेम्रापार पर वष्ट रे कृरदोनां खिदटात्तो को भिवायेषी 
शेप्याकरते है हि नामरिक प्ववस्वेता के पमाप्त होम पर हमेसा पामि स्वक्तरता 
मी रमाठशे जादी है, पौर प्रगर हम प्रपमी एाडारिक षम्पति षौपक्तेहै हो 
सममे छाव ही हम प्रयती प्रश्वगाप्मा श्रे मी पराधीन बनावे है) ^ 


शरुरतावारौ पमघाप्न को एष पकार भिद्ोहके धनुक्य बनाने कापर 
पू्-ग्वाहरण बान भाष्य मे मिषता है । उनि स्थानीम पम-पपुवार्ी शमे 
स्तम्बा शा भग्न करते हुए १७१३) पर्म-घंमटन को ठक पौर भुदवाषरावी 
खिदा्वो को णोड्कर मतुप्य की मुरकामो के एष सिदान्त क लिए श्ररुति ड 
निपम पौर प्रषः ।जरिणेपतं पूरन) घे परेरा पैनी बह्म धी। रउण्डैवि 
'मनप्य ध प्रहि मे निहित पुश्प सुराध्राण कै स्म मे, प्रपणी वमु के 
निर्णेय पर चलने शी स्वतस्तरता निमी स्वतन्वा श्रौर घमानवा भौर बमताकी 
छर्बोण्णि सता प्रौर घ्ामाजिक प्रगुबल्धके उपमोग मृ प्रम्प मनुप्यो के ष्ठाष 
चामिख हमै के प्रक्खए शो माना भा। जोन बाष्प हुत षाण भत्ीमा 
निकालाभा कि समी रकार ी षर्कारां तरं "विश्व में सर्बोम एरापद बह षोती 
जिषे पष्ट सोदर के ध्रापार पर एक बैषानिङ़ राभा ( गि पे भिन्न) 
होवा है । * भ्ू-दयेड दे दघ पावरिर्ो भ प्रभ भोमाजन महू का प्रवृ 
करणे शा साहस किया जिन्त प्रपते "खरमम्स दु प॑ग मेष (पुनर्णो को एपवप्र-- 
१७६१ } मे षोप्ठि ङ्िपा कि बे प्रौर स्मता ष्टा प्रेम प्रीर भमो 
पर्या पोर बुस्म घ पूणा मश्व बंका मारहै। दन्तु मेष्य, धौर उनके 
दाजी भिरोदिपा भे प्रपने सिदास्ठ शरो पुदवावाश्ये प्रहणाकरनेश्रो चेष्टा मषी 
की । बस्नु पारी केक्पमे उनी प्रश््ी प्रतप्य महीषी प्रर पेप्रएल 
जनिय 6 भो स्वयं प्रपेजी राजकेषम्णंकषे उनकेारेर्ं कहाफ़िबेय्य 
प्रहार के (पभ्यबस्वित भिजार बे पोर्योमे है जिन्त पुंसे म्मारा प्रण 
साई कना कसि है । 

घमृद पौर बिग्रषयणं शू-रगमैश वासियों के भिए पह श्यादा पापान भा 
ईए पर पूणं निर्भरता पौर शर्च्पमािमा ते दष्छापीर्णोः $ प्रजापाल 


१ ष्ठी परष्ठर८्। 
२ पस रपत रेण्डरतत पौर चरत पेश जि हारा पम्पािति 
एवस्य इत प्रतिरिकिा ( स्पूपाक १६१९ }), पष्ठ १६। 





प्रमा क्य प्रवुद-क 6 


प भिस्वाद श्वरे क दद्वागादी पारम्बरष्ा परिस्वाम र दं भ्रोर प्रपर 
पराप्यं इए तृ बनिये स्वच्छा के पोपणा-पव की हैयारो में गर 
वुकक्ारी नषे ठो प्री एण क्कि ( राष्ट्रवादी कोक्लन्वमादी ) बन जप्‌ । 
भरौर षप वरह पोप ही सारे खानि मे एठि्टा प्रर प्रयति पम्बन्यी घम्‌ 
निगपैशे पारणा कैन पयी। 

शमये प्रौर त्मामिन पकष्िति दरार ष्पी ममी स्यबेहारिक्वा भौर 
श्वर हमम्् कौ पपीरतो की लोकतरिमता के गागर ममरीषटी तापो मे 
र्वापिति दातो को भुतः भरचिप्ट्वि कै के तिप्‌ मेहनत हीन केवम 
मुमि सिरो गो भर्‌ प्रा्ीम सिदार््ोशो भी। रेमे नून पोर 
पमान के एयनीविक दरसन चय भरमदीका मेँ परपंण विष्हं पुददाबादभे ढ्ेवल 
मौक्‌ ्रादर शिवा भा, पते प्राप मे पमरीष् भिन्दन क एणिदयमेंएकबदी 
भटना थी प्नौरप्रवृद-पलदकौ पकी देवी! किमा उनक सूम कोठो वष 
पे हमकम भे कम उम पुष्य दार्पोनक मिषारोप्रौर समस्पाभो का बिटकर 
षद है बो बिद्रोह हा प्रौचिप्य पिद कजे के एयापमे प्रौर संमिवाम परह 
म्बी बह पोर विचार्‌-बिमरं के दलस्वर्प धामे पानी } 

(क) सामाजिक प्रनुब ष श्रौर प्रडापिपस्य-शर्चं (परम संगठन) प्षुबिवा 
क्ष पुढठापादी पिङ्छ को एक परमिप स्प देना पापान बा । लोक पोर 
धमनिस्यानेके निपद्ये ह रक देषानर्णे मे रल हुपवे) ताके 
सामाजिक भनुबन्ध के सिदधन्तको प्रमरीकी प्रिव्य्याभो के पनुक्प दसम 
कै पिए कषत पठनीय उक्त बी करि मामि पनुबन्प अन-क्याण प्रौ 
प्रहि के नियम सम्बन्धी प्राचोन एमी स्ख क प्रशाकी सहायता पक 
फ विडो पे एक मरपागिवष स्थ प्रदान द्व्या यापु) कण समय वकण 
भ्राडम्ध प्रौग पौमप्र चेरुप्यत्‌ षै एपनिगेएवाशौ ब्येसो का प्रयात भा छि 
केडधग्वि पौर प्रहारिक दोनों प्रक्र की परमस्यां का हम प्रजी घामाज्य 
क पन्दर प़ृक्मा वास्वाहै, शरस प्रक्र चै प्रताब निरोषी 
पर्म॑सपुराजभादिर्वो का भपापयादङििव ईग्लिलाती अष पम्दर रह स्ये । 
ह" एक उपतिविष् को एक शराज्ध तेच माना जाए, जिद प्रमा दिपागमण्ल 
हा भोर चामाम्यसम्नाद्‌ साम्नाम्य के ामप्तर क्मनूल प्रौर्‌ स्वयं प्रप 
विषानमष्णव के स्वीढत कागूनो के प्रति भक्ति प्वेच्छित भनुबन्धये हर 
उपणिमिष मैया हो) प्रौर्‌ ए, वे दमसिस्दान वैनहोप पादि पहवामी सवत्व 
म्यो कै माथ पितर स्वतश्च रापो का एक ठाप्नाग्य-सेन बनाप्‌ । दमे 
दशना पम पमृ-धपुरायनी सद्रम्द चेषमौषा श्ठोष कि स्वरप्व पिरमा 
पेष एषपाव पौर एरगोष्क प्रपिगधि इना ढक प्रपौन पयतिस्वानी शच॑ मं संपण्द 


रद प्रमरीषौ दंत का एविष््ष 


मेँ होजयर्नो तै सीषी-मादी भ्म धे अन्व पीत करठं ह क्वि प्रपे 
प्रभिगारो प्रीर “्याय स्वलन््का प्रोर मालीय प्रति र पश्च मे बीएवात्र 
लर । बे इतिष्ाघ फ पापार पर यह वै कर वो्गो सिटा्वो श्रे मितानैद्चे 
चेष्टा करते है फ नायरिक स्वहन्तवा क पमा हाने पर हमेसा पारमिक प्वनप्वता 
भी प्रमात्तहो जातीहि पौर प्रगर हम प्रपनी घांमारिकि सम्पति सौपदेते णे 
उमकै छठाष द्यी हम प्रमी प्रन्वरा्माकौ मी पराचीन बनादेतै है) 


पुदताषादी बर्मणस्वको इख प्रकार भिग्ोहुके प्रनुक्प बमा काणक 
पू-उदाहरणा जाति श्राप मे पिशा है । उन्ेते स्वातीपर पर्मछुवार्मी श 
स्वतत्ना श्न भगेन श्तं हुए । १५७१३) पम-छीठन कौ वकी प्रौर धुता 
सिदा्वो को दृ 'ममूप्व छी पुरणाभो के एक पिखाम्ठ के लिए शतिक 
निमम प्नौर प्रका ।िोपष्ठ पुनश) सेपरेरणा लेनी शरौ बी। उन्हेति 
नुप्य श प्रति मे निहि पृश्य मुप्ापो के म र्मे, पपनी ककुदि के 
निर्भय पर चै की स्मदम््रता निजी स्ववत्क्ता पौर ममाच्वा, पौर बनवाषी 
स्षण्वि पता प्रौर एामाजिक पमुबन्ध के उपयोग मे भरन्य म्ु्पो $ साब 
षामि होते के धकसर को माना बा। जोन भाष तै बह घाफ षठीजा 
निषालाभा किममी प्रषार श्री खकारो मे “मिष्य मे सर्षोत्तम पाय बह हरी 
जिसमे पेष्ट सोकर के पापार पर एक बैषानिऱ राजा ( निरुप से भि) 
होता है! › म्ृ-कपपेड के कु पादो नै परब जनान मेष्पूका पनुषरण 
करने का साह किया जिन्हने प्रप “खरमम्प दु यंग मेने" (पब शरो रपपेष-- 
१७६२ ) मे भोप्ति कय कि वैस पौर स्ववा श प्रेम प्रषु पमो 
परहार भोर बुस्म स षृणा स्वे बमंका मारहै। रिन्त मद्य. प्रोर नके 
षषी तिोीरयो र प्रमे सिद्धान्ते र धुटाभाद छ प्रहा श्रमे श्रे चेष्ठा बहौ 
श्ये । भर्तः पादरीके ष्पः उनरी अच्छो पतिच्ठा' सही प्रौर्त 
जोनधनने भो स्वर्यं प्रपथी राजङेशमपंकपे उनके बारेमे कहाकिवेरखप 
प्रार्‌ करे शष्यगस्मिठ निषार गदे नोगोमेहै चिन्ह दुषो स्वादा भके 
टाई कना कटिन है । 

समृ पौर बिोहणं ्दू-देपसेड बापियो के पिप मह श्यावा प्रासात भा 
करि हपवर पर पूष निर्मरवा प्रौर कततम्यमाववा से शदम्थीर्मोः के धाजापालम 


१ षहो एष्ठ १५। 
२ वाल सलेम देग्डरमत प्रौर दैत हैतेहह शिप हए म्यादिति 
स्िलापशै एन प्मेपि्कि (म्पूपाक्े १९१९ }), प्रष्ठ १६ । 





४१ धरमरीदी रमन का इतिय 


ष ¡ उपनिेर्यो ष्टो इसस््प मे देलमा धम्म पा क्पाकि उनके प्रणिकार-यत्र 
स्पप्णः प्रानुबन्चिक पे । ठेते द्य सजबद्ध हमे पर भी स्वत होमे कोहि 
हर एक श्ये प्रपनी प्रहिनिपि घरण्यर श्येती पौर सामान्य कवु की षीमार्पोके 
प्रश्र हर एक शग्प घामान्प हितके कामो मे पणन योक ङ्प प्रौर परिमाण 
ढ़ प्रप्नो पर प्रयता मते सकेणा । घप्राट्‌ के प्रति भक्छिङ्कि घ्ामात्य बन्धनम 
प्रावा एकता पापम रक्त के मिप एकमा श्रन्य भ्राबष्यश्ठा सा्रास्य कै एक 
स्वाधीन पर्मोश् प्यायालबश्री होगी जिसका एकमाभ कायं विपानमष्यस क 
कामों की वैजानिक्ता को परलना होगा । त्वत्त ( प्रबति परामुबन्जिक्‌ ) घमायो 
क संजीव प्रजाधिपरत्प का यद्‌ बिजार १७१५ के पास-पास प्रमरीका प्रीर 
इंमकषिस्वान दर्मो क ही समग्ैते के इच्छु रायनेठापो एारा प्रिपाप्वि क्षिया 
जारा भा, भिं प्राणौ कि ईंमलिस्वान पौर रसकं एपनिबेष्ो के पापक 
भिषाद षपामिक सुपार दी पोजना के प्रष्तर्यत पूममायै णा पष्दे है ।^ चेकिम 
जैसा कि वं जानत है घ्राग्राज्प-पजानिपत्प फी भां पोजना प्म्पाब्हारिक 
चिदत्र, बह णीघ्रही उपमिन # प्राप षषपोम पधोरषिर राष्पोंकी 
दंपीय एकता का माप्मष प्रापार बल पमी । समी का प्रतुमात धा कि मिस 
परार प्रणी संस एसे प्रोपनिबघिक मीतिके मरणे काधुस्पङ्रच भी घी 
कासो से घंवीम बिषानप्रष्डतत पमष भौर गुटवाभी का पुस्प केन होगा । 
स्मतश्क्ता के हित मे मह भ्ावस्वक पा। निन्द पह प्राघ्चाभी कि एककं 
करिणी भोर एष सर्गश्च स्यायालय घाश्धि कापम रहल एको भिस परसभी 
षमी सुरका निर्पिरि णी । भैपमब १५६ ते श्षगमग फते कक प्रमरीषी 
राजमौपिक विचारणाराका यह मोसिश्च श्प केवत गुट बीठने भोर णण्वि 
स्थापितं करने का भ्याबहारिके तरीहा नहो पा बर्कि एक पामाजिष श्षेनका 
म्याषहारिक पूर्तं ङ्प था । संच पोयना' जिस पर एखके पराबाजरपने को पचमूज 
बड़ा मगा सामाजिक प्रनुबन्ध के सिद्धान्त क्य दोहरा प्रयोग भी-बा भसा 
भेर तै कहा ससे घोरे -छोटे फणततो को मिलाकर एक भिक्त बरातग्तर 
क्र निमौरा पा चा । स्पू-ईगसेड का इर नगर, हर इदा हर बन्ती प्रीरहर 
राज्य रष्डीय संव को भांति एड पूर्णत प्ानुबन्धिक माज भामा गपा। 
भोगप जैफरसन नै बिपेपतः एव “चोटे बतत को भोषन्त रमै परणोर 








९ एपनिचेलो स॑ दैन्जामिन डकल भीर पतंपुएल चान्न स्वनलता का 
तवाल उस्ने कु बरहले पै हौ, संवह प्राररिजिष समभकये । यहु दितच्स्य बात 
हि प्रमदीकी दिएपो (रण्ड बर्माधिषा्व) को निषच्छिकै प्रप चाषो 
मी लसन इती वि्रार का बरमतंपट्न सम्बस्नी स्प मासते भे । 


प्रतिनिषि वे, जिन्हे भवि पालोभनात्मर पिटम्ठि-मिद्पणा करवै भासी प्रगती 
पीढ़ी केनिप छमस्यपुं निश्पितष्ों। 
दु शषर्णनिक पगृतति बाजे रायनताप्रा केचिए भमरीा श्म महाय 
जावनिनराद धरपस्स उस महान्‌ बारमिषाद काही प्रसारषा बा (कमपैभम 
पपे के लिपु ) ऋमभेल शी तेना मेप्र््विटीपििग भरौर स्वात्र भिर्‌ कर्यो 
मे पारम्म हप्र भा । लोहगै प्राहृतिक प्रबिकां क्षी पारा का प्रपोनमदे 
डौतले-दले ङ्पमे कियाभधा पर्पोकरि पथिषु प्यप्ट भन्तर लकृरके षैश्रप 
शदेष्यो श्वी पि ष्पावा प्रण्छी रहकर धद्य भे । इषो प्रश्रर पमरीशामे 
स्वतमवा के पुदमे विजय पाठ होने त मूर संदान्विष प्रश्न गौण रहै, 
मै उसके पाव प्रभिद्राधिक सामने प्राये | धंडिषान छानिर्मणि शणैमे, 
प्रौर ्यन्तिकारी परसि के पाष प्पे पम्बन्पो मे, इन प्रष्नो ये बमा प्रषम्मब 
भा । मूल दापनिक पहन बोद् पंपपपे इमरा स्येह प्रह्मरर्लाणा 
सष्ता ै- ष्या पषिकारपाश्टून को एक संस्पारमक वसिष्ठ शेके रपर्मे 
परिपापिति द्विपा सषा है जिते मसी रास्प के स्थामी संब पा 
पंषिधाम को स्वापं या पम्पायपूणं, वक्त या स्मेष्ड कृयानाप्के?या 
कि पतिकार को एते बिरिष्ट दायो के सन्धं मे परिभाषति करना प्रागष्पफ ६, 
जो प्रपगी निशी प्रहि मे वापं पा स्वेश्धं होते & } पमभिस्वाग जे मामपेर्मे 
षस प्रदम का भ्पाबहारिकि क्म यह भा ङि एण्‌ --भषत्‌ तता क प्रपितिषि - 
की प्रुा धपनै धापमे उचिते धी बाद्िदेष क्महानून पौ स्वेच्छहो 
स्ता है पौर रस कारणा बनता केज्रिए भावस्क्क व फि बड़ स्वमं प्रपते 
प्रविनिषि्मो पौर ष्ागरून केभिष्ठपौ कुठ पथिको पा प्वहशतार्भो का 
भप्रारक्षि्' एवै । जेम्स हरकत का प्रवुरणा करते हृए भोन प्रादम्प नै एक 
ंस्मात्मक पठनारमकं स्वत ॒निषमिठ भ्पगप्पा षौ करना शी । एका निषार 
जाङ्ि संमिता ईम्‌ प्रक्यर वामा जाए जिसमे निषी हित प्रीर प्रार्बजनिष 
हि भमि हो । प्छ भारणा ने एक एताग्वी कक सामाधिक्‌ दं को मण्वपुम्ब 
रदा । उनका भिश्रारभाषि पछि पौर सम्पतिशोष्छप्रष््र बट कर जिषे 
कनी जिपेपक््वि का प्रगत नहोनै पये कानून को गिर्कपच््कि बना हिमा 
जाए । दृषरे ष्मणो मं निर्योप पपाच बह ६ जिषे भिभिश्च भगंप्रोर हिव 
पुककदुरे फो संवमित प्रौर्‌ पनतु्तिठ करते है पोर एष प्रक्मर एक स्वामामिक 
तुरत शा निर्माशरूएप है बो स्वत हर क्री के साब व्याव करदा दै। 
सम्पत्ति केप्त्रापिपो शी संस्या बाकर, पष क प्रादर्तेन भौर पठ मवम 
हारा परौ विारक्‌ निकारो वपा शरमापिक्मर डु" निष्ार्मो को पतन-परलग 
करके प्मौर पष्य देसी ही ंवैषानिक्‌ रीतयो से उनक्य "वमान बा पण्पुसनल्मष्ट 


१६ भ्रमरी दंग छ इहव 


ह 1" ब्पबरहार में प्रदतं युस्वतः पहना छि प्रत्तठः जना ढो स्वतखवार्मो 
कासरसक कौन ६ । संबगादि्यो (केरेरहिस्ट) धै नोन मित केवृ मे 
धर्मोश्-्पायामय को खदा दिया जिरि केम्प निम्न नै एष पम्दरषष्टम 
प्रधिकरणा ४ समान अतापा । इसा उदेश्य पा प्राषविष निवर्मो श्या निकाष 
जिदर्मे मे बनता षी प्रपुयत्ताः का प्रन्धिम स्मर पौर नून हारा पात्‌ बे 
राक्‌ बत जय । रोम पेन ते बहुं पहले कमन चेम्ष' मे श्यी प्राव शो 
खलप्रिम प्रमिम्यद्छि प्ररानकी षी । पहात थोग माप के समव रवमी गयी 
पौर तैम नहीषह गयी पी जिषठनी १७७६ र्मे रषना फ प्रकापत क 
प्रमयभी। 
क्ेडिनि कृच लाय कहे ६ प्मदेका छा राया कलौ ६7 मे गतां 
मित्र बहुस्वर्म मं स्थ करताहै पौर हमिस्वानके दाही पयु कीतर 
नुप्न भाति माय नहीं करवा । कितु पाचिव पम्मा्ो पभो हम रेप्पूणं 
न प्रती हौ सलिए एष हिन पषिष्टार-पत्र ष्ठो धोपखा के षिएु पम्पीरा ष्ठ 
गि रर पिपा जाएु। र्ये रेषी निपम ददबरक़ी शाणी पररकषर पाया 
जाए । उप पर एष ताय रखा गाए जिष्ये किबरुनिमा कोप्वाशच्रलवबापुकि 
जौ ठक हम राजश के एम्ेक है ण्ड ठक पमरीका मे कानून 
राजाह 
रूरी पोर जेषटरघन # भगवा क शागरिक्‌ पदुर्णो प्र मरोषा किमा भौर 
इष प्र छि शनं कृ भभपिमों के भाव ( पिदाण्ठव हैर पीढी मे एक बार} 
प्रपत सरक्मरमें वै जिला मी मम्मौर परिषवंन का पार्हु,ष्ले श्र 
प्रबघर मिते । 
व्वीजन के हर भ्वापार ङी माति घने भौ श्येम्योके ।बमागनप्रौर 
परलभिमायत के दवारा ही षठोटे बे घी मामले स्त्म ढंग मे खाए मा क्ये 
ह प्रौर घार्वयजनिष मामलो के परजन्ब महर नागरिक का निजौशपमंहिस्या 
ढेतरेये सप नाबुदबताहै।. 
“नित शम्पच्ठिपां साभैजनिष्‌ प्रोर मिष दोनों प्रगार के प्रपम्यमधैनष्ट 
हो जही है! पोर पमी मागबीय रकार मुं वह प्रगूति होती ६ । पुष मापते 





१ देप, भेम्त द स्तो प्राडम्ड राष््स बिहाय्ट ममी “दी वैल पपू 
प॑ चौषौत (१६१५), प्रष्ठ ९१०२५ । प्रौर चार्ं रष्सप्ैष्येल भरूनियर 
श्यो सीनिष प्राण प्ोम्लिोपलः विपये बेरे द्वारा सम्पादित शरनदेम्पोरेयै 
प्ापषिमलिरम एत प्रमेरिका' बे ( म्पूपाणं, १६१२ ) पष्ठ ११०२६१५ | 

२ पहु रला प्रपदै तमप ष्टी सर््र्िष प्रमाक्प्ासी पएस्विषरप्रोर्चते षौ । 


दत प्रमरीष ब्पन का इतित 


पहुषावे, एक-ूखरे को निमग्मिव श्र + य समय एम प्रानो से देल घक्ठे 
कि महा शीय परण कमी खमस्वा का स्वप्न मिश्पणा भ्या णमा है । तेद्धिन 
हमारे घंमिषान प्रर एके निमविपो भै पिडाम्त या ब्यवहार मं श्लों फ 
ज्ञिए्‌ को भ्यबस्था हीषो, बे संयम प्रर सन्न की प्रम्य म्यगस्थापोौ पर 
प्रनम्त बहस अपापे रहे पोर उह भाषाबी करिबे सरकारक्य कोष्देषा श्म 
निष सगे भो प्रपनी पषति घे ही भष्टवा शौ उव प्रवृ्ियों को रोक घकेमी 
जिह एमी स्थीय शरणो मं ताया भ्रौर घमम्प्रया गमा है। श्मीय सकार 
फ़ जिरुड पुस्य प दान्तिक तक मह था कि प्रतिनिषित्व प्रमरइ्न पारिमं षे 
कसी एकमे एामिस होते के जिकस्म तक सीमिठ रह जाए, ठो बहु राष्टीय 
स्बघ्ाघम ष्म एाषिगमर कर पत्माणारका घान मान रहभाता ै। ९ 
स्के पिठार््वोकरे पनुसार दतीय-म्बषस्मा पर प्राारिव कों स्यामित्बपूरखं 
छाषन गणण सकने का मुस्य प्याबहार्कि काष्ण महपा कि जित पटो 
भ्रौर बगं-हिषो कोश्शम्य्तकरयं § बे हमेष्ठा मौजूव रमे पर मी, भिर्वर 
भवलते रेपे ६ । उख घमम प्रमरीका मे टिक भमो के भारे मे प्रटकल श्षगामा 
पर्षापिक लामहौष श्यपं प्रतीव होवा भा। 

प्ट सभिप्यभ्ाणी करना प्रासानां मि गरीब पौर पमोए, घम्म प्रौर 
एम्पतिष्ठीन बमं हुमेणा रहे कन्तु यहमौपाठानीद्ठ देडा बा पस्पाबा 
कि सम्पत्तिकाह्प बटौ ती्रवा से बदलता पा भौर पूस्वामी भमिजात्प-गगं 
भो प्रा्ार बनाना भ्यषै णा। पू-स्वामी प्रभिजात्प-मगं के प्रष्दर पी गुलामी 
छमर्क प्रौर गुल्ामी-बिरोषी गुटवैदा होरे षै टे शष्ट-हित ब्॑-हितो 
कोक्मटपे धे प्रौए प्ू-पम्पतति प्रौ एतनी ही प्स्वादी प्रीरमूष्यष्ौ इष्टिपे 
प्रस्पिर पौ जिवन भौर कों सम्पति । यड पच है कि जेषटरसन प्रौर तर 
फैये हपिषापिर्यो ने शेतौ # दख को एष बिपिष्ट पपं पं “प्ष्टोप-हिवः 
भान कए उनक्म पमर्ष॑न हिमा । शन्तु मह ॒पराना प्र्ड-पामन्ती तं जि्लकृल 
शोक्लश्ा हो पया भौर बेप्ररणत्‌ मे पन्त पसे दो पिया प्प 
प्रमरौकम मं पू-स्वामिमों केदपे वभे हृ, हित तहीभे बोश्ष पिदटाष्ठशो 
एवीकामं बलामे के लिये प्राषस्यक्‌ भे! स्वयंटेलरने बेफरसनं को १७१९. 
मँ ह्ला ईमारे निए छचपुजदड़ा प्रणा होता प्रगरष्ेवी प्रौ क्षामी 





१ शररेरलिस्छ पेपर्तः सस्या शस वैडिसिन) 1 

२ शात हलर, पिल इत्त्वापरौ इल ह दी प्रिन्िपस्स एवह पालिषी प्रोफ दी 
-कर्पेन्छ प्रोष दौ पूनाष्टड स्टेद्स" (छ ढरिक्यधयं, बजिनिपा, १८६९४) 
ष्ठ २६६ 


0) पमरीषौ दसन का इतिप 


णा प्रतौठ होवा है ढि दू-सम्पचि मे षनी प्रौरमार्टोसे पमी, शेनोही यष 
मानतैपे छि नायरिषं म उन्न स्याने प्रह्य-घस्पर्मो का हो स्दैया प्रौ मपिप्य 
में प्रामे भाला षु दिन देबते बै णद मठदातारपो के मिए सम्पति स॒म्बन्मी परतो 
वैजी स दीक पडने के पावते मतदाताप्रो मे मी प्रल-प॑स्यक रह बायगे | प्रत 
सलकी षटि मे भगं णा्ठन कमी षमस्या पुस्पदः सम्पि के मलिक बमं के प्रलप्य 
हिर्वो ए रका करै फो मी । जोन प्रादम्स ने एस बात को बके ठी स्वरो मे रका । 

“पहमाद शनाषोभाकि गरीर्गो शीवरह प्रमीरपी लोग" है डि 
प्रपनी सम्पत्ति पर उनका भर्िकार ठठना हो प्यप्ट पौर पमि दै, जितना एने 
कम सम्पति बलौ का पपनी म्पि पर, कि उनपर मी प्रत्पाभार पम्मब द 
प्रौर रत्ना हा दष्टापृणं हमा जितना षप पर । १ 

भ्रमर भाप शोकठ्नषापिर्यो को प्रमुखचा मे एक माते प्रमिकवैदेते 

8, प्रपस्‌ प्मर प्राप उयष्ो प्रमुखा यानी बिपान-म्डलं का पंचानन पा ज्पमे 
प्रबसता प्रदात करदेते है तोते बोटक् हारा प्राप प्रभिजास्म लोगोकेहापसे 
सारी सम्पति श्यीन केमे पौर प्रर घनहैनि ध्रपषठा नीव पोए़ुदमतो षड 
दसी मानबीयवा मिचारघोलषा प्रौ उदारता शमो धसी किसी भिजपौ घोगतर्त 
नै पूष्टि केश्रारम्म धे प्रवक्‌ प्रथित वही दी ह । लोकरण्वषादिपो का 
प्रमिजातबणं धापकास्वानज्े मेगाभ्रौर प्रपमे धावी मनूर््योेषैषाही षरटोर 
पौर सर्त व्वबहार भ्रेगा बैठा मापने उत्क साब कियाहईै। २ 

टोमसपेन ने एकह कर्बभमरो पदहो एका विरोष क्ते हए बहौ 
एा्लीय गरवान्िक पिडधान्त परपनादा कि पापान भ्यद्ियो का सही कानून 
का शोमा बाष्ठिप्‌ ! 

घासम का परिष्क्मए करकं रसं एक म्बच्ि ठकं पीभित कएने ए पदति 

षा याजते एक कर्मकारी" कृषते है उष्म मे हमेशा निएषी ङा (| एषा 
ध्पक्छि इतेष दमी दज का प्रमुञ्च होवा । प्रमेक्ता कहौ ज्पाषा प्रण्छी होती ६} 
यह रष्टरके षमृषको म्पादा पश्यो धरह घंमोथित कती है! प्रौर, एके 
प्रधिरिक्त कपी मरवस्ब के पौष्यैय मानस के लिए यह भरवष्वकहै एषह 
च्व ष्यकि श्वी प्राह्ला शा पालन करने के पतमघौठ बि्ार ते मुक हो 


१ जलं छप प्राडम्ड हारा पस्पारिति "दी बस्तं प्रो जात प्रार्पः 
मे ए ण्िम्त पराह दी काभ्स्््‌ पमन पएटूकेटरा ( धो्टल, १८५०-९ } 
कणएड ९३) प्रष्ठ ६१५] 

ए शेटरहलात टेलरः बही पष्ट ११६। 

१ वैरी हेरे दलाष्ं हार लम्पापित 'टामस पेन प्पिशेष्टेयिव तैतेकाष्डा 
(ग्पू्ार्क १९४४) प्रष्ठ इत्८्ए्न। 





प्रमा श्य परबुर-प्रस ५ 


इय ष्ष्टिकोए $ पुखर बहुमत शरो एण्या मौ भवमा मष यक कि घमूषे 
ण्ट च एकडा मो एक गुट पौर 'जनादिकपर के सिए धतरा अन सक्ती मी! 
परप गगाकानििकं दिस्त क एक शोकठान्विक मोद दमे मं॑जेकरसन प्रममे 
हमद्मलीनो म मपमग पे दै, मौर उन्दने भी यह प्रपमे भीम के प्रन्विम 
फाल मे किमा णब दयृकासे परमुम मेकं स्वयंसिद पसपो के बारे मँ उनके 
मनर्मे धमेह्‌ स्स्पष्रकर दिपा। 

पारं पररानत के णम्म क समय, मैने चजिमिमा पर टिप्पणियां (नोद्ष 
पोर यजिनिया) के छाज पंलम्न एष विघात के मदे म भपनी बहे राय 
दुनिया ङे घाम री मी जिसमे स्मायी शप घे मान पिनि की भ्यबत्था 
थी । उ समय शू शिपय पर भिभार का परारम्मद़ाल घा पोर स्वप्नान मेहम 
भमुमब चैन पे [अपरे फएलस्वस्म वाम्यबिक गएतानिष शिश्नथो ये बह महोवा 
क मामो मेह दूर भता ग्या) गस्ुव भ्व केवलो काप्स्ल 
रशमि जिषार-पिमर्य भर एय हद ठक ष्टा मया णाफिहम मानबैटेषिजी 
कृष मौ एमदस्तर गही ६ भह गणवालिकू ई ! देम एप पूज पिद्धान्ध ठक षी 
परिये ङि "सरकारे कस उसी पनुपास मे पणएहान्तिक हठी है जि सीमा 
एषे पपे राष्ट के एंद्मको पृं करठी प्रौरम्ठे शायगन्बिते भरौ ै। 
परः इमारे प्रम संरिधार्मो मे बस्हुत करो निर्वप सिदान्त सहौपे। किन 
पुमष प्रौए मिषार गे उस समय परस्ठाभित धमान प्रविनिपित्म के भिषठिप्ट मह 
केमरी पर्णादो भविषादि् षटु दभायाहै। माय सखलसबदिरपिर 
मिवा कौ १ निशुभप हौ हमारे घनिषाम ठै नदी बणन्‌ केवलं हमारे भामौषी 
मान परं! गणान्नि ४ पाघठन श्यौ धसी नीव भपमे म्यच पौर सम्पति 
ज प्रौर्‌ उम प्रवन्व पे हर्‌ मागर के मान्‌ ममिक्षरमे है) हमारे संमिषान 
करीर प्यगस्पा को प करी पर परल भोररेसं किक्याबह प्त्पसस्पम्‌ 
अना के ष्क पर श्रापार्वि है) 

यथपि बेटरछन पष प्वदेखता के सिदान्व के देम निर्जि दष प्रारा 
छान ढे स्थान पर भेष्ा दास पराषठनक्ोजेध्रेहै निन्त उलक्य पद्मी 
ह विष्वासहैर्ि जनधा पर भरोसा छी मर्म क्ाणा शष्ताहैरि गट 


च्वि ३ एमपत स्वयं प्रपते दिठोंके बारे मे अमता पिपर निणुप ष 
म्रम्ठीह। 


२७ कानि हप प्यार दी लिर्विप बाट्‌ प्रा जामत प्रत्न मं 
मेरेविन दिव. डो पथ, २९ कट्वर १५७६८ (भ्पूपाक, १६४०} पृष्ठ 
५. 


४ प्रमरौण्ी दर्भन का इतिहास 


घामिके स्वेत प्रता 


भव (३४४ मे रोजर बिियम् वै कडा मि हृदी पा मामो को मित 

पीर भिरोषी प्म्तरत्माप्रौ कौ उपस्ति के बमनूद रिपीदेप्रमा र्पर्मे 
नोगरिषटा भीर ईमाशमत वोतो ही पनम सक्ष: तो बहवे कम लोन रै नमे 
जिभाए को प्रीनित्यपूभं माधा षा। उनकी समासीन प्रपि्ष परन्त्मा्पो $ 
तविए, भस्युलः नागरिकता प्रौर पमं शा पर्लयाष एक पदिजारणीय भाव धी 
धसक पदक क टैमा लगाम प्वरास्मार्भो को त्वोकार हो पकं राजनीति भरर 
भमशनोमेषही मौलिक परिष्व इटि कै) प्रबुरठा क शापे प पषििर्तित 
हए । मिलिमम्प के एठ वर्कशो एन परिभक्नो मे पूर्वंछापा$ेक्पर्मेदेलाना 
प्रकता है। 

बर्ममठन ( अभ) या पूजो का पप ( अहि पश्वे ह पाग) 
दसी गगर मे भिरित्पके के स्मर्या प्स्वाकी माति परग एयिषा मार 
ति श्पापार करते बार्तो के लिमम माज याकस्पती की माति या सत्वनढे 
किसी भी समाज मा म्म की भणि । ये कम्पनिर्या प्रपनी प्रापे सता 
शक्ती € पपन प्रमिभैख रपय पष्य) है पपत मगङे चता पकती है। पपत 
क्॑पठ्ने से पम्बन्धिदं मामो मे इमे भष्हमरठिवि) पौर मिमाजमहो षष्टे, 
मरुट प्रौर श्ल बेल सक्ते है हानूमके पनर दे एषनूसरे पर पक्वम चता 
प्तौ पूयी तरह षूट कर धष्ड-नण्डहो एषठीमा दुहो बापक्तीहे किर 
भी सध भयर शी लाति सैं कोई उजल-यूनत दा ति नही होनी शयोरि नेर 
क्वा सार-ठत्व मा प्रष्तित्म प्रोर ठ शारा असकरो मर्षा धरोर भान्ति एन 
समाज से मूर्त मिच्रहै। ^ 

सए प्नौर भर्मसंगडन कयै एम पू भिन्नता का पएहषठास पीरे-भीरे प्रर 
प्रप्य क्रे हीह दै । कोद शुडताबादी यहु स्वीश्नर नही कर धष्ता 
भाक पौविक्प्रौर स्वं सान्ति ही जिषार-सेष मे प्रबय-पसम क्िपाभा 
घभ्ता है । लह्ठी बह षर्मपठन को एष निजी रतपहकस् में देर प्रक्ताभा, 
जोरा्पश्ै मर्ताके लिए प्राबस्यक महये ना। शो त्वो के फस्मक्षय महु 
प्रवमा कम्म हां पका--{१) रजकीविद् मैनिषवा भौर प्रनदेरतमा के षम 





१ पाल ्ठैत दग्डरसन भोर मैश्छ दैरोस् लिद् हारा घम्पारितं 'प्निघशौ 
इन प्रमेरिका" मे णदू दी भ्लपे टेक प्रा परसीकपूतन (म्या १६१९), 


परमरीका ष प्रबुड-स ४ 


निरमेप् भाषारयो षा विष्ठा प्रौर (२) पविषठाबाद प्रोर पम््येमषादी 
सम्मदाय के माध्यम घे भारिक प्यिगाद दा ठ्य, जिने दभि शा धेन 
परायनीिकं षा । प्रतरहवी धवाम्बी मे भापरिष खाम्हि क सिन्त "वारक 
पर्प प स्वठ्य हो भये । दूस प्रर धुष्ि शा पबिजादादी कदय ध्यब्ार 
म पूष्यी पर्‌ सुक भप्मे भिषा) प्रररौ ददान्ती के घत्व तक साक 
एतीति भौर लोपम्‌ की धन्तरमसतु पतनी िद् हा रयो कि जेम्छ ष्म को 
र्ना भमोपमित् पेण रिमान्पदटेच पान दौ रेड राइट्स प्राफ मैन" (ममूप्य 
के वामि प्रपिारो परस्त्य प्रौर प्रविवाय ९०८५ ) भरर येएगसन का 
मड दक पर्रैङ्सिधिय रेसिंग फ्रीडम एन अङ्निया ( मजितिया में 
भमि स्ववसा की पतिप्डा शष क्नून, ०८८६ ) उसमे मियादाप्यद गाही 
पे नित त्रे रोगर वितियम्त के शस मे हेते) 
हर प्मकिकषमेको हरब्पकि रे भिस्वाद्न पौर प्रम्तरारमा पर धोब 

दैना जिए) भौर्यह हरभ्यष्छि क पथिका ६ फिबह धनदे मरेणेके 
परगु्ार्‌ भमं प्र प्राथरणा करे । पह प्रपरिकतं्ीय भ्रपिकार ४, श्योकि केषष 
स्यम प्रपने पमार फे भिभारिठ परमाणौ पर धावाश्ति मनुष्यो कं मह धरे 
मुय के प्रदेशों के पनुषार नही ब सकते । य एपिए भौ दता नहौ बा 
पष्ठ किया भो मनुष्यो का प्रमिकार है, षठ सृजाक्ठाके प्रति एक कर्य 
है पहरहरण्यष्ठि काकतष्य है किह पृमगरश्टाको पेटी पौर कमम देही 
पदा प्ररि करे, भो उषे भिष्मा क पनूप्ार पृजनश्तौ न स्वीकायं धो । 

कक्षम मे पौर रम्य कौ पुख्यार्मे इष करस्य का स्याम ताणि समाज 

कैमामों के पे है 1 भापरिकि माजा सदस्य माना भाषि ङे पडत हर 
भुप्य को पूष्टि कै एन्दो क्षौ प्रजा पालना होवा) प्रौ भमर नागरिक 

एमाम काको परस्प सामाम्य चाके परति प्रपते कर्वम्यकोष्यान मकरी 

मी भभौ संगर मे घातितो घ्या है हो एतय भी कहौं प्रिर हिस 

भागि माड का सद्य बनने बामे इर ममुप्वको श्ा्बमौमिक्‌ परमके प्रति 

प्पनी मकि शनो सुरशमित एडषर ही" देया करना बाहिए । ` 

हमार भागरिष प्रमिद्मर हमारे दिक मर्वो पर भिर्भगमक्तेषहे भदे 

भौषिगी या रे्धागसिच लम्बम्दो हमारे मरणो पर्‌ भिमः जही! शादरकि छापे 

ढे दिव गवयो ॐ लिप्‌, एसे प्रपपौ आया हस्वे शरा देकः समय चभो 

होया बम कोद विदन्ते छान्ठि प्रर सुभ्यवस्वा ढे बिष्ट प्रत्य म्प्य 





» चनि हिमष द्वारा तन्पारिल षड अपाष्टि स्तिर्टि ( प्युयाक, 
१८४१ ) मे ज्यूल इष्ठ १०५४1 


॥ ५२ प्रमरौकी दरपन छ एयिषटाम 


धार्मिक स्यतत्रता 


भव १६४४८ रोजर मिियम्सते काकि पटरी या हसाय को मिथ 
भोर निरोपी प्रन्तराहमाप्र की उपस्थिति कं बायनूव क्प देषरमा रम्ये 
सागरिका प्रौर श्यत शनो हौ पनप सके ' तो बहु रम सोमो भै उग्रे 
भिजारको प्रौचित्पपृणं माता धा। उनकी समणलोन प्रषिकां प्रन्वरत्माभो ढे 
किए, भस्वुल" नागरिकता शरोर धमं का भलया एक प्रभिारणीय बात थी 1 
इसके पहले कि पमा प्रलणाभ प्रत्तरादमापों फ स्वोकार हो घए रयवीपि ध्रौर 
पमं श्तोमेषही मौलिक परिक्तंनक्ेठेषे। प्बडाकेकासमे वै परिष्म 
रए ¡ निक्ियम्प के ए वषो इन परिभर्तनाकी पूक॑एयारेस्पर्मेदैवाभा 


सकता है । 

“ पमस ( च ) गा पूजघ्यो षा ष्प्रह( बहे ष्ये हो पापूठे) 
किसी भगश मे जिषित्सको कै एमूहमा पंस्याशी मापि पू पएप्तिमा यापु 
सेभ्वापार करै बालो के निगम कमाय जाकम्पनी की परति पा भत्द्तके 
किसी भौ खमाज या कम्पनीको मणि । 9 कस्पीयो प्रपती धरवावर्वे धमा 
धक्ती है प्रपमे प्रभिसेष रश सक्तीहै प्रपते गदे चता सकती है) प्रप 
पंगठन से सम्बन्निं मामो मे ए प्रथमिः प्रौर बिभागन हो घकते ¢ 
एद प्रौए्दल मन सषते कै, कदू $ धरनुखार यै एकतूसरे पर पृषडमे चरणा 
शती है प्रौ वर्ह द कर कफ-अष्ड हो सकती मा पु षहो जा सकती है पिर 
भी एते मयर शी शाति मे फो उपल-पुषतत पा भति गही होगी क्योकि मगर 
का श्ार-क्त्व मा परस्वित्वि भीष्य कारणा उषश्री माईप्रोर यान्ति ष्म 
मार्गो परे मूलं मिह! " 

नपर प्रौर प्म॑सेट्न द इ पूस-मिन्नठा, का एषा भीो-शीरे भीर 
प्प्रत्पसस्पर्मे हीहपादै। दां भुद्ात्रारी यड स्वीकार तषी एर प्रष्वा 
भाक भिक पीर घास्वल द्यान्ठि ही भिषारभेष मे प्रतन-असतग म्िपाषा 
पृक्ता । नदी भहु षमंषंगठन को एक निजी समुषहके इपर्मे देसक्ताना 
जोरास्यष्मी महाके जिए पराषिस्यकमगङो भा। धो ठो के पनसस्य प 
प्रहपाबं सम्भर हो सद्र-{१) एयनीविक नैतिकता पौर भ्रगलरात्मा के भर्म 





१ पाश रते देष्डसम पौर पैक्स हैरीस्ड लिटा हरा तरसयादित्‌ 'स्िलापकी 
हन प्रमेरि्ा" म जूत दी स्तो टेमेन्ट पार परसीचपूष्त (पिपा १६१३९), 


पमरीश का प्षुट-कात ॥ 


निष प्रापाे श्च बिश्व, पौर (२) परिभिठावादे पोर पपप्रेपादी 
सम्पदा के माप्यम घ पारमिक य्यखठिवाद का उम, मिनरमे इभियो का दोष 
परामगीरिक षा । प्रसगषकी घठाष्दी मे भागरिक घान्छि ॐ पिदा "दारके 
परथमा पर स्वव हो गये । दवै धार मृचि का पमिजयाबाशै दय म्यर्‌ 
पकी प्रमुदे सर्य स मिषा) परससठमी पवाण्दी के प्र्ठ ठ साक 
सवनी परर सोष्म की मन्तु एनी मिच्च हा मयो मि मम्ठ दैड्ठिनषी 
रना मोम देः रिमामबदर्ड पन ही रेभिबच राव्य भरा मैन (मन्य 
के भागिक पमिकनते पर्‌ समृियप् परर प्रिमा ९००५ ) भौर बेफरठन कर 
प्रसिद देक पु्ैबूमयिय रेशिज फोडम एन मिनिया ( षमिनिया प 
जोपिके स्मरता श्म प्ररिप्य का कातून, ५८६ } खवमे बिबागास्य बौ 
भे जिच वे राजर्‌ मितिमम्प ४ काश २ हति । 

दष्म्यषिकेपमंफो हरम्यछठि के दिष्मापर पौर प्रम्वरारमा पर शाद्‌ 
देना भादि । भोर पह हर ध्यष्टि शा पभिदार शैक्ष एनकेमिरर्पोक 
पुर्‌ भये पर श्राषरणा एर ¡ यह्‌ प्रपरिमर्धनीम पयिकार है, भयो फेबल 
स्व॑ मपे रिमार्ो मे मिप प्रमा प्र प्रापारिष ममूप्यो $ मव बरे 
भनु्पो के प्रिषोके प्वृपार भी भक ष्ठे ! गह्‌ एषति पौ बदला गष्ठीणा 
श्ष्ाकि यौ भो मुप्यो क़ पभिशर्‌ है, अह पुजमकठां के प्रति एक कम्य 
६। ब्‌ इर प्कि का करतु्य हैकिषडु सृल््याको दलो घौर क्यल दष 
यशा परिह फर, चो उक विवाह के नुदरार सुमरकर्ठाभौ स्वीकर्यहो | 
किम्‌ मे पौरक््म्य कौ यरस्वामे दस कंका स्वान नागरिकि ख॒पराज 
को माय के पे द । नापरकः चपाज का सस्व मानाजागिष्रिषषमे हर 
मनुष्य शरो दृः कं घाषनकर्ता कौ प्रभा सतना होना । प्रौर प्रमर नागरि 


मदे गागर परपर हमारे पामि मरो पर निभेरगही ह, जैमञे 

भीकम मा दलागरिव सम्ब हमारे मो पर पिभर 

क पिर महती) नामिक पामन 
॥ \1 


ष द हस्वकैप का योक सममे चमी 
भशशं शिदान्व प्न प्रर मुस्क विस्द अतन कपयो का श्प 


स्मिष सेमा 
1 श्वी %ह प्मिरिक ( व्वूयाक, 


६ भ्रयसीकी शरन भ्म इतिष्रस 


नै पोरे प्रत्तर्मे यष कि सस्व महाम्‌ है प्नौर धपसे-पाप भ्जमी ष्टो बायैया ङि 
बह श्रम का उन पौर पयति प्रपिरोषी ‡ पौर इष संभपंरमे रकेसिएमप 
कको शारा नही प्रधर मानमौय ह्सेप उत धपनै पराहरि मद्धो समधम 
मिगारं भौर अदस से गंभित नही कर रेवा । प्रगर परमो का निप घरात ऋणे 
का प्रषप्रर षे, ठो ङे 0वरएाष नही रह जे) + 

मैरिधन धोर्‌ येषरन मह छीन पूर्वो क भनी प्रास्मा श्त शर $~ 
कि नागरिक पपिकार परम-निष्पेस होतेह कि धमं ष्टी पषापिकि प्रभिषृि 
स्ववक्ता्मे हीह, हि ख्र्य डो भिजप होगी । बे पृं निष्ठाप्रोर भुङे 
साज पारमिक प्रौर एजगीतिक षतो पार की पएंस्वार्पो शो भागप कलना 
प्रलापः प्रौर निगु पतामो से मुक्त भरने मे विषवाष श्रते बे । 

एक एद्तमवादी, पादरी को जिर माघमा कि वे एकत्वमादौ सिद्धान्तो 
माषे है बेफरसत ने मृखत पी बा पिकी । 

धरापनैधरपनी प्रनात्तरी मं दों सिवान्त सम्म बो परमेतौ प्य 

प्री! मैने कनी छिपी विशिष्ट पत्य ड सीमिव भिषार यमी भप स्वीकार 
शौ किः । पै पृते ईई पमं का प्रमिणापरप्रोर उषे भिषाणएषा कर्णणे 
ह! स्वयं पारं बर्म्मिमखन कौ पष्ठान दन्होमे किमि ही पुनो ठे एसा्तेत्र को 
क्ृसार्त्राना भना रला है प्रौरप्ाय मी गये एक¶ृषरे कप्त ग मिटे षाप्नी 
भृणा रशने बने स्थिर हो म गट रक्वा ह । एकत्मवावी पन्न के प्रवि प्रय 
शमो प्पो दा प्राष्मवा्ौ कोप ही वेड तें प्राणोन बर्मो मेको जिश्मिप्ट पूष 
या पन्य षी भे प्रासुनिक मिष्य पमो ममी दसि भे देखा शही ६, हिवाब 
उलके भो प्रपमे श सतार पर्मागिमम्की कते है मौर सर्धयो मे भी केकर बर्नो 
मेदसा शीश! श्यी चरण रि पमुङ्रणीम प्रौर पदमराबहीने पित्र 
पमान (वेर सम्पाय शा प्रषप्ी भोम--पतु ) मे दमा पेनमोस तान्वि भौर 
भाई भरे श्च स्नेह है । नै प्राघा करणा हं रि पषठत्वषादी उतक़ मुख यवाहरल 
करन प्रवुशरणा करणे ।' १ 


१ देन्डरछन पौर पिपर हारा घम्पारित लारी धन श्रमेरिक त ग्डत 
पृष्ठ १९६५७ १६८1 

२ प्ता ( स्वर ) एज (हला) प्रीर पवित भरस्माको निमि फे टित 
के बिष्ट ईष्दर के एकत ते वास श्वे बाला ईसाई सम्प्रप । श्रु 

३ दृप्यट एतेरी बम हए सम्नादित दौ चाषिग्ड पाह सोमप चेकातनः 
( बा्िबर्न १६०४ } से देरेन्ड बोम ष्द्धिपोर शो वन करद प्र्‌, भ्रयः 


१ ८४-३८)८ | 


प्रमर्दक ग्रबुद-कात भभ 


सलि शरणो घे ब स्ववं पामिक नियो पर प्रपना मठ स्पष्ट गही क्रेय 
उन्हो करणोघे मे मष्टा कवने ङि पादय पपे उपदे घ रागनीठिश्नो 
भरप्रय दशय; 
ग्किी भी पिरया षा एक भी उदाहण हेमा नहीहै किपर्मपीटये 
स्खापन्‌, प्रौपपि द्भानून पासन के पिङ्गान प्रौर षिदान्तं वा कैषस मात्र पमंका 
खाकर पर्य दी शियय प्र मापण दे के मिधिन उहष्य द परिसी पर्मपिदगक 
मी पिच्छ ष्ये मरौ शो । पव वम भर्मोप्दिपषट पमं के पाठ के बजाय 
मोपरि # सिदाम्ठ राघ्ायनिक भग्भुता पासन रसना पा पासनक्वापिो के 
अरित पा व्यवहार पर भापणा देकर प्रपते प्रोतापां शो टाप्रव है वाव भतुबन्प 
केरिष्ठ काम करे है ञेभपने धोठाप्रो शोप ैषासे कंचिद्‌ कनद 
जिसके लिप्‌ चनं भेदन मिता है प्रौर ससे स्वान पर दैवी जीडदेयैहै जिय 
परोवामाि बद्छ,या परबराहतेमादहैनो उषिणिप्टिस्लामा मिजानदे 
अदर ठोतो मरे प्रा करना स्यादा पम्द कर्यै । भपना पादरी बुगदै समब हम 
उपमि पामिस्भाप्याको देये है स्मरे मोरिकष पान्न या राजनीति एम्बन्धो 
बिवो श्रे सोच नदी रृष्ठे निनष ष्टो एम्मर्द रणम का इमररा रादा नही 
हहा) पै मागता दि देठे ठ छम जा षष्ठि भो राजतीति क एसूषनो 
बटष्र्‌ बामिऱ च्वमपोषीषोर मेभदलदं! यै प्यस षहपहुढिप्रणय 
पमी प्रबर्णे एर भमोरेष्रक क्ये मौ हर भ््य नागरिक की माति पह धति्ार 
है किह लिखकएया गोत्र प्रोपषि, कानूम राडनीवि परारि चिपमा पर 
परषमी मभनप परषट्ट करे, क्रि यने प्रबङाप्र के समम पर उषकापूण 
प्रपिकार दै प्रौर उपक मिरजा-से्रके निवाधिवो केसिएभल्री पहोकिक 
चके म सुरे या स्के रना पटू ? 
कषत के इम भामि निष्यायको डि पातिकः पिद्वाप्र निजो एमे 
शाहिए्‌, पवि ठन परिस्पितियों से घममा जा दक्वा ह जिगममि भर्षा दने 
सारकी ह, तेष्िनि एषे मूष षो घादिरिजिक ममाय मीदेदे जा पषण है । 
सृषं अफरसन के भनूमार उनके पाति भिभाति छो जसे परौस्टसै पौर 
भरपृषठं पिरिस्ततिमे सदधि प्रमामितर दपि ।यै दोनो पादयि शी एचि 
केः तरिरपौ रप्िकण पषठानुपापाये मे माते रि प्रियो णड पो, 
पर्मराशीम निथवोदेष्युमे प हमाद्भमं प्रष्टहोयापा। दे साक श्यीे-पदे 
उपरेण मे मिग पामिष शचिजञेतरये। ये प्रसापारण स्य मे उधार दिषाग्‌ \ 


बमदोपुरनल्मेपौ एदन्वेःरोदर र माम दपर १३ पार्ज्‌, १८।५ 
जि षष्भिन्राहै मेगा गदी पपा! प्रएर तेष्ट्‌, प्रष्ठ ६८१ २८२। 


४ प्रपरीषि दपं धरा षठिहाप 


पाषरी भे जिर उरगीडिनि सहना पड़ प्रौप्भो निजी स्प मे भरमक्षी पाद्मो 
केप्रपिबडेश्टुहोये। फिर भी उनश्मे षापिक्‌ निष्टा प्ण्वी धी ¦ 
पाक स्वहम्भता सम्बन्धी जएन के लेघन की टचि प्रौर प्रमागह्ारिता 
का पस्य कारणा उन्म स्पष्ट भामिक्‌ मिप्य है! प्रवुखता-कात के बिपष्ट 
निरये के विपरीव उष्डुं भ्प॑म्य प्रिव मही णा। ेषामित फेकलिनमे 
युजाजस्वा मे पंयपूखं ्य॑ग्मको प्रपनाया पा सेकित बा मं ठसका पुरु 
परित्याग करके प्रपमो पमं निरे बदरा छौ कला वी पम्यआप्वि मे पपे । 
भफरसन ष्टी प्रबुद्धा नैतिक निवमा म्बगपी फएककिग षरे बम्पीर चित्तास 
क्किमी प्रकार कम नौ भी किम्दु उनकी नैठिषमता स्मप्टत बार्भिषफषी। बे 
पक्र मं परन् प्रश्चागारिर्मो पे पहमत पे । मठेतीर पर भे परन्ठः्जानाररमो 
की तैठिक सावना फो पौर वषवुडिब सख एमफकाएकहीमागषे वै 
सेकिन दसा क्र उपदेो से एष्नस्मस्ता प्राप्ठ करना उक ए्बजिक्‌ प्रिप षा । 
परम्प पमी ध्यवस्वाप्ो छी पुषा मै हया शी प्यवस्वा शी नििप्ट उच्चता षै 
प्रथि उ््टी प्रा उतके प्म-दपन पौर उनके चरित के पूतर्मे धी। 


उवार धर्म 


एस बीच म प्रबुता प्रपने साजदएकः देये षमंक्षीपा रही षी बोबेपरएन 
श्य दामिषता जा चेप्निम बर्म-पौाटलो के पबिषताबादपे प्रभिरु सावार 
भा । पहु एक शानि सारंजतिक्‌ पमंभा चिते प्रजाचिपल्म फे परमे 
दुवावाद का स्वान सिया । द्यपि बामिक दाएवाद फी बं ।पू-मतेदफे 
विष्व सुदूर प्रवो धक बातीषी प्रौर उपमिनेषकास मे उषक्चै बवती 
ह मृधि को परिल्िव षरठी बौ कित्तु पादरिर्यो शौ पोर ए धुटतावाद के 
बले प्राम पर्त्माग शा धार्म ऋमन्ठिकि बाद हुपरा । मस्ट अवं बोरटनक 
चरोना्न मेषु कय पुककाव ईस्वरवाद प्रोर एप्पिनबाद) षर प्रोर बा। १७८२ 
केजादषोस्टम का दम्य चैल भामिनिगनगारष् का देनद्र बत मपा बवे उसने 


१ एष्यसि षी जपो प्तागदी मेरा परतेकड स्किवागाप्रौ दारपनिष्ट 
जिते परत्र मोजो पर ईषा के स्रौर स्पल्थित रतने की माम्ता का चराडत 


सिमा ।-- मरु 
२ श्पिनिजप्-हाते्डाप्नो मोरेस्टेम्ट धनस्ास््ी निनो कार्थिन के 


पू्वमाम्यनिर्यय के ददडधास्ठ चा विष स्पा ।--प्रदु* 


मटका का प्ुद-कान ५७ 
मुशे धाम भते शयो एक्त्वकादी दहा परर हषं के बम्प श्मीमैत षने प्रता 
पादौ निगु किपा । क्ट चष, बास्टन के श्राग्दं षन्ीने ष्य प्रा्यकाणष 
प्राद्यवादी उपेम प्रुत स्थि हि धीम शपाषु मृजनक्चा पने हर प्राणी 
के मुद्ध के प्रसि चिम्हित दैप्रौर एङि उपे "पासन क परति प्षन्धोप 
दुदधि से गही भर्‌ शूर्ुदि शी एक पष्प वै उभर होता है । बीरेभोर 
पौर १०८४ वष पु स्मपे डे पह त्वाप एषमै तमे हि हषर 
प्रत्र धमी पापि का मरक से अराएमा। उष बपं उनि साहस करके 
प्रपनी हत्त पेदा एण्णे बाजी पुस्तक शी न्येन प्रारु प्रासतभेत 
श प्राय बिग एर्ज एः एन यादन स्ध्ेमः (मो मनुय पि रष्वरीम 
प्यषत्था का महामु चक्प प्रहाधियर यो । यहु स्कन्द मे माम्य सर्वादे 
(पूमिवसंिसम का परम्म पा! होमिमा यैलो जिस्ेते स्वापि पौर एकत्व 
मारिमो रोर्मी शो प्रेरणा दौ प्म्दव इन परिणाम पर पहु कि मक्प्यिके 
भिष्मं द्िषी प्रकारश्कोई दण महैहोगा ; 
शारं षहिप्णुवागदी बिषार्णे काद्र होनैके तिप बदनामचा। द्ध 
प्राम्भ सशारवरियो में दबपिक श्राङ्पंक भ्यव स्ट भर्बं पेषम के परी 
रेवरैस्ड भिनिपम दैन्ठमे (१७२० १८१६) का भा। उमके पिप्र्तं 
महुस्यक छादि स्वापारौ सोर ठंज चते बलि जहुर्जी के मातिषने णो 
पूं देणे से पास्वभमगर घमाचार तति भे । पादय प्रौर जेफरषत के 
समक यएठस्छभादी होते $ प्र्विरिक् गेन्टते एक एमाबार-पय के धम्पाष्क 
मी बे । रनहे उपरेण क पाराप्र कष्ठ षठ प्रकार हेणा-- 
क्षि भश्डे ररपवे के लानो ते प्रारविक पमंकी निण्या भके 
पं प्रपते र्म्म जर्डोको दविहामा है, इसका निष्षय करभा कटि दह। 
महतिक अमं एड मी सभुपरेष्ट पमं है \ -- (सषडे पस्य द्वे पिष मदे एमे माह 
शभक पादयो हारा बमंपीठ वै कीषतरी निन्दा ङी प्रपेषठा मी जगी 
प्रादी शी उदारता स्तिनी पवि पुदध शद ईै। ईष्वर अ इमापएति्यों 
यटि) भी षाया ए वाङि एष सवम्यापी परमके प्रमारर्पे वा उरा 
अममोम करसे प्रौरयद्यमि मुमलमान पर्‌ पहुरो किस्वारकीबर्ठीपे मस्ती 
पष सभ्ने ह हन्यु उषे पि, उस्पाई प्रौर धापन, इम चङे पिता 
शमे निष्यप ही स्वीयं है 1 म हर्त मिशाता हैष दम "केवल प्रोरे ठमार्ओो 
केषीनीटै रकि म्ये केपतिजिारकेषहैणोहर रद्टभ्रौर हर एमषरमएड़ 
द्र प्रौर परमपि खाप श्वे है जो भनी बनाई भमी षतनु्रे पुषा 
गही द्रवा बर्न्‌ उमये पेज करता सौरस्य प्ट देवा है) प्रष्टि कम दरारा 
सिष्देणप इमे साव होती ६ पोर नारं पनं केवत दपं एवय पथिकः बान भोर 


९ पमरीषी दरपन श विहात 


पारणा प्राप्ठ रगै मे ष्मक हाता है । ईश्वर प्रच प्रश्व्नि व एक 
षाम के स्प मृ कषाम रता द, जव वड भिभित्र रण विपूषंक 
काये श्प मे प्रर ए ॒सहायदा को पागप्यक म बनादह। पूतस्य (४) 
भी हेव हर जावैगा प्रौर मानबे प्रहवि षो पोपरद्ठिते करके सत्वर हौ एव कष 
हो भामेगा। स्वयं प्रौर पु भो स्वर प केव विषात्‌ पार्य पौर शुर 
ड्टरौकेचचिएु ही महं भनाढा। पे ईषषर दारा सारी माणव बातिकेधिप 
भरस्वानिव सदय है पौरं एष कारणा धमान खाभरमो के ह्य षप मनृष्य एं माए 
कूर पक्त है। "पु थल पृदुर श पुरस्कार नही है, मरन्‌ बह लवपद 
जि लि्‌ हम बका पूजन हुभा है । बहुषा सासारिक परिस्थितियां तात्कसिक 
मलाई फ पक्के भनुखूप नही प्रीत होती द्िनु ज्ञान केष्टारा ¶विरक 
भपरिवर्चनीय भिधारनो कभी कपते कम बुरे परिणामों से षणा ना सकता । 
प्रतः धिका ही पर्माषिष उपयोगिता पौर पुष कौ पमिषृदिष्रग्दी है। प्रपते 
पर्दर परमाजिष धिाम्तो क्रा भिकाय करके मनुय बरार पर स्वयं समाजश्ै 
बुरा परभौ शद पाने के प्रन्प घाव द्वाज तेमा। › 
बोस्ट+ प्रौर उङ्क धराय पा ¶# द्म इृष्य-बर्मीपि उरबाद शी परिणाधि 
भिह्तिपम पशस चैनिग मे हरं णो परबुदता पौर परोत्परकार के बीषकरे भोपर 
खपे | क.न्ति्ठारी पीढ़ी मे तोन मिमिस्ल जिचार-भ्यवस्ापे, तीन पैनिद्धसिक 
हप्ठि घे भिस्त विवास पत्त णभ प्रभिष उपयु र्म्योके प्रमाषमें यै रने 
लनाकाद पजितराषाद धोर्‌ मएदन्धवाद कमा । चैतनिग इन तोनो निष्मार्षोके 
उ्खभिष्ार जते छम्बन्पित प्रष्मो को परमम पेषपं को निकटे पतुमम 
स्वा प्रर वर्तो छा पघमन्बम निपिव शरै शै शैष्टा ङी । प्रत तगके 
मानभौयताबाव का प्य प्रमरीकी प्रवदता धुदरताबाद की रष्व प्रौर 
भामि पुमर्मीगग के मागना्मकु उत्छाह ए प्रारणो के मिलन-मिनुकै स्परमेकएना 
उपयु हेया । धष मिलाकर बे परात्तरजाद के प्रज्ठा स्वेच्छा भष वही कमे भौर 
लव रसकी शाका टन रंषला-सा प्रामासहृप्रा सोषसके दुताठसे स्न 
प्रहि गयी श्र जैसे दुख कषेदक साज उनकी दृष्टि पुल रेपाईबरमके धृव 
ङ्पंम्मप्रोर मथी । हिनु उनकं साव जहम बह उयदुूह्ी भा कयोकि सिदान्त 
पोरप्राि से चैनिग पे रेने बलेे | उह पदितेलातराग प्राङृतिङ भर्म 
पौर गफतख्रषाव श्लो तनङेस्द स्पोमे ह 6मभ्बित करमैष्य पपाम ब्रीं 





१ धिलियम वेष्टने सप्मत प्रीणय देर स्टोन चैपेल' (बोष्टम १७९११) 1 
पहु हाणप्रमो एर को्रनि तमार करे प्रपसौ र्ता शसिपिडिगिष्ठम रेतितनः सें 


प्रक्मसित पिपा (पूपा, १९११) पष्ठ २१४ ११७1 


५* पमरष शमन का एटिदास 


के भ्न्ेरेते नी प, भरम्‌ एमम््मै कारणा हिकृढ बमंणघ्ीकेक्दु प्रर 
जिबादधिय ने पर पौ उल्टी जिजार-म्यमस्था म्ु-हगरैष्य का स्वये भदान 
प्रीर प्रवद श्पंन बी। प्मेटोवादी मैककि दन पौर प्राविश षमंकेषाष 
कस्मिनवाद छा मेल बिठाणै मे हापकिन्ठ के षास श्प्रोर चैनिगने एकव 
दिप ) पत्रता के भिधिष्ट गुणका पमिषताबादी सिदाष्ठ प्रोर श्प छत्व 
क़ प्रतिं माषमामा बोप का पविराषारी जिषास ये प्रस्त क चैर्िमिके विषार्‌ 
के परस्प बिवम रे ! एरक कारण विदान्तस्कृ एषम्बवार रषु प्रमिप हो पमा । 
पञ्जपि एकटकद्ापी प्रल्बोखन के प्रभिकारो भोर स्वकेखरता क तिए चतरा सन्तं 
हिने पर उन्दने रघा मभाव क्ष्या निन्त प्रपते शरो पषत्वबादो म कहणापां 
0विहापिष् धयाई खिग्ता पम्बम्ी मिवा म न पड़ना बर्हति पिक उचित 
घ्मम्् । घंीएंवा प्रप्िय होने ते प्रथिष्ठ ष्ठ एगके (नम-म्मोति बर्मपरेषबाद 
केषकारणा बा । इस प्रषार वैनिय ने मपना प्लेटोढारौ प्रादर्धाद काल्विरवादी 
पमिक्रताबाद फ़ माष्यम पे प्रा क्लमा प्रौर कोरि शम्ट पौर परासएमाद षे 
प्नामान्य जिकाठश्यी बातारी होने $ पहले ह उती प्रवि सोष्के 
परनुमषवाद प्रौर क्नाभाव छ मिस्य हद षी । 
शैतिम के विभा रमे छामाम्ब सूष उनष खररवाद पा पठवत्तवाद धा । 
पणातत्लबाद प्रे मेरा व्यं ठनश्ये शाषरिक या घापाजिक सद्गुण पम्बन्भी 
बारणापे ह । हां प ररह एडिनिगिए षम प्रबुद्धता का परिषम मिन्वा। भैभिग 
पर प्ोेषर प्न टा प्रमाभर पडा जिन पर त्थमं हेत का प्रौर षामान्यव 
नैतिक उदारणार का निषवमाटमक प्रमाव जा । उनका स्पे ए प्रकार भा-- 
शवा देषएमछठि सामात्य एदाएता $ पिरि प्रौर फु नदी ६ । पह खदारवा 
मानष जाति के वख प्रण को निपतिष्ट पषेदला पोर पश्िप पक्ठिष़ षान प्पीरमे 
समेटी ह, जितङे लिपु इपपोमी ह्येषे शै समदा इममे स्प शूप है । ^ परोफेवर 
टष्यन प्रर सामात्पतः हयव के माप्पमसे जैतिजवै इषेघनको पोरप्रभ्य 
स्कोर्मैष्छगापौ एदारवारि्ो शो जाना । जिस प्रार्‌ इणेसनसे बैर्मिग नेष 
जता कति पवित्रता मनुष्व शी एक स्वामानिक रमता हो पडती है, उसो प्रष्मर 





सौ उत पर भिपेषषोरदेरूप्मे ग्सिपश्पसे कहते कि “णो शोद होपनिन्स- 
बारी कटे तो है धे एतरे भे प्र पा उतरे प्श्ये बरमसान्नीय भिथाो के भारे 
मं बहुत कम जानते प्रवीव होक ६।५- (बही शंव १ इष्ट १६९) 

१ जिद स्यत, “तरमन प्रान बी दृप्त काष्ट इन ममाहेदूष" 
१ देल, १८६८ (बौस्टन, १७१५८) पष्ठ ११। 


५९ पभरमद्द्य वन का श्प 


मिर्मादा जै मासबन्बरिभि को प्ख बाते क प्रेष्य ठै निर्गि किया है) 
साजनीविक शस्याय केमल बही ठक मूस्यवाम्‌ है जहां तषे मानष~कृपिशको 
पुपारवी भौर भैतिष्द्ष्टिदे सषा उठी! पव पौर ष्ठि मौराषत्व दहै 
प्रौर ङी एाभ्म की बास्तबिक्‌ मह्यनता उनमें बहो हवी । एफ मामगधावि के 
क्िए्मं प्रावो है, भवय देबदाहुं डि एषु मात्र स्वाषंकाही बम र्द 
प्पनै दे मे जोदृदा ६, जवै देखताहकि घामाजिक्‌ भटके निकास 
रषेष्य पन-संपह फ प्रपिर भौर ष नह है पौर क्छ राष्ट्र की पणषता 
उसके षयो के घफ् मोम से भ्रंकमि बाती & । मै बेष-मछ्ि' को उषा णद 
कर पुक्‌ नैविक पिङ्धास्त केस्पर्मे देडषाभाहताह लोम कीपएक ताएक 
स्पर्मे नहीं| ^ 

भरे बौस्व पिठ दितो मागम तिके पुषार से हु प्रमति शी सपमे 
स्मितिके बारे मं वैष घाहसपूर्वक घोच-भिबार क्पे । भै प्रती सारी 
पोवनाप्रोके मामैर्मे हौमको वङौ मारौ बाषा पाता! प्रीप्मुे पश 
मे कोए हिक मही करि मानन धाति पाज कमो प्रेस धवि पूञ्धी कपी पष 
हो सकती, अब ठक्‌ कि पापुरानिक सम्पत्ति शरौ प्रविष्य शह धाए। २ 

धे निष्वाख हा यया हैक दुरा पौर दारता मगुप्य $लिष 
श््वामामिक' है । एर विस्वाए है किस्वार्णं पौरलोम दो भिरं प ण्लप 
हप £ णो सर्वव पुवा्जनोंको सिच्लाए बिह प्रौर प्रुजुमंजिन परप्राषरगा 
करते है - (१) फि समाज के हिवि मिक हइरभ्यश्ि शा एकदत दोवाहि 
भिये प्राष्ठश्रमै का बहु प्रपाव करेण ध्र (र) ढि द्विमाग श्यी ष्येपा एयीर 
पर ध्यात दैन षी बस्तं स्वादा ह। 

मेरा भिषषास है किये भिषार मूढे) पौरमेणयदधी भिष्मा 
श्राप उम कभी श्रतम ती कृर पक्तौ ववत्क ङि पराप मापव बततिकौएन 
पर्‌ प्राचर करला बड कटे $ लिए रा्ी गरही कर वेते । प्रात्‌ बबतक 
श्नाप उनको एरी नही कर हैते छि (१) पम्पतति ङी भिमित्ततार्भो को समाप 
कर द (प्राप षम्य ही हेष कि धन्मषामे हितों हौ नित भितिच्वाप्रो को 
मेषा भावम रमी } द्र प्रपनी मेहनत षौ वैदावार्‌ का स्ववं पपते कों प 
मरम के बापु एकं घामाग्य म॑डरमंडाल दं प्रौर (२) दिमागश्षे परधमो 
प्रौर सधी गरिमा श्यै तता उनमें ध्यु भावे । > 

१ बिभिपम हैनसी अतियो पुल शद १, पृष्ठ म६-०। 

२. बहौ पृष्ठ १२१। 

१ बरही, एष्ठ १६१६११४। 


प्रमरीकाक्ापबुदभनद ५१ 


श््ेदी ष्ठारौ जवम पौर जिया हषर बरस ययी है 1 पणे यै वैक 
ठपलगकपौ को ही एक मातर शस्व मानदा बा जिनको प्राप्ति का पुरः प्रयास 
करना धा । प्रबभैते धपे के तिष्ठपू ईष्वर को पघमपिह कर पादै! 
मै ठरे परसि सर्गोण्ड परेम का पर्षषम्‌ फधंष्य मानष हं मोर्‌ वैपिषवा केष 
चमे ढे हरा मूल वे निकी एष घा प्रतीठदेत्वी है) मै मानम भापिषे 
मेम कण्वा स्पोि भे स्वर्‌ की छन्ताम है) ` 

देषा समला ४ फिजैनिग 'स्कारतैम्ड वै मामे प्बासिबोणे एष स्तीरमे 
जिना मूख सिढान्छ सामास्य दम्पति भा पारीकेसश्प म सम्मितिदष् होप 
भमि जे चग उनके एम्बभ्विपो ¢ म्ह बाप सृ-सर्‌ वला विया । उनके 
सजनी प्सा नै उमा मत पर्णिक्हि करके उम्‌ एक भापिक्‌ विषास 
प्रशन या धा प्रौर्‌ परोरिक कष्ट-सहम सम्बधी उन कुरा तै उनका 
स्वास्म्य चौपट करके उतके बेहर को षह (्ाप्यात्मिक" पीहापम प्ररग्‌ ना 
जिषे सिप वे प्रवि ष्ुए ! प्रव मैनो देठमक्िूखं कतम्य-मावमा से पपन 
भो जनहित त्र समामे बाते धमे-निरपेस्ल पणदन्छ्वावी भे त पम-निपयेदा 
नितिषवाको तिरस्कार षौ ष्टि ठ देते भति पदिक्ताभादी । उन्होने मानेभपा 
ढ़ पमं मे एनिक्ता भोर कश्य का समस्मय देषा } 

सम्छने एक दापरंमिक प्रबस्प शौ योजना बलां गिरे तिष्ठ पौ पवे। 
एस पक महत्वपूर्खं है, नैतिक, पामिक भौर पजनीदिक भिञ्ञाने ॐ 
पिद्धाप्व' । लयव भा मैतिषता, पर्ण प्रौ रागमीति डी एकता प्रप्त करणा।-- 
पर्थाव्‌ पमिष्वा, हद्युख भोग गणदाजिष थमपि का पारग्परिकः सम्बन्ब श्यत 
षरा । एत प्रस्वामित रजन! के पिए स्ि्ली गवी पूमिषा मे उमोनि ¶सा-~ 

“नुप्य शे षी पूएंदा वैदिक भिहा्ो क महाम्‌ सिजार ह । मत मनुष्य 
प्रतिं की पपीया कटनी है, दर्प उका केशौ भिपम मिर्षरितिक्षिय णा 
एके; पौर बह पस्य मिर्षारितष्स्ि जा शके जितङ़े तिप्‌ घनी कामिक प्रर 
र्जमीतिक सस्मापो शे स्थापनाहो! पहः यामय ्रक्तति सम्बन्धी उभि 
इष्ट्या वर्मागिर महत्वपूरण है । मनुप्व को पमम्पने मे निव क वौ प्रयाएम 
न्मोष्गीहै। > 

सर परबुदता कल मे मानब-कृवि दम्बग्ी प्राप एक मुपप निषय 
९ ष र्म श मकतमूएं पकर प्यातदेभे पोष्य है! सोककालत्य 





१ षी, पृष्ठ ११६ १९० 
> ब्दी प्रथ ११६। 
१ बदु कदर, वृष्ट ४८०६४८०८ 


भ भ्रमरी भरन का इतिष्ाष 


मानैग्रौप मम केम कोशोजमा पा, ताकि उरण प्रहृतिक्‌ घीमाभोको 
भ्प्ठषिप भासे) शैतिगका तदय मानभे प्रतिं शै पर्णणाकौ डोजना 
था, ठाक्ि एस प्ंमायनार्मो शो सम्प्र भा के । £न पम्माषवापों को पडत 
तापू प्रपते प्रिद उपदणए हेर ते समर्प" (सारणनौषदुषारोरमे 
पोप्ति द्विया शो परल्मरभाय ढे घर्परवम भ्रमरौ निक्षम्णो मेसेण्कषा। 
ईसलप्यके सिए प्रमास करते ए, चैभिग पै उन षारणाधो मेँ महत्वपूरौ 
संघोन कमे भो उं परुदध-युन घे प्राप्ठ क भो । न्स्य एटाए्ता' $ मिजार 
को बरत कर उनहोमे 'प्िसरिद पमासीखवा" क्य क्य रिया ! एड्बर्ं प के प्रुषार 
घश्ची उवार शे बिदोपता उसका भिधिप् शक्य, प्रत्‌ सामान्प प्राणी हेवा 
है । एसके निपरीत चैनिव क प्रनुप्ार धण्बी उदारा शै बिधेपता रउपषा 
्रामाजिक निषरणा ¢ । परेम की शख सामाजिक प्रौर मानबीय भारणामें 
पमिर्रताबाह के पजिक््रेम, नैरिष्ताबादिगो शी उदाषीनता या दरस्यवा भौर 
भदन््बारिरयो के एार्वंनिक षद की गारणाप्ो का समन्यप धा।१ 
परार ईैवरकान्पापरषष़ीद्माकाह्टीएके श्प ६ै। बहु षीरेपीरे प्रणवा 
भाप्ठ कर मे मनुप्य शरी षहाववा कर्ता § । मनुष्य के पस पुगर्बनिन मा नैपिक 
प्रमि म घामाजिषपुनर्बीकिन मी निद्िव है । मह भी बीरे-बीरे होमा भौर 
ख प्रष्ार पुषार पा प्रगति घ एकप है । फिर भौ यह ठष्य कि चैनिग पर्जीगन 
की पएश्दावस्ी का प्रमोम करते ए, केवल प्ाण्विक्‌ मागा दी नही है पह 
एने टिष्रऊ पिक्रताबराद का धोठक है। किन्तु प्रब पह एक समागीहृद 
पृित्धावाद है 1? पुनर्भीगग साने बले प्रसादके माप्यम के प मँ निमित 


१ फ्टषि किज्चा पुमे प्रादा कि श्वो चित्रि सम्बन्धौ चतुर मनुष्यों 
की बटुतेरी परिङह्यताधो श्य प्रजाय ईष्वर क्षो शस पलृककोमलदा चेरथचित 
करते षरा हैमो इष्य फो स्प कते के लिए तनो ष्टिकोतो मै सर्ववित 
फपटुष्च रदा है । मुम पदै सि जिना समरे थे हमभ जये इषद्परि ते देशना 
लोत्र तिपा ¢ छि एतं केवल एक सामास्य उदाप्ता है । - (बही कंढर। प्त 
२५३)" तति प्रतुजव क्विपि जने देषा कि ईर पपनी (पचि भावता" प्रती 
लि ध्रौर एपोनि हर उत भ्यच्छिको प्रहान रमे को छपर ह जो ईमातशरी 
ते शई पर शद पाने भ्रा प्रया कुता है, जघ परता षे पोष प्रागे बके 
की चेघ्रा क्ता है, जो परमात्र स्वत है ।०- (बहौ, शहर पृ इ) | 

२. शगु पेमा प्रवीर होता है हि राले सङ्ेत समाम मै होने बाते प्क 
श्पापरू सोयत शो धरोट इसारा करते भो इस समृत क्रय पर माप।रिवि 
होया प्रर ते भ्यछ करेपा छि पामाजिष पडत का सस्य लकय शपू भोर 


प्रमरौकम का पबु कल ॥ 


अना (समाम) छो मिष्ट ्वमार्गो क ष्पर्मे ष्‌ कर चैनिप धामाव 
समाज श प्मोर सू! पमे सवर्स्यो का भलन्त पुन्जोषन घमाब मात का 
कंभ है । कमो-कमो भेनित बहुत कु सत ओेरुरसन-समवेक सरएदम्डभादी श 
प रजति सुपार षे पष्णवसी मँ गोरठे ने, क्तु प्म मिताकर षव 
हारे तिराण हए पतीं हे है । मेधिक रलमन एवनीति के दरा नौं शि 
सक्ष्वा । १८२ म यृ भापसप्रामै के धाद बै एष प्रप्ल पर भिधैपत 
ष्ट श्प से बोरे-- 

शै माज के प्रति दे इष्टके शेकर शरा ट जिनमे भुर षमे दारा 
जिव ढे जैतिक नदौकर्रा क प्रह्ट समागता गमे दैवा मामन्व दैवी है वैषा मरे 
पले कमी गही पिमा । ऋभ्चर्बो, राजतीविरु परिरवनो हिषपूणं संनप-- 
शजम प्यक पा द्रामो-- सपेम समाजे क्री मी षष्ट पंटोभन चे 
मै पतिकभिककम प्रप्रा करवा है! पपर मूल सिढाम्ठ म्यच पौर रट 
केदरगर्मे बहौ वनावाद, तो भरष्ट प्स्ापोकेस्मात पर धनिके महीतो 
खठमी ही प्रष्ट पष्य संस्वाए्‌ पा जापेपी । एक मात्र उपाय वैतिकि पपिवन तं 
ह, निके लिप्‌ देग्त मान हगिष्यव भौर शये ह्री शनी पकतिही 
पर्षति है) १ 

“हुम छम देशत है कि भागरिक स्मता्रता के कतस्वटप वतका बह सुपार 
पौर मानवीय पति य उत्थान मदी हयः जिद जिषापपू्क प्रवेता कमै परौ 
धी । न्‌ बार स्वतन्नताङे ही वै दारे रस हृएहै जिस हेय प्राणी | 
फ्रिरमी पक प्रश्छाश्महौ है । दुदापी प्रौर्‌ श्रा पदा पोका 
का दज इमेण नही रेया 1*१ 

शलामौ श्ुस्वा पौर संसारिण, कम यएकवाद तकार, प्रौर्‌ 
पिगदावादके तीन घु है । पोर सही पुमो के साप पवये कषेमे वैमम 
भा मानगीदतवाद पूर्ण निष्ठकेषागकशयाणा | एष प्रष्मर शनितङके विशार 
प्रौर घापात्पतः प्रबुदता ष्ट षरिणति वैरिष्या पौर मानव प्रहदि शे पति 


मेदि प्रायो के ख्व प्पे हारे पयायो का उत्था है 1 इतके प्रन्त्वेत 
इष्ण पेप्ेला दोषी डिष्ष्त शश्वद प्रपि ढे प्रपत पोष्या 
प्वुमार्योमै। वर्तया स्दार्यपूलं, प्रपामारिष प्यदत्था के सपान पर 
प्पराव्ड प्रापेयो धौष्मेती घण्ची दृष्टा है टित स्नेह हरहि भो लभेद्‌ 
षदा माधे (ष्ठी, जदह पष्ठ ८) 1 

१ बी शद्‌ पष्ठ १४९। 

द बही दि ¶ृष्ठङ्न्य 


1 भगस मेन ऋ इण 


मानडीम परमम ऊेमूस कोशोगना धा कानि णी प्रकृति पीमापो की 
म्यम शाके । चैनिवक्म थ्व मागबप्रृति श्यै पूरणावा करो शोजना 
भा, ताहि उषी संमढनार्मो को समभ्प् णा सके । षन सम्मानारप्रो को उन्ेषि 
छाहषयूर्षक पपत प्रसिद्ध उपदे श्ैप्वर प्रे समस्प्वा' (दादकनेसद्र गरम 
भोपिव किया धो परात्परणार क सरवरम पमदीक्मी निष्पर्णो मेषे एकषा। 

ध मम के सिप्‌ प्रमास करे हए, शेनिग वै उम भाष्णाप्रो बं महेच्वपू्ां 
कंछोकन कयि बो उण बुर ने पप्ठ ह गौ । रस्म उरारवा" 3 मिणार 
क्षो बद कर पम्देमि “भिदि शपाष्ठीषताः का स्प पिपा । पर्ब स के प्रवुषार 
ण्ी उदारता श भिद्या रका बिष व्य, प्रपात सामात्प प्राणी पेता 
£ । षके यिपरौत भैनिगः के परवुषार धरश्ो उदारता षी भिरोप्वा उष्म 
सामाजिक विरा है। प्रेम शये शस सामाजिक भोर सातबीय भारणामें 
पित्रताभार के पनित्र्रेम, नैतिकतागादिमो शर उदासीना पा तरसप्मता भोर 
परणतम्वापियो के छाजी धदृएरा शय भारणाप्रो का समन्वय बा) एस 
परकर ईष्वरकाम्याय स्पश ष्याकाही एक स्म है। बहु भीरेषीरे पूखता 
पराप्त कौर्मे मवृ्वं की हाया करता है । मनुप्य के शष पुनर्बीबिन पा नैतिक 
परधर्मे घामाजिकक पुनर्जषिन भी निहित है । बह भी पीरे-बीरे होया प्रौर 
श प्रकार पुषार पा प्रपि से एकस्म है । फिर मी पह दैप्य कि शैनिप पुर्बमिन 
की एम्दाषद्धौ का प्रयोग करते ष्टे, केवस पएाभ्दिक मामला हवी नदी है, यह 
रके रिकाङ पजित्ताषाद षा चतक है; किन्तु धव यहं एक घमाभीकृत 
पथिक्ठाबार € 1 ^ पुभर्जीषन लते कासे प्रसादके माप्यम के रप रमं निमि 





१ जोन लिक्ला भूमे प्रासादै डि देवी चरिज्र सम्बग्पी चतुर मनुर्वो 
को बहुरेरी परिक््ताप्रो का प्रमाय ईष्वर दस पेतृक्कोमलता पिब॑ष्ि 
कष्मेषष्हा हनो षप को स्वं करने के लिए पमौ हष्ट्किरपौ ने पर्बाभिनन 
फक ण्डा है । मुके यदै हि जिता समे वृषे हमे ते इत इद्धि ति रेता 
लोल सिवा है छि उपतपे केवत एक सामागय उषाप्ता है ।"- (बही चंड, ए 
१५६) दने पदुम किया ते देखा दि ईवर पतौ पजित्र भावना, प्रपत 
छठि प्र श्योति हष एतं भ्यछठिको प्रदाने करने को तत्पर है भो मनवारी 
तेषु परकाबू पानि प्रया षरा, उत प्रता शरोर प्रागे बते 
क्ोचेपराक्षषठा ह भो एकमत स्वनं हैक, लंड र एषठ ६४५) । 

२, “पुमे पेमा प्रतौव होवा है चि कालषे सहत पतमायमे होने भजे एष 
स्वाप संशलोपन को प्नोर शपरारा करते, बो इप्र सारसूत तत्य पर प्रापादिते 
हौषा प्री ते ध्य कररेसा छि कामाय यडन क पुस्य ल्य हपूले प्रर 


५९ प्रगरोकयै रपम हा इतिदिष 


म॑र्त करतौ मेह! प्रबुडठा ते पराद्मरवाष म शमा महां इतना सर है कि 
खे देल पाना कयि दै । 


स्वतप्र मिषार 


खप्र तकनामाद प्रवृता कै वामप टौ पराकाष्ठा भी भि पमं षंटनधे 
प्सम्म्य कर्मो पामठौर पर बण्ैधो पा डष्टरो धै पादपो पौर पर्म-पंपम 
की पि के निरव मे प्रतिपादिद क्रया । भ्तारण्ट प्रर शरोषिनष्छ, पौर बादर्गे 
भस्रेपर, मस्मे प्रौरपेग कौ स्थनाप, इस उप प्रकार के पमरौकी शत्वप्वाद भा 
प्रादपं पी पौर प्रमरीषी रामो मेँ कों भरी निपिष्ट मा मौलिक बात गही 
ह । इनमे धर्मप्रजम भौर पर्मपिक प्राप म्यक्ठित्य बरमा? क एषाम दैनं का 
जा । पुभाष्स्या मे वे एरु प्वतल्त भिचाो भाति जिङ्िपषट के प्रमा मे भागे 
पौर परर शमी कैव मे रणहोने प्रषमिर्वो श्यै राय पुती पौर पपी । उनी 
रुणेता "रीवन वी प्रोन्ती पररेकिलि पराण मैन (तकि मनुष्य द्वी एकमात्र 
पराप्ठषच्छ) १७५४ में प्रकापित ह । समे उन्हते पारियों के पाप्म दम्य 
ज्ञान अगस्कार प्रभिकार्‌ रा पृष्ट भरहर खस भीगी प्रालोचनाषपी भा 
भिषिष्ट शपमे याशो । मेन केवल ह्वर प्रोर पगष्वरता मे जनिष्वा कषे 
पे, षर्‌ शाय दग्षरवावौ दीति ए उ्होनि प्रपते भिष्वातो। का ठिक पौचित्य 
भरौ मिक का प्रमाष च्या । उगके भोरेकिस शी प्रपा वार्पनिक हृष्टि 
घ भिक रोचक उका पपेशाङृय धञ्ात "पते पोल बी बृनिवरघंल प्मेनिव्बुब 
प्राण बीम देष्ड प्रोत दी गभर देष्ड पम्मारलिटी पाए दीद्यमन सोत दष 
इद एमेन्सौ" (धस्ठितण की किक्पूरावा भौर माभ प्रासा की प्रकृति रौर 
शर्रषरता रौर पसक मोप्वम पर निगन्ध) है ! सदा मिम्गरतिञ्ित प्रय यहां 
णद्वत कए के पोष -- 

श्वायद इम मृषि मे प्पे प्राकार के घवपिक स्वार एवते पुराने पौर 

स्वे धुर प्राणी समृ है । फिर पी प्रस्व्सिष्ी गश्रता पृणंकरैषेविप्‌, 
देखा परी हवा है कि सनुत्य नाण प्राणी यै कौ का हाना भौ पागस्य षा 
प्नौर चरि दैवी एाठन फ प्र्र्यव हमाय एष निरिचित्र धस्ठितव है, परः भम्ततः 
हम प्स प्रसफल गष ह पष्ठ दिन होते की प्रेता स्यावः प्रच्छि । ^ 


१ पा रतो रेष्वरलन प्रौर विषम रोर एारा सम्पादित "छिातद्गो 
इत प्रगेरिषा, (वपा, १९११) प्रष्ठ २६५ 





भमरचैक्मकराप्रुर कान 4 


प निषष्व सं पेषं एक उप्र {वरदा प्रतिपादित कषये है 1 हरत एक 
परम भूजपूं पदाथ है, बो जिरिष्ट भा्यत्मष़ पानो वा पाला मे धवं 
भ्प्ठ पहता है । सी प्रष्ार पे प्रष्ठ मो प्रषार नदी होती करम्‌ स्वानगवं 
दरी दै) 
एषम शी सषमा छे धौरी निस्दु भिक ्ारपमिच एसिमू पामर कीति 
गुमपिसिस पराछ भवर, ( प्रहृति के सिदान्ट १८०१ ) दै, धो एक घय 
पाम्योलनके सपमे प्व बिथार दी एक पमिम्यक्ि है । पामर चेकनाकद 
के कु भमफएफोल मभार म से पक बे कर्‌ लपरोरतेदे दबुदि के रल्ब्रि" 
बा सलरवारै लमाज' ( भीष सोताश्टोय ) संपदिति कमे ये एहयक हए 
{ जि मदूमाक का हैमनी हाप भी भा) 'तिदोषधताच्मपिस्ट भौर "वी दम्प 
प्फ रीवन' प्रादोमन कौ प्रहिनिधि पतिकाए्‌ भी, पोर पापर मोपषएठम सम्पाको 
मेदेये) मेप्रर्मायिकि रटे दाप-खाषं भ्रमण कणौ हुए मापण करते । 
गिन्दिपिस् पा जेवर उल्मे मापो का एक शह ६ । 
श्रकृति क धिदान्त" ते पाम का ठा्प्यं यह भाकिरत्रि कनिपमोका 
निस्मण षष्ठे हृ प्रापुनिक वैवानिषनो ते्ष्यु मं निहिठ म्बरं कोपर 
"मामदप्रहति की मैतिक उर्वो कोपभीष्एषीमाठके मुक दियादहैङि 
प्राकृतिक 'इुङिपः पीप्र ही कृषिम प्रर दनद जिष्मार्यो को नष्टकष्‌ 
हेमो । मनृप्य स्वमाबः निम्नसिङिति पिठर क प्रपना से-- 
ए कि पुष्टि एक सगोज्ड ईरदर का पस्तित्र भोपत शतो है णो बरुदिपूरो 
प्रणिमो श्यै पटाड़मोषहै। 
र. कि मुप्य वेठे तैतिक्ष पौर बौद्धिकङुरो क्वा है जो प्रकी प्रकृति 
मे सुदा प्रर सृष्च कौ उपतम्िके लिप्‌ पयि 
३ दिप्कृति्म भप एद्माच धादेजिक बमं है, रि यहु बुिपूगौ पारियों 
केः नैधिक म्बन्शं घे विरक्ति होवा पोर मानम याहि भ्र सपाय ननाह 
परर परपिष़्ाभिक सुभार ते पम्बड ६ै। 
४ पिपुप्य के पश्वे हिदि वह्‌ पाबष्यडदै णिग एरयशव्रेम करे 
पर पदृगुरो भर प्राबरष भरे । 
भ. कि दर्पुख रवत प्व पोर माय केपृ क्ेनिए निनापष्ाठैपौर 
भ्वप्राकहोताहै। 


६ हि दार स्वमान पौर क्स्याराद्मयौ श्यं त्की प्राणिर्णे दे मृ 
कम्य ६। 


४ ङि ग्लीकृन पोर देयमिग्रिहठ रिषीषपंका भूग्र्ईवसेम गीषे 
ह्वा । 


ध प्रमरीकी श्न शा इटि 


< करि भिक्षा पोर भिङ्ञान मनुप्य के धुख के दिए प्रागस्यक है । 

£ कि भायरिक प्रौर भामिक स्वठगना एषे घच्डे हिव मे खनी है 
प्रामष्यक है 1 

१० छि पाक मर्तो के सम्बन्थ मु मनुप्य उष्म प्राजा का पालन करे 
ठेसी कोई मानवी एता षहो हो स्वी । 

(१ कि बिज्ञान प्रोर पत्वं सद्गण पीर मु भे महान्‌ शम्य 8 जिनकी 
मोर मानी मनस्य के रवप प्रौर उमये ऊर्णा भौ समु होना 
श्ाहिए्‌ । 

धस संभ प्रषिप्ट हर सदस्य ईस्वरोत्मच्रहोमे कादाषा करणै बाती 
प्त्ममिदषास प्रौर कट्रता शरौ षमी मोयनार्भाके बिष्ड प्रपनी मध्ये 
परदार हद उचिते उपाय प्रृटि भौर नैविष्ट सत्यक यस का प्रखार करता 
प्रपषा करतप्व समिगा । ^ 

पराषककि धर्म मु इष जिष्वास के पाषारपर पामरत ममरीषमी न्विमे 
हारा भानरिक जिञ्ञान" ढे नवीकषणा शी प्रभिष्यवारौ शी! 

प्यहं धह माता जा सष्ठा हि लामरिक बिद्वान क धिया्ठो मे प्रिव 
होने ॐ बा सभुध्य प्रहि में परपनी पैतिक स्विति के एम्बन्प परे बहुत सिनो कक 
प्र हेवा , प्रमरीक्मे श्यन्ति हारा भधुप्य की नेतिः स्थिति कषा रतना 
ही मिक भषीकरणा होमा जिना उनष्ौ भापरिष् स्थिति का । प्रोर्‌ निष्वव 
ह्वी यहं यवना ही प्मस्मङ प्रौए उतवा शे महत्बपूृणं है कि रेषा । प्रमी 
जिहातो मे नैति्ताका जिष्ठान मनुप्य केसृक के छिए दषविक प्षिष्पक 
है। निषारपकिदडारा बाप्रव हूर प्रमदीकी श्यन्ति घे परितं होकर मनुष्य 
श्रपण पठि के सारे पेिक हम्नन्धो कती पररीक्ा कमा, स्वयं प्रतौ गेरि 
पर्प के मागो की टीकरी ताप-ध्ाञ् करना प्रपनी इचि पोर प्रपते हिति 
पवुषूत पायेगा । ^ 

यद्ध्यानरेने वान्व ङि लोकनतानिक प्रान्योसन क दुखिणीगी हीत 
क्रिटामकैन भते बामपकी तैवाभौ मपभ्रतीस्यरवादीने न मञदूरनैता। षै 
परल्यभिक मप्यम-अर्गमि (बुषुप्ा) बे पौर नके छिए स्वरसत छा प्मेषा 
ष्यद्ठिवादौ बमं प्रौर स्यकिवादी प्मापार-स्मतन्हा क मरेष्च 1 पैसे पाबय 
किरोपौ एनी प्रनुदावाधिमो की षंस्या कपर षौ यो तोकवंबवादौ संपदा 





1 लम्‌ वाम भा्सपूमत पीके (स्पपष १८९४) ष्ठ १०११ । 
२ पुत्लप्‌ पाभर, ९५ एल्हयरौ स्तिटिब टट दौ सोरल देण बोतिटिषस 
प्पूषमेष्ट प्रष्ठ दो हमने स्योती्' (तपु, १७६०) पष १९२० 1 


॥ 


प्रमदीक का प्रवद काम ॥ 3 


के सा्नामिककामोे माय नहीपेतेये, ङिनदु षाप्मे परोदमिम प्रौरपेपीय 
पादरिवत-बिरोपिया टो रचनापो के एाष्-माम इन सम्व्नों फे षदस्यो शमे 
र्भनाए्‌ भीष बै । मके भविनिषि स्परे म्पूमारके जान्मलर बैम्सङ्केनट 

पदाः के पाटककार विरिएपर इणरप एष्‌ तुम्मिकम धम्‌विरोपी जायं बापिगटन, 
रोड प्रास्य ॐ गवम्‌ स्योष््न होपमिम्स भोर बूरो षो तिगाजा सकता) 
हसाषएपत को प्रासोचना करते समय भे स्पष्ट करये कि उष्टा उष्य पुष्पतः 
जामिक पत्था पौर पादपो क धन्य बिपेपाभिकारों की प्रालोभमा रमा बा) 
ठदगुमार गए बातो पे प्रमरीदी प्रदृदहा के महाकाष्य प्रपनी "ोमम्बिवर" म 
दरभरषाद दो प्रस्त यागी रैरिनि र्हं प्रा्ाणीकिस उदार बर्मका 
उषदेए स्वदम्ड मिरमापे मे दिया भाएया } गेषरठष के प्पुमारी पणव 

भादि शरौ मौ राजनीति प्रोर प्रथेनीि उव-लोकशाण्विर्‌ होमे कौ प्रपेशा एामम्त- 
मिप प्रौ रागदत-जियेषौ ही परपिकषो। जैक्ठत-युम मे जम मुर 
गैा्पो भै स्वर्ठत्र-जिणार कमी पतिम प्रौर्‌ घयठमो पर कभा कमे भ गोपि 
की होवे केवत मेता के पकप पे एमूहेको प्रपत कर सहे श्यामि इन 
संवृमो क सदस्य मङषूर पिरव पेते तदी भेष) सपाजभादकी कोम के, 
रलामी-धितेपी प्रापयोकषन भैष र मुषे भी उनमेदे बहुठकममे प्न्पि 
माप ्िया। 


प्रामिक षर्णन 


ठ्ठ दा भज अलाभे बि वे स्वतण्न-भिषारर बास्दम मे प्राङृतिष श्न 
भी परमि के ममिप्यवध ये । उनके पामि रमाह क समान ही प्रतुदा 
काल दो बमे-रपेत रजनारमद पष्ठिपौ जिय पपता प्रौदित्य प्रौर घमनी 
परिणति तिक भिङो दी प्रयि मं मिती! प्राविश देथेत घ प्राकृतिक 
निकाल ष छंश्मण सप्रद प्ररस्य छठा , श्रीर्‌ उठे निशानों का सिट पा 
धवलता जा सश्वाटै 

एक ध्यापव्‌' दकारो प्रकारके ङ्म मे प्राह्विक दनं $ सर्ब्पायी प्रारपं 
को पमरौश्यमं भयु स्यछह्पह्मे मरो दाणनिक पमाः (प्मेरिकन 
ध्निषाधिकन हातायरी) मे मिलता ह जिघक्य जस्म १७४३ ते कैरदषामाकर 
करेन बेग्जाभिन फेकलिन हैषिर एटिनहारह पौर प्भ्य कटं भैलानिकयिके 
पहोककि हुमा 1 १०६९ ने देकमिमने (दानिक हमाज म पद्या षो, 


९२ प्रमरीङ्मी पमन का शणि्ासे 


प्राषार्िममीङहो वो यज्ञे एषठशरण पर्माधठष्ठोपादङ्ि इम ष पर भिष्षास 
करट । मह पमिरिवध है फिर पएष्िदामिनी पेर्णा ङे स्थाम पर मनुष्य जाति 
कग तर पन्य सदरपौ प्रोर बुधिर्यो की प्राति का प्रपा कर्ती दैवी । किन्तु हमे 
तिष्व है कि बह पिन शमी भापेपा जव समद प्रपते ब्तमान निष्ट भियमो घे 
उमर उ्ठेगो प्रौर जिङृत मतोवेन पनी मूल स्विधि वरद्रा बाफुते\ भेरा 
जिस्म कि मनुष्य के विम मे मह परिवर्तन साईं बमं क प्रमाषह्वारा ही 
धयेगा जब घम्बरया दर्थन स्मतेन्भदा पौर धामन शारा थै परिवि॑न सानेके 
मानमि के पारे प्रमास निष्छब घमा हो जाये । › 

शरसी प्रकार उने सरस्व सेह प्रमाटिदश्एै ीनेष्टा शरीरि 
प्रमरौष्ठौ बाताबरख लामषारी प्रमार्बोघेमराहै) 

“मनूप्य शायिके क्िष्तौ मो दिस्से मं प्राणि-जीजग हनी भेष्ठ पर्वा मं 
नही, बिकनी हारिस्तान परर खंड राज्य प्रमरीका मे । एन पमी प्राषतिक 
खषटौपला के पाज जिनद्धी भर्वादधीणा बुद्धी §, बे निरन्तर स्वत्वा भ पष्ठि- 
हयी प्रपान ह पन्त रहते ह । तैतिक रालनीतिक प्रौर धारोरिक मुशमं एक 
प्रमिजकितर धत्वन्भद । पोरद्रगर यह धव होङ्ि निषच्िठि पौर प्रतिनिषि 
प्रासन प्च पौर रष्ट्रौप मद्धि छे मिप्‌ पर्वाषिक हितकर हते है तो स्ममाबठ 
वह मी स्रहोगाङ्िमे राणि-जीवतङके सिए मौ एर्वाषिक हिवकर हीते है। 
ङु पर मठ क्षल उष पम्बल्म घ निकलता गया पर्िाम कठी है, भोषमी 
मिपो परम्बन्भी पल्पो शा एक्शूषरे घ होवा & । बहुरे ष्य यह प्रमाणित 
कृष्णे है नि कातैद्िरकट से प्रबुद पौर पू राग्प मे बां गणठाणतिक स्वतर्ठा 
डेषसौ पाल सं धक्क्‌ प्रमनते लप्र रही, पृष्वी परद््पी मी प्रन्प दैख 
कौ पचैञ्चा प्राणिमीकय परथिक्ठ मात्रार्मे ई पौर परिक कात तकमा 
ता ६। 

रश्म दार्यगिक महत्थ पुस्बत शस ठष्यमे है फि मनुप्व शी उेदनीगवा 
पौर एसस्वहम मगूप्य क ज्ञातश्च भष्ठनिषिप एकवा को प्रदखित करणै 
उनहते प्रमारसाली बैशानिक प्रपाख किया । एक्स िडान्ठ स्मे बहुत 
शी ष्टौ शेद्धिनि ष्ठ पोर षक क्या कि ध्री भौर प्रास्मा पौपभि पोर 
मैिष्वा प्राहिक प्रौर एामाजिक दयम के बीभ को मोलि प्रलमाम सम्भव 
नहो । 

१ चै्यामिन्‌ रक्त, श्रो लेरथसं प्रपान पेजिमतत सद" (प्रिनादेहिया, 
१०६९९} पष्ठ ६५-६८ । 

१ श्ट, प्रष्ठ ९। 


सरा भ्रघ्याय 


राष्ट्रवाद भोर लोकतन्त्र 


ह्धिग राष्ट्वाव 


भमरीक्ी परबुडध कास मे संजवादी दर्पनश्ये दो बिजारबाराप्‌ प्रबभितबी 
दयौर प्ष्त- पृह-वुर मे उनच् कटुतापणं टकराव हमा । किन्तु पपत प्रारम्मिक्‌ 
कामे षे घषयोगौ णी । /तभिणातादी निजारणारा स्बू-म्ेड मे पनपी 
खात प्रादम्प के तेन मे रपी एवम स्पाङ्या हषं प्रौर बह कास्मिनादिपीं 
शरदलावादी म्पापारी प्रौर उच पूस्मामी शोनो मेही बिषेपठ शेोकपरिप इ । 
भूमि प्रौरष्यापार के पमिबाप्य भम शो रषठते एक बु मोर्जा प्रवान निना 
पह भंपरेज प्याषषापिकता के जिष्ड फिर रधिएी जेठिरवागिपो $ श्िसाफ़ 
धोर्‌ पर्त पे एरी सम्पतित अगो डे हिशाफ जिनके द्विवोष्ो णनी लोम 
चिरस्करणीप घमम्पतो भे श्वोकि भे बेचे हृएु वही पै । एत संषादिमो के दिमाम्‌ 
र जनहित" धामठौर पर धूम भौर बाजी मे पूगीष्ी पुरा श्म प्पामभाभो 
चा । ंञिषान्‌ कयै एमि मे प्रशिप्ट्ति म्द "सामान्य प्रतिरक्षा भीर ॒घामान्य 
कया भम प्याश्पा भे पेखी "यवाद" रीति से दते भे डटि छामाप्य कृस्पाग" 
न्म प्रपं घामा्य प्रिरलाः घरे प्रवि कृष जिरोष नही रथात षा । बास्वष 
से द भिखारक श्रलाभिपत्य (कामनमेत्प) प्य का प्रमोम पाशी स्म मं केवल 
भ्याम प्रौर समाधवा कानून प्रोर प्ववस्या क धंदे प्रप मंकरतेषे । प्राढम्म 
के प्रपनी एशावलो कै धनुतार, इ पारा को इम शतोगांम्मिवन' (दब-प्रान) 
भयाद शद सकते § । 
कूट “सधिकार-पज क भिर बारा के परमृख् प्यास्माठा बाँमठ बेपरुतन 
प्र्‌ बिनि के शोद्यत्वादी बे ! शोणारिलिपन उनको मामतौर पर श्वेकरोकिनैण 
कहत 9 पोर नैपाियनके काच मेष बारार्मो श्रौ मिक्तातेजीषेबदौ 
क्योकि घामाम्य दत्व सोए भिरेए-नौदि शोगोरमे ही एष भारा धमभिस्ठान 


रष्ट्षार प्रोर लोकत 1६ 


समह भो प्रौर षये शति घम । शिरा के भरतशयनादी स्तरे 
धपगादिपो पने कय प्रमिजाद हीं ये, कितु उनके भौ एक मिश्र अयेषा। मे 
आहे मानकर असते भे (गु विधिप्ट प्रवादो को धोक्‌ धिर्मे स्वयं चैषरछन 
भीथे) किदे भी पराणो हणो सवमामद, पतामह अङतिमे रूप 
रेस बलाया किङ शवान" कै द्ासम के उदार निरङ्प्ठा कब 
क) क्तु मे दथिटी मिमाय म्पि ठरो एपनिमेणो के शामान्य भोयो 
पित्ष्द्‌ बहार कपौ भे, पते “वेरोजिन स्वरया" भा लोकथाम्निक समार्भो" म 
शमा स्वागत सहे-ताषरिर्णौ भौर माम हैषिषत मर्थो की परह कषये षै । पह 
क्िवबन्ती चत पड़ी प्रोरप्रबपरी ह किगसिख मे श्वामान्पभन महष ( भो 
भी, ब्िमिया फ पटठटस्तगादी एके त्यागी परयके पमे शठमे हौ भरषिकि 
दे विरे म्पूप्तेयमनापी, दु धीष द्ध स्म पह रेख कर बही परप्रली ह 
किष यंदि मौर मर्दितो का प्रतिनिपिज कणे बाधा एक इल पादरक्षा 
परै कै । प्रत एषं मबदूर होकर पलास कये प्रेषय रायो की प्दुषा मर्‌ 
पविष्यषिष भौर हेमे का माये प्रपनाना पड़ा । 

शष श्यत व धरैक्येम्दर हैमिर्टन प्मपमै दरपन मे उतवाषूमं शंण-जिरोषी ध । 
बे प्रदृ-का की स्तात मी, अरम्‌ एक नमे एष्टरवडे क वम्मदशादे। 
भैफरन ने पन उक्ठिही पमरोकी बदेकडावा। माप्य रकेषावपा 
पप्य द्या कि उन $ ®गसथिरू देप (संबार निम) जिते बहे 
पौर पपू-दमेष्य कौ एषबा्री मीति पाप शेनापद़ा। किन्तु रपमै 
जिाएणारा के प्रावार पौर ल्य दिष्कुल-मिध शे । गे पपे को काम्दिमैरमिस्ट 
भहपीपकारी) शठे वे पौर गददे श्यूयाकादियो शच मि, भयते पकार 
की प्रा्ीवता फो एक षण्डे प्रमरुकयो का्पप्मकेक्प मे देते वे ) इसिह्प्ाप 
पौर रएभरीतिशच परव मी ष पर बह करते है कि एपुर-राम्ब षय स्थापना पै 
हैणिस्टम के प्राजक रष्वाद श प्राच म्पह्यदर प परंववारी-पएताम्विकि 
एनौ पर प्रप्कि पामा भी दशु उमे ममरीडी पूजीच्यद को निरषय ही 
अिप्थ्वि कर विमा! 

दैपिष्टम धपते दामे न केवत धपगे उतकट राष्टूभाद मै प्रसाजागस चै, 
जरत्‌ श्प श्परण मी पि उर्मि प्रपते विडन्त को दाएन-दिदानं $ बाप 
शदमीतिक-भर्णपा प्र मागण क्षिपा । भोदडधिक इष्टि ये पबगादिमों धरोर 
भहीतन्धवारियो पे सिया भन्तर षा, र्ते धवि पर्व हमिस्ट पौर सङ 
शपवाङ मिग बीभ पा! हैमिस्टय ङी व्रीदिर्पोके पति गोता क 
बता हुमा परिणा एठा इष सदार बा । वुषापस्पा मे उडत भ्रबुर 


गातके शंन हय पे प्रौर स्वसधवा-युढ के त्कास पूरं परकापिव सयनीक्िकि 
॥ 


६६ प्रमरीकयै दन का एरिङ्ञास 


जिमाद के उनके परमम परमास मे ये ब्य 'ाहतिक प्रभिक्यरः, 'स्वतत्ता" धारि 
कै मुपरितिश शते मिव है { किय-उारेय नं उनके ध्रति धनुनारषादी प्रिर 
नै नहु एक प्रयु विग्रह बनाम । स्नादषीय उपानि तेने के पमे रक्षि 
जने-रेनाका एक वस्वा पंगिवि कलिव एन्होतै प्रमि कौषत “वनरल 
भधिनरटन के गिक पम्यकं भे बिठा प्रौर प्रतीत हौवा किव प्रपत को 
परस्व" एष निक घमश्े ध । अम उङ्क पनुपापियो शरो धन्य दल" (मिभिटरी 
पार्टी) श्य गमा तो छह प्रषल्ा हद । इष सेनिकर बादाबरण पे हौ रष्ेभे 
भरन हामाजिष दत के पुश्य निधय प्रह सनि । न्दम प्ारवीन प्रणो षा 
प्वयय किपाधाप्रोर बे फएती-कभी हाम्छ दयुम” भौर माष्टेस्मपू शे स्वव 
के परिु रके प्रपि मिभार दैनिक भुम वे निके षै । म्डसकदु ते 
छन्ने मह पर्पपूएं भिस्वा ध्र ष्िपा भा छि वासन छी प्रकार पष्क 
पभुकूप दोना बराहिए्‌, चैये कोट सम्पण की लाप का ।”* भे पमरोकाद्े प्रुष 
शाठन हैपार करमैपे रत हो प्ये। शसंभषादी निबन्धो" मे बहा उन्हौते पैवत 
%पूमाकः एम्ब क बातिरमो शवौ पञम्षर ष्टिको पुष्ट कटने काही भ्रमास वहीं 
न्निव, ददे पंषोमे सर्वाधिक ईमानदार केतकं बेह जिन रनहोत्रे पह 
प्रमाशिव शरम का प्रपा द्विपा & कि 6बवाय प्रमरीकौ परित्वितिमौ के छपद्क 
६1 पौर वैष्िन स घा्ीय पर्णी शाद करने की किदतापूयं शेष्ामो 
धि हल पकौ षे मिपमठा स्यष्ट है । वैरिसन जे इख बात को मिन्बृतत बह धगम 
कि हमिष्टन भोर नके कर्करी द" (वेसा मखदत््यादी शते पवमन ते कहते 
बे] दारा धएाखन" पर ओर हेला रजदत््माद क भूमिष्ा मष वा बरमु वास 
ने मिरम्वर राष्ट शी बवबठी इए भागस्यङ्तार्भो के सगुष्म' अनने क एक्‌ 
धन्तभ्रषिनाणौस शप्म भा प्नोर दमे दैडिपिति नै हैमिर्टम दी पातोकला 
श््ीज्िमे शान शे उख प्रषार संबाक्मिति रैण की बेष्टाण्ररण्हैपे "वेमे 
सो्पैकेकिदडपे दोना चाहिए 1) छंविकान-पम्मे्ण के समय हौ दैमिस्टत ए 
जिस्वास हो पमा धाक केवल चगावाम्विक प्रासन" हौ ममरोश्ये शवषिमा' के 





१ हमद रवनतात्‌ पीिस्ठतौ भो पम्तण्ड प्रौर प्पे पनशौ 
जनसी प्राणि मिप, ते धै पषविह परिच्ति ने । 

२ हैलर केवर लाज द्रा तन्पादिते शै थतं रो मयेकम हरर हैमिष्टनः 
दै लाक्मयेत ङे लाम ९ अनबरी १७६२ (प्पूपाषटं १९२०३) लंड इष 
शष्ठ ११०] 

^ 


य पमरैकी रन क्य एटिषास 


भिमिव रना, संप-खण्क्र षी रपार साल को फीत करा पौर लाना 
फहु एष प्राषपिषट ध्यापाण्कि पागप्यशूठा प्रहीद हही पी प्रोर म्ह प्रापतति 
हं प्रणार प्रवत हरी षी डि षते षटोपियों का जन गदा । प्रौद्ोमिक 
भिस्तार क लिए पूजो करी एपरम्थि हमकी श्प्ठिरमे परपश धी प्रीर प्रय पह घि 
करो पौर पन्य पूथी लयाते वर्तो के हाबर्मे कन्वो ठो पौरभीप्रश्धा। 
प्भ्द महत्व भव के मितरणा शा नही, ष्ट्टेषठी दिषाश्चपा। (मिष्ट 
मह्त्‌ बिचार जिनिमखि फो प्ोत्छाष्ट्वि करे का षा । भिनिर्माण हतक षो 
मप्पएम्पों प पौर म्पू-रगमैर्ड क पन्तय में गि्ेयठः घवपरथे बे एक 
बिष्मिष्ट पपं म राष्टीप हित मान्ये प स्पोक्िवे हिति भ्पू-दपतैष्ठ  सामुभरिक 
भ्यापारिो प्रौर दस्िए फे अजान मार्य के इट" हिर्वो के बौच ( प्राविकभोर 
भौगोलिक इषि घे ) मप्यस्वता करते ये !› उता दषणाकि जिनिर्माणाके 
` ` ट त क्ते तै प्रपते प्रसिद्ध लाद, स्पीच एष णिठिप्प प्राह दौ 
प्रेरिकनं तिस्टम' ( १८१२ ) सं भी यही बात शटी ह, "पु राम्य के सोवा 
के शिली से एं व्यबश्वा के तिप्‌ षया स्वान है, एष पम्बन्वेलोरपोषोबदा 
रषि चेष्श्ले दै किष्ठ्‌ म्पू्पतेर्डषे सीति है प्रर उसी को एसे 
सर्पिष लाम होता है) प्रगरंव राशो साव सर्थाकिर पर्वतम्मति प्रोर 
हद्ता ध लप्परतार इषक्म घमर्थस कष्ता रहा वै तो गह पेभ्तिलवेनिपा है । षस 
द्मणिाप्नौ राज्य षटी प्रालोचना भ्यो ल्हौ छी बती? क्ते ६ हौ पोर 
य पंपततरुड पर चोट भयो ष्ये असी है ? म्पू-पंगलेरड एत नौति ते प्रनि्वा- 
रव सम्मिलित हप्र । १८२४ मे एके प्रतितिभि मण्डल कम बहुमत पके 
बिड घा। ल्पूंपलेरद के चये बद रस्य का केवल एक बोट शिपेयक के 
पञ त ना । उमरी लोन प्रासानी घे प्रप ज्घोयको किसी मौ नौति के 
प्रलुषटल जता सक्ते ह, बते कष्ठ निरि्त हो । इ्हूनि घमभ्ा नि पह भीति 
भिक्त हो चयौ है प्रौर सष्लारौ प्रेषां को एल्हति श्वौचछर कर श्तिपा । इष 
प्यक्स्वा क लानो ढे किकाप्त के धाप-साप इत एम्बन्ब ते भक्त लो श्रारो बदृता 
षाह । प्व ताप ्पृपतैर्ड क्म ध कम एप हन यै (एष चोटौ शमो 
पराबाच को धोक) एस ध्यवस्था ढे प त ६ । १८२४ म्‌ लारा मेरीलतैरड 
इतके विरद जा । व उततका बुपत बका मे है । ठव लुदसिपाता पक प्रपवादके 
प्रतिरि, धते भिर बा । एव ह्‌ निरपधाद एके पल तै ६। जत पावना 
अक्षिणी प्रोरब्दर्टीहै प्रोरप्रन्त से इसके िदान्ठ सारे सषवत ष्पा 
छो येये प्रौर श्र्रज एत ब्र होया कि पनम कलौ विधेष क्यों कष्या 
बया ("-( "दौ लाद पेरड स्योन प्रा हेनसै क्ते" ( म्पुया ८४४ ) 
करए २ प्रष्ठ ५०५१} 


सष्टमतव प्रौर दोय क 


साय रुष्टया हषे । परपमी पिद भिति पर रपट (समरं भन 
मेषं १७६१ ) व उक्ति भम-मिमायत धम्मन भादम-त्तिम के वकष 
रष्टय स्वर परशागू कमे का तेत प्रयास दमा । प्रमरोकी भम-प्ि र्म 
पमेषतः लावी जाये धमङ़ेठत स्मो को घरषयरी परराम मिन भिं धषी 
धागप्वक्ता हो पंक क पदर यु ्वापार होर पौर श अमर धर्मरीक्य एक 
स्वदन् विवव धच अमे { 
हमि्टम प्रर्यरी प्रौर भिी रहार प्रीरक्याषो तथा दोषो का पर्रार 
की दती वातौ एाषंवनिक परए निशी संस्वार शो “दष्टीय ध्न" ४ शठो 
केष एक पाष दही रष्वे जे) प्रपते सिवो परे स्वयं दि पकार ममल 
करते वै, पसा एक ठवाहुरट यह ई कि जिन समो दे भरपनी परतिद पिं 
करैपापकररैबे न्दौ धिनो ( दे परसय प्रब्त्ते के साम्‌ ) "उपपोपी निनिमोर्णो 
के प्यू-भरी हमामः { धू-गरसी घोसायदै छर पूजय वैगृके्वतं ) श पमन 
भीकरष्छैये। 
एय हंस्थाका प्रधिकादपत म्यू-भरप्ी निदात-मरध्ल पनि विरोधि भी 

प्रापो के मबगूद प्राप्त किमा भ्या मिष्टेन भाहि पह शूस्वामिौप्रौर 
पिनि के र्वो के पिए एना ६ । छार्जनिक श्ण शौ हेमिव्टल को मब 
एष तमी उपपौमिहा प्रप्र हे पमौ । पक एमाय $ षस्ति छरीरे कय बही एष 

भाष्यम्‌ रशा पडाधा पौरष प्रमद धाेममिक ऋण फिर राष्टीप वेषे 

श्तौ मे ्पापाणा सद्वाषा ) हमिष्टवमे काकि ठांजनिक कन्वो 
इ बटमिष परषयोप ह सनका बाजार मृश्प बदेवा पौर ए प्रकार एम्ब 

भमा पोर भरता दोनो शो टी एसे हाम होजा, जिषे जिबररणा पतिक ्ेदेणी 
एग के पोत्साहन हे तिए एक गेपमच्पखं रचन कटा गपा था ॥**¶ 





१ भमरीकी 'तीपाषर दय" के श्िधार षौ पतयत मेर्णा हैमिस्ट्न शतो 
कव्व लिष्ट कौ दुस्त श्राजटलादम्य प्रोह पमेस्किनि पोतिटिषटल एषेतोगौ) 
८ १८२७ } तै पिष पौ । तिष्ट भर्मन जोफेरिन { सीमाकरतंप ) के पूक्य 
सरेलाह्ञोपे प्रीप्पूरोपङे पुजार प्रपाक हे मिमते 9 ते प । रेस 
पििमम पुपर स्वद्‌, भ तेरम्‌ ररर दमिरून' ( प्प-हैवेत २२१६ ) प्रष्ठ 
१४९ १४१ प्रर न्धि होपङिन्ति पूनिभिरो, स्टडीज इण हिस्टोरिकल्‌ पेण्ड 
(५ खदर--११ ( १८२० ) इष्ट ४६-६१, ५८१८२ 

र्‌ साद टणवैन मनोर भरतेफ श्येन हत शरतेषने एड 


दमिस्ट नेश्म येस्' दयेषम्बिपा पूवद स्मार्ट, भीकः १५, ( सा, 
१६१८ ), शष्ठ ६१-९१। 


७५ पमरीशवै द्य शा एकि 


हैमिल्टन एद्ि-राजनीति के सन्धम मे सोच ण्डे मे प्रौर प्रपनी "एक महन 
पमरीक्ी स्मवस्पा' $ तिए्‌ उण्हुति एष वेस एायनीतिक-गर्णएास्थ भिस्पिव किया । 
यह ने केस नके निजी षटू धै उन्म जिमिरमर्ण पर रपट प्रर एाषमनिक 
उर सम्बन्वी रपर्टो (रिपोदसं मोत पम्िक षटमट) पे, बस्कि एगके शंकया 
मि्बर्भोः से भरौ ्सच्न है! बे पठने स्पप्टबच्छा होने का पाइह त ७एते धमर मे 
न्यया राम्य क तोयो ( पर्प प्रमागखाघी लोग) को सम्बोभित नकप 
होते ) पप्र हप्तवर्म मी उक द्वारा “रष्टरीव षम्य क छाष्पूं पपोष, 
"रष्टरीप सक्ति कौ भारार्मो" प्रौर 'ममरोद घामराम्प कय तलतुयठनः की कर्वे 
म्भन्प मे उनके ह्पोगी षक यैडिहन को श्रतुर प्ययं हेग ष़ी। छ 
भिरे हुए पणम तेश्च कोएक घा रखकर हम दमिष्टन कदएनकी 
पाहणिष्ता पौर प्राबुगिक्ता दोनों कौ प्ररप्ठिति कर प्ष्ते है । 

शमा पणव भ्यबहार मे एमक्वो घे म डर रहे ¢ भया षस्तव 
पनर राणतश्त बोरनोष्ाही प्रणान भनुर््यो यण बहौ हेवा? क्या व्यापार 
मै पब तक मुद के लम्यों को भरले केपतिवा पौरङुष मौक्िमाहै?क्माका 
का मोह सकि पा मके मोड़ ध्मान हौ अवर्दस्वत भोर पप्मपौीत म्यी) 
अवधि स्पापार शरौ प्यस्य र्ट मे प्रचक्िय हृं है क्या स्बापाप्कि ष्मो पर 
पापारिव पु ठभ ही षौ हए है भिरे परे पूनि भा स्वामिति के शोषय 
देधे 7 भया प्पापार की भाजा नै बहुतेरे माम्य हूमि पौर स्वामित्व 
धोोषौ परश तया बङा की रिम है? इन प्रष्नो क उत्तर इम पुपष 
णे खोजें मनुष्य के म का मिरेखत करये मे जिषे ररा हसी होने की घम्माषना 
हवये कम होरी ३ । 

“पा मव समम तदीष नि हम स्वणं-मूभ $ भमपूो स्वप्न भर्गे रौर 
प्रपते रादतीतिक भ्यवहार का निर्वपल करै के ए एस प्पाबहमरिषच्छिको 
प्पलाये छि पृप्मौ के प्रस्व बासि्यौ की माति हैम शोग म्यणं णण # सृशपूर्खं 
जञाननाच्यष्ठ प्रणी बत पररह} 

“हमारी स्वि भस्यक्कि शामपुर है। पंवमे पापक पुम एकर 
हव पाषा कर स्क मसौ हम भपमरीका म बूरोेप के माम्य-निरायष 
बत भाते पौर बरती के दस पाये पूरोपौय प्रतिवोनिचापो का ष्दुलम प्रपते 
हि के सनुषा बशल लक्षे । 

“षष रष्टमेप रकार क भन्तर्पेत शामाप्य दिह पे लमौ ह शेषश 
पाहि पक्ठि प्नौर प्रसादन पूरोपौय व्याकरे छपोजमो को प्रषफल गना 
ने । घणसता भ्पाबहार्कि हौ नमे के करस द स्मिदि पं देते एपोजौं 
क्न ण्य पौ पवाहो बापैया। ठड ैतिक पौर पथिक प्राबस्यषता शण्डिपि 


७२ पमरष दयेन श हतिष्ष 


कै मनम धान केप्रविस्नेह प्रादरप्रौर मदा रत्पनक्एमैमे ्य्ायोय 
परम्म कौ भी परिप्वियि से पभि$ होता है । समाज को जदो वामा प म्यत्‌ 
वेल ध्वमन पूरी वणं बिच्िष्ट सरकारों के माष्वमधे हौ फैदता है पौर पमाष 
के पर्प धमी श्राणा धे स्ववस यह उनहुं पपे सागरिको प्रदेया निष्वमातमर 
मभरुल पदान क्रश्गाक्िबे इमा पूवः षषी पिमे समस रटंवी प्रौ 
बहुधा उसष्मे वराक प्रकिन्धी भी बन गार्दणी । 

“शूषरै मोदं रष्टय सरकार के शयय॑कलाप मामरिष-पमृह षौ तरते के 
षठामने म प्रसपश्च षप पे प्राये भोर उवे होने बले धामो को मुख्य 
षटोरिमि चोय हठी धमम्छो प्रर उनी प्रार प्यान रेषे । प्रपिक सामान्य हिषे षे 
कस्बम्बिव होने ङ शरणा अनवा श साषनापों मे स्यान पते श्ये सन्मागमा खनके 
स्म हामी । पौर उसो धनुपा मे रपि श्रा प्रस्पस्टं माब भौर प्राचि 
कमे घण्लिमि सावना जातौ कौ धम्माबना मी कमं होगी | 

"बर्तमान मक्षसंपकी रजताकाबद़ाप्रौर मसि दोप बिभि-निर्माणकै 
सिद्धान्त गैश्च जिन णणिमोंसे मिमषटरराग्य बने है, उते मिषप्रौर 
भिपरोत्त राशय पा घरपर उपर्मे पपने घप्र पा पम्मि्िव स्पर्मे पराव 
शेतीहै। 

शर्त॑मान संकी कमगोरिमों यं ष्य भावक कै हाव है मिष्य कपौ 
सीधे जाता ट स्वीहधि नी भिमी । एषषा प्रावार केवल मिमिच्च विषान-मराणो 
कौ हमि £, जिते पपली घणि श्ये वैता फ पम्मन्व मे षये नहुषा पेषीरा 
चासो का पामन शरणा पदता है पौर कृष मामो मे शने निषेमक निरस्त 
ऋरतै करे भवरदप्व सिदधाष्ठ शो जन्म विवाई। भमरीद्मी पाम्नाम्यका गठन 
भन-पमयि के ठो पावर पर होता बाहवे । रणष्प्रौप एषि शै पमी भारप्‌ 
घाद भैष पत्ता क एसी शुद्ध धौर प्रादि ज्ञो ए प्रवाहित होती चाहिए । 

इर पद्मरके पौवप्रब्थो मे कु प्राम एत्य गा मूल सिवान होते 
है भिनपरगादके सारे तष प्राषारिवि शेते है! स्मे एक धरान्परिष् पमार 
होला, भोशारे भिषार भोर ेमोयन के षठते प्राा है मोर्‌ निमापक्ी 
स्ववि अक प्रात येतौ है । अहो ददक्य रेखा पमाब गौ पद्हा बहु सड 
पीच्रैयाशो प्हण-शणियो य कोषं गोपा प्रष्यषस्वा होती है, वाको सबल 
दिह या मतगेव यः पूर षशेताै। रेशामरित्रशीये उश््यांतशोरिश्े 
हनि प्दूणौ पपन प्र्पोघचिवक़ा शेठाै। दो षर रेपे कोरस्वाननी 
भेर पष्य रोर सार शमषैस एकदूखरे के बराबर हीरे ।' गौपिप्रस पौर 
राजतीति कवे प्रत्य उच्ां पौ इसीषकोटि श्यै हैकिश्यरणके नाशये 
कर्व नौ हो घला । छि धावत को एष्य ष परगुपव रमे होना बहे । किहर 


राप्ट्थाद पोर दोक्दस ७१ 


सि प्रपतने उरेष्य फे प्रयदत होनी बि । किजिष पचि षा ष्य देये 
शक्य पठि द्रनाहो जिति पीमिठगकिपाषापष्ठा हो, स्ते पीमिच कही 
कर्मा बाह्य । 

श्वो निष्य च्छे धौ भारे है उनो पां उपणम्ि $ भिर धोर्‌ भित कर्मो 
फे तिप्‌, बह भिम्पेदार है उप ठ का्यर्विकरमे केकि, हर 
पस्थ प्रथि पन यँ होनो ाहिवै पौर जसहि द टवा अनमादना का प्पान 
गजै डे प्रधिरि एय पर प्रोर कर मियन्वरा नई होना बाहवे । 

“एष्ट सुगला का ध्यान रत प्रर पिरेसी या पान्वरिकि दिके विष्य 
शाभसमिष पाभ्वि षे सुरत्तिय एषते के शम्यो मृ रेदौ णन-सति प्रौ पेषे 
शठ रौ एम्माषना मिहि है, जितस्य कोर सीमा बषना सम्मष गहीह) प्रत 
सम्बग्धिह व्ययस्य कमी पश्यो भी र्ट्‌ षौ भामस्यकतापो नोर हमाजषे 
प्रषापर्नो क प्रषिरिछ पौर कोरे सोमा मदी होनी पाए । 

“तष्टरीम प्राग्मकता्ो शवे पति क छापन बरुटामे हा प्रनिमायं माप्यम 
राजस्व है \ पष उम धाभस्यक्ताो की पूति के एे सम्वन्धि ध्यमस्पा म 
शावस्य प्रात कले री पूरी एच्छि मी एम्मििप् होनौ भादिए ) 

“म को एभित ही र्नोपिष्ठ दषे छ पम-सिद्वान्त मामा भावाद । पही 
उषे जीषन प्रौर कि को कायम रलवाहै मोर एसे भपतै सर्षाधिक्‌ धानष्मक 
का्मोको पूरकएतै फ पोषे बनवा है) पवः बह धक समाजे प्रापम्‌ 
स प्मषुमति रे बह ठक्‌ धमकी पर्पाठ भौर निवि प्रापि शो पृषं णि 
कौ हर समिधान का एक्‌ प्परिषियं प्र॑प सामना भाहि 1 

्रामदौर पर खष्टर धिक्‌ अमागारित प्रकार के ध्सर्वो के धर्पत मी 
पप जिय प्ववत्वा का प्राय कसी एकम्वसठिको याकू स्च्यमे 
मिलकर बते मग्ग शे पौपदेते दै, खा एषम एराभान्‌ षे मोयतार्मो पर 
भिर करके ददु वैपारष्रते है परौरभादरे र्हं एमा पा जिषे मद्ढसकी 
पादएक्मनूतकास्पदेगिपाषवाहे) 

र भम जिह प्रौर युद एभनेता रायस्म के उदिड कीं का भि 
शरणे अमत कणे के सर्वामि पोम्य सपे जतै है! णदानके उरस्य केशि 
स्थानीम परिस्मिधियो के मि प्रद्रु हाने ष्टी प्रावष्यका द, एयर स्पष्ट 
षय उपयु बरा से पितवा है 1 

“एक भिभार है, जिते सम्प दयपमाद मो बौ दै कि पष 
ऋवंश्रप्डी पएयान्वह पाचन के ष्णि के पवि दूते ह 1 मणादास्िक पानके 
पदु सम्ेक कम षि कम यह भाया करये कि याहं पिषाए निएदाए ह, भवनि 
स्म॑ पपने दिह श निषम्मा दरे मिता गे एके सत्य शो स्वीकार महौ 


# प्रमरौकौ व्यत का स्थित 


ध ॥ ? भरे सम श परिया रमै कायक्मरिषी शी पकि एक प्ल 
॥ 

“ङदतोग दरे ह भो घमान मा निभान-मरग्द ॐ ठाकापिषठ महाम प्रति 
गाएतापूनं मानिम्म्ठा को ही शंकरी का घमेभेषठ रा मानवै 8 । किन्तु, 
कवासम की स्वापना किनि ररेप्यो $ लिए शैरो ह भौर बे पाष एकन क्या 
है, जिगके धा सा््निक पुखश्य प्रभिवृदि हो घवो है, षष सम्बन्पमे पष 
म्प्य के बिजार भिस्छुत ऋष्वे ६ । पराता सिडाष्ठि की यहमाग होप 
है कि घमाभे की भुभिभारित भागना उक भ्यबह्मर श्य स्मास करे, जिह बह 
प्रप कापा का प्रबण्ष पता है । लेकिन पह चवाप्यक नही किव मषिमेके 
इर भराकप्मिक्‌ भोकेको, पा भम-पाषारख क हितो से ओ करणे के जिए जनके 
पर्वपर्ठो का एकसानि बाते प्यकं श बाधो धे उततर इर परस्वापौ पामा भौ 
जिला पर्थ शुप्ाप स्वीकार करर ले । पह कवन उक है ङि सर्गो भा 'मभिप्राम" 
घामास्पत' णनि कोवा ६) सह बाठ बहुषा हषी गलतियों पर पौ ताय 
कैरी १ । दनु एगकी सदुदि धपे स्य प्रदसक श तिरस्कार केम भौ यग 
पा्चएड करै कि जनहित श्रौ पमिवृदिकि (सावनो फे एम्बण्पर्म हेमेपा धनका 
सिमी शेता है । मे धदुमग धै जागरो ङि पे कमौ.कमी कठठी के है । 
भाक ए बात क ह कि परणीनिपो पौर चाप्यं की भार्लो ते, महताकलो 
शोषी पौर समाज-निोषौ लोगो के कन्यते पोर दये लोगो चलसि चितं 
अभता का इतना भिष्षास प्रष्ठ है जिसे बे भोय वदीषै, भर्वषा बो रसे 
मोम्य बै भिमा उस भिषा टो प्राप रमा भाङ्पे दै, तिए्तर पिरे णमे पर 
न्ीज एतती कम शृशरियां करते ह । चष दते प्रबषर प्राये ढि धगहितिमौर 
जन-परवृत्ति मे पिव हो,ठोज् हितो तरत किए अधवा है निन 
ब्यक्िजों को निम क्धिया है इनका गह क्म्य है कि पत्मापी प्रम का वे सामना 
करे ताकि शोर को भ्रभिक ठरडे दिमत्र हे थोर णन्वि से ककार शरवे कम मय 
प्रर प्रकर मिते; देप र्डर्णद्िणा पकते है चिन्मे इस प्रष्पषए के 
व्यवहारे भोगो क्यो स्ववं सपनी ग्रषतिर्यो के पलक बराक परिार्मो से 
बजाया प्नौर गदी ह्तश्ता के स्वाषी प्मारण देते म्यच को परबन्‌ भवि 
जिते लोगों दी मत्रषज्वा पम हरा कटाकर सी एल देषा कए का पाहत 

प्रौर्‌ बङ्ध्पगना। " 

1 ट सस्रुर हैनिस्य्न जोन णे पौर ेम्त तैम्तित दौ करेरणिष्ट, 
दरम एष्व्‌ भिटेल दाशा सम्पादित (ष सी भात बर्पीय र्तस्कषय, भाधिपटन 
ङी पीर १९१५) पष्ठ २० २९ १९११, ६८ १९, १८८.२११ 

१०४ नट, १४०४१, १, १९०५२८२ १८ २१८ ५१४, भद्‌ 


एष्टृवाद भौर शोकयव ५ 


ष्टौ शपा के द ठि का स्यागहारिक निके पड है किम्वा 
की समस्याएं स्वरायय प्ाप्नो को पपी वा दही है, जगि एषटूीप दरकमर्‌ 
कम प्रयु सदेष्म भोर्यौ ह 'ठामान् हितो" री एमिवृदि हेमा बरविए, परे हिव 
मिन मास्य बन स्वये समम भौ पठे भोरश्छ शरण निषु प्गुमवी 
ष्यपि डौ चसौपमा दसू) एम परन्‌ उन्ही हेषा 1 
एजनोपिकि प्रवपे सिडन्योको दतररवा दे एय करके राष्टीय वनम 
मृदि रेमे । धरमरीषी प्रतण्वं ये भिजिभवा पोर सन्वठः पारम-निमरता शाषै 
श्र हैमिष्टत का करवम रप्म्यरापवे बाणिभ्यशदर के सिदान्तो पर प्रात्राणि 
म्भा प्रीर गष भह मुष्यठ रकस्पडाद पर निमेरया। हैषिर्यम ते 
प्ासहीर पर्‌ केः नि छाने प्न्धर्टग्य भ्यापार ढी गावा हटाकर पौर धुरक 
समामे कै बाय उपदान रेषठर उथोय को सर्षोदय रीति ये "ष्च कर सक्याहै) 
कण्व दं प्रह्षतः सन्दुिठ र्मा के षिठान्ठ पर मपेषा भा! एभित 
प्रयास केद्यप दपा नपि जा धष््ठाहै कि निभि कष्ड-हिव पोर वर्यं एक 
पूरे की पभिप्यक्षयापो शै पूति करं । परर छिदटाण् पि भष धनुगदने 
प्राणाद्‌ पर्‌ हमिस्ट भे चा कि राष्ट्‌ श्ये पादस्पकरताएे इपर रटे प्रमाषनो 
फे बरादनागी षा सक्ती 
लोकम पौर लोर्योको फुवलातै कि तरी पति दहैमिष्टम केषु 
तिरस्कर $ स्वामाविक परिणाम हुए । भम उरि पीतिम परस्यषिक भतोकपरिव 
ह षो तो बािषटन के राजनीति बे उ निषा बहर स्यि प्रो प्रप 
पपि जौधन का रोव काञ्च { १०६५. र८०्द } चहल पदप प्रब्ाप्रलेषठर एक 
लिराप्र राजनीषिजिः पोर एष प्रविष्दिकि प्रास्पाहीन दानिक केष्पभि 
पाए 1 
पोष की कन्ति के समय हैमिस्टल वैसे घनुारभारियो छ घामाप्यव, मूरोप 
र विष्वाप्तप्ष्ट होभवाभा भरर कथिनादं भरे ध्मुमबहे एष्डोने सीधा 
शुतोपोय प्रत्किपधा" के लाप पम्यश्व शना करि है 1 बाटकदी मै प्पे व्यग्र 
भं प्निषार्यव्रनाप्िभा शि पमरीच्यदे पपे प्सो को पर पान्चरिषि 
ध्वम पौर करिष्यन धोर्‌ भद्रथाए्‌ । १८०५ के वाहमृतेप भे तियष 
घतौषलोरये षो पौर ला धवरोका मे एक रोमानी रष्टूगाद कैरवा । पमषष 
शम्ब्वी धो एनान बाण्णाद्‌ यूप स बहुत समं ए भरित च एनपर्‌ 
पलरोकी लोन परौ भिच्ाघ कए शपे ! एक तान्ते पदे वपय बेन 
धपती अष्रीद्यभ्‌ पमा योर कलापो सो प्रतिष्ठति कएने ष्रो ्म्धरा्ना इर 


शमिषादेः ( ब्य्‌ पानदी प्र्यरः भा व्वारिप पाटेस टेम मनि एष्‌ 
पमेप्कि ) अ निष्ाबा-- 


७४ प्रमपीकौ शयन का इतिषह्मस 


कर सके । पश्ये छत श्यो परिमाका म करपारिणी ऋ चि एक प्रयु 
भ्॑यहै। 

“क्च तोम दे ह जो उमाय मा मिपान-मरस्त के तातासिक बहावदेप्रवि 
गायतापुलै पानम्यठा षो हो कापृकारिणो % समेमेष्ठ पुणा मानठे ह । बिन्दु, 
शास्त शी स्वापन डिति रर्यो के भिएक्षेवो है पौर बे साकन तद्म श्या 
है, जितकं धरा साभेवमिष पुष कमो प्रमिवृदि हो षकती ह, इपर सम्बन्ध मं देष 
भ्पफियों के भिमार विष्कुद कश्च है । गएातान्िक पिदधाति को बह मग होती 
कि प्माजि की पुषिचारित माढना उनके मगहर का प्यादम करे, चिन ग 
प्रपने कयौ का प्रज्व घोपता है । केकिनि पह समस्पष्ट भदौ किव ध्रदेणढे 
र पाषस्मिके ऊकिको बा जन-सषारराके हिरतो ब्रोहकरनेके चिप ठनमे 
पूर्णमक्षो का उकसाने भश्च म्मच्िमों की भासो मे उत्म्र हर पस्वायी माषना शे 
भिता धे भूपा स्वीकार कषर्‌ तं! पह एवन नित ¢ फि धोमों का श्रमिपरायः 
छामाग्मततः भतहिव होता है । यह बाठ बुषा नष्टौ गप्ततिर्पो पर भी चामर 
क्ती ह । क्तु उनकी स्फुट पपे ख प्रणसष का धिरस्कार करेपी भो पह 
पाश्रड कर कि जनहित कौ पपिवृष्धिषे 'सावर्गो" के घम्डन्पमे हमेषा प्षका 
गिविक सटी होता है । बे भगुमन छे भावे है छि मे कभी-कभी परलती के § । 
प्राष्य एस षद काह फि परलीमिर्यो प्रर भप्चूषो भी भवो ते मलाभ 
शोमी भौर धमाज-भिपेषौ भोयो के फर्योसे भोर देखे सोयो के पसप मिन 
भतताक्ष ध्वना िष्वाप पात ह जिषकरे बे पोग्य शी है धनषा भो ण्तमे 
मोस्प जनै जिमा एस भिस्वा को पराप्त शला भाषते है, निष्वेर भिरे शतै ¶१र 
पमी वै इतती कम पतिका करते है । जव दैते धथसर पार्ये कि बनर्िवभौर 
अल-पृतति प भिचा हो तोम द्वितो ठरयल केषिए्‌ बनता भैषि 
ग्य को नियुक्त दिवा है सनका यहे ¶ृतभ्य तै कि सत्वाय प्रप का वै धामा 
करे ताकि लोगो को पथिक ठट गिमिप्र ठे मोरन्ति ति विजार करै को प्यम 
प्रर धवपर पिले । दषे च्ददृष्यश्विथा तषे कै जिनर्मे इव प्रकार के 
ध्यवहारने भौन ठो स्मयं धपती एृलतिर्वो के भत्पिक बात्तदः परिणामाप्र 
जजाप मौर ऽनकमे शठा क स्वायी स्मारक देते स्मौ कयो प्रदान भियै 
जिममे लोर्नो की भ्रस्ता भा जता खटकर मौ ठल़ी सेवा कणे का साहस 

प्यर्‌ बद््यतया। › 

"` द सरमः ठर हैभिक्टत, बने पौर्त पैरितिन, शरी फेोरतिस्स्‌, 

दरवत एक्‌ तिरेह द्वा लप्पादित (एष तौ कापर द्वौ त्र, भारित 
डर कौ» १९१०) प्रष्ठ १० ११९ ६९६६, २८ ६९, १,२१०.११ 

१० ८९, (ण्‌ एता ६० (तत, दहत धर पयर 


॥; 


सावार भौर लोत्‌ र 


सृष्टम पाण ॐ एए सिद्द क प्पाबहारक निचय भह हिम्पाम 
र एमत्य ्वानीय पानो को दती बा सकट) है भनि रष्टरीय एगक्मर 
क परभुश रपय घोयो के ्वामाम्य हितः की पमिवृि होना ब्व, पेते हिर 
मि सामा बत समं ममः महो पते घोर एष शमर निषु भरवुमो 
पये $ एनो मे सोपमा वस्यो! सनद सायन उनी क होमा जो 
रगरोधष पपरक पिडान्ताडो कलर्वाहे छापर कफे पष्टीप घन मे 
बधि कय । पमरोकी प्रदे त जिमि पीर प्रष्ठः प्रा -निरम॑र्ठा सकि 
क हमिस्टन कय ऋयकम परस्यरायह बारिज्पवाद ढे सिष्ठो पर पापात 
सषा पौर भह बह मुष्मदः एरएगुकादपर निर्ण गा हैषिल्यन ने 
हासतीर पर षठा कि पान घन्तरपज्च ध्यापार्‌ को बाधाप्‌ हटाकर पौर्‌ पुरक 
लनाम ॐ भयान धष्दान्‌ द्र ठोण शो वर्योधम पवि से भयु षर ष्वा है) 
किन्तु फ पृषयः परमूिठं सार के पदान्त पर मणेसा धा! पचित 
प्रावः के एयाय किया जा धक्ता टै कि मिति वष्टहिवि पोरभपं एक 
शूषे भौ पाष्पकतप्रो षौ पूदि क्ट; पौर पिटान्व ठे प्रभिक पनुममके 
पाषा पर ईमिष्टन जे मा कि राष्ट्‌ दी भादप्वयषतापं हमेषा एष्‌ के प्रमारो 
कै दएदर भाती चा तक्तीै। 
सोकमत, पौर शोभी को कुरलागे के ठरो के प्रि दमिस्टन ढे ले 
तिरस्कर ङ स्वामाषिक परिलाप हए } षड ठम सीतिमौ प्रपपिक पसीकप्रिय 
षे कीटो पसितिटत्‌ क राजमीरिषो मे उन निकास बहर म्म प्रौ पपे 
परह्य भीषन कय देय काप { १७६५ १८०८ } उद्ेने पर छे प्रदाण पर एक 
शिण्य रमरि पौर एर परदिस्मकिद्ि मस्वाटीव पलक केस्पमे 
षुमारा। 
प भ शधि के प्य दैनिरट चै धनुरारवदिे क्र एामान्यय पूरोप 
य तिप्नादकष्ट ह यया षा पीर भदन मर पुमे पषमे सीदामि 
पेपी परतथियता' के घा सम्बा्व रगा कटिमि ६1 भष्यनी भै ते व्यवहार 
वै तरमिप बशर यः भि पमी प्रपत अयानो चे प्रोर पा्दारक 
हिप पौर शविषम णे भ्रोर्‌ क्क्‌) १८१५ ढे बाद यूशैष छ िण 
पमी स्तेयो पोर छ भभरौका चं दढ समानो पष्टृमाद क्षेमा ! मददरा 
शग्मन्डी धो रेमानी षारडद्‌ बृरोप सह्य पि हं प्रभव भ रन प्र 
पोषे तोद विप्मार कषम चदे! एक ताम्दौ 
पसन वषर च वि चोर का 0 
किम्‌ ( षग को प्रिष्ठित करभे कौ समप्ना पर्‌ 


धानद्यै प्रकट 
प) पडा प पाड प्ति पटेन दिष्ट लूम म 


५१ प्रमरी्ी बसन म इता 


दोधि के पाम, सुषौ छे मे 
जहा ्रहति निरणद करती प्रोर 
पष्एख शासन शरे है 


एल प्न्य मुप पापा जवैगा 


दते मही बवे पृपेप प्रपनौ स्मे स्तन्न करवा द 


“छाप्रास्पय शा मागं परिजिम ङी पोर बढता ह 

पमरबमनारर्भशहो चुके 

पजि पंक विन के घाव नाटक को समाप्त करणा 

समप की प्रन्हिम प्ता पर्प है । 

शोएप मार्तो मे मूलत यष चित्र पपने “जार बुमाएं के माष्ण' (पे प्राप 
बुला भोरेजन (९७८७) मे प्रस्तुतं हिया मोर उपे प्रपती हभत मथा दने 
आप शूरे के बिप्रेपापिकार बच भगो षठो ससाहः (देशवाषस दु दी परिमिन्नेग 
प्रां एन पूरोप १४९२) मे प्रौर वृक रस्य के पपे घहनमरिर्भे को 
सम्बोषन' (वैरिष १०७९९) मे शोहरापा भौर ध्रपने है शो भमाषवी नीषि का 
भन्धरतम पठन णो छंसार बे प्रभी चक देखा ई कदा । वहति दामाकपाकि 
पमरीक्ा मुः भितिक प्कि पौधष्ठ पठि छ स्वात नै एडी § भौर 
प्रमसेष्ठ प्रवा पूरोपश्रो स्वामी खान्ति षये स्मापताक्षा माग विद्धा षक 
जिस्म महात्‌ प्राषष्यकठा का पनुमम परज्ेशोतकएतेहै भौर निमिवादस्पमे 
ग़ प्रमाणिष र सष्ठ ह कि गिर दटस्क्ता घप्र तटस्क्वा ते श्पादा धण्छी 
है । रख भाषा श्रा सर्वापि प्रारित कप माड वेग्वटर कौ ^स्येलर'^ शी पमि 
है, जि द्भिगवार के भराए-बकश्य स्मम्‌ पोिपौ कक पाय बमा प्रौर पष्क 
क्ख की ष्पी 1 

शवूरष मूर्ता प्रष्टाचार पौर पत्पाचार मं बरदाहो पवाद) उपदेपर्मे 
कपूत मिष्ट है भचार एश्चू्रत ह, ठहिप्य का हास होष्डाहै पौर मानम 
स्वभाव परिव हो पयाहै। प्रमरीश्ै महिमा प्रमा ऋ मँ प्रुकूल तमय 
पर प्मौर्‌ प्रप॑षमौय परिस्मितिपो म पाएम्महो षौ ६ । सारे षार श पुय 
हमा पाडोँङकेषएठापतै है । किलयु जिता मिषेशके पुरे घे धासन पराजारप्रोर 
साहित्य इथि के सिद्ा्टो को एर रके उष पूमि पर प्रमदा मेँ हेमातै 
पनी प्यवस्था को निमित के का प्रवा पौप्रहौ हमे तस्माच दितादैपाकि 

ए बेप्तः स्थता ए परेमध्कित ए्यैद्‌प्ल पञ दो एपतीप् लेङ्जेज्‌ 
का पडला माणो हिग्जे ढे सप्बन्य दहै 1- पुर 


पष्टषाद घोर ोकठत 9 


शषीगता के पिए हए कवम्जो पर कपी करं टिष्यर मोर ध्वानवार पमार मह 
ष्दीष्ीथा पकती 1” 

कमरे (परमरोकी दसद) प्रोए निघ्व को पेसीदेम्ट मुगरो का परसिद पेष 
(रलो दह स्वापन पर प्रावार या जि "हमा म्बबस्थाः भरोप की प्रमि 
पौ, थोर एड कार शुनी एुभिया श परियों रर उनकी म्पवस्वाः शो 
श भोलायं मे कहते काशो पौ प्या मातो एान्वि मौर पूुरशाःकेषिप्‌ 
इतरलक होया । शख प्रकार पमरष ्बबस्ा नयी दुिया का प्री बम 
दौ । राजी बटला-ऋय प्रमदीकी निस्ठार ढे तेष प दिफी प्रमरीकयषो 
शौ सम्मिधिचि कते के षष्ठया! प्रस हैमिर्ट्न क 'मह्रोपीव' इष्टिकम 
को पौर बिष्टार दकए हि षछप्रोने श्ये पोल एस्यन्वौ एक तिपा्ठ 
पोना बलाया 1 पूरोप पे परशलाम कमे गीठि पोर नधि साम्य" क निरेयात्मक 
पाषा, षन्‌ को ह एडणदं एदरेट पै विर्फाहिव द्विया । "पकं सूनिमि्ठ पए 
प्रभापिपत्य' क प्रति बके उत्हाहने जोम भरमनीते प्रपतने पापच्येये रमी 
अवापि को पौर बर्‌ रिवा। 

५प्रमरीशये नषि श्य धष सिह वतिय पोर हमरे देह ध मौमोतिष 
बिधेपतार्भो क भपिरि्छः हमारी प्यगत्माणी कम्यूणा मावमाहमे ते भावीहै, 
शपतेष ष्ठे पलमाच' महै । देपमे हंबनके बाद भिये हमरे प्रपतिष्व की 
प्रतिप चं के अजाम्‌ हमा प्रष्ठितव हौ करना भद्धवि पन्प सयीरेपोष्ठ 
परद्वमाच ह मन्‌ पिदन्त षैः निषे द्रण हय पृं शोषा है। यह्‌ हमारे 
विदद शचौ प्यागाज्‌ है, णो षती है किर बणििर्मेवो कृष पमेष्टटै प्रौर 
षार पप्य ये जो बु समदि ६, पके ददे प्रवहमति प्रदुस्पता का ममा 
पदर, प्रविपेब प्रौर स्वतन्् रही है ६ 

"पाणदी मामर्हो में तिक पणि का हये बङा द्रा बक, संपदिति प्रर 

घृ एम्ब है ! स्यच्ियव स्प ये मनुप्य भो कु गौ कर दकता दै. वेह मानी 
क्कलाप पौर मामी सुद्ध प्र एक सूनिमिच सपष् प्रदाषिपस्य के प्रभाग कौ 
दना पे कृष जो मरी दै 1 मनुष्य प्यन प्ङति सुग नैपदी है, स सम्पा, 
न्‌ लाम बस्कि एक पुन्पबर्बिव पटिदार का सदस्य ६, प्क पण्डा भद्ोी ह, 
एल स्वतत्त नामरकि ह, एक बानकार पच्छा पादमी है, वो प्रपते एमन प्रप 
लोपो पाप काम करता है 1 पट पठ है बो हमारी स्वहा ढे प्रपिक्मरपवप 
रिद्यया बषा टै! दौ पाठ दभो एमटै स्पदयर पे विष्य को सोषता चादिपु \ , 

१ एदं एष्देद, ्रान्ठ दण्ड स्पीड पय येद प्त 


(शोस्दम, १८११-१) इष्ठ ५१, ६२६ १६०१ ब्द्हा पे द्यु स् 
ह पोरदृतरा १८२६) 


७८ पमरीष्यी द्धन श्म इतिप 


य पाड स्वड्स्यता के जोयएा-पत् ठ लह चिष्धायः पयः शा ! लेकिन एकम 
महत्व प्रषिषूनगर्टोभा फिषए्य पाठको दषरेटमे चमनी पे षीच्चा तुतोद 
भादिक्टन मे गान किदन्पी धराड्न्सने बोर्टम मे पा बास्सं पैरेड ईनरसोल 
कै छविजाङेस्छिपा मे कर्कि पदयोपाठणा जोबे सब भिसकर धंसारष्मे धि 
छेपे। 

प्रघारवादो र्पक्प जो षटेदाौकैङ्यरमे प्रारम्मद्टुप्राना १८१५ 
एक केर धावष्यकता बन जया । प्रसिषष्ट यैत को प्रष्ठत पमरष भ्णत्व 
पर प्रपनी भिविषच वौति पौर शंयलिस्छान शरा कैपोल्लिमन शै पाटबन्िमोके 
दिनाधकमरी परिखाम को स्वीकार करलापड़ा प्रौर १८१५ $ मपते एतेष मे 
एक रष्टरीप पाके सदन मिभिमणिंके संरष्य भौर पङ्को तणा नहते 
निर्पाणि की पपोम करके उन्होने म्हि शो को प्रापै बको छर संनत ङ्प । 
कद्र णण्वन््रषादी होते पर मी यैरिठिन षैदवाण्तिक स्प पे इस प्रापदा पोर गीठि- 
पपिवन के लिए बहुत-कृदध तैपार द । बहुत पहतेये ही दषा पदसिटाण्तबाङि 
पद्यपि तमत ही बाप्तबिक प्रयु दै, छन्तु पान ढे कम्य का पह भी एकप्र॑प 
हिक श्रपुमचा ने संघोषत' का प्रपाख करे) भीत्‌, अमत षोमोकलौपा 
शरवद" अलाते कम चेष्टा करे । पव दैष्ििन धौर पन प्रपमे पराता शुः 
के पाष भुर पौर नल-दष्टिमों को परिप्कत प्रौर निर्वृत कलै लपे जबतष 
कि्माजकषी एण्ड रकित र्मेभौ इमौ क्प प्रु तष्ठीषहठो यी डि 
वरण पुरक प्रोर धार्वयतिक निर्माण के कर्यन्ठम क्ये प्राषष्यकतता को धछममनै 
लप । कैसाठतं प्मौर विण के शङ्कु नेतारो मै पव रष्टृषाद केक 
का्पाहम शम भदुत्व क्षिपा । दषस इ्भिप दल बा रष्टरौम॒ बरात््नवारिपों कमे 
श्रथमु् रष््रीप चरित्र प्राप्त हुमा पौर स्वगामर छहर एम्प भौर कनल रिमाषौ 
पिर्कम्प चै पुरा स्यू -हंपतै्ड के एथवाद के मिमङ़े हुए प्रजे समाप क्षो भये । 

लये हिन रष्टरौवगार के पर्वा्तम ददन्ति व्पाह्पाकार नालि मिभष्पौ 
प्रारम्तबे। छदोनि भागषूफ कर प्पमे पिताक माभ का पर्टजाप क्षिपा 
जिन्धेनि कायत को त केवल चासन्‌ कौ जितिन दशिय के बौ भरत्‌ विमि 
शट हितो के धौव चौ पापप्री रोकवाम प्रीर सश्तुलन की बीड पालाना। सके 
निपरौठ उन्न जनद्ितिष्ठो चनताडी एकता पर प्राणारित म्पायक्न पष्य 

साली पौर एाषन को जनदिति कौ धवार 'विमारमो के सषपोष केस्ममंदेडा। 

+रष्टरीय भिषारक समार्मो का मिर्मार भौर गष्य ही पमी के दिवो पारे 
र्ट हितो-क समम्ध्ेवा मौरमेष भ्टतिङकेलिएना। इष भ्वापक संव 
ह पथिको प्रौर हितो ये छम्बल्बिद प्रस्ना कै भूरी सथा मिरी एवेठता, 
इवोप पूर्भब्रह पेहे्र कयं पा भौगोिक स्विति के माध्यम ते मी एमभ्येभा 


१ प्रमरीण्ये दन्‌ का धिष 


"मतः उनकै सामे मम्मीर घमस्वा केवस जह पी मि इस रेन का भिक्ष 
परविमोगिता प्रौरस्वार्थं केध्राषार पर नकरके घामूषिक प्रापार परमके 
कर । ईमागदार्‌ ऋमर्पंशारी धपिकारी एारा यड कामंहो ष्ष्ठापा प्रगर 
श्ये एक शृखिप्रणं भौर प्ति प्रखासनिके ठेवा का समत मिते जिषे एष 
सपमे हए संमटन षो बैशानिकं चिडक्छो क प्राषार पर बबरातै की 
क्षमता हो 1 ^ 

नहिम लोयो तै निखन्देह प्रमरीकी प्वमस्मा पौर "जनदिति क स्वापनार्भो 
का ्तेमाद भूमिषष्ट भोर रप्तोबरमे प्रपने पगौ भिरे पोर संर पुलक 
शषटरीय केक भ्यवत्मा मोर पदिचमी दमा शिरी ममरीक् मे म्पापारिष मिकातं 
मे बाते प्रपन निजो पुनार्भे पर परशा शचनेकेतिएक्षिपा। हेनरी के 
केहार्पो मेल प्रोर एके िडान्त निच्ेपत घीमितव हो षये! क्ैलारतक्ेभीः 
श्रेय के बाद प्रपते राप्टृषाद पर पष्ठताभा हमा घोर ङ्धिग धोगो को बुतीती 
येते हुए षण्डोनि क्य कि "पासूर्िक श्प मे पमरष अनवा बैस दसी रातीति 
शकं क परस्तित्व म प्रवह न पहले कमौ ना। कैसाठतषकाबादमे निङ्पितत 
पौर बिस्तृत “मभर्वी बहु" का पिदधम्वे प्यप्ट्तः बेफएरपत के सितो षौ 
पोर शापण भाने पर भाषापति षा पौर राजनीतिक दर्थन मे एक मोचक रे 
केक्पपेर्ये भो मास्या भिल्ली £, एके पोम्य वहीं है । निरण्प ही इसमें 
जिना प्राक भभिकाये पौर घामाजिक धनुष के पिडधात्ठ का पषम्यरागत 
खम्भ श्य प्रस्पसश्यष्टो फे पपिकारोका चदुप मर्णन दिया ध्या पा 
पोर इमे संवैधानिक सान पे धल के किमायन के प्रलाया रोकषाम पौर 
एधटुलन के रिदडान्त प्ये बेमाक्ेटिक्‌ बल शे राजनीत्िपर भीमू करके एष 
दविष्ठ का भागुनिन्करण किया दि एत प्लियारमक नवीमवाप्रौ के प्रतिरिछ 
उतके छ्य प्रौर किचार नेरदनबादौ ही बै 1२ भपती षाषस्मा कै राप्टृषाष 





१ बरश्पं ० दीय ह्व "वी पमेरिकिन क्िरिट ( न्पूपाकं १९४२} 
स उदुत, पष्ठ ११५८१५९ । 

२. "ये द्मपने को लोकतस््षादी मापते ये रेकिन उन्होने प्रथपुज कनो 
लोकटन्तर फे दिदधा्तो को स्वीकार महा ठिवा प्रौ घामान्प प्यक्ि जिस 
भिदा पौर प्रपू्ुपेय सचि का प्रतिनिपि है, भसे घफलतापूषंड संलाशना वे 
कलौ लीं सी पापे 1 

"द्षासक-यन्् पर एष ही स्वार्मय हित रा भियत्रख हो पपाबाप्रौर 
ब्‌ प्रत्यप रीधिषैः षतु हरी रण्‌ प्हू$ एरकनिहा पापकोष्रा 
्ा। उथ्की प्राह प्ामते तोकतान्विष प्रह्िपा हा एष च्कपूतहो यां 


पषट्षाद पौर बरोकठल धद 


को मस्मौकार रतै, पौर स्वानीय क्वि के पविष्राे पर पुन पाष्ह पण पे 
बे बधक स्ण्टस्म ठ शेएरनेबारी ह । कैलारन का वाहस्य किव 
राजमीषिलो मृ प्धर पमागश्यकठामो फे हिठ मे एष्टृषादो पिदा के बिन 
को सामान्य प्रगति का ए्बाषिश मादय रउदाहय्ण है 1 पावर पह डेनिपएप 
देष्पटर ष्मो मी बर्जाकररेती शाषिए्‌, श्थ्पि मे श्प मदी ने) उनका 
र्वा पम्बयास प्ारम्म दहो म्य-सतैष्डमे व्यापारी तेगार्पेवा। भव 
भे पह भौप्ा कसे पपे कि स्वदत्ता सोए पव प्मिन्छि है शो मै स्पष्टतः 
प्रती शपनिक लपे अभरेये, जिद कैला नै कवी पारदी षी यानी-- 
प्वयम््रहा प्रौर सु एक धराय हम्म के है ? एष प्रप्त का एाजनीनिक हस मी 
दह्र ही शिन प्रतीत होता भा निहमा दारंनिक हत । स्ववदा प्रोर्‌ 
रष्टरीम एषषा र्गो मेष्टौ प्रास्या बी, सेक दोनो ये हंबपं भो भद) 
जड शमरोको व्यवस्था यजमीठिओो ॐ हयव परित होकर परटबादक 
स्पते षी शी, राजनीतिकू-मवेणजिरयो पे दे प्रपि सम्तोप्नके बोदिश 
जिकास प्रदान किया) पह स्वातािक पौर हैमिस्म की सावमाप्रौ क पनु 
णाक द्िमवाद कादरबृत्तम स्प राजनीति के बधाय प्रपए्ररणर्मे षष्ठो 
मह भी स्वालानिकषा कि ए प्रर के रष्टूमाद का पुष केत धिन्धिमेनिपा 
ये प्रौर रपे भाठपाय हो) पमरष प्रायिक राषटूादको तपपरषम प्रौर्‌ 
सर्माभिढ प्रभायकार प्रमिव्यस्िपो मे से एक पिसादषवा क बगीष पौर षष्‌ 
वदसि भैरेढ दवरसोत इख हृ । स्डोगे (दतण्टर्मे) अम भरमरीकी 
भ्यापार एदे निरी हुं हातठ म षा सो, णोत ह्वार परसो शठ मो !' 
(मासि) तोत द पमे मो षठा है!) एोपसे भप हस्दणेपशयी पकषोप्र 
प्राना प्रकापिव डी । उगीने पदे एकेह प्व कि प्रनदरप्टीय कारून पर 
निमिष राना जरेन्मर है। 
ष्म ममरीणौ स्वदत्र णष्टो शी पचि मेषडमी वारष्डे हृपहै, दैदे 
चमय जबर शाह) हमारा पहु गिनप्न निष्वय है किहमारे निषेकषे 


दा, धौर भन्तत- बन्हुनि शमस्य को ससी श्पये गे शिश्ये रेभ 
पौर चोन रेतर जे बहुत पते हो देए स्तिपा पा । कलहे प्व तमक तिपा 
छि भतुप्य हुश्यत पाभ पाबनाते परि्ास्ति हते ह पौर पवी पर 
भदुप्वीके रितो डोनेमृषु के बहुमत ते निजी उराप्रीलता की मन कपना 
एक पेतौ माष ई जिते भातौ प्रहति पूरा भहा कर पपि ? ( शं 
एए पिरे, “योन पती शेतारन, भैसनतनिरद, १७८२ एत्र 
एडिपानापोलित्त १६५८८, एष्छ २७२ १६९1 } 
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प्र्‌ भ्रमरो शन का इतिप 


प्दुारभोप्हो होगा बही करगे । घंबरप॑रत रमम पश बारी-बारी से हमाते 
शर्वा करते ठै भृपोढ़ हम स्वयं राट के रस समाज मे छोर प्रौर गिस्वरवा 
क प्रतिर पोर कृष म छोय पाठे बिष बारे मे हर प्न भ्रपनी चप्टिके 
प्रमुष्ठार ोपिव श्राह कि बह गढ़ समरस धौर रोचक &। 

रतः बिना षिरोपामासकेक्शा भा सषता हि परनपिषव पौर परस्पर 
प्रसहेमव म्पा ए पण्वरषटरप प्रवापरो पौर सम्बरो के जिघ्र पनिष्िव 
प्रह शे ^राट्रो को कादून' षहा भावा दै, दह बस्तब मेक्सो भीरष्टरके 
सिए हृातून गष है। 

इष हृष्टि के निरापार ठम्तुजाह को ही सपु राज्य पमरीका मे प्पे 

जिजि-घारक षो एक प्राजारपिल्ा बताया है ; मद्वय ( एगदिष्वाव ) ै प्रष्ठ 
एष प्मष्य त्िराष्वषकैस्पपेरष्ट्रोकेह्दूने कौ पराप कतूनका एकप्र॑ग 
माता बाता & प्रौर सखंपु्ठ राज्य तवा पविषंए प्रलप-पलप रामयो ये प्रदालर्तो 
म इमे एक पर्वोश्च प्रथिकारयुक्त निपम का स्थात प्रा है । ^ 

दइंगरसोत मे पिरका छि ह्मूनी गा सामरिक कर्यबाहवी वृकि प्याबहारिष 
छपाय नही § ठ कारणा भमरोषा को %थमूज त्वतत्ष' बनाने फे पिए एक 
शस्क-युठ प्राबयक हे 1* इत बीज यैप्यू कैरी तामक परु रत्वाहर्ण प्रापयौ 
सरणार्णो फएिसाडेश्पा मे श्वी पमेरिकल मरो का सम्पादाग करए) षष 
पतिका सं प्प भाषि घमस्पार्मो कौ शर्वा कषोतो बो प्रौर ६पभिस्तात शा 
परत्पाश्पान होता वा । पपतौ पजिष्ठा के के पौर प्रपमे प्रष्ाप्न-गृहुषे 
निक्कनै बाली पृस्वर्णयो के पूर प्ते ने प्रौए एके पन हैरी षरे 
पर्म॑पास्नी भन पपे । १८१४ मैष्पूकैरोमे श्वी प्रोपिष त्रात प्रण्मशचितश्े 
विषमे उन्होते १८१२ के युद उत्प घभौ पूर्योके बीं एषमोप च्य एव्र 
स्पाबहारिक भाषा प्रयुव एतै प्रकत क्रिया| षै देवलिस्तान-निपेषौ 
शरकखणाब के सर्पेमुखं पैक गत गये दन्तु घर्बमनिक्‌ निर्माण प्रौ प्राभि 


१ चां जरे हगरतोल एष्यू पोषो रादट्त एर रार, पावर 
पेड पोकषिघो पशठिदो पूनाटेष ष्टेटून प्रोफ प्रभेरिष्ठाः ( जि्रेरिष्या 
१८०८), प्रष्ठ १४ ३९॥। 

२ इंगरधोप्त भै पावर्मेप्रने हष्िरोलकटे धयिङ्ष्यापह छप देक 
रषत्‌ भास्कर राषूवादको मो सम्मिभित कर तिपा । देचिए्‌, एलका प्पपणं 
न्दी इन्लुपुस्त पट प्रमेप्ि प्राव दौ माण्ट (५२१) जपे भतो हप 
सम्पादित भरमेरिषनि सिकोनष्ठिह देोगड १७०० १८०० (प्ूपाक १८४६) 

~ ्मेषुग सुरित प्रष्रे ५८। 


ष्टमा पौर सोभ्द्म ८१ 


अप्र 9 टि कये ह पिशार-दपंन ऊ स्प पे उनृवि हिता श सपण 
के परु रक्तन पाविष्ठ सिद््ट कमी प्रथारद्मा 1 केसो अर्मनीष 
निस्य प्यव रिष्ट के प्रादियेय रमे, बिन्होमै १८९७ प प्रमरीकी 
रशष्टुषादपो क परेस्छा धे श्रौर पाम ष्टुयर श्ये रषना "देष्वपं पन पोविरिष्ष 
एकतमो ( सकमोदिक पर्पाप्व पर माक, १८२६ } का एएडन के हप 
सपमी पूर्वश माष्टलाएट पठ पयेरिकिन पोषिरिष्स एकोनमो' (परमरोषै 
रएबभीपठष परव॑एपस्मि कि कपा) प्र्मपिह श । दूर बैरुप्पत के निरी मि 
प पोर पपे पूर्मकाहिष देम्दिरदेभिपा दा इ दिनो मर उम्टनि देती विमिमार 
भ्म पोत्ाएन दषे के पस पे माद्या दिवे डे! उमडरनि संस्वापित पर्बएास्न 
की भ्पास्या निदो प्यापारकेविम्दरएष्टवडं केस्मर्मषीभी) कितु दक्षिण 
कैरोलिना को टप अते के बार उगठे दिषार पिक कैतिहरमादी षे पवैप्रौः 
एहि गुभ्यतः भौ वैपिस्ये से के प्हृतिमापी दिद्धो का षहा छिपा किस्ट 
का प्राच्योधता ध प्‌ पकः हा पमार भेरुर्त पौर हैपिम्टत के घमर्षेकके 
जीणे मोलि षिषारेप्रहभौ हाममने। 
धापनिक दष्दि प लिप शष्टरवाद के रर्गाषिष रोधक प्पाश्वाता बाङििपोर्‌ 
के एक बयत हेनिएष रेण पे । रम्हेने १८२० मे "पोट पग पएोनिरिष्र 
एकनिमी" ( एडनीतिक प्रयता णर बिजार ) शसि की धो ही प्रमरीकी 
छापर एष धिष्व पर शिला यमा पता म्यकस्यिव निद्या) एम रषनाके 
शार एत्करणा निके । जोडा रुस्करणु ए संनि, एत्स्पैय पाट जा, विसर्पे ध 
शेदविक रोधकः दानि दिप्पणिपो द प्रषिकाोए मिदामरिएा पपाषा। 
रेड दै प्राम म्मिप क रजन चित्प परार मेपन्तः कौ पापाप्यूव माम्बदार्मा 
मौ दीद परणोभ्ा कषे के पतिश्च एक देसा रपयोपितागाती पषात निषपितं 
दिनि विप्रन दम्डं सुभरं मिस पपतरे तीविपास् श्ये प्राये बा कर प्पषै 


१ “कपी भपप रस्य केति हृष्य कीसोमाप्रौ छो षम 
तिया। चे बाहुरेष कि पमरष पष्प टे देणौरमौषये पोर बोडे 
धमत के ददद के लिद्‌ क्यहसय शल्म्‌ े सुटपाः कर्‌ पुषः शुनः शे 
ये 1 केवल पेये प्रद पौर रेची सपान पे हो स्वततर प्यति षा तोषतान्धि् 
पापं द्तहोकष्ताणा। रापो पमनीगिक कक सा-साक प्रतिर हपट 
दे मी स्वत होना चाकिए्‌ । अ तष रेमो स्वनत्दना पपाच मी हो जानी 
तद्त्‌ प्रमोशन धर्मे षो स्वर मनुष्य नरो दहु शस्ते ज ( प हेन 


श्प, बौ एवे पठ पेरिसम्‌ सेमोषेध्कि मोट (शयृयाद १८८०, 
परष्ट ५! ॥) 


स भमै बन को एविह्िस 


प््चास्न व्डने बते पौ घायश् दया ही परिणाम होदा।+ मिध पिपर 
दमौ शर्पाएकरौ पर्पास्न' श्डा जाने हपा ह, रमोण्ट कौ रता गये एक 
घ्म दानिक प्मिभिग्याछ प्रवान करती ह 1 रमाष्ड के ष्टि मेँ रायतीटिक 
पर्थलास्म पूरयंतम र्थं मे एक वैदिक बिहान ह प्रोर रषटरीम घन सम्य्ची लोग 
उका एवित निपय & । राष्ट्रीव कन, वैमिकु नसे पूर्णत भिन्न है, क्यो$ि 
राष्ट "एष परत मोर परमिमम्प' एकार है भोर उदय कत एस्फे वामि ष 
भनषाचोदृ मान मदौ है । म्पछि श नपा मि प्रपं-प्यदस्वा श्रापश् 
एषा रषयोग ह जिसे भिर्या प्रानन्द का प्रनिष्लम भाग उपमश्ब हो। यद 
सम्पति शास्म सेवा पौर शरि एम्प्िर्यो का िनिमयहो षष्ठा € एस 
कार एक-दषरे के सन्दभं मे उनका श^ूस्य ( भिनिमय मृस्प } माना भाता 
है । राष्ट्र का एामृहिक कन सम्पत्ति हौ है भौर खक परो मापत बम्प मूस्व 
नी ६। भिक्म्पम्वा' कै प्ण उसे षश्ित नही ध्या जा घष्वा 1 बह दैवा 
षन ई धो परिसक्रप्ति हौ मा भिषक दपभोष हौ । गहं जीगन कय धरागष्यकतरप्‌ 
श्र म्माराम प्राठक्षरी षी, शोर्यो शो घाग्िक समा" ह! इल पामष्यकूवामों 
भोर प्रारामोका नौ पपरी है। उनका "रस, या घप्र कएने 
समता एत्तोग का भम ६ 1 पत" उत्मादत केवल बहौ तक चत है जहां पक एरका 
उपमौप हो । एक पष्मर कमा भमपेषादै जो केवल प्रय स्म रमो सत्पावक &, 
कपि एसे एल वत्छमष एपमोप्प नही कोते । देषा रे्माषके पयो प ^्वायी 
या शमाबरकातै भ्रम, साजंषनिक कयो मे बिष्ठेपतः महत्वपूर्ण होता दै । भोम 
पौर देप्र्जः जीवन शमौ भागस्मकतार््रो प्रौर भारामो के षमा चिष्णार्मे 
जाषक ई । 

न्प भिजी मर्ब-ज्पवस्मा एक भोर सोम वषा कूपी मौर दूरौ 
सोर दस्मं तणा सिनूदिश्थीं के बीच की ूमि पर स्थित है । सार श्वो सुप्य 
षतं बो परकराप्टारो धे बथकृर चके तो बह पर्वघास् के कटोरतम मियर्मो षा 
फशदवत थि बिना पपती प्राप के पल्र उपशब्थ सारा प्राषन्द प्रात्र 
श्च्ठा है) 
ष्वनिरयो को मेषा भाद रगा बाहिए्‌ कि प्रारी प्रम्पति का सामी होने 
के कारणा प्ररर्यो ष्म के धारे प्रधिप्ि उद्यारल शय उपमोग करना एषा 





१ रमौ येत्वानङे प्रमरोकौ पष्य जोन तीलनेरेमारद्ष्येस्यना का 
एर्ाहशूर्वह स्वायते ध्य प्रीर ध्रम्‌ सेषमनो हा प्यान पशत श्योर चना 


ठा किट इतं तफल) नहो भिनी 


भ भरमरैकौ गर्न भा इतिदवाष 


मिष्य के प्राच बेषनेदे भा उनपे प्रपनो इष्छानु्ार गस्तु तरीषैषठे 
रोकदे 1 प्रएकारको स्पष्ट पौर पूरा प्रभिकारहै कि जनदिति मे बरागष्यक्‌ 
निगम सम्पछ्चि या ब्यापार के सम्बल्व मे बनाये 1 
“मत पुम्क-पटति पा छंरकण-सुर्क घम्बन्धी हैर प्रस्न “मविकार का प्रम 
ल होकर भ्रबष्यष्ता षय प्रस्म होगा । 
रेमोष्छ क उप्र उपयोमिठागाद स्पष्टतः पाजिष शोक्तष्न क पोर उन्धुख 
भा1 रम्हं यनै जिष्ेप चिन्ता धीरिहुरपीद़ीषै पाप स्पाबद्ो मोर रहन 
ए्तराषिष्ठार के नियमनं श्ये पाषस्यष्टठा पर कोए रिया, वाक्रि रष्टय षनके 
ङ्म प जिका उपभोग श्येना भाहिए्‌, णका निषी पंजी के क्प मे द्षव" रोका 
जाके । 
णकार भण्ड बद़पिये शे वण होनी षारिए्‌, भो पपे रषद के एवष 
भौर नि.प्क पुमो कोष्ठा प्रौरपोपणद्ता कै अब तक उने बसनार्नोका 
लामता कै के सिए पर्याप्त घणि गौ प्रा बाती । प्रीर ैवानही होने देवाह 
बलवान रुं कुचस दते भौर द्वादे। किन्तु एमा बे वप्ये महीहोते 
जि प्रति पवस बनाघी दै, अम्किमेहोते हणो विघ्ताच्च बन एकतिति करणे 
या ठचएथिकारमे पाकर बमाबरी सविषे धवल बनधैहै। पौर धामतीर 
पर छरकार ष्य षार ध्वान प्रौर धारी देखभाल षदा भोगो भो प्रात होषी १। 
यैप्रमतेकोहौ ष्टके है। प्रर रकम धामतौर परप धरौक निकालने 
भ लगी एषी ह भिनसे मनुर््यो म जिद्चमान प्रणिश्रणें षमी प्राहृतिक एमातता 
ह्वायम सदी रदी जरत्‌ जमियोके षने मोर बृदिषटेतै से इव प्रषिष्मणैषी 
भसमामता प्रौर बही दै \ षे पह मानशेतीषै, या पानमेका दिखावा कवी 
हैकिवतिपोकाभनवदाकर बे रष्टरृष्यवनन्द्मरही है षैते भनीधोग्ै 
मूषा रषु हो । दसौ कऋयवार्दमो घ (जषा पु भिस्वा दै किये प्राये खड 
कर दभा) पमिनायं ही गरीबी काली पौर रष्ट्रीग जिपति हतन दती टै । 
भ्वैा पैमे परे शा है, शवासन का महन्‌ ब्रह्य पद होनाभार्हिएकि 
मनुस्णो के ौष एशि को प्रहरिक पररमागठा की संगतिमे प्रिकारौं पौर 
दम्पति कौ मानदा बहौ ठक म्मव हो कायम ए । च्पैष्ठ सम्ठात शा 
एदरािद्म, प्रनुक्कम-दन्यन पौर परिसीमा क कमटूत पौर भराय समीधे 
हातूज चो च्ल क्ये पथिवंको प्रौर्‌ विषिष्टं परिरं वं मे बायै रषे ई 
ठं सिदाग्ध का प्रत उल्त॑बन करते ६ । * 
१ डेनिएल रेणोन्द श्वोद्‌ब श्रोन पो्तिम्कित प्काननौ" (दाष्टिमौर, 
१८२९०) पष्ठ २१९--२२१ २४०॥ 
२ ष्डो पष्ठ २११२६२९) 


ष्टषा प्नौर होकतश्य च 


दशि स्पप्ध पह मापिक रोस्ठन्द का एश दान है, कलु रयकीतिक 
प्ोकनत् इसंडा ्राषष्यक मम मह) शमर शते सोय पाम के शस्बन्ध 
मेह्किपि सोयो की परासश्मए्‌ च्मोष्यकेमममंभीवी) 

रै भलया हं डि दमारे कैषा प्रासन दैवे उदार घौर परुड रिर्यो रय 
ध्रापार पर नही शरब्रापा भा पशा परोद पशो कोः णधान हि पम्यण्सि 
परकयर कम पराखम एष्ट प्रषटि भोर षन फो प्रिव के मिप्‌ पपठ उपय 
हीना कोय हमे प्रपते वालकाकिक तिके देले भरोरकु्ठ बगे श्न 
समासत पर मेषा प्गुचरिह प्रमाब हेता । 

"प्पे पैसे सोपय छात के प्म्मग्ध पेम मपनैसी पार्णकाकेपाप 
हं प्पे है कि रादीदिष प्रतिमा पोर विषि-निमसि मन्ध न एश्रमै 
की पछि प्रौर भरि के पिष क्ी रत जिपाम मातरा हम कठी पमेपेषो 
एषे स्््तिमप पोर कशामणयक इय ठे चलाने के लिए प्राप्य होमो १7१ 

फ पी, इन्होमे वैप्मचति पृं स्वर म, भिहकी भावना सने भौर पने 
षी शषादयो पब बहरी बौ वहुधीष्टा- 

“प्ा्ठन्‌-विञान्‌ धोर्‌ राजनीतिक पर्थपद्च काङ्ान्‌ प्राप्त कणे ढे निए, 
हमारा रेष एए धरतो पर पर्षोच्तम मथ भप्युव करणा है) पद्वौदेडरते प 
शपि जा श्ष्ते ६) यहां हम प्रहि 9 सिदाम्वो के परप पढम श्प पं एह 
शे प्ष्टे है! पोर पदी छठा प्रोर हमानता षम रष मावनाश्ने जनि 
रषा द, विसका साद संघार मे कैका भोर पूम्यी पर ह्मी र्ट कोम्प्मा 
प्रर धीषन प्रदात करा ध्रमीषेयहै। ९ 

प भ्यावदेने गोप्यदैङि र्मोग्य पमौ प्रौ उषा षो धापडलिकर 
एपयोमिदा फ़ भविक कायल भई दै! वेकज्वापार को दे पूतः भौ्तोमिक 
धपुहौपन माभ्ते दे घौर दमिस्दन दयया सागेबमिक राके निभिकरणा ढेबर 
म उद्भ का~ 

बां मुधा क परिषश्नरणा को बद्वा देता पौर सोर तवा वद्चम मै सपण 
हा ई । १७६० य हमारे प्ा्जनिङू राश निपिकरल रष्टौमर भनन्ी 
परिषदि पैठे कामो क्यो दपगोपिवा का एष स्यरणौग पषदष्य 1 

“ए कय भो न्धापदूहा $ अल ओं यदे डना, गिम एष नमवे जनता 
को उलि द्म भा, भाग यद्‌ स्वीक्पर करना ददेपाक्ि राष्टूकं चन पर 
इम प्मभि्ठ लामरायके परमाम्‌ पड़ा । इकडे रादु भौ बास्टनिक सम्पत्ति मै 





‡ बहौ एय्ट ६८० ३८२। 
१ षी, एषठ ४४६ 


बद्‌ पमरौक्ै दने ऋ इतिहा 


बिदेपिों के ष्ठाप बेषने दे जा एमन प्रपनी षच्छानुखार बस्तुपुं खरीष्मै ध 
रोकदे । ्रकारष़ो स्पष्ट प्नोर पूरा प्रभिकारटै छि जनहित मे श्रागस्य 
भिगम सम्पति या भ्यापार क सम्बन्ध मे बताये 1 

"पद हुन्क-पद्ति या संर ल्क सम्बन्धी हर परस्न “मिकार्‌ का प्रस 
ल होकर 'पाबस्वक्ता का प्रस्त होगा "१ 

रेमोषठ को रप्र जपयोमिठाषाद घ्यष्टत- प्राणि शोढ्रतन्न श्ये भोर रन्पुल 
बा] रु एस जेप चिन्ता धीकिहृरपी़ीकेसाप भ्यावष्टे मौर उक्ति 
ए्रापिषयर फ नियमन शयी पराबष्यकठा परर रवा काष्ठ रष्टीप षन 
स्यम जिका उपभोय श्ना भाहिप्‌, उषा भियो पज क क्प नं "वद्मप' चेका 
शापक । 
रकार मश्च यड्रिपे फी वरह होनी चाहिए, भो पपने रेव के दुर्बल 
प्रौर गिः प्रमो शो शार पौर पोपणा वैता है भष तकं एतमे बलवान कय 
हाममा करने क जिए पर्वा्ठ छठि हौ प्रा जाती । प्रौर देषा नह होमे देवा कि 
बलमान एनद्‌ कुल सरे मौरदपादे) किन्तु एमा उंसष्णडे षौ हेते 
बिष्ट प्ररि एवल बनाती द, बर्कि भे होते है यो जिष्ठाल षन एकनित करके 
जा एत्तराविष्ारर्मे पाकर, बमावरी रीति से घक्स बगतैहै। प्रौर प्रामतौर 
पर खरकमरक्षाक्वाय भ्पात भोर वाटी हेल-मात शद लोषो को प्राठ ्ेती 8ै। 
दे प्पमेक्ो ही राष्ट एते & । पोर ध्ररङारं मामवौर पर पैषे तरीके निलन 
ली एहतौ है जिने मनुष्यो सं मिश्मात पकिच्र्णे कये प्राति एमानता 
क्रावम नही प्तौ बरष्‌ भमिर्योकेभगमे पोरवृडिहोै ते ए प्रपिकारोशी 
ससमासता पौर रतौ ६! बे यह माणी टै पा मामे शम रिज्चाना करतौ 
हरि षभियोह्धाथतबद्मकरवेरष्ट्कापनबद्नणौ दै, बैठे बनीशोगहौ 
चदूजा रुष्ट । दसी कर्मगापर्नो स (बैठा पमे मि्वास है किव प्राते सिद 
कर दपा) मभिषायं ही गरीबी कमाती पौर राष्ट्रीय जिपछठि रत्र दती ई । 

“नैता यैव पाते क्हाहै, शाते का महानु सत्व पड होना बाहिएिकि 
भलुर््यो के बी परिष प्रहृपिक भरहमानठाकी तमति पमषक रौर 
छम्पच्ति षौ समाता बह वष प्म्मबहो कायम रखे । ध्वेष्ठ घन्तान का 
छचराभिकाए, प्रयुकम-बन्बन प्रौर परिप्रीमाके नून प्रौप्पन्य घमौदपर 
नून णो अल को सर्वि करते पौर गिषिप्ट परिवारो कै इते नये रक्ते दै 
पष सिन्ाष्ठ क परल सल्वंबन कयते ह। 

१ निरत रेर्माष्ड बोएल प्रोत पोलिण्कलि पुष्येनमौ" (बास्टिलौर, 
१८२०), प्रम २१९६- २२९, १६० । 

१ षो प्रष्ठ २११२१२। 


प मलरीष्यौ दन का तिष्टत 


ठो या श्रष नह भु दनु उधोग प्रोर उष्म को षते उीपन मिना! 
बह के लिए, यह माना जा मक्ता ई, जैघा इडे विरोषिदो भ उस एम ष्ठा 
धाक यहं कयं पप्यायदरूणषा भौर एवमे समाम कृएकपंय रेषतमे कर 
दषे धंमष़्ोदै पिपा) किमत स्वमा मातकषेने ते प्टरोम पन श प्रमिवृदधिमे 
ष कांजी की उपयोगिता पर कोरं पणर मही पकृता 1 पह बात बुरमाम्रणं ह 
परपवा पदौ एसा कष्मता कते दोशष्टायै सी कषणा लेकिन पह सजदै 
क्रि रषटरौप णनी पमिष्दिमे दिती कररयमिेप श्री उपयापिवा हमखा एसण्मै 
व्यापपूर्णता पर भापारिव नही हाषौ । + 

यह स्वीकारषएत हुए मि पूंजोबाद मे कमी-कमौ 'साभजनिक रपपोगिवा' 
(ममामी) का सुण हावा तै रमां ने बे को त्ष मिदर निर्वि शपे 
निजी निमम" माना जिते हिस्येदाये के हिव भरामवीर पर एाजनिक दित के 
प्रनुष्व मषी ह्येते । 

प्रत इर भित-निषम अप्यक्ष राष्टीप घन के पिए हानिकारक हाताह 
पोर जिनके पास पन ही £, उम्हु उममौ स्या पौर धनदे क्षी इष्टि ते देन्नना 
चाहिए । वै पणि के बनाबटी यम्बरहै पौर उम्दे मही माना बाहिए, बिना 
भ्रमोग भती शोव भ्रपनी पले हौ बहु पथिक उथ्यिकोप्रीर बद्रणेकेरिए्‌ 
कृते है । एना स्य मनुप्य शौ उस प्राकृतिक खमानघ्राको भप्ट कना है भो 
ईष्वपप्रवच्च ६ प्रौरभिरे मष्ट करने मे प्रपनो एचि सगानेष्ापी घस्षेषो 
परभिकार महीं है । रेी संस्वार टौ प्गृ्ि हठी है कि प्रण्यवा बैप्री पिति 
हो सम्पति श्य र्य प्पिक पमाने निमाभन करं प्रौर मनुष्यो म भरषिक्‌ 
परसमाषता रत्य कर । चैषा पपे दिद्धापा जा चषा है, एएका प्रावत्यक 
परिणाम धमागकेषेप प्र॑पङढे पु एसीत्री कवामी प्रौरक्ष्ट हेतेहै। एन 
पंस्माभों ४ दस्ो श्यै रक्मश्टर रष्टरीय घमृदि भर उक्र प्रमागङे साबबही 
प्रतुपाच होता है जो न्वी रष्टरोप एका) * 

पपनी पुस्वष् क द्रषरे घंकप्ण ( १५२१९ ) सँ उने मेक भ्यापारष 
छउपमोजिता ढे एम्बन्य मे कदं दैरप्राफ भो दस्तु एक्‌ वैराग्राफ पेखा प्री ्रोढ 
जिषे सक्त मिवा है नि उन्दमि पजीमारक्े ततर्ये को भामठौरपर प्रौर 
हैमिर्टत के एाषेजतिक गित के शवे को निरोपस्पर्मं परण्िकिभिक पमभ्ा। 

रष्टय भेक सम्बन्धी ्रपनौ रट ये हैमिष्यत मे प्राड्म स्मिब के सिदान्व 
को प्रपनापा भौर मिस्यन्देह पटक पवे । उन्हे यह मात ज्िपा मि निषीप्री 


१ बी, ष्ठ १०४८ १०५। 
+ र बही प्रष्ठ ४२९। 


रथूगार प्रोर शरोकठान ष 
हांजिकि चय हक ह परपद दि निवो साम दकजनिकः साम टै} 
खृम्वस्य धै इ सतीम पर्‌ पमे फ जिन शाके पा षनहै,े प्रग पधे 
हेषा ग्वार पर धवि रह षदं भोर मिठना न उनके पा हो उषो भा तीन 
रुमा सारे प ता यये रष्टृक्नो सामष्ोपा। कितु रेषा मान तेमा एक 
मोभिक पष ह्ि वातुुदरूप्पान परकमण्रको मुद्रे सते वैषि 
देष शी खय या स्सादष पूजी वदम्‌ जा सक्ती है । पोर गह माममाभो ष 
भारी ममी हदि दैप शाम हमेठा छादेयपिक काम दीवा है 1/1 
गद्यि प्रापदौर परे संरसणबादी बे दिन्ु मे हयेषा ऊंषी पुन्कव्ये क 

यमे गही 8 । उनले १८२८ के पतक शै दष भिस्दुक पालो्ता प्ू-पैण 
के म्पापारियोकेष्ित मे सि भो उसके मिद्धे) पामतोर पर गमोभ्डषकेः 
स्वह मैतिकठावादी भे प्रौर उम एंजनीतिक सप॑पास्न उनके राजनीतिक 
मो पमे प्रपा नके वैदिक दन को परमिष्यछि पा। उल्हं भ कसं बनता 
कै सपू हित शी, बरन्‌ उश बैयच्छिक़ कस्यायं की मी भास्तमिक चिन्ता 
धी । उदेति पानिकमोर भैर्क्िशोगो ह्ये ष्प्टपो वे गृभामीष्ी भाषप्पूरं 
पत्म कम । सम्पशच भपो परए वृजी केसरे तिरि भग को परिषद्ररण 
भा उपागमे बहर निष्लेणे एमे ष्टोप दु" प्रौर्‌ गेषी कैहाता मामे 
ये, भ्पो$िमेष्कोढबठतया पितभ्ययिता ड़ शम्द्भे पं नही (गे षे लोम 
तेये) पु पापभानन्ददापर उपमोगके श्प देपते ४ । वि्तनिपर्मो 

पौर पेम हारा विष्व व्वारार पर एश्मपिद्यार वीबुरापर्मोक्ीकाटशिषय 
पेषे ामनिक एकषिष्र शी दि प्रौरनिवमनशक्रपषर्मेषे। 

कपि द्विव रष्टृबार को प्रपती सर्वाधिक पूर्य शर्पनिष पमिष्यि रेमो्ड 

के पर्मतीतिक पर्ययाल (रोपिरिकद पशनम्‌ )) मं मिली कन्दु पर्यपराञ् ड 
भाषिभिकरपरषो पेषु कैट केपु हैमपषो कैरी शची देन ममिश ञेखभो 

सनये बहुसंश्ङ रषत्‌, देनिएम बैभ्पटर ठे तेङकर होरैम परोज्ौ दर त॑रसरामादी 
एमनीतिङो के निए प्राभवं के समानं गन चयी । बेनिमि कै षो रिभार 

म्बगस्सा के दापुभिके परापार द्विम प्ान्योतन क धाभ उने बडे हपु गही चे, 

जितने पैम षट मिषर्-्ववत्वाङे, पौरवे प्राड्प्‌ स्मि प्रोर्‌ पंत्पापित 

पवयो ठे रमे ग्वादादूर मो गी बटे पे! फी ब्तु-मप्यबा 





१ भनिप हिमो श्दमेमेगस ध. दोलिटिकल्‌ एष्य" बू 
कष्टा (बर्टिगोर, १८२६], भेर दो, पष्ठ २१९1 

१ प्रोचे कसे पारा वटिपार्ति दासेन तिदधान्त जो केवल निषिथिष 
कष्पौ प्रौर बदेदेषह पोत छिपा के हौ स्वोद्मर्कत्ना ह ।--भत* 


६“ भ्रमरी दन प इलित 


(पाकिटिजियभ) ते परस्यभिक प्रमाजि् बे ¡ बे एंस्यापिव प्रथा को ामाणिष 
जिज्ञान- का दस्व-मीनांस्ा-प्ोपान मानठे बे प्ोर सामाणिक्‌ शिहञाम कमै एष्टा 
सम्बन्पी पपन स्वापना को उन्होत पराति निवम की एकता सम्बन्धो बस्तु- 
निष्ठाषाद क सामास्य मिष््वाघ पर प्राषारिति करने की शेष्टा की ¡ प्रतिक 
नियम की पदा छा परं पा भनुप्व कयै एकता प्रौर कैरी तै “याभिक मनुष्य" 
पोर मेधिक मनुष्य के दत्वमीमांसातमक पपूरकरणा श्यै प्रभाबह्ासी परालोभना 
भ । भनप्य एक जोमित प्यकि द, जिघषा भम पी नेता निमम घव 
श्रफ़ति पर रहकर स्वामित्व के सक्षयोमी प्रोडार है घामाजिष नियम प्रमति 
क नियम है पोर प्रजतिका प्यक सिप्‌ बहतकृष बीना गोहर 
स्पेभ्सर के लिप्‌ बिद्थिष्टीकरण पा बैयच्यकरणा फी प्रफिपा । श्तु स्पेग्सए करे 
भिपरौव कैरी छम्बयठाण शो धैसी प्रगति का परृरय घाषन मामे बे! चष्ट 
मूल्नत गजनीरिक गठम लद्ठी हौता रल्‌ सम-बिमाजन का एक पंबटन होरा 
है । रुष्टीय पंबटन प्रपति का एक कूप है, कपोकि बह “व्यापारा को “नाणिण्ब" 
में म्वबरस्पा्ठीत भा पुछ विनिमय फो उत्तरदायित्व की एक पिकेम्ित प्यवप्मा 
में परमित करता ह जिसमे एष एम्पणं एहम निर्म एकां मे इरएरस्वका 
योय ष्टौता है! कैरी प्रजी सामास्य शो बिष्टासततम वैमाभे पर “श्वापार" मानते 
भै प्रत्यधि केञ्रित पराजक्ता मानै बे पौर पार्थिक घाप्राप्पवाद कोषे 
पूणवः प्रगति का प्रतिपक्षी मानपैभै प्पोकि भह व्यमस्बिठ पोषण होता ६ 
जवङि एक स्मुच रष्टीप पर्थतश्न काल्प मिघेष्यताङके हारा पाणए्परिक 
घद्वायता कहता है| हसौ प्रक्र राजनीतिक लशोक्तन्नकोे प्वताएनया 
"सामाजिक भिजत" की दिघरा मे स्ामाम्प प्रगति का केवल एक पक मानतेषे। उन 
भियर्मो" शै शोज प्रौर प्रमो बो ध्रपतै लिए इच्वतम धैपकिकता पौर एम्बन्प 
की पभिकूतम षि प्रा्ठ करने क प्रयास मे मनुष्व का परिषादन एतै ६ ।† 
क्तु फैरी केवल दासंनिक धिदम्ठो का निक्पणाकरनै बसे हौ नही ने) 
जे रापटरषाद के एक पल प्रचार भे । प्रमरौष्यी ध्यवस्वा" कयै उतकी प्यस्नाके 
पञ्चे णो पराबारमकु पपील पौर पैतिक ईमानदारी भौ एते ग्बककएमैकेष्धिए्‌ 
किसी मी नवे भ्या पण्डा होगा कि इम उनके मन्येत का एक वमूना रें । 
शार ढे परमञ्च बो न्पवस्पाप्‌ है। पक ब्यापार पौर बावापत मलौ 
हृए सोनो पौर पूष के पतूपाठ को दना बाहठी है पौर रस्लिए ध्यापाएक 


१ हैषरौ सौर ष्टौ पिन्तिपिक्त मरक लोद्मल साबन्त" प्रह्ट टीलहाक 
की पल्ल पापनिप्वं श्रो प्रपैरिक्ल पषमंनमिक बोः इन दौ लाद्षटौस्क 


ष्टो ( प्यूपाकषं, १६१६ ) मे उयूत प्रष्ठ ८1 


साण्ट्ादं प्रर सोक्तन्ण ट्‌ 


कुष फे उसादतजं शये हए पदपाठ कम कषा माही है, विष्टे समौ के 
परम क्य साम सदश्पयेय कम होमा । ¶सयौ ववस्य उत्यादन करयं के पनुपा् 
ने कात श्र यापार ब यादायात ह प्रुत को पाना चाही ६, निष्ठे 
शमी को ताम दोप मये षयो पच्छ बेन मितेना भौर मालिक को धपनी 
पृ पर प्रशा लाम! एक ध्यत्वा भ्यपारष्ी श्गेषः स्वतश्वता को कपम्‌ 
शना बाहवो है, भो पेर्सणा के सिद्धन्ठ से पनषर कवी है, शेकिम राजस्व 
हं के दरा परण देती है! खो देषः पवन्त म्बापर के केष बवे 
केलिए सगेषा गोप-द्विवि संर्छख स्थापिव करा शरवो है, जिशये पाद्ये 
ष्यक्ति घौरसद्ठदाय धामित होते भाप्ये पौर प्न्लठः भुतीषर पमातषे 
शाएे । पु भ्यवस्वा टेम रेमिस्वानी इतरे पर कम्य शरमेके लिप्‌ मनुर्प्यो 
ष्टे प्रेना बदृतो ६, जिन पर कूरमीधि धा बुडकेद्ाण पणता कलिय पया, 
ह्म} एृषरी छी बूमीषपर भमै केलिए साडो प्ययं कयो पाकर 
पस शमीम पूत्व को बहुत सभक अदना चाहतौ है। पक भ्यत्मा 
भिर धे प्राब्यक्या को सद्मा चरती है, दृ्ररी रपे हयम रकने षौ 
किष एष नाङ्तीदहैकि हिनू+ को बृराकाम नम्ति प्रौरप्पधपार 
जीपिरङकउषीष्वरपरधाभाप्‌। दरुपैषारे षंठारमे भोयोश्चत्सर 
णक हमारे वरकठक लाना शाही है! एकश इष्दि केयालौ, प्रधिक्षा 
पाबादी के भिमास प्रौर्‌ गंवसीपण कौ है! कयद्ष्टिभते पादम, बुष, 
ताम प्रौर पम्बतादमरेल कोष्कृमेकौटै । एक सारि बुदकीप्रोर 
चेती , एरी सार्षोषिक सान्ति के पोर । एक ईमलिस्वानी श्यषस्श है, दूषय 
षो हम पदके षाय प्रमी ष्यवत्पा कई पक्ते द क्मोकि प्रद तक निङ्पित 
प्यमप्ार्मो मं परमाज यछ देचो ह, जिह्मे शरेष्ठे लोर्योकौर्षाश्नो 
एनं कणे पौर परमाव षे स्वर पर धमे ष्म प्षूठि १1 

बटु राण्य धमर के सोमो का पौ पश्वा जिप्रन द! 

ते शाप्राग्य कौ स्वापमा-दद्‌ एारित रनः कि संठार के दामो केभोष, 
शिषे चेधिदरह, मिनिम शष्वापायै दिवो य पूं हमरा है प्रौर 
पडि प्यथ का भुश पोर रष्क पान्‌ ईप णानधम भिदि कन पाभ 
करणै ही शेनीढि धूप्तोकेठाव बदौर्रोगोदुम बहतेहोङि बू 
महर घाष्‌ करे--एछ मिन श्य तस्य है प्रर यही एसा बरिएठाम दोव (१ 





१ किव्तप्री---पनु* । 


२ हैम लौ क्रो “री इनो पड ए्दर्द्म, पेपरम््भरत,बेनदे्यारन 
दिग कमामल ' पूलरा ध्टषड [ शषा, १८५६ ) इष्ड २२८०२१६ ॥ 


६ प्रवरौ वंत क शतिष्ठष 


कौ के सामाजिक मिज्ञान फ दन मे भिनशेर्मो षो परर्ादौ पपं 
हां के पोढषर सिस बामेन मो बे। उन्होने पाषारण बिच के घाप 
रत्व-मीमांघा प्रोए ठका कै प्रतिरिक्छ रायमीिक्‌ मपशाद्म पर भी एक मबन्ब 
सिद्धा । यच्चपि ये एक हायनिक धे किन्तु परम्परामच द्धि धिगान्तो के 
पुननिरपण के प्रिर ठनग्ा रायनीयिक पर्ल शंन पे पूर्णया भु है । 
उनक्पि र्ना भमोरिषन पोसिटिषस एकानमी (भ्रमरी एजनीरिक प्र्षणन्न) 
शा प््विग पष्ठ कैरी क एय सिद्ध का सारणा सगा है डि शरगवि 
निरिप्रीकरणा क श्रय प्रोदोयीकरण को पोर ते जाती है । 

'विभि-मि्मणि शो ए्गेसिम शीति बह ईजा किसी देघ ढे प्राक पघापर्नो 
क्त पर्वभि प्रमागकारी लये बिका करे चाहे बं मानधिकहो या पोषिकि। 
याण्विऱ कोशम गा प्राभिष्कारबुदिष्टो बेकार पड़ी रहने दैना कम घे कम उमा 
ही बहा प्पम्पम दै, जिठना जशण्छि को बिना पमिरयां चाये बह भाने देना 
मालजभतष्ोपरतीर्पेही श्वे एरेना या हौ कपा प्रौर प्राय 
बहुतायत पि हा पकता है, बहा जय बहे रकम देना । परार सोर्गो क्र रोचय 
यृश्य रूपमे कृपि-क्ग का स्मूल पम ही रहेगा तो कलापो ए कुए्मपरमका 
पिक बेन समाप्त शरणा प्डेमा । पौर मह परा्बिक इप्टिप्रे ठाहौ बुरा 
होगा जिना हमारी सर्बो्म षरि भो भते की चामा बना देना मा पदुर्पो 
षो सके ङिपा पिह दिलाना । शेतौकेकाम मे प्रलग-परलप क्षये रहे कै धि, 
जिषमे प्जिषषनोर्गोकाकाम दैवा श्िगा फि क्सि फिमौदौपवायी की बिका 
भी पूर छ्पपोम ग हो पक, धावा छो मिष्ास भू-मापर्मे कैला देमा न करव 
जल-गृद्धिषौ हसि ति भत्ति मानवता ढे प्रधि रण्व हितोके लिए भी बावक 
होया । बष्य्रन्त के जीवम करी कस्निाप्या प्रौर पृसीगठं ठस देन के सात पुरौ 
हं एक अर¶ररस्ठ पिकष्व है, नो दैवो को निमय दसो पूमि प्रन करपी ह, 
जित्तमे धीय प्नौयुभे हषर उपवे है। सि प्रतिमा पीर स्वपराबशौ एारो 
भिभिन्रघारमो श्रो पूरा मोका देना पाबिष्कारबुद्धिका पोर्ण करना परमौ कमापो 
डो पमि प्रोत्साहन देना बाहे बे मानिष कलाप हौ पा पती चिन्ह भामतौट 
पर सिव कमापं कष्य बाता है, शोपों छ कन्ठ करना, पा उनके प्रषिकतम्‌ 
सस्मष भाम को मादबीमवा $ प्रमान पौर मानधिक पंस्कार ब सामाजिक 
भुषार फ प्रधिक भहुम एधो $ प्तवरगव साना भो केषर मगरोप्रौर कमे 
क्वौ म ही एपण्म्य हो खष्ते है-वैदैते लष्वदहै बो केन पतेकम ण्तताह्ठी 
ध्यातदेगै पोप्य है जितना पह प्रप्न छि भूतौ कपड़ा हम एब घप्वा कहां चरौष 
स॒क्छे्ैपाढििदैम स्वयं ममी श्वोकेिए लोढा वयाप कर सष एषे चि 
मे (तिता भागिक बहिष्यन कला होगा ! यै मही सममः पाताङकि हमारे बैगर 


रष्वाद पोर होशश्व न 


मे, मो इद, मिष्मण प्रौर सो क परम्पर भसशाम्‌ क तिप बहुत प्मिक 
मुनिर्योये ममिदठशानाष्कदाह, हम ना प्रप भिनिर्माख ग्णोयको 


कमे ष्म पौर पापी घठान्दी ठक छंरवय भुस्छ शे शी डा प्रदान शपि, 
दषा कि प्रकार कर प्रह! ` 


सामास्य जम 


भे$रसतमाधियो पौर रष्टय मएुदम्नमाषो पै मिल श्र बैश्पनके 
भोक्त का सेदरनविषठ पोजित्य निमि कर पिपा बा) प्रविशसि रर्यो मे 
दम्पह्िषिहीत सागरिके को यलाभिकार प्रात करम के सिए कठिन एप्प कमा 
पष्ठ, भो पष्ठः उन धामी के दीषरे शकम प्रात हो भया। द्वु पष 
मात बूत पदर धि प्पष्ट चौ एि्लङ ढे सिटाम्य केध्मुषार हर नामरिकिके 
पाह शम्ब होनी बाष्प, प्रौर द्विप लोपो ते ईमनिस्तात भौर प्रमरीष्ा दोर्मो 
मेदौ षो हमम्रेदा हिगा जिहर पतूसार सम्परि्िहीन सर्गो शे ब्दृषी हं 
ष्या भरिनिदि घरक ङे भौचिक माचष्डि भरपिार ठे बधि मी, एषषा 
स्पष्टः गणयत्वादी सिदधान्व के प्वूधार छम्पन सही क्या भा पस्वा भा, 
पमि ष्दबहारर्ये स्पे जातक शम्मयना कायम र्धा पमा। ईम, एष्ट 
सोम" प्र गोरदैते केः एषाम हविष भोयो दरार ए सथ्थपि श्रयण श्वी 
सौग, पैर. मैकपन के पामन की स्मौ के सिए पर्या वी! द्विप रष्टरवाब 
भैस्पोके कामाय मुकय" का पमरी्मे मविस्पमी प्रस्तु न्थ्य वा 
यथपि प्पदीष््मक्सोष्षो ष्य स्पापलाका दाङ्कि घमर्थन दोयम कटिः 


है कि जनता षग इमेपासदीहोकाै पि भैषटिसकेि एमम। 
परमरीडी रारनीिरु विदान का मद एक स्वमेष सूज बन पा ५ 





१ पछग्ि अमिन पमेरिकन गोतिरिष्तं दमी (श्पुवाकं १८५० 
पृष्ठ ५६.४५४६५ । 


२ पट तर प्रजापतय सो परिपरापादेते रम्यके स्प येष्ीषी 
जिते "कभी तोष भूस्वनो षु ६ 

$ 'भभहादधो प्राषाढ, ईुषदर को प्राथाञ है, एतं तिद्धप्त के निष्टतल 
[ष्टि पुश्बदं एषद के दोरेषठम प्राय दो शू सिवसपएमरो बार, कोना, 


१६ वेत, १८९६ | देकतिए, उणस्ये ग्रेस दे स्वीये, जपा सदर 
{ गोष्टम्‌ पृ६ } पृष्ट ८७। 


क प्रमरीष्यी बर्ठन का इतिदास 


क्िभगदाशवै द्धा प्रद) मेवद प्रभू को पिणिव षटरगा बा ञ्नि के 
म्मे जनमद शो परुडधकरमाही देप षा) 

राजमौतिक शोकटा्न की प्मापना पं प्रास्या छे मभक पपश्र हाप भा। 
जेम्पर पेनिमोर धूपर ै ब्यात पावला कमो प्रकट किमा । 

“ममपीकपो यै मादते मव दून भोर यै कह षका द पिधान मी, 
स्व भवपिष्ाकिकु सोक्ताम्निक होते जा सहै । हम पर्छ तए घमम्पै [कि 
कुष हमार गिरे हुए भ्वक्िपो के भोट दे सपृश्चि पा गीति पर क्रों बङ्गा 
सा दीषवीमी परमाव नही रातत सको, किन ब्म रहै पर॒ रनश्य प्रखनधोप 
अदुः ममर वैा कट घक्ता है ।१ 

सस्ापित यरावष्ववादधे हट करेय भैष्सतङफे सोक मे बिता गह 
समणठे षता प्राया कि ददन्ति पुनभिस्पणा ष्टी मी पाबस्मष्ता बी । भूर 
एक भपबाद मे करयो वी प्षमेरिकन शमोष्ट' ( १८१८ ) मे स्दोते भैनषन 
कालीम समभ््रान्ति्ो की घाबधानी षि घमीसा शये प्रीर चेष्टा ी हि प्पमे 
जेऽएएनषादे पिदधाम्तों प्रपनी परभिवाठ सचिन पोर शोकठण्न मे प्रपमी पश्षी 
भिप्ाष बरव बिता सस्ती शौषठप्रिपवा फ तरी के पि प्रपनी प्रणा 
को छामम रखे । शोकठरत के दन क दष्ट दे शर की रल्नाप्‌ रा्पूनिहे घे 
भपिङ प्यास देने पोष्य है पोर लकने भोर पमी वक पर्वाठि ध्यान नहीं रिप 
जाता । धपते प्रारम्भिक लेखन मे भी स्टोन दष पामान्य य कौ पमीञ्ा हरमे 
का कष्ट उमा कि सम्पति के हितो श्य मिनिक््ि होता भाविप्‌ पौर रण्ौगि 
पथिक धोकताम्तिक इष्टिका शो प्ारस्म मे प्रस्युठ किमा । 

कम इस तीम पर पटे है कि बिता पर्य्रिकारण ष प्राङ्क प्पायङके 
तपे भिस्ठं जाना उषित गढ़ी है करि किषी भ्पछठिकये केव ए कारण 
मताबिक्मर घे भशि कर्‌ दिया ए द्रि बह गरोव दै । सद्द माग षी निपिष्ट 
बाम यं घम्पतति षौ फो मौय ष्णं कमी-कमौ उपमोपौ व एकती है, नेषि 
षद परपिनिषत ध बड़ी कों मववी वष्ठी हो षण्ठी। दों ष्यकि कफिषी 
मिभित पृ्ी भाती कस्पनौ चे स्वेष्डमा सम्बद्ध हो पणता है पौर पने प्रामिक 
शि क नुमात मे कम्पनी के प्रबम्बमे पापेन शये स्वायोक्रिठ प्रषिकार 
हो घक्ठा है । लेद्धिलि जोढन कारं प्रधिकार-परिति पत्वा ही ६ । ममूप्योशो 
तारी प्रामस्यश्ताप्‌ प्रौर ममोयेम भरानम्दकेखाधने धरोर कष्ट के कारणा घव 
जम से ही उनके घ्ाषष्ाते है मौर बहुवाबषटौ धरमुदिषाका कारण शठे है! 


ग छम्त केनिमौर शय, नोभन्त प्रोढदी प्रपेषिषन्त पिष्डप्रप बहप 
कजोलष मेदेलर (दितदििम्धा ८८) परु १ पष्ठ ६५ २५६। 





४; 
रषटुषार धर धोक ¢ 


शपि पान निर्म एक अनर सा भुवन है, कु दा परती होता दै 
ओोलोष रतौ बतं निषि करट है उनद्म यष स्वामाथिकषयंष्य षिषः 
के प्रविष्ता का प्मान शं 

श्वि ॐ अतिनिभितव का धिदा कला ह कि जिषे पाकम है, बह 
स्य म्पष्टिकेदल दो ल्हौ रमा, विषे पास मरि ६। कस्तु प्रनुमद 
पोर रम्य दधि श्रा इत ए ? गिह पा प्वि़हावाहै बही सा्ंजनिष्‌ 
भव काप्रष्यप काह! भारम म्ङेभिप्‌ भौण द, बह पपे्चतया मरो 
परापमीके लिपषग वरहे सष्ठ ६1 निस्छनदेह चार पै वही पान 
स्मकं चत द परथि स्ते पदि हापरवाह्‌ होता ह, निरये पि केवत 
प्रपिकती पमो शरे सम्पति होती है1 

हृष देखन ट कि हमारा पाठम शोचि होगे दकार प्रषि् एस्ताप्रौर 
समिक़ एष द ट पपे पड़ मह ड़ भिनद पाष कप ह, उक्त प्या कपी 
कमो भ्वी मितस्यमिहा क वष्ट बनती है पौर प्रदिषाका प्रपि पष्य 
खमा कट ऋका भत श्च बत्य भा ठो है) हम एोपहेनवा का वारा मही 
कटे वेनि एमा जस्य षे ह हि मम्वव म्यह कतो सरोद धे परेषा 
ष है मे दरदः प्रश्या६। " 


मातोग्पोरस्पाङा विवाद प्रष्ठा एाननैपाजातादै पोर लाकहत 
शषा हिप का प्रवरस्य हा बाता 1 

१८९५ तक वदु शदएाडह अवीपोदि एामाम्दभरम पताङ्ड हदे) 
केत शे वर्वर परिपा ष्टी पूमे-कवपगा करना पैप गा । पक्त के प्रति 
पठा चौर चिरत्कमर शे निधि सादना, ह्रं च पमिष्यष्छि दस्पूभिते श 
स्वनो शररा्शे एल पणेयं ह ष्ट्रे पमपेकोयणदुष्ययेष्‌\ 
क्छ प्दचाह्ि गपि एामम्ठा मं प्मरीद्मये बरेगौभमा रके पौर 
गुरोरीम दोष प्मरीक हाद दो स्वयागत लोकतागिद्रतमम्ये बे द्वु सभी 
शूषो प्म्यो ओपमोर पौर ब्रोधके दो पए ममे-वैदना प्यव होष्हीषीभो 
कनी श प्रतिदनिवा को करटो पौर एन््मिद करही यो ! सेनी है पष्ठ 
मंत दर्जना ते परस्पर निष्ण श्प हिया | ैकयनष्नोन लाश के 
काहि मे वुत्त ष्ठि क्न गषटुप्य है, दु रणेक्य पवार है! एए बरं 
कषये क दमक भिक के लिक इते ररम भमो-कमो पर्यू शम्य के 
पिपर" क एमा मिलता है) स्दयद्म मगर वामो मेभ एक, बाधस 





१ शट इ प८्८२६४ २६९५) सम्पततिषेप्रधिवपरर कौ ध्यब्रपा 
पर द्षर के उश्यते शोनिङिगकि र पत्य स्था पपा है] 


क प्रमरीी दन क एति 


स्किजिमौर ने १८९६ भे श्वी राष्ट भोपर मैन इ प्रापय" शीर्षक के प्रन्वगत एक 
परभाभातौ पमचार-पुस्ठिका ज्रौ 1 

“भरती के ववं मरे भरौर षनी मष्क इस पर नभर डलोप्रीर रेणोनि 
कजा स्वामित्व का प्रचिक्ार प्रात करने केः धभिक्‌ 'सम्मातीव चरे को हमत 
रेता पुम्हापी पचिम मही है? प्रारदुम्हदैषा गहीक्लापो डरो) पै 
पुममे सलिए गही एष ष्ठा § कि दी घम देकर को हमा शना दुम्हारे 
प्रपिकाप्मे {| पह माभ प्रर प्रष्य हर शमाण नवमी वे प्रपते पतिकार्ये 
षो सममेगो इले प्ववं॑पपनी शकि इतनी ऋ होमो कि बिना पुमते कष 
बरहरा मित्ये नोक उचित धमकर । इवतिए पूण षड हं कि पनिच््ाङे 
प्रप्रिप ङि भिप्फव दृष्टिकोण शी प्पेका पष्ठ श्प ते देती षषटमणि प्रदान 
करना स्वयं दम्हारे हित के भविक प्तु्ूस होमा । १ राज्य ये धीन शाखं 
स्कतन्तन लामरिकों 9 हाय मंगोट है, जिम्हुपूम्हयरे पीन कों पशिषीन 
महीं दक्दी । मौर इम स्क्वन्त नागरिको मं शं तश्चये धभिकदेरे ¢ भि 
एरक पिक्चसी पीड तै तुमरे साव पौर प्रपते प्रषिकारये प्रति समके पब्नातङे 
साषभिलकर, षी षणार्मे रते की पार्जिपश्र कि जिस रामपक्षे 
मापरिष है सषमे उनक्ठी कोई सम्पछठि गही है, पद्चपि एप घम्पप्चि पर एका 
स्ना हौ पभिकार है जिना भ्य किसी बौषित ध्यक्तिषा। ^ 

पष बाच िडन्त भोर स्बबहारर्मे प्रसलती प्रष्लके ममं वक जायी षी 
तैक्रिन पव मिलाकर जैक्पलकालौन लोकतस््ारिनो तै भपतैपे अशोक 
पवर निमा भौर घोकतान्विक राजनीतिक पर्णा के बथान शोकतान्तिक 
राजनीरिक धमिवाों मे प्रपत वौगकागे केर्प में पाली-गपौमू भरी निन्दार्मे 
हो भगैर्दे। भैषाडी टाक्पूथिते ते क्तापा राजनोरिश छम्दजास कौ कलापे, 
अभिवाद की प्रथि प्रगुद तापो को मेकसकरष्डीगो। 

मपू-कगलेष्य के संपमादिर्मो भै छ प्रकार कै मिवा का एष बुरा उदाहरण 
प्स्व य पा। स्ववायर" शिर एम्ठ^“ भै मो एक घौम्यध्वषठिने स्यम्‌ 
प्रखिटि वे श्ठा-- भढ (भोक्त) एक प्रदएमात्‌ मरक ह, निषे प्ष्वाषठठाप 
मप प्रौर यातना के बीज भी उत्छष के स्वर गृ्ते है, षयि पपूमब बताता ह 





\ १९ चोल स्किविमोर शी पष्ट प्रोह यैन द प्राप्य । बीरुपप्‌ 
प्रोमे्डीपत ट सेद इट ईववल पएर्मय शी पुखटस प्राक दो पष्ट नेतोः 
(८९९ शयु भोर, एम" ही पीर सी* मकर की प्तक श्मनेरिकित इषा 
स, भिक्षापो १६४१, पढ १ एष्ट २१९१२६४] 

श हवायर, पोट धूस्वामि्पो के किप्‌ परु दपापि-भ्युन 


म प्मरीशयै दण का रिष्टा 


क्ठौटौ & । प्ामान्य विमात्र मठो कमे पूतौ पोर प्र्नष्ोपलगक्पवा हेग 
दसौ छदी है जो श्ुदियों पौर वर्यो को पप्म-भमग करती & । 

“पणर हमारे बहा फलारपरो छा छानदार रिका होना षै, धो पष्ठ परेर्णा 
अनत्ताकीस्पूतिसे ही प्रावेवी । सरलो कौ चापषूपी करै केनिप, पाबय 
एमि के लिए प्रतिमा पूजत सही करेगी । खये पजि न्पाप प्रमो शपे कामता 
ड, बह सभक म्पापक्‌ प्रहातुद्रवियों घे पोषण पादी ई । 

"तता का सुद निकि-निर्मण काण्वा लस्यहैप्रौर पह वमौ प्रात 
एकता है जम मानब-समुदाबे को स्ववं प्रपमे हितौ काक्चान होपौर बे स्थयं 
एगका भ्यात रलं । हमारी प्वतश् संस्यार्परो मै मनुष्यो के बीभ मूके ध्रौर 
प्र्माबनीय मे शो समास्रकर श्या पोर कुल-पवंको पनु कणेति 
इनकार शके पह स्वीकार क्या है कि प्रामान्य दिमाग ही कितौ प्रजाभिपत्व की 
घण्चौ षामपरौ होवा है। 

“घम्यता ष्कौ प्रमठिकी सही षयौटी पहि घापान्प भरमार शौ षरि 
किस पौमा धक भवं प्रौर पाविक् शि पर पमा हती दै। ¶ररे ण्यो 
जलता चि प्रमति हौ पधम्पत्ाकचै प्राति शची कपौटीहै। ^ 

षये दास्भीम पएन्दलाल प्र अर्मनर स्वणङ््यताषाद $ कर ट्वा जा 





१ जार्ज देक्मूट “वी पाफिष प्रोठदी पोपूल एन प्राटं पदरतमेष्ट 
देष देसिजभ" “लिट रेरौ पेष्ड हिष्टोरिकषस धितेसेषौण' (पूपा १८५५) ते 
पृष्ठ ४ ९, ४१५, एप ४१९, ८२२ प्रौर जरे भ्ल दात सम्पादित 
भप्रमेरिषति पिल्न्ि पेदे २७००-१८०० (पूपा १९४६) तै 
पृष्ठ ९८११४॥ 

२ दशोणट हार्षरंके एत पुष धये विन पर षणि स्‌ स्नवनरोततर 
चि डे समय अर्गंन स्वण्तन्दतावाव शा यहरा प्रमाद पठा पा) देता प्रतीत 
होता ह हि देकतट के विदितः लोढतान्विक जिषार| कर प्य उनके पिमाद्रप 
काष्ट के तीतिप्ाद् प्रौर श्ीप्प्माच्ष् के प्मंघाज् ढे एष ध्पाजहूरिकि कयते 
हा । सम्हेति घर्डमणम एन विचारणे क निकल रामतोधि क ष्ठि पा 
इरि्स श ध्पाषया के क्य द नहो बर्न्‌ पिपा क दर्बमे केश्य ते स्या | 
र्हि षीद किचि चवुर षि्न्ता षे एकशतं के तिर्‌ चपर्पकमषे च्यते 
पर्न वा, जिघरहयै स्वापना अरम्‌ एनहेनि पोर पनढे प्ड्योगिरवो ते 
जोवेम्यटनर्मे शे (१) पूतनो जाया, मौ मावा ठं प्रपम (र) भोनतिक 
्नप्रासन के सिर प्राहधिह इशित (१) पताम प्रनियोपित्ता कौ कपि, 
(४) शारीर दष्ड ध्ये पनभपोत मनहृए उनद्वी समि, (५) काप को 


१०५ पमरष दर्णन फा इषस 


"मके पुरस्कार-परम षा ष्ट्श मिना बाहिए्‌ 1 भो पथिक प्रम श्रे 
छसे पथिक मिहे पौर षका प्रवि्ोम भी । म्मापारी कुद स्सन्र मद एरता 
केश विनियम करता है । धत पयर बितिर्माठा पौर खित के मम पर गीनिव 
खता है 1" 

गानों बै मिच्धियो षी पष्ठक्ता दे षन्ति मृ सफ पाई । मायै 
स्वतेश्वदा का प्राधे निस्वार मिद्धो पर नि्म॑र है । 

“जगता प्रज है । प्ष्यनपोल ब्यण्टि उसका साह्न ६ । पर्षद्‌ श्छ 
क मे धिधित लोग प्रतु षी रा-परिपह्‌ है | » 

नह धतामा पठाम नहो है छि भव बेष्टोपट स्वयं धपनी ष्टि मे घन बोल 
ष्ठ है एयर षष एाथनीति काशत करय ह) इसी प्रकार उष्य एषा छंद 
सम्प श्म इतिहा (हिस्टरी प्रा दौ बूनाण्ठैड स्टू) पा मरी नोर्पो का 
इथिहास' ( हिस्टरी पा परमेरिकन पीपुल } षैखा कि उयो पथिक प्रोचित् के 
सापक््नादा है पमरीक्य पे स्वतश्यता के निषा का एक बस्वूनिष्ठ निषरण 
मी, प्रीर भसा इनके मिप कटा, "जेक्यन के सिए एष्ठबोढ भी गेष्ेपट 
का विद्वासं पाकि इरिदवाय स्मच्चताश्म षविहाष है पौर निर्णय का परमप 
हवै । अब उनि %ामात्य दिमाप्र शयी बाव दौ तो सनक तालं जनता 
सामरहिष दिमामष्ठे भा ) खनका परारूरवार मथन दौ प्रपेसा हीमे के प्रपिक 
निकट जा । वदभुसार भम एन्हेनि पपत पहवोमी प्रोरेस्टेष धारनखस को सिवा 
कि मनसंमूहं शादिन पब पारया है, ठो धक्का एक तष्य प्रषु 
कर्ते के साष-पाब एक कैला भीदेष्ेधै। 

जिष प्रकार जोस्टन कै लिए मेष्ोपट परेधामी श्म एक ष्णा चे एठी प्रकर 
केषर कै हिप ्राठनघन शै । डेमारेटिक श्ल जिषहदत्क भा प्रक्वापा 
ब्राखणसन सोकूत के सिडान्त पौर ध्वबह्मर्‌ दोनो को स्ये कच परे 
ङे णये । पंस्मात्मक पुषार के बिएुकाम करने की प्रेरणा उन कमाये पपतम 
शष्ट प्रे मिली पी । ्यर्ठेष राष्ट को प्रपीत का एक दिष्टि नमा गा है-- 

“यै स्ख अमवा को घम्ोकिवि करती हः जिसकी पडावा गृठ दितो है 
मद्ती हू रणिता घे पीडि ण्डो है सौर जिष्कपे घामाजिश प्यगस्था प्रर 
सापाजिक ष्यबस्मा पौर सामाजिक सुङ को बढ़ी हर बुध्या से इतरा वैदा 
होपयाहै। यै ई्मलशर घोयो से षृड्तौ हं जिनतं भरपनी हमावराचेकचिप्‌ 
भपहै) गै मानवी पीर भिरं हए भनुर्प्यो धै श्वी ह, प्हनुगरचिकेन्रिप्‌ 
जभरतवबद प्ह-नानरिर्के ठे शती ह पमान प्रधिकाणें पौर परलस्वहप माण 


१ ष्ठी, पष्ठ २। 


१०२ परमरीशयै दन श इतिहास 


सवसय छारे ही भ्याबहारिक सा्मोश्ो नष्ट कर, बारिस्टों, का स्वामागिष 
एषु दै ।..बेभारे चाटिरसटो के प्रति मापी निरा मध्यमम की षणि पौर 
शस्या धि उत्पश्रहोषी द । एर्न्ा परमाव बास्थनिरू छठमु केवत माबि ६ । 
समी देशोमं बहौ बाह! घवा िला मित्ते इसके महत्व कोषटामे ष 
हमाप शो भिचार नही है, किन्तु इम स्वीकार करते है कि हम फस्मपाणको 
घामा्जिक स्वितिशै भराय का भ्रमोष रपाष हं देब पठे बैवा कि इमरे 
कुव मिभ देखते है, पा देवा कते ६ । रस्वर ङे लिए छादमात रिम कि 
मञदूर षो प माप बौद्धिक चि्नवारी कैसे मङ़क्पते है । प्रपर प्राप उणु पुपो 
षी घी भाष्य दषा पंरखमे बले ठो हवती सामाध्य दग्रा रिचा ढि 
उनके शिलि पोरशिमागूकोभी पद्मो णेषा ही रद्य । भौर परव कमरीयर 
प्नौर मालिकके कीच कन पभ्रौर भम के बीच पपं प्रारम्म कोवा) हर्ज 
जह संबपं प्रणिक कसा है, धष पौर वीदवर हेता है । कव भोर भ्या इषका 
प्रष्ठ शोभा, धते केवल रैप्वर बातत है। हम इृषामी के घम गही है 
लेकिन हम साफ़ कहते है कि परगर्‌ स्वामिगौ पौर मालिर्णो से पञ्ज धिहत्‌ 
करणे बा्ी एक धन्श्या हमे रहनी है, तो (म प्डधामी-परणा को बेततन 
स्यगर्था ते निर्जित कप मे प्यारा पच्छा पमम्मेहि। इम म करती षते 
गो की परश्रति का कोर पणन नदीं देते बो. स्मूट वकी मनुवूत बाहे 
भिना प्रमाधकारी दष्ट षशे। पगरयहकमौ होपातो एषदेसे एवे प्रष्ठ 
होवा षैषाह्डसंपारवे प्रपीष़महीषे्ा। र 

बे ते ्रौप्रता धरे पप्र दौ श्रारनखन नै मपतै भृर्पनापूं सिदत 
धमे चौपटकर दिया दै। भारनसतं ते बादर्मे स्वम स्वीकार किना ( श्यै 
कलम" मृ ) कि यष्ठपि श८्४ के पतते -ल्य॑कृर दिद्धार्ठो" शो दोबार पुने 
प्र उन स्वयं बङा कप लमा, हन्वु पूवी पौरपमके म्ब्व पौर भेन 
ष्यबस्वा सम्बन्धी प्रपते उन निषा पे ढे को वलहदौ भह निका" पते । देपे 
भिज के प्रात कम तात्कालिक परिणाम पड़ हुषा ढि होत के घाव धृष 
पमं मे परा्सरणादि्पो के गौच परए शेना उनके लिपु पावद्पद हा पवा। 

केषर कि दनक्ष रिप शारगषनसे भीष्वारा तीष भूल थै शीपरपीरद, 
यैडादुयेर्‌प छः रिचा दित्ेव 1 रनीधि मद्धि, पेये ठेबश्यैल पोर्‌पुष् 


१ शाटिस्ट--ञ््ौषयौ एताम्दी क पूर्वादं सु दंगतिस्तात पे चे एक 
लौकताग्तिक तुषपर पान्दोलतं के प्मर्थक |-भनु* 
२ नरि श्लो दाप पथ्यादित श्छमेरिषन प्वितोदमिक दे के पृष्ठ १४९ 
१ १८१, २०१-२०४] 
॥। 


(५ प्रमरी्ी श्पंन का एिहास 


मार" ( नैवि्कता का षिदान्द १८४४ } मे सामात्य दापुनिक परभिस्वापन है, 
जिपका घाग उन्मि पष्यतरबदेरतमण्यर्ये मस्तु शषा 8! 

“भ्वी वेदिकया श्रौ अगति भ्रौर सम्पदि मह मेवा बो भनु शरो 
भिक मूको गगने मे ै-सर्वपषम डन क्य प्रयति परनिर्भरहै, गोहे ष 
मौप् केता & कि मानय पु पर किरही कयो था का्यकमा्पो के बास्तमिक 
प्रभाव का रवादा घी पनुमाम समा सङ 1 दूरे पोर पुस्य स्परे पण्या 
कौ ममिपाश्चै पापै सिके बदु पर मिमरह, भिरे रा हम प्रश्षेकमम 
कटने क परोरग्रेरिव षवे &। रै श्व गवीवे पर म्री प्ट ह भौर शायी पुस्वक 
जं पह सगे मद्त्वपूणं निष्कं 8 कि उदसता कौ भाषना की सपि पछि 
को स्मे का पवर एक्माष नही 6ो वते प्रमावसासी रपाप पन भसंचवक 
पीपर श्व पक्थे बहाना, बो दारता की मना के धेये 
निर्वर ज़ भनी ठो पा उकम प्रतार करदी एती है । भो लोम मिरतर 
स्थम पमौ पीपरो से कताम एते है उक्ये यह पशा श्णा छि बे दूरे घोरम 
कौ पीद्मो ते पिक प्रमाबित होवे, सनुप्य ® प्रहति के भिपरौठ है । मनुष्य कौ 
प्थारा भश्छः बलति क तिप्‌, र्मे परारम्य उसे धरिष पु्वी गाने ठे कटा शेवा । 
धमार फ छार पादरि्नो परर प्रोणेरो ढे षार परेड भनुप्य-बाि का धुषार 
करकी ज कामी एपयोपी नहीहोगे बबवफकै परर भौर मोफरएन 
जबरदस्त बरा भ< पीड़ापो शरो जिनसे बुसं्मर मनुप्य पौव $, कम 
कर्मे फे सिप दुष भी करना स्वीकार मदै क्षै बतिकि पसक भिपरौत एषः 
अरोगो शये ईैर्यरीय निभान मौर प्रति श्रीदेनष्षररङ्रं कापम रक्षक 
अजारसमव प्रपा करवै । 

शमप्रतीपौ दर्धनरमेभीषौ पाठ स्िद्धाफो भो हमते राजषीतिमे 
शरसे ही सिष्ठाका--पठ पाठ ह मनुष्य प्रपते लिए जिक्र पौर भपमा षाण 
स्थं कर पक्वे है । प्रौरपोपषपाश्यो ही रवत ही भ्यं, ठते ही बातत 
चिमे जा भोर भमित षयं । ^ 

भ्रपम किए निश्रार कलै पौर प्रयता धान करैश्च मदुर शरौ यह 
म्पा भनुमष पोर बुद्धि के हाय भवती है । मतः पगोवके प्रवुमार नेतिक्वा 
पए पमतिसीचच मिङ्कान है ! इतीते डे पह भौ सतौया निकाप्वे है कि पापम पति 
षिध पयति & । उको निरी भार पालिरिकछ" (रणति का सियान्व) 


१ पण्शादय्लेदरर र प्रोरेष्टेतप्‌ द्ःरनसन देष्ड शौ एषिरिरप्यौरौनाथे 
„ अभेरिकल रिप्पू इन दिम शो यरिर्द भो शौ शौ प्रिस्नि पिम्‌ इन्‌ पूणः 
) ष्शौ नो किर्जियन, पेष लिष्तिबैरर् देन पेन एषौर्ट (बोस्टन्‌, १८१४) } 
1 


१०६ प्रमद शंन का इविहाठ 


ष्टो क बौ मातमत पर बङा भारी गोम) प्रौर ष्षृुख फ चिएप्पनेको 
अचाना कठिमि है । ^ 

इष घमस्या मे करि वनै ष्टके बीच' शद्रे लिए पपै षो 
अधताषटिनि है हितदरेव को प्रपते शन का दिदान्ठ (पियरी पाठ कस्म) का 
मुख्य बिपम सुप्प्रमा । उनकी स्वापना बी फि केवह पुमबितरणा से कष्ट का 
निरक़रया न हो सक्ता 1 

“सी प्माज जिेव फ पम्मक्तिति प्रयो घे जिन प्रश्ी भततर्मोक्म 
सस्माइन प्रमी तको धकताहै, भे एनी कषय नही हैड्िहेर कों एतश 
प्रास्मादत कर एके । प्रौर यह पाबष्पक रहा है रि बहुसंस्वक नदा धै कवत 
रोटी भौर पानी पर. कौ मेहनत करां बायै जबकि भिाघष्ी पौर ध्राराम 
षी भस्तुपं भी केम क्ल शोर ठक प्ीमिव दही) भम-बो बिणल 
चअगपूह का एकमात्र साभन है--का मूस्य कम रहय है, भवो भम क्य एत्पारन 
कम्मे पौर एत्पादक भम णल इतनाकम होते क क्यरण षके 
स्ान पर प्रषेन फे घाधलकेक्पमे छल प्रौर हिसा प्रपोम को पेए्णा प्रक 
फीहै। 

प्रता भगुष्व णाति की पहल बड़ी पावस्यष्ता मानव भम दी इत्पादन 
चक्ति को बदने को है । गिहान ते पि्ठलो इतान्दी म इत निर्म बद कष 
द्मा दै पौर पिप्य मेप्रौर भी भकिकि करेमा पह निषि है। इपारे 
समरौकी मादौ प भिषठास भवै हेन देये बुल णे है, जिणमे भम का लामरागण 
श्पयोप के घष््ता है । भम नका प्रपने प्राप ठ्‌ पर्माहठ एकमात्र लो होत के 
कथाम चैषा छगु राणनीतिक प्पं्ाद्मी सिते है सये पथिक निरिति 
भौर कों भाच महीकिपूरोपम्‌ बहुत रि्नोसे प्रमकेषाुस्पषा रोग णाद 
पौर परब भौ है- रस पर बहुतरै देसे बोो को चिताते परहनानेका बोम 

जिनके लिपु फक्चदाक्क काम जरे पास ही रहा । पङ राज्य धनरीष्राभे 
पर्ब पेसौ स्विति प्राप्त श्रशी दै किहरब्पं पूरोपषि भते भले पंच धेर 
ज्ञा तक पापासो रौ मासात ऋर्‌ पश्वा है। 

'छताष्क उचोयो छ जिकास इस समय मनुप्य बसि कयै सवे बही पौर 
दात्छ्िक पाबस्पक्यापों मे ध एक प्बरीव हेता है । किण्तु इस गिकालषेलिए 
ध्राभ्ति सौर प्रामाजिक ध्यक्स्वा से धकिकि पाचस्वक पौर भ्या दै ? 

श्वल ङे भटवार ढा समाचवादी प्रस्न एष भार एठ जामे पर रष्वे भोरसे 
प्रच तदी पुरी जा एकतो । पएमाजवाधिर्यो भै णो दवे पष्ठ वे क्री 


ए विपरी प्रो मारत ( बोस्टन्‌, १८७४ ) पष्ठ २७१-२७१ 


पष्ट प्रौर्‌ लोकमय १०५ 


प्रमपदेश्ञेपरा खु शार्पमिक सिन्द पर ध्णारिव है, विममे ठि ङ्के 
द्याह प्रमपेक दा उन सोलो मे भी है थो एमाजबादिरगो श्ये सक्ये प्रनिक निना 
करे है एन थो फो इषोपो भौर शर्ाश्यामो प्रौर पष्प्पर दोगारोपण ङक 
दरा छपा बौ छिदा जा कटः प्रर धम एमन भरौर दोप के दारा माप्त 
स्वाभा वक्ता दै । वहु एमस्यः दार्॑निर्ेकेहिप टै, प्रौप्णवषककोरेरेला 
ङ्त गही मित बाता, लिये दोनो प निरय मान जं, तव कक प्पतिङके दम 
को प्रादष्वकया श्यं क गृहौ ६ै--जिधके सिए बह पर्रिकर ककार 
परोपय दै-- बरक दिधारडिमपं पोर बहस शै है रएमीनिषर्यो को पहने 
मभादश्े पसद्धादंको पाटना द्येमा पम्यवा बहे जितना मो दे भ्रोर्‌ 
लद्ठीसिपौ बयार जपि प्रर घोर माया भार्‌, भिजाशिवि पिमो करो पि धै 
एक कते प्रमह्ारौ कष पे पतिपी् सदौ माया बा सक्ता) ^ 

इवीनियरते पर पै सामारिके व्यति की पापा केषर है! दसो स्वर पर्‌ 
शश्केप का "एबनीति का हिदाण्ट एमा हदा है! ठत दरण पृद्धिष 
पष्ट पोर भैकतमकनलीन भिपो्ध के (पिष्ट सिन्ध पंपोथित हषर 
घामायिक पौर दैनिक नियोन के एक प्रपागपासतौ पौर स्मानुूल चिदान्ठ 
क्ोष्मब्रए क्रते ई 

दूपे भव पे -जैकएनकातीन शोक्ठत का एष रिपिप्ट स्प मे सथल 
अभिनव मिती । चोप स्थ परं श्पूदाकं स्वममिप पोस्ट" के सम्पादक विशिवम 
भूत धराषष्ट भरौर विलिम्‌ ेपेट गे प्रर परदे पक द हकतिग देती एय" 
के लम्पार्क र्ट द्विटमेन गे एषष्परिदा का खथ स्वर इमम का प्रीर्‌ 
शोकतारिजक दण ( वेमोष्धेटिक बाती ) को दे एमप से एरिति प्रतिर प्रो 
शजनोतिक प्िठाम्त प्रदनि कपे जद प्रप्य प्राह कलेकेतिप्‌ से दोर्मोकी 
धायप्पषला जी } दन पौर द्विसयेन रोगो ते दही स्वदच्र स्पापार्‌ पौर प्रद्र 
ग्द्ठोषक पिड्धान्तो श्ये पिमः पारं दी, ददु मेवैर पौर षाद मोरभिन्‌ ङे 
वामपो तूल कप परेरा दे उन्न पपे संस्मापिवि सिडान्लो छा नेषीन शप 
यं श्रयोब किरा । 


१८६५ वै र्मैनी हर्षते मेरेट कजा । एव्र एष्मपिशार बिपेषी पुट 





१ पिद प्रो पोलिरिक्, पष्ठ १०६१ २०७९ २०१-२०४ 

२ ण्यूवाङं त एभरहौ स्व्ल्यता के धए्प-दल दै ही एपिमात-दवी ङे 
तिष्य बेश्रषतधादिपे का एकः पुष्यतः मम्यमब्वीय मृ; शो प्रषशौ 
अगाचप्ानौ 1 प्रेण तत्ता के विस्ड, इन्हे परपना बाम एष अदर प्रौ 
इदिषाष धारिथातो तप्वार रेनेगौ" के नात षर रशा श्नु, 


न्य परमयो दग षय एतिहागर 


या मजर कसं ( धरङिमेम्य पार्य ) ने पचपच प्रपमे ष्टो पर्ने मे पाया जब 
पनुशरवारिर्मो ने पमा उम्मीदवार मगोनीते रमे रोती इष कर दी, किन्तु बे 
हसर्मेष्षोणमे षे भौर शोग्योषो) ब मोमबच्ियों को रोरी मे रद्रषि एव 
स्वतत्यपंस्याकैस्पमं प्यते कौ संयव्ठि किया यड्‌ पुट ध्चिशादीहेम्मा 
पौर रष्टरोम स्वर पर मञ्ये $ हितो पौर भेको शि बिरोषकानेतामाता जाषै 
तपा । शोकवरत कषो नकप प्रविस्प जो पामद्रीर से शोकोफोकमेदरम क तापे 
परखिडभा उरो भकृखनमाद का प्र स्वर बत भया | निसिपम नेभेट इषे 
छिसार्म्तो छ सर्बािक मुखर प्रक मे मप्चपि द्ायन्ट भे एरु म्पू-रंवचेष्डवाी के 
क््परमे दे प्रपना हार्दिक घमर्भण वकर इसी बड़ीरोषाश्यी। पोस्ट उनके 
पम्मादीम सेरलो के मिम्नभिद्िठं ष्ठरयो से पाठक को एस प्ाल्रोशत की पति 
क बहुत कु क्षान हो जवेपा। 

शपा सी चीज कौ शस्पना श्म णा सक्ती है, थो सष हतु कौ प्रणा 
चशएतामाम्पामषौहर याभा के पषिक प्रविषूल हो नो हृातूनी मूल्य 
निभेरिणकेद्वारा प्रमौरयो शो गैग का वेठन निर्बारिति कए का कादूती 
परषिश्नारदैताह? प्रमर बहे पुमामी नौ, ता इम पषामी शै परमिप शूल 
गद है । स्वत नामरिकिके प्रषिकातो मेघ समके जिवके ति्‌ सपरन का 
प्षिषार निकास रं तो सकी ह्यसते भी हौ हो भाएपी जैत्री ती मार्चिषके 
सापेबाक्षमीनङ किसी दुष्य के दाव बोकदेतै परर । धमर मदक रेनका 
परत्तर ध्रौरभम के प्रसुबन्ध प्‌ स्ववं भपनी सतं र्त दा च्ोया-पा प्रचारम्‌ 
होतो दकतिएके प्रणामकरौ प्पेष्ठाश्वरके मञदूरश्ची स्वितिक्पि मर्य 
प्ष्ौ द? समर कालत करते के निदषम श्य मातवी हनू के द्रा द्छतीय 
जनाद लकारापतमे स्वदे भो स॒त्रा पिव्रती है, रके मलावाप्रोरकोदुसवाईे 
चौ फिर शष कोई भि्येप पन्दर वही पताह दामने वामापकदहै गारक 
ई, भ्यिः या म्यगस्पा दएुलामी कौ वशित प्रक भरती परप्मपै पाषिणमा 


चेगी। 

शती प्रपने सामाम्य हितो छो मण्य स्वीकार कते प्रोर वष्नृ्ार कर्ये 
करते है । फिर गरीब दसा भ्यौ तकृर्‌। वैडगि चैरेहौ परीनो पे प्रप 
प्रभिकारो कौ रसा छ ्िएु एक होने की प्रपीत क जती है, तत्काल धमान 
शते मं पड़ भाता ९ । सम्पत्ति पूर्व वटी षह बही प्रौर जौषम जतरेर्ने 
पढ़ भावा है । पठ पाञ्ण्ड उस मम शी भिराषव ह जदपृरौग प्रोर मग्र 


१ शोकोष्मेो--बर्यहि पृखौ पोर सक्त अपह्‌ पर रपुने ठे चष रव्ने 
जालो दियाटलाई ।--पदु* 


रष्टरभाद भौर बोरुदम्त १०६. 


बयो द्ाष्ठमायमं कोईदिस्छाग भा प्रौर को पपिङ़ारनभा, सविमद 
प्रलिकायेकेथोवे वलपूर्वक आप्त कर के) दततु पग समदय बदनभयादै, 
मद्यपमि पाथरड्बदीषमा हप 

एषठ परती पर जिवन मौदेखडहै बाक्मीयीमे उमे महएकदैषाध्प 
है, जद घन पौर शरयिडस्य के दमे दर्वोपिढ़ मिराभार सिवूल पौर हाप्यास्मद 
ह। दे क्ति तृक बिप्िप्टता छ्य बभा सही षर्‌ सक्ते । उनके कोर परलय, 
जििष्ट प्रषिष्पर गही है, सिका स्मारो दे प्रसहने माके भनिका्योके। भो 
पपी लममच्चि ठो हमेखा के लिए भपे दंपयोंके एए दुरक्िकणे कीरो 
प्रणिन देषठी पू्ठ व पमिजाठ भपेकाङ्पषएाधोर दके थैय दमे 
करना ववा हास्पाप्पप द 1 य़ निकल सम्म्व है फिष्हबे स्वयं मष्धरीषो 
जिं पाक्सी भी पृष्ठम्‌ उमे बण्डेतो भिखारी षष्ठे 

जेद्धिि कम पूरते है ङ्िभमर मूर श्यं सपने रानीतिक़ पिडन्वाके 
शपपेनरयँ, पाशरपमे तरे ज पडे घषर शी रषा केप शपृषषहे भषि 
है, शो श्यै छरा षडह? उव रने जिराषी मिल करकामत श्ेटहैवो 
भया पुं निम्र हम कएने श्व प्रषिष्र नही है } हौ गी कषा यह एन 
प्रगिनाके शम्य मीहि मे एत स्मतम्धदेपर पे उत एष्मातर एषु के मिष्य 
एक हौ जये छन मव है--प्कानिङार मौर एष विस क्वाययौ प्पब्पा थो 
फट पीर करमिष्ट में पिलादैतौ ६? मुष बह एक भिकिषर वएाठनमापी 
स्िदम्ह है पौर एक विजित -पएतान्रिक देण है कि एक प्रामाम्न शयाषर्मे पुष 
हमिाग्प शस्य के पिए, लार्मो के एक शतैशै प्यक भोर पम्पि के प्रमिकार्णे 
केचि तरे कीपाष्व्यद्ऽश्प्ि हती है) ष्या बनताके प्रपि षर 
पाषाण भवा की सरकार नहो ह पोर भ्या एदि के प्रनुकदि इस्य्तप भौर 
भगपिकारयरा पे घनो रा भरना इष स्थापना करा विप्ििपट गरेस्य नही 
है? पौर प्रयर लापो शो छामा दिठ रतने श्वे धनुमशि नही ह, एामाम्प 
माषनापने क्पयं कएने प्रुमवि तष्टो है, भवर दैषानिक सपा्यो श्च श्न 
एष्व क प्रदितेष करे के विद कुक गह हो धष्वे, तो विपिनिर्माख पौर 
पपकं क़ इलाध पने मतापिकार का पयागर कत्ते पृ रु कवठ्य पोषि 
कषमैषडाक्वा पततवहै) 

थ पशक्मर है योसंपाडनाकतो भष पपरष समण्मे फो िलाशाक्ष्ये 
है पौर उ स्वन म्पापार्‌ के दिष्ठे भिलयुन प्रतिकूल शमम्ये ई । पौर 
बुष्प यह्‌ हिमस्य को जक्तौ दिउ हातून द्वारा दष्स्नौप बना पिपा जाये । 
स्वठशय म्कापार्‌ सम्डन्वी यारी भारा कै सौद सिच ह पोर इम श्र द 


११० पमरोष्ठी शरन शा त्विष 


मडि उभितश्रष्यश्यो परति लिए मिसयुते रया प्स्े क्के के 
सिए मनुष्यो शो पृर॑त- स्वत छोड़ दिया णाप । हमारी ष्च मेँ मोजो श 
चरित पूर्णतः रत सस्य क भान्तरिष चरिष पर मि्म॑र है विका धत्वा म्मा 
जाई! ~ 
परु ढल है जिसके पौषे मिस्मौ रौर मबूर हुरलिठ सप मी सामान्य 
छु का जिव करवै ढे धिएु एकव हो सक्ते है जिसके बिष धपर षे भके 
प्के चर्ये तों तष्ट हो गेये 1 बं ष है, 'संपोणन श्न धिम्राण्ठ' । इम रण्ड 
लाह दमे कि पके पी मे परत्पभिक गम्मीर मामसोमे हवी ररणा लं क्योकि 
भप मातिर के ताण रनकै टकरावमे जैदेदो राट फ़ रकराष पे पेरबन्शी 
कमे बुसस्यक बुरायोकशम पमूममम्पूतापिषू ोर्तोही पोषो होवादैप्रौर 
इस कारणा परत्पधिक घंट क धमय ही ¶ष्मे पड़ना बाहिए । ^ 
सयू-वसेद के बुद्धिजौभिमों मे (लोकोषठेके' लोकठन्व शरी मागना पश्यतः 
अकरि मोर हर्त पृषं हई, कु एमर्खम यी एषे प्रभावित हुए 1 भोरटम 
मे १८१९-४० मे उनक्ौ माबणए-माला ऋ पीप भा च्तेमान बग" भौर इमे 
एमन तै गताया हि कसि प्रर मानष माब में ठक्ुडि शची छार प्रनतिभे 
परम्पर के भम" छो मष्ट फर वा, फिर फ़सि प्रकार उसमे रपवोधिवा्भो श 
छप षम से प्रलम कर रिया निषठक्मा उन प्रतिनिभित्व करतो चाहिये कि प्रकार 
वती होते या शक्य घारे शंछारश्े प पवाहै। दतु एमन ते परायै चलकर 
प्राक लोकयो्व के भारे मै कृडा क्कि सब मिला कर पति दव" (एवर्मट पारी) 
चीरे-षौरे धणे बहता ¢ बैस स्वयं सार की भति ए । जि मदात्‌ भिचारने 
ममूर्पो $ हर्मो प प्राघ्ा उत्चक बहुस्याश्चे किरणो कौ भि पीरे-ीरे 
श्रे छैतार मेँ पलत भावा है। * भियोडोर पारमे भो पएहसे भाव्णामे 
उपस्थि षे, तिजा 
वह घरां धा षारा "लौक्तान्िक वोदोषटोकोः भा पोर श्वारप्लौ 
८ श्ाङमरन शी पतिका ) के पिते प्रक ते सोकल पौर पुषार्‌ पर शारनघनं 
कपे पवता $ पृरतः पनुकू्तभा। देकपिटि भत्पनिष पानन्विव दे । 
माद्या के 'लौोपरो्रेषक' पर वे कश्पवाटीव क्प ये एवे, पौर दसरे रिति 
णाम शो उन्हति प्॒म्प्यै का सिन्द भौ भोपर फे बमत दै रष पुष्पा 





१ बरना त्मिज हारा लभ्पारित "यो उेनाेटिष् प्पिरिट (व्यया १९८१} 


प्रष्ठ २१० २१४) २९४ २१५ २१५ २१९.२१५२१९] 
२, चेम्त एलिदट करवट, प्‌ मेम्नामर प्राप्न एस्फ वारणो एमर्भन (यूपा 
$~ 4 ¬ >) शत्न 8} 


ष्ट्वा प्रोर तोकटन्य १९११ 


सवनी मौ कम हो, दौ बरे भना बौ भोडहै, दिवे हमारे मस शर 
ज्य" ( मेघाभरेदूस ) क मघ प्रापे तो हम इनके सिए तीन इवार भोर प 
रदे । एष भम्तोर, द्विप सयते भासे सम्मतं डे एक छाम एमर्धम को शूना 
थोर क्रा किसने देसा माप्यहैने शै बाठदे यदह माम करी छममः पष्य 
हैक षे भये रेकमेपट के पदीन भवीर मे कों स्पान प्राह कष्ण 
बहते है 1१ 

बाट द्विटपैत श्म पैवी पौर उनके विर भूमने पोस्ट" पा एमन शै 
पेक्षा प्रथि भादुश्छापूर्य बे 1 उनके पम्याश्डीय सेध लोकोष्ेषो भाग्दोतन 
को ए पौर दक 6४ चलाते रहे । रदाहररा स्बष्प-- 

लर्ताण्जिके मिरदास शी प्रयु भारमाए्‌ हेषा प्रपमे एपधे मागे यती है 
मौर दपर श्यरणा उन परते पूरो ठे शषसा षठा है । बे भिव पंषपं म्‌ पडे 
ह उलपै षरु-कएण के गही, बर मैव शास क पराषष्यश्ता पद्ती वै 1. 

स्वयं जेफएपन के प्रभाणा ङे पाषार एर हम कड कते टै पते प्राए्प 
के पाप्नक्मम के प्रन्बदार्-युवर्य धो कप्टदावषट उत्पीडम पोर पपमाति ठत 
छोषो को से पे उनका शो पुमान धौ जवा सक्या । दन्तु स्वम प्रप 
षष पाह इदर्यो शा ष्या नेश्र पौर एरु पोजिस्पदूणे तष्य ठे कषवडारा 
शु फ शरवे पि नही} छार भका परित्पापि कए बे निरन्तर पपत 
िद्ाग्ठ को किर पौर एमम्पते भोरबुषे भाम प्रप रिरोषियो ढेमदके 
मूठ परर पयाय कौ भोपरा कणे हु जना के धमक पर्ये हैम पाम 
पटी के दिदिम्तोके मारिष दगरप्रौररषीकेएतु के विष्ट ददे है--घमाम 
धषिष्रोकाधनु  चोकदत शो किर ष्विव होवो, जैसे ठव हुं भी धौररत 
समयते भी धिक निरिदतक्रर्गैः हेया । हमरे दषा सोकषैकदोसीपेते 
कारणा है एष्यई है हि मङरूयो का पियाल शपू रप छमपश्षे प्पे 
अषि छप पयोर प्युद ई । दृद रण हैत य रष्टुकेएढ शोनेभ 
अरे कोते ठ तोद्तान्विक स्वतच्वता के भपतै प्रपोय को सक्मै धभ्िप धीमा 
षके जरि श एक्‌ सवत पोर मैषैन प्रद्रा । 

श पह पविप्यषस्णौ कणे प्राप षणे है टिधागये भीर भप 





? दही, कण्ड ढो, पृष्ठ १८१६ । दसा परनीन होना है मिवे धपल जिम 
श्पभरिये षये, उलक्यमं षषी प्रढानित न्टो पुर} उने दर प्रो? ल्व 
केषर वे प्रर पपिर डनम पर्तत दे ववन्द (भोष्टन, ९९०६--१४) 
णय षाड) पष्ठ २०७८१६०) से प्रीर एने नेट (गपु, १९३६) 
शो) ष २४९ २८०, २५५-२१६, ले निव मात ह । र 


११४ समरीकी दछन च टह 


शापन बही है, णो एमे शम पासन करे । हमे प्रपणं है रि एव उक 
साषना हमरे देयी नेर के हशपो दष पवि परषसतो पर मौर प्रभ निष्ट 
तक गही पदुंचतौ 1 

मून के पाप पामाध्व पदु चेष्ठता पौर परा्मत्याम सभे क प्या 
करवा मूर्बदा है। वे विस्छुष मिद्ठ स्तो सेप्राते ह--अरङे प्रमा पौर 
उदाहरण से पुनिम षिकार्वो से भोर नैदिषता क प्रष्ठ घे । प्रतः वैरि 
मे ह्वे शरणे वासे श्ादरनो मं हमा मास्वा बहुत शम है मोर मुरो 
षे पज्र बनाने के इानूलौ प्या मं हमारी प्रास्मा भिसकुल ही नक्ष 1 ° 


पवा भमरीका 


जीरे-वीरे स्पूतिमय दात के द्वग कर्वष्टम के स्मान प्र प्रमरीक्ाकी 
श्ट मिपि पर एष प्रस्था पा णी प्रौर सोकतग्वबापि्यो ते (ममरीकी 
ध्यवत्माणकोषारपा को बदलकर ट्टे परमरौकीलोगो की प्रहृषिमन्प प्रति 
क्मङ्मवे भिया) १८१५७ ह्रौ तिरा काप्रस्ठ होने षे बाद परिम 
प्रोरतेखौषे प्रसार पौपौमिष ्यम्ठि पौर परमरीषठा श्ये महती ईं रायमीचिक 
प्रतिष्ठा रै भिल कर एड उर्घाहपूणां प्राष्टाजाद पोर देशम का पूज क्षिया । 
अमष्य तोन श्रौ श्लो पोरमूरोपमे ए८ण्टमे हं म्तौ कौ उतेजता 
चु मयौ प्रौरपूलामौ केप्रहलपर भिषोरी पमग्धठाष्होपया धो प्ात्म 
भिस्वा शटी श्बोपि क प्रमति धर भमरीषराकरे भैपुत्व में जिवाव ष्टी पक तैय 
राष्ट्रीय मार्ष रपरे भिपा। छम दशका पदे पाच्राषादर पारमे 
बएषमे हैमे भाती दुर चटा ॐ सिए पथिषवम प्रदुऽ्ुरू मानिक 


पूमिकाबी। 
पमरषंव शा पक मापण द्धि पष्टृबाद ठे लोकठसतजादी ्ष्टृबाद कौ पोर 


१ षाष्ट ह्िष्मेन, "यौ नेगौर्प पो पोर्चडः कष एष, प्रष्ठ ५९, 
५१.१४) ५६-२७) इहै 1 

२ भिौतै-षमकौता--मिसौरी रएम्यकेर्वर रान प्रमरील्ममेप्रेष्ौ 
धरतुमति सम्डन्पौ १८२० ने हुमा तभलौता क्सङ्के प्रवूत्रार षयं भितौरी 
रार्यस एलामौ-या बाद रो, दतु उतरे परिम प्र उत्तर षमी सेनां 
सलामौ-प्रपा परमा षर डौ गयौ 1~-प्रनु* 


११६ पमरोकौ दठंन क्र इचिष्यप्त 


च्रे समम्परौ है प्रौर पलूवयो कौ षपं-खमवापरो को मी पौर जिरष्य दान बद 
होया जो एसे होना चाहिए, परणयि पाजस्मक्ता भौर पूति के दौज मप्पस्पता । 
हर लागरिक बड़ प्रसन्नता से पर्छ मिर्एन शो कायम रने पौर एवस बनाम 
के किप्‌ धुस्कदेठेमा। टैसी बर्तुस्बिति गै पोर श्चमुच प्रगति होती प्रवी 
हत्ती ह, जिसमे यड कायं एल वैदिक कऋरिर्यो हय न्नयिबापने। पौरष 
निस्थयही दुर्गो म्‌ तामरा पमि पिक के प्रवसंन सेबहहिगा 
बरत्‌ पथि पापल के प्रति धीरे-पीरे बुरहोष्य प्रवृ्तिकेद्ाय हेगाकनि 
श्राखनके भो कायं रपे छूट बते है उरक स्वयं धपना तं ।, 

“हम राबाभों शमे मी प्रागस्यकदा है पौर मर्तो षो भी। प्रकृति हर 
धरमाज को राजा प्रौर सामम्द प्रदान कर्तो है-पेकिनि इम कमल नाम के राज 
सामन्त ध रकर भसमी रं 1 यो पथेमेप्ठ ह पीं धे हमं प्रपना पैरृस्म प्रौर 
पनी प्रेरणा स । हर परमाय प कुष प्यक पासन करते क लिए पैशहेतै ह 
प्रीर शुष समाई देत केलिए) पच्या पनिष्ट प्रेम द्रप मिष्ट 
ही, तो हर जयष उनका स्वापव प्रागष्व पोर पम्मान क पाष होगा 1 

“भे भाप युद यं कहता ह ङि पपते दिक बातमानं भोदष्देष 
मेन प्रमिषा-बम्‌ बने । परसारकरे हर ष्टण में एक परयुपरा रष्टरा ह जिसकी 
भागनाप्‌ मिक रषणर षो जिस प्रमुख शागरिकि तात्कािक ष्टि रहते षारमों 
हारा भविकाप्सनिक पौर पैद्रजि्सी शहसामे धा शण हटकर भी एामाम् 
ताप पोर मागषता के दिका घम्न कण्ण कोहैपार ते ¶। देषा षष 
श्यै होगा सिषाय इन राज्यो ( पमरीष्म ) के} कोन श प्रान्ोष का निृत्व 
करे, धिषराय प्यू-हगलेड $? बेवाधों का तेत्त्य कीन करे, सिषाय प्रवा 
पमैष्म४ै? 

शम्जमो समार प्रमरीढी प्रास्वरिक सानो का विकास, ध्यापारम्प्प्ना 
क पभिकतम निकास पौर रम्यको घंद्ठोषित भरने बाजे नैठिक कारणों $ प्क्ट 
होमे रे मभिप्यको मद्वानताष्ादैषा श्प म्रिलष्डा है विदे पणाकृतण्णौ 
कृस्ना ऋपयी है । एक बात हर छामाश्व जुडि धोर्‌ पसामाप्य पन्ठराएमा षषे 
श्यक्िकरेसामगै घाफ द, डि यहां प्रमरीकामें, मनुष्य बाबर ^ 

पमरष निमिं श्च एष बारणा तै एक गये प्रर के लोर्तान्निक पिटान्त 
धे चन्म दिया | प्रषकति भूम मागर हाव ब्राहतिक निमम ष गहीं पा, भर्‌ 
भत्ति पौर मानी प्ाहतिक पापों का षा एक प्ररागनीतिक प्रद्ररषी 





श्वी र्तं प्रो रात्र पषटो एमर्पष (गान स्टष्डडं लायश्नेरी 
लन्यल, १८८.); तड बो, एष्ट १०० २०६ त्‌ स्पाल्‌-स्थान पर । 


११५६ परमरीशयै र्दन क्म एटिषपर 


जिपिष्ट भैबखिकता प्रात करै षय शेप्टाकरठेवे। रस्ति मितौ भंजपर 
शाता स्वौकार्‌ शौ किया पोर परष्य सेषि्मो छठे मी भयते चर्यो को समपया 
कि लेद्धल के प्रपते चुने हुए कारयते पे पी उलच् स्थात छोटा है रेवा । वै 
कमी संछार में जिपिष्ट प्राङृति लहो बनुपा पौर मेरी धारी प्रासा पौर दण्डा 
यही श्रि बनसपह के साब जुटा चता र| › मरे मह्ना नहींषै प्रौर 
जीगिकाके लिए शमम करना भौ उन पपरियणा। शभम संछार कन प्रमिगाप है 
भौरण) को{ एतं ह्यप चया ६, बह उ सीमाधष पषुबन धाता, 
उन्दने शरक प्म" जरे प्रयोपसे निरा होमे के बाद प्रपनी परिमिकाको तिषा) 
समं भाषाबी कि बहदरं क्मसेक्मषाम फे छाव पथिकृते प्रपि प्राम 
करे षो भिष्मा । किमत पपनी प्राप्तं स्वितिके निष्टहम बे ठन षपार्मेहौ 
पुण पायै जव सेलम के बुनौधर प्रौर तिमरपूत ४ स्पूताषाष मे र्ब 
शौषतान्तिक दत कम राजनीरिरू धंण्छण प्राप्त खा । 

चोक्टम्ज, शरो बे परात्यरवारी सूषारफो के रोमामौ प्नुरद्ापौ "महंवार' के 
भिस्द एामास्य प्पचछियो श्र मम्नीर, यथार्थवादी उद्यम मानते भे । पुश्ामौ-प्षा 
च्म घमाप्ि जाइत बालो की कषर वेरोगर सोकोपष्मरिता के अमघ् नैचिक- 
पवार्थजादी बनने कौ प्रपनी चेष्टा क्र एलस्वरप हौ पन्ति ग्रामौ की सम्या 
की गम्मीण्ताको पूरी तर नती षमम्प्र । होगातं प्रौर एवा प्रमरीद्धिपो" ते 
ष्ट की नैरिक् स्विति के एक दैसे वि्तेदस क्रे पाार पर बो पनापदै बहुत 
दर प्रमाणित हप बिस्वासपूरवक पहं प्राणा म्क्ककम कि दलक्त निरबोपर 
प्ष्टीपता श्रौ विषम होगी-- 

"एसी प्रकार ष्हाबा सक्ता कि दोनों पक एक सामान्य खषेष्य ्मेषक 
है-- हमारे पवित्र ध॑न क्ये एस प्रटल प्राणारके श्प पं कायम णना जिषयेन 
केवलं पमदीष्ठा भस्कि घापद घारी मवृप्यजाति प्पतौ निपति शै प्रोए्प्रप्रघर्‌ 
होवौ पौर एते प्राप करेमौ । पौर छ प्रकमर भपुप्य पश्नामाम्य धान्वि प्रर 
एमए्फठा पे दे प्रपति छी उख तयो हलक कौ प्रवीसा पे है, जिषषी प्रोरते 

भारे भिड़ संक्ष्व करते है > 


१ श्रिजङ़ शाम पत्र, ११ पष्टूबर, श८्यर तै, पदी रर्तीट बरत 
{ स्वरा देष्कर्ए, केभ्विव १८८६ ) पै, करण्ड बाण, पष्ठ ४६६ 

२. बरक हाम्‌ पर्पर्वादिरपो हारा बाई पमौ पृष प्राव बस्ती भरो 
प्रतफस षौ 1- प्रवर 

३ श्वौ कलीरः वः ( कष्टम ९८६) इष्ड बार, पष्ठ ८१६। 


प्रष्टकाद भौर शोष्तव ११६ 


करे सिए बह पस्वा कपी हरत मदी खौ । यं मसत एक नैतिक सषयं 
षा, ।वसष्म बुधन्त हना स्वाभाविक पा । 

होवा की मिय पीद़ाप्रोरमी स्पा प्हरीष्ष शरणो यी 
इपततिस्वान मे धपमे धावा के तमय, विरे गे स्मेहुूंड हमारा राना यरः 

कटे से, उन्हे इबनिस्वानी परजिजाख-वरपं के परिप शश्व प्रतिमान पौर 

नैषि मूस्वौ तै परानम्विव होना वीच लिपाथा प्रर प्मर्ष्ठा बापप्र धरनि पद 
हेमाय धं्कशि ॐ रेेपन ठे उ्टुदङ्म दण्वर सपा) पुती भर्मिगवरम्‌ ही 
भुन्बरवा्रो के प्रदि परेम प्रौद दुभा घोष्ट भामो ढे प्रति मिष्यक ओष 
जो तष तनके प्रमद लदवा उनके जीदम हे पन्ठिम बं उसी मे पृजरे। 
स पा्तरिक पपं पौर ठसफे एावारणीह धश शी रदोनि "ददर परिमपोजु 
शोष्य पं ्रम्मीर विेचमाी ¦ 

भै ण्दुबष्र कहता ह द्विपे प्रपते हेगसेवार दै, एमे ग्छकी 
शस्यो पर बं है, मेरे प्रन्रर एष मावना है, धो ए्ावद मरातस्गार्पि फ़ 
प्रिर पन्ब सो के निप प्रज्ञात हो री है, दिन्दु बो मेरे मिए पर्षापिक 
पंके षतु ६, हि कोई मनुष्य पुमे सेमा मही द-प एक पन्य प्यक्ि 
कैस्यरतु, जिद वै सषा षद एरान करता, मै स्वयं धपना पापक --ीर 
लको पूगे तीणा है । पयर प्रापमेरी बाठकशममः लेयै पापो बादरि 
ये दतती इज्या भ परनुमभ हमा, जब ए देए मे परीव एमे के बाद एसी 
भार यैमे एक म्यक्छि को कदे सुनाकर प्ये दुष पितेयपिषार्‌ प्रह, 
पूरी कृणौ भाषे लोगो के प्रति श्ये बीषीश्प्टि दे देवे गपा, 0ैषे रेकौ 
निम्नगतो! पौर षष बदकोमे कपी नही मम सकता प्रपतैषं 
ठै म्प्य पौर जये पर पापको निप्विवे कपम्‌ पं होया एतीव दतरा 

जिते ्ाप घे देहे दिपैपादिक्मर पाठ ह जिसय हिसा पाते की पापि कमी श्राणा 

गही शप्प्रभ्ये ) परएष्दैसी भीरहो वषती है ग्दवि स्ना पडे, जेषि 
भिवय ददो शह जिद पर म्यूय स्ममेपवंहो । परिपरी भंपेर्गोष्ो ठैर 
प्लाट) 

ष छन्तोप क्यो समण्ना हप कते डध्नि भात हषो भरेम के प्रपमेते 
सत्री पकवािकेभारे दं घोषकः ददा है, जिसके मितेयापिकरयो दे हिस्सा 
मदी सा सकट चिघे उनका तिरस्मर कएपै श्च धषकर है, पोरमो एनरौ 
हमिमठ पर पपमा सुन्र पोर पाक्ष पाचरय पाठ एरी {-- एव बि ढे 
शोष दापू, घरे पौर मनिय हैते है श्यौष्ि वे दर, पमा के धमता चतिद 


१ बटु छयाम्पार्ट एष्ट २००) 


१९ पमरीकी श्न का षत्िधाष 
एपयोगी हेते है, प्रौर पेप्डगम पुश्य्वङनमूरे होते है 1 प्रौर धैषारे षार 
चेह प्रपनी स्विति बे प्रा्ठहोतै है । प्रगर षामन्व होना केषेष्ठ षाम कौ षातष्ठो 
घोष याष स्तु महो । दतु वह केवसमाम ट नहीःप्रौर पी बहुत 
कुत 8 । यद सजयुद मनूर््योको दुत उथ्व बताता । परीव निस्त बमं गते 
होषपेषपकते क शैशिति जो बरव स्ामर््ो के वत्त बार प्रते है-पण्व 
मध्यम बरम-मे ङिति प्रहर ष्गेप्रेमसे ये षहनक्तेटै पठ 0श्च्यदी 
भरमरोढ्पों कौ उशन मे गलता है। 

“पै यद पनुममे करता हू फ़ इईभ्मिस्तान के बि प्रोर स्कार बिभो 
भौष्ध मेरे पपगै देखवासौ एतय बहुत-गहव प्राम चसे गये है-बोयिष ष्टि 
दैगेहौ बर्‌ एषी रोठिष्ठेषो उह परपनो यात्रा प्राषै षै परारम्य एने 
प्यर्‌ देता है । भरषर यै प्रपतने पापको प्ररे बनि ङे एएदे ये वापस प्राड्‌ 
जिधेपः पवी धारी प्रौर वैपु घम्म बाला प्रिय वतते $ष्पवेसे लोमेरे 
तिर्‌ प्रमरौका टी खोज भ्यं हु जौ महान्‌ माना हमारे पन्दर भनार पद 
बह म्पधं हु, मोरमैष्ठध्यकेप्रपिेदीषह। 

शैक्िमि णर तस्क उपर एष बाद यौ तरह उमढ़ृती हरं बह रायौ प्राचीन 
कन्ति चछामोप्ो पौर पुष्टा णो ण पुराने षर पर घां त्स पवती 
शबर परौ पदिमामय सपतौ जी । पदमियों करौ बह सुष्दर म्ब्व बहमन 
उश्जता पेक़्िनि श्टिरिपी रस षामान्य पाए-वरे षे रक्तारनदीं नो प्रेय 
पपुष्य मौर ठप मीषेकेलोगोर्येभा । बह तारा प्रागन्धमप पमाषम जिषे 
शरसी निरि होती है पौरो स्कैन नीचता पोर प्प्रिव पबे पूर्णव 
शरि होता है, जह ताषेजनिक्‌ मामी मे पमौ लोम मूलतः फक ही जिर 
के हेते पाईमारे कटुवापूरां रलो ढे छीप्र संषपं ढे प्रम्पस्त भमरोषठौ रायनीरिश 
क्ये ते पतीत होते हे । जह बीत कने दइठना पापं इतेता पप्प्किति बना 
विमा पदाना फिर मी रमे एक प्रष्यर कय चरेदूपन भा, बो यई दिकाठा प्रतीत 
घेता धानि ह प्रपनी पारी पिप ष्ठोढ पमाया बा टैसा प्रवीवे हीना 
किथौवतर्मेषी कुष मौ बाग्छनोव बा रपा धारा एौन्डपे प्रौर प्रारर्पण 
ह्ण किया गपा छि मी परषि्िरिष्कार श सकत परत भोषेन परक्मी 
मौज । पष्यताङ़ प्रति जैयली से प्रौ दूनिरिष्ट प्रमरोश्ै इष्टिकायर्म 
दषा ष्याथा जिषे षष्टो पुना श्ये जा लके ? इम रपमयता भौर षमृदिषै 


हक धुता कट्‌ 1 ^ 
अर्-तमाज पौर बरय-जिदौन एमायके एव घंबपुदच मी पपिष्रष्यापष् एड 


६१. ददौ, ष्ठ ८२ रे ११२१११२ 


कष्टवाद प्रोर्‌ जकन १२१ 


रषये सम्वन्धि छपा, जो प्रागीक होने प्रौर रनक रोर्मारण 
( सोमानी शषनापरो ) पर छपा र, पान्ठरिष़ निम् प्रीर व्पाबह्मि 
उपदम्यि का पएषपे, दूढदावारो पौर याम्कोष सेमप्‌ं } होन के श्रनुषारं षषे 
संप वे तोष्य पोर पुद्धतागाशी पन्वदात्मा, रजनौविकृ परम्धय्भो के बिष्ट 
शदगोरी १। युश परमते के परो गे उवे प्र्रएतमा प्रौर एने पाय॑ 
जादोर्नोकोही पराकपित सा ¦ गे एर उत्छापते पतम्‌ बन ययै बिनायह 
समर हुए कि रनश्य रतं उक प्रपते धभार्भबादी सोमार्योपेमी षी प्रभ 
सेमानौषा पौर पहि खवा पपा प्रान्दरिक धबपं राष्ट षे दुद्‌ 
निपठिषाषएकच्हिभा। 


पोमान्त के समुदाय प्रौर विरवास 


प्रमरौष्य ङे सर्वाणि प्रन्पायु प्रम भिरष्ठर पनन रते हृद्‌ सौमन्छमे एष 
फेम प्ामाजिषठ धर्यनष़्ोथन दिवषो रष्टृषाद प्रौर न्यखिषाद दोव 
जित मिघ्रया। एषे सयुश्यषाद कहा भास्कता दै । जपे ही मनुरप्यो हे 
विक्री क्षातागरोय कवीन किषी पतन युखमय प्िशमरगाद, या को प्रम 
केषा, पा किष चेठवरहो गतै फा प्व देते लै ठमीदहेहत 
श्वेपिम कषेषो' को सदये वसी दमे भे परिवार पा कीरै के "उदराविकारः 
कैष््प पदेव, नोदति १ किकी कारणाग्प पोका दे पाणो लीयत दिवाने 
कोप्या षा) पठ. पको पराकस्मिर भावनो हि भत्र महान्‌ पद्मि 
द्वार पुमे, तो प्रपोपयीत श्यकं के दरे-ोरे पमररोते पुम किवाहि 
पवर वा पाप्य उवं पुषाण ह छिे पुन चते हुएषठार पोर रष्क 
र्पो शमो पोप एष भये द्यौत्‌ का मपो दुमिया मृगये धममि श्न 
परम्म करं । दागरी मुवो, पम-पपरशरयो पौर्ष्णिियो षमी श्रातो विमि 
पक सपय देए ऋ पना छे परदिवि हो क पूते सोकृषप्प्रमरीराकेतिप्‌ 
मस्दामे भमा, पमरीद्धे बा द्ा पड पुरसथिन विषयं है) सन परिबिम 
षे पोर पाथा भी रती षुखर शनी ऋ उहएय ह, जवो म॑पिवो प्रर 
ससीकनौ श प्नुमय धरमाङकित “लवी' एुमिपा क पूरो घमुभ्दर पर द्वा जात 
शपा प्वि्ठौम है, पूरेपीय म॑चायष्य॑मै पष्ट दषा पौर वाभि 
शन्हाने पिर वाजा पर भय ष १ दियो १८०८ के दा६, रनद केषर पौष 
१८१५ बार, इवारो मरौ देहे दे भिन्ते प्म शरौ भोरवुमदये वाशी 


१२२ प्मरीष्यौ श्न का एति 


प्रावार भुनी पौरभो ठ भूमिश शोजभे केलिए दसषडे हए चिषे एग्बडं 
पष्ट धै मान निपर्मो पौर पुञ्ी मवुर्धयो को पमि" ४हा । 

(मड एष पततघील घाप्नाम्प पर ईत्वर ऋ्मकोपष्यक्तकमेके तए पेणा 
शया भसम्य जयलिर्मो का प्रवाह नही है। पइ मानष परिषारहै, चि 
बिषाता श्रपना पैतृक एचराधिकार प्रा कएणे $ सिए यहं शरामा &। 

"प्वर्वो भोर सपुदरोकेपार एषप्रियपूमिक्ीक्रस्यता कामर्त्य निय 
चुषूरवैम प्रणीत धै हो पुराने शौम भप प्रम्दर संजोए रै, उमाव नि्र्मो प्रौर 
मूषी ममूर्प्यो की मूमि। प्रटशाटिष, षपद्रषठि निस प्राया है। पूमि डे 
प्मन्तिम छोर पर हम पहु यये हे । मुद्र के पार परब मोर कों ध्ररणप्पद् वही 
है मौर शोजं नी है, पोर माणएं मदी ¶। 

सविर फे जित राम्यों की मतिप्याणी प्राचीन वैगम्बेमे भरीपीपौर 
छोजियों ब पुमो षी प्रस्य पक्षिप # जिनी कस्पनाष्मेभी बे प्रपरक्डी 
बन सक्ते दै तो महौ महान्‌ परिम मे। पह उत्तरका बा परती प्र मकुष्य 
की पात्रा क प्रप्ठ शा । 

सर्वा निर्दोष चोटेोटै समाबोके नगिमखिश्मे प्राघामे बामिकप्रौर 
शोकपर बोर्मो प्कारङ़े स्मक्तिए्‌। घौकमरण्‌ सपो की कक्यता प्रामतौर पर 
प्सोटोली परणक््ो के न्दम म क गमी । ®ठम्बद' मुर््पो के %समाजबारी 
शमशान (्र्टरीड) “उमाभनार' शो व्यवहारे लाने बलेमे | भारिक 
ष्मो बडु बिपिद्ठताबी-- यादी अमृपुदाय बरं प्रचारक नभमुन उदयः घमूहु 
शहत्तरक्मलीगे पएम्त पादि णो समी म्यूताभिक परमंत्रयादी पौर दिष्य 
श्वागषादी चे। 

प्रमरीका में परतिष््वि होमे गामा पौमाम्त रन कम पहला स्म माषीणम्‌ 
पप्रहपोकाधा। प्लाष्मणके मातरिपोग मी कहानी भपप प्रापो घाभ्विक 


२ भ्रटलरिकि--ग्रटलाट्कि पहाप्ाबर त स्वित एक बौराणिकि द्वीप 
जिसका वर्णन प्ठेटोमे एक प्रद्र रास्यके इप्‌ सिया क्विदन्तौके 
प्दुसार पहु क़्ीप चाद मे पपु प दृव पवा । --प्रयु* 

२ प्रलरौषा धु हाहिस्य श्च प्रवति हे प्रगुकूल परस्तवः पर एरष 
एषरे क मापसं से, ओोष्टन, १८२४) भाते पलां इए सम्पादित श्तेरिकन 
छिलोषिक एेपेड' (ष्वूवाक, १९४६) से प्रष्ठ ८९, ९२-९१ । 

१३ मिह पै प्पिषरिजि पारं के ललदै प्रिद दंषतिष्तान ढे 
शुदधततावारि्पो का एक दल थो जान इनिपन के नेतृत्व से प्रत्ता धपा 
प्रौर भेसाहसेदूत वै प्लाषएमय बपर कौ स्वापन शो - पनु" 


ष्ट्वा घोर घोकदम्त श्य्‌ 


सरथ त गपा एमएए (पिर वेष) एमन्ने का उनका प्रया भो एक जपतो 
देए से ए्मरीप परिरपा ण भूमय पमि परध्यैषे भौर रनकै हणष्ठ 
पिन्द हे पाषार पर पम्‌ -यमुदाममावी नये ऋ नि्मस एका बरुन बहुमा 
ह्वा पा है । क्तु पलप प्रजिकि विस्दूव प्नौर पपिर भौधिक सिद््तो धे 
निर होमे मापे पष्य यात्री भममूथाय मौ जे । ्ू-पगलेड कै परसपाबबामिो 
(बम-वेपडन को समन्या के समर्ज्को) के वाय धपे वपुश्च मोरेबियभ' पपू 
भे यिनी बस्तिया प्यू-पलेर को बस्ठिवोकीरपति चीरे पीरे ईवरकेरे 
छोटे श्यो ठे ब्म कर पमरौकौ ममर बन गयी! बदये केक (जेकोस्लोना 
कियारी) प्रौर्‌ वमन होय प्रसेक धाने सते--कमप गेहमिया, मोरेविना प्रौर 
हैकततौ (बमन भरन्त) जोदृशे के भिए मजर होने पर--रक्ष घमम वै क्ञाताबशेष् 
धम्‌-पपुदामो पे मस्ति बे) ठनङा सिदाप्ये बाकि रमे जिए ईष्वपीय प्या 
बहबीदिमे सल्त-एमायपके चौवनके छाव मिरम्तर बमपवारके कपप॑को 
मिरे । धतः पेम्पिसरमेगिया मे बेष्डहेम ररी केणोतिभा मे यैलम भरैराप्ठ 
प्रौर पष्य दित्यौ तैडाभ्विक ङ्प त धादिवासियो ढे बीभ पर्म-पजार काप्य 
कणी) हर हषुरापको एषह परिशारकेस्पिरमृ पलि करमै का प्रपाप्ठ 
पौर एषः धामान्य पर्प" मा साम्बा के विद भये प्रगत पै पाषमिक 
इरेष्प के प्रषीगेये; प्रणम रोप्य भा शपित पणार का प्रादिापिथों 
की भोर निरतः प्राह प्वामम षड्धा । दै षं प्रभारडट उष सापृापिके भिष्व 
ब्दापी पाक प्रददू पै, चिपक परिये दम-पमुशम घमपिति ६। भपने काव 
ष्म ष्टामुरपिष् पहृदिमे बे छोग ख दष्ड पूंशप जद हए भे किदो पीरवं 
एक इषम पषति वस्यो दौ एस स्वामाविक प्राकता को तठ भिरोषद्पि 
क्के प्पे निजी परिषारतो को ई्विठीम पिके धमय शफे समश्य दे ३ 
परतियोपिदापूखं प्राभि णीत मे भपमा स्वान शोर । भमे-अजारक धापुदाधिष 
ध्रार्पं को प्रादिणासिमो हकमी नेते प्रौरभररं प्ण वारो" का पनर 
कनी मेँ तल दैप्‌, जिनमे कुष गोरे बे कृं पार्दपी प्रोर जिनके प्रामि, 
दौड षो भादुत्वपूणं एंवहे तामात्य भाविक दडेषा ही एक भमिष्रप्र 
कनाया पडा । 
अप प्रचार दय शति सम्बन्वी देती पारणा मोरेनिपन भौपों ढे पृहे । 
भैष्ट पौर न्त्व दमु मे शी जिने पुदूर दकिरए-पप्विमि 
पादिषपि्मो कै छाप मिहकर मम मिर्यर धम्‌ प्रजाप कमु का निरमा 
क्वपि था। पपन इतक्या ङ्क दैश्िसेतिया के महान्‌ कमपद केने । 
वपन सोक्ठान्िक्‌ कौ ध्पेस्रा मयैष परिक पा, दिन एलष्ये एशि 
पाश्कि-प्यदस्था मोरदिपत शोर षै बत मिचनगहौ वी । मू पेमहलभेमिव 


1, पभरमैक्मे वंन शन ददि 


कुठ भमन प्ररेसटैन्ट पमुदाों का घंगठन निषि श्प पे मदौय भा बिधेपवः 
एरय" पयश्म भा । 

इन छोटे-षेटे घ्च-पमायमो ॐ पधि के यूल पूरोपीय बे । पेस्ठिलबेमिया 
मौर पिठरी राम्य दषे भमन ष्प्ररयो कि मरे षेये, गिनी पूर्प्राहं पुराती 
पुनिया मँ हु{ पो । उण घंस्या श्वनी प्रषिङभी दकि सव यहा पिनावैमहौभा 
सक्ते । इभे पे प्रजिष़् पराकाप्गायो पौर एदखिर समूचे म पर एष पुटम्बपरं 
केभरपे हए धव केप्लुरापिरयो काना मिर्हेते १८१४ मे इभ्य्पाना सम्य व 
हार्मनी मामक ममर श्यै समापना कौ ¦ पड़ पादरिपत-बियोपी पमित्रद्ाबादी, 
शयमौ दयापु, कोमार्वप्रत का पालन कएने बाजे भोर पेदृतती सोनो का धटुदाज 
पा। एसी मूहकी एक प्ाश्चाने १८१५० पे प्रोक्षिपो एज्यरमे शोर नामक नगर 
कौ स्पापता शी । १८४२ परं इठे मिम्रवा-नुतता एक पमिषतावादी रम श्वत 
प्रणा घथुशाप' पा एषनेडर° समाज" ब्म॑ती घे धाया ! उक््ेने परस्व. १८६४ 
मे पमा स्बएयौ निबास परावौदा रम्य से प्रमाना लभर को बनाया \ पह भिठासो| 
ष एक पराम्यवराषौ एमाड भा जिसमे त पेष्धेबर पाषरौधा भ पेेबर मरोर 
भा] ये बहे सीपे-सादे पामिक पंस्करयो भरौर भिषियौमे हिष्ठाक्वे पौरहर 
सरस्य घीषे ई्विरए पै पेरणा पैम का ध्र्थिकारी पा) पमाना धाम क प्रतिति 
रबर मी, यपि पंलोषित स्म मे । स्मौडेम के पमित्रतागारिमों का एष सतीम 
अम-सयुदायभा भो प्रपते पैप्रम्यर एरिक भैन्त के भैदृत्व में पापा पौर प्रत्तः 
उत्तरी इषिलापष मँ एष प्रपोगश्ील बस्तौङ$ेस्मर्म ग गया (१८८६५१६२) 
-सात्मे दक मे दथ्िणी इत ये बंस्यक पेगनाषट ग साम्क्यावी मा हरेः 
कोम पावे पौर रन्ते दक्षिणा ककोरा प बस्तियां बघायौ भो ूडरहार प्पुरायो 
के नामसेप्रभिड हु । 

समिर छमा भा परेषो ट कहाणी मी अस्तुतः घीमादेष्रोप भिष्वासी की 
एष एंन्नित कषा का प्रौग, किन्तु म्पू-दवतेड के बुदताभादियो कौ मति 
वैम्प्िसमेनिमाफे क्वेकर्ौष्म मौ उपरौ स्मर्य पौष बदछनना प्रौरवे 
हमारे भरमनिरेस रम्ब क पस्पापष्म मे पामिश हो गये । किनतुषप पमाणं 


१ रेप-अर्मतीयासो, जिम प्म के एष समाजधादौ स्य प्रपार श्रम 
के कारण १८ ६ तु प्रदतीर जना पु (--प्रलुर 

२ एवसैकर-- वापयत सँ वणित एष स्मार दावर, ईइ्दरष्ोक्ष्पाका 
अरतीक ।-पनु* 

६ तिलनादट--येक्य पा बरतिप्मागाग्यि ए मिता-शुलता एष 
-पोेसये सप््रदाय भरर" 


प्षट्वदप्रीर्‌ सोश्च १२१ 


प्क पाडा, (खमे भवते क्वेकए्या चेक) शोमान्सेकीय. धपवाो श्च एक 

ण्ठम जषाइरण ६1 माणा दैनसी शामके पमम्बर्‌ के प्न परगृयायियो श्म 

बापस्तमिकर माम नकत पर्थुः (मितरैनिपस भरषोया विष्म्चियो श्चा 
गूनाष्टेड छोषायरी भ्रा 


१९६ परमरी्मे दन टा इरिहास 


छलका हस्प ठार र प्राप्पारिमक पुनर्जीिन षौ या प्रह्िम भिणंप श्च 
प्रश्ट्पा प्रशद् प्रौर बुराई ङे परचगागको प्रापेशे धाताभा। गह प्रनधिपा 
मावापेतमें षाक रोड प्रादुमभि या गारी-जम्म' छे प्रारम्म हषी पौर 
घारे 'मकयुप-काल' मे बारी रह्वे बाली षी । 
हत्वर मे पष्वीके राष्ट शा पैवहा करना प्रारम्भ कर॒ विया, बो 
बहव विनो से प्रपत निण॑प मे गसि करे रे है प्रोरष्यायमे सत्पकेमागं 
धे भरक्वे रहै पोर यह ध्यायदूं एषषा कमी बम्द मही हेया बब वष 
ईर का कायं पूतः सम्पच्च नदी हो भावा! ^ 
शरणा के स्यः के सदस्य का भियमन करने बाते निधिष्ट भीतिक सिदाण्व' 
भे--.पठार से प्रपा ब्याबहारिक एान्ि मापा ष्टी घादमौ सम्पति का ठभिव 
छ्पपोय पौर कमाये भोबन' । संखार सै भलमाय पौर भ्याबहारिक छाण्ठि धाया 
धदस्यों फे शिप ल कव गुदर्मे जामक्षैना निपिदडभगा बत्‌ श्वंस्ारके बिबा्यो 
मे भी गिम एष राजनीटिक दत्त क प्देसा दुसरे के निकट पनम करं | 
पणवी पेये कठोर प्रभमाबषादोजेप्रौर पपत को साम्दिक भवम पष भ्य 
तिष्व का नानरिक समप पे । 
न एंचरकाक्ीम प्ता मै पमस पथिक वैनिभ्यमय मांरमन सम्प्राप पा। 
१८२१ यें म्पूपाष के एक किसान को दिम्प-इष्टि मिमीकिदश्वर फ कुनै हप 
लोपो र्मे जोशोग कथैव उम्र इषा करके एक नये भरम-संपठन (बिन) श 
निर्मासि कर 1 बुवागस्था पं मिले दिष्य-र्नो पपे एक क घनक्े पपत भिवरणा 
से पह स्पष्ट ष्टे गाता कि ठत्कासीण बिस्ासों के प्रति ध्रसत्तोप उगष्पै श्रो 
का एक मर्हत्पूर्णा वत्व भा 1 
शष्वर के समश्च प्रष्लकेकरवानेम्‌ मेरा षदष्य मह बातनाभाश़्िषारे 
यर््नो सृष्टौनश्हीहै, तानि पुणे मालूम हो जाए णि मै किसे सम्मित होर । 
श्रव" चैते दौ यै प्रपते पर तमा कदू पा षा कि बोल सषु भो प्यक्ति परम्म 
उपर प्रदापपिं स्थे ठते कैनेपूप्राङ़िषारे पर््वोमे दगष्छी ह-परर 
मै किष घम्मिशरित होड 1 
शुर उत्तर मिला किपुये उतर्गैतै किसीरमे भौ गीं बाता बाह, 
क्पोष्ि बे परे सतं पे प्रौर पुमे एम्बोधरिव कनै बले म्यक्ठिते कडा कि एके 
सरि म उनष्टरै इष्टि विरस्करफीम बभे किमे मवानुपायीषरेभ्रष्टये कि 





१ ५९ घमपेग्प प्रक दौ पितेनियल अरं परर पूतादरटेड तोयदौ प्रो 
म्नि, कामनसो कास्य गें" सं्ोपित प्रौर पुषा हप्र दूर स्स्करल 
(परसा) ₹८८८ पष्ठ ३१८) 


११८ पमरौशयै श्न भा इद्र 


एक घायुवायिक लीमन फे पमनिरपेस समथ प्रोर श्रमरीर ापुदामिक 
भोयो के इदा प्रष्देताषो यदी परचि हूर बग उन मादूमहप्रा कि 
चने छे धपिष्म॑प ख कारणा पसप हए छि प्दर्वो१े पह पामा भिषे 
परवठिपोपितप्णं भ्मदसराप मे पिक युनापप्र षमा सषठे 1 दसी शवार्थपसठाः 
क प्रासोचताके पन्तम रनग्ेमे बाकि घाम्यबाद हय भागमा परनिर्भरहै 
द्वि शार श मनुरदम प्ानन्दणनये भोर नाया प्राप्य बरवरपो पेष 
मिक्ता बस्कि जिन्दमी के भोरे मे एय $ साप हिस्सा रामे घे मिषता £ ।*५ 
बोम मे दविस्छा बेटासे में इ प्रक्र का प्रानल्द पामिङ्‌ धपनुमम प्रर हस्ता क 
भापारभव प्रप ह । प्रतः यहे प्वामाजिक है कि पङप्यैता जिन्दगी की कलिनिप्यों 
मै जामिर माई-जारे कै पम्बर्न्णोको भोर मबदूतठ बनाया । मिन्द पम॑-मिरपेश 
समुदाय जिनके एरेष्य प्रौर बिचार रपमोभितागादी सिदान्तों पर प्ाभाप्पिषै 
पम्बदवा के दाया प्रषिष्यम शोमों क पर्थिष्तम पुल ¶ी उपलम्नि श्री प्राता 
करते थै । जव इम बम्‌-निरयेक्ष समाजवाद का षमुदिके पर्ये पुलक 
प्रगुमब फम हमै लगा प्रीर भोप्येमे हिस्सा षटाैके प्रथं म्‌ “भानन्रका 
परमिकि तो पन्त कुच निरा का धनुष हुपा । धमं-निरपेष धमुदायो फी परखना 
पे षामिक समुदार्गोको एक प्रौरमीशामणा | बामिक पौर बम-निप्पेल दोनो 
ही प्रकार के प्रबिष्घठ समुदादो मे निरुप पा पिवृषतात्मष़ घाठन बम्रता ना} 
भामिकप्रमृदार्मो मं षये एष प्रषारका बर्मा भहु कर उनि वरयाना 
सक्ता बा, सेद्धिन पमं-निएपे सपुश्यो को जोकताम्विक प्रबन्ध के प्रर्मे 
बङी दिक्कत होती थी) जव ठक्‌ एषटं भोयेन धैप्राको दार पृथीपतिया 
पंजी पाने बलौ का कों परोटा-छा पम समुदा के ृप्यै" के ङ्म मे घम्पतठि 
क्म माक रष्वा ठव वष प्रयग्ब प्रामतौर “भ्मागसामिक स्व प्र णका 
सेकिनं बड घाम्यषाषी सिद्धाष्व क हिव में पप्सिम्प्ि प्रौर जिम्मेदार का 
ेट्वारा भरभिक समान ङ्मर्मे किया जाठा ठो शिते पैदा हयो भाती । गास्तव 
मं लोकटन्ब' शीरपक के परपतर्ब॑त एम षटशयों पर विषार कएवै वै पतर गग्व॑म्य 
है 1 भहा वये साय पर्याप के मिस्ठनिगोहे भिवे बहा ठक ष्ण 
प्रस्म-पस्यर्े के निए स्ववश्षता की दाद वौ मीर बहा ठक एत्न षहकारौ 
छद्म श प्ोत्छाइन गिपा बहा वक पै नि पष्येह सीमान्ठ-सेत्रीय शोक्टत कै ङ्प 
यँध्यान देने यौम्प दै] बेष्पिनि नक पाप्तरिक ठम परर रम्य एबनीति 
म बुषा पोरे मानै कौ निकुण्वा ही मिचती पी, पौर छनमें प्म्यया बहे नो 
कुष्भीहो प्माग्ठाकाप्रेमन्ौगा। 
१ बि्लतिपम ए. दिन्गूष प्रमेरिद्नि कम्युनिटी पेड शोप्रापरैमि 
षतसोनीय), दख घ्॑मोभित प्रत (प्िकापो, १९६ ८), पष्ठ २०५। 


११. प्रम दन का हविषास 


मे तिवा भौर बिषठिप्ट सीमान्द-छे्ीव स्विदि मे एड मति ष भिर्मालि 
पटीरिप्रवादौ पादं *क प्रुार श्वा --गु बारडिषारे पापिष्ठ सदिप्युली 
पीते वेमो पर प्रविभन्य पमषक प्रावार पर उपार, छक पमो प्रापि । ण्डे 
स्वि मिध पगधि होवी णी मौर म्न्य घोमन्द-मेत्रीय बन्त्मो की वुलता 
प प्रमोग निर्वितस्पते पष़गहुप्रा। इिन्तु सीमान्त-केत्रोय त्वितिके 
शीघ्रहीष्ठमाप्तहो बाते दे वष्ठी गरषादी हरं 1 
यहे एक सामाजिक प्रसफष्ता बी, बहु कृप्र श्य कारणा ङि ईमषरको 
भाकर्पक धरोर प्रातन्श्दायक महौ गना सड । बतो ने सोषाश्िमे धपते साने 
चे बाहर बाकरश्पाषा वाम उद सक्येये। हम पन्य पाषन-सम्मश्रनलोगोको 
राजौ गही करके बे हममे छाभिल हो जयं भौर प्रषनुप् शो्योडेषहिस्ते 
रोगत पयोर उनष्ठी बाहर जने श्यै दण्ड पस्य सोपोश्नो प्रष्दरप्राने षै 
निद्पाहि शरी बो भ्रौ प्व. पसन्युष्ट घोयों का बहुमत हो पया प्रौर 
-छने मव धरा भिक्टनं श्म निष शर निया रिषत कोर्स शवर, भो हमरे 
पिकट हौ भरपगी एए कौ रातौ घर्ित खऽकषदहुमाना बौ परेधानीका 
ऋरण बत वपा भोर प्रपेषेप गूढ पौर पराणार सदधि फेलैष्यके निषदनं 
रे बरहा पष्यमक हप्र | ^ 
प्यैरिए्र म्ये प्पनर्मा तै निर्ट पे सम्बल्विय ठकेनाषादौ मोक्ताभनिष 

ष्ाम्यवाद शा एक प्रन्य प्रि परषोग श्यपीसौ सुषारक एतीन कैब क्म 
प्ाषकेरिमन* प्रपायभा। दैश्छाद मे नरं बस्सौ अमति शठा बलस्वदिष प्याह 
इष श्मिती पाप्रबाश्िों के ततिए्‌ प्रप्यविषू कठिन सिद हप । किन्तु ग्र सोमाप्य 
चेषं एधितो रभ्यमें मौदूके बम नायै लभर मै बि का परभमर पिस 
यया, भिवे मँरमन मोब घोढं मयेडेतौ बे समच दृएप्रौर फंसोसौ धामो 
जप यौव जिताने षणे । १ ततल फरंपीतौ एयगीति मँ बृट नवे, पनित के 
रे म रते ग़ कदु-गिषाद सदह रषा प्रौरबे गयो नेंतररी वर बट प्ये। 
न्तंसेप म ब सौमान्द-धेषीय बोष्वल्ण ति परिष पहश्नौ स्वानोय एबनौधिके 
ऋपा का एक उशहप्ा बा । स्ानीटेतेन स्पूं एण्य पतामी्गाके 
"पष एत्वादौ भितेभ्रौ जलप्‌ कभिन्ठते शो बर वञ्चो शैतिहर बत्ती चतां 
बह एष पोटा, दनु वैडाम्वि ष्टि ठे मवला अयव भा । पुष्य करो प्रप 

अस्तित्व के पौ नैशिक पोर बोरिष निम्मा केष्ठाय शमर बना कष, जि 





2 बही, प्रतु रत्। 
२, भाईकेरिपम--ेे के एष उप्यास स्‌ बरव भाषस पाज का नाष 


पराद्य, धा (प्रतु 


१३ समरीडौ दशन कमा एतिद्ापु 


भिरी प्ररमा को पी शुनामो एषकं बुधे एए निष्वास सौर प्राप्रा को 
पुनर्जीबि्त करो 
शिरे मम्द श्वास षने षगामो, पुरे मषिष्यक्मो कोष्प्टिरो 
एक बार पुरे उख भभिप्यकाहात प्मौर पमानन्ददे शे; 
श्न परानश्दमय इर्पमय परिसखधिमब ब्रीव | 
"बरतीसेपरे श्यै धकिदहैरे ष्वेरमे है, 
जिजप के प्रभाणा मनुष्य ब्म यृच्छ--जिजयी पाचचिरार 
“धारवेनिक मनुष्य की सावंतरिक दस्र को बन्दना-- 
पूर्ण प्रातन्व ! 
मानषरजावि पुनर्जम तैवी दै-एक चेव रहति 
जिष्व पूणं पावन्व | 
नावौ पौर पृशषय डनी पोते प्रौर लस्व-- 
पूखं प्रानन्द | 
शबुषरौ हषी पे मरी शकृ, परिपूणं परानन्द 
शड्‌, मिप कष्ट पये --दुष्यमय परती 
परिगुड हर- दना केव मानन्द 1 
खातर भावरर है पपिपूर्ख- दाठाबरस मे कवल प्रागष्ड 
प्रामर्ड ] प्रानम्द ! स्वतत्नता पूया परेम म, पनष्व, 
जौगत के एन्मादर्मे | 
श्केषल होना वी पर्बषठि | एं तेना हे पर्षा! 
*सान्द ! प्रानम्द | एव प्रोर परानन्द } ` 
दसौ इथ्टियो का पागन्व नियो मौर रस्मवाक्यो के घान-घाव दाएनिषो 
को मौ हमोणा उपक्व रहा दै, भ्योकि ध्ये वीप्र भ्रागेग भौर पाषा को म्प 
केम प्रर दये धादषं समाज का जितस करे मे यदपि बह गर्तमान 
पम्मागतार्परो ठे पौर एम्मबतः लमिष्य श्ये किसी वास्तविक स्बिठि ठ भौ पूर्ख 
पषम्बद होता ह, दापनिकः कर्पा भैतिक माहव को दीष भावी है भौर 
प्रा भी बण्यप्राम्वक्ौमयास्मदेदेती है) 





१ शरास्ट हिम्मत) तीष्त षन ब्रहते दौ तिष्टिकि दुष्टरः । पठा थिन 
प्रस्य क्िताप्रो के शर्य दिये णये ह, वे भौ बार्ट द्चिटमैन शी रजनाएुं ई । 


१ 


रष्टय परर लोकत १११ 


स्वतस्त्रता लौर सध 


पटे दय मृ तोक प्रोर रद्टृवाद के बीच ए मण्य कौ पायु बीत 
ययी, प्रौर धरष्ठह सिदाम्ह पौर श्वदहारनो केटी गे यम्मीर प्रन्तमिरोष 
छापरतै प्रा दये जिते दवाय पमरीक्मौ पोप धान्त कामम शलते का परपापक 
रेषे । समम्यैते के स्वान पर्‌ टाम कय प्रवृत्ति प्रां प्रौर टासनेके बाद 
प्रसपाभ कमे ! जिय मंचको भाषार बना कर रष्टय पणवलवारी पक श्रहनाव 
प्रन-तमभेः मथ्य-परिथिमी ष्यश्ठि को १८६० मे. रा्टरपणि चुनबाते पं छल श 
येमे बह परतो को टले का एक पूर ेर णा} लिन के प्रप भी पह 
जाधव मे मिः धयम षः प्रमियानेों मे उन ओ प्रलम-परमय मादे करणे पडे पे, 
रनु एष रष्टप कामके क्प प दकटुा करते पर उनर्गे कोहं वामम नही 
हहा} दधु एगनीलि छा बड़ मगेकर रप ेगस भमणकी तोदनम्‌ के एम 
कम परिदति भा कपो दतीय-एवलोषि ते ुलेप्ाम सस्ती लोकप्रभा की भौर 
जीहपेदूट ए रंटबारेष्री ष्वभस्वा को रना प्माभादभताया बा रेषणे 
यगनीतिक पैतार्पोको एशचूएरे चे पहर स्मि बी पौर शोममप्ने प्रौर 
उने राजनीपिक देल ये हतनी ही शहरी जठ ययी शी! स्वत्वा मोर्‌ 
शष एक प्रौ पमि केदारे मे मायया देषा प्रर प्माद्र कना ङि अनताका 
एषम बलता के पिए प्रौर बनता केषारानी होना भाहि, यहां ठेकतोदक 
धा! बषिति 'राष्टरीष होकतत पैरौ भारणाप्‌ प्रषर पामक मही तो कशमिक 
अरततं हवी शीं । लोकताम्बिक राजनोति शर देष्ते हुए रोकताण्विक प्राय 
भी प्पलम्थिकैते हो सकरी षी? 

नपू-हेयतैष्य दे मूक्वामी-अपा क्ये समाति कमर्थ पौर रसिरादेप्रेनकी 
भमापि के सम्ष॑क स्वदर्ताके ए संशषौ एमासि के प्रयम पर पहमत # १ 
दिन्धु इन पृराशष्छनादियो के गोर्भः तापि श्च निशत गहुमठप्रोरमष्य 
अ परभिमी सर्के राजनीति बैठा स्वतन्नता भो हेव के प्रभोम्‌ रसनै के सिप्‌ 
शैदापमे। एन्रमम भेदने चोपिठभ्निपवा किरषये कामम रना षहोना 
प्रौ रज्ञा जाएपा पोर भैषसम-यममेक लोकतन्तवारिर्यो भे प्रव इवाव षौ 
हवाए्बेप्टयाण्येकि तुरि देए शौ एष्वाशो बनाए रं जवि रनक 
प्रपमे चिन्त रठेठीएप्‌ने। 

ष्णी प्रिदासो एय निक्मण कृटते षाध पामतौर पर प्रक्षि धिष्र, 
हामायिक प्रकुरन्व प्रौ शस्या ओ जाथ शंवौय सम्न्य ङे चैफदमभारी 
हिदान्ठौ के पणार पर धनी बत का प्रौरितव पिदेकएे वादा कए. 


११४ पम्षयै दव का इतिहास 


थे । प्रमान न्वावाषौप नी के प्रिद मिर्खंप पे जिघ्र पिटान्च शने कासू का भंव 
बला दिमा भाक पुसाम ध्यछठि बौ सम्यतति है-ग्सके पराशर परमे बुसामो श्म 
नगरिक स्वतन्त्रता मौर समानता क प्रश्न को टा भावे भ । भित भव भिषाद 
भिमट कर्‌ पहामी प्रपा कर परह्न तक ही सोमि रह णया ठो प्रभिकांघ मिनारिर्यो 
नै वैपिकं चिरात छो बिल्कृह ही घो दिया प्रौर पाम प्रथा कषम 
हपयोमितावद्ये भ्रा्िक प्रापारो प्र स्या 1 कमी-कमी परपतात कृ 
नैतिकता क्र पुट मोधा जा, बै उदरणा के चिप, बास्ठंट (शिली 
कैरोखिना) केः बपरतिस्मागादी घषक मामसे्े भिसमे १०५६ मे ्सप्राणप 
का एक प्रस्ताव स्वीकार किया कि युलामी प्रवा भास्वम मृ एायनोपिरु प्रपान 
कप्र्त । यहु एक घीषाधा छनाम है ङिहम मजदूर शषा मय रों 
जिघर्मे इम पर्यह किम्मेररी होपौ छि दीमारौ प्रौरबुष्पेमे हम उषी 
देखमाल कर पौर चै षहारयरेपा करि इम उसके मयका केवत एष हित्या 
शरीरे प्रौर पेसौ श्वो जिम्मेदारी हमारे ञ्पपष्नहो। 
प्मामतौर पर उत्तर प्रो बिख गोनों षोही मयहोते के सावसा गु 
रहत मी मिमी अव राजनीविह मिषादँक्म स्वान गृह-एुड षे जिया। 
शस्वताजरता फ एषठ मये जरम, पोर एंव ढे एक शये पदान्त कै लिप्‌ बााषरल 
पाहो गपा। लिक्नमे जित पर प्लामोकठौ पृष्ठि पौरवी रशा 
धप भोर पड़ा, श्नि पुलनिर्मारा श्रौ दपा पे कापि प्रण्कषप्ौर 
येसं भारम्म क्षिपा मच्पि उलके स्िछाप्व भी नके साब दौषहीदस्येगये। 
धीनान्त-सेभोम लोकवस्व द्विम सिदधन्दे प्रोर मरम पराचतषादिर्गो के 
पमभ्वैवावारी दंव ये उरुं निकी भिराखतकेस्ममें मितेयै। पड भोप्िषो 
धावै केषाद वेत्तवै कि धपनै दप्रौय तरीष्तुकोणोढृ्व भोरबहांतक 
हो प्रे, प्वद्मता प्रीर पंच कम पङ-एक श्र केपि मेस पैदा कणे भासा 
कायाम निङूपिच करे । उन्हे ककमल दलीय तारो क्म जो प्लामी बले 
राज्यों क ंवैषानिष प्रथिक्पयो परप्मौर इख पाष्णा पर पापारिव येकि 
श्च्छिसूमि, के दाव-छाव बामी बते रम्य भी पक्षे, पप््यम कष 
किया मौर (एत्भमे दी म्य) यपे इष मिष्वाय एो हि रपुः पावा पलाम 
मोर भाषां स्य नही षह श्वा स्वव्रता के भोपा-पव श्ये एक 
पर्य्या पर पाषारित क्ष्या । चनेन कृडा कि एस पौप्णा-पत के सिन्त 
लै एक भर्भिहीन समाज निहित हे, यिसवे स्वतन्बता भस-पघग घमी मवुष्यो 
का ध्रभिकार ४ पयोर उका भंग नहीं स्प जा सकटा । उष्टेमै प्वत॒म्ब्ता 
कक प्रपते सिदधाम्त कः दपमोय ल केवल बामं द्र पृच्ि के एम्बन्धमे किया 
अरम्‌ स्वतल्त मखतो मे घार्जिंक स्वतसता कौ पमिवृदधि $ सिमस्ति भे भी। 


(+ 4 


शष्ट पोर सोद्टन्व द्द 


म्बत किसान एना प्रादए वा) भ्य समोकेक्यमकापतौर पष्य धमाके 
सिपक षणो भ प्याबहाकि प्रणकर पापस्य दात्य सवे बे, 
जिल स्मासानिषु पन्त द्मे ह्ये छि मथर एम्पचि क स्व्तसस्वामीकेष्य 
मस्य प्रपमा भ्वापारमा दयम पुरू एर । विकल परएाकवेष हिद 
प्रकार दनेविहयेम धमा क पारप शजनीहिक पोर पामिके दामो ही कपो । 1 
फपसस्य हो सक्या ¦ यद्चपि पर्थिम मौ स्पिति फे छष्दमे यं म गिभ प कष 
शोकतवि पा, शनधु एक्िफी बदानोके प्रायिक रभे पोररर्धरके बहते (प 
पोठामिष पुणीयार ङे सन्दे बे {संत पम्बणारिषू सिड {ए । पतस्व 
षम एए पवस पपुप्यो के राष्ट सोकहल्म क पमादपासो निष्पस, 
एर घरोक्पव भ्रव माज ण्डा) एक भागना रोर निषेक श्रपिमानकेक्पर्पे 
पष्क पछि इर पीढी क एाम बद्वी भाती है, बो उषी रपषन्मि से पपमैे 
पपिश्मषि दूर पाती है। 
स्वध्ता मरौर एंप छा एक पाप मापुकदापूषं परेल ये बास्ट हदयेन क 
भीषन प मिता है (मह कहणाक्टिन है कि रपे एष्डमि प्रविपादिव किमा) } 
परह प्रसाषारण क्षि एसी प्रकार रनक शोयेसोमेरेषते एपोम्यनौ 
ई भते भविष्य दिकण \ षमहोनि विला मनुप्यो कदिषर्णे मे मतणिदतै 
का अवाप किव, निती स्र पर एमी मनुष्यो ममेम विटे षका पमाषद्धिया। 
भोर जब दी ते उने रिकाषतश्ी कवयी कोषो एविपूणं द्णेनषीं 
प्रषान्‌ केर्हे तो कटने उषठर हिव, "पेण स्वा है वै दैषानहीरुण्ठा पैल 
एता भी षषी राहुवा 11 उमे गिनः किसी चोड कय वि्तेयर्‌ कणे शाकष्ट 
अलवै, हैर चीड पि षदनुूति रते एमी पदापारय मोथा यौ । सन्धये षव 
कृ पपत लिप, एक प्रनिनिषि प्रमदडी होत को दावा क्ा पौर पह पयर 
देमि शप्पना पोत {शी एम प्रोट मण्ठेस्फ) पपर हुए बे न्ष 
पशम्सण्वादिर्पो के भ्च्छिवादको प्व कर रहै दै दस्कि शो्टन्रबी ङे 
्विदैम पौक्व कोम! उतके शिलदन्‌, क सापनठाप चरती स्वत्सवाधोः 
लगपम प्ौम्वि पौ भौरतापण्किषि भयिष् प्रवकः पो! दतु द्टिटषैन 
का पदु प्रोवतम्भ माभपरपुग्याहौ हौवा, बर्‌ तिक्नष्ो साधि एम 
लोकान रयन $ ष्टवे भा एक पटना | शेषरानिषः षवपटहे 
दलम विष्वा उटमया, बबद्ठे पयर य ररम ष्दारहार शमे भिः 
लोकप अकामे बेरणगमारको एद्‌ दिवा, निरुपमा द्विरदेन भे बाचि 
दे प्रामोभन द्मा चा । पण्हनै "दुखट-पूमिषारी" पतेम का प्रपाह म्पा, 


२३६९ भमषीडी दोष श्न पषिहाख 


दवमनु मह प्रयाष भभ्यागहारिक दिद हमा पौर पन्त मृ बे प्रपत 'रषटरीप 
शोकम" फ ्ोदृकर रकन $ एक उत्घाहौ घम यन गये । दन्तु बे इव 
को मीय पदिक श्रष्टठाष्मी परिणति मने ष) शमसका शठो के तिप्‌ 
बहुत पिक भके नमाह, भवय बुष बड़ा प्रोर रत बहवे! श्वैन 
किसी पुरा इम पर कोई मरोखा कर्णा, त की नमे दस पर । ^ बलीय 
राजनीति के बजाय, उन एक प्रोर भैयख्िक$ नेवा पर मिष्वाप्र बा, दूरौ 
शरोर सराणी-माबेना या "कतेमस-राजनीति' पर (कैमेमस ठ के परार का, पानी 
मँ उने भाला एष़ पौषा) । ष पााषी कितो पुटौ क्यो प्रो पूर्णौ 
के भौरि-भीरे दररतै पर एक स्वामाभिक मानमीय षहातुपूणि केमी प्रौर परिप 
होक नागरिक मित्रहा भोर पौष्ये प्रेमकास्म लेनी) प्राभि मे बे 
तिकन्‌ कवि माति पाहा करते धै कि पोरे स्वामियो के एक मिता स्वेतम्न 
प्रोर लोकतानििक अगं का बम्म' होगा" प्रौर प्राजीषन उनम बिपमतामों परौर 
अ्-पल्वानों के परति एक तौप्र पणा बनी रही । लैकिगि १८६० कै बाद पुषार 
सोजमाप्रो सं उक्ति बहुत शग दि ली । प्राकृतिक नियम प्रौर मानी प्रकृति 
मे उनका निवाप प्रा्िक-पिदधष्ध श पिदान्वो पर पराषरारितव निष्वास नही 
भा यरु एष हिषु-गुखम निस्वरं बा तरिरमे बे भार्भिकषटप्ठि ते पठ ने- हिक 
के कतेकरमाद पौर कवरणाव का एव मेद । एगषी पाहत भ्यनस्था प्रामाजिक 
तै प्रजिक्त बर्मठान्तिक शरीः -टैषौ स्वहन्रता का मियम 1 
'छमप्र ष्टि श्यशा निवम है । स्ववश्नपा कवष सारे कपंकलाप भोर 
अनुमति कौ ^निपम $ धन्तमंठ पमृरूषशृएवीहै। क्या हम एषा मवाभिष्मर 
भ्रा कर सपे - सज्जा सोषतरमे प्रौर उखकौ अरम स्बिति ? हम ग्म तै 
सृ धक हर ति भौर श्ण को बाधने बा पटह नियमो प्रीन ष्ठते 
फिरभी एष भिरोषामावके हा, हम पण्थो लठल्व ण्या की स्वितिमेधा 
जते) पड़ भिभिष प्रतीठहो षष्ठा है, दु हम निममष़े हष भौर पूर्णत 
उसक्य पाल्त करे के दारा ही स्वतन्त्रता को प्राप शरे है । महान्‌-प्रत्पषिह 


२ डी, प्रष्ठ ४८) 


२ बहौर्ष्ठ ११। 
¶ शेलिए्‌, उनकी कमता शजेष्टि दी स्कवायर डदि जितै निमृत्ति 


( पिता, भृच प्रर पिज प्रमा ) तान पर गोपे भ्यक्िषेठानरोनीषोद्‌ 
दिवा गमा, भो “चेह ्ी सातिः णएता है प्रौर भतिन प्रापराण को वदत 
कर (द्व प्रास्मा" ( तष्य स्तिषि ) कर शिपि पयाहै, जीदत कौ तात, श्प 
कासार, थार्वं भस्तित्यौ कषा जकन । 


-यष््माड पनीर्‌ लोकत ११४ 


आषठन्‌--रै इ परोर ममूष्य की मृष पामा ! सनी महानवम स्तिति मं 
निर्म क्षो चमग्ये भोर गठक्म पासन करते हुए बह स्वधिक स्वहा के 
काग र सका ह पोर केवत तमी हायप रह घषता दै { भप, उण्भतम 
(लोपो) के शिद्‌, छो म पन्य पिपम के मात घम्पृणं षसौ मी भत्प निवम 
से पपि हस्ये -स्वदन्बता श्य मिम है ¦ प्रियते लोग कैसा बताया भा ह्य 
ह स्श्वन्पताश्म प्ररे मिवर्मो, प्रे संवमसे पशि मन्ते} परे निपरीह 
कनी स्छमे पष्िमिव नियमो का निपम' देते (पद्‌ चेन एज्या 
प्रादिः बेपि निक छा एन सजिर, पनन्त, प्रदेहन निपरमोे मेद ना 
खार भयल ये ऋते £, इतिमे प्याह भनष्नेरहा को प्रभाणित कर्ते ह 
एम्पुशौ बाह्य भिष्वको नैति एटेस्य प्रदान कये है भौर पागव भोषनदो 
प््तिप दृषा । '\ 

पष्प र्पो प्रौर रुषठोको धनापि-खन्धिमौ प्रोर स्वयं ममूप्य 
मविश्री दोषयारिकिह यकव चिषे ्खिटमैतपे बीन पच्छिम श्रमे 
प्रपनाया एष दत्व-दापेनिक व्पस्मा काहे परविनिम्ब है बा सृष्टिक 
एरिथालन करती है । वे पादमागारी होरे की कपिना एष कागङ्क उदारमावी 
प्विश्वेप्रोर भोदुधभो प्नुमम, ररि पा मिञजानि के वराया वार्थ 
मारित हो, उका शारिक स्वायव करम पमा कतमय तमप्यो षे । कतके 
तिर्णय कोमे हिज त्वीार कए मे" रोगै प्रमे मत प्वमी स्वतयता से बते, 
चैते उन्दोनि शमी पपा हिपाग्र भमा" हैमहो। बे रस व्यचि शैत्य 
स्वकया णोष्डेलने प्रम्ददपीहे प्रोरबाहर भी पीर शर वैश्वे 
भरबरमकरवा है) 

द्िस्मैन का देते प्रीर प्रथरय कर्मे" बाला पण उत घनम पौरे परगुल 
हो पपाभष षषः दिजयकेवारदे भयो टल्हौनि प्थिकाचिहष्सर दात 
को सन्ध कि प्रमरीकी जोगन शो प्रमुख पवृ प्रोर प्रतिमान क घमस 
उनके लावात्नि+ सिष्य इष्ड कमा माव पौ । उता जीन वृर्न मुष 
पौर पुनज॑न्म श्च दर मोषा पपा- ए दुसान्ठ लोकत । उनके दुब 
ध्टकोल षय गकरं, उनके प्स लोक्तास्विक एजनोपि शा परणं पाम शप 
देषम सर्वापि पष्ट स्म मे घाममे प्ररे यथ पातुिष्ट लोकक्र हे एष्यते 





१ सास्ट द्भिटतेष्‌, धोग्‌ बर" (भपूयाक्त १८९६४), पुष्ट ३१५ १३५ 
२ भापुरिष्ट इतकी स्वापना, १८६२ मे हृ{। शसो का पारवमनिर 
निग परौर पाय ढे प्रनुतार प्ररो पराशकर भणादि इदे पयपृ्म ए 


११५ प्रमरोदै रर्वन का इतिषहटम 


सरषगाभी प्रमानिद बही) प्रारम्म ते प्रम्ठ ठक उण्टरमे "अब्रहाग- 
जप्ताने बाप्ती परम्परा के प्रति प्पनो भामिकू भनिष्यको क्रापम षडा जिषे 
शप्ल हेमे शची रमी कोईमाघागदीयो। 
हष, पूेपीप बिदराही, भिेषियी । 
क्पोकि जव दक पब कुचर महीं दकता, बुम्हं मी भदौ स्वना । 
ष्ण मही भावता किदुम क्सडिए हा (वै महीं वान्वा पै म्सििए्‌ 
ह, पाको सििपएहै) 

“दतु पफल होते समय भी मै सामषानी धै उपे शोपा, 

१ हार, प्ररीदी भम पोरष्ेडरमे- क्योकि यै भी महाम्‌ है। ^ 

द्धिध्मैन पौर किन पपषादधे। पागतौर पर एंष-दानिर्णे तेखप्र 
लाकतत्ण का शठप घ्जोढुकर स्वतरत्या के कम शोक-प्रिम रूपो को भरपनापा । 
मह प्रदस्ठि करने मे शालिक के घाप बकम भी पामितहोष्ये कि पृष 
परय प्रभु सर्म्मो काव शठी है, बक्कि एष सर्वपरुरा सम्पप्र *सभ-र्स्य' 1 
पैल विभि-स्कूं के एकं स्ातक णात घी ° हुं १ इ ध्डन्द पर प्राणाप्वि एष 
प्माष्य्रौ निक बिन्वा हि ह्ृानून मे श्य होने के पठते जनता मं स्मित होने 
ककार सम प्रमिमान पे स्यादा पुराना है । इ बीज पप्र॑सिस सावर जमनी 
भरे एक पादंबारी उदरषाद तयै प्रौर ठन्हेति का कि जठ षी क्तरार्पो शे 
जित्‌ पर भापरिक स्वस्रा पावारिव ह॑ राम्बकेप्ावप्रागिषठ ङ्म मे षम्बड 
होना राहि । फिर व्लष्टस्ली के प्रबिक एष्टृषादौ भगि्ार लशोक्पिय हए । 
सजनीति-ाञ्ियो $ एष बिसिष्ट घद्हं $ एन्द्‌ पपदीश्चै राष्डषादश्ची बृती 
हई सावना क पनुस्म शला । इनमें भेत के पियोढार दूवाषट बूरो कोमम्बिदा 
ढ़ेजोन ङ्ग्य जरस, भोग होपरिन्प (सस्वा) के गटपू* क्पू निलो प्रीर 
प्रिच्छीटमन फ भरो बिभ्यत प्रपृलबे। प्राम्तौर पर द सपृ षै प्ववन्बताषै 
पथि प्रागिक एकता षौ वाठ एटारई। अव युडरो विच्छ लोकतत्वादी धते 
पौर भवी स्वठलता कर प्रथार करमै लगे तमी बाकर प्वठन््या धौरसंपष 


एकता शएनिकर ङ्प ब पून स्वापि दु । 
श्पय्ंदादी सोकर 


पभरमरीक्य म शोगदास्तिक च्थिम्द पर कमे हा अमाय भामठीर पर 
दहना माना भाता दै, एक पथिक पा । बहु कहना पविपएपोख्िन होगौ नि 
~ + 0 2 वि नकन # 


~^ प्रमरएक्य इन का दध. 


‡ै। हमारे प्रर केषासनर्मे प्र्तनिदि दिभारके भूल पर्णो मपेष्रब 
छक केव एकह भिकसित हुमा वै मयुर व्यश्िवाव- जिषे राष्ट्रीय एषा 
एक बाह्य उपकरण प्रवी हठी बो, भषसे घीघ्ही पूरी सरष्रुकाएपा 
सैनाभा पोर उषे स्वान पर निजी मनुप्य भा उसष्ा स्वान लिने वासे निगम 
के ठद्चमक़्ारष्धनाथा ) भरव हम परष्य मूस पष्चकी चेतना ठक पूष है, भोर 
हर म्पच्छि राण्य को श्रपतै एक टोय पसकेस्मर्मे स्वीकार करता है । नामणि 
पि स्वतर््रता पाप निरङुता मेँ नही है, भरन्‌ उख ताक गिष्वास कौ पिदधे 
है, जो एंस्वापिठ कानून मे म्यच होवा है ! राष्टीब बौगनके ष्य नये पशो 
सममन प्रौर प्रात्मसात्‌ कटे नो प्माबष्यक्वा है, यह परिकल्पित (षषम) के 
भ्रभ्यमत शा णक प्रौर श्रय ६ै। + 
रष्टरीप ज्रीषन को समम्प्ने प्रौर भल्मघात्‌ कणे" $ प्ामान्य श्मशो 
तरकिमेपर ते इष पश्र प्रत्त किमा-- 
शेतना फे मूष तोन स्विठियां होवी है -प्रमिष्यछि उपलम्नि प्रौर 
कस्तुकरणा । शमं पे प्रपम स्मिति जिख पर प्रम्प वो परषतीं प्वितिां निर्म॑र बै 
भ्मक्ठि ममुष्यमे ही है) तर्कबुद्धि पडते रपर्मे भ्यू हयोती है, तभी बह एष 
था उस एाजनीनिक घामाजिक मा वैविक्‌ संस्मा शयो उ्पलस्व कर सक्तीया 
उमे स्थचि हो सक्ती ६। पौर केवल षवता हो प्राबस्यक गही हैनि वह 
ब्यछठिमे पपने चयो न्यक करे! ठते उ पत्था में पपे को उपलम्व भौ 
कणा होगा इसके पहले कि कला भम्‌ बा द्यनरमे एषम बप्तुकरणा 
होष्के। ^ 
प्रमरौकी इदिहास के दषट्र का (बहुत कु हौपेल कये रणना छिलोतरी 
पाए राष्ट के घल्दर्म मे) पर्वबेश्नणा शपे हुए स्लाषढर प्रम्तर्मे उसके महान्‌ 
पं्ट पर प्राते $, जिस्म बिश्मैपणा इन््रारमरु हप मे प्रषु तीन प्रबर्षिपो 
शे फ बार प्रपता पं निव एव प्रक्र रखते &-- 
पमरीश्यै शोश्-मारमा जैसा हम र्वे कुस्ते है महान्‌ संष्टर्े६, 
णो सहन-भिन्वुं के बहुत धामे षडूना हौ जता है ! बह प्रपत पम्वरहीबो प्रग 
मदएव नही हो बिपमुकू हिस्छो मेषी है गोङ्न्तावर्मे वा सौमे रक्रा 
जे ह । बह परर हर शोञ-परास्मा भगवी भवौ है, उधर पौरश्मिष पा 
मृ्छ-राम्पो सोर मुलामरर्म्यो वंक्यो इर । हर रिष पंमहखवते गपा 





१ भ्बर्नत प्रर च्ेकुलेटिष छिलातण्मैण) प्रर एष (2८६०), पष्ठ १। 
२ फति बौर हुरमेन, दो तोदस श्िवाप्ये पोदौ तैद 


हीगोनियन्त ( श्पपाक, १६.४३), शर्ठ ७-८॥ 


पषटरभाद प्रर सोक ष्ण 


ह्वा यड कचि संव एक पनन्त स्पदे ये पषा, देवपरे बनाद्हेगा, या 
पृष्ठ पोर भारछमिक थ देम ? कुव ष्टी सावना, इतिहाप की चैठ्मा पहने 
भीमे स्वरे धदेषदेती पूतीभाषकतीहै भो धीद्यही पर्षन मरे स्वरम 
ट पेषा । नियति क्म बह पूण थो संदिषान फे षम्य के समयी ररम वृत 
दिवा पया प्रोर जिषे पने वर्मोरतम र्हि का बोम उपर डस रशा 
६, णहे प्रद निरस्ता होगा! पाने बाहे जेठा के मनिप्क्ष्टा परयो, भह 
{लोर्-भाप्मा) भाभी पुलाम पापी एक र्हीं एह पकती 1 '› 
स्नाएडर पारा पृह-पट की प्यास्वा मे हैरिष ¶ एक पेषड़ टीषा बो 1 
भ॑ टी दान्ति मातम टिषह्यष मे द्रद्णाद का एके बिदयानषे भिप्य-पाठ 
षीपरीर पुषे दा प्रतीदं हेता कि जस धर्दोलमे के पन्तबिरोर्णोको हीयेल 
भै जित गहरं दक देका बह धाए्चपेननक है। तिग्तु पुमे षम्देह है नि कासाय 
शौ बति हेश तै षी घामद उष्ठ दिषा-एभेह के तिदभयामक महल्वका 
षष्टी मभ्य ज) [प्व -पतिहाच पिस्य स्व हेमे लया कि केवल रपु 
र्व द इषिदास ज रेन मप्रला सम्यष नहीणा) पाग एम कह परर ६ 
लिः "पमण दद ब्दी पुषः केाद हौ सिके यारत परापे वनी पोषा 
ठे सि्षाद, दए रिषा-छेटठ मे एक निरिदठे प्रषमयता भायी। स्येन प्रौर 
पत्म य धौपनिमिपोक्रण भोर प्षम्प, ध्येम प्रौर पटली मे सोश्तागनिकि 
पासन के प्रगोम देवत त कयो भपादाहीग नाने क प्रपाघ्र है ! वस्तवे कृ 
देषा स्मै वमा है वैते इमारे मजदूर ष्ठन प्रोर प्राष्योलन मारौ बली 
जरी, हमारे बा स्ट्रीट (चवा दा व्यापार) के दृष्ट पोर सौ पार 
के तीर्ठोशै एकतम्यीष्फो हमारे छामनैधाद्ही हैया मविष्प मे उनषी 
यारि पदै, वैरे पैकयेप दा देकर विलाप कषणे बारे देक्वोढेरवो 
कौ पि (चैषवैष भौर देम यसपियर के प्रिद पुस्त तारकः पौरवैः काः 
मानिक पोर एक पाह), पौर सोकदाल्क्कि पान के तरिषु सरण श्सन्न कृष रहो 
द) हमरे विष्वा को गनादे एमे वाही पुमान भातु महदह कि पजर 
डेषुराैषय्दी शापरौ हस्प भरु 
“ष्ठि वदेव ने पपत करला-ष्पि-जिषान के एक तिय प्यक 
ष्यन्ति की दिदेषनाकोहै।।१ 
बै पगाहरहा पटकको बुप्रभिाखदैमै के लिपप्पदि हेमे कि हीयेत 
{ढे निषि को धमरोगी एथनीति पर नित प्रषार ला कपा थवा! पापि 





१ बाह, पष्ठ ६२) 
द बही, (ष्ठ ६१.६४) 


१४ परमरौषौ दुन का एवित 


ई । हमारे प्रकार पान मे प्भ्वनिष्टिव बि्ारङके मूल पो मेषि प्रब 
ठक केमस एक ही निकित हुमा है--मंयुर म्यद्ठिकाद--थिषठमे रष्ट्रैष एषा 
एक बाह्य उपकरण प्रतीतं होती जी, निष्ठे शीघ्र ही पे वर धुटष्टारा ¶ 
सैना घा प्रर उमङ़े स्वान पर निजी मनुष्या उका स्वान कमै दाते निगम 
9 एम का रष्वना भा) प्रद हम प्न्य पूम पल्ली शेना ठक पहुचे, प्रर 
हर म्पक्ति रान्य को धपने एक सेख पसकेसख्ममे स्वीकार करता ६ । नामरिष 
शि स्वतन्वा पाभ निरुकुवा में गवी है, भरत्‌ एप हारि भिष्नाठ श्यै एरिर 
द, जो ंप्नापिव हून मे ग्यक होवा! राष्टरीव लीगल फे एस लवे पञ्च क्ये 
समम्पमे प्रीर भात्मपात्‌ कणे को पागप्यकता है वहु परिकर्मित (दं) के 
प्रभ्यमेनकाएक प्रौरक्मर्यहै। + 

*एष्टयेय जीन षठो समने प्रौर्‌ ध्रात्मसाव्‌ कष्णे के सामल्व श्णको 
शरोकमोपर पै इस प्रणरार प्रष्युव पिपा-- 

रेवता के मूलर्मे होन त्वितिपा ह्येतौ है-पमिम्पछ्ठि उपतग्बि प्रौर 

जस्तुकरणा । इमे ठ प्रम स्विति जिस पर भरन्प दो परतो स्विषिमां गिर है 
प्ण मतृष्यर्न होवी & । वकु पठते स्स स्यूहोती ह ठमीबहष्न 
मा चेर राजनीनिक, सामाजिषया नैतिक एंस्पा को उपसम्ब कर्‌ घक्ती या 
पमं स्वि हो सक्ती ६ पौर केष ए्ठता ही प्राग्यक मही दै रििबह 
भ्यं प्रपमे शरो ध्यरूकरे, ठे ठत एंस्माभों में प्रपमे श्रो सणैज्ब भी 
क्रमा होगा, यके पहने कि कला भमं पा दरपन मे उषा बप्नुकरता 
क्षोषधक। १ 

भ्रमरीकी एरिषहास $ षष्ठ श्र (बव कुष हगैल को र्ना पिबापि 
पाफ़ सुट" के पन्द्ं ्म) पर्यबेषणा श्रते हए प्लाषडर प्रन्तरमे प्रसषे मह्मषु 
श॑स्ट पर पापै ¢, जिसका भिष्सेपणा इष्वारमष़ श मे प्रस्युत दीष परषषिपौ 
मकरे के बाद प्रपता संञित निप्क्यं एय प्रपर एते ै- 

भमदैषी लोष-मारमा बैषाह्म ग्देश्हष््टे ¢ मद्यम्‌ घछव्टयमदै, 

जो सहन-भिव्यु के बहू भागौ ककृना ही ज्वा है । बह पपे प्न्दरहवौ शो प्रप 
गृद्धए्व मही तो विगरपयुक हिष्ठी मेर्बटी हैभोङचन्छमं तो शीषे टक 
जवति दहै । यह एक बटी ट शोकप्रास्ना बनत्री लाठी दै, उर्‌ श्रीर्‌ दमि पा 
धृछ-परम्मो पौर युलाम-सम्पर मर्दी हरं । हरस्ति पेपहरसुषालं भता 





१ च्ब्ल धद स्योकुलेत्वि छिलातरौ , पड पष (६७), प्रष्ठ १। 
२ सिव बीर हाष्मेव, शो सोल स्लिषदो प्रोडदो तष्ट वुं 


ौतेनिदप्त ( ष्पा, १९२५१), पृष्ठ छ 


*४्२्‌ पमरष दन कर सपतिाह 


बरपारमौ रोजश्प्रौर परमेक के भिय निष्कुल गपा । सेस्याप्ो केष 
का प्वक्षण कटे के बाद--परिवार (बाद) बेयक्िह परम्प (परिमा) भौर 
राज्य (संवाद) --स्नाडर उको स्वयं पपे कश भोर बाठामरणा पर्‌ शय प्रभमर 
भाप्र #वे है-- 

श प्रकार म्यद्छिमत स्वामित्व ॐ भाई परु प्रोर सत्पाप्महद्य प्राता 
भाहिए्‌, मी प्यक स्वामित्व णवे दरार परि्रिठि मोर पडोभित हाना 
जाहिए्‌, चि हमै पड सागर धाम्यमाद का ै। धनाय शा पूत मि 
सा स्कामी केता चाहिए, पियेय्य" उते स्ववं भपनी सम्पदि पर प्रषिषार कएना 
जाहिए, मीरे-कीरे सागषानी चे पौर म्दायपूर्वक पह निरौप करते हप # उकये 
प्रपणी म्पि भथा [कारणं दवि स्वताण भ्यछि ते परिप्रहय की पपनी 
स्वतरतता का ृषापोप करङे समाज के धर्णको भौ हजिमा जिवाह | फिदिमी 
निजी श्वामित्व क उनि प्रथि षम ठ्तपर केोरदचतरा वही परादै 
अमि नपौ घामाभिष भ्वषस्वा मे उप्त पर लगावौ पमीधीमापरौ के श्रए्णणये 
प्ररं पपिष़ पागभानी दे पहं प्री पूरश्चित स्वगि भाये। ङित बहौ पह 
स्वता श्म लाप कणे बाहवा भोर सुव मत्मधातौ कन पपा, षीति 
प्पनै-प्राप से बच्ाना बह्रौ ¶ । 

“पाज फ धम्य पंसार वै छामाजिक एककभवादी (मोनोकरेट) तषे रोग 
ग्मि है । वौनो महादीर्पो क मोप र्दे एष प्रक्मरङ़े भपङके पाषदेबणे द 
भह सोणे हुए रषे धये क्या निकमे बला है । किसी मणावश्व फ फो 
रष्दपति कोई राजा या घम्नाद्‌, ममूष्-बाधिकौ दृष्टिर षप प्रप्मर प्राक्पिन 
माह करा उस्म कशयना शे ष्परूलित हौ करता भते हमार पएषसष्मबा \ 
रष््रसेढीग या भार दरै मिध्ाल पाहतिपाप्रा्ठ करलीहै प्रौर दारे दषा 
कशा भ्यान उनी प्रोर जाते सपा ६ । इष पम्यण्ध प निचिव ठप्यदृदैषिवा 
कोकतत्व कौ ही रपति है प्रौर एकतत्व लोदतत्त का हौ रदौषपान्‌ त्रतरिरूपं 
पौर एमे पथति प्रतीव शिता 8 । 

परमौ हक स्रामाजिष पएषतवारी श्रगनै शपंपंपर्णंठ वैगचिकि दै, 
पपे निजो शायद जिए ही स्वेष्टहै । ष्यापद्चे हमा प्रन्ठ दहै, पा हिब 
एक परम्य पौर रष्टवर कामिक उष्य के पु विष्पिठ होष्डमहै!हप 
मभ हे दि बह धामाभिक इकारे को माप्य स्पार प्रघसं कनद दे लिए 
रधिष्विहो खा, जो छं एसे प्र मको प्रकार भृमेवी । एत कमव 
ज़ ध्पनौ ्तमाङ्दर परपली एषि करो बहटा करदा है पोर निष्कृ रौति 
दे मपरे सि्‌ एषम परगोय करदा ह । चु रयै पपन वैनषनि स्वितिधे 
अरग्व्नादैः मरौरक्कल भते लिए हौ कायम करके छामाजिक्म्य ।\ 


श्ण पमरैच्यै दन भ इतित 


रौर योबना धौ कि मयू-दंगसेड के परालरथार परर पर्विम के लोक्ताग्निक 
पादंगाद को एक बग साया चये । निन्दु परे पौर परिम कोको मे कैवस 
मिन भर ही, भ्योकिः षय धमय दक एनर्मे ते निसीमेभी सवनी षष्ठि देषमहीः 
घीकि कि बड़ी यार्यनिक्‌ परम्परा का सूष्रपात कर सके । 

हौगेलमावी लोकटाभ्निक प्रादपंनाद कठो एक बहुर-कुघ धसम्भाम्य विषा से 
एक मपी प्रेरणा भिखी । रेजरेष्ड गक्टर एकि पखप्रेड, बो एपिस्कोपे्निमत 
सम्प्रदाय ( भिदो हारा चं के प्रासन को मातम बाहा सम्प्रदाय ) के पादौ 
दै प्रौर लीषतके प्रन्तिम गपो मं (१८८०५) कैप्तिय कै पर्मकाञ्च जिचालय 
भ पाप्पाप्कभे रपदेखुक स प्रबिक पष्येठाबे। रन्टति करबपं बर्मनीर्मे 
पभ्यमग किया प्रौर पम्बिकल मवानुबापी हवीयेवादी प्रौर सुषारक पेडरिक 
ककेमिसत मोरिख के निवी मित्र बत भये ! पमष भापस प्ति पर ्रोनि एक 
पस्वक्र "बी पैणत (१८७०) प्रक्पप्ति की जिसे दरपन प्रौर प्सा भे पाठको 
भे बी प्रपिष्ट प्राप हुं । एसके बाब १८८१ म दौ पिपिम्िक प्रोफ पौर" प्रादे 
जिसर्ये उनके राष्टूमाद क भामिक पहसुपो को भक स्पष्ट ङ्म भे ष्व क्षिपा 
मया । पलप ी वी भैष कष दष्टो मे ्ारनसन की रना "दौ परमेरिष्न 
रिपम्निष्ठ' का प्रोस्टेष्ट प्रति स्म पी । मुस्र गै पपनौ पूष्वक मे ब्रागनणन 
की रबा से बहूेरे उडरस भी दिये किन्तु उक शस्व पौर प्रमान मिश्रधे। 
प्रतर संभिथाम शो पपित्रता ऋ भामा पष्नामै के भमाय एमे लोक्य 
क्क एनी धे प्यान हटा कर लशोकतत्त के पादो षी वाक प्रमिग्पण्ठिकी 
पमोर क्ीवतै का कायं क्या प्रीर इस प्रकार पामाजिक पिव्राम्त को प्रतिरिक्त 
प्रेरणा प्रषानि कमै । इंगलिप्ठान ध मिद्ध प्रमरीका मे छां छमाणभाद का 
प्रागूमन पसे परादपंभाभी रदुरारयो पप्रा! एषे पै भमरीक्क्ो शैष्वर 
क रा्य' कय उस राष्ट्रवादी भारणा ध परिक्छिि करावा जिसका दंलिस्वाण मे 
कोलरिज भोर बाप मातष्ठ मे बडे प्रमादकारौ देव धि परजा ङ्भिवाभा। 

भमिष्म पं तेने लल्दन के रेरभ्ड भी मोरिस हीये भ्रौर प्यव 
रेषहेनवुगं मौर म्हष्टस्ती" के प्रपि पमार प्रपि कया ट, कितु सके लोतो 
के एस स्पष्ट ब्भ्य के बिलाभी रषा श्वौ हपै्नादी प्रहृत स्यष्ट होती 1 
रना का प्रारम्म चछ प्रकार दो ह-- 

""दष्टीप हानूनो पौर परस्यामो मं स्वयं षट का सारङ्म परपनी एपलम्मि 
कतौ द्मोर पसरो षठा है। रष इष परकणर एयनीदिक षान शी एष जस्तु वत 
जाता है। 

व ष्ये हए ऋश्पता को यिप एष्टा पोर निरण््वा निद्िहैनो 
चग्नौरि-ज षो पतं ह एववीणिकि भनुभवादौ पोर एजनीरिक स्पिषाद 


र्‌ भरमरीकी दसन का इषित 


सोर षस प्रकार बम-खंनठनो को 'पाप्यारिमण़ा परर उतरे कमिद पहापिष्ठार से 
भेथित किष्रा | षस्त शतत घामाभिक लक्यके निए कार्यक्रमे बरतो 
वर्म-छंपदनो षये मी दामि कर निपा। न्न प्पष्राकृध प्रर मौ महत्तणा 
क्पोकि इषे प्रत्पपिक घाल्लौय प्रोत होने बालो व्यवस्पा को एक सामास्य 
सामाजिक पर्ण परान स्वि । बहुगेरे एश्नोपपरादमभादर्यो केतिए हीगेष् 
कद्यनका पहस्य एक प्रास्मा अन गमा परर ्मने उष्ट्‌ भरपिक निष्यका 
पैसा होत प्रदात किया नो पर्म-पंपतत तहोरेषम़े बे | राजनोति ऋ षाङ्मीव 
भीर रष्टरोपदोतोहीषेषोर्मे शमेक-रागनेतापरो श्र एर पो पायौ । 

षप परादर्धंवाव तै प्िप्ठाके एक दीन प्रर एक सामाग्िकि गोिषाञ्जषो 
ओ भरम दिया, जिसका प्रमरीकय संकृति पर व्यम्किक्री प्रमाब पदा पौर म्नि 
सोवा क्यो बिषार पौर कापं को एक्‌ ष्पापह पडति प्रन की । रीय 
स्वततताकहो पमी लागरिको की क्षमतापो कमी उपलम्मि के हारा पराप्त होने 
आशे एष मिषेधारमष स्य एष्य प्रतु करे ठे सार्वजनिक धिधा-ग्पबस्पा 
करो भरतिरिक् महभ मिना धौर उवह परत्पस् सम्बत्व स्कुस के बहर के दामानि 
तुमने त्वाप्पि हप्र । प्रारछमाद के एक हिक मे कठा-- 

मे हीमे के घामते शष शी दृहार कमे शीर बहवम्ौ 

षतु उनके श्यापश्च प्रमाबके कारर्णो को स्वीकार करना परेवा । जित 
निरपेश्वारको कुठेर लोग भ्म उष्य कनै दे भिद्‌ भूनिपाजनषः पाते § 
षका प्रः मधुष्य इरा प्रन शो एत्र कौ प्नुकति बनातैते प्रापये 
जत बोहा समन्य है । बि, उश मम्नन्व दानि प्रो परभराद्लीप्र प्रगति 
भूम स्विधिमो को मिमरे बाजे कुं मामदानसे है, जिस बिना बदरो 
धिदडधान्त प्रसम्मभमा प्रसन्बद हो बायेमा । प्रनुमग सपं हो घना निर्णापिक है। 
सक समम्‌ पष हैषेस भौ पुगपषर्तंक डोम है 

यद़ निर्वाप फि प्ननुमष स्वयं प्रपना निरस है प्रमएीकी बेन प्रौर 
समवीश लोऽ्ल्व दोनो के लिए एष पाबारध्रूुव सिदाप्व बन पया । एषकेषो 
ओतापोकैदो बरर्पयो से हरमे कुज पठा भतेपा ङि एदा स्ववस्मिठ प्रामिषिकि 
तबिकास कि प्रषार्हुप्रा 1 

मतं सहृश्यरी व्वचित्नो से मि्हृर बी हुं एक प्रापक दका ६, कृष 
चही ठह वभे ङी बाद शा धंमोठ भिन्न दिगु एम्धम्बित प्विपी धे 
लष जनता) कोषय बदरो धाबरपषमा तद्यंमत गहो मनेषाङडि 


१ भ्रा पएम० जेन्ती शणटेम्पररी पियालीयी देण्ड बौएस्म' ( पूया, 
१८१०५ पष्ट १८०) 


ण्ट पमरीश्यै दन का एतियय 


“'लोकतारििक परमाम बाट सचा के दिदाण्त का खष्डन भरता {, प्त 
कड़े जिए प्रामस्यक है कि उठकर स्पान पर स्वेण्डपा प्रवृत्ति प्रौर श्चि ष] रने | 
इहं केवल पिष्या हारा स्ट किवाधा कता है। दिवु एष़ प्रजिक पम्नीर 
श्याश्या पी ६ । शोत केवल एक प्रश्पर का घासन ही मही ६ । पा पुस्यः 
शम्बर जीत का टुत पम्प्ेयित प्रगुमबका एकरईेवहै। बरती परदे 
प्पफि्यो की संस्पामेषृदिनो किसी एक इजिर्मे एष प्रकार प्हमागी षि 
हर एष को प्रपना कर्प दूययो के काप ङे पल्दमंप्‌ कृएना हो मौर पपन कायं 
को प्रथं प्रौर विशा प्रधान कै के सिपु दषे फष्वष्ो प्यानर्मे रक्नाहो 
बमं जातिभोर र्टीयसे्श्चै ठन बापार्पोको दोढुले का कामं द जिम्टते 
भमूप्यों शने पपे कर्यकलाप के सम्पूणं पर्य फो समम्छौ घे रोका है । षम्पद- 
स्वर्लो की संशया पौर जिभिष्रता मर पहेष्ृदि खन खहौपर्मो षमी निधिष्णारमेषृदधि 
को न्यक्त कएती द जिनकी किसी ष्यक्ठि पर प्रतिश्या होती ६ । फमव्वरप पाह 
इग कामं में विमिता को प्रोष्छाहि कवी है 1 बो सस्मि उष पमम वष 
ददी रतो है चदतककापं शरो प्रेरणाप प्रारिक होती, गे षस्य पष 
धाती है| छिस मौ दये सपूषरमे पचम इवी रहंगी जो प्रपत पञ्चपागके हा 
बहूम॑पफ़ र्वो क्ो प्रपते ते बाहर रोगा । 

इथियो मं षहमाग कं सेतरका भिस्तार भौर पपिक मिच्वापूर्णं निगौ 
कषमवापरो की पुचछि भो छोकतन्न की भिेपता नि पष्डेह जिचार प्रौर चेतन 
प्रया शा फस बहौ ६; षके निपरीत ये बिधेयताएु निनिर्माण भौर श्यापार 
पात्रा निपकमण प्रौर पारस्परिक छम्प़् की पधि के जिकास ये तच हु, 
खो प्रहृतं कर्मा पर िञ्ञान कै प्रपिकार्‌ के फेप्मशप प्रा । किन एक प्रोर 
पथिक भैपच्श्रणं पौर दयो एर इचि मे पथि प्पापक पहमाग देषा 
हो भतेके जाए फिर उन्हुं क्मपम रता प्रौर सनद प्रठार कना पुजिषारिव 
भ्रमाम क्य जिपम है । स्मष्टठः देते छमा को जिषकं लिपु मलग-प्रलय बमो 
अट करजम जाना पातक होमा, मह देशना पडेगा ठि बौखिक पषषर षमी क 
स्मान भौर प्रासिं पो पर एप्चग्ब ह! । › 


घमानता भ्रोर समेक्य 
“पष्ट लोभ्तान्निक पायन पन्ठतः राष्ट को प्रष्ठकरहेणा प्रौर जब 


१ पाड देप देम पह्ङेदान; रेत षटोए्पन ह शी फएिसोनप्री 
» पोह ए्रेग्रन" { प्युपा, १९६१६), प्रष्ठ १०११ २। 


१५. पमषष बर्न को इतिहास 


बमो प्रपते पमिक बैकनानिक समानो की प्रपेला एम्होे घमरोदो घमा 
करोगे प्रपि महरा तक पकम । एते लेद्धक स्वम प्रपते शोषान्विक 
भिष्मा के दृष्टिकोण से ये पासोजनाप्‌ करते मे सल ईए, जिषे रने तम 
उ्ौ माज द्वार पसन्द किये मये जिस्म उन्हेनि प्रा्ञोचमा क्री दिनदु षके 
बे पामाम्प रद्हरख भी धे । दैसे लोकटन्तरवादौ दार्पनिक शजनीशिक प्र्पणल्न 
का चरित जिश्नु अवल दे सकते है, रसे वास्तजिक विजान छौ सम्बडता पोर 
पैरििस्व दे घकते & पीर लनखामारणं की पराकांशार्मो $ पाष प्सु प्रसं 
षहामुमूति स्वापिद कर षष्टो है निमे यह प्रबतक ब्रा ६) ` सप 
परक्मरक्ी रजन, कषिला के धमय सयैव ठहर सषापके का छाम देती है 
परौर प्रपर भरमरीकौ पृष्व ष्टौ महान्‌ पूषीमेरडी भावी भौरनगमी 
कमी कों भहा पंक, पा पमज-पमय पर होने बाली मण्डी कै कारणा घ्रामपिक 
प्र्तदणंत चम प्रवृत्ति जानती है, 0ो इमौ पारदो णाती है। 

हैमरी जामं को परोप्रेष दैष्य पामरी" कौ ससि को परत) एष तष्य धे समग्र 
जा क्ता कि उकका ्रण्म प्रत्पघतपा उलके प्रप्ते कर्ष्टो प्रौरप्रेशर्णो चे 
हप्र । ठेडधीके न पृ कैलिफोरभियामु एक षएेब्प॑रत पुष्क प्रोर संगाददाता 
केलम्‌ प्रकृति प्राया भ के एक प्रत्पकिक उष्पुकू प्रदर्धल कै बीच त्वयं प्रपनौ 
प्रैबी उन्हुं उलष्न मँ गती बी । षे पिमर्शिष्पा षे प्रयै ये प्रौर भैषाभिन 
प्ैकलिन दारा श्वाने दर्ता मिकम्पपिदा प्रौर पदृएठौ के एपाम इर 
बी मानवारीष्ै पती पौरप्तामी बनते का प्रयाखकर शेषै! पाम 
जगह वमे बसि लोगोंषौ तरं मेहनत कुष्ठे हुए बे कत्पनाए करै भगे भरर 
सपने देखते लौ । रक्ते भपनी बहन को भो पूथर्मेह्ीनो लिबा-- 

शसु कौ भमिप्य फ नबदुग को मुमेः किठिती जाहु, बवहरकों 
पपनी सर्बोठिम प्रौर भेष्ठतमं प्रषृचिपा श्य प्रषुमरणं करते को प्वतश्म होमा 
एन प्रविबन्पो प्रौर भरादष्पकताप्रो चे पुछ हाया बो हमारे समाव शौ बर्मान 
स्िति दए पर लाषवी है तत्र गरीब गरीब प्रोरद्केटेपेब्रोको मी प्रपनौ 
शार वर प्रद मन-प्च्छ्पो का स्प्यो करते का पवर मिवा पौरना 
प्रपन्ने षय के सर्वम प्रंपको षी बरस्पर्वे पूरो रणे के हिप मेहनत करते 
मँ लगाते को मदुर नही होया जो पशुकेस्परध शषौ दषो ई। 

शमे क्या प्राद्जयं कि मनुय को स्वां शौ पाका दौ कै पौद्वे 
सतक लिए तपमम दृष मौके को वेपार रो है अवकि प्व हर जगह 
मया रने इनो कौ पृदतम पौर पमिभ्वम पाक्लार्भो पोर समदम 





१ बही प्रष्ठ १६। 


शष्टेवाद प्रौ लोकदन्् + 53 


चेष्ट्ठम धियो के उपपोम मे मी । दिते देद शौ गात है छि इम सन्पुष्ट नही 
श सकते) भ्यादठा है ? शनः भागहा ई 7 शमौ-कमौ हमारे भपपिष पम्प 
जीयत के संर मध्वे मृङे पूरं प्रस्बिहो जाती है प्रौरयै षोक्छा हुक 
पण्छाहो मै पये पोर ्यावार की भक्कमवक्का, क्ोचठान पौर विम्ठर्मोरे 
विलय एर बा बाड़ प्रर दसी पहा शलपर,थोदुःते ष्ठनी पष्ठी 
पोर पीलौ दिषारदेदी है कोरषए्ास्यति शलोग सू जहाम रम वको एषम 
करर घमू जिनसे पूप त्रे मरौर प्रषयि ब मारं प्रपने घाषनणो कष प्रदान 
कर, रसो र्‌ एन्ुष्ट हकर टु \ तेरिम दुरणप्य कि उपह लिद्‌ मधम 
प्राबध्यहै। ` 

श्राहरिक' दहुष्य के दीय परीडोकेष्ट विराम से परेम श्रीर्‌ 
निकषा वहै ङा केषा सपाधौर धथम्मा हुमा, अभवे (प्पबारके 
हिते प) शूका पपे भोर बहु उन्होने एामाजिक्' विषमता शी पकाया 
दे; पीर श्र भरन को साष्-ठाच रे \ यह्‌ एपस्पा पुलह रषे पपी 
भमस्या षैसदोहीपी उम्हाने षे षर इरे के यपव सी गषव के विष्याप्त 
प्रोरबादकेभनुमगदोनोसेही रु मह पहीनना रिरेष्वगख्दार है पौर 
भोमनके पननिष्ोषम्टोषा कारणा अताने के पैरषसुवादो प्रवा 'णमे-निम्दकः 
ह । रषि तिरष्वर परमपि कं भिदाम्य- श्यी बात कौ । पपके पतिण्कि 
ण्‌ र्वरीय भ्याय यै एक द्राहविषष्यवस्पा मा ई्तिरेन्म के मदुर 
षामाञिक प्मवस्मा मे मिस्माषभा | धम्‌ प्रङृतिक प्रपिकारो के छाप महुष्य 
के “म्पत्ति का प्राहविके पथिका भो है एक पितर परषिक्पर्‌, भो पर 
प्राषारिव हैक एष्वर षदकाएमानश्पषेष्यान रवाह । दैवे समिभर्योके 
षर छो जामे वरम म्यवस्था का म्रदा इष्यन मानवेन | 

यहु विरमा, ईृप्थर ४ समागोक््त राम्य य हीवेमषावी पित्वा से चतकल 
जनिधा) राजषीय तभमाजनाश भौर घाम्ययाद दोगोंषठी भार्बके विषारर्मे 
पार्मभारो षएमुायो द पुरे एके । रे स्प के मिट भिी रप मे घमाजषाध् 
कम सफल प्रवोम परायूनिके माज महौ कर सक्ता । एषमाव स्प पद्किका, णो 


एम लिए कदी ती पशम परमाणि ह द-- एक एष पौर निर्वे बामिष 
जिदाप- परमावह भौर बहदिनिबन्तिकमहाती णतीह) > 





२ बर्ज रेनारट तीप शो छिलोरष्ो पक्र हेषत जां ( पद कतं 
एलन डोर; १६३१} एष्ठ ६०-१, 1 प्फ बाड लौ बहून के नान्‌ ११ 
तितभ्बर, १८६१ का एक वच उडत स्विनयाहैः 

२ तयी जानं, शोल दैषय बाद , पष्ट १२० ॥ 


१५२ परमरीदी बन प्र षविहाह 


निम सम्पति में जज के विवाय ॐ प्ाज-पाम उका यहं बिस्व पौ षा 
पूजी प्रोर ममे शा स्वमावत प्रननिषित पंपयं नहीं । 

पंजी पौर भम केवल एही दत्तु ॐ भिन्नस्प ह-मानमौ प्रपा 1 
पूगी भम धाया उल्यश्च होतो है ! भह बल्दु केवत मप्यु पर लमाया पया प्रप 
। प्रव जिन प्रिस्बिवि्मो पं पु प्रपिपोभिता बक कती है, उममे मेने 
को एक ्ामान्य स्वर पर राणे बाला पीर मगाण मे बहुद-कृष घमागेवा तामे 
शाला सिडाम्व वैत भौर ब्याज मे यड सम्दुबत स्थापित करने परए हयम एवै 
श्ममीकामष़रता §। स्पाज पीर बेतनकाएषटधामही बहृनाया बटना 
जरी & 1" 

ध्टना कुं उन्होने भे एप भि शी शेतिठिकत एकोतमी" प सीडा 
घा प्रौर षप शिद्धान्व' को मे ष्वायपूं प्राति न्यवस्याश् पभ मानते बै! 
प्रष्ठी प्रशा बै महभी मानकरचसे कि भम-निमाजन लामदापक होवा) बे 
ये “छमाशमते की कर्मो प्रोर शएशठिपो के मिपिष्टौकरणा करौ प्रिमा" कहते बे 
जो मनुप्यौ कय धामाजिक ठभटन नु एकि करतो है । 

धत सिदडान्ठों फ प्रावार प्र उष्म एक भ्रपति का निमम' निस्पित मपा 
जिषे श्र वाल्य उलमाए्न-ग्यमस्वा श एष हैषा इग पुम्रना जा जिपमे 
मनुष्यो षये प्रमसर मिते किमे मानबौ ऊर्व का पषिह्तम पंयधुषार करै 
मँ शमारवे प्रौर प्पूनतम प्रप किवत प्रस्ठित्व शनो हापम रवर" तै) 

॥मचुप्य अब परस्पर भ्रषिष निष्ट प्रते ह प्रर परस्पर सष्पोम द्रा 
सुषा प लमा था सकने बलौ मानिष पि मं वृदधिकप्ते व, तो ते प्रति 
श्यै धोर उपब हतं, दिन्शु भैते ही संय यान्न हवा ह, मा धम्बडता वै 
स्विति श्ये प्मानवा स्तन्न हवी ह, वैसे हौ प्रयति करे शचौ पह प्रषृतिभीस 
होती ३, स्क वातौ ह भौर परत्व दिघा श्ट बावीहै। २ 

य़ निङ्मए शि क नियम रखता नहीं दै, जिता युष्षप्रति श 
पाम । मई एष नैतिक, मिमम ह । इिहास-दर्घन के परि बार्जश्ाहष्टिणेर 
शोपेनहाःर क मान तिरस्कारक्मणा। एरिष्टस प्रमि तौ ह! पड प्रमति 
प्रौर हाप बर्टोकाएकष्महै। 





१ बही, पृष्ठ १८८ १९९ । 


२. बही, प्रष्ठ ५०५ ॥ 
¶ हौपेल भ्रौर स्येम्पर, रोतो कौ पेडा बर्ज क्य कषरा पोयेनहोर को 
प्रोर प्रपि धा, इतषौ चर्चा तिर्‌ पीपर छी पुष्क शष्ट ३१ १९११ 


बेश्िए। 


यष्ट्रगाद प्रोर शोकतः ,;. 


“प्रगर प्रयदि का छम श प्रङार्‌ हा हि उसे मनुप्यकी प्रक्तिमे 
पूषार होता प्रोर ष प्रकार परायै प्रगति होतो, चो बहे कमी-कमो पवरोपभधा 
जते दन्तु घामान्य निषम यष होता कि परमि निरम्दर होखी जाती । एक कदम 
भार परगमा षम रय्या प्रौर खम्यदा कम चिकार खश्वतर सम्पठा ये हठा! 
मं ढ्व धामाष्य नियम बल्कि सदेति निवम' ददे निपयोव है ) षरतीन 
सेत वृत भनुप्पो बस्कि मूत घापाम्यो श्यो मो कव्रहै । अनाय एके कि पषति 
भनुप्यो को भौर प्रिर प्रभयि के दोप मनये, हर सम्यतानो श्रपमै ठममर्मे 
छठनी धमर पौर प्रष्ठी षी जितनी हेनरी एस धमप, प्पे प्रापही 
केक धपौ। ^ 


प्रषः प्रपि शी छमस्या दैरििषिष समस्या व होकर, बैविष पोर भार्भिष 
समत्य बी ! क्म स्विदिरयो मं प्रपति के निमम- का उस्सैभण होता है ? 

जम का र्ठ बदा सीषा-पादापा। पाह्य चै भीड़ र्तन्रहोपती दै । 
भीड़ हेये ये फिरायै गदते ह । किरापो शे प्मामठा उनके लिए पर्नाजित भाष" 
उत्प कती है, गिनरे पाच मूत्यमाम्‌ समि दं एकापिकार ६ । प्रपर पू्जामी 
काङ्िपिपा रप्ेने लिपाथणै ठो समानता पूत स्थापित हो जयेषो पौर 
भ्रपिं फिर हय धकेमी । 

हमर जर्जके दु्माप्यतरे वै माये पपकम दात जिन्ुं भिष्मा 
गथा बा हि रनहवि परीदी क्म करप जोग हिफा है, रके निशाम घे क्वाह 
गी हए धरोर उनके निदान शा स्वाय कै बके दशाण करहरी पङदूर एन 
पमाजबाद दी पठायो का भिदबाम बहौ दिखा छके । फिर भी, दातरि षष्टि 
शे उने प्रता भूल सस्य प्रहक्र लिया। उन्होने प्रते देपवपिर्योमे प 
चेतना वधम्न कहि रषटरकेष्ल षर, देप पू-पन्पदि काभ परमित" 
पपौ ङ्य भा षा भापौर दह ङि प्रपर केवल मनुष्ये शयाना 
यं षय" दो प्रपते, षो प्रवरे दिदान्पः प्रवि प्रनाभन रक 
अपतम्डहो अर्पि! 

पाहि पर्ाभनो ढे ताकंजनिक निमन्टुङे द्रा पमरोभ्ीं पे परीदी 
कै भिगापद प्राया जपाने गौ क्मप हैते जायं मे ष्या, बही काम एष्व 
जैहामी रे रनयं यह माषना प्तत्रकणे पु दिवा ढि पौपोधिक पलाभन्‌ पौर 
श्राषिप्कारै का पथिक पमाणठापूणं भौर ग्यवस्थिय सपयोय करे किमी 
भषति योषा षश है 1 उण उपप्पाय पुव वैकषदे" (यमद) दे एः 
शछमाडषादौ 'एष्टवारौ परन्दोलन को अन्म सिपि, त्रिस्वैषेत केसमी भाणो 


२ हैनसी जां शोप देष दाष दृष्ठ ४८६1 


१५४ प्रमसैकी दसन श इतिप 


मप्यमवमों के बढ़े हस्ते की भृस्पता प्रौर-पच्यि। पर य्य भ्रमाव शप्ता ¢ 
परभिद्रंण गहे चहो मे श्रशामी कठो शी स्वापया हूर, जिसमे प्रे कुच प्रन नी 
है! एन स्सगो के कायंकापो के पारा सार्बजनिष स्थामिल्य शपे म क्षो बबा 
मिला प्रौर वामी के प्रम्तिम दघफ़ मे पयुकषिस्ट परान्दो्तम क प्रघारको 
प्रविरिक्छ गति मिक्ती। 

बेलामी के र्टूबाद शा शयनिक परमिनिम्यास भरषापारणा दै । पुवाजस्पा 
मे पण्डते एषु पुस्विका श्वी रेजत प्रोफ घोतिडेरिदी लिज्ली चिषे रनोनि 
उन विर्लो प्रचित प्रौर शोकप्रिज प्स बारा एक दार्णनिक ध्पगस्पाक 
श्प मेँ बिकपितर किया कि मनुप्य से प्रपकेनिक सौर पभिङश्िक पलां होती है । 
परहृन्नि पौर परमाव दोनां पलत पमिष्नि पौर भपकेिक ष्मो श्य ्तुषन 
् परीरमह घन्युत ष परमैक्यक्षासार है मौपिकभ्रोर पामानि्कप्राणीके स्प 
मँ मयुष्य एक परामिक इकाई का प्र॑म है ! पच्पि मह मिषार शोष्तान्विक राष्टुवाद 
का सामान्य पप भा दनु प्रपमे खाकी लोक्तेन्वादिरयो मे से पिका की पपेला 
बलामी षये प्रथिष्ठ पम्मीरवाये चेते बे। धव रनक मनम ए प्रषठाणारथ 
पररा प्रापी- म कषा षमाजीकरए कर सपा भवे पौर एष प्रकार बनता 
समेक्य को सम्पण कर पिया भायै । धम एक ष्टीय श्व॑ष्य' हो-- 

“रष्टवारी जिना निमित्ल माबरिरणो कठी छपेस निष्ट रेपो शाको 
क्वाण कयै समी लोगों के निबहि की समान भ्यवस्वा को तानरिकता काप 
भ्रण भौर एक प्रनिबा्बं एवं (अनपे) । बखरी भोर पैसी देषां प्रदान करता 
उमे के निकस्प के पाज नायरिकि एच परर लोके के कयाय एक एामात्य 
नियम के प्रत्त्गंत एषठ धामरिकि कर्तंम्यकेस्प म्‌ भवस्यक होमा दीक रसी 
ए भै पस्य प्रकारश्च करापातना निरू ठेवा बो देये सामाम्प-शस्माण 
केद्धिमे तापर पर साग्र बाती ई, भिसर्मे हर एक श्यप्ठमान भाग 
होता दै। ^ 

रष्टरीय सेवा के क्पमे भम के संगठन काशस्य प्रा कले के तिप्‌ देलामी 
प्रौर उलक रष्टर वादी कब पुस्पत उपययौ पेषापो कै रष्टरीयकरेणा पर निर्भर 
करणै भे । पारी बुरा बड़ुकेरुपमं प्रपिपोभिदा श्च प्ररो तरह श्रमातकर 
हेता भा । दस 'जिरादसी' मे षादौ मनुप्य-बापि सामि होती । बह महतपूणं 
है कि रष्टरीबकूरणा क वंशम मे समैक्य कमै दष््रवादी भारा मिङ्धि बहो 
भौ । धाज्दोलम का वैदिक प्राधार मानमतानादी प्रर बहुवेपीय पा । घमरौ मघुप्य 


१९ जाडं बतर्डिध हार घम्पादित “दी $दिग्न पतेयं एव तोश 
मे शद्रोरषरन दर दी पमोरिकन एजम्‌" (भ्यूपाकं १८८ ) प्रष्ट १४॥। 


१५६ प्रमरीी दन श्न एविहाघ् 


एक चेतन प्रपास पा, बैम्प यैष काठ प्रौरबेश्यटर श्ये राबनीति प्रौ 
एके पिदार्न्वो मे, बब प्रोबनौगिष कन्व पपे पिद्धर पर नहीं ष्ठी षौ षप 
घैवपं की स्वीहृति भविक भो । पडपोम के उपरे के पौषे पंपप॑श्यै कटु स्मृधियां 
बीं । यह प्रौदोमिक मोसेपन कितु रजनीविक पौद्ताका दर्षन बा। पमरीकौ 
मथ्यम-र्बीप समाजबाद ष्टौ इत परिस्वित्ियो के कारय धाबष्यक किम 
उषी म्याक्मा एक स्यानौम प्रान्रोलनषे स्पर्मे करं यूरोपीय भान्तोलनोषे 
प्रसारमात्रकेस्पर्मे नही । षसौ कारणा पहभी प्रावध्यषहै भि हम शष 
प्रादठस्मक भ्रौर पामिष् पूर्णो का मूष्यां क्म एष प्रष्रर करे चो मुरोपौव शोगा 
भे धरपरोढप्रतीतहोप्ष्ताहै। भरमरीष्ापें शय प्रक्र ष्म भमत तोगोके 
सिप्‌ प््यैम पा भ बैहानिश्ला-पूकं श्वे पराकवा । एषका स्प॒ देखी ध्यानपूर्वं 
निमिष पुराकया काथा जिद परेम धुडधवाषादिपो को पुरमा शी मिष्या 
माजिना से जमाना भा। 


श्य भमरीष् दत श इटि 


पनिना ह्ये दन करार्मो प्नौर बिजार्नो की प्रास्मा पा। परव हरमे पह देवता 
होमा कि द प्रहार भ्रमरीष़्ी घाम श्वी घामान्य संति घे दरपन के भीगिठ 
सम्बन्ब टूट मवे भोर बह धैकषिक पाट्यमो मे एक प्राजिपिष्ठ बिपप बन गया । 
श्राणहौ हमे यह भी देखना होया कि घमं प्रर बैतिक्वा नै पीरे-भौरे धपते गतिक 
आपन स्विस प्रकार धोद भौर दादानिर्णो की एम्दावली मे प्परमुट षन मषे। 

~ पार्रहप्रौर रक्षक सद्यो मौर प्तुरारता के धीष प्रन्र करता होमा । 
प्रगुषारता का रार्यनिकं होना पाषस्यक्‌ नही है प्रर सङषादषकाप्रयुशर हना 
प्रास्य वही § । एष दानिक माबकेश्पमे हर्द का कैतिक पमुबाए्ता 
सेको सीषा धम्बन्ण गही ६1 एसे कषघ पवना समित मिलता है रि पमषष 
उजि परकल्पनारमरू शोज ते हट कर भ्पगस्मित सिकणा परप्रा ममौ ¶। 
भटारहबो पदी मे प्रजमित पर्थक धनुषार दायनिककभोग शोज कलै बते 
( बरहि प्रविष्ट हो पा पैक )। डिल्तु उच्नीस्बीं सदौ में पिश के एषते 
वपा बत हप्र जो दंग के प्ाप्मापक्‌ कहलाते पे । बे पुष्यत पिक बे 
प्रौए्उनक्ोप्राषठाभो कि बे श्द्धिादौ ह हत्य को सिकाए्‌, प्रत्‌, सर्वपेष्ठ 
मेरे क पएहारा हैकर स्यन्त रजमाप्रो का उपयोग कषे पोर परिष 
एण्यावसिर्पो का निर्माण करके धह सिवान्व प्रपने छो को पिलत । पपौ 
प्रकार बर्म्॑ास्जिमो की प्रषिषौय परिकश्पनादमक्‌ या दानिक सचि शतम हो 
शयी प्रौरमे पनुबामिरमो को प्रसश करने प्मोर प्रतिमोगी बम॑घास्वियो कौ मिमूवृ 
करणे की हटि से प्रपनी प्यवस्माभ्राका परिव्क्यर कमै षहौ सम्पुष्ट षै) 
संधेपर्मे भमरेकौवर्पन का हमारा इठिद्यस पष हरमे ऋतेगों प्रौर पिसाल्मी 
कै काप मंसे जाता है । पैकिकू मिञान सम्बल प्रपनी प्रथि रथनाकेमारे 
म प्म॑यिष बेतैष्य १ जो कृष का मही सूङिषार का सामान्य पारणं पा-- 'पिष्ठण 
के एरेष्य पे रचित हमे के कारणा यश्च घ्य है कि सरम स्पष्ट प्रोर पूर्णतः 
पपरक हो । ^+ 


उबारवाविो मे सूव्वाद 


हमै म्द्-इमसेढ के बामिष्ट एशारमाद की देटोय जदं भोः विलि एतेरी 
जिय मे एका पर्युटन देला 1 पर्ब ह्मे देना है कि पड ठदारगाह षो 


१ कोपि€ दतैर्ट, दो एतेमेष्ूस परो मोरल सायन्त (बोस्ट्न १८४९), 
पृष्ठ *। 


ऋ्िवदिवा ॥\. } 


ष्पद ॒प्केटोनी भावमा पोर षएतन्मवाकी दर्शन धे भरेरिव बा, कि परष्मर 
-पीरे-पीरे एषठ एकता सङ जन भया जिसके दानिक मित रषये पमिष्पिक 
रहय हहे पपे पौरं शह ममरोक़ो नैतिक प्रों के तिप धविकापिष प्रप्राठमिक 
अत षपा) 
चैमिष ढे ठदारवाद नै मालव परति की परिमा घ प्रपनौ परद्णा ब्रह कष 
मी प्रर पुष्टिकर निशामिव उदस्य के वई के पिञपिटाये पिपर्पोष्य ठा 
धामतौर पर प्राहृतिक पमं का पर्त्पाय क्रिया धा । स्पूंपरैष्ड का एकाद 
आरम्‌ मै छमेपभम मानगोप प्रर मानवेवातारौ भा प्रौर उदम प्वान पश्ये 
प्रारम-संत्कर्‌ बोर घामाजिक प्रयति दर केष्िव पा! पसक मिपयीत एुकम्वबादी 
कीषादमे ठद्धि6 परमहस पर फोए्रिवा, दिम्ण-अआन पौर मम्ब घ्ररे-मोटे 
चमतार्णे का विरोप क्लिप उणश्षतर प्रामोषना के प्रि प्रधिक र्पाइनगी 
दिद्यवः प्रौर उदारा षौ शरीमत पर वककबुदधि का धपिकाविक भाम-पुष्टि मरा 
एपमोग किया । यहं एतमा पंद्र्स शे पया कि उत ददारबादि्ो की दाणंनिक 
सधिो मोर प्याबहारिष निष्ठा काक्यम्‌ महौ रख एका विष्टे लिए स्वतम्यषा 
क्म परेम रभनीचिष पिटामतमौ बाप्रौर्‌ पराससद्शापी भमोेग भी । परम 
भरपएवादिपों कोषो देने पर एकत्वारभे पपनी पपिकांख गोरधि स्पूतत 
घौर मेधिक पउदार्वाद मौ शा दिवा| कद पीय धक सषा प्रस्वित्म 
भिक्स दिमार्ोकेिपए्‌ एषूपमप मिक्स मेढनाणहा दिन्दुवै 
विमा रामवौर प्रर प्रपती भ्योति पाशमसमेकशोगते पे प्रौ प्रपनी पोको 
चिरस्कारको हृष्टि ति देष्टधे। 
गु्भिषारनो भभ दैसाद्ी पठन हैभा ! अहो पहवे उनके पिनही 

शरभरोषटी विरोह प्रोर जैषरघनभादौ म्व रे प्रुश भष्धधो गे होती षी, बहे 
कषत चेदा धर्माषादिरो का एर पोरा भृ षह पदे । भक पस शै मन्ति 
कित्ति स्याह पट पमा धोर्‌ भैद्धोदिनवाद पहत्वपूरो प्रस महौ रहा ही पृष्ध- 
जिषारदो भैवेनका पतुमरणा यवे हुए धपना ध्यान पुस्यः पादयो की 
टरा पीर दिष्य पाटो क विपधेष कट पर केद्ित स्वा । क्‌ एयरो दष 
{१८१० भे बाद तदः) परेस्जिदीरिपन लायो शरा राजनीतिष् एषि प्रास क्रमे के 
अगात प्रोर शटा स्मेषाधिो (बैत जेनिदिया मार) दा हामान्पव 
यदहो पर द्मे इमर्तोश्नो हेष एर भगम्ठ मंपपं भमा रहा! न 
अपो पृ्णयिषारश्यो कों गयो दानि पेणा नही मिघी। दैवनरगौनेण 
पूत हर्वादी चे भौर तैवृएत प्रण्ददत पूषपूकं षेष्रये दोनोष्ी पणार 
परमाणो के प्र परपिष्यपिरू ठंामु धमे भोर जिरिरपा-पाय ढे प्यत्र 
पण्डरहित भः परीनिग् गद शो प्रो मुद्रया । प्रपा पे प्पनी भाप्ण श्रकर्मो 


१६५ परमर्म दन श्रा हरिद्र 


कै छमय श्यं प्ट नै बेन्भेम फे पिर प्राप्रभारक्एतेकषी चेष्टक । 
पोप श्वाठनसत नै एप पौर इईगलिस्ठान ढे सवेनाद ॐ एक मिच्णा ष्टा 
प्रार्‌ क्रिया! इन पोय्य भेठामो क बाजनृद को मदलपूरं जिकास मही पा 
कोर पेषी जीय मही हरं चिकी पुलला इयलिस्दान मं धदारषाद के एष्व ठे 
षी जाप । ८४ के जाद भाकर अर्म पृषट-बिभारद मये मिजार-जञोत पौर 
रदस्य तेकर दी धश्पार्मे पणि ) दूसरी मोर ममर म मजदूर धानयोरगनैे 
कमी मी प्रसोष्वरजाद से प्रभिक षाया नही ली । प्बुयताकाल के हरगनागाष 
शमे मपास को परब मी लेकर बसने बसे एग्रवाबारियो के पटे ष्क 
हर्यते श्रौर स्येन्पर श रथनाए्‌ घामने पाने ङे बाद ही कुभर प्रेरणा मिमी । 


षठ दचर-कसीन दद्नाषार का एक बिष्िष्ट उराहरण कदु के भो 
शुकानन (१७८५ श्र) का दंग भा 1 मे देजामिन एके पिप्प बै पौर 
रछा बेफरपनषादी बे । एक पकार पौर दकषेसखषपमे वैक ननापी 
लोयेत पोर प्रचारणादी परमश्च धरी षट एष्या के निद्ड र्दपि यप 
क्या पचपि एए्मे उनकी हार निर्वि बी । उनकी पूर्य छरितोऽपये पफ 
दसूमस रैेभर्‌' (मामज-स्वमाग का दसत २८२१९) वकेनाबादी (प्रगर पतिक 
भादी लह घो) मनोभिद्धान के प पु एकः पुमङिठि च है, भो पुश्पत- स्कलेष्य 
मं एष मम प्रचलित चिरि मनोनिल पर प्ापारिठ ¶ै पीर र्मे म 
हस्ये पोमख हासन सौर एरास्मस डाभिन के भिचारो का घपाबेख है । बे मव 
क्षो मगुप्य के भौतिक टल का पोर एलस्वकषप मनुप्यक्षौ (रके प्रम्य मे, 
'उ्तेथलारमकठा का प्रमिष् प्रप मानते है । शक्न के बिभारषठे िसाप्रोर 
धाव पकृ धै ममूप्य कयै स्वामागिक “उेजता क एकटा हत्रिम रीयिष्ठ 
प्रसाखि होवी ह परर “माबनाप्‌ कायो से प्म्बड हौ बापीहे। ष्ठि दद्रा 
आवनापो के नियत््रण मे प्रपनी इचि फ फलसभ प्म बदनु पपैको 
पि्ठा-पुषार मे लाभा । दनकति दैस्टात्लोजी षो निधिम को परापे निक्त 
किना, पौर एमं पाणा बी कि मक स्ववसा लमपप मतषाही री चे प्रतिमा 
इरन कर केपी । 

स्पा स्वाम मे माना श्यं का एकमात्र सोद है--पक्मान एचि भो 
सपू मनुय रो मरि बनासी & प्रर गदे संज ठक उकी योगयामों का 
स्तर भिर्बारिठ क्ती ह । स्वम परिमा के धिप बौद्धिक भवनाकौ प्रिप्रौर 
स्मायितव धे भविक प्रागस्यक पोर दु सदौ । स्वं घमसका निष्कामे ष्‌ 
प्र्षे श्रपलता इष पर निर्भर टै मि भह धपे धिर्प्यो शे भाजनामोषर 
दि्दिता निर्मासालके परमाव पौर हाङ्नकि निन्दा स्वा्धिव कर पाठा! 


स्मिभारिदा १६१ 


स्वधाव पृ उत्पू लयन कौ प्रतिप्य कषे बदु श्षमठा पोम्यदा भौर प्रिमा 
हसन्न कर षकता ह । ? 

इसी परकर द्ुषामम मे प्पे भन्विमि गपो लोकप्रिया कला" (दौ 
भारं प्रो पपूत्र्टौ २८२०) का निख्पख किया जिसके इर उर्हुप्राणाभी 
किमे एगमीरिक तेठा सत्यश्च कर श्ये ए 

शक्मतम य पृष्ठि भीषम उद्रीरनो एवासी के परारि अपो के पार्क 
पौर वैन परतागर क साषशन एर प्रठिनिभि उदादरण ईै--उपक्ष 
परम्म ्ादंधनिक जीवन प्रौर चिकिस्ता पम्बल्वी डोज पे प्रा मोर प्रन्ठएक 
प्िर-म्यवस्मा मे, भो स्यमहयर मे प्रषफम हु न्तु षो संयोगवद् समोन्नतं 
$ एष बस्वनिक विन के निरयण पे सष्ठागक हर! 


मानसिक गास का दय 


पमपतन्‌ १५२० हक दर्प कोप्रादृतिरु प्र मेधिक, दोरा 
शिमामिह करै का जलम दा  हद्तास्त, हत्वपीर्मार पौर प्रहरक पपंपास्व 
पे भलंशय-लास्व पौर परालोधना, भागोर पर स्वठस भिप्यो के कपमे 
ष्ये धतेभे पोर इहु छावदह्यी कणी दमक प्पे रलानादा भा। 
पाकिक भणनं के पाद्मो मे छाय प्राष्चिक दानो (बै बे उ मप षे} 
भमा प्रप्ययन करेषे। 

किर १८२० के लपमन दसन केष्ठितिाकेप्रतिरिषट षत भिषार्मेषशौ 
एर भहत्वूणौ यन्वि हर कि रनभा । समेट्वैष्डदम र्न दपरेपने 
ध्रापा पौर रषे हैडी ठे पृते भरसणयी सदये के प्रयो को स्वाम्य कर धिवि । 
भोमप रको 'दष्टक्तुप्रत दैरद टेकि्मि पवस (वैसा ठन दो र्थना्ों 
को पाप्तौररप्छंतेर्ये कडा भषठा ना) पौर बुवास्दस्टैवाटे छो र्ना 
चएतेमष्यस पोहदी सिवही पो रौ ह्यूमन माण्ड ( भि गुरा 
हष्यतैकचुपरत पिमामषटै भहा बाला है) घोर दी देकिटव देष्ड मरण सारस 
ले दरपन को मानधिक पौर मदिर युं विबागित कणे षी नयो पदति 
प्रारप्वकी। 


शोक, बते पीर पमष पष्यपत को प्रम दैवे पाद्य = --- 





१ षरे पैकेट, २ फरो, १८१६। 


श्ट 


५९ भरमरीष्ठ श्खग श्य इतिहि 


जिया णया, भिचे मानिष पा गौरिक दर्थ पा मानष मत करा दिदवात श्ट 
7! पके पाज पदिक दन पा नैका के मिहनान ऋ पाद्यम भा। 
पतिक विजान क सौरिक विन्नातो मृ बेट मपा) पामि बर्ेषात (कर्‌ 
तै की रथनाठु) को प्रापवौर पर जिष्ुष घ्रोडू ध्वा भया पौर एकम स्मान 
गर्णपरमार्णोः वै ते लिमा) राजगीणिकप्रौर भराभिक्‌ भिदवान मा तो नैचिक 
त के पाक्य से सिस्कृ् पथय हो पये- पत श्वे रेतिक प्रर परिप" 
ष्मा नैठिकि दशन क सेर अनी --पा फिर व्पाषहारिक धीटिषाप्व या श्रयष्यो 
ेठान्तकस्म मे र्हं मनोगेडानिक गौतिणास्ज के घाप जोढृ पिमा ्पा। 
प काप्यान केभ्ित था श्यै मन-एछ्ि मलोषिक्ात या मातग सनी पथमो 
छिदठाच्च पर । प्रतः दुखा शमा भवि्योच्छि न शमो छि शौलिक ररेस्म ॐ 
र शनका स्म मानसिक श्णक्षक्षो गमा पौर भोदि ठा गयि उरे 
माम हो षे। 
भ्पि त्कोटलेश्डे के पन्थो है प्रमरीकी सिरु कदिषािता को प्रेरखा पोर 
मै प्रदान चपि किन्नु प्रमरौकीद््पोकी भीबाषमाभ्यी, भोषमी एकि 
तिचे लिखे पये भे। पह निचित भात ६ कि यड दैशिक पदति इर काप 
त संपृएय जौन्छन शमी पूर्त एद्मेष्टा पवाक" (व्यत कै कत्म 
५२) म भिसवी ह, जिके बौदिष (गत्एिका) भौर गैदष्ट (एकि) दे 
पये। दनभ तो उव प्रन्ब सफ हुमा त धरये के मिभायो काप्र्ार 
षै क्म उना प्रवा 1 
८१७ पौर १८५७ के धीव मानिक श्न प्र॒ लयमन पविवेपं एक 
रौश्ै प्रर्म भिष्लता रहा । इस एश्पादन श्र परिणिपि गोह पोर्टर श्वी पुस्तक 
लं इष्टतेष्ट' (१८६८) पौर नम्य यैक की चाषफतोगौ' (१८८६) म 
| द सेते प्रमृश मेदे मृ ( प्रासा मौह एकप सघ, पम्सिघच वमित, 
ष्ठ पौ रिक णि हैषेत हेनरी एल रे नो णेटर बन्ध वैक) 
गृ लष्रमप प्रकेले ये जिति स्कोरवेष्ड कौधाप क्य धवय पूरी वयं 
फ न्विपा। हर्दे बोन भपोदषस्फाटवैष्डते वपने एमभेक्य, 
बे परभिद्मनि परात्सरादौ नबोत्तामों शौ पारवतः कमै, दैठिदाण्ि 
यन ए प्रौर शपा प्रमारो के पवि घामान्व कयं मं पपना मोदने 
धर धत । इनसिस्ठान फ पदुमग्वाइ के प्रतिप्कि जमन पौर प्॑छोही 
भूतै भी स्वाय पं परर पानविक पक्के सिन्त मंबदौहप् व्क 
स्या बना निमा प्रौर जतित्रम दैमिर्त के तेष्ठनने चिप्र बहुठ पपिक 
परमित्रा रीडर सवाल के पूर्प्तो निषे श्रो पालोवना शो प्रोश्चाहित 
। प्रत जम्खङे पूवं चैत्रस्य री दारौ प्रष्डि कास्कान्वैयक्ीपारा 


कपिनिपिति १६३ 


पोर स्वाद की प्रहता के पन्तर्मतत भान शेना बढ़ी भूल होगो 1 पह शषदै 
ङिष्‌ प्रपमादो के पिरि शन ढे प्राप्याप भौर कहैगो क म्म्य पाषये 
हयी रे। द्ध पाप्य मेदेकीप्रे दरणतश्च प्वदसवे कप मे मष्यमन करते 
ट परषृूि बही, प्रक निकारो शा स्वायद होने दया पोर वृष, परमो वे 
भिश्च रणनाएं सिखी यमी बिम मोदि पर्प कना कठिन है । चैषिक 
श्पिषारिगो षट रैक भावाद के ठ निका द्ये भरणा भये भौमवीटै; 
मनोदिणान सौर नैतिक दयन मे करेम् पीर हिैह भौन वैरकम हैनसे एम 

है, दिप एष पोस्यै बेर एम त्मन्‌ प्रौर यान दुं के महत्वपूं 
ग्रन्थौ प एक प्रोर छो हे तैखिक्‌ व्यवस्य के ईस सम्ब प्रपा श्म फस मिता 
1 एहरे मोर एके शायय क पासोभनात्मक प्रान्दाहत प्रारम्म हमा भो न्ये 
प्रर रते दथ मै वीरिमी क्ेयो सौर जिष्वविच्रापयो मे प्रचिष्स्व हौ षपा। 


भैतिक धन श्प का उपमोग 


उत्तौतमीं तदी म तैकिक मैतिक-रपंन के मम-धस्ि-मतोजिद्धात पै प्रभावित 
हषे कापी देखा ही जिबरणा पिमा णा सषा है । एष पे पं प्रवम प्रमाबघातरी 
परमशठ प्श शरारत विष्वमि्ठाचय क पथ्यम प्यसिह वेदैष ण भिचे वे । 
यपि देदैष्य एक बेपतिप्मानादी सपेष्क यै पिन्तु उह भिद्िासाषकी मी 
कृत प्रसा मि्ो पी उन्होने दैष्योबर दैमिनरी (पिकषाचय) मे मापिज स्टुभरं बे 
श्िताष्एकशौषी पूमियन भिजि केष ष्टम भरर प्ामतौर पर उन्दने 
प्रपभे करो पौर प्रपते पर्णो को तम्पदाधमव भमदि कौ सीषापो पे पृक्त 
ल्षिपाका। पणे पौर बटलर कौ रचनाएं पते ह्‌ दनशा परसम्वोप बपुतरा पवा 
पौर प्त पृं उम्दोते एम बेबी द्ाए मात्य प्राहृहिक्‌ भपंएाश्न ढे पारे प्रवास 
कमह परित्पाप कर दिवा ) उकरोषै बटलर के प्रष्ठरमा के तदन्त को 
शौक्र कपा पोर उपे भष दैशानिक प्रावार प्रदान कणे शै चेष्टा कौ | 

वितैण्यके बार प्परोका पैव रपे सवयो प्रमृगप्राती तक 
एापद भितिगम्य इतिय कै माफ़ हापित दै । उनके तेषनकी ध्येध्रा उन्म 
नौधिद्‌ एमश्‌ प्रिर महतपूखे पा! सिर मै, वेषं मान मतत साबन्तः 
(मलिक विजान पर आपण) प्के प्रमद शोत पएतगोय्यट भे दिषै 
यै पाय्य योती हैषा दियैभ्येये दतु प्रषारित १८६२ 
ट एष उपपोयो पौर रिपिष्ट पनव बने । नीडिणारुः पं हप्र बा द््टमोरो 


१५४ ममरौच्े गम शी एमन 


मेष्दे दृष्टकोरा का एक रोद वैपरीत्य प्रषु कएवा दै । बोनौ प्व 
प्रे विषार्तेक्े निरोपी कम गदे पौर हपकिम्स मे शरनुमव दिया किप 
के स्यान पर जन यो क़ निपा करना प्रागस्यक ६, जिनमे विप्‌ मनूप्य 
श्य बटन" बेला है ! एष प्रकार मनुष्य के शसंबटत पमी पोर मुकर (महण 
पौर विषार एषति एकदं ममे के कपाल-मिद्यन घे लिमा हा) होप पथेत 
क्प मे माह "मानसिक श्यौ" का परित्पामे एक पपिक व्यापक पमिष्पापन फ़ 
प्रमे कर रैव) उन्होतै पमंपाञ्म दा नही बर्‌ चिष्रधाान्च की पा 
पायी षी, प्रौर मानसिक वि का सौति पच्या के घाप एक पपार 
म्बश्द स्यापिव किये जिना बे मनघकियो का पस्वित्व परिपाति करै शो 
हमार शेषी #। धव रन्ते एकं भियम निङ्पिष करिया जिते उन्होने "रिवीमा 
का मिम" हा भिषक प्नुखार पनुदूद पौर प्नुषूलित पियो क प्रपते 
ल्वमाषक्त घे हतै 8, पा पीमाए्‌ होतो है । शस पनुघार, प्रहि मे पुष 
केस्वरों श्प एष धपे कम होवा ६ । मनुष्य त्‌ प्रारुए्बे पति है कि उषे 
(त्कृ के प्रतिर) पषिदना प्रर घ्म दोनो होते 8 प्रठं एमे "विक 
क्पे प्मनुनिठ होने गम क्षमता होदी है, मधावत्‌ बह पष्योके ताड जयत 
कया प्रिव शो दकता &। माकं होपकिन्य शचियो हे बस्त्वाशयरा प्र 
पम्दरएमा भौर पूजा ठक) इस 'संबटल" को माभ एक प्राहृधिक प्यगस्याके स्म 
मँ ल्ह अत्कि एक प्राङृधिक् विकासङ्नि स्म मे पसु कते & पीर मदे पुन्बर 
कगे इप् छिदाष्व का सां प्रस्वु् करते ह जिते दाद म उदहूमामी विका 
कडा ममा। 

वरद पूजाकरते पं मदुप्य केव पपनी प्रोरमेद्ठी कयं श्री 
कदा । बह प्रहि की पोरषठे पुग है! बह प्रतिमं पष पणे षाद 
पौर केवल बद्धौ दूगनक्द) को पवना है! ईष्वर षौ दृष्टिकेखमी भगो 
भो पषोनान एय्ता &, बह मनूप्य केषा हौ शरिपूणं परभिम्यछि पा षण्वा 
ह | प्रादिषठास वै ह्वी बहु पूष्टि ईस्वरकी परिपूर्णा की प्रभि्मछि रह्म ई। 
पूजन की पमि का देखकर प्राय इम पायै कि मह पभिष्यषठि प्रारम्म मे 
पपेरवया दुभ षी, दनु हर नवे युग म प्रभिक पूरा पोर पपि प्यष्दे हेदी 
सथी ६ । समबच्छ प्रमति के चाष उन पर्नो भौर पत्तियां को परमिष्यच्िि 
जच्तर दिष्ठा की प्नोर प्रग होती भपौ ई, जिनके मको हिम प्पे सममे 
देते है दनु मनुष्य के पाते के पढे मष्ठापान शे परिष्क भैवेतभोर 
भ्यक्तनी दृ ची । पसे षएमेटना प्रौर स्वर प्रन करना भद्ुप्य का पंपा 
पौर यह कयं उसका पक उच्य पौर बिदिष्ट परमाण्किर है) षषे तिद्‌ 
इना हौ भागध्यक ह सि बह टीक्‌ परे कमे लगाप्‌, पेना एसे कयि भा जिन 


१६१ भयर दन को एतिद्ध 


यदपि मे मन^छ्ि-मनोमिद्वान को मान्ते भे, कितु परेन नुमबबारियो, 
भिधेपः मिम पयन्छर प्रोरकैत का उनसे मम्मीर भरप्यमत करके उनके 
पाजोशना टै । ्रामतौर पर उन्हेनि पपत प्न्य मे दैविष्यपिक प्रमिस्थापत 
प्रौर स्मष्टीकरण शे बदु सामी षा समाबेलं किमा । भ्रमय जयौवातरषी नधि 
उनमें वैशालिं तटस्वता प्रतीव होती थी पोर ठषपुज उनी पपनी परिकलित 
अहृत कम जी जो सके प्रणो को गोपि बभातौ । 


प्रमरोकी पथायवाद के कप तें स्काटसंण्ड को सापान्य ब्रुदि 


परमरीकम परबुठता मे एर्वाकिकि घषक प्के परम्प कामद स्कोटसैन भौ 
परनुदता की भी । इचेखग धे पुन तक हम पोर पाम प्मिबे पङ्ति 
शरनिक पाङ्त्प कम पेखा शमह पराया, मिते प्टलाष्टिक क दोनों प्रोर ो्नो 
को उनकी किवादी ता ए जावा 1 पमरीषामे षते स्कांट मौर प्रायरौ लोग 
एष श्लो ध प्राम भासो परवुडताकेप्रसि भिक्ठिष्ट क्प पे प्रहासं षै भनोकि 
आमिष प्रौर सामाजिक दोनों इष्वा ठे उख्दे हए होरे के कारण मे श्रपते 
देक्नाधिपो के श्मुडधि' पौर विषु भावता" पपे मर्ते सुक क प्रेष्या 
स्वदन्त शै । प याद रखता महत्वपूणं ६ छि [ अते माम्य पएस्निषेरा भार 
कष्मणाता टि, दसा प्रमाष मुस्ता एए कारणा जा फ पप्रतै वकवुरि प्रौ 
मैत घाता, शो्नो का भ्यवत्किति जिषेचन मागण शीषन के पूर उपादान के 
ष्ममभेप्रौर पदौष्धिक्‌ प्राश टथा भूतिके स्पालापल्त रपम किमा) पषिबरा 
श्राय घ्रामाभ्य बुद्धि पर मही, बर्‌ प्वेटोषाद पर पावाप्ि बी । बद भिषा 
भारम्य इर, जब भमरीडा धौर स्कोटसेय्ड दोनों मे ही दिक छता मत्मिरीरिमतं 
सोर्गो के ह्यपपे प्रा, तो दैवरडीय पोर प्िसौटन उषी प्रकार परम्परएषारके 
भम बल भये जसे एटिनबरा प्रौर हषंडं पमनिरपक्षदा पौर पालाचवा 
केकेरहेवे) 

प्ममरीका मं कमे शम गारुड स्टेषादं प्रौर बमस जरान प्बनी 
अदुदवा-पुपके हौ धे जबर ष्डामो फ मष रीड निषिषह स्म दै प्रति्टिपा 
को ष्यत कत्ते भे पडुसव दैक गोमद भूर जैसा परम भौचिषवादीडन 
समके एषो षोटिमं रक सकभाभा क्योकि एणनिबण मे चिकत्साणाद्म के 
कसि क्ष शने ममी भमंपाञ्ये पौर हत्-मोर्यापतक परल्वकारगरस्ठ प्रदी हा 
ञे इतन तकत थी कि पष्ठ ८एरीरथिङधानषे मयम पपी नदौ 


श्दिगादिषः १९७ 


धा । दु पेते शवानि पोर भिरितय-तिधेयफो को चोद्‌ र शो पोमख बरटरषम 
भोर भैमिमथैे श्वद्व स्देमा्दको शरवुद को बालाः पाया । पोमष 
दासन रोक दिद शो घोपारेडधाके प्रवि पिष्ट ये) वे बर्मपणिपोके 
निरोप का सुय केर वणे क्योकि परमघाम्नो एमम्पे वै कि समक र्छनाभाव"-- 
जै मे समीर बर्‌ एत पूरं प्तक पा एम्यरागादी मनागिसान निमित 
कणे ङेष्वारगङे पमारको कर्ण ये--मोष्ष्वादको परल वेमा \ षप 
हममे यार-बार कटा है, पैलिष्ठा पौर ब्यक घाप प्रह़तिष्‌ गिज कानिर्टे 
परम्बन्प प्रगुरुवा का ममं बा । ब्रासन पौर एरास्मस ङि की विदार-म्पवस्पाद्‌ 
एरी मनोजिसान प्रौर भीद-मिदान मे वजानिष कायक पराबार पीं द्धि 
नैतिक पौर श्यामक म म उनका कोई रपयोम भह वा । पह पाकर राते 
पक्चम-पप्तम के भवै । रीर, गौरी मौर एामान्यनुद्धि भी विषारपारा ते मैपिकि 
पोर दपिके निस्वबासक्ता क घाना पुनः स्यापिठ के, दपु धिक 
प्येकरील पैकनिको ननो रक्ते पेषे पूरक पयिः) एरय स्थी 
चापाप्य- दधि "कीक परमै एव प्रण शै यी कि बाद नै हमारे किन यं 
दानिक तङ्क प्रयोग बहु पथिक माताम एक पैक पमषक कपये 
स्वि! गन्हनि माएठाश्चे हि प्रद्र बे प्रबोगालक विशन के षण 
शपे क अमावद्धी काट क सये) 
प्रमा स्कोटी हापाम्यनुद्धि ष्म सष्ठित्य क्िवस एषक्ारण दीवा 
बीरदगति है किष एषीप है, शोक एडिनिर्ए दे षार भाप भी पालिरक्मर 
एाक्लीपयै। एसा बका प्रय षणा प्राडम्बर है । धामाप्यक्ुदि षो गिन 
का पाद्मो प्राबरस प्रदान कमा धुदिमचः गौ है पौर पुनी बेकार स्वपो 
को शामाम्पबुदिङकेश्पयेप्स्तूत करना भौर पौरे प्रकारका प्ाष्म्वर टै) 
वैको पैते उमाम्य-बुदि' बति प्रषर्फेके एठषदेश्ये पम्पीखायेहौ 
देना बहिर्‌ दिवे पवुदता क उतरापिषारैये पर टवा प्रगोगप्रमरोवाश्चै 
रपनिष स्वठसठाके सिप गोदिकभूगीके स्पर्मे कर पे । प रचाङ्त 
एष पक श्याजिप्छ्रा भा। फिन्तु बह, द्वैवादके पपम्‌, पदादेवादम एष 
कलम परिमाया दै 1 पादकाद प्रोर पतीपवरशाद, दोनो कीषहौ प्रमरोद्ये भिषार्‌ 
अपु दं पि षायी षो, दन्तु पिएा-मपवु मे घम्म प्रदेप नहो पा। ददै 
पोर स्परे बबार्दार्‌ को मूत प्रौर शयम्ददार्‌ प्यदप्या, पषा षे 
ककहानात्मष्‌ पराषप्यरप्रो श्रे पोर भरे एषम शा एड परादयं रपायशी। 
न्तर वस्वोरश टम ष्एतरू गीट! एष्व्‌ केवाद प्मृ-पेदषारौ 
अके पातत भोतै विसाठका गोर तर्पक पाणर बही प्यापा। 
पैक पौर एने प्रर्विरी ह्यन हापोवयो ग इनु शरदे एक दारतानिष 


२६ब ममरीक्ये वपन शम इतिहा 


परामार्‌ प्रदान का । इन शो ते बह गयी शंस्या मं काचिर्यो मौर पिसासर्यो 
कोस्वापनाषयौ थौ, जिमर्मृ शल पको स्थान गही बाप्रौर जितकेतिए 
खा दानिक प्रपाश्च निरर्थक भा । उनके तिप्‌ यै्कोयजैदे पिस णोस्दृ 
जमाल परमम प्रोर मौलिक सर्पो डी व्याश्या पुष ठकुमत ठत्वमोमौवा 
केस्पमेकेरछक्ठेपे पोर षठफेखाप गो मिते प्रति, यहातक कि 
बिकापगार ङे प्रति मी पष्वमुसूषठि ए स्ह बे प्रोर जो भस्दुभिप्ठवाद प्रौर 
तीस्वरवाद्‌ का पतामला नके प्रपते येषये जाकरषरने शी बेष्टा क्ये षे 
एक बरदान के समान दे प्रीर एक बहुत बड़ प्राबष्पक्दा को पूति कषे व । 
.श्रपर्‌ पह बात भर्मघमुदापबादियो प्रौर प्रेस्विटीरिमन लोयों 9 षिएधषमपी तो 
मैगोडिस्ट सोमो मे प्यच्ित्मवारिो $ पिए पौर मो प्रभिक पब पी! इनके 
भर्था्म बादरमे क्रये किट सालीप स्वादे भी इत श्वात है। प्रिसीटत 
भै वैवकोय मौर बोस्ग् मे शरारत $ पप्पापन शे ञावोर पर पह भिधैपताबी 
छिव सप्रे वार्घो का परम्पपएक्व इष्टिकोख ल भपनाकर स्पष्टभौर 
अमनिरपेश्र तक के दाया तशिविक सत्प" शची स्पाश्वा करते बे पौर भर्मबास्मीय 
पस को निष्कि स्प से मौर स्मान देते थै । उनका कदिवाप पूणंद दानिक 
खा। निपरेपत॒ः मषक मे गहु बुदिमला दिष्धाकि भमरीका प्राकर पपै 
प्रष्यापत मे रम्मे घामाम्य बुदिके स्वात्‌ प्र पवार्थबादको प्रौरश्मषमी 
भन्तपरजा' के स्वान पर प्रणम पोर मोविक्‌ सत्यो श्रो रद धिषा । 

यैष पमदीकम मे शस हद तक प्रसफस रहे कि पपे स्कोरी दनक 
दवाग्र सथा्जवाद की शीव दाने मे सषा शौ मिलती । रण्डमि स्कं भित्र 
प्रकार अ््षेगादश्य व्ास्या करते मे पपाषं के तार्तातिकभोपङेलिप्‌ 
मनोङगानिक वको का भौर स्व्सिद्व सत्प क निएटर्कषाल्न श्न घहापकिमा 
उम पता चवा है छि पैक के पहुवे ते ही स्कोरतैग्ड का पमावादौ पत्तः 
श्रललाबार ठे प्रे बस्तुनिष्ठ माजबादकामामं साङकररक्मना। स्पिवादषी 
श्वापता कण के बडाय हटवैण्य के इस मन-चाल्' (पूमेगोधोगौ) बे प्वमीसी 
जिषारगतन' को इटादर केष बर्मन मतोगिद्न भौर पणएत्सरषाद हा माब 


पर्स्त किया । 


पचा प्रष्याय 


परराद्रवादी धारा 


प्रबुद्ता की सन्तान 


जेपोलिपत क बाद, राजनीचिक पोर दिह प्रतिष्टिगा के सषि कय पनूमष 

अभरौषय की प्रेद पूतेप को धपिध हुमा \ भेरालिपनकाषीर धद्य के सम्‌ 
समरोकाषो भृती हु पछि पोर भूमेभवे रपे त केवत 'तातोष शप दुमः 
अद्यत्‌ सपा बति पह सामना पौ प्ररय श्ये ढि उसके पाद्म प्ररीमित विकषके 
भरन है \ भूरोपीप पचक के र्दे बने-पंगया प्रौर बह पर घणषी प्रौ 
म॑स्पामो के बद रते के विपरौत पमरीका के पौति रिक्ष का रोमानी बि 
शष्ट सिक्त बा । प्रवुददा के पिद्न्दो के विद्व बेम्बापदादौ प्रहिष्धिपा ष्य 
पौर भप्यमयर्फोद तमा पुद्धवादो स्पयोपितागाव ष्टी पथि प्षगुमव भी 
श्मरौष्यश्ेष्महो पा! पत प्ृदता ये हकुद्धि श दृगन पछि पौर धर्म 
निखेय मैरिषवाङे हिरा मे विष्यो केकर दिना डरी धापा 
भ्रह्मा के णं बरत्सन्शार में इपारिष्ट कर भिया पया । रोमाती भादषाद 
मै भना मष वनद र पेरानी दिद के कण्हो पर गी, रहौ मीव 
परद्र स््वा। केत मे एष्ट क गाद प्रपरोक्न शे स्विति प॑त, 
हषधिक्दन या प्ा्द्रिा षौ धरेषा स्कोदरैष् प्रर पपा के मपिरनिक्टपौ। 
एमहेन परो वकद दु लदृना वी पड्म, अरि काष्ट ढे जमृन प्रुयापि्ों 
भौर स्ोगवैष्ठ दे तुन्‌, मारव पोर एप शिन शो पादि मे पापरामी 
& प्रपुटहा के पिप्वार को रष्टय पोर बेदन्कर् दोनो स्ततेप्र ~ 
भौर प्रापिरे शिदान्दास्यदेरफे। 


१७० धमरीडो ददन का इतिहास 


शसाश्यो में भाष्मात्मिकपता 


श्वर ङे पणो पौर षम्यणधारमो षा तान मे कड घे प्राप्त हवा १} 
भ्ठ उच्चर हि हम रन स्वयं प्रपमी प्रापमाप्य घव प्राठ करते ह । दसवरटीव 
षण पद्मे इमारे प्रपते पल्शर विकट होते ह भौर शब हमारे भृजनर्ता मे 
पन्तरिव हते  । रई्विर का बिचार, रदा प्रौर मय उलसन्च कृषते बाला हमार 
प्रपती प्राप्पारिमक प्रहत का विभारटै, बो परिषि पोर जिस्तारङिद्राय 
प्रसीपश्म क्प नेताह । पवगदीपकठा छ ठव हमारे भरपने पवर § ! भव निर 
के पाष मनुष्य श्रौ मानवा क्रयल परलकरिक मही है। बहे जनक पौर एन्तात 
षर छमातवा है, घम्बन्क्ठि प्रहृवियो श्चै समामवा है । 


“मै जानवतां कि एन मोक सम्बन्बरे पह पाप्ठिश्ची नाप्भ्तीह 
कि हम ईम का बिचार द्वेष मपनी परामापोषही मदी बण्‌ सृष्टि, ईर 
षौ हिमो धै प्रा करते  । मै बाना हं किपूष्टि मे ईष्मर प्माप्त ६ । प्राकाष 
प्रर प्ण एसी मदविमा शष पोष्णा करते ¶ै। पंेपमेषछि हात प्रौर 
प्रल के बिह प्रौर माग पारी पूृष्टिमे प्य {| नैकिन किक तिश प्य 
87 भाष्य जस्‌ के हिए नही, सूकमवम प्रनुम्बेनिर्योके लिए पीणदी) षरद्‌ 
सुम्बग्वित मग सिए, भो भपतेद्ारा पृष्ठि प्पाश्याकएवाहै। केवत 
चरो भूमै उष र्वाके द्राण ही जिषे इम षिमिच्र पौर उर हए पाणो 
को दस्य धार्यो $ प्रुष धनति & पौर बहुएखिवं प्रयासो छो घमण्पत्ा पौर 
सखामात्प सन्धर्म प्रदा कषप है, हम एष पूजनात्मक बुधि को परमप परै है, 
जिने अहयि कपे प्यव्वा भाम्रपितापो मौर प्रमरण्ता को र॑प्मापिठ किया १ 1 
म वर को धपते चारो मोर देते § पवोकि षडु हमार भष्दर खटा ६ । ^ 

निब क प्रिद परमोपषेण के एय प्रं को बहुपा प्रमरीक्म मे परालमरषादौ 
भर्मयाल्न शी सहलो त्यय्ट भरमिम्यक्िके स्प मे सयट किमा शाता । बोपरेष 
ढक बिर्ष्टि सण्दमं धै प्र्तग करक देने पर पड बिमोढोर पाङूरके पपरडहु 





१ "बो व्यं प्र दिर्विपप ई ब्सिव' गै लाक्षे द षड पित्र 
रेट डी प्राणिन प्रं शो रेबरेष्ड एषण ए० प्यतं प्रादित, प्राए चा" 
१८९६ ( बोस्टन एश ), एष्ट २९१ २९४५ जपि प्ता इए सम्पारिति 
परमेरिकल स्लिघङ्िक देद तेषु १००० १९००० ( भ्पूपाकं १९४६), एषम 
१६९ ६८४ । 


श्फ्तप्णायौ भाण + 
वना चेता लक्ता है, सि चेजिप का मन हने दे श्ररणा, एते फक्त 
गर्विता ढे जिषदर सतकन प्रविष्टा श एक पोर वषदष्ण माकर 
तवना पो धश ग्ल कर लिया वया । भास्वय यृ मह उष मम्मीर परिम 
एक जिदिषा, भोम केवल पमेधालत्‌ मरन्‌ छम्य ध्न पषा 
जा, गिषड सलसग प्रवि क प्थ्ययन शा स्वान भस्मा का धप्यपते 18. | 
षा) मानिक पन भोर "वाभ्यातिमषट" भम॑ वै भणकिश्पतस्मक शोषं को एक 
तया प्रापाम प्रत किया } पम हो दे सेवर भिभार बन ते, जिन एष ने 
अमर क रदारभावे प्रोर पुषठि की सम्मामना प्यक हु} 
एष प्रद्मर शी एह प्रप्पास्यिकठा के प्रि सर्प्रयम सत्साह एकस्ववावियो 
ध महं पर्ससवं किया \ एर स्प्रहकेषपमे बे प्रपती त्संनपि के प्रम्बन्प 
य शुर पौर निष्ाघानिदीन बे । पड साई न परियो तै दिलाफाजो 
धपनै प्रालोकनारमक र्मा के वागन, रंपाप्यत के पएपपएरषव अदकं भौर 
शलते दी पष्ठ का प्मूमय कए भे जिन्न परितो के बीच पिभा 
शरममढमादो पुतजोपदा क ए्ामिर ष्टि द वेदा प्रौ लौ प्रपते विषा 
भय चाकि छमर्धने कणे ध पपन को पमे पारे भे | उमे लिए कोरर 
के पुस्दक "पद दु पिते भदे दम्य प्र प्रवी) 
पप्मप्पारियष' मगन धम्ब्चौ कोलिण का प्गूदोप ठन सोमो कै लिददैवीः 

छ्देप धने पवा मिहि दिष्य-इान कै शत्पौ प्रर दैवी प्रघारके पगवरछका 
शष्यनन्ा चा, स्तिरः भी चिद दषते लिए किी पएदीरे श्यी भाषप्यष्ा 
षो । पुलिन का ्पानजरछया को लेना वा, पोर 'दिद्धिठ ष्व क्र प्रनतः 

अवाद ) क्म कोरुरिमि के दिए पौर पने पनिकाए पाठको केतिप्‌ एर्षदटु 
पिससिकथमः भे एद उरेष्त को पूति पे ¦ रमक भन्न एक शतै प्ष्ार का पर्म 
शापोरवरमूदिके प्यदपयोगये बम्‌ निरये शुद्धि रौर सि्लान श्व पत्तर 
षष्ट कषे के चिर एदे पाप्कतििक शा भया) परेरा प्रन्ह्प्टिषाश्जागनि 
शि सवन शषौ पटति करो, कोतरिय वै, दैश्िगे का नुगा करणे हए्‌ एक प्रणयं 
पोर परभुम मागमो मन धि के क्य दे परिष्ठा 0 । बटन या प्रदयेनममष 
शममः छे षका प्रदर स्पष्ट कए ङे लिए्‌ प्ते शकवुविः शष्ठ पपा 1 दए 

श्रकार्‌ प्रप््विक पपं प्रौर्‌ श्युऽ कर्प" दोसे हौ श्माप्वादिमश ब्पं खाप 

शमम प्िष्रजा | पतय बिना प्रदिशा के पशि्रता पी पोट तिना प्के 
भाप्यारिमकयय कौ ) मारं दत कमस्य ऋ ममयोकते मासप्यश्वाप्ा कक प्रुष 

हने ईब स्वे पौर उनके पुस्तक भाने शरकष्णा ( ८१६) केश 


स्या दरिपपतपङ निप सोए बूसुस्वक टिणसिषां बोदर \ मायं प्राीन पन्यी.~ 
के भाष्या चे पोर यूना स्प॑न वादन्लाय केन्दिडिदे प्योरन न 


ध भपस्य शन भ्र पिष 


गज्छ नात गा । शोलिग क दानो पौर स्तो कय भाखामी धे परपयोव करे 
बनने भयतो कसा $ धमस स केव पर पराप्यादिमर बमे शो समरे पततु 
श, बन्‌ मागवादी मौतिष्ठो धीन्द-छ्न भौर वलमीमाया भी निसपेठ 
किये ! धन नभीनठा्मो मे पीरे-पीरे बप्ास गीतिषा, पौर पूर्ण के प्रष्णो 
समबन्भी उक मापो को धीरे-जीरे विषु भरम पिया, षे वे पालयन 
भौर शषठाटति यं एक स्वायी धुवार ता के पौर कोहरिजि के दन भो 
रम्हनि भरमाप्ट भि्वमिद्याभय शयी एक पैम परम्परा भना पपा । पाठ धै 
भक्ष प्यस्य ममा मिरमैवा श्ररिकयंद भुप्ो शौ इमि धीर 
भभ्यमन घे भहु दूर्ा पठा (पीर ष्य कयरत शिखया शौ पर्वा 
भभाजशाी निभि" महै कि “मनुष्य के धातरि स्मत. भौर तेष्ूडि 
पन्वयरमा मौर दणि शे रहस्यमय धूपो पौर सानो" धम्बन्दी विर 
को तैरिकता पौर पमं ऋ मप्यमत फे धाव भोद़ा जाम) षस प्रक्र पतक प्रोर्‌ 
भामि वरधन के पटकम्‌ मतोषिज्जान $ पङ्प्क भगनये। किन्तु पादे 
सभ ङे वद्र तथिप रक्री बी । भमा मोजिल्ला, धामि भतत शा एक चाकन 
भा पौर ठते पुरु सदे बमं्ाञ्च को अत्म विया । परिरिगो के लिए फोतरमि 
ओ "यन्तर, सदव का एक नवा पन्देद ताये । 

“पहु पवित करला भी एष रगा के सेदधक का एक मिष एदेष्य है कि 
श्राप्याल्मिक भोकन या जिते इम परपोदारमक ष्म षडे है, षड प्रप प्रापभे 
पौर प्रपनी वसुद शष मोर विका पलमक ग्रकिविप्रो भोरक्पोते 
मूलय मिष हि) मौर बह किपद्मपि कों सज्जा अमे परपिक्कपनाप्मक तक्के 
किसी दानिक सिदन्विकोङ्धण्डय शौ कट पा, सिरि मीपएण्प्रष सेबी 
वर्नं अणप्िदधे जित्य येता भौर पषती वेस्तनिक परति तेषा 
मदुतिप्ठ ब्त प्रौर णेडन्त्कि प्षवदर्टि भी दुव के परे कषेतादहैः 
शषा शरदं शिदाश्त था परिकरा गही है, बरत एक शौगन है ¡ चीव क 
द्धनं मद्धौ वटम्‌ एष बोकल पौर एक जीडन-तद्ल्पि । प्रदः ष्से शातकमएक 
पार्‌ षन छठना ऊजि महू ह, जिय जीढगे ऋ एक कम कदा 1/१ 

प्रपौयारम् चप पे प्रर्देठ) प्क दधनि प्राप कर किमाथाभो एष्षवततक्य 
स्यामे धके । 

हूजलास्मक प्रथिवा कै ङ्म त कीबन का इरन मद्रा वतर्य ॥ 1 





१ चैपुएल रेलर कोलर, दू दर रिवतेर्यनः भ, भम्त माप का 
चेनिभितरो पचे ( डियटम्‌, भरमाण्टः १८१९ } प्रष्ठ २६। 


फ भमदीषी दछन प इडा 


शा रम्पावन क्रिया पौर छाबारखवः धुददाबादी माबयाद को पुजर्जीमित कणी 
श्य प्रपा क्रिवा। 
भरम्मबत" रेबरेष्ड एेडरिक एच हैज श्ये गिनती यहं सखा परएत्रषादियों 
मेलही करनी शराषटिपि । मे कमः मेन राण्य मं बेमोर रोर पाषमैष् मं 
भोषिडेम् पौर पेंघाचमेदष मे दुकलिन के एवत्वादी मर्मसमृशयों पे पादरी 
णे । १८५७ पे १४ दक उम्डोमे हाबेहं मे पहये भम श तिहा, फर 
अर्म॑न माहित्प पद्मया । प्रपनी पल्य दानिक मरणा उम बमन स्वज्दरश्वाषारौ 
साहित्य का प्रष्ययतन प्रर प्रनुषाद करमर से प्रा हं । घनेति १८१० ठे श््एर 
धक जमनी म पप्ममन छपा पौर भमन दसंनके पम्बन्प प रम्ये 
जागक्तारी त्यु हमलेम्डवसिरपौ चं घाद वेते परिक भी । स्प्टठ। हैव 
पराल्रवायी भारा मेँ सम्मद्िव नौ बे, भोर पह स्बप्यपूां ै कि उन्म भाम 
भपत्परषादी शल्य ढे पाज एतत निकट से शका हमा णा। एये कपमौ-कषी हिय 
क्ट पौक्हाणता गा क्योकि हैके नरपे पत्रे पर एयष्ी वैटक 
हतौ नौ 
छिदि धी इनके प्मापवेपो पौर निकत्वां ते पुख्व पत्परादौ भिपयो शरौ 
अह्री प्रतिमिपि भमिवेजनापु ह । उनके भजार पिय फ पर्वाचिक भिकट वे । 
प्रति पौर बैदन-मास्मा षी एषा उमज्् प्रिव भिपय बा--"भिपाम शी स्विति 
मे प्रि ब्-बस्तु होदी ६, श्यंसील प्रहृखि भैतय-ध्ारमा होती है । प्राकृषिक 
इविष्ध प्रौर मानवी टिष्धास कवष प्रहति के पातम षैतना के भिकास के घोपान 
है) "वो दुष्ठ मी प्रदिक है, बह प्रपते भाद मौर रणया ‰ प्राप्याप 
६, नोदु्र मौ पराभ्यारिमङ् है, बह पपे प्ररोह पौर परस्ठित्व ये प्राकृपिक 
1 पौरपिक सब्दाबशी मे- 
भ्माप्वातिमिक बनने मँ मनुष्य एक नया ब्रष्णिक जग्म प्राठ करवा है, 
चिप्र प्रपदैकििषडृरस्वर के घाव चेतत घमायम मे प्रमेय कृष्वा जिसके 
हारा एवश्च प्राहमा भ्रशेठन शूप पं पोषि हुं १ 1 पडली प्रषस्वा पादम कौ, 
हरी षता कौ । शतु शोनो बही एक ही प्यक्छि है--जिकाषए की मि 
स्थिरि्यो मे बह मानवी प्रति । पतौ पाधिकं स्विति है एषी 
धाप्पारिमक' ) "^ 
१ रोनाष्ड देत चेक, शी फिरििवत बृम्तेणेण्टपिर्दूष नेम्य सा, 
देतव हरा हेनरी, ेरषकि हैनरी हेम" ( प्पूपाक, १९.४१ ) पष्ठ १०६ 
१०५ 1 हैव का उडप्ण शतौद्न एन रेलि्ः ( बोट, १८६५ }° प्रष्ठ २६ 
कहेल्तिपपवाहै। 


कररारषारौ षप ~ १७५. 

षय प्युद्मो विद्यत पं--प्येगह नाषदेता नुच न द्षा-तीन 
सोपान है शे निप इयय घ्ंगाति प्रहिः कर्वश्य ङे निपमं षार 
म॑थालित वैनिषटय पौर प्रेम क नियम द्राण पचाव प्रालमा } 

हि रे धुता यापा का चेष, जिदं बमं प्रमागी दोहा, प्याषष्णि 
शिष्टा दे दुक कयाय श्ये है पेन मोर्‌ कर्म्य एकर मेद 
मे! देवते मूरास एपमयं ररर वा १ तविरत पौष्यं, दो 
मेषे रुषार फ सादना न्मणषर न होर रजतारमषट हे । भिये चण्धने 
साना स्यात ववं, कपष कहा, गनहे प्रापारके स्परे उष्टेति घामा्िक 
पौर दोदर उदारषादर म पमे स्विदा । बे एदवमादके रन भेतार्भोर्पेते 
ज जिरि पषषाद पौर्नेसैता वे ददने करा प्रमास द्विपा 


एमन 


प्मरौ् दक्षि दमी कं प्रकिया पौ, विनद्य पएतए्वाद ने चिषे 
निशि । ए परेकद प्दुखछा दे वसन हूर सी, कृद उश परिषा षी । 
फू पत्तियां किमी भो परधर के मादकाद शै एामाष्प एष्‌ वी इष प्म्यपेरी 
भिषिप् परप्जिरिपां बी जिने प्रमरीदये विषयक भु िपिष्ट वूर्खोके 
मबम्यभा घड्ताहै। 

षूद इ अविष गिपम गै हर्दोष्व प्रतिष्टाङके प्राव प्राहविष 
विमत हुप्‌ पिकप्रदो हमने देशा ) पठेम प्रति के पष्पयग हा फेपानी 
भाप एमा हहा षा पोर बह प्रयोयपात्ता का कायं अमता यथा नकेवलं 
शमे गेपिष्टावागिदो शे स्थि षा हो गवौ षण्‌ महते षपो द्दात 
“प्रवि पर पनुप्व का हामरागम तिरतशु प्राण शी प्राह! परष्यरवारिरपो के 
पष प्ौरमारे में बिडागस् इष्यननही बा, दत्‌ यह पुति कि 
शठनपा दव॑श्म स्दाय जिने नहीले सस्ता, विहशमे तन्यता पर लोय 
परददत काड वै विरात कमे पेदे \ मनुप्य द्ये तजय हरतिकेद्वाए ष 
पोषम ष्यरपौर षरे हेते बाहो षौ; पययणाध्ा गे एक रश्वता 
पा दर्द प्यताक्रपपमिकाजो दु भौ वेतिष्ठभृष्य सन्य शरस्‌ 
वा उसे मनुर्‌ दप (रारोप' छया सनवु चिस्तुन प्रादिः जान बा 
रोपरलक अपति प चव क एद दिलाई 1 तदनृार एने गनुप्य भ पयति 
दी ष्याकया शरो्छने एक उष्वगर धोर्‌ प्रथि धर भत्रबप्ण बै मिषा ङे 


पमरीि द्म का इवि 


क शम्पाकम क्षिया भौर ्रामाररत शददागादौ भामा श पूनजीिव कर 
भरम प्रवास्य रिपः । 

म्यत रेगरेष्ड फेररिक पच्च है की गिनदी यहं ईषा पणएत्यरणारिनों 
मदी करली अध । बे ष्मण मेन म्य मे मेपोर रोड पापवैष्ठ यं 
भिरे भौर मेघाभृषेदूष मे कलिलं क एक्लनादी बरमृ-छवायो पे प्री 
पठे । १८९५ दे रेत हक उनेने हमर मे पदे भर्म प्र एठिदाप, फिर 
दमन पाह्य प्या । पपनो पुष्य दानिक प्रेरणा रनु न्मन स्मण्डन्दताबारौ 
छाहिस्य शा भम्ययन भ्रौर धमुवाद शनै दै प्रा हर । उनहोति १८१० घर १८२२ 
दक जम॑नी मे प्रम्ययन क्षिया भा पौर बमन र्दन एम्बेन्न यु पतकौ 
जानकारी प्य धयसैष्टगासिो म धापद सवदे पथि बी । स्पष्टतः हेम 
परपत्परणादी धाया मे घम्मििठ नौ बे प्रो पह ्पप्यपूर्छ॑ह किठनकामाम 
त्परवादी केव क एज एतत मिकेट ठे भहा हप्र वा । इते एमी-कणी शिम 
क्छ" पौकहा भाता था भयोकि रेके नगरप प्रमे भ्र शपषपे वैष 
हेती नी। 

फिर मी उनके मर्मोपदेषयौ पौर निगन्भो मे भुस्व परत्परकादी भिपयो के 
भहूतेरी प्रसिमिधि भिभेषनापे है । उने भिषाए पोद्धिग ए र्मापिक् निकट षे । 
श्रषहवि प्रर शैदन-प्रातमा की एकता देना भिय निपय धा 'बिपाम की सपति 
म प्ररि बद्-बस्तु होठौ दै कीस प्ररि भठन-धारमा हठी है { पआहरिक 
एतषा प्रोर मागषी तिहयस केकर पषति ऋ ध्रात्म तना मे विषास के सोपान 
$ 1 जो कृष भी प्रतिक, बह प्रपर प्ररोह पौर शरवाये पाध्मारिमष् 
६, जो फू मौ प्राप्यारिमङ है, मह प्रपते प्रोह परर पस्वित्व पे प्रफ़तिक 
१! पौण्णिष् एमवानरी मे 

“भमाप्यारिमण्ठ अने स, मनुप्य एषठ नपा प्राहृतिकि बन्म परा क्वा, 
जितष्रापर्यहैकि बाह स्विर $ पारम शतम मागम सृ प्रमे करता है भिक 
शण उसी प्रारमा येक ङ्प ये पोपिठं इ है । पहसी घगस्ा प्राम श ह, 
षसो ईहा शौ । छिन्त दोनो बही एक ही गकि हिका की भिन्न 
स्मितिपों पे ब मानवी प्रष्टि । प्ह्ी पापमिकं स्विगि दै एषरी 
भाप्वादिमिक' । ^ 


? रोनारड बे जेष्ठ, शरी किरिचयन दपिपेष्टिस्यू नम्य मात, 
कलेव प्राग हतर, रेढरिक हैनरी हेयः ( पूपा १६४१ ), प्रष्ठ १ ६ 
१०७ ¡ हेर शा उडेरख प्टौङ्न एन ॒रेमिननः ( बत्य, १८१५ ) प्रष्ठ १६ 
ने तिपा प्रवाद । 


१५६ पमरौक शंन क इरि 


स्मये की । शिरीषः पौर प्रकृति शे पयि फो लोग केष्ण ङ 
बिस्दे उन्म पुल पापचि यह पो कि उरे पष एषीनणा नौर प्राजा्नरिति 
की माक्ला निवि है, नोश्रमी मी मनुष्य क्षो उष॒ष्ठी भो स्वरा 
छपयोग कौ घोर शह से भा घरकती । परात्पए्यारौ स्वठस्ता मौर बिप्रतिषेपवादी 
पे। बै किलय धसे निपमों कोशी मान्तेबेषो उनके प्रपते निबम षह 
बत्कि, वै कन्हं देते संसारो कोपी नहौमाग्यैये बो प्यक्ति धराह्मापरों ह्यय 
धपषे लिप्‌, बाय पचो के उपर मपमी प्रयुता के प्रपती पमिम्पछिकेस्प 
मेँ निमित" ग कयि गये हो} प्पिने ईप्वर को भरमात्मा' के कपमें स्वीकार 
करते दे कन्दु उन्होने स्पष्ट फर रिपा कि शप्वर कों प्रपिपति मदी हैप्रौर 
एस माना ए प्रगु्ास्रन दे भुदी हुं पौर पसे ध्यक शएते बाप ६, जिय 
स्वदन्त दज्छा-प्ठिजां स्वयं प्रपमे म्बन पं ष्यक करती है । पा एष सिद्राम्त् 
को पतिक प्राबिषिकि श्प रेतो, ईष्वर इसी कारणा प्रणि रोपर हैष 
बहु मनूप्य षी पामामें निष्ठि टै। 
धिदा के प्रति परास्परबापिर्यो का षष्टिको भी प्रहत के प्रति उनके 

हष्टिकोणा के समात जा। बे प्पे को उषे उपर धमय बे । दश्नीखवीं एदौ 
ढे तीरे पौर चौथे र्कम स्यु इगसेष्ण पतिहासक्ो का प्रपा पहता समूह 
एतश कर छा भा-ैष्ठोपर रेष्कोद मोर पामन हिषे पौर शनये 
क्म महत्व के प्रस्य बहतर । पौधै करी पोर ती भवी ष्टि मंषिस पर पष 
नेष्ठो पावना को म्य करती भी । भोष्टन स्थापको क प्रवासो काण्वे 
लेकर कु देर छो पुस्ता रहा बा प्रर दो एषन्व्यो शी प्रति का पर्देस्सय कर्‌ 
णडठाया। शुटदाकाद पठीतभो बस्तु बन चृंकाभा पोर पयबहुन स्रा 
ष शता । प्राचौर्मता के प्रति प्रमरप्रेम नटी, हो एक माबनाप्यक्सा रिषन 
पद्मे शमी पौ । दारण ॐ लिए हगोनं पुडठाजाद पोर रस्करौ प््चरपमापे 
किसी योमानिवते ही निमा को-खा प्राक पातै धै! प्रतीव कके मप्र पोर पुरषो 
की गलियों की हैसौ ठलाद षवे परात्मरवारी (षप्कार की हृष्टि पे देवते बे । 
निप्सनदेह गे पतिष्यस पे ये भ्रौर जिला प्रा्ीन प्ौर दूरस्य श्त्ाए ही 
एतषा ही पज, मिध मे केवल प्रपनी कर्न छो भागृद करै मा पाप्यापिमक्‌ 
पाठ लिपु सामी प्राऽ करल लिए उपै हिया कहेषे' । उने पे कृष 
प्ार्पादी लुषार कमो भावाद ध्रषि देष्ेबे शुष पास्वतक्रो पोरप्रपने 
पर्व मे, क्ि्बु पठिहास्कार दी संचि के पाय पी द्मे भागे बहठ कम वे । 
प्मारष्द्षी एडी के सथिग म धलुजव बे सव धौ रर्ये पौर उषं सिष्वप 
धाङ्रिषेप्रव मौ पूजना कार्पकलाप के कका महै एतत स्यस्व 
स्मरो फ लिए एमय दी, एठमे पापाएलं कि षोमौ 


पणसपष्थदी भाप १०५४ 
बै ्ामाष्य बुधि पोर ैदारपन क दिष्दये। दे बेयच्िक्ठा कापर 
शषषोहदवषमीकुफेषे, किन रेषा मष्ठिहि हर ह म्य्छि भय प्रा 
क~ म्वा प्रोर श्छकति" के प्रसयुटन बे । उष्ट्‌ शोद्ठर षा दानिक कहा 
पमा हे मौर एक देते प्रमं मे एषा स्वहम्महातरेत परम्परा का व्िष्पकमर 
पौर स्थे प्रपते मापन का जिषप् जीदमके शोरुताग्विकं प्रान्पो के ताप 
मोढाबा स्म्याई। इन्दु दुसिदििक चष्ट सवे तोष्त्तभादिरयोकेनी 
रथरबादि्पो के पुय के दे \ हे प्रचिगिषि पतुप्य गरही ठे निप््य ही रागनी 
लोकताकषादी नहो वे । उका धावा भोर बोसथाह श्र वृष पिप प्रौर बमाषरी 
घा।भो स्ववाचा यै प्र्थर्ि कणे बेगहस्वत स्पूर्व नीधी, मिवेकपरीद्मी) 
भे दयि धौर अर्व बूत पथिषमिेषे ! वे रतम दा उपपोय साहिषयषः 
सरष्योकेतिएशसेषे सोर घनी सारम्बपपूर्णं मारके पीठ बटूमा विक्त 
प्रामाल्ब्‌ गिणार स्पषते धै, देदैप यश्विये जो जानदरम्ः कर पिषणेगिपा- 
कासीत प्रेय होमेषम प्रपापर्ग्तेये) गे इवते भपिक "प्य पदि 
पूप॑छय ष्टौ हर एषते पे ! जो दु संसृति सन्मे धी भह प्राप्येगनक्‌ कप 
नेबोहदेपौयश्रौरहरस्पानमे खवारशषो देषो । प्रादीने आमेन फरोशी 
पटाशवौ, कानपूिपखवादये मेरिके बौद, लनी दायो कवे प्पनाङेपये 
भोरबे (अब मापणन्‌ ष्ट हते) स्वये स्वगंष्ोमी सर्ववां प्नुबूद पि 
स्योकिपरारमाकेम्सिीधीप्रौर षएषीक््पोह्ादे माला स्वागत कपैडे) 
म प्रहस्णोलता सं वे निरय हौ पर्यरथादी दन $ पपमे अमेन प्रौ प्रप्रज 
प्रापि धर पावै पे सम्पद एस शरत्‌ दि एयनी पररय की परमाम्‌ 
शर्क ठँ बाष्पे पराया सापद्री परपजिष निर्मप्णना पात्या । गोमी 
हा अत्य विमि निरमाय) पोर परभिष्यच््िषो परपनाभेतेमृ एनम 
कणोम प्रो रनषौ मदानुमूति' वलकी न्विता भर प्रमाण (म ए मापनाय 
प्रमेये पिदा कादनर्क् ह्नमीहैा+ पनरे बावदूद पुग कोमे पराम 
र रिक पर* दप्येएरने एल भोर सकिर चपा है तव भ्पू-कपतेष्द 
कित पयगपशाषाद तै स देदह दरत्पष्मादी स्यददषाषार शो, बम 
सोमदेलो, पौर लगि पादि मादादोती जन्म प्या । गुटवागरो 
भगशवारार ध देत्‌ कए एङ्ौय मारदनादार कन्‌ सदः ! दाहुदिष्‌ भन्‌ 1, 
पस्त्या शम अल जपा । संचिते इत निरण्कएना भा एतमव हिया, अष 
प्रन्ने ष्ये दिदिष्टन हप््य दे लाव पष्य-बार रोदि न्दे 
आपो प्रो लप्ये सितै षो प्यद्धिपार गोन हषो पौर पडूशाहयो हारि 
ह प्रयये शुडताशादी वैस्वापपत्‌ शा भा तीठना ते प्नुमधकर्‌ {द लाघ्रान्यि 
षद्‌ 


१७८ प्रपरीशी दण का पविहाष 


निर्भरा के बिद मान क उरक धिरस्करार क्रे भे पौरश्ये वल बहौ ठकः 
नितं मागे बे भहु तक पह पाठक को प्रटिमिम्बि प्रशाणर्मे स्वं प्रपते 
देखना सिद्धामे । 
पछयापदं परलयरवापिर्यो शा जम्मीरथम भिेष संस्मार्परोके प्रति णा। पएंमठम 
मेंनिमरवाक्ी पा पौतिक च्छिद धात को स्वौडृपि निष्ठि षी परोरये देनो 
हौ लगना प्रारमा के जीवनके मिप्‌ भिजातौदनीं बे प्रबुड-काप कै ष्यस्व 
करौ कटमन्बी पएक्मप्ञप्र एड से मये । रकनि पिङ्गा कि एासम को पाग्दिक 
भ्रमे स्वापन होना बधि परौर किवी मी मनुष्य को पम्य किसी मनुष्य पर्‌ 
लाखन करते कौ शरष्टा लौ करनी जाहि । मिस्नतर पा “मौकठिक' स्वैरपर 
शमठ पौर संस्थापों को उचित वटराया जा सकठा जा जेभिमि गौरिक 
पस्विष्व शै समस्या प्रौर पादमा जिन्धनतेव ये चपता मही! का 
वाहिये । भौरिक भवन क्म घमस्या्मो को बास्ठभिक पस्तित्व कवी पाषस्यक 
ते केम मे स्वौक्रर कना जा्िपै, रने भाषार' षस्य पं नी 
शस्याय भी बभो का प्रौभित्प एवमे कमना कपोडि बेएाठनप्रौरष्ठाश्ये 
भारमाक़ेपेतमेते प्रेमे बहा स्वत्वा म राग्मदै! कमसे शमन्त 
शयसैष्डमे कलिवितगादधि वना पातर णा पोर एकतवे वकाम 
वहे ही कैर दिवा चा । पएसरमाक् पै प्रपनौ कुष सवदे तौ प्रालोधनापों कय 
अटब एुकत्वमारियों को बनाया जिन स्वव उन मिद्य दपा बा । पएकत्ववादिरयो 
भौर भवोङकेएीमाणषे गुहामोपा क़ एगनीति जै परारि क्षै धिप 
हास्य को एतना चृत बना दिया ङ उनले प्रपता पादरियत-विदेष ब्भ 
दिया भौर बुषा स्वये बमपीले ध सष्डरगे षावन श्वौ सतना श्ची। रनम 
त्ता का धिदधाच्त पौर प्यद्हर पमे चरम बिनु वष्पुंषा। 
वैष्ठ पुढे हौयेलवारौ दैएटन बेर स्नाषडर ने प्रमरीष्य प्वि्धप्रके षष 
ऋ निरुपा करते हुए बताया दि स्वतन्वा ढे हित म एमन भे पत्वने 
भृष्टा" शेक्धिनि उम्हेनि धपमा शस्य बा एुंदि्ष्ट स्वदत्ता स्वप एक घंस्वा 
अनक प्राप्त की । उलका पु कवग उनके दषटवाद दै पर, एक प्रत्त 
श्ागुममिकं पतव है पौर ध्य महयं द्वक परोरष्यान बीबठा दकि 
हिपतप॑पाश्नो पषति भिप्तारप्मौर दीर्षताप्रगालकी णाती 
ह 1" पचपि ष्ठ महत्वं ह कि स्ट स्ति को हाघ्राम्य छा एक सराण 
बताया किन्तु्‌ बत मोर मी भ्रमि मटत्वदृं ह रि रम्होनि षे शृरतावादौ 
प्रतीत के शाण घोङा प्नौररते उधार का एष जापी रने बाततातापल 
अनाय ।--(रेरिष पा० कारपेण्टरष्शौ पेपिन्य दु ड्िपित; ए रीण पर्न," 
न्दी स्पू-तुग्ेणा कमारो प्रह पहु ( १९४२ ); पष्ट ४८१६ । 


बएसग्मास धाप्र ९०९ 


पमरष दन के इटिहाद पं, स वस म्पि पमन के यन के 7 म्या करना 
धाबष्यक है, अम्कि परी वति पे एमर्वन के परस्मात्मष स्पषीमी। 
परादरयाद बहां ठक एक प्ाय्ति पान्दोरन भा भौर भवमी एष धामानि 
शकि है, धा तष वह्‌ सस्था-बिरोवी सस्या है। 
एमन कै पपे क्ते दाभ्विक पर् मे, पएातरादौ प्र्ल-नि्म॑रवा केदाए 
अकावा 1 १८१२ मे पपमे को एक्त्ववादी पादपे प्॒छकएने केवाद 
इहते पाया किस्वतरता कादोम्पौरमी पारीपा। घरीर्णौर मनद 
मार, उमे एूयेप श्ये बाता शय बारा हिमा ) यपि यु विद्याम उन 
धिर छाम्री बा प्रौर निस्सन्देहं मकषिस्वान फे परातरणादिर्यो से मिदर 
स्टोन गरोसाहन प्रर दीष पादी निन्द उल्‌ लवी पि पौर नपा लस्यद्न 
चष्यो धे शी मिला) पपे रन्हत्े भिरेणो्गे गितम एक छाती भवि 
शरामाजिक पौर बौदिष्धो्नौ धिनो पराटमनिषैरवाषी एला सोकर 
शराषु छ्िा \ फहुनि स्वरम प्रपते किप्‌ सोचना मोर कयं कर्मा दोषाप्रीर 
भस्ुपर मे स्वयं परमे म पाऽ न्ि) वपि पामतौरपर पनि शेर भये 
अणे नी पाए म्वि किन्तु जे चिर मदृत्षपूस तम्य यह बाक्रिरतपर्णोको 
करति भपना तिवाधौर दे सथमुष "उनके सपतेः पपं भम भथये। प्व षो 
कूौद्तिषिद्केस्यर्पे शैष, दे पह देवते के षिए ब्रह्मि पतिहप्र दषते 
पि, धनुमष प्रायिकमे पोरपूदेकषि एनमैवेहर एकश उनकेतिए्श्ा 
प्रथं शा! भवदेष्य पटदिरा साषाष्लीकष्णकसे मषम्म शहेययै ते 
फगफेपाहम केवत एक भाष्ठुनमातावी, भरन्‌ एष दर्यन पीपा। ङ्ह 
ववे धपा विस्व तिमित" रङिपापा पौपभदबे पमे सावी प्रपर 
शे ष््तभ्ये दे डि रक्ते दहर एकर्ष्पं परै विदद निर्यासि करे! द 
तष्य प्रे कि बहु स्वक्िनिषठ प्ति रतके विद रक नियौ शृ्छि बी एमएनडे 
कष्ठ प्रोरमापएस षक गोष्टः कुठ पवना प्क्ताहै। बे होर 
भरने पन्ते बोरे प्रतौ हेते वे षे देङजत क्रिसोप्दो हृग्वश्से 
ेत्णहयेपेहेते । इतष्डठि श्ट वड स्वामामिकृ पस्णिम दाङ रने 
सिप फेकमी स्प्दताया व्यस्य शौ पापो | हृद रष्ठि पासा ऊ षण्न 
दनद तफष्ोकी भो भोर ण्डा जयदोवते स्वर्यं पौर पण्य पपर गू 
कै ष्य्भ शपपरय दाएवितष परो शो हद परस्य पर्मोपरर्णो क तए 
्क्मेदे। 
पनरे विषतेदरेयै षो पौहिक रितैप्तापु एड पमो हन्या कषरम 
पवनश्च पथि बपंर पर्ण ६-1१ } उणेति ९एष्-निस्येय रपौ 
भौढठ सोरेयाहसर दादे एक्‌ बन्‌-डिरेप पदति पौर दश पम रन्वन्‌ 


दण भ्रयपैष्मे दनि का इतिप 


परिप! षा तिर्माणि विया जिससे उनके आर्यो मे एक प्रकार का वैक्म्बरी पुणा 
भागमा, (र) बे एकमवुप्यङेस्य पर (वरे ममुप्य शो सम्बोपितिकणोधै, पक 
भत्रमयश्वी प्रोप्से हूगरे पनुमम ठे पपौल कये पे! दस प्रक्पर नगे धी 
पौर पणे न्दे धोनां क्षा ही देसी बनला बे भिधिप्ट कप मे स्वागतं सिया भरो 
भरमपिकेरो पर परली धी प्रौर उने व चुकी गी । उम्होने पष्य जिजारणों शये 
भौ (चाहे इम पल्हुं बद्ान्‌ न भौ मातं) बहौ राह्म बिना परास्म्वस्कार 
पोर बैय््किता प्रदाय की, भो उणेति स्वयं प्रा धी । 

एमर्खन का मावबाब नप्येटोषापनुपापी षा नं बते का, एदपि दोग 
काही रं बोका-बहृतश्षान भा) उन बस्वुमो के एादचिकस्मों र्मे ्णिषी 
ले उरक प्रािक प्रस्ति्ब मं । उमश्मे इनि बस्दुपो मे (मनुष्य भवै) काग्यारमक 
भपमा को बागृच करनैको बोग्यता प नी णिते मे प्रौर एन घाषी 
परा्परएवावी मिक पा धात्मा कष्टो बे । 

“पह भारमा' दोहरे स्प व्यकठिनिष्ठ बी-पहंश्ान शी प्रेषा कल्यमा 
जी, चिदधान ती कमिता पी प्रौर भारम-प्रान एषक्म स्वीकृतं तस्य बा 1 गहु 
पर्वरश्न प्रौर पिमं कम पयोग पा पौर एषते एक प्रात्माभिमाम उतपश छिपा 
जो शमौ परहसिक होता, कमी कारणक । 

"काल स्वयं इमारे सिए शेवा है, हमार निए च्चा है) पह पेषी 
षुदौग है, अती श्यनि के पा कमौ भहौ शी 1 हमारे लिए प्व धो 
कहै, फमौ कितौ हिप नष्ी रहौ कोप त देकिगहकषस परौर 
प्रषसर दैदवरीष है । बहुणो सरि शौ प्रतिमा का प्रतिनिषितव करवा) बद 
भो मतीव भोरमयिप्यङ दौ इट महान्‌ दरारपर दाहकर प्रातोभमा 
भीतिषास्छ इविषहाख फे निबम रिक्ेदा एके पुम क वागबहुत पूलयहेपा न 
प्ममामा बसि उमे चिनती दकाल एप श्वी पुस्मो क घमाम स्वर पर होगी 
जिन हम भाज माम्पठाशेत ह । यै सभी मी पपच म्यक्तिरयो मृष प्रयासो 
देशा ह! भे उता पपप्याग करे निषठपर पते दर्पं पा।बे 
शिरस्कार श्र शमना रते ¢ पौर वरिरप्छव ष्यमा $ घाव णे है । बेर 
प्रपि प्ोम्य पपिक रिम्य पखारि प्रा्तष्ष्ठेहै। 

१ पवी भर्व पमो रात बास्डो एमर्तभ' ( बोस्टन्‌, १६०१-१८ )) चण्डे 
पौ पष्ठ २९१, १११ । पोरैते पही बात हष गिनी वरप रणा 

(देवर इणु लष स्व पेण्ड तन्व पफ यत्‌ 
प्कूम दी पलिभिनुष्प्मट दां नोट, 

५ इंट वार दियर मोर पंप पपोष, 
व्छाम दो रेमरद्नचित भरन्र डाईप्रोट 1 


परारी बारा दपर 


एमदेन मे भरपमे म परौर प्रप माम जे भुदि हे काम्य्सक भपोमके 
परयमका पनुबह भमा) विशन पोर नैतिष्दा सामाम्य ब्य्‌ भींप्रौर 
अबुद्ध शी परन्यरा मे, यम्‌ वद्ुदि के जीवनके दोषेन पमम्पर भदान) 
परष्यकता भी शछार-क्ान परन्दः प्रशारमक पर्दप्टिमो, शाग्यादमक परिग्यो 
प्नौर भविप्यद्व्या विषारै का बिष्ट करे) "सं्हवि, पर्ति शो 
पप्ण्म्छित एष्य को प्याह कर देती है प्रर फशस्सस्य मम भिये पहने 
वथा दतापा रदे मासमान्‌ ममाह प्रौर जिय स्वप्नहप्टि कहता षा रे 
सवाभ कहने तमा है 1, 

कषामाभ्य मं चामत्शारिककोदेशताङ्ञान का परभूक है) शतिको 

मरता मा पाप्षिक्वा पातमा प्राम है । चुट प्रालाके तिप्‌ बहव 
भे प्रौर प्राद्र ायौ है) इर भात्मा प्रपमे चिए षर बमातीदै प्रौर षर 
भुः परे ए एंपार, भोर संघार के परे एक स्वगं । प्रः भाम नीमि क ंषार 
का प्रठितव प्रप्के छियैहै; पृं इष्य-ष्टना प्ापकेजियेषै) प्रतः स्वयं 
प्रपता सृार नाद्ये । जिनी वेडोधे पाप प्रपमै जीभेन को प्रपमै मके 
रुक विथारके पनुक्प कनयम, उठा हौ रदे महाम्‌ प्रधुष्व म्प हमे । 
भात्या के सन्त्बाह के साव-वाब्‌ बस्तुपों मृ मौ वषनुकूस कन्ति भायेषी 1 
प्रति पर मचुप्य क धाभ्राम्प--देसा स्वामित्व भा पपी मधुप्य इर रष्व की 
कपना के मीषरे हि- यव वह रपी ठर जिना पाष्मय॑ ण्वि पाप्केपा, चैते 
यह परा भादमो मिसणौ सम्पूणं इष्ट बरौरे-जीरे वापस सोद प्राठी है) २ 

एमन कय प्राषमिक ककय यह मा कि दिमाय प्रकृति को प्रस्तित्वङेर्पये 
देक प्रारमाके पोगनङकेस्पमें रेषे धौर भावगदके पपन यही रनद 
परस्प हष भा । षति उत च्छि का प्नुतम ल्वा भो काण्पात्पक दर्पा 
पदान कर्षौ है, पु बर्दु को रथेष्ठा कके मन कौ एपम्पिपो क शवा 
कौ की एलुष्ा म गे (पोर रषके प्रपिकए मिष) धमय हर दष भरुक 
स्वापठ के की रष इणे तक चते वे, रिप्मे पषामाप्य पक्ति दिशा प । 

प्राहतिक एमफकी प्रतो घे प्राप्माको बृ कटौ षैः प्रयायर्मे, लाभम 





तिरे छर ङे प्रबूत पे रेता स्माह्य प्रर दीपं लीदनहै हिति कष्ट की 
णन शपते) ईए्वर मौ ध्रविह दुवा प्रीत हेषा है ।) 

प्कतेषेड पोएम्य ब पान दीदे पेट प्रती दनि ति । कर्त धोड हारा 
सल्ार्ति ( ्िरामो, १६८१ ), पृष्ट १०४॥ 

१ क्रु मावा स्ण्यो प्रष्ापते। 

२ भेषरः 1 


१८ प्रमरीषये शंन का एतिद 


हर भरवै्ञानिक्‌ बप्ु को भिना परे स्डानुधि देते के हत्काशीन केन जं 
पतरकारौ मी हिस्येशर ग्रोर बद्वा देै गामे बने; इवं वियेयता षँ प्रर 
भ्रामवौर परर मी एमनम्पू ईंगतेष्य कै परापवाद के मप्यममामं क 
प्रधिनिप्त्व कण्ठे है । पद्चपि रम्मे भपमे प्रपाण क पुषारणतरे भोर रहस्य 

मागि शो एंरवरा दिया प्रौरं उमये ष्ावुभूति रखी शेक्षिनि कै स्य एन 
दिशार्पो मं गही मरे । बिग पौर उताहो का पाोचनात्मक पात्म-पंस्कार 
के सिप्‌ घप्योम करते हुए, उनि प्रपते षये परसग रज्ञा । न केवस प्यष्ठिस्प 
म बल्कि स्पा केख्प ममी एमन रदार भाश्नोचकठ प्रीर रषनारमक 
भाक्वादो दोनो ही भे। उनये वां भिनोर भौर मम्भीरता फ घाप का्पारमक 
कल्पना प्रौर स्ववन्छ्ता का भिमण भा । सपे बोदिष्ट पोर सामाजिक बाताणरण 
पौर परम्परा फ घाप मैत्री पूं सम्बन्व रखने क एनौ पोष्वता ते रं षक 

भवाम्‌ धमकी मभ्यस्म बमाया । उनके भोवा पौर पाठक एषण दैदी ब को 
बैदनाप्य श्च तए स्वोकार कर देते भो प्न्व स्वरों या रण्वाष्ियों पे प्रमि पर 
भमेनिष्ड मा पा््फपूरौ कह कर प्रस्वीक्मर कर दौ बाती । 


पाध्यार्मिक्‌ साह्य 


न्प दपैष्ड ङ्के सविकंपि मातवीयतागादौ पुषार प्र्दि्तत प्राप्रे 
स्त्स्न हप धै पौर परालसरवाद के लाज उनका सम्क धप्रहब् हौ भा 1 वैनम्‌ 
हारमन, पार, गैरिखन~पमी शये प्पनी प्रेरखा सौर प्रारम्बिक प्रां 
व्मुद्धिङके प्म पिषेपे। महबाठ एक हृद तक्‌ पत्रैरिए्रषादौ उत्पाद पौर 
समाज के पुनर्बविन की भाररपबादो यौजनापोकै जिएणशी सथनी। रम्ब 
एव भैनिम रियजे शिस्येल पौर प्रन्प इख ने धपते सम्यत करे सिग 
दये भोर ते परा यि जिने पामाजिक पनुदन्प के पिटान्त प्ति हते 
बे, प्रौर जब उन्न परात्सरणारी शरपंन पीडा तो पपनी एामामिक पोजनापों 
क्ये पर्तरादी बार्तालापर के लिए धपिष प्रनुदूम बातावष्णा प्रस्व करैके 
प्रगघरोके ङ्म देषा । वपि बुक पमं पुश्य परात्सरादियों ऋ शमुाय बा, 
तु पाम्विप्रषं प पराल्लरषादी खमाय शी गा) फिरगी प्रादपमादौ 
हमाअवाड पर परात्परमाशौ सिढम् क्म महत्व पमाब पङ्का, भमौ ए 
हमुदययो का, जिनमे करता इद्त पुषारभोगनार्मो ढे स्मरं भव्ये शरत्ष्य 
छन्द श जमाना पौर मैव धुद्धि के सिए श्रोषयौ भी, परालरवारि्ो ते 


१९६ प्रमरीके र्न का एतिहाए 


प्राध्पारिमक जनत्‌ की सुजलारमण ८क्ति का उदाहरणा बतला पा 1 देस्कोट ष्च 
हचयुष भिश्वाप पा दि प्राधमा बस्तु के पदे प्रायो परर घा "उसचचि' प्रातमा 
की ह । प्वरमे मदरप्यकी मात्मा छा सृजनि प्रौर मनुष्य नै षठदेते 
बह सथिष्पिक पतति प्रौर पदु होता णया प्रस्छिन्व क्षी मिम्नवर पौर 
मोविष भरष्ट्वार्भो को जल्प विपा ! षप मे ल्कः शय मावा राहस्ववाद 
छार भ्रस्न हौ ममा 1 उनके रस्म-कषन (प्ारिड तेस) भिनकमै पैव्री प्रोर 
माभना प्रारम्म मं कोरि पैसी थी बादरं से बनपयेकिि भिशिष्ट 
सका सोय ही एम एषे । 

उष्य टी° हैरिष पोर षष्ट लुं के हीगेलवादियों ते मं प्रसत उतकं 
मरको से बचाया प्रीर उल बाप्म किव छि प्रपने पावबाद शो परिमापिव 
करे प्रर प्रपते रोमाणी ग्पिडाद का परित्याग करे । उन्हाने पूटमैग्दूष श 
प्रषफमता काकार भौ प्राचिक प्रौर रोजषौतिक एत्वा षमी सेका करते 
हुए, परिजार पर प्रपते प्रस्यजिक '्यच्िमारी पाप्रह को तामा । चेष्ट पके 
हीपेशषादियं क साप दैरहोर के परिथय के फलस्वल्म कान्कोरै मृ दर्वनक 
प्रीप्म स्कूल (१५७९-८) का त्म हुप्रा भा प्रतरीफी पाषवाद र एविहाप 
मे एक माल्यं कटाक क्पोकि रए हीकेलमादी पौर म्पूवतैण के 


परा्मरणापी एक जगह एकत हए । 


शाष्यास्िक एकमति 


हेनरी पोषे एक सपतिमव मे स्वमाबके विदो पे । उन्होने त केयप्र 
शदाबाी प्रन्ठराप्मा कौ परस्वीकार कष्या अरन्‌ पराप्परवारो परण्वरातमा को 
मी प्रस्वीक्यर किया मोर प्रातमव॑स्वार दे एष दिदन्त केङ्मयें ब्रस्यगाद 
(कनयम) को पमिम्पण्ि दी! भे प्ू-हंपरैष्य के नीत्य थे । ठनक्म सिनिस 
मा़रमानीः का सिदान्त क्ब माय के प्रि भिपेपः भपते छमामढे प्रति 
उनके पूर्णं लिरस्कार करा चेम प्रौर दानिक प्रीचिरय मात्र पा । एहि गिजी 
जिगरोह ही एढ़ प्रासोभनारमक्‌ स्पाबह्मरिष मोजवा छो सौ । देषा ण्डी वानि 
यन्द महति हे यथि प्यार का, गतिक ज्म एषा मनि वती परसा (पर्प 
कृष पके पर छवस्न समन) एकन्व प्रौर शक्तौ एवा मे प्रभिष्ठ एक होती भी । 
बे प्रवर प्रहविवादी धै तो भवस प्राकस्मिक क्म पै!वे एड कमि निन्द 
सुस्वास्मष मैतिष्टा कौ मावरपङ्टा कः प्रनुमम महीं होता मा । 

"मै ष्व प्यार्तो का पक पमृह ह, क्ये हए सोय ढे बन्न है पड एष, 


१८९ पमरीदी शन का इतिहास 


क्षे की भैना जिकपिति हु ¦ “यै उ मगम्त शर्ध रो पषा, पूता, स्वाप 
कवा, भुरा मोर प्रनुमन करता ह जिसे घाम हम स्म्बद ह ! प्राधिक एप 
गौय श्न प्रोर भमबदमीवा पद़नै भे फसस्वस्प भीर प्रापि ङ्प मे जयन 
मे धपनै जयने बारेमे निने शमी प्रादत के एलस्यक्प वै केवत एमाज 
षे निच्छरषिव पर पकस ष्यङ ही गही रहे। ३ एक पण शष श्नप्ये 
प्रर हले भन्ध जमन कि साव पपे कम पुजर क्तु छवधे प्रतिक भ्पापक 
समागम मं पिन्द पामा । प्रपर हम उगके जरन॑च (गपरी) # पपार ट 
फसा कर तामे ठे म्म कत भये यिध पूं मे “जन-निबन्पर सिसने भाला 
"बग्य-पति, कहा गारा है । 
्ौ परति में एक मिनित स्वतन्वा के पाव मादा-बाताह। श्यामे 
भरती क सावमोन भचाप सकर? श्यामे स्वयं धाक ङ्प में परतिमा 
ध्रौर भानस्पविक समज नदह? "^ 
प्रति म्‌ यड हम्मयता प्रङूवि की ध्मबस्वा की स्पिनोयत्वादी पूजा षहो 
भी भै प्रहति के प्रारि्मो पोर प्रधाय केनिरीरणाका मेममा भरन्‌ पष 
श्रीमन के प्नण्ठल्म के एष सावना जी, निघर्ये मनुष्य भाग नैता { । पोरे सौ 
प्रकार भनायाघ धपनैषो प्रति मे निप क क्ते भे वैपर द्धिरपैन 


भुक्सिन मे । 
कषमूव्र पर 


मप्प-कताश्वी के जिदरोषटमो ज सर्वाभिकि बिदोदी प्रकृति, वरमेन मेक्विते 
(१८१९-९६१) भौनोजिक पोर दानिक योनो ही इरया त म्दृपनेषङे 
परस्प रवादो के पीमान्व घषर ठे पामे भे । उकोनि प्पे प्राएम्मिक प्रर प्रतिम 
भ्‌ भूया भभर से विये बे हर्ठन तदौ कौ पारी घे प्रस्वाती वक परिचि 
चे, भौर कृष समम दृ परिभमो मधाचरपेद्ष भृ पपन हपि-मं मरे) घत 
रपौ प्रादु मे उन्हेने शपिस्वोल पौर गो्ी के स्वान पर" समुदको पपनामा। 
कथें पायु पोर भदक जीवन श्वि ष्दुदा भीबपत्र सन्य एक पकृकाभौ 
ठव का धनम कद सषा है) पडे पिताश् बृुके पते मैनेकमी 
चीभिषन केलिपुकाम करीश बठमद्ठो घोशी धी पौर गहं चागावा- 
भि दुनिया मे कठोरय मौ शदे ई ।-- पप्ने समयक परवही कैनेषुदे 


१ हलरी उेबिड नोप, "वाष्ेनः 1 


पएत्सएवाद्यी बारा ^ 


पपु ला प्रोबला तोदध लिमा पा \”१ ह्युदी जीद उनके 
स्वो भौर गोलो" शो धपे कार्यं ऋ स्वानापश्च पवि पा। उनको 
पेमानियत नी षी प्रश्ण मिष्यप्रठि कै पम से मागर, मन का एकान्त 
सरकाः चा | क्यु क पक कमरे "लङ का नरक/ का वणेन कस 
हए स्केने लिवा--“प्रानो दिशवे हुए पटर्लो पर लापती दिष्ठीठ हुं भङ़ना, 
पपने लादौ हानो तलाततौ परेद, युद शापम्‌ जिद्‌, इतरा गुज दो बनाली 
हमसे मोदौषैदी ष \ ^ हवाकपित सम्य मनुर्यो पोर सम्बन्धो मं विन 

धमताकेप्रमयकोे ष्म स्दनतही कर सकेपोरम कमी पपे प्यत्दारिक 
पद्नेषटियौ ४ भ्याबहारिश माणी षो ्वौष्यर र स्के) जिम सिराम्नो कवे 
छम लकते जे वे परात्परा निरपेकतार्‌ बी, धपे पप मे ज्म्य, नेक 
जिन को रपपोपिहा महौ षी ! एरक दाषृसिभ्या भो वे पनम पेषे 

श्रौर प्राह्तिकि परयो के शेख मे उनको मा मिता पा, कितु परिक्ष्पा 
पौर वैदिका रोनी दी प्रप्य षठार यनद प्रित कर्‌ देता पा} ' पच्चमि 
धपते बेरे इष्यमान्‌ प प चंदर कर लिप्ण पमरये दपा पीर दष्ट 

क्प्ल का निर्मखि भये हुमा)" > परत परल्मरणादी भावषाप 
शूलः प्ोसपोत होम ढे फरण, परेस्विते पर निष्पेषो क धंसार चाया हषो 
बा; जोनाढुौ पाति परष्य मन्ता दि दप्दर ते मापे, वेकि सोदरौ षिकि 
के कप्तान प्रहाब की पाछिबेष्दये दिप्यषडा ते उसका सामना करये) 
“भमि पमूप्य समरप सफ है पौर बृददः शमे नापयन्द श्वे है, एड 
कार्ल छि स्पे हूदप पर जे पूण चिर शीट पौरके सको क्का 

धवी को त केषत दिनान्‌ हेष्य मुक्ते ह, * चेत्तितिका मूल भाद्र 
इष्टिरेषषडभाकर प्रकी पोर रिमापु' कैषा गही, किलः कि भाष्यम्‌ 
द पषटुवा जयि उषी ककमा पो कि म्पि ममुप्य प्र हणर दोनो दने प्रपत 

लिये पौर एकनूएरेके पिष धनन्ठ रष्वे एर पौषे पए दुषार्विष्म मं 


ए रेत दोदर हरम पर्ति येरिमिर एणः (भि्रिषण (प्यूणह, 
१८२९) १५८७५ । 

२. एर पो भेडोदेन्‌, "धयेर्षिन रात, प्रं देय शस्मन इन 
से पम भ पमर्वन एेष्ड द्मे म उयुत, "शो दारटारस प्राक पेतः (लवन 
पोर ष्पुपाक, १२४२}, इष्ठ ४०१। 

१ रेभो बोदर ए पृप्यक, इष्ठ २६१ 


४ रेशारद षर धौ पुततक म उडत ददो दे भान दृ भभ ध, 
शष्ठ १११॥ 


५ समरौषम दन का रियर 


पष घाम पेठ करते है, मिमे बे गोगो प्रदुभग पौर शमं कर प्ष्छे 8 ¦ 
भनी बु हान्त" चैता धो देबमिक ने एठ विप को पपु ही कदा ६, 
भोभेयिगख ोबप्रौर भोना श्री खन्तिकार्पो कामिभ्रण है। पह श्टए्कि 
ह्वर कहीं उथयुष भयानकम हो क्ल शुर पुक-िपयो पायलषपन" महौ 
४ चै दि हात कर चणा परौर पागलपन मिभन पाठक को प्वीतर हवे है । 
प परसीम मे षदप दानिक प्रेष कै परिणामो श्रा निरर होकर परामणा 
केता) 

पराह्मरादी िदाण्ठो शय सम्य परपिमार्ो से मिमाभे छ श्य पो प्राप 
मेक्वते शरो ध्ेतानियस प्रतीत कोवा बा। एम जैसे मभार रे प्रति उषके 
मत मे केवले तिस्र णा। एन्हुति शा कि पराग भौर शार्पसिग्यापो' 
मेँ मिष्वास क्रमे बार कि “माने पृटि हये है । कु दे लोपों क प्रति उशन 
ममर्मे प्रग तिर्कार मही, तो गेषलं दमा भी भो दसङे मिपयोव 
परासरारिमो फी शूर्णरः उषसा के पे रौर बड़ी प्राष्ठानी ठे निपिमागी 
सैमसेगदष्ट्ने कोतैपारक्ोकते पै कि पापी भीवत करी तोटो-ती प्रषषि 
भाप काटदे। + बे ईसा मेप सुभ्धभको पूरी गम्मीरवाषेक्ेै भेक 
शपा भस्म केना एष सात्र स्पाप ह दतु सके मनुर “एष भ्म मे "मे" 
मामके तिदतो को घमम्भे छा भाषारद्ूव महत्व है भौर रकौ प्प 
पराह्मरबाशी प्न्तदप् वचय थह छमम्ममैये भी कि निरे भौर मपे 
अिमाण पुष-ृष्ठरे के पिए पणस्य है, किसी ए छा प्रपते-पाप म गही षमम्प 
मा प्ता । 

(हाद्य वैके, मे मनुप्य भातिको पए प्रदोषो केप्रतुार श्तं 
एक तेज असने बसे, कमी ग दवन भासे जहाव, भिषक सिहपो सिर भाण भर 
भिभित करत है । इत पुस्तक षी पर्तिमं पठं शे प्माश्या प्रत्या शव 
स््रीतिकेरपमे मीषौजासक्तीहै, निराया कीस्वीहृटिकेश्प मेजत्रौ। 

"म निष मिम फी प्य-मिवगप्तौ कपयो पर श्न गदे क्षम 

क्वि जारे ( क्पोडि प्रती दश जहाज पट हमने शरो मीष्धनदों 
भानता- त्वप कष्टाप परी गृहौ) निष्वयङी पारी गौ) हमार प्रोकेलरके 
वैशानिषे प्रगुमान मी भ्पम है। पोर ठ्वा मे रहने बे षदा-युदरेमी भामं 
प्रर बिश्वातं मत कतो तो तिरस्वपर अरी ह्वी छाव पुमये ष्टम किदमाय 
विर्व-जहान किसी पी पन्विम ग्दरबाह कौ भोर वाने बलाश्हीहै। श्रय 
ङ्ज भिषश-आाज हमारा मम्तिम सिषा स्वानष्ष्ये मारित श्च षष्ट 


१ हर्मेष नेम्विते क्लारेलः कण्डे दो, इष्ठ २५१ 


परम्परशाही बारा षष्ट 


बवक्रियोर के दण्डे ररम पती दार इसपर धमे प्र इसके जरसे हवत 
दमे धै--जिषदा याद कौ जिन्धयी मे पता नहीं भतवा--हर्मे ते हरएक 
तमु्येयहो षति? भवा इश्ये यहे मी पवा षहो चलता किवितबापुपें 
हमगदां षवशे, वमी भरनुषत गही है मौर केवम बीरे-भीरे पादतं षद 
वाने चे सहनीपभने भातीदहैपोरमह हिकं भेप्ट धान्य बम्दरदाहु प्रमी 
शष जिवती हुरो, हम घव ढे भाग्य मे पवष्वहिमा? 
प्रो दषटायके प्रानिरमो भौर संएरकसरािर्पों भारोप्मोः हम,गो मोग 
है, बहवेसे बुराए्या षएठे है! प्ये हम सीभे प्फ के बरे मे कपये परपोस 
करते ह। भ्यं ही-पपमे बिद्वे जह्य पर अर हृए--मनिर्वित नौपेना 
कमिषतये हे परपीषकरते है बोहमारी ष्टि परे षयनी दूर डमर है ! सिर 
भौ प्रपनो रगे बडी बुराप्या हेम स्वव प्रं हकर पन पर भाष्ते) 
हमि प्रफठर बाहं मधो जक्म शी कर सष | पन्तिम बुराषपोपेर 
प्यक्छि किषठी परेको बना उक्ता 1 स्तम हष्ष्यक्तिको स्वयं ही प्मपना 
उडधारक बनना होमा शेप लिप्हमबद्रोहनकरं हेमक्मीमीयहम 
र्तेकि 
"कहि थो हप भीर्तिकरे, शेरे दृषङेरे, 
“जोजन एक पाता है, बिका परत पर्‌ । + 
ऊनी तम्बौ कमिता सरल" इसी प्रभयर प्रस्पण्ट है । भह धमिन समि" 
पोर उषी बाता के गसोप्र एक रीकाहै। छा श्राह क्म 
यम्प्ठमके दिए रहा, बाप प्रषिषदपा मे दिन्ुर्ठाक्षी मापि बह 
मिस्य प्रहार के पीर्यपात्नियो प्रौर उनके पायर्पो मं एक तिमी इजि्रीतिवा 
है तीन पायो श्म दिशता भिसेपव बकरी षदयुमूधरि ष्ठि त्रिया मया है-गदारैते 
(वमयारष द्र पुष मिा्वी) भाष्य [एक एम्यासो)* भौर गर्छ, नो नोयो द 
प्रद शम पराय्वादी है! येकि के प्रप दिमागके घ्म पयु सूरभो ङ 
प्रविनिपि ै दीन पमरीषमी विभिखप्फारङे पाविनी, यूनानी, पूरौ पौर प्रर 
घादयो के घामधे प्रते है पभरोर धण्टठ लम्यता, विेपठ समरीषौ पम्पता दे 
शो पोरोपीय प्रालोषर्ो के सपदद शो ध्यानपूर्वं नुमे है ! एष पमपैषौ 


पगार) प्त्रे माप्यषार शौ म्पास्वाके काय पथरीङा धम्बण्यौ निभ्नदििह 
बटु विषारये मीनोहदेणदै- 





¶ हरम मेस्विते, "हाट भेट (वपाक, १८६०} वृण्ड ५९ १५६५ 
९, हवरो देग्लङ्ेप्रदुपारशाएन फे षस्पदहाकोषे य चिष्डहै। 


१९४ प्मरीकमी दन श्च इटिद्यत 
९, शोकतन्न 


(क परम्ङाहु पुग कौ प्रमुख षष्ा, 
शरौद्भौ गम्दी दुष्टवा षे रत्न, 
ण है णि उस पर प्रतिब्व कगे 
शौ तो विस्वके निशास पवन को षय कए देपौ- 
श्मध कम एथिमा जपै पेकेमा 
भरूकं शो भहु प्रानी निष्न्यता 1 
[| 
ङु नं बनिया मे चीं ज्दी करती ह 
^ केवत मनुप्प “यास्य एमी ति बह्वाह 
शवमेकान प्रयरे भौर छौप्मि ठेषी है शन्मश्वी 8 
उनीरे स्हनौरलो को भिनक्म निस्पेट मिरिष्द है--बइ पाएमा, 
बह भाएा। 
“एक बनोपठेजक ब्रहुठ परेषठान शर सक्ता 
श्वे बा क्वो कैवाशेगा? 
भौर प्रश्त बलिन्‌ माकिर्‌ 
श्वा जाने बभ्र पुकि 
“ उतम पमर्वन करणे को 1 कपा मापि 
कीक शपिएक्री शहरो कषयो शने 
“महापयव भिष्ठीन ? ६, देकनि बह पाया । 
“क्या प्रापैवा ? वम्र बो (का) एुट। 
॥ । 


“वादौ लापान्पवा श्म पृठस्वर 
एक पाप्व-सैवघन जीन शेषो 

श्वापद दुम्ह्यरे निष्ठाम्‌ सैवारमो पर जापि को चर्णिव करदे 
¬ शोष्वल् क पत्ये युमोमं। 

॥ 1 

श्मावा कौ प्रपपि शो हग्ते प्रवुपषेकरता 

पौर भरतम भिराघ्वे कनो नष्ट हतैः 

श्मौर पुक्ापना-सीमापों के देवता के मद्दिर मिरमि के | 


पयत्पग्बादरौ धारा 921 


करोलम्मपर तरै बरती को रोमानियह षम्ठ करद 

शप्रव मनुप्य जाहि ष्ठ लिए को मयी बुति तैप महीं 1" 

बे निपट पिद, कम धै कम मेति फ लिए पादारपं श्प 
सपद  प्रौर वने प्रप म्वा को पिति करतो प्रती होती है । दिप 
कमिता प्रल्ठ द्य सदर पर गर्ही होठा) वीनां प्रमदको, एनमाेपो का 
षः तो गह कर पठे दनु पयनी नियति में छामान्प स्पे भात्या ध्य 
के है मौर प्रपते मूरोपीम पाच्नोषष्मे हो वैडानिक" पात्या प्रौर प्रहठिबाी 
भिष्मतषादकाष्यनषएेहै) 


भाच्पात्मिक समाजवार मौर स्वत स्फलि 


भिणोदियौ मं शे हेवधै सम्य (पपि वेड ङे पिता) घर्षाचिरु घोगौ बि 
ष्यसि ये, नपु सवदे विद्रोह कम स्म एतया विरोषामाप्पूरं याकिएक्पोर 
चो रर्‌ "स्वव. पपू के निरवंक मुम्‌ स षष्ट्या लेता षर पौर एषठ 
भोर पुप्यति डे रेवत मे दरु एस्वभारो परस्पा क्न। पे ठत एपूषके 
श्दिष परुष गश मेषे वै चिन्द्ेने भखापारस रौरियो डे वैदिका 
के रिष चेप्यकी । दत परतरा बिेबादे वादि उन्नी विपिष्ट त्वत 
स्कति कोर भैपकिष पुश नदी मरो, भर्‌ एष प्राप्यारिमषट भरचाद पा, भिधर्पे 
कष) चुप चहपापी हे } उनन्न पपाद भा कि प्राध्यापिका को बम-मिरपेषष 
बारा एष्य ज्व्िदाद पोर पपूशषद र पेश विसर्गे । सपु व्यमहार 
जवं क्टुतारहेत विषयदेततेबना उत्प कणे के प्ररि पोर कृषी 
कदपये। प्रतिभय को उन्दने प्व्दबदपदूरवय पदा इत्यमर 
तेएढ षो हेश दण्ड, पैहोमें परूङधिषा। वे एक प्रथिषापापी 
मेष पौर रिशतिपोशादके एतिरय रद हो दशक दहगदूखं पौर 
जीविक बरमपन्िमो पषेरएकबे। 

स्पिविपेषवार को सप्मै द्यो परारदष्मा है पटकम्‌ भोर मेषि 
भ्ववत्थाङे पिष्ड गदि विरोढटै।यद पारमा भरन को प्ररनिर्मर, 
पात्मकेभ्विव मैविङ्डाङक भपिःजी ढे कपम्‌ देता है) दतर कन्तक 
भिदे एम कारण विदेय महर्ष ६ रटे शमे एड भयं 


१ प्के, ¶षरेल, परडदो शठ २४० २५२.१५०। 


१ प्रमरोको नश णस 


मिरषै स्म रिया 1 उन्देमे रागनी सोकर भमो मानव प्रणि अ, घौर 
दे घमा श्प्रोर प्रमति मे प्रास्मा शी परिग्यछ्छि माना, जिसे भिवम 
पान प्रौर समी निजी भेदका सुप्त षो जाना निर्वि ६ । (हमारी कमान 
नैविकता कमि म्वा" क प्रागिष पतोँ के निङ्ट स्वर भमि पाप्याप्मिक 
समाच्च को प्रस्तुत करके, भिरमे शमोपियम (स्वत्व ४ सिए स्वीडन का पस्य 
के घाम धम्मि प्षासोपए होषादाहै, भे मिप्रतियेपवाद को प्राभि तेनमः 
शैगपे1 

प्रमरी़ी परेस्मिटीरिपत र्गो श्च पारम-वुष्टि मोर कीर्णं भ्र्गो षे 
जिकर बे दंमलिस्तान पये, जहा ठमके मि जपिफ हैनरौ भै इतका परिणय 
महन्‌ मौदिकषाल्ये माद्र कैरेषैे शरापा। बोद्धिऽ पौर बैमक्छिक्र दोनों 
इष्टिपों से फे भैम्स के निष्ट पे पौर हन्हेमि भैम्य क्य परिम एक प्रत्पभिक 
प्रस्ाभारणः प्रक्र के काल्विनजादसे कराया । फैरेढे म्लासवादी चं फे वरस्य 
पादृष्छमैलके प्रनुपामियोंर्मे धै षै। पह धलमागबषाधियों का एक घोदा-मा 
स्री पन्प था जिसका पिरव भाक {ष्वर का पाप्रास्प केषघ्न पाप्पातिमिष 
६ । बमंषषडेपमादिर्यो क प्रचि उस्रा श प्रतिक्मर करते $ लिए बे भरात्वा 
हारा प्रौभित्पकोबढ़ेही सर्र न्दो मे प्रसुव कै भे घफस इए पे । प्रपमे 
मतुर भन न्लास का प्रनुप्ण करौ हए, गट सेथैदैन त षडा पादनि परमार 
ष़ीहष्टिमे ह्ली स्थापना के षत्प मं सामान्य बिष्वाप ही पास्वा ¢, भौर 
यह कि दसा भिवय याधोस्वठ स्पृतं हठा, या प्रषम्मष । उन्होने षडा 
णाकिपमं काणा, विषतवास कणे शयी च्छा तही बप्पु ठत पद्ावुपाके 
बीच माधारेके पंरकाे मेहोताटै, निं सवर रे भपनी परपुश्च्छाते 
परार प्रान श्या षो । उनके भनुपामिरयो पे षरम-घायुदापिक माई-कारे कापएक 
परल क्प दिक्सित किया -अहुषा दते भसे धमामम पम्यधियों मे वेहमान 
सैतनिष् परियो पौर शोकपषक इक्यो का परमाव । भदा ङ्गी ष्पे 
मब श्ये ष्ट नयी क्या भादा ¡ श्यी के पाठ बह मागमे शको मापारनदौ 
हैचिर्वरभवे उष पर पयतोष प्रधिकू कृपा दै । ° दपर पति-पोकतान्धिषक, 
प्रति घरख-मदा शो भेम् पर पर्णं इष्ठे प्वौद्र एरिमा। ष्एषेषाद 





१ हेषरौ नेष्ट, शिरश पेग्ड मिरसेनीम्‌" ( श्या १८५१) पष्ट 
१५। १७, ४ । पहला माव, शषङ्धेती पेष्य इदस इष; दूपततरा भावणः 


शालते थद्‌ पिम्त ।* 
२ सबडं तेशैसेन, लिय धरान पेएान रेष्ठ रेष्येतिमो" भ्ास्रित बारेन 


हत दो एकर हेनरी नेम्हः { रया, {९१४ ), च एदृत प्रष्ठ १६। 


भ्रा्परकादो पाण १९६ 


ये, दशैयेनकी मति दारे पारदयी-बम्‌ शो भादः सौर "महृक्मरप्णं 
गैतिकटाभाव साने भये । र्ते कनेमैन के "तैर" कय एक भ्रमरी संच्करण 
देष्णम पष क्वा ध्ौर १८५ मे शिमस्पं भोनकशे पएपास्टोहिष 
मोस्येतः (घमं -वैमम्बये के ठमदे्र एए रिप्रिया) सीपंह एश पसि निग 
लिंञ्चा ।* एङ द्रा प्रपमी भ्राप्यात्मिक श्धा भौर उषसे ऊप संकधवस्वा 
के निम्गलिषिठ मिषरणापे स्पष्ट्हो बताह किबे धपते सदै भिद्वापश्ये 
बडी गम्मीरठाष्ठे केतवे थै) 

“प्रपते जरम ऊ मभते ही, नकेवतयेने यहनी षामाङि किसी षश्वौ 
प्राबात्मकदा प्रपनी प्रति की सष धाक्प्यकया षी पृत्तिभकर पानाष्वा 
शेषा है, धरन्‌ प्पती मनम के परदृषार मै इदेना भरम्पय पीकर षष्वा 
धा, चो क्रिसी सुदती परिषार के निर्बाहिक्ी माभस्पकठाके बराभर दै । 
एर भी मेरे निष्ट क्षे दबाये व्यावो, नोहर द्ष्टिसे मेरे मभ्य हई 
पर्‌ ब्र भ्यो पे मुम्प्ये मने है कपी पपपे छारे भोगमर्मे प्रज्छा मोग 
सङ पाया पज्छमोद ही पायी पण्ड कह मदी पाया सिवाय प्रपमी नियौ 
गेन केषहपरना हसी माखा-पितामा छम्तानश्चे शोमतपर पौर निमा 
कटोर हामाजिक दहडहि भस्यायत्क क्रम्‌ मजनबेने दे कमी एषबारमभी 
भरपनी मनमङ़ी को धुदपरदे शके । निर्य ही यह भिष्युर प्यापोचिच हि 
मुके मोग, बस प्रौर निवा की तुषो शरोर धपते निजो प्रकाम 
निकास कर पुषः परिव किमा जाव । द्र्वतेय ध्यायमा पौषस्य 
हषोर पराह हि जिद समाय कृडा जाता ह पसक रा मुभे प्राओीबन 
देतव पौर प्रपती मर्जी कएमे की सुरदा प्रासो, गभे हवने मारे प्न्य 
को-वुस्य भो पृष्ठ ढेवे है, सव दिन भोगल भख पोर मिबाघषा षष्ट षते 
गं पौर प्र्ततु पपडे धैठय कषठ ही धवा पोर पकिहोगा मे पर अपिं 
गयपि पूर्मान्पिघ वेदे जोजेपन मे नही: 

धे दम्भे प्रये ठे पनुजब्‌ कर रह्यया कि सपनि भोर भपयानित 
पतमदय स्याम ठै स्तन्मं पह गम्नीर प्राप्यालिरू भअिनाए शदे सरमपप प्राम 
के प्र शवादूप्रा पर्व प्रन्ठरत्मा शो श्वातापूवी बैषो प्मनिबो प्रो 
रण्डे प्यकदोवाभा द्यु निक्लमैष भोरस्ष्ट भागं बुभ गही 
रिक्षता था । पर्षत्‌ प्रसीभ कुणप के षाय, वैने यह मश तिपा हि एएवरीय 
बिषोनकाहाम प्रपरचेरे गरं पौर पर्हशारको हर्ष परहा भे निर्वष 
पनित प्ौरनप्टन करदेवा वोवै भी पपपिङ पम्यायपूर्ण मान 


-कूस्विनि को स्थोष्यर्‌ रने भाते भम्द क्री भीष्य कौत हेता) 


न, व अ 


प्ट पमस दछन आय तिष्य 


सि बाह्यप्माब श्प ब्ञाग नथा। प्रबिश्वम खामामिश प्रतिष्ठा भुके 
भ्रात पी । गै पर्या म्प्य के षार्तानाप पौर मिना भा पागल ण्यवा 
जा । बरतुन- मै पतोभिष्पपूरं गाहुत्म के मुप प्र उवयादा षा) प्रर घरे 
समय धललरीप म्पा के प्रति मै श्रमरहृप्यसे विष्ठ मदो तो एवा पडासन 
षा हि -दृकर मेते प्रमदगुरतंप्रगतिगो प्रौर मन्टौ मद्गाश्मशनापर के पमल 
क्िवयय स्याम प्रगर प्राप्या भावद्क न रत्म्न करता तो तै धपनै घारे दिनि 
प्ररषद्रप्ि $ रष्थूके पेही इङर दैवाप्रौर मृदेकमोगह स्व्नमीन 
प्राङ्क मेरे पा मनुष्यो श्र बाद भागष्य्वापु-परृसि भौर माज 
शम्यन्भी उतस्मे भावस्यष्टाए्--जस्ठ्व मे केषम मेती ्रपनी भगिकः धश्वी 
सवक्यषताके दष्वरङ़े सम्दम्॑ये मेरौ धपनी पवि परावर कवाघौङे 
चदि परौरक्महै। भवः मेरे प्रसस्लठा मरे पराप्यं पौर मुखर पद शी 
कर्पा करे जव स्वस्य भामि तम्नता कौ स्य स्विति पं भव (कषरौव 
प्रसक्ता सेमेदौ रथाकरमै के सिए, पारप्पित के प्राभ्रण की एक पदीं 
प्री पतो मौ मेरे पाष गौ षी मैवे दिष्य-लत क्यौ पराप्पारिमकषल्यु की प्रदी 
प्न वेशो पा पेता एत्य शय पम्मीर दानिक प्रथमता को पहचाना । एष 
शतप भै ठस्ात पे महु साईत पदान क्वा दिसै मिया हिवि जका 
प्रिपामं करके प्रर परमे बाप धरिम शी भिन्ठ चैानोके मिप्‌ चो 
र स्वरं पपी पूरजीषिय बोदिह पठि का धनुप्ण कष केवले जिन 
षै दुखा प्यानं पररणाप्रहै -प्राप्पारिपद्र हैनाएपवश्च प्रवह, रष्क 
नाम कने प्रणंतः पमनिपपेञ्च बनाना या प्राक केतिषए र्ते केवत मुष्वश् 
षामान्पं पा प्राति प्राबस्यष्नवा धे घम्म करना--बड पा्मषषद्ता विषमे 
शमौ मनुप्प पूरी व एक है पौर फखस्वस्प सवुप्व ख्ये निजो पा मैमिड् 
पूवा घ उण पटी तण्ड एम्बन्ब-गिच्छैद करना जिष्मे हर मनुष्य चेतन शम 
र्मे प्रपे पदोपी घे प्रलय) लाफि धिवाव पपे तामाभिह बा परड़ाणति 
प्ाहृपिष स्पे, पे कमी मो हैिरीयकपाश्चौ प्रश्मंलाने कहं प्रर स्वर 
कै सहनसीलवा का पाष भो कत्म ही बतूं- मषु उख स्म मे, विष्य 
शी जातो भौर मों ढ़ मनू कै निडाद सप्रायङ साव नैति ष्टि 
पष्प, प्रिती परस्य मनुष्ये पति विरोक द्वितो शे भेवना नब्रहल 
हं फरक इठे विरत ईददरवे हर देहौ निजो प्रा शनो भस्शीश्र 
कड, जो पूरवः उष्टा मानमनप्हतिके्डारये एरान्नम है, षाङ्व 
पीर घीपे मानपधापि क पति सपर $ पठपाठदत परेम पर पाषाप्विन धे ^" 

१ पितिपव जेन्य द्वात स्याति, श्लो निटरेते स्मिश्च प्र शोनट 


हेली जे्त, ( बोए्टन, १८५), पष्ठ ८९९१, १२ द१। 


१९६ प्रमरीक दन का इतित 


प्राप्यार्मिष भिरासत नहीं मिली । दतु रहय आएगा कि उदेति “ते निर्लग्म 
काममा प्रौर सफलीशरूत छल से बते म्बे ते गन्दे मोक मिम्रख फ चिए केष विपा । + 

प्रिए्र श श्रगुघरा #$खे हए, हेरी धेम्य ने सम्या एम का प्रपोन 
तिरस्कार म्यक्त करते हए नैविष्ठा मेषे हृए' मनुष्य के निए ष्पा पीर 
पराह्मरणाविर्मो मे पमे स्वाभि सू्॑सकत निष्ट मित्ोश्मेभी षोढ़ा) 
उण्ेनि मिधेपस्य से “ठन बसंस्पक ग्या" शै प्रोर इषारा करिया । 

शोमाज क्यो अर्तुमान पति दर्वल पंरणना ए पत्तुष्ट होकर ते पीर 
समूद होते है-कमि ाहित्पिक गिबन्धकार प्रष्पैवा कलाक परात्सरषाषी 
प्राकासीया माबगादी बैल्ानिक बो षारेही पनम हो$र तैणिकिता कां मानष 
जगल का परम गिवम पमम्य्ये है। * 

जेम्स एमर्संन के जिजारो के तीव भामाचक भे पद्चपि ठनके नियौ सम्ब 
पश्ये मे, उषी इष्टि में प्राम-मिर्म॑रता श खिदा वं प्रौदपाप शरी 
पकाप्टा णा । एकत्ववादिर्वो गै चर्व का एक स्प कामम रषा" ठ कारणा बेन 
मै उनकी हतौ उदा पौरे पमी चभो ये पथिक नैतिकवाभारो बे एस कारण 
उनकी भर्वा ष्ये । उन्हेते चवो के आहर णएत्मरवाद' या शैकिकि संति" 
मा 'लोकोपकार" स्प में मी मैतिक्ताबाद पर ध्ययय क्रिया प्रौर मराडम्ब्रपूर्शं 
प्रास्मचेवना पौर पररिम-्घस्कति बाली प्पू-पसैष्ड र परात्मा! शौ भामती 
पर पपत ब्प॑प्य का सकय बनाया । 

प्ररसरणाश व्यच्िरार क निष्ठ हेनरी चेम्प जरेषु ्रै पणवा का 
प्ररयिठ करने के धिप इनसे रषनाो मं ते प्रौरमी प्रमाख दष्टा कविना 
सकते ह । किण्व दस तथ्य शौ पोर ध्यान लीबता पाड्य टै फिखनके हारा 
शपस्थिनडाद का पुन स्पापन प्तैटोनी मादवाद के पनर्जाकिन का प्रवा था । 

हेनरी भेम्प के शिण मे निहित मादबाद १ पुषोप् छं पंचमो गे 
स्पष्ट हो भाताहै-- 

मनुप्य फे भीबन के तीन तेष द, एक बाहर पा धारीरिक (षर प्रान्रिषि 

या मानिष परोप वीरा भन्वरम काया श्राष्पारिमक । एनम हेर प्क 
प्मपन मुक एश्वा मा संयल्न श माग कष्ता ह, पहना "सवण ग्ट श, 
दमण भानि" घपठन की प्रौर सीरा शापन हंगट्न शवे । घव इये 
छठि हर्‌ एक संपठन पा इकाई पपना सपद प्रदम मती है । बोष का परकमष् 


१ शी एष्ट ८* 1 
२ दिनी पुरवरं प्ष्छ२०२। 
३ ष्छौ प्रष्ठ २०१। 


छठा प्रध्याय 


वरिकासवाद भौर मानयी प्रगति 


प्रह्याण्डीय वगम 


१८५९ मे चकि इंभिस्तान मै “दी पोरिभिन प्रौ स्पीसीड्ध' ( अर्मिन 
शमी प्रिद पुष्क ) छा रषी पौ मिभ्िटन कनिकिरकरट मे एक घडा एकष्य 
धि किमी टेसी प्रास्याश्यी ठपाए रणया, भो कास्विगवाद फे पर्षाभिक 
पदथिकर स्प" कास्वान ले एके जिसमे बह पलाना प्रौरमिपे प्रबका 
गिरिचिठ स्पध प्रस्बीकारशकरता बा। नाग फरक केवत पएमहुषेपं केष 
शैद्धिनि बे पूनाधी प्राष्य भौर इतिष्स पुलमारमन मापाास्न भौर 
शूगर्मपास्ीय परिकस्पतार्प्रो" मे द्ेये । शनक इनरेषोर्पेतेक्पी श्नमौ 
कां बर्मषास्े वै येल गधो बैटताना। प्रका श्रोमाणा पं वै ररर 
कास्िमबादिभे शये पोर एदे, हिनु बे उनके सिए व्पर्पतेभोवुरे। ण्न 
बादपं समीक कपा प्रम्पङ्प्रो दस्तु से प्रपिक बु्णेल डी पाधैकारिक 
रषनापरो भै जिनमे मोविष मिज्ञान का पूणं पडत जा भरे बिष्वासको षा 
चिब भरपनो वलाण में उन्हं परजानक धो पुष्ठङ् मिसो जिक्होने वतक पक 
श्यतन्त प्ास्वा भी प्रदान की भौर एक भीवन-तत्य भी- जान इम्भोर्ट ष 
भिदा" पौर बस्ति की दिते पाठ िचेयाएडे । पडी पुस्वक नके 
सिए पूष्टिष्य महाषम्यपी । दूष ङे उषु पपठि ऋ कारण घमम्प्मा । र्नो 
ओो पिला देते पर प्रति पौर मैतिकता कम एड पर्णं विज्ञान ठपकम्प हो बाच्चा । 
तेशिनिक्या एनं मिप्तापा बाप्क्लाना ? क्या मह प्ररि निपाणाषञा 
ष्ठा मालदी द्ध्याकेमिद्धात पर्दे बिदा परनिम॑ष्ै) ष्या शां 
हारक निवम है, बो प्राङृतिरु पिष भ्रोर मानदविषयस शो कांबालप 
करदा हो } दया भियम भ्रमर एषा पठा चष सके ठो गकेव प्राक 
अयेणाड् फो गुनः उख एच्च स्थान षर इतिष्ट्वि करेया बहा से बह द शे 


विद्याद भौर मानी प्रवति १९६ 


यमाणा, मरम्‌ शम्या छरयके मिक्मघमाम्‌ भये बिङ्गायको मानक भरशत 
केदपेम शोभी प्रथने पृष्मेट गा! गक एामायिक्‌ भौयिषरे | शुं इसका 
पठा यमाना होमा । कृतव मद़ीरो $ प्न ही उन्होगे पस्तुमिष्यनाद हो ्षोग 
सिया जिते विङ्ानो का धरपता क्र्म पोर पेतिदाधिक सोनो श्च पपना 
तिमा जिसपर बह प्रमाणितं इवा षा कि एामागिष्ठ निष्ठानां शा भौतिक 
बिहान पर भाभा होता यागम है। उह ण्ह भोपतासयाङि हषं 
स्वेश्छर भपमे पापि प्रपि षे निदम प्रौर एक ्बेम्यारो सष्सेषी दम के 
किनग्खके हाप कमरे ष विभारप्यबरवा पे सुपार एमा बहते प । फ 
ते दत्कान व्पिटिन प्ली" के संक मेयम घुर कररप्ि) 

बाय दसन षी मौय बूरोषङे साब-ठाप समदीषामे भी म्पापकभीर्‌ 
बहरी पी, पाकि भहा भौ प्राहृरिषठ दिनक प्ररिष्टाबदुष्ीषी प्रौरप्क 
वामाप्व भम नोति प्रौर षपरंपाक्िपों ठं दैत सपा कि प्रपर दे प्रतिक 
मिय प्रौर माहृरिक श्तिहावदे कमपीषा पदी करहि, हो रुपा 
कष्ट-समर्पक रएतरणादिवां ची उषी पौर भरु मूमि एए करनी होबी, 
पार्टि भायम पडषिमो कै पपोप क दामे ध्रै हवे प्रौर ठष्यों श्च ष्टा 
ठैना होना । बैक बिद्ाप दी स्वतत्नता पसिकाभिकः पमाम्य दी नही प्वाकतीप 
सीहो दमी! यह श्यीभ्यार पण्छामा कि मागम ष्च्षष मेषृष्टि फ 
प्तिर्योको देल पर, भो स्वम, हम्शोत्ट केपम्नेरमे निरुतरनये स्पोम्‌ 
िक्सिव पौरस्य हषी है। पा, भन कके पतिपूरं पमो ओ 'मपुष्य 
पौर अविद कपाही प्रतेकेपृतद्नो पारक्रष्टे ह भिषष्य धारि 
पोर प्रनत पाप्यत क पूं शर्यकर्‌ दूष हुए है । एोमानौ प्विबाशरका पह 
श्याष्ट प्रस्पिश्ो षद सविर प्रतन्ठ ष्यदस्था लह भो जिषमे एप्वग्वादका 
दिप्वषठ वा, चन्‌ एक अत्त स्य्यत्पा पो, पासिवि पटनारमण् पोष प्रगणिमिश \ 
चार स्ववं मव एकषैदिह पटल केकये प्रष्टु, काल मृ भिषक दि 
श्मेदेाना पक्वा ६, मष्षपि बकामूप पोर ऋतु हेण ष्मेय षेधे । म्प 
प्य दए विपाठा केष यदहोते की पपेया दषा विद्व धम धूरप्द प्रहीत 
शयेतराणा। दतु स्किबिद मु दित पृस जरदु की प्रये्ठा, पा श्पृदन-पम्प 
की ढेषल पमे पौर श्रषछर दाठमे बाली सृष्टि पेया यद भिष्र प्रशिष्ि 
वोपपप्य, पयि एतेजक परर भनुप्य फे तिप्‌ प्रपि पपयु्छ पर परषीच हौवा 
धा} षर प्रभ्रर हंर्वर्की मागगशमस्पदाष्े समाएठष्णरे दे नायर 
परद्रीहवौ प्राग्दी द एम शष्ाष्दीय दायनिगो भै पडे सिप्‌ एक्‌ धष पाहृतिक 


ष्यमा निति कट सी, भो एश अपनी मिपिष्ट पमाग-प्वदस्या ढे 
प्नु्मषी। 


# 


२५ श्रमस्य इन का पतिद्यष 


सीम प्रौर परम सखि जिद मानभ-मस्पठा ॐ िदान्े ते प्रन 
रव्य पे ठत्ममी्माघा क निरूपण हारा परिमापिव प्रौर धीमित्त कटना पाहा 
टै बह छदि & भि शरघ्ताग्डाव हत्थमीमांस$ निष्प द्वारा परिभाषित पौर 
सौमि कही शस्ता पौर इस तरह स्वीकार फरता है- गहा दक माननी बोसी 
पौर जिषार की प्राषस्यकठाप्‌ं प्स़्ी इथादत हेती है- कि बह प्रघीम भोर 
भरम है। सर प्रक्र मानब-षमरपताते श्ष्ाग्णबद तष प्रयति पं भािक 
द्टक्िण भारम्भ से भरन्यं क प्रपरिबिव रवा £ । इष प्रकार, बिह्वाग धीर्‌ 
परमे भो निरोष रिद्चां पड्वाहै, णो भीदपा किदे पिमानड़ेषोगोशो 
मेषा पाद्व करता है प्रौर जिषे बर रते मे भस्तुनिष्ट दन भो प्रपेसतवा 
कम ही षणसत्रा मिक ब्रह्याप्यीय शर्पन मे पूरी धर पौर हमेषा कै निप श्रतम 
डेचाताहै। › 

य्ह इछ भोरध्यानदे कि पिकं दिस प्रकार देववादर् के सिप्‌ मानबषाद 
रौ पुमा सै प्रकृषिवार कि घामो पर जोरदेते है । उमे जिए प्रौर रस ल 
केभ्य कई मम्मीर पमं भारिक दादमिषो ४ सिप्‌, प्राृतिषठ ज्ञाष षी 
सापेक्षता की छोज प्रास्या श्री एष़ महान्‌ च्छि भग पपी एष भसौम बीयातीत 
शक्ति का प्रस्वित्य परिपा करने का एक नया ध्राधार बम गयी प्रौर धरं 
खण्ड मागां की भपेष्ठा शरम कै स्वर्यं पमे सत्य दक पुने श्ीएक 
भिक बह्तुनिष्ठ बिभि प्राप्त हा गमी । फिस्क भिषात्‌ 9 किन्तु उनमें प्रानिष्कयर 
मुदि गक्ञे भी । द्षह्याढीम दैगषाद के प्रपि इए एता के ष्टिक्ोख प पवेन्छर 
के धलक्ी म्बास्णा कतै कं प्रपिरिक प्क कुच बिषेप गेष्टीङिमा। 
श्रौरमे पहु भार्म कर्पट प्रौर परेषान दोनों हुए कि स्वयं स्ये ब्रष्यारढ 
के मिच्ारकछो खमाबिष्ट कएने शा महत्व मही छमम्पै बे । लेन्र $ ्िए 
जप्ूनिष्ठ बिद्ध्नो की धेस्मिष्टि प्रा्मिकृ ल्य पी । पके भिपरीत पिति के 
लिए, बिश्वान ए कारण राचक वेषि ने उक पर्ति के सहाष्यम्यण वकने 
जासि मे प्रौर ग्रहति दइससिए रोचक बी फिबहु उह {श्वर दके जातीषी। 

उषा इद्याष्योय वैदनाद रपिस्कि को बेप्युनिष्टषाद कं प्रति उनके युबा 
उस्म ष्वे श्थिनी हरपि मेया शक्मा पवा उव समम जता णव कोन्कोरमे 


लति पिस्क पाटला प्रोह कास्मिष फलापीः (स्य, 


श७४), करद १ इष्ठ २८४८ 
२ जीय प्रषदा हषर रे रिष्य-लाम वै व्दिषात। इतके भिपरीन 
दषवरवाद (डादरम) षर मे विस्वात करता है, दन्तु उतके विध्यात्‌ बं 


नही प्रतु 


विकासथाए प्रौ माधवौ प्रवि ३७१ 


दन छ ्मस्ूल दं उरश शो महतौ मापणा सि ! एन क माप 
ये रहति “मनुष्य श्च नियति" (वी उेस्िनी मोर चैन) श पीर्पश ल्पा प्रौर्‌ 
तभ्‌ क माप शे कर ख विपार' (धो पादपा म गहि) क । पपमे 
रषे माय क भूमिष्ठ मेक प षम बाद पर भारम्‌ प्रकर भिषा कि 
प्ूद्वक्ये निदिको कामाम्बत ईषम्प मे छमभ्प धपा कि रष्वे उक 
मतदः का दके मिषता पा । पठ र्दे समारा विपश्यी 
इर करके कि भिषय-पिडान्तो के पश्स्वदप एक कपिनिदतरोमो पन्ति 
रे यी पौर एषम पलुप्य को ष्टि मं प्रुदधता क एने स्माम्‌ पर" पुनः 
ग्रहिप्ठित कर रिथाषा रपी तरह जैवे गहत पभरोष् देरव क कपर 
जा) दे केवल पपे श्रष्ठापीम र्पेन पे एष पौर प्रध्याय गोष्रहेये । उण्हति 
मह नही वाया छि एनद् व्यास्पा कृषा इक स्ेन्धर के परेम" # पिद्ान्ठं क 
धनुस भी ! पेये कडिन मे पर यष रजसे उततम दै कि प्रादमी माड षपनी 
पोरप्ने बोले; ^ धसे बाद एनेन एष॒ इष्र ईष्वर का बन किया-- 

"बहु परतौम पोर पनन्त ठम जिषे सारी बस्तुए्‌ निषतती हैः प्रोर जो 
भटी पछि हैषा हमरे प्रमे पन्दर चेदम केष्य म ठयरहौ है, निष्चप 
हौ षदप नसि पहा्सिर ङ रूर ममाप्य हिमा धपा! सहेषः 
छम्दक्ष तमे बलिम कर्‌ प्रयोग भटो हिवि एस भिवन्यमे पहम्‌ कौ 
महौ) प कजरतह्स्वर के एष्पल को म्प करवाहै नन्तुं इषे हर 
विषार्वाएके िष्तो नेक पष्देरेते है पपदते प्रम हदाहैके 
पु ए्खेत- शसलर द पमौय ही पौर पठे एम्यपिषः निराएाडमक निप्र भा 
क्निपम बनाया है, चिस बु पय्य-पुनि पीता के बाद प्रद 
प्रापो है 

“मूर्यं भृष्टि केषर वसुम्‌ं भीरन बर्दक पटा है--ग्स्वुये मोयमदे 
छमाम्य धीभिवे सर्वम गही गरन्‌ व्यापक धमर्‌ । भीषित पौर धगोषित्रषा 
पन्तय भो षरमो पूणं घमम्ध जादा पा मव ्रयेश्च अन्तर धन यवाह पौर 





१ चान ककि, दो पापया सोद योदरेडरेषेकेढ डा नानं भातत 
(नि, (८८७) भूत, पर २९) एद०६ ये हवस क द्वानभू-वर 
तष्डन्पी एर पत्नीर कताः कावर्तुरं कटे दपु रन्हुमि बह, हुरपतिने 
परत प्रनतए्तषषे कृप्‌ विर दरे चामरै च्यक स्पे दुभ रोम शपनीय 
आपी, देके दिषिरोकौ मेदे रोकेष्टाक्प्ते हप, ज साकष्प्मङेनिद्‌ 


वहतो ह \ - गोन प्रेतर का, शलाद्र देय सेट प्राह बोन नि 
{किचदव दमत पनां 38 3१ नन 9 


९०२ प्रमयीक्े शत का पतित 


कैमिरू गटन से स्प जबल सारि थमन शय केवत एक बिपिष्ट स्प माना 
जाहै। 

“पदार्थं को मृत या ज़ माने शौ पारणा। बस्युः एक्‌ देखी जिषार-ष्ययस्पा 
की € जिसे मापुनिक भान प्रागे निक गया] प्रपर सौरिको का प्रम्यवन 
कख पिललातादै तो यहीक्ि प्रहतिर्मेषषटीभी बदृटाया त्विद्ठाश्री , 
सब कुष ऊर्जा से कम्पि है । 

(भूष्ठिकीहर भर्क्न्मेभो प्रसोम प्रर पनम्द घलि ष्य होवी १, 
बह प्रौर कृप वही रीभिठ स्वर है । दप्य-बरटना का पनन्त जोद पोर कृष 
गी भह पमण्त धरि है, भो पौषित्प फा निर्मास करतो है । प्राप सते शोक 
कर्‌ मी पा घष्ते । घाप उसे प्रपनी पास्ता रे धोर्‌ प्राप मिष्य नरकके 
ह्र हाबो मीं होरे भ्मोकि श्रगम्त के मिद्दत डत द, म एममः, न मिमं ।'५१ 

च्छि के सोतारो कय यह शोभा सम्मव भा किदे प्रप पूर्वरनोक 
मिस्बाय पर बाप शीदवैवे। कारणा कि यपि उनके ब्रह्याध्यीय ब्पतकी 
मापा रष ब्दलीहूरषी दन्तु प्ररमा ईसाषी प्रौर षेष्य मेसकनेष्म 
जा। कोकां में एकभिते परासपरषादी भी उषे फगङ़ गही एकत पै । 

खास्सं तष्टं पीदं भि शङाष्णीव पिकिरपना मिस्कुख मित्त प्रकर फी 
क्योकि ठम्होतै पूरोपीम विचार-्पवसवापों मिद्ेक्त- भमन का प्यातपूर्णक पप्ययत 
षो क्या किन्तु उस्म प्स्यभिङ मौशिक पौर चवुर धणोपन किय, चिषष्न 
दैचिद्कापिष्ड महत्व निर्वए बढ़ डा है, बद्यपि उनके पपन पी के प्रमय ठनश्यै 
वाते पमि प्रकारक धद्वाताषस्यामे पद्व णी। देखा प्रदतं हौताहैकि 
अर्होनि पिम के प्रमा म भपने पितेकिस्टिकि पनापार्टिक शादकिक्म 
(ैरण्ठ्यगादी स्मेहपूणौ संपाद) क निप करना प्रारम्म करदा ] 

“यै कोल्ड के पदो मे- पानी कमतिय म-षस मय वदा हुमा पोर 
थला भथा, भव एमन हैन घोर खनके मिकररत बिषार्योशा प्रषारकररे 
नैजो रन्द्रेने रैहिनये भम्म्यिये प्रौर धैलिय मे प्सोरिषष, बोपएम पौष 
परं (पपा) के बाहिवाव खस्यमाद से पिव एष्वर बाम जिन-किनि सोनो 
धि प्राषठद्धिपि से) दशु कैम्किक ऊ भातामष्ता पे कको के पणवा 
करीटाणुरप्ो का लाद करे भारे बेरे ठत्व मौबरूद वे पौर परमे एषषा हाने 
गहीहैकिषल शवीदायुपो संद दीने भरे पन्दर प्रैयम््ाहो। षि 
शी यह षम्यष है कि शु सम्बबिघ श्ेटाणु शग का शे एतम स्प प्रनयनर 





१ पसक, "दौ पाषभमा पोह बाण वृष्ट २५. त्ये १४५-१५० 
१५६, १६७ 


२०४ प्मरैग्र दन का इविष्यघ 


पटना होती ह, जिषकी प्राञ्ममाश्ी भादी है । कमै कम ठस समव वेष 
जब तक ईच्प्रा-दक्तिका ठत्व जा हमेशा किसी मिपमिष्ट प्रषसर परशि 
बिष्ट बरसतुके तए सत्रि हवा ह तना प्रमागी षही हो वावा कि प्राप्नैला 
फ सामभ्य भरिकोदषादे। इस प्रक्र प्राङांसाप्‌ गरो षे प्रर पत्वभिक 
स्पापकममों शोभाम्‌ देती है । क्तु पराण्ोकाए्‌, उन्म पूति @ प्रवाचपे 
भ्रनिक निरिष्टहो गावी है। + 
पमस सै डा्भिन के मैखगिद् बर के पिदाम्त कमी भ्वास्या "केष प्रा्सिमिष 
परिवर्तौ" के ग्पर्मेष्ी प्रोर निकासारमक् पेम के धपनै छिदान्त के चाव 
शसक मे बिटाने का िधेप प्रयाप ही दिया । 
पमरीषटरी ैलानिकदार्ानिरे के डीव दसी तापी प्रह्याष्डीव भोर विष्ण्वादौ 
परिकिस्पनाप्रो फा कम से कम एरु कटर निरोषी था -नागम्परन्‌, मखजयेदूस 
के बान्सी राइट गस्पित्न॒ नाटिकस परस्मनष् ( ताजिक पचांप ) के मरक 
भरमेरि्नि केशौ भाड़ भटे एष्ट सायण्रेज' ढे पिरक एजि श्र 
समब दक हर्षडं म प्राध्यापक प्रपिद मेदा कन् कलव के एदस्य, मित्त 
भ्रौ शिन दोमों के निप्खरबान्‌ पिप्य । राष्ट प्रौर पौयसं ये प्राहृिक विशत 
शी रागि म्मा्पा के पम्बन्व मे करभार प्म्बी बहते रं । पीमयं बाजवा 
उदेप्यबाद प्रौर प्रध्यषस्णा पे स्मवस्वा के जिकास केरप पे जिक्र पपत 
सामान्य पिद्धान्ठका पमन करते । पष्ट दण्डं षम्य वी षिष्टाकतै षि 
सृष्टि कं शविहास मको दिवा शौ ६, बएम्‌ केन श्रह्याप्यीय मौषम' होता ६ 
श्पौर पह कि शतितवादष्ी प्पाश्वा भिङास भो एक सामान्य पदसिङस्पर्मे 
नहौ बन्‌ धासैरिकि भरपिजौनिता द्यी छ्मस्वाभों मे उपमोमितावाव के पष 
जिर्िष्ट प्रयोगे ष्पमें कएला रर्ये । राष्ट है पाहोचषात्मकदीतिते पौर 
इस्ूभक प्राहृधिक निदधन के एक प्नुभवमादो स्पप पौर वैरिक्ता तभा 
उदप्पवाव के एषः उपमोगिष्ठावापी रिदाष् श समर्थन किना । सृष्टिक ताभ 
सा मानम बौबन सम्दल्बी उगक साम्य भाषा एगके एकः प्रारम्मिक तेल 
ओ बके न्दर प्रो पलि भप ष्व हर ई । 
भमनुप्य हर अग भ्रमे छो परति म परतिविम्बिठ पाता है । मननौजी 
श्रस्मिर हमे प्राराम ्ोजता हमा हमेषा तई बुरावौ ते पेए्वि जिन्व से 
खबरे बद़ी बडु प्यं स्तत्र करता है--एक पतित प्रहि के शित जौयमन भ 
ग्साप्मीर सरक पोयल कता हुमा भा नष्ट पौर भ्वस्व करता पभरा--स्ववं 
मई शमता्मो को जरम देने नै पमं किन्तु जो बभ रही है एं समृडधिक 








१ शरपषं मौर बीस शये पुर्व करढ १ शष्ठ २०४६२०६ । 


१९९ प्रमी दन का एरियर 


एतधि के भतन प्रयोग पौर प्न्ठत प्राप्म-बेतना का उदय हप हेषा । 
इषु रि य्ठमि चेवना स्वमाबततः बहिपुंलो हती ६, दतु यह शपते घाप 
मे ष्ठगी स्पष्ट होती िपसग सेघ्यान पराति मोरष्य तफ एक 
जिष्ठिष्ट प्रकार का कायं प्र्षात्‌ भिमं स्तन्न करै । 

“स प्रकार जियष्ठं॑प्रविकास सत्भमीमांखकं बैता मानते प्रवीव होते है 
उसके भिपरीत मनुप्य मे एक मूत कपी मन छक्ति मही होगौ नो उती 
ही प्रादि भौर वातिक हो जिठ्नी स्मृि या प्रमं ध्यापश्चभ्वि या 
छाषारणीकरण म सतव पौर प्रशिनिषि बिम्भोंका क्यं! ब्दिकः 
पपनी बस्वुपों को प्रति द्राण प्रत्य मग-घमिि्यो ते भरपमे निबा मँ मिरबाप्ि 
होबी । म्यक्ति-पस र्मे एषे घैरचना उन्ही मन-पष्वियो पे होमी- भरद्‌ 
स्मृ, याग प्रौर प्रमूर्चन-जा एम््पौ के प्राथमिक एपयोय मे प्रु शती 
ह । इन्द्रम स्मि कोषो कृच प्ररान करती है वहं रहौ पर श्मवं करेवा 
किन रेके राय परस्ुत सद्र वा धतम किम्ही प्यवस्पामोष्ठ 
स्वत होकर कायं करेगा एपी हरं थै विभिन्न इयां स्वयं एकदूसर्ये 
स्बतन्न कामे करी है 1 ^ 

शस निबन्ध मे सर्माबिके महत्व की बात पट हि राष्ट भेवेतनाप्रोर 
प्राम चेतमाङक प्रण्वर को छमम्प्रहप्रौर प्रा्शैवना षी प्पाश्या करते 
गंम्पीर अपाप किमा है, अथ कि एके प्मकामीन प्भिषषठ प्रोम चेतना के पाष 
हीभ्यस्तनै। 

डिल पे प्रोल्छाहल पाकर राष्टभे मके पंक लये प्रष्पर्‌ के बिञ्जातकी 
प्रबधारणा शरी एक लवा ररेस्यवार भो जेतना धादते धराजार्‌ पौर ैपिष्ठा 
का सूस्पाकन (मानम) भाटि की प्रतिजीमिा के सम्बन्पम पा भषिकठम 
धव्या ढे प्र्िकवम सृ" क सिए उष्म रपमोगिताके प्राषारपर क्रे । मत 

जिज्ञाल सेपयोगिवाबाद प्रौर डाभिंनयाद चये शंषलिष्टि होता । 

पष्विमौ सफएमैना समाज से बिकाण-सिदान्ठ प्मादर कं साव सुताधामे 
था इलये जाये लाक्षे के सुडनारपक्‌ जिकास केशकं का कापी प्रयाम 
जा। बेत्पूपादं भगरके जिकि्सषं पौर वर्मनोक कसेगके स्वापेष्रये 

पाचि पोर परे के पवत हर्षं मे प्रनुरग्भानसम्तं छात्र रहे पोरतम 
सम्म शूषिङ्ान मेँ देदवाम्तिक ग्यस्पः ध्रौर म्वबद्मर दोनों ही पेनोर्मे 
मह्पू्ा मोग रिया । बे उर श्ण पौर पर्क # दर्दुर ठक 
किर हप्‌ सेनो मेरे, प्ववावा भौर योजनम निन्तु प्न सुर्वाजिक्‌ प्रमाय 


१ अोग्डी रादट, "स्िलोलोख्िकल सिस्कशासप्' (भूयां ११००), पम्ड- 
२१७ 


भिर्वा पौर मानभी प्रमति २०६. 
कैप भिस्वनिद्ालब में प, यष राले 1८७४ पे वैक १९५१ 
ये पर्णी मृष हक प्या । पू-जिह्ान यं धपनी बहुद॑स्यक चोर्यो के पशावा 
बे प्रपनो पुय वैञानिक देन परितिभो के ठत्वाम्दरख के पपमे पिदाम्त शे मागे 
ड, जिसे रन्दो १८५६ भ “दी शोरििम पर फिडिकक, केमिक्क पष 
धाटक प्रः (मौधिक राखायनिक्‌ प्रौर भोगप्तक्ति सम सहेसम्ब्य, पीपक 
के धन्वेव प्रक्ष हिप ! स्यनयंगेजिकाठ के सारणा तिद्यष्ठं ङे उत्पाद 
सम्ेकपे। पपे प्रान्मिः कालम्‌ सहेते शिम के ष्ये ध्युरातिहाप 
जिह (पवासतुयन बाद रेपष्देषन्‌) कै घिदन्व के बिष्य प्रधि ४ 
पमिगृद्धिः (देषेतपयेष्ट) पिटाम्द श षमर्बन नव्या किन्तु वैरष्ठवं भौर 
छस्थाष्ठप्य स्कन्धौ पपने प्रप्यपग के प्रपाभसे जे सप विकाएबादके रषा 
प्रभारकं बन्‌ रये चिषषी म्मास्या प्रति मं एक निहि एण्छाघर्टि हार सूबम 
मे निद्र प्रण्ध्पाढ़ेङ्प्येश्ये पवी । उन्होने बहा कि बिकापवादर "वथमुष 
मह्‌ भरानन्द षे महान्‌ मूषगाहै, जोषमा सोणे हो प्रह होमा ) मेराबुरा 
ह प्रयरमे ्लष्देपश्म पजार म कृष्ट; पति पानद पमे मे प्ररत क्पिा 
चासद्ताहै ङि पिञ्ञान मजो छारे प्रषामिक अर भौहिकमाी निदनिताषं 
रदति हते है, के जि्ठाममौ एष पञ्ठिम सम्तान, सामं क्कि भिजलान्‌ भौर 
पंन के पिरिग कय ष पृषो धरार उट मिद यये ६ । ` 

मे मिद्ामृषादषये म कैगस सू-वितात भोर गीग-बिङ्धान के वर्यो मे निकलने 
जामा समत्र प्राममन मानतेजे बहन्‌ कस्म कारटावा केनिपम केक्पमे, 
भिदनात्‌ का एक स्वपषिद चिदधाम्ठ मावे पै उती पकार, मैते पुशवाकषैरा 
रिदर्मे कोर्णञाकन निष 

५मिसमत पूणवः निषिवि ६ै। भिक्ष पूर्वं स्पोमे भरपौ कौ भुत्तति 
फ नियमङे कपे, विश, नैरन्वये केमियम के क्षम्‌ चवनेकेषएद 
छाबर निवभषक्मपे । इ परवरमे पहन केवत निरिषव द, बटन्‌ स्ववंधिदर 
है) "कामं मिरु बटनार्रो य हम्बल्प (कर्पा) र्दी रषि निरिषय 
है बनिताव २ मृ एक काप उपस्वित दतयुप्रो फ पम्दन्प (पुष्ाकपेटो) 


क) पठा "पुर प्राबष्यद खन्ध, इयर क्य प्रामठीर्‌ षर पाफत्पिकः सणडे 
प्रन्तरबव रपा बताह । र 


२ जिम खलम प्रये द्वा धमर्त दौ प्रातोगयग्रास्ये धोक 
भति लाढाणष्टेः (भूवा १९११), कष्ठ १३६} 


र जरेड ताकष्टे, शदषाप्यूताम दूस मेर एटूत एषिौम्ड, दण्ड ट्त 


पिश द रेतिजत बऽ" इषया, पित संस्व्प्ट (यवा १८९५), क्ष 
६५५६ 


१1 + 


२११ भमी शति द्रा परिहा 


साकोभ्टि तै धड़ पदां येलेकर, बीगनसे होते हए भारा" प्रौर 
भादम-तेवना तक या कै वैयक्ीकरणण शो ददा ज्वी । जीवत ढे 
मैब्ौकरर शे जरम परिराति मनगुप्य मे हषी है पौर प्रातम। के बैयक्ठीकर 
की ठाङे "देवी म्पवितल' मे? इठ श्ठामिकः प्रमिकल्पना के इष्टि पे देशे 
प्र, रे भस प्रमिश््यना' क दक पनानस्यक़ हो बाते है प्रौर पारी वृर्णा 
क्म प्रम्त पाई मे होवा विद्धां देतादै। ला़ोष्टे ले ¶त सिवान्व षो 
जकासिक भाभार' कहा ! गद्पि उनके दिप भोिवा पष ने सफ बुतेरे 
हर््थो मौर रस्वा को पस्वीकाए किया क्त रपस के प्रपमे मागमाद पर 
दकम निमाएार्मक्‌ प्रमाब पा । 
एक परम्म जोगप्रास्त्री जिन्हे दन म बहुत प्रभिक हष ढला 
पश्धिलमेनिमा के केकर एडवरं दषर कोप (१८४८०-६०) बे । बे एक भोगा 
छास्ती (पसिल-बिजजान क प्रष्येता) पे पेभ्िलभेनिता निस्वबिद्धावम मे परोफेर 
भे प्रौर क परणमी वैज्ञानिक प्रभिपामों के खोय-कार्यो मे चन्हेने मग लिवा 
भा। बौ देर पे उक्ति भीव-मिहान मे माक के पिदान्तौ का म्न न्निव 
भा] एक्‌ बैड्धानिक केस्यर्मे रन्ति पापू-मगुभषिष परिकक्या कराष्ण्डत 
क्वा प्रौर स्वपे प्रपते एमे पत्य षो टत्व मीमां से परकर ष 
चेष्टा षम । दन्तु पाम्पततम के उद्गम सम्बल्बी उगष्ठौ परिस्पताएे जो स्वयं 
एनके तिप सथ्वी बहाने स्मापनाए्‌ बौ उनके साथी बौवषारििमोषीषष्टि 
पं घमहास्पद प्रनुमितिमां धी जो धी माग्यतापौ पर प्राणाप्वि णी जिनी 
त्रामाणिक्ता जी मर्हीजा पकतीथी । बे स्वयं प्रपमै पाद्यैरिक्म' के 
सिद्धान्त के ( प्रादि-मत मा चेतना सम्बस्ी स्यापना ) 'तखमीमांघार्मक 
जिषाएवाद' कृते बे निम्तु एतद्र बिजार था कि उनके पाय रके सिए प्रश्छा 
भरमाणा है । उनके भिचारर्मे बह एक वैकासिक मनोनिज्ञान $ साप-पाब एके 
कैलामिक दैवषाद कामी प्रातारवा। बे तिषषठशादके पठन्तं केरिए्‌ चे 
प्राभद्पकर धममदे भै ङि भैमिक निकाश प्रल्ठिपापो के केवत बतामरणा 
हारा प्राषृतिक चयन के ष्पमे प्रस्तुत करने के बजाय प्राम्दरिक एक्तियो के 
कादं केष्म यु पमम्पया जपे । 
वदनुघार कोप ने "योप्यवम के उदवम' शी ष्यास्पा एड बिष्ट प्रकारक 
वाक कल्मना करके की जिसे उम्हेने “पभिवृखि-खक्ति सा "वाकमिक मगा 
कधा पौर गिघरमं ऊर्जामा ररम कर्ये के कषिए उपभष्व सर्मा एामाम्ब 
सवौ पृततिकरमै की बिपिष्ट एकि षी। एस पति का निमे जीष-केप 
जिभाभि होमे पोर बीजांशे प्मिवृद्धि करम ये प्ररि करै है रन्ते 
चना सकमथ सनढे साज श्कस्प माना! पव पयर मम पुञ्यव दक 


विहासषार मोर्‌ मानदी प्रषति २११ 


रमो मभकेक्ये परक पा, भो जीर षो बेठन-मादक ए पनी 
शरधिजीषिता क सिए उपयोयी प्रायं जिमि कमे के मोप भताता है 1 

कोष ते शख धिस्य भय जिकाद न्‌ केवेम एक पराहत धमस केश्प 
क्रि, भरत्‌ भैरि्वा दे एि्ास बा भिक्तः शी प्यास्पां के एक गिपयङठे 
क्पर्मेमीषन््पि। 

श्वपधिति वैषिक पुखो कवे पलि मानमो एय्‌ षम पेर्णापोके स्मय 
मास्त ठग मुरो से घमिह शौ हो ए्वी भिनत मदप्य भो पारैपकि 
परर प्राठ हवा है । देष मनुप्यो के म॑, जिने घहानुपूूठि प्रौर॒उशारवा 
के ए, प्रात्मरा $ प्ख पर्‌ हीगी हो पारे हे पनिबायं है समा हो जाये) 
हलि पकार पष्ठिमो के वीच भरमाणा प्रधि उज्क-स्तर प्र मूप्प 
बाति पिके इण मदी दंग धम्य (पछि कमी-कपमीबहिगोभौ 
प्रषट हो) । श्यङे बाद मनुष्य भति न्‌ मस्विष्ड षी दामामिढ षष शय 
संबठन हयेएा दवा दिमा भादेना । एलस्वस्प पपन -मापए विना षामा के 
जिय के पर्क्य एमङे शमम्‌ इम कैमल शनी ही पाठा कर प्षयै दै 
हि छामाजिक प्रदो प्रौर दती एषो पे चिन्मे स्वां मात पकिकि है, एक 
घुल प्रात करं । एष स्विति म, विरोषी प्रह्मर की प्ररणार्पो के बीच तिर्शंव 
गृशमित हो भाता है पौर सागारएतव यह हया एष्शेहास्पर ग्दैमा कि फलस्थक्प 
हनि भाजा क्ये म्वाषपूरो पौर रचितं हषा पा पसर भिपरीव। पद देषा 
परवीर हला १ छि मानसिक बिस के प्रन्िप से परारम-निर्भर निःस्वाषं 
भ्पाम" षका संपट्ति मनःटक्ि प्रा्शी कीवा एषी । बरमु परिणाम 
भ्या पौर धन्ाप के बीच निर्दर जतम षापा एक पंदषं देता है 1 ^ 

पहा इष मोटी-मोरो रेषां मे बुडधि के स्र भागुरि स्टार भय एक 
स्प वर्युदे है, जिप्रा प्रागे अलकर परमगोदी शपेत भं जदा बत्मपूरखं स्वान्‌ 
रा । मनः एरीरिक समानस्धिर्थाद पे प्रमि भिषा के दिष्ट चैला 
षी परबुदूषी पिपो क एम हिदान्व शेषि षणे केलिप्‌ परोपपर्‌ बड 
फोर डा भया, प्रोर उम उ्तर्दै यहृष्प्टवाडिि दे तैरिषदरपन पौर 
मनोगिहान लोके तिण्ययतै विजारोडेयदवयो पण्छषरह नमम्छेवे। 
दिष्य जेन्ध षी पाधि मे दनर्े स्दमनोदाद प्रौर स्वहा पे बिष्थापष्् 
एक भ्रापार दैमदेयै दनु उन सदम प्रिद जिन्ठा इसको यी किरम विभाय 
ोचेतनादीो एषु पषमकप्यस्याके षये पस्तुयषट्‌। 

१ एषं (ष कोद /दो प्रोरसिडनि पोच दी श्रिरेष्ट (षपुपा, 
१८८१) पष्ट २१०५-२१६८ 

९. एषण नोप्टवोतरी ढे ताग हु पर चर्षाब। 


र्ष्य्‌ पमरष शेन आ इतिहास 
भाचुवंगिक पामायिक दुर्गाम 


“षस गाव को जितनी अस्दी पमस सिया जापु उवला प्रच्धा कि भिजात एष 
€ प्रौरहम मापाकोभार्च या दन धर्मान्न एवि भा मौिकीको 
हमारे मने बहौ एक॒ घमरया रती ६, जिमी परिणाहि ह्मे स्वम धपमे लान 
मंहोत्ती ह । बोस काञ्चान रूष मनुप्य ष्ठी एमिस ही म्बम्बिठ ठै बिषार 
को रसक्े दिमाग से पमंका उसकी प्राकांलापों की पमिम्पक्ि के स्पे 
इचिषठास का उसके कामो मिभष्णा केर्पमेप्रौर मौतिक भिहतो ठन 
नियर्मोकेक्प मे जिनके परम्त्ुत गहु रहता । राानिको प्रौए बर्मपारिज्गो 
को प्रमी पह शीडता है कि कार्‌ सौति तप्य उक्षा ही पवित्र हेता ६, जिना 
को गैतिक द्िटान्ठ। इमारी ध्रपनी प्रि हमसे इ शहरी मिष्टा मा 
करतो ६ । ? 

ल शदो के साप प्रोफेसर धगामिश ने डाबिन कौ रखना शी पष्खप्ेपन 
प्रा दै एमोपरप एन मैन दे्ड एेनिमस्ख॒ (मनुप्व प्रौर पपूर्मोमे माषनापरोष्ठी 
प्रभिम्यक्छि। का स्वामत किमा! उन्हामै प्रापे का नै केवल हप इ घक्ता 
ह कि चर्बाभि पमो पते किया है, पचपि चिषयके प्रतिपादणधे मै बहु 
प्मिक प्रषहमत ह। एक बिष्यमादी पदी के सिए गह षड नीषान्मीष 
बौदिक षसीपत णी प्रौर उष पद्मी के समस समै दादेमिक पूनरिर्पाणाङ़े 
शस्व प्रयुव किये । कार कि प्रगर बिह्धान एक है ठा परतिकर जान श्रबरममष 
प्राम श्नक्ी पोरे गावेभा। इस कायं के तिये नवे जी-भिडान त मिलेष 
कै मेप्ठ सात प्रसू द्धि, बावाबरणा फ प्रति प्रनृषू्हमः सतव प्पूतं 
परिषर्तम' पस्त्व कं लिए एंपपं उच्चरकीकते मस्व" वै एष परापही सोतिक 
प्रौर ररष्वषापी बारणाए्‌ संसक्ति के एमी सोपार्नो पर घोर मी संस्पाप्रो 
श्रालोभनाभो मे प्रवता ठे पदु हा छष्यी की! श्च प्रकार प्रानुरषिष पदति 
मे नीरिलां पौर सामाजिक जैजानिष्पे का एक्‌ पैसा कायंष्टम प्रदात पिया जिसमे 
जिषाठमादो-देजि भम केसर मानकीम उद्वमां मौर ईश्वरीय भोयनाप्रो षी 
छमस्यापो प हटकर मिक भोबन पौर प्रमक़ामीन समाजकी प्मस्वापौ पर 
प्रा यमा। 





१ पु प्रणाम, शषास्मृष पेण्डदी पष्माषेन्त प्राश याष शी 
श्रटलाष्टिक मन्पती' छण्ड ठेतीष (१८४४), पष्ठ ६५ । 


२१४ पमरीशम द्मा एति 


निस्सये मगर न केवत स्यन्धर्‌ के छमाजणाद्न को मरम्‌ प्रात्म-नियेरट 
भिवाभार भौर रणिता कौ परम्परागठ पां नैषिद्या श्रो प्य षणे 
भे। ‰हर व्यि मम्भीर, उद्यमी दर्दर प्रोर बुद्धिमान हय मौर पपे अण्वी को 
मौ रेषा बली बनये होष्षर ही पीवो मे गरम घमाए हो पेमी + गब 
पणन स्कोरी भर्व एप प्रकार छामाजिक ामिनबार की मेमि की ठ 
र्नं करघामने प्रापा तो प्रण्डै प्रृरिबारो गर्वो केनिप पह प्रह्मषिक 
मह्लप्रणं बाकि बेरसा ड लिए डाजिनबादर कम पषिकि एामाभिक स्म 
धामने रलं । 

पषठुुदधि के शमे मनोनिद्ठाप के जिका पे समस्वा पौर मी वीश्चहौ मयी) 
ष्ठन घरे मानसिङ्‌ श्न को अयतारमक वजार" के धिरन्त मे प्रिव शर 
दैणा भा । भेदन की म्यास्या परब बाट प्रमां को निष्चेष्ट प्रह करतेकौ 
पा पन्वप्रद्ाप्मक मबार्य॑ष़्ठी मनसणिकेस्प मेनहौष्ट़ी याती षौ ष्पद 
ध्यास्या शकमत्मिक सप मृकी गयी कि बहु जैनिक प्रावस्यष्ता्प्ो यी पूतिक 
लिए उभिते घाल $ जयन मेणीवके प्रन्दर माषा की पौर टटोमते शी 
ध्यबस्वापै पम्बठ दहै भौर एए कारणा स्वमाष्ः यभनार्पोके परभीन है । 
आषा स्वम म्यबहारम्‌ पा भवेव स्परे प्रम्पुभूशत का माध्यम भौर 
प्रिजौषण पय घान है । जब १८९० ते बेम्स का 'मनोभिन्नात' (शाकीलौगी) 
परक़ाशिव हरा वौ सक्ति अगनपूरो ग्यमह्यर केद्प में मनद मह प्रगनारणा 
हस्र कलाकधिव हो भयो प्ौरचेम्य के ष्ष्दो मे एषते मनोनि्ान तौ पक 
प्राकृतिक गिङ्धान" बने कौ माह्त्वाकंजञा प्रदात एमे । मन द्वी प्ति घम्बन्वी पह 
प्रषपाप्ला स्यख्िवारी समाजपास्मे के चिए बदरी प्नुषल धौ प्योकि एष पुनी 
माम्यता कै स्यान परद्ि मत्या शस्य दकु पौर 0 ुधि कम धतव भव 
पह पाबष्यक हा गपा कि प्रायिक शयत षी चैविक प्रपा मे पपबोयी 
परिजनो के स्य मे ठ्मुद्धि को पणि पौर बैडानिक विपि का हो भौभित्प 
सिद्ध फिया जापै ¦ भेम्व ने घ्यन्धर्‌ के इ सारे प्रिटान्वदा हौ कण्टन कएनेके 
हियैकिमने "ष्य" घ्व धारा ञ्जठाहै पौर बह पुम दी ष्यवस्वा को 
हे पुल" निमि कृरता है, डारिगेजाद का उपयोम प्रमाषठाकनी दैति कि का । 
बम्प के प्रतार मपुष्यक्यामन श्वः स्व॑ परिषतनों ढे एष प्रवु्मका 
प्ल है, जिनर्यसे कटीको मी प्रादि नियम के सन्धं प्‌नष दमप्यना 
कता । हेम शी जनये कि परिक के धाते है किन एक भार्‌ प हे 
जवे के बाद बााबरणु एनस मून करता है प्रोरभो उपवोषी हेरे टै 





१ बहौ, हण्ड १) प्रष्ठ १०६॥ 


जिका पौ मानभी परवति २१५ 


ेष्नेपुरेटै) वम्यते विषक्तो ध्याय करम बाली उपयोवी भ्वषम्ना्पो श 
पराणिडमर दरमे करे भटूप्य क विमित प्रयतो को मी मनुष्य के भातधिष भरी्रण्‌ 
हा ूम-पुशार' प्रौर्‌ शाद्ध ध्यबस्या" के दीन पपवहेक्षम पं प्रस्तु क्प) 
ष प्पे यु जिषार को देहानि" पदविवां पनत डद प्रौर इठश्ररण 
मरही 

“मारे दिषार कौ भस्तुपो मे दन एम्दन्यो को, निर्ह "डानि 
भाता ६, विपा यह है कि प्रपि गे नेदिक भोर पोन्द्ास्मक एम्ब की मौति 
ही, बाष्ठ प्यदस्या दय पन्ठरिर “अतिष्म सही है, दिम उनका हस व्यकस्पा ध 
गदरव नहो & । प्रास्नरिक एच श्य न्त्ये एक दार पदाष्रहो भानेके 
शार दमा पाया गाद नि रदकतो -कमसे कम रनर्जहे कृषक प्रषौतुवे 
हीमो इतने की मज वष शोषित रहे ई रि धपितेडन दौ भस्यु बनेट 
भिदाम्‌ सम्बन्ध से पतिः है धो हुपारे हारा पूदीठ प्रभाषोर्मे--प्रष्य 
हेते है। 

भ्वूसरे समते मे, यपि प्रह्धि शौ घ्ामरो हमारे अासो के कमप्वह्य 
तकि कप बीरै-जीरे पौर कटिनासे हौ प्रहस रती दै पौर सोग्पयरिमण स्म 
उषो प्रयेमा कुष शरलता छे प्ख करती हे, मिन्ध रेशानिक स्प यह प्पेलतमा 
पापात ध्र भोर परता कलाक प्रष्टा कष्ठेवी दै । बहु ववै म्ब शप्र 
घापद कमी भी दमा मदौ हषा । केषत मारे कते मत्र पै हौ भोभ-पेषप्ना 
षमाफ्रगीषे बाढी पौरे ग षके स्यान पर उचितं प्रस्यम हौ तत्मस टत 
पतिभविदै। भुना पष्य कठिनस्य होता है पोर बहुतेरे बैदडानिक् किसी 
भावदे बाद, बदन परतर पाति षहतश्ट है-- ष शर्य्ये रक्षय 
जाता) दि्तु एकक बाद एके हु विडय दमे प्राए्षस्त काली है छि हमारे 
थमु षयभरम्द भएमबरमे हीमा। 

^ बेकनानिक् होगे द प्रा्म॑ला असमानपीवी कोटी षष्ट &, हमर्पेषे हर 
श मौके दृषढेटापर्ेष्यवरह पौनेवादै किरम स्निदेमे पप्रौ 
शल्या कल्म शमौ है जो षद पनुमव नक्एला हौ पौरभ्ये पटस्य 
एकः दिस्कृल धिपिप्ट भौर एष्॑ती वि जानम, ओ यह दस्सबद है परर भी 
कथि धपता है । दिम्बु बाप्ववर्ते, हमारे भाति के सुषंलय व्यक्ोमे भी 


षह दमे ६ मो प्र् सषाम ठे ह 1 नरा भकिण्प्प पो देवत एवा 
शे पीर पै दपा पा १५५ 


‡ नितिन भेम्डः भौ पिपरि पो ताएता (म्यक, १०२१}, 
कदं २, १्८ ६६६-६४०) 


९१६ प्रमरौकी दर्छन श इतिदाष 


प्रव जेम्स के प्रनुतार मानसिक बिका धा निङ्पु प्राकृत नियमों ढे 
सन्शमं मेँ गहौ अर्त्‌ मगुप्म ओ प्रतवभिक धस्मिर दिमाग ङे शरादौतमकृ दिय 
काप मं प्रास्मिक बिम्मो, कस्यां भोर स्ववःसपू्तं परिज्तनो के धाक्मिक 
र्त्ति" के घन्वम्‌ मे करना चाहिवै । पत इतिय के फो नियम नही है । 


मूलत वै एमी बस्वुप्‌ं प्रौर परत्य समौ षंस्पाए्‌ कठी भ्पक्तिके दिमाग 
प्रतिमा की चमक भो जिकका हमारे बााबरणा मेको जिह नहीषा। भाति 
हारा स्वीकृत होने प्रौर उका उतराणिकारी बन बाधे के बाद ये जिननमौ 
प्रतिप फो पावृद करतौ है उरू ममे प्राबिप्करो पोर श्योर की प्रेरणा हेदी 
शै पोर पफ प्रगरिहोती चह्ठीडै) शिनु पतिभा््ो शनो निकाम 
रकी निधिष्टतार्पो को बेल द ठो बाताबरणा मं कवियनी बद़ती हु पकस्पताप 
दिष्वार रमी? इम भुतौतीदैते हैक भरी स्येश्वर पाप्रष्य की ष्यक्ति एका 
उच्तर वे । 

(छीषा-षा घत्य यह षै कि विकासगादका बरन ( परिषत्तत ४ निधिष्ट 
मामज म्ब्व हमारी भिधैप भानक्पी पे प्रघ ) एक वस्वमीमासक विदान्तं 
भौर प्रम्पक्वनदी। 

मानी एथिषठाख प्रौर मानघिष़् एष्य पम्बम्बी मह रोमानी धारणा सेकर 
जेम्पमे डाजिननादो सामाजिक दनी मे प्यष्थिवादि काभ्पमास्प मीनो 
दिपा। प्ेन्र-भिरोपी प्राङृविक भिम बिरोषी प्रर निषर्वता-गिपेषी हेते 
हृए भई समगर ए ग्मि का प्रतिप्सी भा । षरि पौ श्म खन गीतिको 
कै सामने एष प्रौर कथिनाईं रपस्वितठ की जिनी पम्पताक्ौ प्रमि पे 
विधाना भारषा षी । 

प्नुपिक सामाजिक मनोभिज्ञातं की दिणा मे पडती मषतपूर्ण देन णोन 
फिस्द के स धिदठाम्ठश्वै षी कि जिष्पस बे एक्‌ "मानसिक मोङृनैलिमाबा। 
जेस्टर एफ» भां हे प्य पिदा की धत्यजिक भित्दृव स्य रि । ए८्ट्दे मे 
छने एथना "शी पाह कैक्टषं पोर सिभिटठादयेलन (घम्यता के माणिक 
ठत्व) प्रक्रि हू जिसमे, नैषा ¢ उन्होने बहा “उपरी संचेषो भ्पादा 
डला प्रर नीम स्यादा बहरी बमा कर" उन्होने प्रती “दाएएषैमिक धोषिवामामी" 
(गष्वालङ समाजय - १८८६) को सम्य कमे शयदष्टाको वी | क्पष्प 





१ निलियम अैम्त, ण्दौ जिल भित्तीव, पेप्ड प्रदर एतेड ए पापुलर 
िलालदीण (भूवा, १८९०) प्रष्ठ २४० ॥ 
९ बही, प्रष्ठ २६१। 


भिक्मदषाड्‌ पौर पानी प्रपत २१४ 


महरी नौव शोयेनहर म प्रघ शो ययो पो । स्वाद वा उपरी हीषा 
व्वादहारिक सामाजि मस्या का हृत करे म सामाजिष चिणो के सिडम्त 
कषा उपथोपश्टरये श प्रद प्रकर एकनगये विङ्ात्‌ शोरनीव रणते षर 
प्रपा पा भिदे उसि “उन्तयनबा मापी या खामाजिकस्विहिके नूबाग्मा 
इष्नदन क्य निद्या कहा! एेरेनहर ने भारंद़ाददि प्रौरप्छयषा यही 
एम्ब छमम्मे भरं खादना मिमी वी । पद उकम घामानिद शर्य ष्वास्पा 
संक गा दषा दद्धि इरा प्रेप्विएव विष्मात्मष लाके स्प मेषी) 
कि य वस्तुनिष्ठ ल पावना पा शैदश्िकला के पये महौ प्राठा वैषा 
पस्जदतभायो सतौमिषठान क ध्नुमार पहने मासा जाना भा । यहं इश्छा 1 
ष्यक्िनिप्ठ भिद के पीद्धे पाठा है ग्रोकि यैयदिकता पा पदस्य ही पथां 
प्रर धीयत ६1 एोपेनहौरके मनोमिशानघे यो माषारण्यतः जेम्परके एमाय 
ह्यपा भारक यहु जितारमिला ङि स्ामजिर घंडल पालामामि् करपंकलाप 
के पाद्म ये विकासते एक शया मोएलेमिगाना। 
गनिन्निर पधुपांश्यै माति कमस उसे पमिके टीप्रताके भ्रा 
शष्ठ हार प्रिथ होकर, उन वण्यवर पौर प्रथिर छापाम्प कप्य कौ 
ठताप कषये इए, भिन्द धापृहिक इममे मृचक्हाथात्रा ह भवुप्य भै कषमय 
निस्तर षच की पि दी प्रमैठन स्यम भागुरि निरम्दर्‌ पौर ेषैनी म) 
ककमा के हारा भिम शहमुणिव पौर पषक प्रयाम किमे टै जिनके 
पप्पस्बर्प एने शारो पोरे दादर ओ भ्यादड उप्र पौर विधात परिभर्वेत 
ह्ेष्येहे। निम्यनर प्रागे हुए परिङतेनो को भति यै प्रिबतेम इमिणा 
खपवोगी ही नदौ षठ, दनु पव पिशाकर प्रशरिधील रटे ह प्ररं लापृहिक क्प 
म, जपि हम म्यधा रहते है, एसा मिर्पाणि के ह 1 परमेप्रापम मैपेन 
प्राहिवालदपहैनमगुष्य भा प्रौर जहौ हष एमङे फमस्वदप माम हपा दै 
बहा एत्र पर्थ लम्‌ मान्तो हूपा है जो एगङे पवि उना रौ निर्थवक्तिक 
पोर देहनरित है, शितना पपु विव्धाषलाप के सम्दर्व मं शियः गो मानना 
हषा 
माज षौ स्पहमकता दुष्यते पयु यीदन्‌ को मपारमक्ता षी व्रव्रिपी 

ड । गिह मानमि वत्य को अर्थाशो पदी षट्‌ प्रष्टटिके स्यात परषना 
कोकेप्रातता ४1 पपर हय जैन प्रथ्पिपोे कौ प्हरिक्षहे ह रोरधरये 
समाविष पदिपो द्म हृतम श्ट्काहागा 1 बोर-विलान दा नूपः निरन्‌ 
श्र्ठिङ कयन है, शमादणास का हृशिम शन । पाप्यत्ेम भ पम्िजीषभ 
केवल गरल का्यनिरोदष है पोर सममे दुन दा गिग पिरिनि ६ पोर दम 
पटो श्ना पपिर उवते होवा । सपर प्राति मे दनक विनाथ प्राण प्रब्दि 


रेश्य पमरीको श्णन का इधिष्यप 


हवी क, वो मवुम्य शे प्गि पूर्त के पर्णा दवारा होती है घौर एवन श्छ 
हीह) घारे रन्धं उलट बाते टै। › 

करने देल िबुदि या जैव कि विवाद क जस्यो रे निए परब षति 
वे षहा भर्त्रा मिमं ङ्धी मनःशक्ति नही, बरम्‌ तानाजि बावागरण 
मे भत्यभिर ध्वाहापिकि' होती १ । 

मनुष्य जब भदे कितनी मी श्रादिम धामाजिक स्वितिपे धापातै 

रशणा शा प्रयोग पा भो पपने माप मे एक प्रकर श्रो पर्त्रह्ामन 
मर्वएकि है प्रौर पमिप्म के जिए श्यवस्मा करमे गी प्राव पैदा रं! एयर 
दाक्िक फ हा कि उ प्रामस्वकार्पो पर तात्कालिक भूख की धीमा 
शेषौ र्षी । परिखामस्थस्य ओीभिका के पापर्नो की एषम इश्छा साबभिक होन 
कै बजाय निर्तरहो पवी पौर षष शक्य की पूतिक प्रयात पषठमाप्य भगं 
गयै । मनोभेम भौर जसी पुष्टि # शाषत दलों ही स्वम माभ के जिकास 
की प््तंधीपौरष्डौ एष्ट चेरेलेतोये पम्यताके भी प्रपुब छत्रे ६) 
कु सहा रकि मनुष्ण को मगुष्व से निपटला प्ता है, बैरा ही एक एप 
भेसवा रहा, यदपि एक रश्वतर शौद्धिके स्वर पर जषा पसु-भमत्‌ मे बलता 
है भस्पुतः पपत परस्वितव को बमामे रमे का एषं । 

स गङ्कान्‌ एंषषं मे पृु-षठि का स्वान बटता पया प्रोर नन श्म बदा 
मेवा? भिस्त पट्रार की चतुराई भौर पशुवत्‌ अुदिमत्ता बहव प्णकहेनैषरमी 
कग्ा स्वान उसी मानसिक चिद्ान्त कमी भविक दूरम भौर पर्त 
ध्रमिम्पछ्ठियों ते ते लिया । धंष्याप्रो श्यौ पमिषृडि भोर सामूहिक जीवा के धिप 
प्राष्य भाभार-शहिताप्ये छै त्वापया ध एष मिकाप्र मे बी ठेकी प। 
पनम पधु-पदतिगां प्रसहतीव वी, प्रौर धमर प्रन्पवा ष्डीतो प्राङृणिकि भग 
कारा समाज ने उनक्म पप्य कर रिवा। 

भारते एत परक्ार एष सामाजिक छंक्यः केकायको परमभपा प्रर 
शसते उह वमा्ज-च पा छामूहिक छामाजिक कमं के कोटे के प्राप्यं पे 
जिष्ाप्र करमे का एक नया भाषा मिपा । प्रदः उषा सत्पात्मक समाजपरान्न 
भ॒ केवल ममर्‌ पौद यिष्यिके घमामघाद् श्ना प्रस्रवा अक्क एषते 
श्रमरीष्टी पमाजणास्मो को नमी पोकी छो स्वेन्धर शाय प्रहित मिद्धपषादी 
जहो का परि्माग कष्मेष्ठो मी प्रेरणा शरौ । इने उदार भरम॑धान्िपौ वा 


१ सेष्एष जाडं, ददी ताएक सकट पोह सिकिलादरेषम (बोर्टत) 


१८६१३), प्रष्ठ १२६ ११०, ११५॥। 
ए बहौ, एषठ १५६ १५७। 


विकासवाद पौर मानम प्रमि १ 


विकारा निष्णात का एक दिप्यास्मक सामाजिष्ट सेय तं परिर्थठिह कमे षे 
प्रपामक्ो जी हमर्जन दिया । 

सामाजिक बिरतैयरय का एक धिर रीर्पयोी देन धिकययो के एक धह 
भमी धी --दैस्वियनस्माम बान दुह जैम्स एवन टप्ट्म जार्ज एभन्मीग 
दप, धरां भीष भोर पासन भेभेन 1 बस्रि परोद पूर्बर्ती 
प्ानुमेरिषयी गिज्ादौ मति रन्ते सामाजिक कनो प्रोर प्रादर्ठो ठा मात्र 
सौरिक भाठाबरपु $ प्रहि एारीरिक भम्यनुदून ढे एखारमङ़ प्रम्दर्‌ पर डोए 
रिया । भ्मबहारारमष्ठ विष्सेयणा केषा रणम बह दिलागा हि घामाभिक 
पम्बन्धो प्रोर धम्य षम्वर्यो ये निष्ापि पम्वर हठा है। उनके सामाजिक 
काप के मलोशिद्धने भे मनक प्रानुदणिद सिद्धमत के एति एक मया प्रौर प्रषिष 
पम्मीर शप्टिकोःएु प्रम किप} 

कषामारिक मनोमिन दुक मृश्यदैन यह्वी हि ग्रोन मानवी 
धनुमभ के धिक मे का्पत्मषक प्रौर मैत सथिमो का मत प्रदध्िव्र मिषा) 
१८४४ मे सम्हनि षष प्रोर्‌ ठम पाष नेष्टर्‌ बाई प्रौरप्रष्ं िष्मष्ठवारि्वो 
मे प्रादुएिक षिष्लैयए शो पर्पाहि भम्भीरता से गही तवा गस्कि रकण 
प्रष्पपिष माता जे डरिम-पूरं के भनोवितान शो पनासोधतरमक रीति ते प्रप्ना 
लिमाबा। प्रौर १९८०२ २ उनि स्मेन्यर् शरा गृब॑पणष्नीप छामष्री ढे प्रयोग 
कापङदाङङ्दापा, 

पमे 'मोगन पौरयोति' पे प्राहिम मनुष्य की भस्ठता मे म्य मनुप्य 
भी निमिश्च कियो के दिकायु का दर्णुन दिका पौर मात ढे दिभि् 
परिवर्धनोर्पौ-- विकार पंस्यात्‌, भिदा मागमाप्‌, माण भपप्‌, पाहित्प--~ 
ये शकर चेतमाङे भाम मूष कम मात जिद्धित णे कीचिष्टा क्री ष्म 
प्रर रहति भुष्टके लोकू-पनामिलान को प्ये चिक गीबप्राश्नीप भौर 
ध्यषहारस्मक लोप -ममोजिङते यै वीमि डा] 

भययकपर पि्दनो हास तिङ एप्प के णार पौर स्तरति केमये 
श्राप के बिष्छम केश्य दिनार गे दिद्गोषाय कयो एक नपा सामाजि 
भजो पदान प्रिया । प्ातूगदिषट द्या के सिए एके महवमकोतो षु 
षौर। रुं पोर रनक मापि ने ठता पि प्ोर्‌ मेतिश्ता शो ममत्व 
मम सामाजिके मनोनिशाते धृ प्रयोग रिया उददृप्ण निए, एम्वियभ 
स्मास केः "वस्पाएनङ समदा मे समाय के बिहान को सापारिष श्रजिवृद्धि" 
भागूपारङेएषएमिप्य पग केस्पमे देका | टस््नते रिथिपा डि नीति 
पस्य ब हषी विदद पदि क प्रपोय किम प्रदर एप के पाषा 
श्िदास्य षो एषनया एषु प्ररमक्एनेदे लिप किप जाहष्वा 1 ब्रापा 


९९० प्रमरीी दछन छा ईष 


भौर पर्ीकत्मक अध्यायो के विस्तेशणा के वारा धात्मा के धामानि निमस्िके 
स पिदा्ठ मे मीड मे समापिक बिस्युव पौर भ्यवस्पवि योम दिया । उन्हे 
शुष के मुद्रा द्वास्त को भ्रपना प्रस्वाम-बिनदु बनाया पौर उसं विचारक पष 
यप्र श्वामाजिकं सिडा्ठ मे निकसित किमा । 

शद्ग भीर योर वातावरण एश्ूसरे का निर्बारिव करते है प्रौरप्रपने 
प्रस्व कै निए परस्य प्राभिठ है पस जीमेन-प्रश्िया कोपरपष्ठि क्रमे 
पमन क सिए उद उनह परस्पर सम्बर्पो के एछष्दमं मे देखना बहिए्‌ । 

भ्ामाभिक्‌ द्रिवाकलाप करौ प्रपिपा ङे सन्द ठृ सामाजिक वातागरणा क्षं 
ध्रवं प्राप्ठ ते ह! गह बद्ुतिष्ठ सम्ब्पो का एक गठन है, मो पामान 
प्रयुमब पौर ध्यबहार की प्रधमार््ो मं दैत न्व्ष्साप मे शमे बीमो पपृहक 
पम्बन्ध मे बनता है । सामाजिक बाशावेरणा के धाम ग्यबहार मी सामाजिक 
प्रह्णि शा धम्बष्य--पा ामाजिक जीव का राम्बन्ब-- वैखा ही होता ह बैला 
मौकिक्जैभिक काठागरा के पाय मैपद बैविक श्विपाह्माप कमी पिमो 
का पम्बत्न--पा ष्यष्ठि भीमे का म्बन । 

" सामाजिक जीव-गठन --पर्माद्‌ व्यक्ति भीगोंका एक सामाजिक धम 
स्वन प्रपना बस्तु का मिप बाठाबरणा होता है भा बनाता है, पप्रौ व्यं जैने 
व्यचि जीणे स्वयं प्रपत बत्तु शय विधै बादावष्णा शठा है पा बकाठा ¢ । 

मानब पदु एक म्य्ठिकेस्पमे कमी भौ बाटाबरणा पर निपकं 
पराप्य मही कर सक्ता शा । यह निमशण सामाजिक संगट्म के शार एतश 
हरा 8 । जिस बोशीका बह प्रमोप करता ह, गिर धनमह मन्नदीषा 
उपलभ्व है (ामाजिक उक्छ्ठिमां ह 1 स्वम प्रपते प्रात्मा को बह प्रपते सामाजिष्ठ 
समू¶केहष्टिकागाको प्रपनाकरही प्रान्धं कर पाठा है) प्रपता-श्राप बनमे 
केलिए उये सामाजिकृ बलना पडदा । प्रतः अवप्राप एस विक्िषी गात 
करते र मनुप्यकेषषम म उसके एक बरम-बिन्यु पर पहुबै षो बणिश्दे व 
छो भाष मड पमम्ना होमा नि बहुरम बिम्डुपर बहौ तक पवाद बद 
छक मनुप्य कि समको सामाजिक रा ढे एक भैमिकप्रमेकेश्पमे स्वीकार 
श्ह्पा जत्रा ६ । धब कृण मौ स्वमा छामामिष् गहीह एतेना घामिक हौ है 
जिना बिज्ञान । कमी मयुप्यको ममुष्य पि षमृहो श्रो समहं स शरप्म 
करते बालो छमा ऋ देखो पषसता ते नही पिठ, सा बिननान्‌ श्रवा € 1 
ग्जिन मे शाः पकी परन्तीगता बा रष्टरीयवा नौ हो पर्षती । वैवानिष 


१ बामं एथ मोद, "नाष्ण्ड हेण देष्ड सोतायटो, म दौ ष्टेगापष्ट 
प्रोह ए धोगत शििबिरिस्टिः (रिशायो, १६१४). पष्ठ १३० 


निष्धाबाद प्रौर मानगी प्रमति १२१ 


पदति श्यै प्रसम्मव बमा देवी ह ¡ निजा प्रनिषा्ं ही एक छाति प्रनुपासन 
कोष्ठी भिभारकएते बालो करो समेट मेवा ६ । वह खी ठरनायारी सीमा 
केसर य गोदा ६। रा हर अनह सर्य होना भागस्य है पम्यमा षद 
म्ानिक नही हाता । क्तु जिद्ठात सिकाहरमक है! यमी एकः निश्श्वर 
प्रपा है, ओ शम भिन्रक्म लेती रहती है । 
षप्रकार सम पौर पारमा दम्बन्धी मीर के सामाजिके चिदा कयै 
प्रणिति उमक़ेद्राए षय स्यम कनि या विङ्नके प्रदर्तीकरण मे हक 
ए मानबी मार्गो मे ए्वाचिक सादिक दहै। 
भीड़ प्रौर सामाजिक मनोनिद्यान मे उनम यृहयणिमौ नै षष प्रर गदि 
क संप्वाष क्म प्हृणा कणे ने मानम जिकाम का एर घोपाम स्वीकार किमा । 
मनूप्बो फे पपनी पस्था के पणि पोर पंस्वापर के मनुप्यो क प्रवि परत्र 
पुष्लका मदप्रभ पाकि बाहाषरण का भी बदला भादा पाप्रीर 
हामाजिक मूभारक़ो भविक पिभा काही एष प्रतार भ्रोर परिणति माना 
शासका षा । 
एष दापनिक समूहे पमी दस्म तक्ति भोर प्रौप्ोपिष पुमां 
शष्ठिप मागत बे पौर णिक, पथो, प्रौर राजमीतितो ढस्प प्रये 
कमपकलाप षो भिषा $ सिदधा्ट का पेदाण्दटक पुननिर्माण कदे प्रपतने 
भार्प॑दाहोप्रमाप् मानै) 
धटे भोर्टीनि बेषदेने एक पवाद । षे परारिर्‌ म॑स्दापो सम्बन्धो पने 
दिसते षिदम्ठो को प्मोर शापारणएव वि्नानष्टोही निररेस्य जिजषा भा 
षन मानष, इस पर्पापिक सतिप प्रह फे एर्वापिह ।निप्यिपिः प्रो 
प्रहामाजिफ प्स्व भे) पूरी भोर उनके गिदान्ध षडे निषान्पूुंवेप्रीर 
इनक्मस्मि बद़ही प्याक्हाण्किषा। दैवा प्रवीठहोता किमे स्वयं रनर 
भ्व्य प्र्‌ वित्रा प्रयममं भान हैटेये चैर उष॒ स्पष्ट प्पम्पव्‌ भौर 
उ्डतर दिशा पद्‌ उन्म सपना प्वीलसामौयह्ा जिन्न भरनी षुष्र्ष 
जं रहोग बटो निमुनता पे बिस्ेयण स्वि । छाभस्द द उन पर भवनद्ररू्वादी 
दनक जीद-दाह्नोप पा ङाकषाशी स्सदा प्रमाप णोबन्खि हापरिस्स 
भिष्वदिधालरमे मान्यभा पोर उन्हे वेक यै माई गोरर पोर वैव ढ़ पम्वर्मत 
धपमा शानि प्रभ्ययन लापे एणा 1 १८६२ म दिषो पक्र हषोने तएप्रत 
सिषामदासो निम्दे भा पर्वा प्र, सितितन शरणाम्‌ द्िामवर लाघ्रू 


१ भ्ये एयर भीष, श्ृष्येषटूत प्रो बोट एत दो नाग्नैन्य हेन्डुरीः 
(िपनपो, ९६६६), इष्ट १६८1 


२२२ श्रमरीकी दन का इतिवा 


करणा शुक छिव । उन्होनि एंस्पापिवे प्रदेजी प्रसास ( जिसे उन्होने बाद 
'सौमाम्त दुष्टि का पर्वप्ाञ्न कहा ) प्रौर मोर के धर्मन देतिहासिक मरषपाद्न 
नो से विरह यिः । उनके लिए सज्ा निज्ञाल श्रणात्मकृः बिन्नान पा 
कारणता सिमेयच्िक भोर सं्यो' बो प्रौर एष एथमुज पातुमंशिक सामाजिक 
विज्ञान "वा्ततिक प्गृटम मे प्रापिक षि के पचित फल का पता भमाता ।१ 
उन्होने न्ये “घन्ध्यि" मनोमिञ्ञान दी मामन टो बुक दिल रे स्वीकार किमा पौर 
प्राजिक प्रण््पाप्मो क्षी भ्यास्या प्राहृतिक नियमो के सत्वं मे न करके, हिव गा 
उदेष्यपरक काबो के सन्दमंर्मेदधी प्रोरषल दितो शवे म्पास्या उनि उतके 
कारणाहमक धम्बन्णो मे पर्यात्‌ उनी घामाजिक प्रमादात्मकता पोर निपुणा 
कै सन्द मे शी । उनके चि प्रमा्गो मा बिष्स णो पटस्य होकर बिस्कुष 
मिर्गेप्िक सति धै दे्वाजा सक्ष्ठाभा । कूरणादाके भिञ्जान ते प्रतय प्रमति 
के सिद्ण्ठि के लिए उनके मनये केवत चिरस्काप्णा। खोक पूप्रीषारी 
प्रादर्तो कोने "वीमधाद' पा निषाता रमे विस्वा के पवघ्ेप मानपैषै। 

धपते धानुर्वपिक मथंघास्र का पहा महत्वपूखं प्रमोग उन्न श्रौ पियदी 
धौ री तेवर कास; दैन एकोतामिक ष्टदयै इन दी एषाश्पूएन पाफ़ इम्स्टद्पूषन्त 
(पबकाठमय भम क सिदधात्ते सस्वापो के विदय हा एक पर्व्ाज्रीव प्रम्मयन-- 
१८९९) पे किमा । इत प्रन मे उन्दनि बतापा क वतमान पका बु भगं 
भ्ये भाद्तं प्रौर प्रशचिमान--रस्का स्पष्ट प्रपम्पय' पणौ शेल-कूद मे इषि 
प्रौर णोपक भरिवि-- ङि कल के पोटा बग के प्रबेप है जिषमे भास्तबिक 
भीरा बीप्रौरबोश्रूटमारमा गुमभामी के श्यरे रिम्दा रहवाभा। एपभां 
हारा परा्जिक च्छि के पराजीन प्रमोपघे हकर प्राभिक परिक षत॑माते प्रवपनं 
तक, दसष्े कमिक पठन कौ कृडानी मे बेदसेन श्ये एक प्रसाषारण पवर प्रशन 
दिप कि जिनं वै डाजिनबादी पदतियां घमभ्पवे बे उलका प्रमोम सामाजिक 
इतिहा मे करं प्रौर उसकं साहो खमकृतीन प्रन्वावपूर्णं भीर प्रकारणारमक' 
गं पम्बश्वो को प्रठिमापू्ं पाशोचना लिचधं । कारलातमक्‌ प्रिपाप्‌ प्ौपौगिक 
पणस्त को धौ, भर्वन्‌ प्रापुनिक पानके के उलत्पाररु श्रीदो शौ । भूप्य 
पदति, को प्रौर पूजी बिनियोवमें बि्दोय हितीकोढे पुरानी षंकृतियोके 
प्रनापिक, प्रदुत्पादष भकष मानवे चै । 

मेबङेन का पर्ष्ठा इ पिक्मनो समूह कौ सामाष्य प्रवृत्ति का निपत्‌ 


२ बार्न देवलेन, पहार इड पएरानानिष्त नाट पेन पवसमृ्नरौ 
शापम्त }' भवयाटरलौ अर्गल प्रोद्ध एषारतोनिस्त, अण्ड १२ (१८६८) 
प्रच्छ ३९५ 


जिकासदाद प्रौर्‌ मागवी प्रयति २२३ 


प्च) सदहिरः हक प्रमी सचि क्षो धीरे-दीर परुषि पिरयो ये 
हटाकर रपण परा्लोकनाों क्ये पोर प्रौर छामानिक्‌ बिका इराक 
छापाजिक पूनम की मोपलेषये। 


हताश प्रतिवाद 


हली भारम्य की निया एक दैप म्पि कोनिरप्रा बो चिरे दम्भश्च 
षताह यामी दी कि शपूषार के पपपर भपमा रबहहीकदो मौरष्छकाण्पनो 
पविशानत  ति पौर परिज्नका प्रेमी षा दनु जिते यद सममा घौ 
हिपाषाद्कि उसा पपना प्रर घामाम्यत ममूप्य भाति षा यौवन कयो पो 
के प्रिकमेमे है, जो मानता निकत्रयङे बहरदटै भोर यहु जीदन र्वाकादएेषा 
क्षवहैमो प्रतिस परपिष पभराभष्ताहे निकट हि) ृवदस्यामे, पृषहपुद 
प्ारम्म शोभे फ धमय उन्दने दे सत्माहये रागवति ब्रबेए प्प धौर्‌ 
उगत भिषवाषए बा दि रह हवादद-हारस (यषटृपि निमाख) मे एना दै । एष्व 
शेम माज ये परपना दूटवीचिह जोधन, साहसिके पशद्मर का जवम पोर 
भाठिषम निवास उण्टरति बदरे प्राम-मिष्वाध $ शाय परम्म एष प्राग 
कधि एक्‌ राजतत बनमै बते) सगढेप्रषप्मेका को(पम्नदपा जब 
उठते देषा दि परीष्ट दार प्रोर उने जये ले हच्चपीयौ परम्म हुए 
परस्स कष वे शोकठान्निरु इत दिष्कु प्पर्पह पौर छाम पाड्य 
प्रिषाए् गवृ वनाहरे ड़ाहै टि हषर मे मष्डद्मसीग इपिष्यद्न के सहाद 
भोटरेहरका परस्तरीकाषकट सं) सदेव पमे दम्दश्व मं रभ्‌ पापाग्यतः 
शोतम्त के प्रति भी सदु एाजनीपिक निरा हुं स्योद्धि स पापाबीनि 
परे सितम क्ये भाति वे गम्मीर्‌, वानि विदो कै प्रापाग प्रएणनपे 
रुष्टरीप तोष्य के निर्मा कूर बेदुष्य कतो । लैध्नि धर उस्न जै प्रषामिह 
पनङ़े उपस्दाण्ङ णस पत के पस्य म-- 

“व्या पृस्यवा षद दढा, स्मो पोर पुणो शा यहु जम चष्नाह 
प्रह जितने दे पूर मदन मिरे बे खे ह? परयो निरामे उमे दषाप 
उप पयनाबे दे । रतने न बर्मन दमेवदापापौद्‌ चिना पमि 
बरी उनो ठौ पचर निप्तमष्टि होतो हि इ्ननी सथिर्मुततिमातन्‌ र 
जीने शप्‌ मी मही 1 


१ हेरी चाफम्त, "देनो, देत प्पैणिन निन (गूह, १८०}, 
चष्ट रे) 


1 प्रमसकी दर्षन का इतिप 


एष सैमैटर को बो निक्यसवादी सिदधाम्वा $ मिस्यमापराश्वे ष्टे पद 

पात्र उच्चर दवा ई-- 

भाप भष्ययो प्रति ङे कटोरहै । जन्ये वै कमी पापका कों 
नुहान नाह स्पा । बे मेजनिक बीवनमं नहो है । षे तो मवदाघ्ा मीन 
& । भरगर होते ताभाप मे उनकी बुधि पौर षणु के प्रपि भडा फराह 
होता । प्राकिरकार हमे खनका कृतङ होता बाहिए क्योकि शठ उदास पंसार म 
मनम्यम्माकृग्दे प्रगर बन्बरो घ॒ उरं भीय मे उक्ला न मिला होवा-- 
प्रौर मापण कापी । › 

९ वके, षष्ट १०२१ १। एक प्रस्य पाद, मात धोए, मताहुतेदूत का 
एष प्ाहित्यिश जो ध्विश प किती एरष्मरो पदक प्रभिलादी दै, एत प्रन 
भर उततर बरौ बम्मीर्तासेदेतः है डि क्पा तुम स्वपं तोष्ठेहो नि लोष्ता 
र्बा्तम पापस है प्रौर बालिप्र मठाचि्यर पश हृप्रा है 7, उषे हारा ब्यक 
मत प्षापद बहीहो भो प्रारम्प का उप्त परमप णा-- 

धरे पेते मामे जिनके भारे ममं परावद शनी तमात्‌ बत 
शप्ता हरै । पे निजी ईष्वर के सिद्धान्त, चा प्रगते भष्म पा भुत-पमं फ तमान 
ह-पेते जिषय जिनं प्रादमो स्वनबत- निजी जिमप्रं लिपु पुरशित रलता 
है । किन्तु पापते चूहि मेरा राजतीक्तिकि मत पूषा है प्रतः प्रपद्ये बतापा | 
वैद केवल पह प्तं है छि यहु बात केवल प्रापे लिपु होपी पमे प्राप की 
दोहरा ही, न धितैकह्‌ कर शयत करणे । मै सोत्तर त चिषयप् करता 
ह र्दे स्वीकार प्ता | र निष्ठापूरवंक उतषौ तेदाप्रौर पषा कक्या। 
मै इमे बिष्वास कता हैः ्वीडिथो कुप पप्र पहले हो हषा है पठ्‌ पुपर 
पछसक्का भ्रनिबार्य॒परिणाम प्रतीत होता है। भोकतत्तर एष तप्य को प्रहुत 
कष्टा है ज्रि अनसापरा्य की शुद्धि श्य शमर परब पहलेते अवाह णाद) 
पह ल्प हमारी हारी प्रम्प्ता प्राप्य है । इत्ते त्क्क होमके मिप 
हम जो क्प शर तत्ते ह, करना चले हं । यै स्वयं सषा फल देखना चाहता 
हि । स्वीकार कष्ताह क्रि यहु एप्रपोयहैः सन्तु पहौ एष्ट गिति 
सपाज प्रहरण कर स्ता है चो उसके रहए करते पोम्य ह । गते कर्तष्य 
कौ परमाच इतगी कौ ध्यापर पारलाहै जो रउतषठी बूसप्दृत्तिो ष्ये 
छम्तुप्ट कर सङ । एकमात्र रत है, यो प्रयातत कत्ते या बोन्निम उ्टापेढे 
योभ्पदै। हृरप्मन्य सम्मद कृरम पीपेजाताहै प्रौर प्रतीत को दोहुएनेत् 
भैरी ईः शचि नह है । समाज ष्ये एते पयो ते उलप्पतेरेन्न करमुमे कुप 
होती ¢ जिन प्रति केर् मी प्प तय्त्व लह रह सष्ता। 


विकादषाद प्रर पानद प्रयि #॥। 


चोदन देष रता हमर पम्छब्रे पपषे को दितापाहेमै षी 
नेष्टा श, किन्पू उने उण्‌ उामाम्य हाच के श्रो छम्बग्पी को ण्ट 
प्राठ की हे 

८९१ की अषरन्स्त मन्दोके परमप ठक उन्हे नह छम्य पा, भैषा 
उरते दद्म कहाद्िमे प्रोर रमस्य पी रल-दम्यनिवो के पठि भ्वम्‌ र 
दि गवैये घोर्‌ ह्‌ छि बोस्टन प्र शाधिर्टन सेने हो ्यूपादं ढे "सर्य 
सोर्षास पटीर { सूदा काप्पापार्केमः ) केदुरि ररते कीपटीर्पेने) 
एठिषट दा एक दैप दन निरपिठ कके णो एत त्विषि की व्पाक्पा कठा 
चा, कके पोरे जरं शक्य प्रारम्ड बोरिक्न-एप्टिमे पपे को स प्पिविकि 
प्ुदूत अनाम व द्र्य दषु । रन्होने षाया हि प्राश इिष्टस सशीहेङेभ्री 
करण प्रौग तयक शीष शोमपोर मयके बीच र्शाच्णो काणक है) 

" प्र्लागिचं सिदान्वे एम माम्य वैद्वानिक हिदम्द पर भागारिवं है कि प्रि 
प्रौर ङ्य हा नियम प्रहतिये षषमागु हद पौरब्हद्प्यु कीर्त्‌ रन्‌ 
पाप्यपोमेहेपकहै जिनकेषाए पूवक स्वापषहेषीह) 

“प्त पू स्पापतां तै पाएम्म करे पहता निममनण्डटै कनि मनेगी 
मामि श्रकिपपु जीषनषह्यी स्प परतः एनकमायौ षी वापे पर्प 
टेष पपात मे पर्दर हेषा, विद पटपषठमे प्रतिमे स्यं मगोयप धामो 
कमश मा प्रयि शृता प्रदाने षी §। 

श्ववि्ार भागवी ठग शी समिष्पस्पो मे दै एक ईैभोर निकार 
पराम पौर पपि शरत सोपान रदो सोपानं शय न्द रेठे - पम 
धीर लोम । मय भो दस्यनाश्यो एर्टपित करके पुर्‌ प्य खार म विर्वा 
इर करदा ह पौर पशत एष पापहा विकारा है धोरशोम गो 
बड पौरस्यापारम स्ककोषप शष्ट) 

शछम्मवणः किरी समुदाय के हामि भायोरन है पठि उदो ऊण 
पोर पगत्व के पनुपात मेही है पौर उणा केतीकररा उपशय शरधिके 
नुगा मेहोटादै) पठः माली प्रम्दोधन दौ पतिं दीद हेते परनमान 
केश्दिव हते § । देदरौरूरण धौ परारम्मिर्‌ पवस्पाप्री मे एप ब्रह पाप्णप पवीत 


^ शेः दिद ह \ पयर बुरमे पला पद गही, एज्‌ नपे मनायी 

बर है गनद प्षनिरस चिदा है 3 हम प्पे काल रे परि रण्डे, धोवदी 

शो { पनर हारे हष दो हार्ना ह, तौ हम इटि वै मर 1 पवर रदो 

विगवहोगौहे, वहम कि ष्यनेवूत्च क्टेबम प्रपयहु। र्तिजी 

समे, रमषरडे दा रिदादत र्ते षनेषण्ते 1; (बही पृष्ठ ०१०८) ४ 
१५ 


९२५९ भ्रमरी दर्प का दरि 


हवा 6 चिषे धा स्या सर्वभिष घरथता हे मायं पाती ्ै। दद्वुार, भाषि 
भौर विद्रे हुए सुयो मँ कल्पना स्ष्ट होती & प्रौर सतन मानसिक प्रविकय 
पातिक, चैनिकृ या कलाटमक्‌ होते है । घवैक्य भ्न के सान-पराब ममक स्वान 
पस्कौमप्राभावा है पौर माषनात्मश्‌ पा रणारयष मठन्‌ कै सपर भाजि बटन 
के हामी होने की प्रगृचि भादी है। + 
किन्दु हेरी माढ्म्सषो टैसी रल ब्याङ्या से कोर घन्तोप तौ पिला । 
उर्णक्य परपया स्वमाषदेठाना फिबारो-बारी धै घोमप्रौरमयरखत एरहामी 
ही ठे बे । प्रपनापभराषा प्रमवबे न्स ^्वर्षपेटः की माति परपगै वैवृष् 
जनको एवित करौ रमे ्यतीव करते प्रौर दैप पाषा धम्यं ष्यषस्मा के भण्तिमि 
ष्पद भ्यस्त होने श्ये निराणापूर्णं मभिष्वगाणिपौ कले मे । सर्जाङे केलीकएण 
श्रीर कषयकी देसी बरहर, पनुमषश्यी प्रामप्री बी दिततु वे इतिहि शा 
मदञानिक गिम" गह भी । उल बिथार जा कि शक्य के सिदान्ठं को डाभिनमाद 
काप माना भा सका भा पर्पोकि रसे हवते सस्ते का पतिजीवन प्रमारििति 
शो बा । दिन उन्हुं स्वयं एवित के एक गस्ठमिक भौतिक मि्ञात की ष्ोम 
धी प्रद्‌ कोई देवा पूभ बो मौविक मिलान जात निपर्मों ढे सन्द में 
मानी पगूमगप्रौर षृव्षसकषो माप पके । पल्ष कायं के जिए उपथरण्य 
ऊर्जा का चिडन्ध ( एद्रोपौ ) कवल उष्मामधिष्ी क दतरा निपम बा । इपिषह्ष 
का स्ना निहानऊर्माकेक्षपके प्रिदमन्वष्टो पौर मी पपि छाषारणा एषि 
क पिङाम्ठ भं संपिल्ष्ट रेषा जो मानौ कम होवा पणिष्ठीप प्रषिष। इस 
वं भषों हक बे प्रपते धमरालीतो पर किरी परब की वे पपच", निम 
प्र न्वारा्मत्त धि किसी “पनुहारवादी णार पराजकतावारौ" दी माति बिना 
केषिनि कौ पौरस्य बोपतम्य लाभे बद्नीपेरणा श्वी प्रषीसाकएते, धपे 
मेषठीङ्गेषे। 
जव भे इष प्रकार सामाजिक ध्यवस्वा च्य टिरस्कार कष्ठे हए जाव 
(अगे का एक पाज ) फे माम प्रभे धिडार्ोको प्मणिठकर एवे 
खोक समातहो दैवमरकौ पावि पणिते उष्टं डुजाकर विगप्रवाशा 
मौनं प्रदान क्रिवा । १८०० पे उकं मपतौ बहत के पा जानापङ़ा भो बनुस्वम्म 
सोरश्यीपीद़ा ममरणी जी 1 पथातक उन पक मर्वहर त्वपर, पष््पीके 
पृ पागहपतण केष्रयेद्रहयि के जीवक प्रति हरिनफ्ोणा शौ "म्बौ 


शेठना' भागी । 


॥। 
१ शररत, (रोल प्रो तिभिताददेव देष ण्ड, देन एषे 
शमन शिष्य (सपूवा) १९४३); प्रष्ठ ५९६० ॥ 





किक्मतभाद सौर मानी अरति ष्ठ 


वही वार, पणि कौ भंक-हस्या ज्प्त हो ददौ । सातवे मर्ते पिनि 
को नग्न हेते पनुमम हिया, पाकम उर्वो के एष दन्द कपये कयो 
भदम्य बलत के सागदती कोट रदा, ग्ट पोरष्वस्ठ कष्टौ थौ 
जिते एनौ अर्यमा तै निपिव दावा पौर द्नादि लए द्यूर्णं बनने डे 
कषिएध्रम श्वी रौ शौ; समाय पंत हो पया, कन्व पि बसे 
मौनु-नान्यं कप एक दय्य । पौर उरक क्किति जभार माज जीममं के एक भाव 
मे भौर उठमाद शोचो विशपिहष्ो पमा) हामशजिक निक्न्हाकी 
सामान्प पीठा भाप मौपतिपा स्पष्ठत छ बत पदी ) पममाब ( स्टोपकिविम 
छापर सर्मोहम ना । पमं एर्वाषिर मातदीय जा! दिनयु यह बिचार ङि मदुप्य 
्मँक्ेवत पि पौर पायम स्वमागें यँ मिहे बाली पाष्दिकशटूरवा्े सी 
जेवरी प्री दतनादेभैमे दसी मियीदैव कोषुषीयााम मिम पक्ता 
षा पएकषस कोप न्दी माणा भा पका \ बह देती भुदभमंनिष्दा है कि 
शौ पुलना सै पु प्रनीष्वरथाप दैहेठर १ । भैषा जभ कदा दै, हषषर् पक 
पाकं हो पशा £, णु बह कोर म्पि नष हये सकता । ^ 
फिर, १८८४ सै णद उषी षलीषठे मृत्युहो गयी, हो रक्थै प्रषनी 
लालाङिक प्रौर एणनीदिक किया त्वाय दी प्रर प्रप्र कपा कि एगिषा ङे 
लिएरे मर बृषे पौर प्रते कदाष्ारपिति जोम ता प्रम्‌ के साप्‌ पूं (पपि) 
की पातापष भहे मयै बहा इ तिर्गाणगा षैवाबे उते कता पषन्द करव 
के (ततव पान्ति मिती, पनिगायं को एक्‌ स्ठम्ब रीकृति पोक पौर दुङे 
पे-बधिपरम के रोरु कक्‌ कृषिस्वान मे प्रागे शमाभि पट कैपपरमष 
मू बगी पिम्ट लोदैन करौ प्रतिमा शष द्टष्षेण को बड पमाणोतपादद श्यै 
ष्य कठी है । स्व पूकेते, भिसि मैप करमै केशमयहो धनप त्व 
षं प्रौ मौम भावव के प्रवि एक स्वत प्राण्र भी उत्तर हुपा- लाव 
पौर बिम्बो म हभृठ कलाप्यक प्रौव, ङि्तु जिद्के परिराम जेशित कं 
गेव भैरिषनीदे 1 एए रोरी ठट्कठा श्ट वैष्र दे पूतेष 
सौरे प्रौ पचागक उष्टोते देषा ङि मप्यङातोम एतिषापर, विद्ते हामडं बे छव्‌ 
ढ्री भौ, छनके पन्दर्‌ बोभिठ हो रद्य । उम्र माष्ट दष्ट मित पष्ट 
शृ को रना की पोर डने कुमार भरियम को एकि बेठमा प्रायो । 
वे शिपुष-य प्रौरकुपाती परिव" कषद क्‌ दूज पये, शो एचि जि 
बौद प्पते दोगम्दाहुपा महूहष्ठेप,दे गरदा इषा ष्यं बे 





१ देन पाडत "त पुरृकेपन प्रो हरत पारत" (शोरम १६९द्‌ 
शष्ठ रेनन्रम्य) 


१९२५ पमरौषमै श्छंन रा इखिख 


महमूख कसते ,डे कि उषरं देसी चया बहा ते जवी चिक वे निदि तदी कर 
प्रये । चामतकमरिक शि फे बमा पे रर क्रुमारो मरिमम टी पाणं 
उपस्बिति को समम मेँ धागा गही मिली चिन्तु गोगिक कला ध मिस ! 

धीरे-कीरे प्राम्तमे छि काएकबङा ही चतुर धोर पगचिष्ठीन श्प॑न 
निङ्पिठि श्या । परब उनका बि्ारणाकिषक्ति ढे प्रोपाो" मं प्रययिहौ 
एषी ६, जिसे ऊर्णा ऋ उदमासी स्पे का बिषास भठवा सकता है, किन्तु 
जिसका मागमे प्रगति $ परम्परागरत सिदान्छो से कोर घम्बण्प नी । इस ग्रयान्त 
तै परिदा को पौिषी बता दिया । उक्ते दैविहासिक दुरूत्वाद्यंण ( प्राश्पणा 
मा दवाय ) रौर पास्छतिकि त्वरा का एक धिढाम्त निरपित धिया, जिस 
परन्ार पराप करे ®घोपाल' ( देष तरख बामवी भिकीसं ईबरीय भौर 
प्रषकाषिक ) क्रमिक पूर्यो $ भनुकूल होये § । सचिवं सनता के प्रगुधार 
अकृट हं । पते षर-अभृत्ति का पा पु-प्कति शी स्वारित पियो दारा 
निवन्छरण का “खेख' पुग भा जिम परयो सं पुष्य प््लन धी र्णा थी । (षरा 
प्मास्वा शी पि के प्रम्दरयत पामिक कालना फिर मरकाशे फिर बिगसी 
काल भो यिष्तु-बत्तर ( डापतेमो ) के पानिष्कार प्रौर स्ापारणा उमयोगधे 
प्रारम्म हमा । एक भल वरीम सोपानः प्राने बला बा भव जिणाए प्रपती 
शम्माषनार्मो षी धीमा" कक पंन जायेगा । इसे एतिहाय फा प्रन्त हयो बायैमा 
कितु ्रषश्पषठण पा पु्ध पणित का एष पनित्ित कास दब मी बेर णै 
भिरखकी मानुमविक मस्तु की मजिय्यारी कएना कष्मि है । दा ह। षष्ठा है 
किर्या निर्बल म पम्भाष्य बिषारकिषागरमे प्रबिष्ट होकर यन्ते 
जाये ! किग्नु-- 

परमर इसके पस्तिमि सोपारलो के प्रस्यजिक तीत कमयन मं निचा प्री 
च सजि जिघामककाकानकरताणै जैमाकि बहप्न ईैपौरं प्रयु 
क्रमापु ब एतेक्रोन रो जैसा ही निरमस्य सेवक बला धि वैसा रखने पृष्वी पौर 
षाय, पाय पौर पानी के पुराभै त्न को बना हिमा है प्रम मनुप्यप्रहृणि क्यौ 
भ्रषीभितर घर्मा को पुछ कण्ठा रहे भोर ब्रह्याएीय वैमाते पर बद्ाण्डीप 
शरस्य षा नियत््रणा प्राप्त कर स्के 6 परिणाम तमे है प्राण्बमेजनक है 
शष्ठे है जितना पामीका भापरभे शेक विठसौ मे रेभ्पिमि का एतेष्रात 
वरिषर्चन १ 

५ क कानिपम इतिहापके चिपष्डौहै, भेाह्िशेया टे 
प्रधि्लोम-बम्‌ भियम के पराषारपर र्या के मष्‌ स्मन्वर्यो द्वी विभिरयोक् 
` , इ हले सामग, वी पिष ड शो भमर शोगा चं शव र 


4 


सोक ष्च एप्त ए हिस्टरी") (नपुं १२२०}) प्रष्ठ १०६ । 


िकपमाद प्री मागवीौ प्रधि ॥). 


मोद हिदाब शयामा अय्यब हो स्वा ई 1 पदौ पपि की म्या का हिमाव 
नषे हापा भा प्रश्ठा । पामिक काप { स्मम्‌ २०.००० गर्व } कान्नु 
१५०० त वैतिलिवो हे एष हमा ; य-स २८०० पर छमाहे पा । 
तरिजहौकान का मन्त १६१० ज हुमा । शर तरित अपो फे काद्‌, ईपैय धत 
कम १९२० म्‌ 1 १९१८ मेभ दग पाढ्हकये मूतुठोरे पोषदेभे 
ङि उनको जविप्यवाणिमं पयर पष्ठ भमाणित ए बाप । 
नविहाप के भिजञान' से श्पय्‌, यष ददीत पगना हस्यास्पद है मौर 
पधिहतमप कयो पम्परीय्वा ष दक पय्य्यत इते देष रर रिश्वग षौ हैरी 
भाष्य शो हतौ धावी । उदवामी विकायादके एक दपनकेष्पमे मौवदपएक 
रं व्वछठि फ द्िसोगै ठे प्रपिक दिरेप कुष मष है । पमे महल ष्म भावष षा, 
णिवे स्वयं हेती प्रदम्डडेजिद्‌ भी एमे पर्दमय बलाया कि एमे पष बनके 
इ भिष्यावकेषिर्‌ एक साषपंहपुएषपा प्ररत षो कि एश्रपिषीं से बौसषी 
पवाग्पी प ममर का सपय पिके एरिहारमेषदट का समया उं पष 
बाकि बरहि जिम्‌ ङमो भतुप्वदे पाप्यमदे शगकग्तो है, दे एते जिना 
होती है, षीषषीं एरौ पे मनुप्य शपते भौ धपिक द्रटेपा । जन्हते चिधा-- 
डम री तवलता दरे पिच्ित करवै हप्रोरदेतार केदार बवृामोढे 
मी षठमाज य पुनिपरि पराषष्वष हो षड्वा षया पमतैषी--प्रपएष् 
बिपुद्‌-पषठि पौर निषैखु अर्या श सन्तान प्रति कौ कती पूरे रनाकौ 
दुता बे एष प्रद्र छा षषषर होमा । १ 
हुम पि्ापते वही है । ह्मे भ्या परह 
मापा्मोपाभयोश्ये पेमपाब्ृादौर 
"सुष्टिशयै कवा? इन देश्ते ह 
श्केवत दषनो निरिषत निदि 
पौर पराप्य शरा परन्तिम पष्य 1 
“पकी छर, परपु को । हो से बोढृ 1 
"आच शौ उदे एस पु जोह | 
चये पीक भिरा दो पपि बहष््व कता 
शमे पौर पथ भीदन-रच् परमिषिरः कए 
" श-मूद परणाप्रुशज }* 


१ ६भ भरत्‌ धौ सपथप ३०० व्य कौ तम्यां लार पिताक 
भाभा है। 


९ "वी एत्थ जोष हेर चारनाः, पृष्ठ ,६६॥ 


२१० प्रमरीकौ देण का पचिवाच 


“गषतेमो पे पर्यल शीष पयो ठाक्ताप करुवारो मप्यिमधे 
भार्ना" की शुच पायो को मी रना बाह्ये । 
शरे उदयन मं घठाववा दो । परेरा पपा ष्िथु-पार षी 
"बन्‌ दुम्हारा, निमे खया पस्लदाषो रष्वरषौ 
श्योति पठि, दान पौर भिषार शौ-- 
श्रसीम की निष्फल मूलत की । 


श्रियो ठक पै पनी भिन्ापु दुम्डारे पा राया 

"प्रर एक बश्च श्ये बोतिर्यो घ पुरं य किया 

शमे मेरी प्राषनापो शै बोषिध बात घुनी 

शुम उछ स्वीकार नष्टौ करसकती षौ दिनधु दुम कप घ कम पुष्करं । 

)“पर ठव सैन धुम छेड़ दिगा तो यहु भेर पएपरषनषी गा 

वापा प्रपरवना तो केवलमेरा है नदीं । 

शवुमक्कक पमय के एाषे प्रमी बश्यै भटक्तै &। 

शमे सीमा कुरो ¡ वुममे एक बार धपते पृषषठो्माषीषी | 

कपो उसने पुमे काया पुम गही बहती ङि वै 

प्रपने पिताङ्े श्यं प लद} पठनिए्‌ 

“धपनै पिता दो श्वाजता बह पपत मामं पर पया 

सीषे स्ख मौबको जिसकीभोर हम समीके भाता प्ता) 

तमै भी रघ लके तापमटक्बपा 

जिसमे पिता का जिह शचोजने केलिए परतीको प्रान डता । 

कैन प्ताकोगषौ पराया ैष्निपयैनेष्धानिपा 

"निषष्ी हदर्‌ प्रग मै पपारा करता हं मां-पुमषो। ^ 

हभत भातिंबटन भिन्न वै बिहु सिलल प्रकार की कषिता करो रक्ता 
की गन्नपि णिप्रसे पाठक कोषे पी पसीम कौ म्पर्थता रे पन्तदीनं गीत बते 
बरती हते है । सरे गिपरीठ, जिनके बीवन पाष्यष्टां मिदिष्ट है रमके धिप 
पृं र्ठ ष्ये घनस्त ष्योग हौ तविम्सन के पनुपरार स्वर्दश्ता पोर पर्वनमता का 





॥ 
१ जेषैललाकाजं "तेटसंद्‌ ए नीत देश्य प्रेयरर्‌ शौ बजि धड़ षाडेत 


(केभकिज १६४०) प्रष्ठ १२४ १९६, ११० 


२३य्‌ प्रमरीश्म दसन का इतिहा 


शरवु्रण किया कि पूखं भवो वैजामिक़ वर्णान के दारा भ्त, वरत्‌ पडानुरष्ठ 
खं रसअए के धरा होठा § । 
एोमिन्सन कौ कवितार्मो का मर्मीरण मातम प्रस्िल के भिभिभ पसो पर 
र सिद्धान्त क्षो घागू करे $ मिरु प्रवोगोके ्यमेस्िव ना घकाई। 
समणम पसह तै जिसको परिणति दी मैन पयेस्ट शै स्का" मेह, मुष्पको 
उक ब्रह्माष्यीव पृष्टदूमि दे भोर मौपिक परस्वितव शै 'अावारमो" पर शरक के 
विदु पंषपै करते हुए पर्पुत करा । 
हम राति की घन्तान 
रष भ्राजरणा को उतारदेभोशग शो प्रिपावा १।-- 
क्म प्रकाश की एन्तान ने 
शौर पर्गोको बते किहमक्षाहै) 
इम कथितापो मे उनका दलन पोर उनकी छन्द-रधना गोनो ही भपेसततबा 
परप्पप्मुग है । छर शुष देसी कषिवाप्‌ पापी जो मनुष्य पारा प्रपते “शिषो 
निकमे के परवा पर कन्व बी-किषे रोमानी प्रेम प्रौर शर्यालष़ कर्चन्य के 
मिले-नुषे प्रदी चे । उन्हे प्रम प्रौर कतग्य के षंबपं श्रो पलायत श्चै रोमाती 
प्रष्ध्पाकाजित्रराकरैड़तिए पार्णर (्ं्लस्तानी एरिहा पे सौय क पपी) 
कमी किम्बदत्ती कषा प्रपोग श्रिया । इख कम क्ये प्वरपुक्च विता माठन" ह । इसके 
भष सत्होनि मनुष्य कै भरो पर बिबाहे कौ एमप्याप्रौ पर भिषार द्या भौर 
छने मिपि (रो समीश्य राभिःषठीधोर बुलतै भादा भिनत कपा । 
प्रव परं पहन “त्वो पोर िममियो के षारेमे जनत्ताकठौ पर्ची इष्याभोर 
भक्ति लिए पार्जिक प्ंणपंके बरेमे बिद्धा। एस ियव पर एग मह्मत्‌ 
दना (किय धैस्पर' दै णो पथपुष एक पष्ठ वुखान्तिका है । 
षि चैस्पर' क भिचार रोगिन्धन करो कञ्चित कदमेष्ट के पवातीन होने 
कैजाद दकष पुटौ छमवबोस्टत केष्टेटस्ट्रीट मं टतते हुए मिा। 
दृसदे पुष्य पारक्य माम उ दानक लाम णा जितम तीते भं एषं 
ङ्होपे पपती वैद भिराषठ शोपी बी । पछमदादीत जिव क म्बन वे 
प॑कापुये द्िन्तु जिसे उन्होने पपना प्प्॑ास्त पर निवन्व कठा पपे लिखते 
काधोम बे पंवरणा बही कर दके । उरि कविता षये तीन ठरो पर प्रषेमचा 
श्रदान षौ । घ्व दृशौ भ्यसो कौक्टानी डेस्पर्मे बोटैषे तृन 
पंष्ट्ठेषहै बो उतके निए पारा जीवत ६, फिर पूजीवारी स्ववस्वा के मिपट क 


१ सहेन प्रा दी नाष्ट' तै। 


बिश्यहपाद पोर सागदी प्रयति २११ 


एष अरशोकल्मक माठर षयम, पोर पण्ठल पर्वन पौर जान तया भाक्ता 
के एक साध्यादसान क्मककेक्परत्‌ | 
ए शस्व तँ हामाजिक्‌ परान दे बच निके बाता एकमा पाम 
बो, है, चो जीष्न्‌ पसि पौरदुदि का पूतं श्प € प्यीरप््च्पु्ी प्रि 
छारी प्रादे ग ^वू-ध्पसेषय कमो प्रन्दयरमाः क बैतिषवावाद पे मूः है। पहं 
कमिता ग्व धय पष्ठ परादृरड है पौर षये पहा असता दै छि संविम्पा पे 
भम्मीर मादन के धाष-पाम पूं निस्छपठा चे प्रयोगं श्ये प्राति 
श्र्िपापो ढे प्ररिपिछि, ठामाविष बारायण्णा का मिष्या के श पी कमा 
भौ षै षंकीति ठ भदा टमा कोर परमिमिपख प्रष्य दमी बीषो षय वैषैत 
प्ल परिर्ोकोदेषयाष्े। 
शरमं के एदा पुषा दत्यमीमांसर कवियों ये विने छे हरएक श्तौ एत्य 
हारा पररिया, किन भो निरपवाद पथामाजिरूता मे धरम-परत्वं ष्वेषै 
भर्व त्वाना भौ दरब स्तावदौपछपरङे स्परे उनंभी पप ग 
प्रू पोपेनडोर भे पाहृष्ट पा पा पौर उतरस्मत्ष्येम सिसा के लिए बिन 
पै विदधै एकवार गपो मे एनहने पपिर भौर भिर्वा प्र पूरेण 
जाप मूत भे ) बधय '८स्८र्मे एप प्रथन दकटरकी उपानिकेतेशे 
भपम्र पावे तो उक्ति प्मुरोष हिमा त्रि उन पोपेनहए पर तिदे की पनुमपि 
दौ पामे (न्दु एह लोत्वे पर निबन्व सिद्धा पद्म, बो एष तामाम्प, प्रणम्मीर 
कूड प्रमारिषतं हमा । इष बीच एमे भन्दर, बटठ कुण प्रपेनधोर के पान 
एक गोरा -रश्हाहु दलता रहा 1 देर प्रहीव होता है कि यह रण्पाह बतिति्ं 
भतितेन हारा मरबम पपतभ पे पूमानी नीति-खाल्मषर प्रौर दूरे उपरमे 
रिमगोकाके शरिषन" षर दिपै मवे पापसोषे एतश हुमा) पषेतरेहेषू 
(महू) िजार-पद वि परर वूभत्ती शिथार-रदवि केः प्रदिर्माभ्न्‌ प्र एंप्बा्पन्‌ 
को सरबम््-मनुप्य जादि $ उदुप प्रौर सटङाठ के एम्क्प पं प्रफपिवाद पौर 
मैतिष भादना बे, दरवद दी रफ के करम निष्टा जिसे हास माव मन्‌ 
रप्प प्रर एावरशौ पबदारता एवाह पौर प्रादे स्पदं छषे भण 
कैवाहै। र 
धपमे दुदा स्वच्छन्प्ाबाद पे ठाम्टापना त पूमाषौ स्पिमोबाषरौ प्रौ 
णिप्णदादै गीहिरा्न ४ एर पिपरा केस्यषि प्राक पथिषहाबाद के 


९ ह्वल हिरेन्‌, "दस्मे परर्तिषटत रोवन्दन, (भूपा, १६१८), 
¶्ष्ठ ६६ । 


१ भां हान्तायना, "हो भिरित ह्रेनः {ष्एवाष्‌, १९१. 


२१४ पभरमरीशये वेन का दण्दः 


प्रषेपारणा करी । प्रकट स्प, भ्रमर हम उगके धर पर विष्णा करो 
पादं परमके स्वान पर भो भ्रव भसनम पा भे प्रङ्तिकि पमश्री भोर ङे) 
पास्मठ मां मै भो्तमोषा" से चलकर तेरे पास प्रामा । वह कोर पापमदैषे 
माषा भर्मं महीक किनदु पन्हरा मौर सव्छे मिक वौदिकन इष्टि ते धाह 
पूं भा । उण प्रारयम ़ी ठाद मही नो प्रौर ब स्ठना शक प्रसुमब कदरे 
कि युषाबस्वा कम “उत प्रीप्म वनराः से प्रपते प्राये निराघा पोर पीठे मिष्या 
भिमनि पाने छ लिए" बानं । पपै प्रपिएमतापूखं नाटक 'स्पूपिषटर मे प्रपनी 
प्रभिबियस् से भी धसे जानै भासो धवला को उन्होने कमम्नात्पक प्रभिम्बष्ि 
अवाम की । शमे भूनाती भौर दारं देवताप्रौ दो एक ही त्वात परणरनेका 
प्रपाप्र £, कन्दु बै एक-दषरे से भपनौ बात स्वोकार मही करा पत्ते पौर भष्वर्ज 
बोरनो निक प्रमाणित दोसे है । पाद्मिगोही स्वृषिर ( कान ) क ताव बे 
पन्तत्तः हृता दनु निरा के साष शदे हेते दै । 

दैष्वर मह्यम्‌, जब यैतिती का ते लौसश्मव पुर 

पण्प्पि्छं व्व पर प्रपनी भुतुके मिष्टा 

@िरे हनो मे उसमे पपन घां धमपि कर षे । 

मृत्यु का व्व विस्मररा मेरे चिए कों मरहम | 

भगसेमे पूगे कोदेर्बुना 

श्वोकपे क्योकि मेरा गण्ड परमौ पूरानहौ हमा 

मेषे प्रनस्त पीड्मका चक्‌ । 

भेरी पीड़ा श्वावा वङौ है, एसते बिदमी किन्ी ग्यक्ि की हो पकती पौ + 

विसका पिषठा स्वम मेषा प्रौरभो एजयुष 

प्रपमे रौ सुतौ पमम्धवा पा । पौर पड प्राग्व है हयै भात कषे 

उचै गदा, सदे धषिकप्रिम णो धमे षडराशे। 

भो ष्त्प प्रो पप्य पतन्त कटु सत्व 

शू मेरी भ्रण बन नब पप्य खय कु प्रणा ह । 

शतु मेरे उप्त मनका ध्रै, 

शरे शट भोवो। एर मै पना जौकन पुनः शमा कङ्या । 

शेरा भानम्द-हैत उर कमी पनुदार गेही णा 

“वके परि जिव वु व्यार (या, मब हम एक ह बाय 1 

शे कोर्‌प्न्यम्िनही यैषेषोदृर्पा ह 


१ शोसगोषा--पडदसमेम के भिष्टशौ पष्डौ ब ईताको पतौवषर 
अङ़ापा चया बा ।--प्वुर 


२१५ पमयीष्ये सन कय इषि 


छता है, भो पाम्रामनेा नै प्रपगी बार ष ध्यषस्या' के बारेमे कदा ङि "षरा 
सेहप केयथ भानबोव ञान मे योग बेना एक मिमघत्मिक अयनारमक पौर पववत 
मन क़ प्रजिम्पक्ठि बनना है । ^ बस्य मौलिक मढ़ १, नतु उदार घाषि्ता 
है पौर बात ष्ठो श्यवस्मिव, प्राप पीति घे इती & जिषे दशन 
शहर प्रो$ेसर कने क़ चेष्टा करता £ । पहने भोर तैदवान्विकर इष्टि 
श्राषारपरत इष्ड रीयग इन करमन पेम्पण (धरत धमव वपुर) क गे 
भुम क विष्तेपसङे ङ्म मे कम्य के मतोनिज्जात के व्यास्या षी । उक्ते 
बताया क्रि वाह" (म्द का 'वेठना्रगाद) किस शकर शरेण दनि भा 
कर्त (बैम्प शये शरदिः पा ुखाप्रता ) श चयनात्मक या विषेकौल प्म 
क पष धोवयम्य सभौ (ब््पा) ये यस्व हठा ६ । नैरत्दं क षाङषमं 
भर प्राषाप्ति पप्रथन मौरिक बस्युरमोका ओन प्रदान शवे  । एमात्ता क 
वाङ्षभमं पर पराभारिव पपन भिषारया घम्मापण $ पप्र कते §। 
भरः जनके द्रुग ै-- मौविष्यै भस्त मे होने भाले खंरवनो क सदबान 
ध्नौर एकाक व विषारये पूल्मो धौर शरदे" के स्यो क्म क्षष्टोफरण । 
धम्नाप्ख मे घंपजनः कोद कपी-कमी दोर्षाएषा' शौ है भौररममे 
पयुमब के प्रवाहं से एष पोर दषा मौरिक प्रस्ित्व मे दषरी भोर स्पष्ट प्रतर 
किया मा #। 

पपन बसयुपरक पूतन मे वमु द भीगव पस्वाप्ोका स्यत है 
षमाण, बमं का भ्रोर विदान । धपनी शृत्ति मे मे एत्वा जीवत क बेही 
क्प पदापि करतौ है, बो बैपछिरू परतुम प्रदिव करवा है । प्रगति क पीत 
स्वप्पासोपान शखेषा एषते है-ताङ्, निसर्वे कीमत भूषधवृत्ति 
पाक्ष धौर सेटि ए प्राहतिङ परानेमो दारा मिन्नित होता है, काकि जिसमें 
कमे हत पाकेयौं शवे रेट मभिम्पच्छि, स्पष्टीकरण प्र कपुषणकेषप् 
निपतित होता है भौर हिर, जिषे जौषन चैतना पौर कसना कौ पृ 
प्र्मि के पीन होाहै। दौ लाषफ परो रीकनण के मियिषर ष्य शमय 
पमाज, भम, कला प्रोर बिञ्ञानषे इन तीन स्वर्तोष्यबखनक्येटै। 

वैषा उन्दने वादके निर््योमे कहा देन भी षपौ धीन मे तईवापी 
होत है । उन्म अम्य स्वमागतः कायं के तको या भषु-मास्का' छे एषाम 
के्पर्मे होताद, दु दे बौरे-कौरे स्वयं प्रता एक भीवन हतश्च करते व 
दिष्ठे मरुप्व शा धामा जवन वित्रारमङ़ प्रास "मावनारमर गाध" प्रौर 
श्वाक्त्िक मनोदिजान" के प्रविक्यो मे भमात्पसिवि हो जाता । विपर्घ ढेन 


२ परम्तादजः “दी भिरिति स्ेन' पष्ठ १५६॥। 


4 पमरष वचर श्म एतिद 


शजाषार्श स्प ब्रह किः हो उखष्स्यु को सथसृज घममना म्मम 
111 है।/१\ 
उने धम्य विवे परेल खद होते फो वैवार, एष प्राङृसिक पथिष्वा 
पौर पादप शै स्वीकार शूते हुए, तेः मााप क भीष परपरि प्रर नान" 
सी धूषर पा समिगोदधा श स्वि घ है! मिन्तु उन शोनौं फे भिपरोद, पमि 
भिता पृ निस्वाठ सौर पराषुदिक ब्गस्था धर देम क्रो मी त्वाप विपा । 
श्या दषा प्रतीत वहीं होमे चाकि एक मन पामा क्षा एकाकयैपत 
गम्यद पकारौ नहो } भिख प्रगुपाच मे हम प्रपते पयु प्रभिकारो प्रर दाभिस्वौ 
शाल्यापक्रे है एसी प्रुषा क्या हम मजिक ठाजी पौर भविक प्वाष्प्य 
मदकभारु पाप नही शेते पते ? भया देषातहीष्ो पकता किहर्‌ ष्य 
ऋ परि्वाम रष्क परध करक प्रौर हर ग्तु छो ठरे वास्तविक 
मामं मेहम गाप करदे प्रीरपाषही हमारे पंकर्स्यो को नी परिषद 
कण्ठे ह्‌, हमै उदार जनने की शमता परदामक्रे) 
निर्व पौर एकाकी भव रषहेनि प्रस्टिरय ढे शेष डा प्भरा श्वम भौर 
पृष्ठ प्रास्मा के स्वामामिके निवास ढे कम पं एक व्ययस्बित सार-तव सिदधम्त 
{ पोनलोताकी ) का निर्माण शिप! रष्टीने परपतौ भम्पे ली पयो स्व 
षमः को पदेः पौर वाह सक भ्रोर भपनना-अबाह क पाुमभिक 
पिष प्रं पदै निर्वासं शो त्याग शिवा पैर हमक मनोगिज्ञानष्नोपुनः 
परपलाया । ठष्होति कृडा कि 'विमेकखील सारो को प्ता बष्तुप्रोम शशु 
जिरवाए' से रिश्कुपर पसम्श्द हो शकती ६ । कितौ परस्तु भस्त का प्र्विल्व 
भाषस्यक गही € क्योकि जान की तपति प्रस्वुल धी पत्धपरासे ही शेषी 
षर्‌ धम्य भौरिक शस्ते & घाव भीर्मो कौ परस्पर प्रि हेतौ दै) 
कक्पणा भा प्त प्जञा को प्रशमा इत क्लोज दारा मुद पमौ टै ङिविश्जातिका 
एक ष्याबह्मरिक पदु पार है) षठ प्रकार, पोपेमहर के प्रति पपन वुषानस्वा 
के उत्साह को घास्ता्ना भे एक्‌ पमिक संशपनादौ धरना-टिपा.धिलान पौर 
पिष व्यवेहारवादी ब्रात-मीमांपा $ हा पम्मौरती प्रन करके दमयातुदूष 
अभावा! “दी रिपराम् षो बौर (प्रस्व $ देष) के बारे पे 
ऋमएठः ताए, पदां सत्वे प्रौर प्ररमा शय भन्ेपा क्या णपा है पोर पंयार 


बामं साम्तापता, श्वौ दण्ट इ गितन पेदे (पवाक १६१६), 


चष्ठ ४९, ६४८ ६४; ७१-७२ ५७१] 
२ ब्य लाल्तायना, श्योबिष्र स्विष्टः लेषे, एहेड पेण्ट पप्य 


(ग्दपाद, १९१३} प्रष्ठ इ८७॥। 


विषाहवाद ध्यर्‌ मानवी प्रयठि २१९ 


दमा बधु भास्वा ऊ षठ भिम्ख श्यी व्यास्या एष म्यवस्विठ सारस्य भिहान 
कष्य मेषी मयी है। छित यह प्रस्य केवल सारत्त्व भिञ्ञान ही नही ६, 
क्पकि परमे छान्ठायना ब भपने घोम्दमं-बोम फ घाव-पाभ जो कृष घांषारिषक 
हानं उनके पाषा उप्ष्य भी हमभ क्या है । निस्सन्देहं बह दानिक 
-संरणना के पपे उदाहरणा मेेएक़टै प्रर भिश्वय ही हमारे कालदे 
जद जी जीजिठ रहेगा क्योकि यहश्न्सी भौ युम मौर सं के मनमपील 
पाठक फो एम्दोषित करता है प्रौर एकु दोषंकालि एत्य को एक नयी भापारमे 
प्प करता है । पह प्रा्रह करके दह्रं पेसिदन्ष्ी जो कर दूषनी 
हषा उनके षो भोर बहण्हर्षीपोरनो प्रबभी पमरीषौ दयान में बिरोषी 
पिरप में बहती &, उन्दं स्विरता भौर दिणा प्रदा करने के प्रया क्षि श्ये 

निकट हीह दैः प्रमरीदी विर के परपरिर्यर्मे ए पर बिषार किपः जाए 

इसके तेषु ते भिषा फरना प्यव होपा, क्योकि भहा मी दप॑न पगपे बहा पह 
शरत्वं एषः स्मरणीय उपएम्पि के पर्ये स्वान पतरैके पोप्ददै। ष्ट्रिपी ष 
अतादेमा उचिठहोणा कि दषद्ध पाष्दरिष ्येरता मे “रन्विम युटदाबादी 

न्धा एतमा प॑ ६ पौर इषके षिडाम्य मे प्रहृसिगारी हत्वमौमांसा श्य एतना पंप 
है कि इषे मरषष्व हो प्रमरीष मे एषके प्राहृतिकं उम फा पठा चत्त बाता 
ह, बहे प्रभिष स्वश्छ प्रङार्णो के तभे भोर प्रभिक्‌ सूरम एंचिर्पो भाते शोरपो 
के बीच, प्रत्वत इषा माप्य णो मीष्ये। 


सावा धष्याय 


भाववाद्‌ 


शेकिक शगररा 


खक रुङयाद को पमि पे सामगाय श्य उमम पीरे-षीरे हप्र कपु 
प्रपते मिष़ाष फ धा यह एक मया भवन लाया । पमरीषी बिजार पौर चिका 
मेस लमी माषेना का सम्पण प्रमाव प्रारथयंयतकृ बा प्रौर एसे पर पुनर्णा- 
गरणा महीं तो पुन -स्वास्म्यसाम पवस्य कना बाियै । उ्रीसवी पतामदी शौ 
प्रम्विम चौना मे हमारे प्ररिष्ट्ति कभिरजों मौर भिष्ववि्ातपों के स॑प्मगोमे 
इरन एक स्वतन्त्र मिपागका नामहो भया। दासनि भिमं कषीकताको 
सये लाम हुपरा बा हामि यह प्रग मी एक भिबादाप्यद प्रस्न ै, दतु स्पष्टतः 
यई पाख्प्टम पे एक महत्वपूर्णं परिवर्तन भा प्रौर दरपन की पैक प्रविष्टा 
दष पष्वर क कुष परचिक सामान्य ास्कतिक निदितार्ग भी गे । दर्धनिष्ठ विचार 
प्नौर शेन प्यावसापिष्ट बम नये पौर एलस्वङ्य दसन मौ भ्रमरी “व्यवत्माएः 
उन्न होने र्गौ । प्रमरीकी पंस्वामो मै दपंल की परो-गिकित दैश्रीव 
ज्पस्ाप्‌ इतनी दैर से प्षट हुए॑यह पश्यतः य दष्प के क्षणा भा भित्का 
जिक्र हमै पैकषिक इदिषादके एरय ङी चर्थाकरते समयङ्िवाना कि वार्मनिक 
भिचा पुरं अर्म्ास्रीय रायरीत्िक प्रौर पामिकि विचरार-प्यवस्बापर| का शक 
प्रिच्रप्रण पा पौर यह छि “मानिक धर्पतः क्य पदम होते के पाते पक 
स्ववस्त् भनुपासम के स्प मं द्यंन की पाम बहत कम बी । पष ह्मे एक रौधिक 
पनुपसन के ष्पे शमागसिष दरपन" े विमायत का बरुन करमा टै, एकर भो 
भ्मातषसिक भिज्ञान" पा मनोजिज्ञान यै प्रौर दूठरी मोर परि्स्पधारमक चिजार्‌ 
के पषपेवमे जिखष्े भगवारएा भ्रव बोदिक परमषठा, स्वव शपनं पा 
श्वाषमिक दपंना केष मेश गयी भिसवे दट्याष्ड-दर्यन तत्व-मीमाता पोर 
आन-मीगा ऋ भिषा या! बमस पसंकार-पार्ण पौर पयनीतिष् 


५. यमसीकये द्य कम इतिहास 


बिषिष्ठ प्रेष ढे प्रन्ठ्ृठत रा वै, भो राके भनुखार, ब्पाबहारिष वक्षुरि 
है 1 "१ हिषे के पदुतार वक्मुद्धि धुड स्तस्फुसिमा श्वा च धरं हसं 
कर तशती दहै। 

रल धृढ द्वि करो ग्ह वमु प्रहषारणा इछ पश्र, विक-कल 
भौर च्यु को मवि घे िती प्रगार हीमिवनद्यं १ मौरथमौ स्मो 
मृति ये पायै भेकी एक प्राग्‌-पानूमभिष छतं ट । सिजाम पड माध्यम 
मपर तकं बृदि-मषपारघाके भोप्र्ति षो दो भो स्विणियो क पर्यव 
गह भावी पोर जिम तास्कि निरय पाषष्पक पम्बन्णोनये षोभी 
उपस्थित वषो केता प्रि घे प्रशोकिदमेध्रोर जाते षरा शह मौ माग लोभा 
निर्दट सम्म £ । प्रौर यही ग्पद्िस्व का हमा पहसा कत्य होमा । 


परपषराकी क्छ षी मति के रूपमे वक्वुदि के पृ निभार 
र इट प्रष्रभ्यष्टत्व मृ परम स्वान है! पवि को कसी शु स्वव स्फ्ट 
स्मायर्छता भौर स्वत्वा मे सभन्यभा सद्ताहै। भा, बहो बात दूरे पर्णे 
मे वरषबुदि प्रकति को एक परम म्पि $ शपरे पं पमङ़ घष्ती है" । ^ 

राठनत षाएशसौतज्रौ" (तहताबायर मनोनिहान) बहौ पमषएहेएोहै, षौ 
से "रा्नल कास्पोमांमी" (वकणादी श्याएड दत) भारम्य हेती है। 

कहं कीरंस्मिति दैसी पष्य हौगो बहा ठेषाए देषा जासकेकि 
पृष्टित निपमहै जो पवह्पमेव प्रह भौर धार्म विदा प्रा निर्बापिवि 
शेते है) ऊहिरे फो बप्युषो प्रोर उषो प्रद्र स्वयं मर्वे नौ 
बटौ गोषपम्यशनादोमा सडदैः बदीत्ड श्ट ङकिपी वाङ्कि चिरा 
के भरष्वगंव धावी ै। प्रर, देना चिडान्व प्रठविढे खूगनर्मे ह्ये निय 
षहा होगा भौर भतामा गमा होगा । परम्यवा, प्रि परैव प्र्षहीन प्रौ 
लक्ष्यदीन रहेगी । धतः पिदधन्त सी सवा षम्पूषं प्रण्हष्टिषो प्रप 
हठे ददा बेमाक्िवष्य क्याद्नोये मौर पप्म-दष्ना के तिषएुषष्पो केषी 
मो मापरमन्‌ कै प्रादक्य्ता नहह कटी । * 





१९ लश पर्िवष दिदं श्रथन पा्मलागौ, प्रार्‌ दी सण्ेरितषे 
च्ाएणिषा पेष्योप्रमेरिन्दला पढ प्रत एण्ेतिमेन्त' जेतगनढो प्यूपाक, 
१९५) प्रष्ठ १५६ । 


२ बही, पृष्ट ६२०। 
१ सस्त पपनिपय दिषो, (रायनल काम्मोलजो, शरोर दौ एटनंत 


पिलिनिष्स देय दी मेहेवसे लाडि प्रा दी युनि (स्यूम, १८५८) प्रष्ठ) 


र प्रमरीे बन का एति 


घंपमिवि प्राजिता के ठकंछाञ्म का निर्माण करते का भन्तिमि भौर घाह्पूषं 
प्रयास किमा, जिते उन्दने “कना छम तक्ास्म्‌, साक प्रौर एाप्वत' 
(रीलाजिक पराफ रीषत यूनिवरछल देष्ड एनस, २८७५) कहा । मागबादी 
तकप्ास्तर के इस पुननिस्पर में उन्ह्ति तािकिप्रोर परानुमबिक पड्विरयो के 
ठेदष़्ो हरकन कीजेष्टा ए़ो घो चेष्टा उनकी प्रष घमी रना मे मिहिव 
है पोर मानम भनुमव मू परम परदुमष श्च श्खार्मो को चिद्धि कटे ऋ प्रवास 
क्या । पर्मात्‌ एनडेनि पह दिक्वाने का प्यल्ल छिपा कि यहा मौर शष प्तमम 
भरी माली भगुमष मे दये छत्व है जिनकी नियता है कि बे श्रात-पारप्रव, 
भ्रलम-ृदधिपूणौ प्रास्म-मरित, प्रात्म-भषिहत, पौर भारम-स्वीक््त' § । उकनि 
मह प्रा प्प क्ये छि एक पूत" पमं बिन्ञान के ङ्प मे बखितीम कंधार 
पपनी सीमार्परो से मृषुष्ठौ धका भौर एक साभि" गिह्ञानका प्रावारबन 
सकेगा जिषे घम्दमं मे 'धं्रभित पाषिकरताप्रो" का प्मप्वि निरूपणा हो घडे ! 

“पच्चपि धवेद्धतमा कम शोय प्रभौ यह देख पाठे ह कि षा ष्यादा भद्रा 
तष्ास्त एक समे-ष्पापी पंणयवाद शे बजने का एकमाष रपाम है, हिन्दु एतका 
पूणं भिषा ङि बह समय श्यादा रूर गही जव यह एक धामाम्य भिएवाघ भन 
जामेमा भौर एष नपे भोर बेषट्वर तक्ास् की प्रादस्यकठा क स्थापक रूप तं 
प्गुमष होगा इम पर एक प्रतिप्ि भार द्वा किम न केवम इष स्विति 
षो प्मीप्र सनिकेतिएणो कुहो षके $, बर्‌ इस पाबष्यष्या की पूतिक 
भिएमीषोकृणहमषकरष्कतेहोकर। › 

मस्ट के चैस्िक बाबरहा को जिखकी वीव हिक बे पतनी परच्छ्ीरमी 
जी, उमे एक्‌ पत्य चाल्पं एडवडं सारमैत को रथनाप्‌ एक प्रसाधारण पुनर्जयिरस 
वसे गयी! एण्हेति कोमिज के दि्नोमे हिषोक फो र्मापों को, पा कोठेज 
के भष्यञ्च सोर के भुखार ध्याति" को रटते हुए बहुतरा मम भ्यं प्राप 
भा । दिण्तु बदकेषपाोंरमे स्वतल्व प्रभ्ययन पौर मननङेहाए पणू माषगादी 
घिटान्त क महत्व को निजौ स्य मं दोष हुपा । कोष्ट कं दन # मिपेपयः उनङ 
प्रपते प्रदुमव मे एक लवा जौगन प्राप्त क्रिवि । गारमैन मे प्रपना पाए जीबन 
षय का के भिषा मे शमाया फ प्रात पौस्िक छमस्या्पो को महत्वपूर्णं निजी 
जिन्ताक्षा निप्य समरः । उनका जिजार ाफ़िजिप प्रकार उतकी पपनी पीड 
प्रकार हारा उलस्त बामिक ष्ट ये प्वस्ठ रहय एषी प्रष्मर पवलीपीषु 
एष घामायिक संकट मे प्पस्ठ षडेगी ष्टोम ध्रौर प्रष्टाजारषौ मभमिषृिषे 


९ लसरि्त परतियप् दिकः दी लोजिष्ठ प्राक रोटन, पृमिवपल एण 
एटरनंल' (बोस्टन्‌, १८७५), पृष्ठ ४ ॥ 


प्ाबषाद कै 


छलसद ष्े र पा \ मह- दने (दिए साबगाद दा भष भा, दाही मापरिस्वा 
का सिदाम्द--पङटि षो नागसिकिठा भोर यस्च कौ साधपिकिला ) उन्होने शन 
प्रौर पाशा शनो ते ही ' मानभ-पपस्पः पूरे कं धालोचनारर 
स्दातापथ छ डय मृ 'पाभ्यासिकि सिठार्तो" मा मस्ुपरख मानष्ने क पिता देम 
परिशु सामामिष्ट श्ठमका यदी प्रमागश्यरौ ठति धि एपमोप कपा 1 
नु हिकेकदे दम्यो का रपमोप शरे के बयाम्‌ वातिकः एमस्पार्यो का 
ग्याहारिर मह्य अर्दपठि कणे के ए {एश एमय वरं एक) प्रोर इ प्रकार 
शपते छात कोकलाये पम्भीर भार-निषाष केतिष्‌ पौर पा्यऋ्पो ष्टो 
गुदधपव पदमे सिए हयार शसम के ष्टण धै एन्दोनि स्ववं भनौ कु 
पस्विषय्‌ धपती द्मा मे भौरी ! इ शश्र उणेति सीष्यै के मिप प्न 
को सस्ये शये "देत ढे बेद्सत्‌ म सदे पहरा--पेद्ने-बलि भवदे-परभिश्-वैर 
वदजीरे-र्हणो-बातता प्रौर एवते ज़ कोभट-निकास-हनि-भाला'" कहा गाता 
भाप निजी पनु मे भ्गिषसवि करर पयि, जिषमै अहुसस्यक प्रतिष्ठ 
श्रमीष्टी षिजार्ये षो जप्म दिना । उवा रत्हाह धंश्यमक षा रवो 
शृषबुष मिष्या करे पे हि प्यू-दयलष्क कै तिसतकि्धेष यष्टा दापि 
भादर पमदकी जोन एष्महन्‌ हुषारकापाषम्मशहेगा) = ___ 
पमी जौवत पौर मैतिक्ता कोनुषाणे बतो पषठिकेष्पपेाषटिदे 
पभविबादे पर पारमैन भौ परस्वा प पि का एकं विपि्ट समूह शषटमामी दा ) 
शपे हे हर एकु कमी पपमी पशं विधारज्यषस्यादी, ददु धपते चार 
भरदतेनके महत्व भावना धये प पौरष ब्रह्मर भर्शेदे प्वतत््र 
पाप्वा्तिष स्था के एष स्ोठ क्रा निर्माण करै म एष हुए } यै पा्रबारी 
जदो की प्तिानिता मे प्रजप रपोशपीये शै स्वाना करना नदौ बहते बे, 
दिष्मी एषेति पपि प्राप्वा पौर नैतिष्ा को पारि के परमाव तेमु 
दषा भता फ पादिष्वि परत्पभाद्पिं ब पिधा प्या बाहु निपा 
चा । दै चषमपपारे हे टैयौवानौ वे, शिशु सत्वर के प्रति एनकीहपि प्राणना 
षो पवेत पासोषना कीनो मोर रउष्टोते उस चम्‌ तिपपेस प्रप्पारिपषतः १ 
क्का दपा मार्यप्रोर हेरि चिधक वैवम्बर र्दे) हाररंये गोन हरर 
षमिर्‌ ठेमा हामामिकू मीति-पान्न पद्म पे सिध्मा एदे्प युदरहावादप्रोर्‌ 
दीवैदवाद हे वौष मप्यस्वता च्टना षा) नवघनरगरेदू रनन्ट्द्पूद प्रप 


१ भस्तं प्रदर पःत्मेक, टत, लेत देष एदरेड^ एत्ति पणर 
भररयेम द हप्दश्रत (रेन्िम १६०६), एषठ ४४६ । 


म्द पमरीकयौ देन का इतित 


शैषनधावी' मे पौर बाद पे कैसिषोमिया विष्वमिद् भोजं होष्य 
होगिन एक बहृस्वबारो, यैयचिक भावगादर शौ षा वैर पे 1 बोर्टल 
बिष्वणिप्ालय मे भोल पार गाउन एक पक्क एकत्वदादी भैयिष्ता का 
पभ्यापन प्रौर प्रणारकरषये। पेल मिष्टिलियरी धोरण प्मिष किमो 
मे मोषे प्टृमटं फेप्ड थै जिनकी पर बौदीष बर्णक़ी प्रह्मायुभे हौ 
प्राकस्मिक मृत्पुनहो वाती लोगे एय पमरहके स्मप्रयृव पष्य य्‌ होतै। 
मिियम कातेज के थाम वैस्कम पौर भोन ई रसेल वै वेस्सेदन बिरमवि्धालप 
कए सीर प्मार्मस्टरौना बे पस क बां दम्बुघ सैडबे पेम्यिसषेनिगा 
भिष्वमिच्चासम के भाष पुलटन वै गान्ध होपकि्त प्रौर मिणम्‌ विष्वमिद्रातयो 
के जणं सिष्मस्टर मोरिसि दै प्रिम्यीटन के बोन परापर हिमेन प्रौर प्रतेक्ेष्यर 
टौ प्रा्मष्यये कमित के भैक पत्य पुरमन बे परोरफटिर कोलम्बिवा ढे 
निकोसस मरे बट्शरभे ह्ये ^ घामास्य प्रेरणा 8 प्रतुमाण्डिव होकर, इन महान्‌ 
रिक ने न केवल प्रमरीका पे शन सम्बल्वी प्याषसायिक प्रयर्लोकौ षीम 
डाली, बरम्‌ म्यवस्मित दर्दने परमरीक्मी जगन में एष पम्मोर प्राशोषनातम् 
कामे-त्वानं प्रदान किमा जिसकी एकि पीपर हौ पिल्ला-पत्वाभो चे मारहैर बहुत 
दर तक प्रकर हु । 





१ श्येलभ्विमा की ल्पिति विषष्ट षौ । स्काटलेष्ड पि हलाये पपे प्ोञेतर 
जस्स पप तेनं कङिथाद के पुराने सपर्थकधे ११ प्ल्‌, १८५१ गोहो 
जौन्टौ स्दरोरण कौ प्रप्रकाद्तति उपरी केश्रवुषार दृस्टियों रे निष्प दा 
जा किप्रोरेतर वेनेके प्पातुमङिक सौन्द्प्राह्वः तारस्य विगान शोप 
हक्तिन', आले स्याद तरदमौपांसा दिष्णेह प्रौर पाण्डे को साङ्कषएक 
इत द्येटी कस्पना को पएायाप्रा कै स्नाव पर तात्य फे इतिहास पौर दत 
हे एतिहृत ष्टी होस प्रौर बोषपप्य दला प्रतिष्ठति श्ये जाये बपोडि 
सैरिविष्पर हम्‌ दिपा करते ये । पत्तत ध्राठ्े दमक मे पहने परीर.क्ियाएमह 
लोधर क एक प्रोकेर की ठलापघ््ी प्रीर बृ्बाम्यदस पिन्तौीटनदढे 
प्रािमण्ड प्रतेषमेण्डर डो निपुक सम्या जो प्रीर-कियाह्मङ़ मनोगिञनानङे 
घप्वप्यम्‌ कपल जातये के प्रिर, नेमं पे भौ ऋएव प्रप्याब्क सिदे हय्‌) 
ब्ीरि-पोरे, चर्मनी ये प्प्ययन करे सरे हप निकोलत मरे बटर दरपन 
प्नौर भतोश्लिन ओ प्यलोच्मारमष सिलल वयित रिय्य । पहला दाद्व-क्म 
१८८५-८६ घ पारण हमा । १८८९ प बटलर दयन रे पोपेतर निप हए 
पीर १८१० पं उन्हने एर स्ताटीय दरव विष्वा शदापित सप्पा । 


मार्गगा कृष 


भावगाद की धारा 


दए दिक पूलजोगस्ख से ररथैन के घगमम-मष्न्‌ भसे की महाम्‌ 
पीले मे, जिने हरएक ते प्वत्यस्प द्धे जर्मन माषवाव क एक प्रमरोषे 
तस्करा निरूपित श्या श्पेमकी कं बारर्‌ तिव हु({ जो एष्षीणीषठ 
प्रथि शमय दक प्रमाभी ण्डी है धौ जिनमे धि कुर एष प्रपतने चिपिष्ट प्रमाप 
क साभषादष्टो पिप्ट्यि दी है) इम जार भुस धाराए्‌ पहात सकतेद 
जिनमे हर एकक एक परमाबपामी पेदिककेमः ह, एश रसस्वापष्है प्रोर 
सूमाधिक निष्ठयान्‌ पियो की एक दीङो ६ । एय मुनिषपूयक पस प्रपर णा 
भाक्ता -- 

२ मैपद आोस्टन दिष्यदियासय, बान पार्क माठ 

२ परिमस्पगारय वा सानुपरक माववाद टित भिष्डयिप्राणम मेक 
एषतिम्‌ ष्ीरन 

३ प्यार भादबादः मिदि द्दप्म्थालम्‌ जार सिस्वस्दर मास; पौर 

भ प्रम भाधषाद इदं वि्वभिपातप बसिया रोौपह , 

शमे छे यषा दैवाद प्रौर चैति सिषादके शेव सर्वाषिष 
निष्टश्ी दै, दर्वापिष्म्यर हरम एद्मके दन काकार्वक$णौरही टै 
पौर धये एर एम्बद विथारणाण के बाट दिदि इवे धपिक यायम र्ट 
बद्‌ मेपोरिष्ट (बम्‌-सन्देयगादी, जभेको संकु बोदर मप्‌ वोको म्‌ 
पहामक ह१। येषोष्स्ट भभ बे परबुभ विदान्तोके प्रति भय भौर त्रिर्‌ 
भो भ-पषदेएनादो भावना पारदो पो तिच पे भेयद्िकताबारो पमता्ियो 
पो समूल शर्व राप पएम्दादती ष्या भौर भपर ८षष सर्वाधिक 
साद्षपूणं बेदापा को दें हो प पः दापनिक प्रवो पपौ भम्पस्यषो 
पयाहै। भोर्टम बिरषष्दाप्तप के शेषे शट्‌ पनी पीदी के सर्वाभिः 
प्रहिमापामौ प्र्यापरछे पौर स्वहत-दुदि प्यथ दे पोर यदपि नदी 
प्म ६ प्िदान्व पुराने षड़ पे (दनव पपनी स्रष्टा पौर विभार दषा 
पमिम्पेगना-उड्िके कारय भदुनेपं पबमो रोषद्टै। भाठनेशे प्रफ्ना प्यास 
पद्यत परते राव दे दैपिकदपेभ शोरोशुश्य दनप्यापो प लषार- 
अन्हे मनएद्ठि परोभियाम शव दरदलवाए्‌ व्रदपिति भौ भौर एष सारदाम पात्या 
बे षुरानी पी मात्मा स्यान ध्र धत्माके पुमविरू पदां दी दििषना 
बहुत दौ । पपरवम दा्परनि्पररणा एनं हप परमम मित्ये बद वेप 
विवरर्दिद्धाशथङ्ध प्क एष्य, णु उन्दने स्वेम्ठर फी एक शयष पाद्वणना 


रे४्म प्रमरीषपर बन का इतिहास 


शिली । किर, मी मे प्नादश्ोचर धभ्ययमे ड समय छन पर भोदु श्रा भा 
भ्रा । एक भोर धौकिक ङ्द ठा दूरी पोर पर्ेजी पनूमबमाद दो 
शोभना कै म कोद के प्रादुममिक प्राम के तिदान्व कमी महत्वपूणं 
भासंमिष्ता का उणु ठसक पयुमब हुमा । शोदूमे के पिदान्त ने ध्रारम मा 
भ्यष्ठि एष प्रस्तिम, परागुमपिक यवाय है, जिद पुषता श्ुमवप्रौरति 
योर $ लिए पराणारदूठ बाएं गी १ । बान भे एष भरातरमादी पुममबाद 
कै दैवधादी निहिता को भिकस्वि न्निया पौर कोष्ट के पराणो पदान्ते षो 
पृणेनिपित दिवा । भपमे धक्‌ छो पर्या कनरण ए सिद्धन्त पर पारित करते 
हए बे इष मतीचै प्र पहं कि म्पछ्िो का कारणा केवल प्क्ष हो घते 
ब भौर यहि भन्ठिमि कारणमा भनक श्लो कमपे कम भैवछिकः पष्य 
डोला चाहिए । बादल प्रण्छौ तरह घमषतै धे कि परिष्स्यमामक स्वापनाए्‌ 
शौर भमिषारापुः शानौ प्रगति से द्प्योगौ मही होती छु इपर 
बाढी ठ्न एगो मदूप्य के संकरस्य क प्रनिषरायं प्रीर प्राविश स्प कहु कर 
इनका समर्षेन भप । 


पापन्‌ वो प्ऱारकी होवो है। कुच केगम क्यो की भ्यास प्रस्तुत 
कठी है पौर हमे ह्यो पर कों क्या निमम्नख गी प्रवा करती । मै 
पमि कारण की माय फो पत्ुष्ठ करे के पिए भाषरप्क ह । प्नौर वमे कोई 
भ्रविपोगी स्वपता मन को उना पकक सन्युष्ट नहीं कर्ती 0 हम उष्य 
मिसे भा्ी मानसिक ाग्वि क धिमे एप भपमाते {, पद्चपि अन शी प्रपपिके 
सिवै हम उका उपयोय गही कर धश्ठे । प्रु सिद्ध्य पूमिडान के प्रनिकाष 
हिन्व भौतिकी के भहुतेरे धिदन्द विर्व का दैषकादी इष्टो प्रापि पैष्ठी 
$ स्पापनापए्‌ है। 


दूरे परकर क स्वापनार्मो म निममन सम्म हठा § मौर बे ह्म षनार्पो 
पर भिमखण प्रदान करतौ ब । एलका प्रमाणा केवल एतना हौ गही होवा मवि 
भाव रस्यो के शस्बन्य र्मे परवाप्ठि होठीहै भरम्‌ मह॒ शी कि सतक प्रदिणाम 
शमस्य ष्पी दे भौ मेल ज्ञात ह नो भूतव सौषै पादेव घ पये हो । पएस्तराष्यंस 
का चिद्वाच्ठ प्रौ प्रक्ष का ईपर तिद्धाम्व ¶सडे उवाहर्ख है । उषा उपोप 
कालको प्रमधिष्के निए हौ ष्ठा है पौरव घामात्रत बरितीय होते है। 
कमो-कमी शोर भ्युभिष्ठ प्रृधियो का निषारक निर्णय करेवा है किक्षम्र 
कूरे भार श्वी स्वापन पुपेय &। पते प्रकार को त्वापनाभो को ऋ्हागा 
कटी स्तात कड कर जिनकी प्रानाणिकता प्ररो षौ णा सकती बह एको 
शस्वीष्मर्‌ कर्‌ देता ६ । वर्म्म इ हम्बन्ध मे रकी पारणा हयेएा पूणवः 


3 ॥ प्रमरीकी कदन का इतित 


जिष्वष्टि बहौ है, जिए लिए मन, म्यचित्व प्रो उनके भूत्य सर्वोज्वहो । + 

शित भिस्वविद्धाशय की भाराका बप्तुपरक माबबाद, बैयध्धिन्ताका 
मतिपी है । मड भार्मा टा एकर दसा बेन पपा है, नो मतोदि्धान के प्रति 
श्दसीन्‌ है प्रीर जो मानवी भनुमब को उसको देणदासिक काल-मति प्रौर 
धस्माफ्व स्मो मे छममने को हौ एकमात्र पृखं अनुरगगाद मान्ता 1 कलित के 
शिज स्मृ प्रोफ पिलषद्ी मे “बस्तुपरक मन” शा णो यह पथ्यवन हवा एह 
है, बहं माबषाद के भन्तग॑ठ उ प्राम्दोलन का प्रमदीकी प्च है, जिसने न्मनी 
भरर एभ्मस्वान दोनो पेषी पदा के प्राघ्ोजनातमक मित्लेपणा (कोष्ट 
परम्परा) क घाप मातम प्रात्मा की ररिषासिक्‌ प्रगबारमा (दौेल श्री परम्पर) 
कमे म्ब रिया । घ प्रकार एक प्रा्तोजनारमक़ वकपाल भ्रोर एक इतिहास 
शर्णनको धमु करे भ्पछि प्रौर समाजो मेही फएकषंबरिव एकाक 
ङ्म प, प्मुमब कै एक सिद्धान्त का कप पिपा बया । 

मेज स्कूस के पमे प्राजराये, बाद मे निषएषविश्ादय के प्रप्यद्यच भैकव गूम्ट 
धरमन भे । कोष्ट क प्रति प्रपा उस्वाह उरं स्कोरमैष्ड मेप्रष्ठदूपाषा, बो 
कनाद्रानुं भी रनके एषषा चहावे षप ठक गही कतिजमे बयान 
पे रहे । १८८५ म जब उम्हुं कोल बुलाया गपा धो दके पत्दरन 
बिचार जिक्षिठे हुपरा कि पासोनास्सक माषवाद दा परीका ढे भिये जिधरेप 
महत्व ह, भ्पोकि पह खिटठाम्द मूतः महान्‌ मप्यस्व भा ध्रौर रोके बौ 
महान्‌ मध्पस्व बलना प्रमरीषयक्ी नियतिषी। हयूमके प्रगुपागवाब प्रौर 
लाहइवतीद के तकनाबाद के भीच मेप विदे मकप्ट मै निस रीपि ठे पष्ल्ता 
प्राप्तभ्रौषो एसपर भुरमतमेषोष्टष्टो भ्याश्याकएे हुपु जिदेपश्रोर दपा 
प्रोर उन्होमे पराणो के तिटान्व शः भानुमविक टकला के प्राडपयक सपो क विहत 
कद्र जिफसित किमा) रम्हेति दवान के प्राकनुमब प्रौर धनुभवमम्प द्वो 
को परस्सर पूरक श्रोर किसी भी भिसान कै चिएु समातस्ममे परजायक माना! 
शरसी प्रष्ठा बिरान भ्रौर कलार फ बीच मप्यरपता को उक्ति द्पनकागुस्य 
कयं माना 1 १२२ में जवर उन्हातै पलोषोणिकस रिम्यू' का प्र्यपन प्रारम्म 
कपा, ठो ए पिका क कप्‌ -लप्य को प्यास्या ठक्ेने ां्कठिक मप्यस्वता फ 
पन्वमं मेष्टौ प्रौर यह बिचारमी प्रस्तुत माकर धरमरीकी दसन प्रोएमी 
भिन्ठ सस्यस्य करने कासः हेग श्योकि भगरीकी सतहि को स्मास्य 
परव पौर परिम कबीर प्रौर पदम कै. बीच महान्‌ समाधाता बनना होमा ! 

१७० पुण लेट दी पिम्तिपिल र्न इषण्डिषिप्यलिटी एेष्ठषेत्य/ 
मितौ बेरे हारा तम्पारित्र “करूुभ्पोरेरौ पराुटियलिस्प एन पमेरिफाः ले 


(श्प, १९१२) पष्ठ १६०। 


रर्‌ प्रमरीषी बन का एषि 


ममिप्ममाणी करवै फा साख कर सकय है कि षते भिणारो को बैसी ही पौष 
स्तच्च होगी बैती ईषा पूं की भोवी कटाम्यी मे बूनानीने हुररषी,पा भि 
शयमम तीन पीढ़ी पूं ही अमनी मे प्रौकृठा पाठ हर बौ । किन्पु ए महत्ूर्ं 
पन्वर शोगा । हमारे रष्टरमे दर्नष़्ा भन्म मिप दाप्मिद्रदभियों के प्रति 
निष्ठ क़ प्रौर मिप दाप्ननिक दभो मे मागं ख फ होना । हमारो संस्वापित 
मिभार्-स्यत्पापे, धगर कभी उनक्प निर्माण हुमा छो, किसी मी पूषेकाधिक 
वार्धनिक ब्पवस्ताश्ै दुष्टनामे तर्यो के कड प्रभिकि व्याप प्राममत पर 
प्राभारिव होपौ । यह सथयुज सौमाप्य की बात मि मिरेपद्रदया की माता 
शशत मे म्पा ्टो षयी है पर प्रमरीश्यों हारा श्री नी भिरोप शोर्ोप्रौर 
भिव परश्मरनो पर इम पपन को गपा दे सक्ते । रिपु एहमोग के बिना 
सअम-बिभाजन धि कोशं बाय नही होता । १ 

णव पुरमल १८९२ रमे कर्निड भिश्वभिच्चालमके प्रप्यस्बन रकरै तोषेण 
स्कूल प्राजार्यकिसम भ उलणमस्मान जेम्स एडमित पीट मैलिमा भो 
उपरहौडी वैषुरमगके ष्य रहशरकेभे धो १९२४ मे पनी मृत्यु केषमम 
शक भाजनाद के कोल थारा रे पुङ्प प्रपिनिषि रे । रमक सहवोषी पसराबारण 
श्म म पठाम धष्णापक बे । भष्पापक्म रौर बिद्रर्नो शी ध्य प्रतिष्ठति परम्प 
की पहमौ पीदभेषही रक भिभी (पोंतेम के कप्य उगकौ श्न रवतो मोर 
परस्व भर्म पर्णो के पनुवायष) मिक्तिपम ए हैमाष्ड पौर पर्वेष्ट दैत्णी चैते 
्यकि पे । भमरीका ये दसन क प्रप्यापरये के एक बडे हिते ¶ किरम पिशा 
पार प्रीर एमङे भाप्यम से कोस क सिडन्तो मौर पदतिर्मो भे रारणनिक़ प्रिणण 
प्नौर शोज-कामं मे प्रसवी स्यान पातत कपा । १९६०२ मे 'ममेगि्न छिसाघोकि 
एणौस्िएषन' ( धमरीकपे दार्धमिक घव ) के निर्माणे मौ कपिल मै प्रहा 
शमी पौर ऋऋपिटन जके पणे प्रष्यक्च षने । प्यागघापिक पौर सहयोगी शासनिक 
प्र्यपर्नो गै कोने का पह प्रग माग माकस्मिकमहीना  इसाराद्ारा मत 
कमो बत्तुपरद़ धववारणा भोर भिजार कमी ामायिष्‌ प्रष्टि मृं बिना करा परह 
स्याबहारिक प्रमोम बा । पपन पष्यसीम मापण मे ्वीटन वै षै स्यट कष दिया । 

हयोज-कापु के इर विमाथ प पह विषा बहता एमा प्रणीठ हहा दैक 
भरतनिक प्रतिक लिए धोढिक घाह्र्यं धौर तमोष प्राषप्यष् है शस्तं 
भरष्तिहितं माम्पदा पह है छि जेडानिक कपिम पाकस्य है कि पच्नोश्च 
संपोजन हो पौर कुघ पगरा प्पध्मोके स्प नहं बट्‌ प्रहमोगौ 


१ लेश्व सूद शुरमन्‌, “दौ छिसाताषिकत रिष्प्‌ चे "पिट तौट' 
कष्ठ ए (१८९२), प्रष्ठ १८, ५। 


भआवषषाद २४१ 


दिमार््ो फ एष एामाभिष्ठ पमृह षे ष्पमं कायं छिमा जाये । हमने सीड हिया 
{कि भौरिकस्पमे धपे ष्ये पसम कर लेना पपे श्यं ने निष्फत गताना 
ह, किर पीडे घ्मस्पा्भो की एष पश्य रिष्ठा होती है ्रौर भमर षामाष्य 
जाप्य शी पू्िंर्जहम कोर पोय देना बा, तो इमरेलिए् चरी दितामेकाम 
कमा परावस्यक ह । ^ 
भोर प्रपते सर्मो्तम निबन्धो ये एकमे छर्होने हसी भिषरारको 
विक्षत प्म 1 
“मन एकपूणं षरं, प्रर धगर प्मुमग क कुठ स्मो मे उषी 
छाभाजिक प्रहेति प्रदपिति होती है, ठो इम पह मापागहीकर सक्तेष्िषह 
भ्रपतै द्वी प मु एकाश्वी प्रौर परम-कम्िह बना दधे । छर मी सामास्प 
जिषार्‌ घौर मनोमेजामिष बिष्किदस दोनो मेही मिभारपील मन क्ो एक बिष्ट 
प्रकार का प्रस्वित्व मनते गी प्रवृति है जो दसी प्रद्मर एक परीर फ धण्दरस्पिषठ 
रहता है पोर एक मस्तिष्क के रयो दो प्यरू करता ६ ! जि प्रकार एक धरीर 
बष्रे पदीरको भने स्पाष से बाहर रवा है, उसी प्रकार भ्यछ्छि $ भिषारधीव 
मनक्ो एकाषमी विष्पुक प्रौदु धपे में कोमिठं माना णाठाहै। बिषारकको 
एष पदमा प्यक्छि माना बातराहै, बो पकंरे, भिना सहायता के स्वयं ध्रपनी 
प्भस्पारभो घे ठसम्ण्वा है 1 ठेखा माना जावाहै कबहु पपन मनकी प्के 
स्वयं प्रपते विष्नेपरणो पौर मनने हारा ष्यक धृगनङ्ताहै। पए मह 
के मिर्ढ, सै कना चाहतराहुं कि प्रामासिष्वाकी णाभकी प्रद्यार्मे हेषा 
बेरे मनो का सहयोग प्रौर परस्पर्भामे छम्मिभिठं होढा है । प्रप्य मनुष्या 
दिषार्फेक इरे पोर उनके प्रकाएजंषो प्यक्छि पपते को भवि कमनारपो 
पौर णललौवामौ मृद्यि पयै शामन्पीषर्यदे यूका द भोर षष प्रक्र 
खाक सत्य के प्राह कृवा ई 1 परिणाम शष पपं 8 मौक्‌ नहौ हता कि 
बहु पूवण उठी क र्मिग्रषे निर्ताहो बस्नि गह बेरे मनो ६ मिषकर 
कानकरेका कत हारादि 1 दिषारष्धो धधि दसि पमं व्वस्मिनषठ 
प्म शं पठ नौ मत्‌ मर्गो एकषमाजदेकापं कारव होत्र है, उौ 
प्रकार पैव वैचिष्वा भोर एजनोहिक घंस्वाए्‌ मौर पमं म्यस्यिषौ 0तौद्यै 
र्पापि एष्वा म खततच्र दतै पोरर्मोमे स्मि क्ेदेहि। सिना स्माद 
सि शष , पहं दच्य धनुष्य क सिमा स्मपर उरो व लागु देवा ट, 
भेदे उथके वैतिष्या शाबनीटि्स्यपर। \ 
१ चेमा एुरदिनिद्धोटम स्ट्फीड एन स्येबुसेटिष स्नातः (म्ार्षे 
द्द) च्ष्ट०1 
१. बट, इष्ठ ५०-५१। 


सष प्रमरीषप दन ऋ यिषहास 


जिष कारण बिचार षामाजिष $, रप्रौ मरण से पैलिङ्कासिक ध्री है। 
नुम श्रौ मिरम्धत्वा प्नोर पकता शो (मनुष्य श्म) एक पठन म्पि 
नेता होया । 

“दानिक विकषात शराकतिक" भिहनानं नही है पोर से पे श्व्य भी 
तै सक्ता! देषा करत शा पर्वं होगा दन के स्यात पर भ्यनोमिद्धातमाद" -पौर्‌ 
भहविगाद' श्रो स्ापितं कृष्ना । चतु दएनको, वर्णन वन प्कमैफै चि, 
त्यो क्र मानवीयकरण करणा केता है, घनाद्‌ जनं परौ पोर भात्म-शतन 
मानक पनुमग के दृष्टिकोण से देखना होठा है, षयोक इषौ ष्टिशोएा चे उक्षा 
क पर्व पराठश््ा जा घष्ठाहै। इस पयर रारन मृत प्रहतिषारी 
होने श्री शरा मानमबादी होढा & पौर खडा गिक्ट्म घम्बन्व ठन बिदवामौ 
प्रहा दै जित्य क्सेम मनुष्य के बिचार पोर ोदेष्य किपा-कताप ढे 
न होते दै । पराहृविरू विज्ञान क पायं प्रपभे घम्बन्ध मे उक पिसभसतीः ष्या 
फ बस्दुपरक रप की प्पेला ठन बेषारिक हटिपापमों सं परिष होती £, जिनके 
रामे म्ब प्रा क्विगये। बहु प्राहिकृ बिडामक्ि ष्टो कोनी 
परपनावा बर्न्‌ रदे पूरी वेण कमान्ठरित षरङे, बैत प्रनुमष $ एन्द्र 
प्राति तर्प्यो कौ एष तवी ष्वस्या प्रदात करता ६ । एसी प्रकार धम्यं प्रहि 
के प्रति भविक प्रृपिषारी के पूर्वं ष्ष्टिकोख को दा्यनिषष्यास्वा़ शारा 
मानदीप भेशाना होता है । दार्छंनिश भ्पाक्या “रिष रौचिधै क्ष्मो के पमे प्रह 
कती" हि पौर प्रहृत मे मतुप्यके मन के घान गह पनुकलता देप है, जिषे 
ह्यष्टौ प्रति बोभगम्य हसी 8 । दूसरी पोर दार्फनिक्‌ इष्टिको इते पाबभ्यक 
अगात है कि मगोगेदानिक शङृिवाही, य मस्तक मव के व्यो ह मिटा 
ये भिन्न एक निबरणा प्रपत का बवे । मनोगेक्यनिष् प्रदिवादी के पात्र 
मेप दष्टो शो उषसौ पकार प्रस्वात-भिम्ु नं अलावा ला पक्ता 
केरे परौदिर-निदृ दे माव बस्तुपरक हष्टिकोख को । मिष प्रहर पौतिक ठष्यो 
क्ट म्नके सत्वम्‌ मरं देकर दफन उषं मापवीयस्पदेता है, उसो प्रभ्मरब 
मेमकिकु र्णी कोते ायोके क्पे देष्कर भिनकेहाप प्यक प्रतिक 
छाषे प्रौर प्रस्य मवुरप्पो कै ष्ठाप प्रपमी एता शो रपलष्ण कण्ठा है, गद 
अप्तूपरक बनता ई। ^ 

पाठ इन पंचं मे जीस्वजिशनेवलापट ( कता } कमे पावना मो पषात 
कमे । प भागवाद पठति भ्रौरष्जिो्नो महौ भानवमगादो षा | प्ति 
ष्याल्या मनुष्य के बदाबरणः, उषे पनुमवःस्वत कं ङ्प्मेकोषानी बी-- 


१ षो, प्रष्ठ २३। 





जागाद स 


ग्कतिम्‌ बाहरपौ,म म्मायेनो) हतो प्रद्मर, शङ्कवि के भिपरीत भूम पर 
स्वि म्पि मनक तिब मङ््राय है, ल ्रारस्मिरू । प्रति रमा पौर 
श्यक्ि परिष पचार पौर घौकति का एष घमुराप बनले है । स्वयं पपै 
विषारये थोर छाषही प्रपते पप्यापन पौर घम्पारल्स भी शीटन ते पराह 
सि रि सद ठररमैना कपे सम्मब नहो पा प्रम केष कलापरो पौर बिदा 
कै भित भिरित सेमं पंपदादी भ्रम ही सम्मव भा विचार कामप्रद 
मार्य कयो प्रमद ममो कै पाय शाम करा । स्पष्ट यह्‌ विदान भाष 
ओत-यीमाद्धा पा जाय तैर मप्यदत क्म श्वम भीनहाभा। यम॑नी धो 
सस्यात्‌ के भमात्‌ प्रमदैष मे भी य मामी पर्थं प्नोर स्ति कै पथाम 
भ्ापष धत्ते द्यते षो सम्यद शरे उपे एष मधी शरस प्रन करते का 
(वेदन्धणिमोषठो बील दफन) प्रवा षा मैत प्रमिद्प दार्मनिष जिषागें 
केष्टारपौरनिष्दरहा पिक पादुके दायहौदाह प्म धिदण्द ॥; 
सथार्प्रराहै, एवल पूवर कि पहत्पृं श्याहै। पठ पक्षम विसम 
परतुमष एतः सम्पूण सष्ठ पाति ईका, पते देषा बनाने के एष हवत 
प्रवि काप्रेवपा। 
करि कीपपिक$ बौवनङ़े ठकंतेभैतत कप वै परमद पत्वा 
मामषादषटभारावौ योकुए भयो ठ योम्ठ हो पकर्ह बिरषविचनिमरमे भौर 
कप पषिह़ कषम ठड़ पिपिमये विष्णि मे पलगी । हस पादाने मानभी 
श्रु श्च धांणिष पयि के साभाव उपद्मी णैविषएवि परपीभ्रोप्दिया। 
प्च काकि दे सादु पौर पनित पि्पोतोमिङत मिरी के पात, भारं 
तितरष्टर मोपिति उर बहुरे एुवा उररी पदपि्योपेषेमे निग्न पयर 
भो प्रपमाने के बडे अर्मगो मे पपना प्रष्व्यन भातौ एता पष्द ध्मा धौ 
पत निरज क एल्वम पराई पार्ये यश्य मेङ तिर घोर प्रम 
षो देन कै पथ्यापम प तवाका। उन परेषिता के उतरिको भोर बदिन 
दषेन कय ्रभाभ्‌ पडा 1 इमे उन्हे सपरा हषेषतरारी भर्मरा 
अमे एत बाध्यषिह धप्विय ढे पितम पट्सु की एत्रमीमांषा धार 
अवद पदाप्यरवादमे सष्यक्म प्रोढ कटना सिवाय । १८६८ पै पमयैष्य शापम 
प्रमे केषा कांग तकवे बोदष पोरु पतैसिम् दरि दि ष्टोगमे हीते 
पठ दे पावुनिष वाह्य णोर मापातु पातै के तिप्‌ १८०० पे पिते गये 
पपु घपतेष्रर्मे भाददाद रो एष िपिष्ट पार केरर्राङष न्यम्‌ व्री 
भधिष्मष्तञ्टयेही तिपिगव हु, गद उन्म पिरिमत पौर गोन्त होराम 
योने े दै पद परम्म शिया 
बे जमनी पे भढ पनर को णाद प्याष्या पौर मागशारय्‌ दवि 


२५६ प्रमटठीकी दछन का इतदि 


जिकास प्रभिषृदधि सौर भास्ठमिरीकरया म्बभ्धी धरस्टूषारी भारणापरो रो 
सम्मिलित फरणै के पक मे स्त्वाह बेकर घौटे । े्ेलेतमुमं परौर पष्य सबकोष्ट 
समर्थक प॑क्पनागिरयो की माति उन्होने का कि जिषार्‌ के कामं एाग्दिक रष 
मे पविहोते है प्रौर मिचारश्ी भेणिमां पवि श्व घि हवी है । घत. मम 
क विङ्ञामषो ठर्याके पन्य प्रतिक ङ्पोके मिञ्वाम मे घम्मिभित न्पाणा 
षठा ह } मम को सृजनात्मक ( निर्माणारमक ) पए को प्राहृकिकि उणा 
कैसख्पमं पमभ्था क्वा है, बो स्वव स्यूतं भा तात्विक होने के कारण 
स्मत र । तकुद्धि ढे भीन के एस भिक्षा का उटेस्य हीमेलषारिमो दारा 
ठकं पौर प्रष्रमकता प्र श्रति प्रप्र ङी प्राञनोचना प्रसुव करना णा । मोरिख 
के भरनुसार इतिष्सके ममे बिजार श भति पूं पक्नोके एक तूर्ण 
पननम से प्रधि, भीवन्त ष्पामो दी प्रमिददि बी । मोरिष धैमन के 
पृजताप्मक द्ध्म कलाप की इस भ्पस्मा का उपमोप ठेये शष्टिकोरङेस्पमे 
क््पि बहु पबे प्िनोा पादवनीक पौर हरेत श ताषास्म्य-ग्यषस्वार्प्ो 
छी प्राघोषना कर घड़ पौर सामान्पतः निष्तेषरा श्च दानिक प्वपि्मो को 
पि घौर द्वाद शौ पडरिर्यो के भिर्ड प्रस्तुत कर सदं । बे दपनषो एक 
स्वतन्त्र रौर भिषिष्ट बिहान मानते भे एक भष सं प्रयोगारमक़ शिपदु पटति 
भ्रौर सकय पे एक भोर पानिषठ बिजञर्नो से ठा दूषी प्रोर बशितीय प्रौ 
ताकि भिञर्तो ध मूर्वे" मिच्च । उनके सिए यद रीर क (भरस्ृबादी भवं म) 
जीवन पा शरारमा कय भिजम जीढलमेया श्यामे धलुमबका जिन्नात भा । 
शास-मीमांघाद्मक यवार्थणार पौर रोमानी संकस्यवाद के एय एंपोगन कै दा 
मोरिखितै र्न शो धिगा भस्य मिन्नानो के पषौन कनि रते पूर्यतः वैतानिक 
प्राभार पर रमै कम प्रयास क्रिया । पह प्रपाण जोन्स-हपिन्छि मं बिषयः 
मङत्वपूर्ण भा बह दैक शोणं क्क स्प मे पती वार प्ाहतिक 
प्रयोगप्मक बिज्ानों का पमर्पम किपाभारह्यजा। एक प्रकारके भाषबादका 
जिद्धानो के बौच भिञ्ञाग केषक्पर्मे समर्थय करन के भपमे प्रयास षे प्रषनी 
शरातंम प्रभ्यश गिसमैल को छमभ्प्र पये म बी स्टैनथी हतको बो उनको 
जिजार-प्यमस्पा को मैदिक श्यनि मानते ये प्रतिक िन्नान नहीं । जं गन्ध 
हमपिन्स मृं पपन प्रपाठ छोर एक सीर होते को प्रसिद्धि कर मिपिषन 
भापस प्राना पड़ा । 
हठ बौ, भान्ठ होपकिन्ह सृं उनङे छमोयी एी* एष पीपर कोष्टकः 
पृद्यपोका प्रपमैदेप ध संणोषनकते काकर्वक्ररहेे) गेमन केषी 
जिङ्धान सम्बन्धौ प्पनी षिद्धिष्ट भारणार्पो $ सान जदुषम्ठकरण्ठैवे पीर 
तैर्र्व-क्िढान्त कम प्रपना ही स्प प्रहिपादिठ फर ष्ठे वे । इन मूत शथचिरमो पोर 


भाववा १५० 


समस्पामा मे मोरिव भौर पीययं समामीयै क्तु १ मरम्बम्पी उन 
हष्टिषनेरा मिस्कुस भिश्च धे । मारि गणिठीय वर्णान श्य मृत्य प्राभिधिङ़ रम 
मे पमम्पयै 9, दु पणत कै किए उतकी ष्ट मेँ उसका भाई महष्व गही पा । 
ष्ट प्रौर पस्य जर्मन मनोजेभनानिषत्े की प्रमोमपरजा्पो मे प्रपिष्ठए पचै के 
डाः जद भीर स्टेनली होषभी गोन्स होधदन्िके संकाय मंपायथये तो 
उन्मि भमरोका भे प्रयोयाह्मकृ ्यरीर ्ध्यास्मक्‌ मनाजिन्ात का प्रभेद कृरामा । 
उनकी षष्टि मे मारि प्रौर पीय श्री ठ्तम-मीमौघा इठनी परिक्सतमन्न पौ 
षि बहु जौग-वैजानिष गहौहो घड्ठी बी । बान इते जा १८१ मे कणोण्ट 
छे प्राये प्रौर पश्यत मो के प्रीन प्रभ्ययन छिमा शर्पनिक जीब-भिज्ञान के 
ष भिभिश्च हपोको एटि का पनुमब किया पौर एन समौ का पापधनारमक 
रेपयोम रतै हुए, शनोनिद्नान' शटी स्ववं प्रपनी ग्यषस्पा तैयार शरै शमै भो 
एक्‌ मूलपबकेसष्प मेँ १८८२ मे प्रष्नणिव हुं । इ मोरिख $ पतीन 
काष्ट का ममोबिह्ान' पर पीर एव डी उपापिं कै न्निए्‌ धोज रयं प्र प्रपना 
कार्य परारम्म किया) अर्वन प्र स्येकृलेटिष फिर्मोखफी म उन्ही सिना एकाषित 
भस्त बेदपेन के सेद्ध श समान्‌ ( उधके पीषु भीमो ्ीपरस्णानौ ) 
शुका पोप-निषम्य कोष्ट फ निर्णय के दिढाम्त पर केन्र षा जिषे प्रनुपार 
निर्वि मानमौ भरयुमव मे मप्यस्य का भार्यं करता & । उन्हाने पइ प्रमाणित 
कएेष़ाष्प्ाकी दि क्ट के सिदन्व के परुार "वना या प्राम मनुष्य के 
पवमव के सपूर्णसेमषा केम प्रर उका प्रपापि एष््ठाः है भीरषुदि (कष्ट 
को हषा $तिए्‌ मौरिष शया तम्य) का पड दन्दीय स्वान प्रौर र्य प्रदान 
कएने फ कारण कृरण्ट एभ्ी दा्थनिकू पठति के संस्पापक् चे प्रौर "जह उल्देभि 
ष शो प्रमनाया षहा बे स्वप भपनी पूटिपा भोर प्रन्ठरिोषो म पत गये । 
देस्सरण बुदं मििमनं मृ मोरिष के सदपोपौ बने प्रोर एसम्प् की ममि 
मोदि भै निहेय सं बिरयव स्वरैएए पौर एन्तिस्ठामर्मे वितां बहवे 
शरिटि्ठ भावषादिर्पो पित्रः परमं कटं एए* एण प्रेरते पौर विियम 
बैमेधसे पित्ते । उख समय ते दैकर एद्‌ वे मासिसिमीमृष्पुफषमयदक 
म्म पौर ङ दनोते हा हयेन शो पभिदरापिष श्वरीषार किया । उनकी शप 
मे येद पुर णक पस्वूनिप्ठ प्रनूग्रबदाने दे छिन्ने बूदिङे इए प्ल 
पदुम ढे परपोयेन्‌ पा मप्यस्पता" भो प्रति श्रना चदा पा। पपत माबभार्‌ 
कषम हणेमदादरौ स्यषोमोरिप शे घयेगा दुमे धविरुभ्यमत्विव कामे 
पतिपारितरि रिषि 1 जिद मारित वे शतक निपेव भिज्ञान"शषटापा बहु {3 
फ पधनुभा९ पनोभिकानपे ब्लू वदाहि कत ययी) [ पराठेभोपाद हापा 


स्ना पौर्हेन्द सुक्‌ शुष्‌ प्य ह्ोयेमगाहो मनाविदान तमा प्रयाग 
१४ 


२६१. भमरीश्चे दन का विष्प 


परप्रूपकेदाग पडे ुएये बां घेए* दी* को ( स्तावष्टीम ) रपामि शेर, 
प्रप्ययनकेलिए्‌ अ्मंगीजा रषाभा। ठेपिपस क प्रामेषिपय गा धर्मास्त 
क्षीरपक उनके निग तै बहौ बस्ती साने बाप भृ समृदतोमो षो पवना 
प्रभिक् प्रमाबित किया मे उरु इतना काफी कैतिप्ोनिया कास्वणंडेतेका 
तैयार हो भे जिषे बे बर्मनी में चेभ्निम चोधेनषहोंर परौर पलीढरर का प्रष्ययन 
श्रे हृए मौर गोटिग्बेन मे मन्म का पापु सुन हृए दो अप्‌ जिता सष । वे 
हसे मय पर पमरीका बापम शोक बोन होपिरि्त कौ परवप्रयम पिपा 
बृ्त्यो मे ठे एक्‌ उन्‌ मिष गपी । रस्ते एक क्लेष्टवादी एापस्वा पर प्रपला 
प्रर तिहा प्रौर मारिष मे दन के इतिहा मे उनकी परीभा घी) टेषटर 
को उपि प्रा्ठ कएने के बाद ( १८०८) वै वक्पास्मर प्रोर पर्तंकाएप्रास्नके 
मिक्षककेष्म म कैलिपोनिया बाप प्राव । कुषबपोरमे बी रणते फिर पूर्वं 
क्ये पात्राक्यी ष भरारषार्बं मे सातय भौर दरौन पाने 9धिए। पमी भोम 
ठता उने प्रमाभिव हए प्रर तीन वपं कं॑प्रल्व्र ही पथ्य भिपठ ते सम्ब 
सभेस मापणमाला के भापणा देते के खिए मिमन्ति किया । पके निए उन 
एक हश्जार डलर मिमनेषे। मापएमापता के संरकं भी पसामेन ते पत्रक 
सौग को षममभ्प्रपा कि मापण पृद्रि पमं पर होगे पै, पठ धनुबन्प पाष्ोगे 
कै प्ते उम्हुं एकु परस मठ-बक््य पर इस्ताघ्ठर शृते होगि । एस पर रोये 
बोपणाक्मीक्िषै षते निए क्सि मह पर हस्वा्षर गौ करी पभरोरलोगेत 
पष्य देष के अजाप वे "कैपि्ोनिमा एक स्टडी पोर प्रमेरिषन कैरेपरद 
(कैतिष्ेपिमा प्रमरीक्यौ चरि्का एक्‌ परष्यमन ) पीप एक मिबन्प वैवाद 
कलेर सग मयै। एम निबन्ण का प्रन्विम पण उदु लै योम्य-- 

*रास्प या घामाजिक ध्यवस्वाही हत्वय है । हमव केवत मिटै 
सिजाम धह ठक तमाज-म्यवस्जा हर्मे भरीवनरेती है । परर ह्म उपे प्रपना 
साणन, पपला छिौना मान प्रोर प्रयतौ निजी समृदिष्ोही एदमात्र दय 
जनाप्‌, छो पौघ्र हयी मड समाय-प्यबस्पा हमारे तिए दुष्ट बन बातो है । हम ष्ये 
मन्दी पठित प्रष्ट ध्रौर प्रनाष्णालिदर कृते मोर पृषे कि हम षये 
हमेशा के तिर्‌ कवे शच दक्ते ह । कन्दु प्रयर हम पिरपृदृकरक्ेवसप्पमीही 
भष्चे षणम्‌ षमाज-स्यगस्था ष्ये सवाकरतेहैकहोहमधीप्त हीषतेषहै रि हैम 
जिखरै शेवा कृष रहै बहु शरीक स्प मे केवस हमारी प्रपगी उश्ववम 
प्राप्यापि नियति है । पु शमी भी मबपुष पनवीमाश्रष्ट या प्रताप्पाधिमक्‌ 
मषीहोती । हमः हौ दवे हेते जवहमप्रनोक््तष्यको उेक्षाक्एलहै। ` 

१ नोनिया पयत ऋेनिष्ठोनिपा ए षटडी पोठ प्रमेष्णिि केरेक्टण 
(बोस्टन १८) पृष्ठ ५०१॥ 





र्ष्र्‌ प्रमरीकमे बधन फा इतिशात 


होती है । गस्यङ्े बारेमे भे दसी प्रयावाती बर्मन) पा कैसिष्टौनियानासी ढे 
च उखा ठे बावकृरते है) ऋसा सपट्न क्षा केबस एक्‌ शोपयूतयं माप्मम ई, 
करपोकि कसाकार बैयच्छिक्ता को बिकपिति करते है । 

यह मैविक श्रन्ठहप्ट प्राप रतै के शाद राप भव बमाक्मीय शंपमषाद 
की प्नोर्षवेहै। श्या पवर है? एष प्रष्न दो प्रषंहो चकते हे। एवष 
परणंहोषकठाहैकि भ्यासृष्टिष्टाशों पूृजकर्चाप्रौर घंचाशष है, प्रभति 
क्या प्रम प्रचि है? पा प्सका धं हो घषठा ६- श्या षो प्म भाषार्‌ 
सिद्ाभ्ट श्रो परम सत्य है? पच्िके स्पे ईष्वर का उन्हु कों प्रमाण नहीं 
मिला । बाष्य सच्छा के समद जिद के भाषार-सियाग्व निङ्पित करना 
जरस प्रामषपक नही € रष्के गरेर एषं शंकाीभा कठो ६ै। पके 
प्रतिषि कोर एक परम कारण भ्रपते परिणाम ङ घाप एकस्य होगा । प्रतः 
कारणां का ज्य मिष मून बूतभारी 8 संपयं पका जिषरत पीर बिकाप, 


पणां पौर बुराई निरन्तर निरोष का छेष ई। 

बिन्तु भाषार-सिार्म्तो क तेज मे हमारे घाममे ैषी ही स्वितिप्रा बाती 
है, भैषी नैतिक प्रादर्णोषे तेत मे| परिमि भरटिकी स्वीषटटि मे परम पत्य 
नितं दै । मह उनके जभ्य होपकिम्स मे पर्त मिनत्व का पष्य भिपम है) 
काएगा फ शूट कैद प्म्मब है 7 

हम पने महाम्‌ हस्ये के मरन पुपर मावकोर्ते कि षो 

प्यधि के जजर्र बार्ठामे जह म्पि भामलेते है । पणर बन प्रौर भोम 
प्राप्र्भे वाठकरष्डै है तो बस्तमिष भनि प्रीर भामस शमघ्र धपते एम्मलव 
म ठगके जिजरार एकवूमरे के पम्मरम मे उगके विषार ये पब उष बातचीत 
संभामभैते ‡ । इम एमे जार भ्यक्छिों पर बिषार रं पर्षत्‌ बाए्येगिक 
जो प्रौर भौन बोमसषी दष्टिर्मेभोत पोर नष द्ष्टिमं जप । 
जब जोन निर्खब करता है, ठो किसके भारे मे सोकेना है} प्यप्टठः ठसक बाद 
मेभो उसके भिषाएकीष्स्तु बा सष््टाहै पर्मत्‌ श्पनै' पोमसकबारेमे। 
क्विखदे बारे भे धह गलती कर सकवा है ? पपै भनति केशरे मे? भ्दीं 
क्योकि उपे षह बहुव प्रश्छो तरह जनहा है। बाप्वमिक धोमप्रवेषारे मे) 
भ्धो भवो प्रपमै विरमं बास्वजिक्‌ भोम दे उठा को सम्बर्व गदी 
कण्ण कि जह बोभस कमी उसके बिजार का शो प्रव बनना ही मही । दिषु 
करं कह पषा है "यहाँ करं ठङेरोप पष्य होगा भरयोकि इम मिष्गिवि हैम 
जोन मस्तभिष याम कबर गलती कर यम्ठादै! हमवत हैषा 
प्रथमच बहृदैा कर पम्वाहै, विन्दु बह वष्योप हेमाय गहीह) मामान्प 
ष्ठि ध यष पती हरं है । ठामान्य बि कहा ६-बोममश््मी मी मानि 


भाग््राध १६१ 


केषर क गी होता रमो मोन, मोमरङिषरेरये भी प्रुल क एषठा 
1 ए पमी ने हम कै पुमम्दये ? 
को पमान भिषार प्रौरकोरं दता मिषार भस्तुल प्रलय होते है 
षते बोन परर पायम्‌ प्रसयवे। हर एष काव ा्तु हेाहैग्षि बह 
सोषा ६ । उनश्मा श पामान्य स्य कैसे हा पष्ठा ह ? भ्याम सरग निद्‌ 
मिञ ्रिभार भी ते जिम हर एरु का प्रपना ध्रसम कप्य होधा ह ? चन्त 
पा प्रतीय होवा दैकिरप्य की श्प के एम्बनप मे टि क पत्ति को 
बषयम्य जमाने के तिप्‌, हे यह पोपयम्य मान्यवा स्वीश्मरनी हाती कि धम 
शे पिच मिषाोश्ा एकह सम्दैप्रोरयेरष्होषे) 
पातौभूरिभेषो षो चोडही गहीह मोस्तष्टवः एक भन्वितेयदूणं 
शमम ह वाङ वैतत भिषार्‌ ही एर भसोम एष्या ह, निमे सा सम्म 
चण बिमान ह । |) 
शरणे म्यो मे शोर मिषार प्रपमे प्रथि पणया भू नही हे स्था कयत 
पर्प मिषारङे परि हो पषा भौर बकी परर भमी जाती है) 
पतः परगरभोई भिषार गसठ ह, तोबहदेषा क्वलह्म कयण्णुहै किएक 
सीम निर्णमिक है । प्रनथ माबमारिथे को स्पष्टो म्मामताद बारे पृ भिन्ठा 
ष दष पमान प्रपिमा ही पह टेल छी जि मागधा सिदा्ठो ¶ धापा 
परबदिष्प ठामम्विभरी दनी हो कठिन है जिमी सत्य की | 
क्या भूरि बप्यभिकः प्‌ दिना "म्मम नह ह षष्ठो } पा सरिति 
स्म पदमराप्मशया कपा माय एवैता हौ प्रमाणित वही द्री हि परम पय 
शौ वम्याषना, प्हीमस्म पे दूरस्य है? वायस ॐ पनुपार ही 1 इततिए्‌ 
ककि "मावः पम्मादना श्रीदं सम्माषना हद नही भो सितिमा शटि को पप्मब 
भनोली है उनका बस्यबिह् होना प्रामरयकं है । पोर शुरि प्रमीय निर्णाव 
पटि कौ मम्यादना श्म एष परागप्यङ़ धं है एतः पुटि" बस्तमिङ्टै, तोश 
मौ भाप्ठमिर होना 1 ध्रव गोपत बरे सनम पामन्दम्नाषपूं राहु $ लाप 
परौर धपती कनिश्यनिया की पार्षरािक्ठा शा पूं उपयाय कण्व ए गह्य 
शमीम तृटि सोर बुं बाप्ठमिष् है घोर पद ध्यापर पमोम मिषा पनन्त 
श्यं देदा तिद कणा है} एष प्यक पम्हप्ट यं मम॒ विय ॥\5 
श्ष्याहै। परप पशौ वड वमम्ते हरि यड परमः अधां वा श्वर्‌ मषी 
६ स्नयि बह ष्दोन वः पार पण ६। पट सोमानी निर्ग प्रोर परम 
प्कयाकातरष है) पट्‌ पोपभारिषट तमरवतरा है णो संप्यं कनो सम्मब 
ड्नाती ६१ 
"~~---~---- 


१ षी, वृष्ट ४०८ ११६-४२०, ४२५१ 


11 प्रमरैषो दसन का ताति 


नैये-जैते गाव को देवनां मृ रयत मै श्य तक का उपयोम द्विया हे 
मैते एसे मिर्ोधिा कम स्पष्ट कोरी ययी । पायु गक के छाभ, रन्ते 
त्ीरिषठाञ्च भोर विन्नात में एयक ये चंपयाग की प्रोर प्रकृ ष्यान्‌ दिया भौर 
पएलस्मशप दस वक के मदे को दतायै रलकृर सष पम्वाबसी को मे निरन्तर 
बदलते रे । 
पी प्रानुमनिक कटिमारई बो रोयस के छामने पायौ बह शरसग-मलन 
ममौ पा स्मच्ि्यो के एकीकरण की कषिनाई षी । यह शना प्राचा है, पते 
जिमो चै पुमा पौर पम्हारि पद्ठीसी कषा जीबन वुम्धारे भिएएकहो हो। 
कु देषा करणा भै घस्मबग ‡ ? दोनो पष्ठ बही है पौर भ्विना मी चैः 
जीने बे पचयुच एक नही हा भारते । जहां ठक शरम" का सम्बन्व ¶, दस्मे 
सिए मूष शेनों इष प्रकार एकोत &ै शि उनका शे होता प्रपम्मन है । {सवर 
मैपख्ठकता का पनुमद कसे कर घकठा ६ पोर मबृष्य प्यष्छि फेष्पमेकेटे 
कर्य कर सष्ठ है पद्पि गह केवश ददवर दी एक इति ६ ? महौ सोपनहोर 
गै रपस को मे्ामा । निजा के बिश्व भा रोयस $ एयो मे जरान के मिष 
कीषप्टिपरे या प्रसम्मबहै। शो चेहा एक में महौ मित सकती । शे विषाद, 
शौ भित्रा ¢ भोर मिभित मही दि जा सकते । ङ्ितु संकक्य मा रोशघकेष््योरमे 
प्रिभोप क निष्म शी प्रष्टि चे एषा एम्भबदहै। दो धष््य मित्र कंकर 
कयै है । ्रेम' मा पारस्परिक परिजौष के दारा सनृभ्यं प्रपते ध्यकठि प्राम 
भोम लीप कर श्वी पएष्ार्मे जी ध्य है । एसी प्रकार यद्यपि ईष्वर के 
दि्ारहगारे भिभार नीह दन्तु बहपरेमया ध्यान क्सि कायंकैवरारा 
कपरी प्रि क्यो पपत परिबोष श्भीषस्तु के स्पर्मे चुन ष्क्ता है| देषा 
बैठे हम भारो प्रोरधठे बिल्कुल न्व क्तु मपर प्राय श धोर शती हृं 
कोरि मं रते क्यं । इम पएकवूसरे के सावं कवल प्रपप्मस्न दीति ये पापा 
हारा; निञ्धात द्राण प्रीको वारा सम्पकरं कर छते है परचपि ध्रपने मगर रषी 
प्माक्रप की चेतना हम शबो है प्रोर हम षद एड धामान्प प्नोति पा प्रष्सप 
के (पशव प्रकषएन' मे सर्मापौ ह । षके विपरीत कषर इवं उपरि पड 
दाष भौर एवह देता दै । दन्तु हमाप्र परिभोप उपे शवतत प्यच्च्यो करप 
मे एषषमव मेपएषका हा स्श्ठाहै ! पवः महतप्य फिहमारा भरस्विष्व 
ध्यक स्मन. सर वादश्च प्रमाण द मि एिबर माषे निर्गपिष्पा 
भिभार ही महौ ई, बह एक्‌ श्प एर प्यालपूषं म्म & 1 
१८६१ म “द््ापोकिकिसि मृनियते पो कैसिषटोनिवाण (कलिप्रिया 
शनिक केव) के परमत पते भाप म (१८६७ ये जरी कन्देष्यान प्रोत पोर 
^ पौषके प्रक्षि) रय तै पदम के प्रस्वितवके प्रमाणा परस्त शापक 


।, 


भामनाद्‌ ॥ ५ ६। 


भि्कोखप्र पवमव $ घन्बभं मेषि ष च्या। यहु) वे दोमिषग प्रौर्‌ 
भन्व की भापिो १7 पमाभान करने कीचष्टा करवै & । 
वे पह विषार्‌ तरिकधिव स्मया ह हि मामम भ्रमुमय मे परम भरनुमय 
निषि $, 


९५३ प्रमरीरी रर्शन न रिष 


संकस्य पा उष्य वस्तु-करण पा बाष्यघिदिकीमाग करै है। हमारे षाष्य 
त्यं या पिबार हमारे भान्दरिक वाल्य टी परियो या धच्युष्टिमोके स्मम्‌ 
गृहठीठकेने कौ माग कन्तेहै। पत जिते इम बा बिरणकहतै है स्वका 
धस्वित् रख पादमं याश्लदयकेल्पर्मे कै जि पोर हमारे ररेस्य हमे बजे 
¢ । स्पक्षिष्रण द्र हृ श्रमो कयै बस्तुपरक पृ ह्य मषाषं ६। 

म य जर्मन पराववाष $ पुन प्रतिपादन से भिक निरोप कु वही 
सिभाम एके कि समे परम छ्य पर फोर दिया गया ह प्रौए बिसिबम बेम्र 
के चपमात्मकभ्पान के षि्धन्त फो भरमशान्नका स्प बे परिज्ा पया है) एंसिस्वाम्‌ 
मेँ एफ एच जडे मी उषी दस्रामकता धे जुखष्ठैने बो रोप कौ परेयान 
करष्होषीप्रोर श्ेग्ते केष्स कणन ते रोपष्तक्नो काफी उरि किप कि 
प्रसीम पूर्णव प्रादं पा प्ृत्तं है रते प्रस्व परे महौ पाया भा पठा । शूसरं 
चर्यो मे प्रपिषाप वापिस श्वी भांति, बरेदसते मभार एसी स्विति मे प्राकर 
उमम मे पड़ प्ये जिसमे प्रसीम प्रतिममल निहित भा । पके भिपरीठ भीम 
को पमप्याकेस्प मे वही बधु निरषयात्मकता क भाषारके रूपमे देखकर 
एप उपक प्रति बड़े उत्साहपू्तं रहे वे । प्रज रोगस के लिए पह प्रदधि कएना 
भस्निहो मया $ प्रपीम का बास्ठरमिक प्ररिदित्य एम्मष ६ । 

कन्तु यहा प्राकर बां पीयसं # रोष पर कृपा शरी पौर एक खा परमरपं 
श्य जिषठनै उक दम यं मीति ऽर्िमि्तन कर दिया । पीक ग नो 
कषा रषा तात्प भारो दुम गखितीम वषास कन प्यमन क्रमौ गही 
कए } इमे पम्हाप्ते पमस्मा स्पष्ट हागी पौर वुम्हारी दानिक ध्यवस्वामे 
कान प्रायेणा । रोप मे यहं पलाह मान सी पोर पम्हं बही कृप मिशेग्या 
भिद््डी र्ट पराद्यष्वा शी प्रठीम सेणी का गणिवीय भिभारप्रौरं व्पास्वा 
के समह का जिजार । एन पिषारो के धापार पर उन्हनि प्रपनो शम्यूरं भ्पषस्पा 
को पन निरूपित क्रिया । श्वी षदं रेष्ट री एग्डिमिनुप्रण" (निष्व प्रौर भ्यक्ठि) 
फे पहले लण्ड क पूरक निबत्प्मे उन्हे पही श्र द्धिम। पीमर्सके 
भुम के धार पर पन्होमै बह प्रमाणिदश्गने ष्पी चेष्टाकीकि भरषीम, 
प्रस्विस्व मे पतास्स्ति भा जिद वदो ६, बरत्‌ ोपरहित म्मवस्वा शा पर्षत्‌ 
एष गूम्पवस्वित प्रेणी काकिहहैः 

उलाहृएण क लिए, पूणं संन्याप्रा भा पनुकम से-- पृथक पंस्वार्भो को एम 
श्रमीमध्रेणीको परमम स्वि ्यक्ति प्रमो येणीमानर्ने। ङनहीर 
पूरं शवा्मो के षाथ भिरा शौ एष प्रटीम भेणीक्ो रपा घम्म $, ष 
परद्मरभी शो पूं कंस्पारभोश्टो जोक बाली (मिणो कौ चेी प्री पंम्रमो की 
पी ङगटतभी प्यास्पाकरती याप पुलति कखाहै। दनी पेफी 


पाषषाद २६० 


प्ाल्म्म्बिव पा 'प्पती प्याश्या स्वयं क बाकी" होवी दै। यह टीम ष 
भार्ण मरी है हि प्नन्ठ है, भरन्‌ प्रप ण्ठन पे पसीम# पर्वाद्‌ एतम 
पृण्स्य शम्यं के पसन के मन्दन्‌ मे एषु कौ प्याष्या कते ¶ै । दी सपनी 
प्याया स्वप्‌ करै बाली स्मिधिया भा परेल का भम्टित छम्मव दै प्तौरये 
केवत प्ररिीय मिवा ही नही हेही । तंपम के हा मि उवार के पिष्‌, 
द म्ये मे, जिम पकिदि षस्यरपो मे बहे मका भी सम्मित है, गमया शी 
एष्ट पाम पेशी निष्ठ है । श्यी प्रश्रः विजार के भिषार प्रादमं कै प्रावतं 
ब्नीयदार्मो शो गद्लीयता प्रौर दान ङेकशानमे। टमो स्वितिम बेबल 
यदिहीम दथ से भुम्पवस्वित पेणी के प्रस्तित्व सम्ब्पो दशहरा है| कि 
पणे संश्यार्मो भौ प्रपनो पेणो रां! कसना करे दिखने मदो बोषढे प्ले 
(निम) क द्रारा एकमे वे सम्पेक्ो भेव्टाकरव है) यपि सम्पीय 
प्रषीम भेषपौ चनह एष्लाष्ड दोनैमे रोेतीहै दन्ु पो ससा स्त्व प्रकार 
एषनुरे सै धम्बद है एमा पह बाप्यबिक वर्णान शती है । एषो प्रकार ष्यक 
भिूभीय तिष्ठे प्यार्याङ्े एद स्पृढ पेसकड होरहे। % पः शो 
भ्याण्पा "पष्प कएठाहै | पह तरिमूतरीप सम्बदता प्रधोम ह पोर यापे का मूलै 
प्रविस्प ६; 

ष प्रश्मर रप, छान शमी परम्परायत ममम्पादै-प्रौए उगरी विषा 
पोरमतु रहेष्य पौर सस्पक्‌ सम्बन्प को ्ेतषादी नमस्या ते-पपेतकष 
हदा ष्र निकल मिश्च मूमिपर मापा पोरप्रतोषोके मामामिर प्रौग 
शूमिपरले पमे) छग षो मत्या बो सात-मोमाष्ाङे प्िमूतीय मम्बग्पोशे 
हराष् ध्यस्यादे तिमूयीप एम्क्यो परते जापर रपम मगवादी दयगिकी 
एक भपी मोर्‌ पठण पमः स्थरार्पे धदव हुए) दध प्बपारयामे रमन 
केव पीयनं से, धरन्‌ होडिपिन के (तस्क न्यर्‌ मे पिदान्व मे भी म्हायता 
पिपी 1 

भब उम्हनि एरय शेपा हिन्‌ मामाह १ पौर्‌ प्रर पपा पल 
ष्टन्‌ पणि कणा हो षह पी मामाजिष होपा। टन्लोभे प्रम्तिम 
ष्यक एहयोगी प्रदापय तवै हृष्‌ मेलानिर्गो टे धणोमममुदाय क दीयमेमे 
मिदान्यष्रगयोशाश्ो तेष्रसमेण्फ कत्व-पोरमामाषाण्यदे पवि) जिष्व 
सपो का पपनी ध्याभ्या स्वे करने गामा समुप है। 

श्याहया क्य किमी परश््या म प्रवरपमेग हौ व्याष्यामैः बाप षा एर 
धमीमियि ध्म धम्पिनित होडा द । जिनकी इय प्रवार्‌ परम्पर प्यास्या त्श 
उन समी परागम्‌ पमे धम्य किभिश्या पी पम निरेवष पदै पाम मिष 
ष्ट पपनी नदौ पिनिपवापो समत एकह श्दास्या दे शगृह म रोवन्‌ 


श्ट पमरकी बेन का तिहा 


नि्मिठ भवे है मिष े्रीय सदस्य एम पो बह पारमा है, भिक मत काये 
कारम शनै । प्रग टोम क्रमे पुष्टि श्याश्पा शा पष एह है मिपका 
जीवन उम छारी प्ामाजिक विभिश्वापो श्रौ खार सामामिष सुा्ो मे 
पौर उह एकी कए है जिने वारम दसी कारणये, इम बागे दै 
क्वे उम प्ागूमनिक्‌ भगु मे यथाप है जिका पर्यय हमारे ष्वामाभिकं 
प्रौर देविङृष्ठिक निजात करये है । दृष्टि का ठ्डास कास की दूती व्यमस्ना 
हस साविप सपृषट का इदिषास उशी म्पबत्मा प्रर ष्ठी पर्िन्पचठि है । १ 

प पिदिन् हो उन्होने पारमिक प्यबहारबार उहा। उन्न ठाने 
प्यबहारजादौ भिवाष्ठ को प्रपाया भ्रौर रै पहारितं षटगके यपाषेके एर सिन्त 
परशागर कपा । 

मानी सम्प श धानुमनिक तमापो ड प्रम्दर रु प्रपती प्मषस्माका 
परं पमाप्रने मे कोद कृष्न नही दं । ङ्न, घामास्यव प्रतिक भस्वुभो के 
मौत धम्य के धम्बल्दरमे उन हुतकुष सलयंत स्वाप्नारपरो श्र पारा धेना 
पदमा । पष्ट इम्होति फिर ईक्वरौव स्यात के कयो क प्रपते शिद्धन्प को भपनामा। 
द्यषरप्रारी पेषी षो णर दकार र्पर्मे एर सम एरु वास्यते षमार्मे 
देवा & सन्तु व्यष्ठिषटो की पमोरवष ऋय प्पागदेयाहै। एषे करापिक 
प्रकरणे की बिष की प्रतीति उप्र होती है । मपर की भ्यास्पा ईष्वर ण्सी 
परकर करता है वैरी हेम संगी कौ किस पुन की करणे & 1 पप्पू पना 
काद्य हुरप्॑यको ठमम्दमे त तारस्यक है । शह्राष्डीप छोव के इम पर्णिठि 
प्रं रना कौ योगमा शटा देवस भरनुमान लगा मके है पोर केवम $गी-कभी 
हौ किर्हीं दुहप्वटो मौर शयो शरौ पहवात शक्ते है । प्रमि नन्ी तरमोमा 

क्ष मिस्वारो भाले पमण प्रौर क्षप धमर हमत वम्पं कर घ 

तो घामद पपि डे पैमाने पर हमरे तिएु एत्वर शे प्याष्या द्‌) क्तु 
हम केवल उषी के साप सम्यक कर मतै है भिनद काल-बिस्नाद्‌ 
मा देसाश्दे ख्ये हैक भिनशी कम्पति इमररे जिदनौ ही हेरी । रिव 
कके जो भिरिष्ट कप हमारे हम्णद (या मिता ) भो धीमत करे है उमृ 
पूर चमु क ग्ल का भृ नही मानना बाहिण । वाकम प्रति कै निन" 
अम्बु सम्पष्ेके स्यह। हम प्रकार भौतिक भिज्ञान षो पपा हदि कापु 
है भोर बहु मोठिर सम््ककीसोपार्मो कै प्रत्दर्‌ भौपिक मस्ुर्पौ शो एकपूषरे 
किए क्म या स्यादा बौपमम्य वनवा । 





१ न्नोपिया संप, श्दी प्रोरनेम प्रो क्किर्थिपानिटोः (ष्पा, १६११, 
प्लव बो, पष्ठ २८२ २७३१ । 


साबबाद्‌ नै 


रथस का दायं जिख पहार क मूष छ है, भह सिङ्धान ये भी परविकः च् 
मिला पता है । चस्या धवं ( बमे-जगञ्न } थोर यतां रयत का माष्मार 
कूस्मिनगाई पर्‌ बाप श्रा जहा दै, स्वि पोरध्रा्याकापकममुशादं परास्वा 
प्रौर ददारक वसादौ एका प्पे धराय में म्यक्ठि एष मरङी हई प्राहमा 
है पौर ययक प्राण निप्यहीनवा क म्म कार्य ऋ प्रायप्जिचच ब्रूमरो को शरपिक 
जिम्डय कडारा श्रना पडला है। छामाग्यं राजनीति ममाब एम प्रापक 
सपृशय क धनूस्प नो होता मयंक बहे व्यच्छ्विद का जायत करवा भरोग 
ग्य्वार श्पवित्र पादमा के निष्ठ पाप है। ययार्पं प्चिहामे केतिप्‌, 
तरिप्यदू्खं घस्य होना प्राष-पर ट पोम्क पमल पे (पवर क प्रषाद्द्ठाराही 
पृदिनाग, स्वत्व सम्मबहै । कारणा कि ईप्बर केदेन शवमुराय-शा-मारमा दै, 
निष्यश्म रत्व है । ह्वर क्रति परेन में पनात्‌ निष्यङेप्रति निप्सर्ये 
उप ष्णा फे सम्यत पूरो समप निरिति है। 

स॒ घश्तरै चच फो रोयम शहा प है ? पाई पथं इय छन्त पोल के वेष 
प्रादिम भादर्मघ्ने बहुल दूर मरकमयेहै। जेना सपर षंकेहद्िपा णया 
प्रापूनिष राज्य मध्वा समुशराप मही है1 सण्बा-समुएय पये पदस्य मर्ह उन्न 
क्रेणाओआ पवतरनं होमे शती षष्टा कं । बिहान जहांदक पन्यषा प्रगतो 
घदारी एला के प्रति ख्व रहतवाहै ब तगह स्यस्पा कमण सश्वा 
पमुप ै। द्धर्ु “महान्‌ समश्य श् भार्ण पयां बही है मि बह 
भौतिक स्प म गह स्वि है वल्‌ "म श्वर्ण कि गह ध्यबर्पा का 
शाएवह भैनतिक प्रापार 1 पह बडु दै जिम प्र पम बिबान करना 
जादि जिस प्रात मुम निष्ट होनी षराहिए । मका यपां मृथन॒सं्रल 
केषा दयङेप्रम्मन्पमे है- पद एकरेमाश्रायं हैजाहर टारद्रग्राराषा 
क्एवा पला 1 

प्रपा प्रन्िम पुस्वरे मगरे एमं रोपयते मति डपा हिप्रािस्ममाज 
मे महान्‌ शमुराय कोपधायाः का युद्य प्रार्‌ बीमा &। एमनिष्‌, पि बीमा 
प्यास्याक्‌ सिूतीय मिदाम्त पर प्रापार्ठि सम्बन्पदै-दीमाष्गने षामा, 
मामाक्एमेदापा सौरततामपति बाता 1 डापाम॑योमे संप-न्डापन द मायं 
काबापाट ंरकाप्मापारडत यागी टै निष्टब्हानवा ष्टे निष्टा का पवष षन 
अतो 1 रयम जे दुटके पिष्डदीमाष्ा मिकारिपशी । मग न्वान गि 
पा प्रमरदे योश्च दोतश्रा पे्री भन्ये प्रष्टाबार घ्रार प्प प्रर 
षी विष्यरनदाम्ये क भिन्द ममे (न्यरिपग्ग्डे। बीनाक् विर्व शोमा 
शष्ठारपक हत्य मर्योतम गुप हरा दरि घ्या बादय-बत्ार स्यन्दे 
ब्ट्यपोदाटाया ) जभपोर दभा सम्यनी कृ शावयद मायरम्य नि-श्य शै 


२७० भ्रमरो दन भ्य इतिच 


यूरोपीय ष्टि बाते पव्ककनो यांकीसामोष्ो पुरानी चतुराई परवीत होमा । 
फ्रिभी मह ष्छप्रयं्मे धिसाप्रद है कि धते एक निमय प्रर मरत्रमाबिना 
सीप मामादी दण परपने बिजार षो बदसते हए यपाणो के प्नुस्य परिमित 
भरने को मग्यता म्यच हवी १ । 


तव से सय तक 


भागाद्‌ की षाराए प्रद पप्रय पसग प्रौर स्पष्टं मही ¶ै। पिक्ति न्न 
प्रकासिच पेसो महत्वपू्ौ रपनाणं वो $ जो मुस्वतः नरम ये किसी एक धारा 
की परम्पराक्नोभागे मे जातो है दनु पिष दिगो मावबापिमो के नैवार पै 
प्रप परम्परागत प्राषारधोकृष्यि है भोरवे स हद ठक माशवाव की पुणःरषना 
करदे है कि माबभाद' पल मभी बुषा पड़ गमा भौर माबभाद खे प्रापे 
णान ष्टी इन्दा माववाविरयो तै बुषा प्य कौट । रोपखकेषतकेमात्‌ 
स्पगस्वाप्ो मे एक्‌ षामास्य जकङव मापा है भोर की भी भषण परभिक 
यम्भीरतायेनकैनै श्चीप्रषृतति प्रापी ई । परब जिते मागा ¶ै, लगमम 
उब प्रकार के माषषवि ह ध्रौर एणती भिभिषदा मेगौ इतिहापकार प्रदम 
प्रौर उद्रमामी एककपव्राठे ख्लोजना बहि, ये पैमम्बर बनना पगा । पसौ 
परिस्ितियो पँ जो पाठक प्रमरीकी मा्बबाद का पिञ्जा इषा जानना बह, 
उसके लिए गाश प्रश्छा हौगा मि प्रागामी पूप मे छामाप्य प्रयृ्िपो का पवा 
ज्ञाभे ङ प्रप्ठकीभ्रारध्पान हेते के बजाय तत्छस सादिष्वश्चै पौरमुबृ 
जाये, प्रर बहा तप्यं शटी उमम मे शने बासी भीकृक्षा घामनाक्रे। 
जिख॒ ष्यछठि पे इस पधदीत पर भजर डाली हा उप्रको प्रपेला बर्मा म्यबस्मा 
उष ष्यछि के रिद्‌ प्रभिरु बापम्यहोमी नो भषिष्य्मे वेड पष्ताहै! फिर 
मी शरु सरामाग्य निरूपणा परीक्षा एर्व के श्य ग प्रस्वुत निन भा सक्ते 
है “भाबी प्नुमब मरो घङ्ठापवा प्ररे जैसा रान ने पेम्प दे प्पबह्मरबाद 
सम्बन्बर्मष्यना। 

पिदधे दिनों कं माजमादी सादित्प मे स्वर्यं माववाइश्र एकप्रसण बनाकी 
चैष्टा छम दिष्ठा ती ४ ।* पह हण्टिकरोएा परठतः मागार को उप पन्देहयरपद 


१ रेपः बनि, किपस, जी पागुना पाकर गस्य प्मोप्वर्बगकी 
शथनाए वैष्िए्‌ । 


पाबयाद २७१ 
पोर माक्स्मिरु जान-मीमांखा घुर एमि षौ पाकांषा षा फस, जिते ताड 
कैसममदेही दस दूषित कर ण्ठा, पोर निदे पदाहरणाभं, बृष्टि "दानिक 
शेम ममोबिद्नान-रोयः शृते ह । परिकस्यमारयकं प्रौर यस्पारमक मागषादकम 
चारापे दवाढयित भाष्य रिव को समस्पाभरो क तिरस्कर भरना यी पौर उनके 
प्दूरारी देष भासोचङ़ो" से पषिक्रायिक्‌ दष्ट प्रतीह हते है बोरममवदै 
नि भाववाद, ईम्सिस्वानी वत्वा मया अर्मत बटना-तिया-बिज्नाम्‌ से भी भृङ 
पा है! उनमें ये श्टुता के तिप्‌ मादषाद उठना ही प्राषीम प्रोर प्पापक है, 
दना प्तेटोषाद प्रर शृष्ठके णिए (विपेपते भरन भोर हाने केनिपरेनिमा 
क म-यूमेचदु पेस्डस हक्छमे) शएाप्यत दमन कहलामे बानी प्तेलेगत धरौर 
प्रस्ृगाद गो एष प्मोग्ठ-कैयाघिक वं्हिम्टि । रिषी एारमन द्यतः श पेरिहातिक 
मृता घम्बष्चो वधिष्ट निना शोधोट हो मी माववाद को प्रपुनिक द्म 
शमे एक पाए भाषसे प्रचि म्यापकः क्पे देषनैकापोर इय दरतुपण्दरमत 
श्य एूगो-दुरमी शाब शाही त्वस्य मानन श्य ध्यापक्‌ प्रवाम है 

बरतुपरक मन के सिदाष्ठका मो मिर्पही माषषादिवा का एक पुरम 
जिपपष्हादै विभि भाराप्रो के तकाय प्रोर दत्म-मीमासको ये प्रतिभापूणं 
दयि ह मिक्मप् द्भ्य है, मिसढ रुषस्वल्प पह एकं प्रमेदाठेगा हंचयो पदाय 
पोर स्वक शपंनिक्‌ प्रष्वपणु प्रीर्‌ सिद्ान्हठ बम यपा! इमे वक्नाबा 
को एक्‌ तया जीषम घौर पराताच्रमारमरू पाषार पदन ष्ि है प्रर सारतल 
बिक्षा ये चर्टपाप्तरढेः ठम्बरप चे पुरातनम छमस्वाश्म पुन मरीतणरूणेष 
सिद त॒ कवलत पायदाहिया का, मरन्‌ मपार्थबादिपां व्यबहारथानि 
्युनिप्खवापियो को भी काध्य स्या हई । पूमरे षष्टो नं पारो $ षाण्टमादी 
दिफाश्वे दो पमरौकौ पापरोषनाए्‌ एक दैसी ठस्वमीभषा ढेः पुलर्जीश्नर्े 
पममीपृष हई है भो ह्ान-मोपामारङ बिषारो परे पेततया मुच ह ! 

कन, सपु मेकिययेरी पद, षदे प्ट, ्ाष्टेप््ौर बुप््िय 
कै पालोभनातमक बुद्धयो की जिनके परम्म भिभार शोर कै प्रप्यवतश्च 
पाडत भे प्र्‌ जिनकी मिभार्-ग्यवस्पाप्‌ प्रारहिक्‌ लान ४ प्रति प्रालोकमान्यक 
एष्ट के म॑पोपमके ष्ण तें द-प शताहतिस्वामरा म या बनवा ६ [ए 
पणर हम रनद नैविरु श्वे पुष्ये कानोदेप्यानदे देने ना भागयानी 
पृर्यगा बो सथ भी पहवानाजा भरन ह रिन्ु पपनो युग रपनार््ो ये 





१ उरटप्दे निए हुमारो भसिन्स अले सामत्निशवागरिषणं प्रौट 
शु षपद्ठिरतायपिणि कौ दनार्पोदो पीर वेरो, प्ट, गोनेवू प्रोरभ्रनय 
पवर्थ दौ आन्‌ नीमासरमर प्राताच्नादरो शो हेनिप्‌ । 


भाठवां प्रध्याय 


मोलिक भ्रतुमवष।द 


ष्यवहारवावी बलि 


जव विततिमम यम्य मि मनोमिङ्धान को एषठ प्राहृतिक्‌ बिङ्ञान अनाना षाह 
तौ मरमतीकौ द्निषयो नो एषु तेज टका धा । प्पतीः शामोजन्मकः 
मवाग्ह नीर में बे प्राृतिक पौर वैपिकः बिहान के वैपरीत्ये पादी गबे 
पे चैवे सारी पाटुस्वश् का रीपिपत पमार हषे के प्रतिपिठे गह प्रास्मा 
षा पटल प्रागार्री को उु्ेप मं दित्ठाने केः एतेदनाकाद (भह धिठाम्प कि 
छारे भार समेदना पे असन्न हेते है-प्रनुर ) भौर प्मम् घणा णमी के 
गत्पारमक मतोगिञ्वात मै एस भिचारके लिषे हार खोर दिवाना किवुरिष् 
परगषारणा एक प्रङृतिष प्रक्षिप के ङ्पयेषमै णा सक्ती है । ह्ितु गाभिन पी 
जो प्रन्धराष्मा पौर पावनार्मो छम्बन्धौ धपती रथमा मे मनो-जीभविलान के सेतर 
मं णभैपपा प्रारम्मकरष्ठैये प्रत्प्िक्‌ घत्वे । भैेन् १८१८ मे जमित 
देत्महोस्द्ज, बारकोट पोर पन्य प्रहतिषादिमो घे प्रेरणा दे परोप पे भौरेपे। 
द्िन्ुः उ्ं पर मी कण्ट कय प्रयाम स्वना काफी षा हि नैतिकता धामार प्रम्‌ 
शरवुपविक्‌ हाने पर उन्न विरुषरा बता एठा) दिनतु बुधि, पत्मा क्य जौषन 
माभिक छिमा, मह पेत जो प्रपती एदेष्यवादौ प्रति के षरा नैतिक भिन्ना 
कप्र्न शशा पवाणा उस काभोदढेसेतरक्षो प्रद जीव्‌-विडान मे पमादिवि 
ङानाभा। पषतर्क-ुदधि की भ्पाष्या पदुजृद्धिश्चे स्ामाभिष्स्न्धान केषर 
भगे जानी षौ । 'रपात्मष मागवारिर्पो जे पौ इ बिचार शय दिरोष भिषा । 
उन मवादुषाप् कोर तारङ्ष प्रस्य पा वैरिकलप्य धयो षार प्रध्पापो कौ 
ष्दास्या करता §ै, उन प्रपं देता भोर धपु करता है , ठस प्राषार पषाषे 
शौ दाङ पोर प्राप्वारिमङुधंरनामे षीय पष्ठाहै। पप्र इम मोचित 
कारो शो वाङ णेष्व के एम्दमं पे एम, धमी हेम गषापेष्क्ठयर्पेष्ठो 


बलिक प्नुयनाद ९०६ 


वैकि सरो को" पमापिष्ट कर सक्ते है । भौरिष विन, मनुष्य के बान्विक 
बलति पौर अटि धै पवी शिम्या धीततेषी बेष्टाम्‌, कषत भिजगानक्ो 
परतालबी भनाठा ह 1, प्रर बे एष» दिस्त प षामाम्य विष्वा षो सयक 
रहि पे व्यक दिवा, भव य्हूति धिदा - गिङागाद प्यास्यास्मक है, तीचिणान्न 
िविनिमोयकहै; भ्याम माज पिके पाषार पर मनुष्व पिके किये 
जिभि-नर्मास कर सण्येहै? रसरपे नटे वही कि बस्तु जैसी है उनका 
निर्षीरण कणे मे सकि हे भाप्तमिक अनाम का बर्ण॑न प्रषटतिषादौ पिराम्व बहु 
श्वा कता है 1९" दिग भिमो प्रौर बंवपिमो के मस्विष्क दरो ष्टे कृष 
पौर्व प्नुप्य कौ श्रहतिः क सिन्द शे बोपणा करणा जिसमे ठार 
शरत" बाहर दही पभ दहै इर रण्व विष्वा का विष्ये कमे बाला 
कदे “भिपमेषी इय इष्टि ठे, इमे एषी चित्ता वही वंलिर्गोके 
ब्दबहर वास्तव यै क्या । हम ण्टिरिभी एमद्ये गौव करये हैकिएरहुष्या 
षदाहोना हिनो > ठचमूच बिडान इमे सदु, कर्तम्प या मतां 
डी दैपताङषार्मे कृषनषही गवा वषा उनका पौचित्य पन्तिम बित्वसेष 
न एक प्रञेय चैतनामे है ङि एलका ईम पर पचिकार ह, उनभै इम पर ला 
ह।** भगभादी वष पहभालिषो दए हमायी मैतिक परहवि के सिप सवै, 
मह्‌ हमारौ एकि प्रृतिके धिए्मी धष प्रौर इष श्परण मलोमिन्नान 
शाशत्य क्पे चैपता की हमाी धेम धेतनाः पर ही पाभारिति हौ सवता) 
ष्म॒ परिचि प्रौर पूणः हम प्राप्छिपो शो बीगगानिक पौर 
प्ानुवरिक धनुमवषादियो ही नवी भारते पनसुमा कर दिया । उनका मनश 
प्ाह्धिकः जिद्धान धष सम्दन्किह महौ भा किमे स्या पोषा बाहिवै 
अरन्‌ एएरे कि हव दे घोषे है सोर वा भु हम भिप्वाएकणे १ श्हश्यो 


११ दरतप्प पौर प्रस्तुं बिद्ार जवि डके प्एुनिष्त देष 
श्रिखिदत्‌ सायष्प हे निये पे हु--वयोबर प्प", तण्ड तात्र ( ए८८्७)) 
पृष्ठे ७१-५.८६१ 1 

२. खेर एष, हिस्तोप, भोपत देष्य एिषम प्राप्तम पर्ष 
पिपृ," चणम { ¶ृष्ठ८द ), प्रष्ठ ८८१६६} 

१ पेषोय्दरत बैन एवन शिस्वप द शुप्पनद्ो एता, 'एविषत्‌ 
एयर ड दानस्य वो हमा ते सिषे पपे है, देष्योदर रिष" एष्ट नौ, 
{ १८८ ), पृष्ठ २०१-२०६ 1 


४ केन र शुररमन, ष्ठी एूपिर्य एय परो हनि ( ्युपाक 
{८८०} श्य १६४ 


२७८ भमरीकी दन का इतदि 


उका पयि भिष्ठाय रमे के च्रिएम रनकेपास बैचानिक प्रपत पैम 
मनोषैञञामिक्‌ इथि ही धी । रनक लिए जात का यह यथा्॑वादी सिद्धत्व केवड 
बैशषानिक दैवदाद, पौर सबटनारमष् शद्याष्ड-द्न ही मूमिष्ठा जा । प्रव. क्ट 
कौ एरी भरासोचता फे साब बैठना प्रौर मन के एष पवि विष्वा बीष- 
बैद्ानिरु सिन्त को जोड़ने का काम एढमथ्य माष्टवोमरी चये परङतिमाभिर्गो के 
हस्प मर प्रावा । हैमिष्टल श्च वलल-मीमांघा पर बट के मिष बोम्सी एष्ट 
निर्मरवा को हिताने मे ठेवट मे वड प्रसफ्स रे बे, किन्तु बे एस° मित रा 
हमिस्टन श्यै परालोषना पीर शिति फो रबना शभोरिथिन पो स्सौषौड 
{ बाठिर्यो का उपम ) प उदरं हिता दिषा । १८७६ मदे डाबित केषाव 
भ्मलो-पआङि-जिज्जान की चरणां कर णठ भे चव डामिनि ने उनसे यह शात्वार 
ण्ठ्ने बाला प्रस्त क्माकि बस्तु मन सहै दैवा कवक्डाना घष्ता) 
पषटट ते प्रपते एत्तम निगष्य शौ इवोश्पृएन प्रर सेटठ-कष्टसते', { घात्प- 
जेतमा का निक्मप ) मे मातिक प्रष्ार्परो भोरमनबशि्पो को एक जीव 
बैङधानि शोचा पात षरे का मौलिषु परिषाल्मनिङ प्रयास किमा । 
जिस प्रकार शेवट भावाद को एष्ट दे ली मना सके, रषी पक्ष 
राष्ट शगभतर निरव" क़ी बर्बरा मे धीर एव पीय से बीभ-वैजानिक 
स्पयोमिचाबाद को. स्वीक्मर नही करा घडे) फिर मी पीवरं ङे पमत्माकपे 
विषया पौरवे प्रापिकतार्मो का प्ययं सपना एक ष्वबहारवादौ सिडान्त निकपिव 
कर णे बे । भते के पवर संस्करणा के एमीला मे एस सप्रजम सेच मिता 
छ्िपायरस के भिणार ङसि दिणार्मेजा रहे ^ बहा पौमपं मि पैदौ स्वापनापुं 
प्रुत श्म भो कं पीक्ष्ो वरु विषाय क्म मियय भगो रहो प्रौर चिनक्म 
व्नवदाएवाद ऊ एतिहाख मे भागारूव मत्व है -(१) नान क बैवताहप्रलको 
एक मैजानिक्‌ पमस्या के स्प मृ पागमन कौ पदति से दा पौर पूसम्प्याभा 
कठा ६, (२) प्रयोगा्मक घत्वापन निर्न मे मन्वतोमस्वा समति होने के 
मिध्नाघ पर प्राप्ति है, पीरश्ानिर्मौ & धषुराप दए धण्धतोगत्वा माम्ब 
छाषिकताप्‌ ही पवां प्रर स्त्य ९ (१) कोष के एस ण्डवान्व की म्पास्मा 
हि बापु मस्तु मन ठारा निरबारिवि शती, एय पर्थं दको जानीहि नि 
बस्य के हमारे परनुमब प्‌ बस्तुपरक हृष्टि पे जैव घािहवाप्‌, मारिष हा" 


२ एतषठी चर्थे प्रभ्याय मे परिकप्पनारलरु भोकभिशरान रे प्तर्मत 


देलिपु 1 
२ चार्व एतज पोयर्प, "दी वत्सं पाड जार बले, "दो तापं पमेरिषय 


सप्पि, अण्ड ६६ ( १८७१) पृष्ठ ४ ५०॥ 


२८० परमरीकमी दसन छ थिह 


सायम्त मन्यौ" के तर्वम्भर १८७० प्रौ अनयो १८७८ कपर ्मदैने क 
सहस्र कपा 1 ^ 
ण तोन पित के व्यरिः म्‌ मलुधिष्डवारके मार्गति एषे कम 
निमय राष्ट हए पौर इ कारण पीव ने वनुं तीरा पिज स्वक 
का ्वे परेष्य पूतपरम्कि रे रि विदान गे पगृर्ठं धियार्णोके 
भिम शापोषिनय पीरङुदनहो है सिप्रापप्रमव कहने मूततंदयातङ 
जिस्तारर्मे उनकी उमोपिवाङके। 3 
कितु रको स्वीषार शिवा ढि अहां बरमजन्लीद प्रोर तत्वमीनांषार्यह 
परिकिकनर्मो कने उमोभिता पूर्वतः भैविष या व्पाषदरिकि होवा, ब 
पेडनिढ पपी शमी उमोपिवा वंानासङ् हा धङयो चै, ष सीमा वकङनि 
उनके शवरिणार्ो क्म पणव घटयापन हो ष्वा &, पा मे परिष्ाम देष मिषाते 
श्प हवे है जिनका एस्पापन सम्भव होवा ई । * यहं सिवास केवल 
भगुमवभाद @ पूत सिद्धस्य का पुमप्रदिपार्न है, जिम सिजा के उमम । 
छमस्वा के याप मिवारयो के सस्यायन की छमस्मा प्र प्रप्र छपा यया ६। 
ङ्न एष्ट पर्पणमव पुमगषाद ते करे पाबे बृ पे भव उयोने नणि 
परौर बस्तु (सम्भेकः देण श्रमभक्ट ) के प्रर श्व ठो ठपपीयिदा शय परषत 
उपा प्रौर शहा # ड पन्ठर धनध परात्मश्न' महो है, मैषा कि पिका 
त्वमीमाह माने कै" बरल्‌ “ड़ घयुश्पक ष्मो ष बौष तम्प के 
क्षामाङिष उस्मो केलिये निरौप्षएपौरबिष्वेग्ण या स्वा मपा बग्प" 
$ ।* पहर गमा पष्ठः निहित, मौलिक प्रवुपमाई ना पमौ पष्ट 
ए जल्पं हटि पोर पाल भीन इ स्यार कमेषव पेतं पह 
शरस तेषं पोय्पं ( द्धेम्तिज १६३१ १५) अरा ५, प्रष्ठ ७ । 
२ र बदटनवेते, शो भोट रेणा षरेशटर पोह दित्ियम केण 
{ बोष्टने, १६१५) शष्डर्‌ प्रष्ठ १६६ 
१ ढो प्रिती पो हरक सन्तर ( ८१५), बीग्मी राट 
छिलाताभि्त एिरमनान्त' ( पपुयो, १८०२ म पुनपुठि, प्रष्ठ ५९। 
जते घते ष्टा-- (शितीप सान्ति पपरन जिव दिबपि परश्रपारिति 
ह प्रवि हवीमनि साहि बिहान घि पण्ड निबा, प्रोच्य 
तिदन्ध रेषेहो कर्यदाे पिभ्ार ई--वदयङ्े मनि पारा नरी, वषत्‌ ग 
परत क्रमे वामे" -{ ह तेढष्न षो {पे प्रक प्राद्पिग पाग, 
११.१५, एण्ड १, प्रष्ठ ४६०) । 
४ रा (दिवावाङिियि एिरणयन्वः प्रष्ठ ४२1 
५, शवस्पसन देय तेर -कानग्पधनेत ' बी, प्रद २१७-२१९। 


मोलि प्रूमबाद २८१ 


ष्पे निस्य कसे केपोघ्रभादही रट श मृतुहे ववीप्रौरफो कष्ट 
ग्रकछाद्धि प्रपर प्रौर इ समम यवित दते ता सृषगा जिका पीपर की 
दिणर्येकरते माजेम्धश्चे पिाने। 
पव मे मौ रमो वस्पुनिष्यभाप्ते परिये प्रारम्म स्पा जिघपर एषठ 
भेशेर न्थिषा- ङी उस्तुका हमा विशार उसके धद पमन का 
हमा वषार हेदाहै' प्रौर प्रपर ष्टम घोषे है नि इमाए बिचार कुण प्रन्प 
होता, तोषहम पोषे मेह भोर भिचरार के साप होते पाती मात्र सत्रेदा मनै 
विभारभरा होएकप्र॑म मानते भी पूनफएत है) देवा कहना निरर्थक दैक 
वभार ४ एकमत कायदे पदम्बद उका कोई पर्ता है! पठः र्ठ 
शुकी हमारी भगपारा यह निषाद कपनैषेस्पष्टष्टोषक्तीहैकिहमारी 
भपप के शपा प्रमाषे द जिनमे स्पाबहयरिक प्रासमिकवा सोषी यास्को) 
कर्मे परावर प्राहडिमाञ कोर \ प्रपते बिषार्ो चे स्यव्ट कै $ 
५८७५ }, पीप पने पब प्रिद लेल मे पीय प्रपर एपकेधये नणय षो 
भनम्‌ प्रौर एष्ट हे भ्ुनिप्सशाद मे निपेय पन्वर न्‌ होठा। हिन्दु उन 
पष्प उरेप्य पह दिना दा हि एन ब्तमिप्टावादी इन्दो मे मी "पूर्वन" 
शरोर एागिकनाप् के पपार्बं पोर उनम उपपोपि्ा क सममाया जा पक्ता ई 1 
शुर परम्प गुणश्च पि यथार्थ मी उन वििप धवि पएमाषो मे होता 
प भा रध्य भाग तेने वासी रपुं गलप करली है । पथाम प्रमो का 
एव माक प्रताग विष्वास सतप करना होवा है भ्योक्रि उनके वारा रद्यीपिदे शाप 
सकेगाप्रो काशचेदनामें निष्वाधोषेसश्प मे उदममहोठाषटै! धत प्रलय 
रि पष्क दित्या ( वा यथां मृ भिवत ) पौर मूढे मिस्य ( पा भक्यना 
से दिष्य ) के बीच प्रनतक्रये कमा जाये) पव दपर मूठ निरयो 
का पस्डण्ड प्पे पूरण दिवाह मे वेदश पठ निर्क्छि कणे शो प्रभोपाएमक 
ष्दश्खे हेवा! 
शकि विष्वा कयं र एष नियम है, यिप पायय पौर भपप 
कृषा घोर पपि विकार परम्मितित हारे है पवः विस्या एक षिम-बिनदु देने 
¶ ायष्ठाप ही दक नया प्रस्यान निन्द षा हठा है । टो करणु मैने निश्वास 
श विाप-स्डित निषार्‌ यै, पद्मि बिभ्र पृक्तः एक न्ध्म हातादै) 
जिषार एर दा शपरम्विम ब्र्णिमैता है र्ण्छ-पश्थि का प्रपाक पौर भिभार 
पव धह भेन तष्ट रह थता { रिन्दु सिवा मेडन मानखिष् पिपा बा शेषा - 
पथे सित्रद्वाए हमारी प्रति पर साला मपा प्रया ह, णो पश्ष्यढे 
तिषा ष्मो पमारिष करेगा 1 
पाध का निर्माण पिय क सारद ह; ममिश मियो को 


शप्र प्रमरीष्यै वर्णना एविटस 
बिशिष्ट्वा कायं टै निमिश्न रतिं होदी है जिह दै निष्नास स्तश्च फते 1 
भ्रग विष्वासौ मेको प्रम्ठर शस प्रर्मे नहो होता प्रमरवेकामंश्य बहो 
निमम ठसष्च करके ठो एंका का समाधान करे है तो उषी वेधना किप 
अकार हठी है बषते एम्बग्मित श्यं भन्देर ठन्हु यिद जिस्वासश्दौ भना 
सष्ठ । रसो प्रषार वैदे किम को मि सप्तको मे बताने पर मिश्चषुरगे 
मी बन जादी । ? 

शखर घमो मे पयं सोचटै यै कि उन्होने पाह प्रमाखिवि कर दिपाभादि 
चेठता सा भागना शी क्ती जिरिष्ट स्वि से भिश्च रिस प्रबबारणा घानिष्ा 
याबिभारको म्मबहयरिशस्प मं भिरवास की प्रार्तो के पल्डमं मे परिनापिति 
क्रिया णा एकता भा ध्रौर यहकिये जिदणाघ फी मातं स्वम ब्पाबहारिकि कर्म 
कामं की प्रातं है! प्रात किसी क्षाम्य बिजार की बेवीम प्रविगृतति हवी १। 
छा्िकताप्रो के पथां की बहे व्पस्या पीयर्थं को म्यबहारमार का केश्रीव सिदात्त 
प्रवी हेदी बी । उनको दणि एक परति बिषिष्ट परार की ष्पः मे बी- 


स्ामाग्पीकरणा क्म हिप 1 

श्मैषै ते पहले की पपेसा भ्यादा प्रच्छ दर ममः सतिवा किमाव 
पदु-खष्ठि के प्रमोगकेख्म मे ष्ट्या खव का रदेस्य मही है, भरत्‌ जिषठहम 
सामाप्यीकरण कड पक्त है- देसी मपा बो बिभार कौ मिमित करती प्रौर 
उसका जास्दमिकीङरा करती ह जो ( भि्ार ) शपा के विता धषिषारित ण 
बाता । दसा बहुद-कुष है जिसके एरस्वश्य य पते से मो पधिकगह 
माणवा हूं कि परबधारणा कषा एकमात्र स्तनिक पं परलम-पसग शरम प्रहता 
६ । दतु पहले मी पिष मै भव यह देल पाठां दि क्यं ये माषे स्ेण्ड 
पि सूस्पयान नही हठी वरन्‌ जारको बह चो जीबन प्रपान करवाई, बह 
मूम्यगान हेता 8 । * 

पीमसंमे पाद्व कि एकमात्र मस्त मबिषाठीतत पौर पूर्भवा तक जाने 
भाला म्यबहारवादबदीषा णो बाद ष्डे-- 

जिन ब्पाषहारिक वर्पो शे भोर वहध्यान क्लोषदा ई, वै प्रन्तिमिर्पम्‌, 
एकमाज प्रश्छा कायं यही कर ष्टे है कि टोखक्पमे ठाङ््ता $ मिक्ायश्चे 
भ्राये भागं । भता इस प्वषारणा का पर्व ङि प्यद्टिगत प्रतिश्वार्भो मे 


१ अस्ध्प बु्लर हाया पम्दास्वि “रौ छतो श्रा शयत तेमेष्टेट 
रादधिम्ड ( पपा, १६८० ) एष्ठ १६ १०, २८ २९॥। 
शपेत की पृष्तक लष्डदो एष्ठ २९२। 


मौर भरनुममभाद्‌ ण्ठ 


सुम परी गही ६, बर्‌ एमे है छि दे प्पिष्डियाएु जिर प्रकारं उस जिका 
गोमदैवीहै 

क्तु बम्प घर्व॑पपम्‌ एक प्यद्िवारी दे प्रौर भे इयं पीययं द्वे ष्यत 
बहोष्णेकि "एव पषकारसा का पपं किम्ही प्यद्िमत प्रतिच्चिमिर््रो पं 
बिष्युख भौ रदी" 1 र्नो स्यवहारवादए का प्रपना एक पंस्कराप मिक्पित 
म्पि । का पषा प्रक्रप्ि प्रामाद १८७०१ ब्रू हेण हमत एष्टतेषट 
(षु प्रोर मानष बुद्धि) पीपर एक तेष मे मि भो अनर शोफ स्येकुषरिब 
किसे" म अरषपधित दपा छर दपसिस्वान में छमानान्धरणाद बर बल 
पजिषादव्‌ परापरे ढे क्रिये तषि प्ये पौर "माष पं प्रकाप्ति हेड 
ष्पठाए्यी प्पाटोमेटा }' (या हम स्वचालित मम्भ द्वै) म पते चेद्ध के वैञ्ानिक 
मुषे षे पन्हमि धपिक दाघ॑मिक पोर विवादास्मक श्प हिमा! एम पैलो मं 
च्य परशोन्ती राष्ट श्य प्रमाष स्पष्ट है बप्पि भैम्य नै उनका चिक्ष्ाप 
शकर मलते दिया पौर परषमे इए मतत कम भोचित्व प्ररिपारित करने के किदे 
ति भाषणा गा चेतना पं उपपोपिता होरीटहै उन्हेनि प्रपने हृष्टो के 
आडिनवारो कदय) 

प्न पह दिखाते की भेष्टाक्ीङहै हिरी ठर्कनाभनङकी एत पोप्पवापर 
लिर्म॑प्द्री है किभिहषटनाङे भारे मे वद किना जा गहा ही दष पूया 
को प्रासिकि लर्ण्ये पा दस्यो पु बिमाजिते करसे भौर ठा््ते उत बिष्ट 
छत्व कने शरुत दषे जी हमायो निदिषप्ट छेदान्ठिक या स्पाबहारिक समस्या दैप 
उचित पाम दषे जा सङ । किसी प्रन्प घमम्ाको किसी प्रप्य परिणाप 
षौ धामाव होगी पोर उषके लिये कपी प्य त्व षो भुनता होपा।+ 
प्रतिभापाशी म्व बहहोतादहैषो हमेपा षौ स्वान पर उषती वषर्‌ शदो 
शस्व को चन तैवा दै--भपर धमस्या पैवान्हिक ह, ठो षौ ^ शे 
प्पाग्हापिकि हृष तो चही "दधन" को \ मै बह प्रषपिव क बुहाट भि वमानवा 
हा दाच्यं पर्यूह षस्दुर्पो को उनके त्यो पृ मिभाजिर कणीय महस्पू 
हदपष् होवा है! ङितु पड़ पाथम केषतं उषी जयत दा न्यूनतम है भिपष्म 
प्चिषतम टै षदो ठकः) भूलता 1. दशना णठ भपनालकन्ध्पिषा ही रह 
स्प जो मामरिक स्वदि दा दाप्यनिष सव प्रती पी है1 

“पम कौ स्षठ ठि वस्दुपरष्ठा के सपि भये प्रजमिरनारनदः पष धे 


९ एनं मोर बौर दो पुरर व दत, चण्ड ५ पष १ । चे, एम 
शमित हार पथ्नारिति शिक्ठनरी पाड सताती पष्य ताणलोडौषये 
दीप्त के मेल शरेगैरिक देर प्रगभेदिनः हे | 


कृत, पमरोष्ठौ शर्धन का पहात 


इष परिणाम पर पुय ही उम्डेभि षते विशार के भषिकष्म परिकस्मनालमक 
स्यो परसाग्र किया भोर "सेर्छ देक्पन दिष्ड भीस्म" (ह्म-षमा प्रौर 
देवदाद) धीर्पक निभन्व सिला ] इमे इमका प्रपला ध्यवहारमाद प्पते बिधिप्ट 
ष्म मे प्रसुव हृमा-- 

“हमारी प्रपि य संकूक्य मिभाम परमधारणा भिमाय धौर सादत भिमाग 
शोनो पर प्रमाबी होता है । या घीषौ-घारौ पापा मे, परस्यश-ब्ात प्रौर पिष्ारण 
किवत प्राजा के किए होते #। मुपे मिस्वास & कि पारमिक शरीर 
प्सिवारमक भन्ये कौ सम्पूर्णा बारा इमे भिस प्रोए ले जाती दै, उक पाणारभूत 
निष्को म इते मौ एकः मानना ग्व मही होमा । पयर पूषा जाये शरि पिले 
कपो मे मगोबिन्नान को पसेरक्पा{ब्नदकी षद देनक्पा रही, वो पुरे 
विवास दहै किहर्‌ पसम भपिषटापी भ्यक्ि षय यही उर होया कि एक 
अजान प्रम्यतर कही भी एतना गम्मीर वही रा भिता श्प व्पापण़ पौर 
समाम्य ष्टिको के ्विए गि्ठापस्त पात्रा मे उदाहृरणं त्यापन पौर समैष्प 
अष्तुं करणी मं 1* 

यच्चपि १८६५ मर "समर सूल भो एषिक्सि' मे उनका दौ निघ द निम" 
सी्पक मापा बोषह़ षयं बाद हरा दवि एसे रन्ति पाईते लेख गे पंकस्पमाद 
प्नौर दिम्यश्चात निराम' को पुन प्रशिपारित कएने क प्रतिषि, विषैप कुष 
मी कहा । फिर पी पते धेड पौर कुच प्म्यतेर्खो के पाप १८६७ दषते 
प्रषम्ठन का बङ्म कबरदस्त प्रमाव पद्म । उनके मिर्बोक्षो भी पह वेक पतन्द 
मही भावा । उम्हनि दे न्ट्पा-क-लिषए-न्ध्पा क समणैन पौर भो कुं विषमाय 
करा चहो पस पर भिष्वास करते की बात केस्पर्मेदेला  पीपर्धके 
प्नुखार, जिन्हुं पह पृष्ठ पमप्वि की भवी धी पह पए बृत्त हो 


प्रणी षै को प्रीते द गरम रपा बपा-बे प्रप्के तेतेीमप्रीनपे र्ते 
ह्‌ लब कु मित जाये भो स्ते मापी ठे नित परता । भीतिक्षाद ङ 
लाषद्पा एष कर्मा प्ड्नहौ है दिष्ठु कियो एत प्रण्डे धनेषी 
जीन च परित शरदेता है} ( भेष्प को पत्र, २९ प्नष्टूवर १८६८ 
पेषी ुम्तषटपे प्रादित रण्ड २, ष्ठ ४६४) इत धप्न पर, मण्य 
एद भिैथियर' ( षेभम्डत पोहियो, १९२४८) ध ० ए विमर्कीप्रौष 
श्वी मौनिष द्रो दु" { स्पूं, १९०९ ) प्रष्ठ १८९ एन, सं जिक्तियम भेन्त 
की जिवेचता पौ देदिर्‌ । 

१ वितिमम भस्त, शौ दिल षट दलीय एण्ड श्ररर एतेड इतं पाशुतर 
छिलासद्, ( म्प्य १८८७ ) एष्ट ११४ 


सौ प्रनुमबबाद १८७ 


-मसिण्गोन्धिपूरो ब्लम्य या, वैते बकस्य शि गम्भीर प्यक को बत प्रपिष् 
हति पहात है । उन्होनि ओेम्य शो एष्ट पणादम्मन हानुमूविद्रणं पव लिया 
जिते पर षड न््पा मपाहैमौरममव द्धा" श्र जिरोषकरते केष 
मन्ते ण्ठा 

"जहां तक निस्वास' प्रौर ध्पना मम बनाने की बाठहै, प्रपर उनका 
-भषं इये पिक कु डो हि हमार एक कामेप्रणाती है प्रौर क्प प्रासीके 
रार हम भाचरणं का कोर बिपिष्ट वणन कणे श्यीभेष्य करये धो 
समण्छा ह फ उने हाय की पपेसा हानि पिष होती है । ” 

जेम्ङे मिष भे» चेपमैत ने निडा-- 

“भो स्यक्वि प्रापे गाये उपा से पाप्पा का पीचित्य सिय क्वा 
उठी मानसि स्विति क रुन दीकही है । बह पपन श्राप को सम्ुष्टभ्र 
मेता ¢ हरो स्रोपी उध्फे जीबन मर चभ भयेपी । उक शास किषा 
प्रद्मरश्र परशख्यरा माप्रापाप्‌ होवी 8 जौ उषे प्रदर प्रास्मा को मामे 
षषी प्रौररये ख़ जनेदे पोकेयो। दनु बह य्य कृषी दीः प्रम्य व्पगिति 
क़ पता नही पेमा उपे स्स पस्य भ्यक्चि मे जमा या चतन महीक 
पेया । दषा कह कर हम कख पूमा छिया कर यष शते € दि पेदे स्न 
मेपभास्माहैही नही । जिस पास्वा की प्राप भाव कएने भमते ह, बह इस 
पश्र पृष्ट ममी है पौर रिव ठहरा पयी &, बापु रर भौर पिमे 
नि्नल कृद उरे हर जमह चप्रागि श्यी चेष्टा शी पमी है-मै रसे भस्मा नहो 
कता { बष्रीनन मै रप प्रास्था नही ऋता | 

"वह षाय अट श्यो- श्यः मवुप्य निऽबा शरदा हैषा मही एने 
“पण्ठर्‌ श्वा पता है ? यहं प्रप्न इना मढत्ृणं भ्या है हि एस पर बद की 
जये? मै षमष्छाभाि मिप्वास पौर माजार फ सम्बन्व (का बिषार्‌) 
पुनिषा क प्रस्वीहेत भिष्ते मेष, पते ष्वोषिपया मीन मं पानी घा 
रामे बामौ पड़ी-देती बस्तु जिसे सत्प का को ठत है गौ पायद पन्ये 
केमोष्यहो, हदु णो (ठ समय) परपनी ष्यष् शटि फ कारण पिरक ४ । 
स्वपे सपने पप्ययन्‌ के कलस्यस्य ग यड्‌ पिप्वा करे लया ( हि देते मद्य 
शहषश्येे गो कृप नामो में कमी-कमी धपमे पामि विष्वा्यो फर्म 
परमादित हेते है मोर प्यरशोरं शिष्ट भवाप्ह भहता टो उनकेकय 
पोर माश्मापै येतील हषी येही केकी ह । सिन्ुयह शौ दुलैम पौर 

बे पपष्धे ह षटमा ह पोर नित्छन्य गणौ हेरे पुतो पपै) * 

१ वे शृपतष, अरणः १ शष्ट १२२॥ = 

९ ब्ठौ शष्ठ ११६। ९ 


# परभरीषमी दन का परि 


बेम्त मे एसका उर दिवा-- 

“मसी पास्वा 1 यठीतमे मै भीषये प्रास्मा नही मागता । णह ग्रेवल 
दाधौनिक-मस्ुनिष्टवादी प्ट से प्बुद वैवरानिङ़ कखाधो क रोपी कृतिम ऊमा 
भासे बातागरण कै धिये ह । सीह काथो पक्लाभाव वै प्रथ्ययन एतच करते §, 
र्खे रोपिर्यो के सिये होमियोपैषी उपणार शणपु् शापदामफ़ होता है, म्मे 
प्रापो धाद ख पर बिष्वास मदे । + 

मनोषेदयानिकृ शव बैसानि से हा स्पष्ट ङ्म न्प हु ई । किमु म्वा 
कि रोप-बिह्ाम पौर एक हत्वमीमांखा कै ङ्पर्मे (डे शपषःर (मिष्वापवाद) 
क्रा पम्बन्व “विषा की इच्छा" पर हेमे बाघी जीवन्त बहस ए भारी रमे 
क एाप-पाप पचि्मषिक्‌ उलम्वा मवा । बम्प प्रत मे स्वीकार दिपाकि 
र्तं प्रप निकन्व फा एप श्यूद प्रास्या भो प्राहोजनाण रकता चाषे भाः 

महु प्रप्त १८१७ में फिर धामनै भाषा जब धम्य पै ैम्िरोनिमा 
विष्मैनिच्चालव के दार्घनिक घ॑प छ समल प्रपना प्रव प्रखिदे रफिलपोनिक्स 
कामयप्छम्प देष्ड परेमिटिकम रिङष्टूय' शधंनिकु भर्वकारढाए्‌ भौर भ्पाश्रारिकि 
परिणाम) धीपं$ मापण चिप जि न्ने पदमे पपमे दृष्टिकोण के 
भ्यबहारवरे कठा पौर पये पीमसं हाय १८०८ भे कि मै निकमे घम्बव 
दपा । पौपतं श्यी वाणि पठति ष्मो कैम्धने जा ध्यक्ठिवाही कय विपा पीप 
नै पदमेते मी प्रमिक जका दण्डन ङ्प पोर इसके बादवे स्वप पपे 
स्िखाम्द कये 'व्याषहारिमवाद" (परम्मैरिक्िरम) कठमे शये । ध्यबहयरवार क इतिहास 
की धाति स्स्नो को फर के एन्दो मे प्रु काका षर्षत्तम हेमा । 

"एक सामान्पीष्व प्र्पमें बो पभिषृद्धि भोर चीगर्वता श्ये पचि के 
बक्ष पे प्रीत होता 8, प््यबहारषाद" एष्य मे घापारणा मान्यता प्रा्ठषप्शी है) 
असिद्धं मगोगै्ानिक बेम्त मे पह रेल छि उष्य मौलिर परमूुमववाषः एष 
फ धारा ्यजहरजाद दमी परिमाथा के पारः प्रयुक्त भा व्पि ष्टके 


१ बहौ ब्द पष्ठ २१०८ 

२. भैम के पूर्मशपकिक प्रीर प्यपिष घ्ामाग्य हस्व ते भिश्च, उनके 
श्यषहारवाद कि पवि निधि्ट पिदप्तोकेत्िएवेीने पिडिदरमन्एमका 
प्रमोध धराडिविक धर्थंये। च्या घौर इन दोग भेम्तषी तत्वतीमत्ा् 
बो भी श्न्तर स्यि है । प्पे प्रपि धूर्णं विष्तेवस म पेरी पै दन परते 
ष्म जलीनाति प्त पिपा है, किन एष पिपत अर्वा सुमे षम पमो का 
प्रयोग कषर धप दोने-हते इय मे कटा पदा है! ( स्वि रा णम्विक भर्व 
बिप्वाप्त, प्त इरे बिस्वासशाद" कट्‌ चा चषा ह {-भरवु* ) 


मौ धरनूमदबाद स्न 


काकु पर्दर्‌ रपं था, धवम्‌ धये श्रपमाया । एयक गाद प्रंसमीय सप रभे 
स्वष्ट प्रर प्रलिमापामरी गिशारष भी पिठ सी एस पिर, पपमे दिस्त 
प्रसि शी रिषन"? क 'मानबममग्यगाद्‌ण के तिप्‌ पिर पाभ्पेक एशे 
ठलाध कदय दए, 'देमिगरयम्ड टैड पाोसुतेर" पमिबारणापोकेष्प पर 
स्वयं ठष्द, पर प्रपते प्रवि उम निबन्च ये एतो पंडा ्यमहारकाद' छो रा पथे 
जा प्रपणे मूल्‌ घर्म पे घ्ामाम्पस सनक भपने छिदान्त षो म्बष्डक्पवापा। प्प 
बौर पे प्रपते सिदाण्च क शिवे रमति एक पपि उपयु धडा मामबदार प्रष्ठ 
कसी ह, पडि कु पषिद प्यार परपेदे स्यबदठारवार छन प्रदम गपमोग 
करने ह) बकहीवरताम्दतीषपा, दनु प्व हु पर्य कमी षमी प्िर्पक 
पत्रिशापो मे मिन सपाह बा पयद्न बसो हो निदेपतरा प दुष्पपाम हसा है, 
जिस प्रेषा स्वम दण्यके सरादित्पिकहामोर्मे ष गते परकीजतोहै। 
पमो ष्मो प्रजो सिष्टाचारकषी मर्व पो हीशो प्के, इस पम्ददढे 
पनुपगृष्छहमे पर बुरामाष्ाहै - प्रपद्‌ स्सपर्वषो प्यछषश्तेकेतयि 
शरनुरदु तरिते पम्मितित भ्‌ भरमा एस ररेष्य बा । प्रतरः पहु नेक पपन 
पिपर प्यबहाए्वाः नो पह दवष द देलष्रर प्रनुमम करता किप्मम ष्ये 
डरा तेष, एषी रश्भतर निर्यत केलिये ष्ये पएादृढेतेकाममपयपागयाहै) 
भूव परिमापा का प्यक्त कएने बते पौ रहेप्व ठे पप्योव डे चिए्‌, गं 
प्याबहप्किदाद पनकेमेन्मष् पोय्णाश्ताहै, जा धना दवद ङ्प ह 
फ धो ठे मुरसिव्र रग । १ 
वो एम मान एषर पितर शे चर्थापि रद्य प्म पद मिन्न जाठा 
है कि ्पद्एारवात मो उनकी चिद्िप देत षया भो । पीयर्थ प्राप अम्प कै माषना 
य स्ेऽ्रादारिता ष दष # धगत दे मन चिर बै उपै भाक्ागिकि परार 
भारक कर उवित हम्म पर्‌ उसा डमपेन तमि । उल्का मापाम्य शमि 
पिस्य शेमाती बेवद्िकि भादवार कापापौरबे दका पमोष्मिदानमे 





१ परिपदं र्पति एर प्राथो प्रति भिदातिकाय पूति जिशा तिर 
कौ दन्द ॐ ¶ है शौर धरोर ङ दृत वनो वराभ्य डे ध्नुभार 
बहु चीव निदातिर्यौोब्टेलो इमातो पोप्रोर उतप्मदै मामे बलाद 
मार् हापतौषो प प्रोरिपिनकेजद पमो हृल क्ट होतो षट्‌ दधिपन बन 
भप षी, उत भरकर ब प्रौरषर गयो 1 प्रषः चिक को 
स्फैलो, ।-पतूर 

२.८९ मोनिष्ट त १५ (१९०५ } १६१ १८१! हरमोन्‌ प्रर 
बोतशोवुत्तश्म्‌ रखत) पण ९, पृष्ठ २३१२७५३ 
१९. 


२९० परमरीकी बर्थन श्म एति 


बेयस्सिकि ठत्व पर भोर देना बाहव पे । क्तु उता दुमम्यि षाङि दयक 
मतिपादन वै गषव जम परकररहैषे | शाने म, जहा वे १८६१ दे १८६४ 
छक शि्तक रहे, धैसा बैपकिश माबवाद षष्ट नही भा भोरमे प्रोष्यप्रोडं बाप 
चतेगमे। ांभीयह चष्ट गही ना न्तु भह यड भमिक प्ाकर्यकप्रोर 
हभजस पैदा करने बाता पा! प्रपते पन्विम वर्पो मं जा उ्हेमि देलिणी 
कैलिपनिवा मिस्मभिधा्य मे जाये बे रतने मालभमादी भन पृक्षे फिबहां 
णमे हिप बैयच्छिकिताबाषी वैवनावी उठे प्रसन्न वही हो स्ते बे । पिगििमम्स 
पे पो्यजेदूस" पर उनके परमम महतयपू्ं निमन् पि पनुमममादी धके को एक 
प्रमागबरादी मोह दिपा । 'देवहपिष् भौर मनोयातीम दष्टि से कोष्ट के प्वाभो 
को पौर धमाकृषिथ पावस्यक प्राम्‌-मनुमब घत्पों कै परपाचना करम क धनाय 
प्रौर उम्‌ प्रतीत प्रतुभब धमा निकाषा संचर शारा प्रमाणित मानै $ बजाय 
उक्हनि उनको वार्धमिक भन की समस्वाए्‌ या प्रपोगाहमक़ नब क तिप उपयु 
स्वापनपिं माना । बे इष पर्थ प्रा्-भानुममिक कितवे विरिष्ट पनमा 
फल तहीहै। पे माति -प्मिषारणाएे ६ भो प्रातमबापूरखंकेस्पर्मे का्म्व 
जीव समप्र विष्व के एमष्ष प्रस्वुत करवा है । 

जव हम शार शान के भ्रस्त सँ निहित प्रामनुमन धिराम्वो रै माठ 
करये है तो हमारा कलमं शाश श्प मे" निहव चे हेता हिमा मनोवैलानिक्‌ 
स्मरते) पर्पात्‌, बहु ताकि निरसेपणा का फवहै, बा (मनसिकतप्मो क्र? 
जिष प्राषमिषवा' षी गाठ कटो लारी है, बह समयमे" प्राषभिक्ता { मानसिक 
तप्य), मा निषारर्मे प्रापमिष्टता ( तारिक म्पवस्वा) 7 पा पकर 
भए दै, पा पई म्मम हैक श्रागवुमद कैषा कि टका प्रपोम होरा 
€, बोद्ा-बहव दोना है, पा बारी-बारी ते वोतो है प्रौर पह कटि इमारे प्वप॑वप्पो 
भ्य ठा प्राय-परातुमजिक गिबरसु शस प्रापारभूत घ्म पर ध्राधारिव दै? 

मृतो प्राप्‌ प्ामुमभिष गिबरणा पायं है, न प्रतुमजवादी । र्नो प्रघन्तोप- 
धनर प्रमाणित हुए है । पहला एम कारणा छि उस स्मर्य) को हमारे मातहिक 
संयत फे मातर पृषुदर््योकेष्र्मे प्रस्ुवस्निव (पातो पूर्णत पपम्बदपा 
वम द्पने बीच पम्बन्ित ) पौर दूरे मे एष पूर्णव निरचेष्ट मन पर एक 
मतौषैलानिकू ष्टि से मखम्मव प्रनुमव शयो कन्पनिषघार्मोकेस्पये। 

भूतव दोगा बिबरणो श्ये प्रस्सवाका रण एकदहैहै। रोना 
एक पपे बुद्ादपे ब्रुपिवहै जा हमारी प्रहि का प्रपमान € प्रौर गिषक् 
दतस्वक्प हमारी परति के नैसिक पुरो के सम्बन्प मं उनकी शष्ट बढ़ी कीर्णं 
| शस सामान्य भुद्टिषादङके कारणा बे उम दोय तम्य के सममः मही पे 
अ हृमेपा उख छमब हमारे समते पा बाठा , बड इम निम्त्तर मिजनारनो क 


पृ्र्‌ श्रमरीकी दर्पे का इतिहा 


ङ्ध जेम्स फे मिए पिपर के जते म्यबहारवादो कास्य षा मूष 

सन्येष्ास्यव पा । पीपर परर प्राषृविक्‌ बै्रानिर्े श प्रालोषनर्प्रो के प्रहिरिक, 
ब्म रपत, पौर प्ग्य ब्रस्ुनिष्ठ मागमादी ठन पर ग्यक्ठिनिष्ठादद का परारोप 
लगाण्है बे! प्रत ेम्पको एषाप्यान रखनाधाहि भ्पाबदारिकः षी 
प्रिपरापा प्रतिं ग्याबहापकि सपर्य षहो) 

प्रज्छा होवा कि हमारे पासो यह घमम्प्रठे फ यहा हमारी उमस्याप्‌ 
प्रोर समन शृकीणं कम मे प्यावष्ारिक मे कै प्रठिरिक रैदान्तिक भ्यो 
महीश ष्ठी ।बे बहुमान कर षल्ठेषैकि स्स भ्यबहाए्वारी मेको 
भ्वी दैदाम्तिर खि महो हो पकती । मिजार के (नश्य -यून्य' एद क्रा प्रमोग 
कर्मे पर एष पत्-तेषध् प पुम्वे श्रुतमपि &ै किम दते ग्दसदू, भ्योकिर 
का सममत कि पापका तारायं देशस प्राजिङ्‌ हानि-घामपरे है। देखा कहने 
पर कि हमारे भित्रारण मेला दष्ट-कर है बहौ एच है एक पर्य बिद्रात्‌ पमकद 
नेपुभेशटाहैफि ष्ष्टऊरम्दका मपं स्वार्थं दे प्रपिरिकछ धौरङ्ष्ठन्ही। 
ददी सिद्धि के प्रमास ॐ फसस्वस्य राष्ट बे के बटुतेरे प्रफव्र भर्लो मे पृष 
अवे । जि श्न ङे दैवे परिणामे गहं निश््य क़ सप्रू गीषे षद्टा) 

किम्ु शस्याबहारिक्' एम का सामाग्यतः षदना हीका-डला प्रपोम होवा 
नि एष पम्बग्व मे पपि उवारवा को भ्पेक्ा की जासष्तीषी। बमम 
कहे है रि रोषी भ्यक्छि भ्यवहाप्तः प्श्डाहो गया है, पा कां ज्म प्पबहारव 
भ्रपण़लह्यमया है सो प्राम तौर पर हमार व्यं षके पाशकं प्रणते 
जित्ुष रन्रटा हदा है । हमारा प्रापु हेवा ह द्धि पूयत स्पबहार मे श्रसत्य 
होम परमौ बो क्ष हम क्द्रे है ध्रह पिवाप्ठ मेख्त्पहै, प्रामासीप स्पे 
त्य , उषा एत्य हाना निर्जित" है । ष्ठिर ्पाबहारिकि घ॒ हमारा चाप्यं 
आपा ध्यं पामान्य पौर निषचष्ट के भिर्द स्प्टत मूर्तं म्यच्िगत भिषिष्ट 
पौर प्रमाबीष्ठे चेवा । शरदषठ मेर एम्यन्भ है, जब भी मेनेसत्यके 
श्याबहारिकस्पपरजोरदिश दै, ठामेरे मतम यदी बात धी। बस्वुतुं प्रपते 
बहूव ये भ्यषहार-ठर (परेगेटा ) हेती है । भरौर $लिष्धोनिया के रघ पुरै 
प्रापण मे जिसमे यैनेकडा जाहि म्यगङए्वाद के पवुार दसी भी स्पापना 
ढक परपंष़ठो हमेखा हमारे माव स्यागहारिकु ्रनुमब मे द्िमी बिप्िष्ट परिणाम 
कक साया जाप्कता है, पाह बह पतुमब ष्थ्ध्यिष्ठो पा निषद्य मेम 
प्यष्टाद्षट धै दिभेक तमद मी बो दिषे पे -- भनुमव क धम्मे शी 
पये उष्म मिष्ट वाना ध्य द मं प्रजिक्‌ महन्यूर्ण दै । + 

१ विलियम भम्, "दी मोलिया दष; ए तोक्येल ट प्ण्नेभ्स्मिः 
{ भ्यव १९०९ ), प्रष्ठ २०८-२१०। 


(कः १५५ ज "का 7 ९५९४ 


भस्त रदे प्रिय गही । भौर ठीसरे, रषा एीषा सा शला इरादा पत्म ङे पुणने 
भाम पौर द्ग $ प्रल्तगति व्यापार चलते षने काह । सवषा कहना हैक 
प्राञ्चिर्कार, कमा हुम एब को ही रबार-मूष्य प्रिय महौ ६ ? › 

उर मँ मैम् मे बौदिकप्राराम वा वैतिक्‌ घु केप्रापार पर उ 
घो्मो के हए कसी परम प्रतिमान के म्यबहारवाषी मूष्वश्च प्रमुमविदेशी 
भिरं कमी-कमी मा प्रम्ठिम ङ्प घे बिमाम कमी भावष्यषवाथी। बिनु उनहगि 
यह स्मोकाएनहो ष्यक ताङ्कि ष्म मे को परम" पाबस्यक ६। 

माह तातं हए द यै स्वयं परम मे जिष्वास श्योमही कष्वा षिरिभी 
यह पेखच शर कि धसे उनको वैविरू पुष्टा" मिन सङ जिन्हुं जी भरावस्यक्वा 
६ पोर (प्रयर तिक धृष्टिं प्रा्तकए्मा प्रज्छहैतो) एष्व तक्ष्य प्च 
पमस कर वैते षे एड समाधातकारष ताग्वि-दिह़ के स्पे भरफमो धवु्पोङे 
पमस रा । रितु उण्डमि चैसा कि देसी मेयो के साप सामान्बद शेवाष्ठो है, 
एत मटक्ो पै वते कुस पिपा पोरण्षटकरदेते भै परद्र पै। 
पबभारणार्पर के प्रणंके प्यगहारवादयी परी क प्रपोय करते हुए, वैमे षह 
दधित कर रिया पाकि परम श्े पवधारणाका प्रं पौरुष वही वध 
टी धेने बसा श्र्याष्डीम मयकषोदर करै भाला ह । जैसा मैते पि्वामा, जव 
रो कहता है कि शरम का ध्विन ई, 6 ज्सौ बस्युपरण भोपणा पिष 
(तनी ही षोतीहैकि सृष्टि की बिद्चमाधता केप्तमल पुरा की माना का 
ख धभौजिरप & पोर यष कि पूरका की मावना को विकसित कटे भ्रगर 
रोर भिरण्वर समम द्र इनकार करता है, तो धड़ पपे माभनारम़ जीबन 
ही पेपी परवृत्ति फ बिष कामं करता ह, जिसे मविप्पदपी मान कर उखषा प्रादर 
किया ला सषा है । 
दषा प्रतीव होता है कि मेरे परमबारी प्राल्ीषष पेये किसी जित्रमे स्थ 

पमे म्नो री कामेपरसालौ तही देल पाठे । फएलस्वश्प यै केवल मापये मोन 
र प्रपनौ सेट गापस नै पकता हं । प्रत ष्मः ही मीसष्प मेँषत् नदी 
भौर मेरे भराघोषष्ो निप ज्र धनुमार, उख्र्मेलो बिकुल मोनी 
बो मैने रपे प्ररानस्ष्िपाभा। \ 

शत्य" पौर “सत्पठा" मे भष्ठर क्के प्रोर यमान कर कि छम केषर 
सत्यता" ध मतल भा जे धत्व शी पः प्ति के प्रत पर पीपघं प्रौर 





१ बोसिमा रपद ष्टी दस्िाप्तद्टी रोक लायल्टो ( स्मूयोशं ११०८ ) 
शठ १२२१-२१२, १८६ १४०} 
२ नेभ्त, ष्दौ मोनिय प दृष, प्रष्ठ ८२० 


१६१ भमरीषी संन का इतिहास 


बही जोष्य, उसी बको माम देता है जिसमे प्रा्ोषङ् फा पम्परम न्व 
१ प्नौर उख म्मम को प्रोत्वाहिव करके पाप उषो बेहतर समम को सकते 
जो पापका सकय ह । १ 
मह एक बुस मीमासष शटी रतम भिषादात्मणु पमाह पी । कपतु अम्य 
के तिप पह बुव पपि बी । सारे छरय' पम्बल्भी भिषाद से वे उने भगे षे । 
ध्टोने का हि उनके हिए भ्यबहारवाद कमस एष्‌ पडपि-म्बली पूषा बी 
जिसे उने प्रषतौ दयेन--मोिक भ्ननुमषवाद पर फएसदायकजर्बा हे सके) 
जो उरे तिप्‌ केव एक वर्मा चात की पटति" षो, प्र धरोर इ प्रर 
स्मे से किसी द्धन का निमांणा करणा बाह तो श्र । 
शत्य" घे माया तस्म क्वा है? पह कसि स्र्मे लत है! पेरेपे 
परत §, जिन पर प्रगर अध पाएम्म हो जये हो हर प द्रे पका प्रादर 
कणं प्षिके कएने शमे । मिजार के इए षारे ईग के जनकङकेत्पमेमेया नाम 
जिख हग पवि घसीटा षया £, उह पर पुष हषी प्राषी है । मै स्वीष्मरए करता 
कि समे एन प्राधिक पिबा को पमि बाया पमा, गो मैने प्य द्यि §। 
दिर मेरे लिये प्यहारवाव र्णा अलाते शी एक पदति (यह पज है किरण 
पर्नोज्च पयति) ते पभिषकमी दुष गही षा प्रौर पापनेब बुरे प 
परवषारगादको जो प्यापष़ सेतर प्रवान क्रिया है, बहुमेरे प्रभ सीद गार्पनिक 
बिभारशथ्मैसीमा घेप्रापे क्का &। पै दषा स्वागत करता ह, एषी 
प्रसा करता ह किन्तु यै प्रमी इक कृ धमो को निरूपित शरी श्र पक्ता । 
परु मेरे प्रखर यष बिष्वाय शरै र्हं षएलवापूर्वश निरपित क्वि 
भा सद्वा ह भोर मह क्रि र्निक मदुप्यके तिमे बह एक महाम्‌ नि हौगा। 
'मिष्वय ही भै बङी गहणी, मीमी जलम बाली बारह प्रोर प्रम्यनोमौं 
कादा भहु स्पादाकरतादट क्पोक्रि मै स्वीकार करताहक्िएत बीरा 
को पृकके भादही (एषी तालम प्रापनैणो दृषपिष्धा दै, वसे धोर्‌ 
एापपय तिदबं को भसला सूुतामे षले पापे स्वर के बाबवूवे) टमा प्रतीव शेता 
द्धि मै भवन पौर पुगरठारण के निए कार्यम के पणौ महत्व शने प्रौर उसके 
“हान्‌ पस्पिक्य शलो हमा मातषबाद के "समी बस्दर्मो षा सबीकरणा करते 
भति ्ररिषषोप्तम परवाह प्रीर वष्ट हिया मे हिल कर श्रीवन का प्राभाव 
देते बाते ऋवरान किगश्नोकौ ठर सरे बुवद दके बिबदेपग कोप्रौर 
शृद्धिवादी पतियोष्यी पूजा ररते बले सभी लोमा की दष्टिहटीनवा परौ 
प्राणै शो भी शममः पायाद ए यै महान्‌ युगङे बर ये निरये 
जौवन भर्म प्रौर दयान एक नाभ है सहमङ होना भिजित्सा लगता ै। 
१ पेद को पुस्तक अण्ड र, पष्ठ ५१० ५११। 





मौखिक प्रुमबभार २९० 


भोयो शनो यह विदधाना मष्वपूमे है हि प्रमपारववाप्ो का काये प्माग्ाकि 
हागा है, दनव युयु मेही यमुन षर प्रादमी उमम्नमे पवृ गादा दै 
हि देया करते द प्राय जिन्‌ वर्षपारणगपां श प्रयत ्णठेहै दै स्वरम हो वदस 
वये है । प्रर प्राहिर्कार हेमे ्नूमेदढो पववत रनद शुषः ५ 
ष्वपहारवारी जगता पे प्रविष्टि करदेन बाहवे षा) द प्रकार तै दैपणिकः 
रीति भह दरार डमा हं जिते प्राधे बाकर परार (पिर) भोर ङं परागा 
जनिमीमाना को बीरे मे नगे है! ध्मदोनोषते हो पठवियो के सिये स्वान द 
स्तु पापी ठीक पोर प्रालोषनाभो हा परिणाम बहशगाङि वै कषत 
कै पपठ रपो की प्रनन्तिमना षो प्रवि स्पष्ट च्रे स्वीकार षषे) 

शयो को पह धिज्ञानाङि प्रबपाएलापो पन छायं प्वाषषटागिकि दाहि" 

एषपुष ण्न दु प्नौर उनङ़ी पिष्मगो पाराके षे महत्बपूणं बा ङ्का 
प्यानप्राए्महि हा स्दबहार ढे तान्प परकेण्दिहि रहा दासीर मम्पशी 
हापकताजो मे र्होनि बेह उपङरगगातो वद्टदारतर पाया जिय उनके 
मिस के त्िकान्तं प कन्विष्टारी परिगते करिया । एय) अकम 
पुस्त पारउन्सा्मि रग्रहः ए क्रिरिष्त विकरी प्रौ एपिश्न (नीतिपस्म 
के ए भ्रालावनारथक मिदधन्ठ कौ पेशवा) क प्रात भशर ेम्त षे 
तिङ्क गये उत एष पतते पलाला है ङिप्रपमे पराप को ठउरेमाणमर 
भीतिपिध्यः मे धृक दतै ्येम्ममे रिष परकयर उतथ्ये पायत्राश्च धी। 

विद्व पोर प्यार “नामे ही वर्तमान दररारयक शवा दलन 
बाहैप्रोर एतना ब्नरार है हि प्लकम्यौ सपवहाशरो मुभे क्रं पाण 
कहोदै) किन्तु जपा चेमः एरु प्रारपी भोषडबुदष्डना+ नो पामे पुमे 
क्िष्ठा €) पृष्वम्सच्चहो गयी! 

स्पत भैपराप्राते षयदटै पमर क्र ध्यच्छि एातून ९ मनाय पये 
यैह मान्य पिश केप्रपीनम्ोख राह हो टम भम्बोकिनि मिथ ण्ये 
प्महृषषौ दषते है) दह्‌ ममता पराक सायका दातं या ६ भौर 
भयर भम ते ता मिर्वाम गही कषमा कि प्राय भाष एतय है) रती 
गोप्रदो पासापरीने ही) पैरेयता हति परपन्दाषो मनात 
भृषहै । गोमके गीदेमे तिप्त भोर प्रये रोपनरमे गिव्दान गने {दमी 
प्षपरषाब बद रप्पहसे छ्वडनक्सहै।.. 

पुम नदामेने पारदो रत्रा दाया न्दी दिर पाम एमभर्पनार्‌ 
स्वत्रस्मकोएवषष्यापो मा प्रहे मादान ना चप्यदन श्रषैयेप्नोर 


१ बह, पृष्ठ ५०२,५ ५ ५११ 


क्श्म ममरैष्ये दष्न का इदिषहाख 


इम सब को उमे बा पाधन्द प्रावा । युके बिष्वाठहै किपापश्चेषा 
पम्वोपश्ो प्रपर प्रापदेल ष्रि भाप की पस्वक हमारे पिए डां ठक 
माष स्वठस्रता की उहीपक होने के साम-छाप पदता प्रौर सामग्रियां परबान 
करम बली फी है । ° 

णब कि जेम्स इस प्रकार एक मनोगेञानिक नीिणास् निषपिठ करे 
मँदुर्की ष्हमवाकर णे भै जो उपदे के गजाय बास्तनिक सक्रिय 
पाको पर प्रापारित धा एेशशिन पो नामक एष परकर तै ठम्हे बताया 
कि प्ामाजिक् प्रधिपरिव्म मेभीङ्िखि प्रकार बधि प्रर गैविष्वा को प्रपोयातमक 
भरम्नेपस के फक जिपयके ङ्य मेहियाना सषवता वा) दुत प्रपमो २८६१ 
मेँ परशिव रचना (एचिक्स' करी मूमिकामं बि्ेपस्मसे एष पादं श्ध्ा 
कैकपमे, बास्वगिक् परिग्रह केभिष्य प्माषंसाङ़े श्जारकीपोर्‌ ध्याय 
क्षीषा। प्रमताप्रोर भाताबरणा घहिठ भ्वति हा कामेश र जिवतेप्णा मिलान 
प्नोरक्शाके सामाजिक धनदो की निवेजमा (जिसके सम्बन्ध मे मै प्रपते मिष 
भी फन्कततित फोर का ऋणएी ह) । ९ मल्मारमक माभेवाद के प्राभार परी परहनव 
प्मौर बकी शृदना के षाव उन्होतै जो विधार-ग्यषस्या निमित की षी, प्व ठति 
ख्ये पूरी ष्रहत्पाय िवाप्रौरशो भागोंमें नीरिष्धास्त को एकं गयी ब्भवस्वा 
(भोर पाद्य-म, निरूपिव श्री--मनोदेानिक गीघिष्ठा्व प्रौर धामाजिक 
सीविणास् । शी भीधिशस्तीप ब्यषस्मा की वोहरी सम्दर्म बौमना फे पन्त 
कु पौर उतरे खषहपोमिर्मो ने परसिद्ध स्टबीज एन सोमिषल पिपरी" (तकसाप्त 
के सिद्धान्त की निषेषनाप्‌- १६०१) शी प्रवमारएा षी मिप प्रकादन 
उपष्ष्णबाष श्री पिङागो बारा के उष्य का प्रारम्म-विषुषा। 

मिधिपरन भ्रौर ण्करामो मे बू पौर भम्य लोपौ हारा माबगादकी जो बीम 
बेजञानिक पौर विकायमादी पून रचना हारही भी रषे हम पहले देढ कृकरे 
ई ।* दु कविकारभो प्थ्ाकेष््प मेप्रौर निभार केनिपर्मो को गति गा 
न्िाके नियमो स्प म्‌ देते क धम्यस्तपे। उ्दोति इ्ात्मक एमागसौ 
म निम के मप्पस्यतां कार्यको मो निक्पित न्रिवा षा। जवे षादन्ततकये 
उरेष्यगादी पलि के धिदम्व को लैकर जैम्त की शसाष्कतंगी' प्रभपिवं इं 
श्रोर हाबिषताभों ई प्रदी मर स्षित होने श्म छिदश्त तेकर पीवरं ङ शैष 


१ बही, एष्ठ ५१७1 

२. पेषी षस्तव उदयत, प्रष्ठ ५१८एब्‌] 

१ स्मे शषा ष्ठटे रम्याय श््रालुशिष दानानि भिबान' प्नोर 
घाते प्रध्याय प (जाजगार श्वं पार्‌ है प्रल्तपंव देपिय्‌। 


मौलिक प्रमुमवबाद र्र्‌ 


सामने प्राये, तो इते उमम हिया ङि कायंके नियामक जिचारो केकयं 
पानो शी ष्यास्या का सामान्यीकुरणा करके रे खमी बिभार्तो परननागर ङा 
ओ सकठा है 1 एमी बिचार उरेष्मारषू पा उपकरणारमक हेते है । स स्थापना 
के जिस्तेपणा को प्रग परानुबंशिक्‌ परिन्यता फो दमि से हटा क प्रानुमनिक्‌ 
मनोबिह्धान क्षी भूमि परसेलायाजा हकटाजा) इ इष प्रर प्रब प्रतुमब 
कै 'म्यस्पठा” का षरांन भतिषत्ते-चाप शी पवधारणा के घन्दमं मकरे 
को पौर ष्ट्या षी साबबादी ठत्व-मीमासा को घोढ़कर निरय श्पकेषरीर 
श्धिपारमड़ निरलेपगर को प्रयमाते कै लिए दैयार दे 1 शस घिडान्त को प्यषस्बित 
स्पे स प्रवम्‌ ने परते से 'लोजिक्स कष्डिपन्य प्रोफ ए सामिरिष 
गरीरमेष्ट प्रोफ मोरामिटी' (वैविक्ा की ैद्धानिक पिभेजना शो ताकिकि एतं! 
मे मीड मे प्रपत सेशं हछिनिपन प्रोफ दी घाद्िकल" मानसिक शै परिमापा) 
मेँ परर ए* स्म्य भूर मै प्पे चे धम सोजिकृस प्रासयेक्स प्रा परप 
(उदेप्य फे शच तारक प) मे एकषाबहो प्रतिपादित रिया । इमे घमूर 
की षष्टि सर्वाधिक प्रत्यक्ष पौरघरल पी । उन्धोने कषारि रपस प्रौरबेम्प 
शो षौ बिभार्णोकी पोेष्यता को मानते है पु बे एसको भ्यास्या कणम्‌ 
प्ररफह रहते ६ फ्रि भद धेनो प्रोर परन्तोप का संगतो रलम्प 
दलम बाते पपु यथार्थः का प्नुममे भद्पिणं पर्प के पुमब पे क्पाण्ठरति 
ष्टि जत्ाहै तो भस्तुत होवाभ्याह। निस्तार मं उन्हे पप कम प्राशोबना 
षीद प्रपमी हमस्पा शो ध्यानपूरषक हल रे के बाय प्रष्पप्ट विधे 
परम परनुमब का षहा शठे ै। 

मानी प्रनुमषभा पह पृस खण्ड चेष पपेणणपा रघ भिषरिव 
स्थिति का एक पमृषठण दै, जिखमे पनुमब प्रस्यापी भप पड़ गादाहै। फिर 
षकष्य षी सपे्लाकरफे हि प्रनुमब अण्डिति षसीनिप हात्र हैष्िष्िपि 
शम्पूम जने एए पपृरचनकाएर निषि पृणके श्प दन प्रतिष्ट्तिकर 
क्विप जाता है । परम प्यबस्या, प्रश्तिम परिपू्तिके षापभीदैना दीष 
मो पूं बनते के कायं भा, पूर्णं बनते पौरपद्पिणं करकैकापं कामजो 
शन्ुष्टि दे बिरामो फ बीभ ष्यक हाता है, एक प्रमृत ह भिसे रबी भ्यव 
शास्मदेदिपाणयादहै। 

कविषैनी पूत्पमे नदी र्त्र हादी ! किन्तु यह्वा दैसो स्षिति मेष्यो 
धाजानोहै जिदे पिरि देती पोर पषन्ताप क्डठाजाप) 

एक दासि चर्वापं मनो नरीर-श्ध्पार्मष् पोर जीगबैतानिष विठाम्तो 
का ममभेप बूर्वोको पर्विरूट्क्तो सणेगा रमु मैस्तोरार्‌ कषठाहूष्षि 
दिमु पर्‌ प्ाकृर प्रस श्य प्रत्यत रोविष्ठि घामनाक्े दर मै को पम्व रणम 


१०. भ्रमरी बति रा इतिहाप् 


महीं वेष्वा पोर मु ैमा भगता है छि शत निन्ु पर प्राकर, महान्‌ ठ्वािपो 
कैमयमे ही त्रास करो पठने पो ठक भियायान में मटकाये रवा है । 

भरद शठकारणङ़्ीक्रि इ देषेनीको एतिख्छ्यामे जिचार एक पोगना 
केश्पर्मे प्र्ेपिवप्रौर निम्वि होता दै, भिजार दी परिपूर्ति एष बेषैनी पे 
सम्ड्ठष्ाशो । जब भेनेनो ¶ इव प्राणात्य पर उतर, ख्देव्ययावोषनाष्यी 
मि्ार परम प्यकस्माष्मी प्रकाम करते लाता प्रोर प्रपते तीष स्वरके 
पृषे को गपेकषा क्र्मैया र्ये प्स्वौकार करणे कवी चेष्टा एष्ता है, तमी 
परिपूत सम्बन्वी कस्मिषयो उस हावी है । गे कष्नार्या हर उस महत्वाकंणा 
केएामतैप्रावीहै जा दसी बसदुरभोकी प्रास्सिाकूरणाहै बो रदश पषात 
षमी प्रर उपकरणों के तिप्‌ मिबाततीव कोटी है । 

किष्चय ही हेम (थाप शो) मिषा की एक तिपि परम ब्यगस्वा मे 
गही शाजेगे गो परम प्रौर पासा पराशान प्रौर्‌ संकम्य पास्वाप्रौर कायंगो 
बस्तु € नेदिति कमौ भी बसंमान प्राप्ति शी नही । भत्कि परेम पौर प्राप 
करने प्रासा प्रौर संक कए पिष्वाप पौर शावक मेदीहम एष 
मपार्पष़्ो पायेये जिसके सिए वषय रपम जि ध्रौर मित्रार श्प मे मिष 
दानो का दी पस्तित्व है।, ^ 

बके लेश, वी साजित कष्ड्विन् भोर ए पाषध्टिपिकद्रौटोष्ट प्रो 
मारा" मे परम माबेषाद भा भरो षम ना प्रीर्‌ तष््-िष्ठेम एषा ल्म 
निख॑प पम्बन्थी कोष्टवादी एत कोलो का प्रपा प्रविक। उन्होने श्य 
ङ्न्य का मिक्यम क्रमा नि बिषारायां घाबिकष्ठापों को निष्षय श्रमे श्यै 
प्ादर्तो या योजवार्पोके स्पते पनुमवर्मे स्पिववे्ा जायष्ता है प्रर मरह 
दि वितो क प्रि सम्बष्मी यहे ृर्माशमक इष्टि न श्रविः कामे भोर निर्णयं 
के जीण भरम्‌ वैजञानिङ निर्णय भौर वैठिकि निर्ंपके बौ मी निरन्तर्ता प्र 
भियेप पाग्रहकग्ती है । दण्डो साय दौर पर पोयमेके पिदष्वका गरि 
स्मा करि भि मामो पर" अस षर बह दही परिणामो पर पुषता है। 

“मिय करे बाणे कये भावता पौर प्रभेनो प्रवृ्िमा कै माप्यमपेही 
ददवा श्वी भ्यापष् स्वापनाएे या धाभिद्ाप्‌ परमागो हो पर्दी है । उनी प्रपमो 
क्म शवयेपरणासौ मही हषी ! 

जहां वकम जानता ह इ तिडान्द श्म भोर मर्बपरषम भ्यान शौन 

जलै भोर एमे प्रापारपूव ताकि महत्य पर जोर देन षने भीबाप्रंघी 

‡ जोन, स्टडीज एन सोजिस्ल यिपणेः ( सकामो १६०१) प्र 
१९९) १७२, १०१, ३८२॥ 


१०२ भमरीष्े रप॑त्‌ भ्न इतिप 


हो षकता, बरनू एके बिम्कुम बिपरीत मेरा वाद्यं है कि विज्ञान प्रमृसूव 
बदनु फे विद्व क पाप हमारे पम्बर््ये को नियन्बित करने श्च प्रणाधी दै 
श्रोर इस शारगा ही धैतिक भरवुमय शो देसे नियमन षी बहुत प्रभिष भाषस्यक्ता 
्ै प्रीर भ्माषहारि" से मेरा तत्पं केच प्रभूत म्यों मे निममिवे परि 
वर्षते) / 

फिर स्टीव इलो हाजिकल भियरो" पँ डू ने बिर्ये के इस उपकदणमादी' 
सिद्व शो ताणि स्तुभो क सिन्त पर लागू भ्या । उन्होने प्पे 
सको साटिगे शयी रथमा भोजिक' की प्रासोभना के स्प ये प्स्तुव पिपा । 
बे महे स्पप्ट कणन बहत धै कि बटू रा निखार प्ोर स्क बिपय-बस्तु 
के मोसिक धक्तम को बष्ूपरके पाकगादिपो ग भो भालोजना को पी, रष 
घहमत हेते हए भी बे हके ६८ निष्क्यं से सङ्मठ नष्ट पे कि विभ्ारही बषाषं 
का निर्मामक" है । उन्न ददित किविकरि मिषार्यो प्रसूतेन पा तार्किकि 
भप्ुमो' दीः पनुमव मे जिदिषप्ट समूमिक £, प्रणव, व म्प्मित द्मा शन 
स्पष्टीकरण करते है । इष प्रहार, जिना दस पाबदादी धद्व शनो ए्ीार 
क्कि मिनार्‌ ही पाष है, वे शोर के जजार बनाम भवागेङ्ेतेत भे जभ 
धे । डु शौर एने घहयोगिों क मिय इतका पर्थ णा नकेवप मावनाद धै 
भरम्‌ पमी प्रष्ठारकी दत्ममीमां्ाघ्रे ङ्गा ४ खिदाम्व दै पष्ठ । ४ इरि 
का एक विज्ञाप प्रष्ठहौीम्पयाभा। 

प्रण भिलिपम्‌ बे १६१८ मे इ ष स्वक शायिके दी निपरी प्रोफ 
इ्कतायरी' (वकं पास्त प्रष्वेपत का सिद्धा) श प्रकाएन देखने को बौषित 
पते, जिसमे अन के प्रमोगबाी घिदान्द कनो पूर्वतम प्रभिभ्मछि मि्ीहै ठा 
ायष्मे शस प्रष्व को उस भमर रखना" के खन्निकटं प्रते जिते लि्लैके 
श्विए्‌भे बीभि नदौ रह । डु शरौ 'सोजिक मे जैम्द्कौ क मिष्ट मीदूब 
है । चेम्प पै पिबा-- 

“भमरयेकरधकू, लो एष धम्य भ्रमर रएवना शिवा भोर प्रफठापिव्र 
करना बाष्वा ह जो शमेमटिरमं दे शम भोकपरिम दतु मिक मौलिक होगी । 
देषा प्रवात हो है कि कोरी पसे (मेष्येटिम्य शो) दीक वषड नह्य तमम्दा-- 
कृ्य दा ट मि मह शश्जीमियत्‌, निजी के कपेपर्ते पोर शम्टय के रमान्‌ 
के जिए बलाया समा द्धन ह, जबकि मप्ठुतः पिठरे दानिक भे कलै को 


१ नोन डर, सोजिश्ल कणिद्धन्त पोह पु पराषण्टिषिक द्रीव्मेटः प्रा 
मोयकतिटो, (प्रापो १९६०१), एष्ठ ९४ १४ एन०, ११ एन, १० एन* । 


१०४ पमरीषधे दन म पतिम 


ह! जही त वह रेखा कृती दै, हम प्रारुविक ठस्य $ सम्बष्व मे पराग प्रमुमव 
स्वापनाए्‌ कर घल्ये है ! जिज्ञान प्रौर दम वानो शय घस्य दैक दते पपे 
जा घङ्मै बे पदो के घंस्पा दर्ये । भमी तड्‌ भावनात्मक प्रहार के मानपिक 
परो शे प्रपेसा पान्ति परहार के मामसिक परे री प्ाह्विक भ्ये ताभ 
एकङ्पता परित करमा स्यादा प्रा्ान शाब्द हमरा दै 1 

शताद््किा शी परिकतम म्पापषट भरमिबारखा यह ट कि विष्व, किसी" 
धां स्थस्मा $ परनुङ्म पूरी वखधाश्कि स्ममृ बोषक्म्य है | व्धनोका 
खाया पद परास्वाके ष्च प्रष्मप्रहै। + 

षस प्रकार जेम्प एक प्रादणं स्यबस्वा निर्मित करने के प्रयाघ् के पाप 
रान कंबु में प्रवेष क़ तैवार पे, पै म्पगस्वा बो भान्ति म्यस्य 
पे प्रपिकभ्पापकष्ो पौर परम ईबवाद रो म्पवस्माये क्म शयेर 1 एष 
ध्पवस्वा कौ उन्होने भौसिक प्रनुमषषाष" कय । इसका शक्य एक रीतिबिधान 
ममा श्ना भरत्‌ मानधिक्‌ परेव एकस्मा देधी जा सकने बाती" पषति कौ 
एक्‌ ब्पास्या बनना पा। 

पर-पादुमर्िक दरवमीमासारमक" षमस्वार्पो का घाप कए के लिए करोमे 
व्मवदारषाद निश्काला । एसक्म उदेश्य शाश निक र्था" को पुभिषा पौर स्पष्टता 
भदान करना पा । दुर्मम्यब्ठ इषश्ा परिणाम उमटा हौ हा । पह निबाद 
का एक प्रौर प्रष्न दने गवा जिन प्रास्वा्परोकी प्रामाशिक्ता जी नहीणा 
सकी उनका भोजि सिद कएने की एक पोर योजना बन पपी । ी्वातमष़ 
जिगा के घम्पर्मो भौर उम्नो के बीष जहां ठक हा सकता भा, भेम्समे पपी 
दापंनिक प्यबस्पा को प्राये वापा। 

श्यबरहारमाद से पथिक पम्मीर बपामी चेठना श्री प्रि कौ प्रमत्या 
जो उनके समदल्ीतं प्रस्य घोगोशी माहि लेम्प को भी बार-बार परेषाम 
करती रही भौर जिने कमी षठ प्रषार इप्त मही र प्रापे हि एए णुं 
स्वयं घन्तोप हाता । बेठना कै क्यं का विष्सेपण सउन्डयते पर्य ङ्परे र 
लिया धा! चैना दों के सिए सदन बह्वी! हैया कमपे कम देषो प्रषीत 
होती घी" । भेदति चैतना का प्रस्तिष्व -बहक्याहे मष्दाबा 7 एप वन्या 
के सा उम तपु का उना धयना जिर नित्यग पि प्रषडि 
कृषा द हि मौचिक धनुमबबदी हाना कतिना कटि हई । उणु चेतना प्य मर्णन 
एरु शारा केश्य, निरम्दर चलम बाशोक्त्यु स्य र्मे करेमे स्वहा 


१ विततिपम भेम ही भिस्सिपि् पोंड घ्राएकालोडी (पपा १८६१), 
ष्ठ ६०६, ५७७ 


२५६ पमरष दन न इिष्टास 


शेतां एष ही घमय मे, एव हनाम होखक्टी है? पएकप्रौरबही एष 
ठस्य, मपा धनुमभ इमां भिच्र रीतिमों दे भरैये कर सता है ? पाया संब 
श्य ुप्रा । यैत भरपनेको गधियोमष्टी स्विति यँ पाया। मेवे देबा क्रिमे 
सरामनैषोहीरस्वै भे। मातो मै श्ारमाके भिना मनोबिदान' को प्रम्ठिम 
स्पपरेत्पाग द, भिरे प्रापमेरो पारी मनोगैहनिषप्नोर कटादी पिरान 
शकिवामरलामा पयत्‌, घंतेपयं मानवि स्िविरयो के श्नकेमनिएमै 
प्माभ्यारिमफ र्णे को भाप से प्रा कमी पलग-मस्तण तोकमी पकस 
भे ।याङ्िम स्तप्ट्व स्वीकारकर त किमस्या फा हल प्रसम्मषहै पोर 
तममा्ो प्रपते बुिादो तकास्व को, एकरपता के कलारत को धोक्‌ द 
भौर ठक्ना के की उश्चतर (या निम्मषर) स्प को स्वी वा भन्व्षः 
क्पितष्य कम पामना कड कि लीन हाकि ष्टि से प-तकनापरक्‌ ६ै। 

जहां तक भेरा छम्बन्य €, यैने प्रप फो शष तकार को" साफषाए, 
भ्य सूपे पौर हमेधा ेतिए वो देने को मजदूर पापा । मागब बौवन 
मे ष्ठ एक प्न्वर उपयोधिठा ई, शिन यह उपमोपिा याष शने साप 
भ्रति से हमारा शडधन्तिक परिष्प कतमे ध नही ६ । 

भै प्रमी मी पचन होता पवने हसक बिष से दषणस्म को प्रीता का 
श्पालमदेता षादधनके प्रधिः पम्भोर धेषये हटा करये सरल मानौ 
स्मषदर के जगत्‌ ते प्रपा उषु प्रौर प्राररणीय स्वान्ते श्रो भेजा 
भर म एक पैसा पुमा पौर पस्पभिक मौलिषठ फरंसीपी लेव, मोरे 
हतर बममत थै प्रमामिव घ हठा । उने एवन्‌ पु फर ही यै पा 
अनादह। .. 

ध प्रपत्र बिभार शर इवमे सिनो वष पिमे मृ जक रवते बसौ मिषिष्ट 
शुदिवादी कटिसारै कमे पड समम पामे शी प्रषम्मषटठा कि पुम्हाए पनु 
भ्रौर भेरा" प्रनुम् भो पपनौ ख स्रम्‌ परिमापाक भरतुषार एकूषरेष 
अषि सभेत भ, फिट भौ सि परहार, एसा घमय एक मिस्व-मनुमम क 
-खष्त्पक्षो खनये मिष्य पष्ट परिमापायहदहै हिर्यफेषारेष॑म इष्टा 
तेवन पा इत ६1 

फेम्सण्े दिभिपा श्य कार्ण षती पमे हो गमी भो कि उने 

वादशाशोजी' पौर श्ूरिस्टिक पूतिगसु के बीषकेवीप सारतमं द मप्वठा 

र पाप शट शिया पा-जा णापकोलोजी" क सपय ईर दारपमिक 

{६ शिलियम तेष्व, ^ प्यूरतिस्टिक पनिद (पपूरपोक्ध १६०८)) पष्ठ 
२०६, २०४-२०८ २१९, २१४ २२१९ 





०८ प्रमरीश्मौ सन का (तिष्व 


त्क्ल ही बतादू कि एयपष्य ठे कितं परस्वित्व काढाष होतेषोहीयै 
परस्बीकार करता दनु पूरे खोर के एाव प्रग्रह करव हु स्ते एक कायं कय 
बोष होता ह। 

"मीलिष होते कै दिए, को पनुमभमादी परपती निमिरियो मे किसी पैसे 
स्न को घम्मितित नही कर्‌ घक्ठा जो प्रस्य रपर्मे पमुमूतन होप्रौरत 
किसी भष्यख स्म मे भनुमूव तत्व श्म धोद सकता 1 पे प्थंन भ षिए 
भुम को बोदुने बते सम्बन्धो का स्वं मी घनुमूव सम्बन्य होना धानस्य 
है प्रीरकिी भी प्रक्मर भे भ्गुशूत सम्बन्ब कये ्यास्या चने ही "भाष रप 
मै कृरनी भ्रागस्पक §, बैे व्यवस्यः मे किसी धरन्य बस्तु श्मः 1. 

मव भागव षके हि संपोजक्‌ प्रौर भियोजक सम्बग्प प्मुमय के पूर्वत 
सम॑ग भागोके स्मे परस्वु होते है ठापारण प्रनुममभाए मे हमेषा पइ पमबृि 
दिठीषहैष्िष्हबातुर््ो केष्पोजनो को इ्वोदृकर विमो परह परषपिकि 
प्रग्रह करवा है । 

“धह नैरण्ठयौ एष निरि प्रकार का धनुमव है । षठना ही निरि 
भिना बिज्छेद-भनुमभ जिसमे बचना यै उप्त एमम परसम्मम पावा ह, भव मै 
प्रपपे किसी प्रनमब से प्रापके कसो परनुमब मे घ॑मणा कएला बं 1 इष मामसे 
मेरे जप्तकरफिर ङ्कना पद्वाहै णमयै एक जी यी बस्तु चे एष घष्न 
केष प्रमपारित षस्त को प्रता हु । ^ 

बस्तुतः जेम्स तै स्या यह पा कि उन्हेति भेठना मे तैरण्तये के मतोषैातिक 
सिन्ध को जिस्ठार देकर, रे स्युपो मौर विचारतो" के भीष पस्तिल मे 
भैरण्तयं का ठत्वमीमांसारमक़ सिडास्तं बला पिपा। जिस एामाम्य षिष्व म इम 
शो का प्रस्व बस्तु पोर विचारड़ दोर्नो स्पोर्मे होया ई, उपे छन्ने शद 
प्गुमष के भिष्वःकेख्पर्मे देखा प्रनुमम श्र रेखा भिस्वभ) घाप पचम 
किष्ठी का प्रनुममे नही भा 1 म्पयहारणादौ ठक्‌ क प्रपोय मे उम्हुं "तस्व" परु 
की देसी प्रभिषारणा शर एमन शरन म षटायता मिली 1 

प्रापषठी बस्तु बारम्बार षदीषहोतो है गोभेरी । प्रबरमै प्राप पूणवा 
हह पापम को ष्ठु चरौ" ६ भिखालक धिएु इभाया पराता भेमोरिमस 
हा श्रो पराप भपनेण हापष्ठे जिद मे रेशहाहै भिरे मेमोरिवल हमे 
दधित कर्ते 8 । प्रर भाप प्रपने जिस्म मन्त बस्तु को परिवितिव करे § 
मिखाच क भिद्‌, भरेरी उपस्थिति मे मामद्ची बुभ्यते है ठो मेरी" मोमगती 


१ जिलियम नेम्त शते दम ररित एुष्पिरिसिस् (पदगो १६१२); 
ष्छ १ ४२ ज२४४ ष्ण 


३११ प्रमरीडी धरंत का इतिहा 


रन्ति सर्व-ममोगापं को हमेषा गम्भीरता सै शिया षा प्रौर भ्रगषहुमयनाङ़ि 
की उसकी स्मिति मातघिक्र एकठत्वबारक्ी म हो भाये जिसमे पेयक्तिक्ता का 
उ प्रकर पूर्मं सोयहो जाता है, जैठे मावमदिरमो कै भरम पमुमबषतेमा 
निर्बाणिके समुगर्मे। मर्तो ङे 'छ॑मोजन" को स्वीकार करे केगदबे प्रपनी 
हुतवबादी पृष्ट, मौर म्पछिषदाद का घमर्पनकैये कर स्तेये? क्या उनम 
वैरम कौ तत्व-मीमांसा रनक नैतिक पंन के प्रनियतत्ववाष को ब्रतरे पे गल 
र्हीभी? 

शरम बे प्रघम्मन पस्वित्य नहो है बेखा यै कमी सोचता पा । मानसिक 
तष्य एक ही पमय मे प्रलप-मलम मौर दरद, परि स्मो ्मेषायंकरे ह । पोर 
हम परिमित मर्तो को षाव हौ एकु भतिमाती ब्रुवि मं एष्वूषरे षी सह 
शेतमा हो कतौ है । केवत परम की पोर से बसादु-पागस्वष्ता के प्किूरौ 
शोध ही प्रावुमब तकष्ेष्वारा छष्डन कटा प्रमिस्यकहै। षाषष्यया 
प्राममन के प्राणं पर प्पनी सम्माम्यता प्रस्त करणै की चेष्टा कणे बाप्रौ 
प्यापनाकेकष्पमं पहं उजिवहैलतिहम परमे ष्लको पेते सूर्ने। 

“बो ुघ भी निरिष्ट षेयछिक प्रौर भस्ाप्थ्यकए ६, चसक प्रदि ठकना- 
भावक तिरस्कार के बाबनरद, बह सारा प्रमाण णो हमारे पादै, हमे बीवी 
धै स भिस्वासकौ पोरे नाठा प्रतीठहोवाहै भि छती प्रकारका पति 
मानदौ जीषतं है, जिसके घाम हम पतजान मे ही घड-गेतम हो प्क्ते है । पृष्ट 
मेहमबेसेष्ोहो षष्ठे ६ जै हमारे पृस्वक्मशयो मे कसे प्रौर तरिभ्विया, गो 
किनतायो का देधे है प्रर भतर्बीत मूमवै है, द्पु एष पवक प्रभकाङ्ुषरा 
भौङ्गान महौ हेवा । ^ 

भिक्षिपिम धम्य प्रनत शंक इष प्रकार परिकस्यनाएुं छरतेः रहे । उनका 
धनुमवमाद ठमकरी प्राषव्र्यंजनद़ कलयता पौर प्रत्वजिक सहिप्युता रा पंस्क्रप्वि 
भा। कों वी 'ताङ्िकि षष्ठि ठि सम्म बस्तु, गम्मौरता धै भिजार कते पोम्ब 
मुष्पवके स्म मं इदं प्रापित कदवी जी । उनके धनम क्वे धपेता उन्म 
मत णा जिसने उनके विष्व को उन्पुक्त रतरा ! 

पौयपं शपे वैरनदर्य शै परनुमदादौ वत्व-मीमांपा भे मेम्ह की तत्लमोमापाद्न 
बिङ्कुं मिम्न दसा कौ । एलको शाएनिक ्यदस्वा धनुमन शम वत्व-मीमप्ातक 
जिगर नौ की, दरत्‌ बेव्ानिकु पच्वेप्छ ष्ठी एमि केस्यमे भुम 
को एक मडपाबौ 1 उन्होमे पे पानो के प्रासरवादी निगमन के स्वाप 


१ जेग्त, ये एन रेरिषल एभ्पिरितिरम पु प्तूरतिष्िक मृमिवर्म, 
पण २, पृष्ठ १८२ २९१ १२६ । 


मौरिक धनुमयबात ष्‌ 


रा रण्टोणे एदे इटा-न््या-निजन, या दस्यमात-परोछा कडा । पीं 
पएम्दाषसी केम शे कोहं मौ बदु षटना मा दृष्यमान्‌ है, रका समां भदै 
भोभो | परतुमबके ठब्पिक्‌ एमाय तर्णक निरीद्यरा, स्वयं भनुमष 
हाप हुम पर पारोपिह एक धनु्ान है, क्योकि मविप्य के उपा्षोका 
ूर्ानुमान शमने भौर इहु एषति क्रमे के दिए, देप्य हमं प्रपते मनोराज्यं 
अमत्‌ भा पूननिरमासि कष्मे को दाप्य क्ग्ते है) 

ष्दमषो षएठारोमे परेहि, एकदप्य काहषार भौरदृषरा ममोराभ्यका 
संहार । मर्ये ठे हर प्क य एोभवे भा पम्पस्तदहै बह प्रप मनोयग्पके 
संघाप्दा जनक है प्सके पदेदेठे ड, पहार किना परविरोप पोरा 
प्रपाषठ $ पिव पै प्रा गाहादहै भोर गपपि यह भि षत्पषध्वनीदुरहैहि 
पुरे प्यटै कि पारक पमा पमिप ममोपम्पके संारमे ही पपबाहा 
है, फिरिभी प्रप्य धनुमातकेस्प मैक पत्पके शराएी निष्ट) दषश्ण 
हम मनोयम्य के पयव भो पराच्ठर्छि जपत्‌ बहते है प्रौरतष्यरे भप्दुषो 
भाष्धषपत्‌ । एस भाष्य जपत्‌ मे हृप्मे चै हर एक पवस धपती देन्िकि 
पेष का ही स्मापी दाह, प्य मिध बस्यु क्र नहो । किन्ु मनुष्य चुर 
६ पर दै धपनो पाडस्यश्वाये बुष पवि बना तैता है) रस्केप्रागे, बहु 
पपे सपर दत्तुष्टि पोर धम्पाष शा प्रागरण एल र, कटार तप्य की मोक 
भे सनी एणा करता दै । पस पाषरणा के दिना बह पपत प्रम्ठरिक नाव्‌ षो 
बहुषा बुरी परह प्रस्छ-व्पस्त पठा घोर बर से भिषारो केक्टोर परविष्मण 
पके प्रणा शठो उट देते । इभारी गिबार प्रटालि्यो द दैमे गषाद्‌ शंपेवन 
कोपे रप्य-जष्त्‌ मा "पनुपम बां प्रमादता ह । दिनतु बे प्रतिकमण ष्पा 
ष्टो ह्य है एषषा भनुमान सता कर भोर हरदम विशार दो प्रपते प्ाम्ठरिभ 
शध बाद एकर, जिसके षय एषमर पश्-ध्यम्ठदहो णमे ही दम्मोषना 
शि, शह प्प्नै पाबरणं कौ मान्यता शर लैदा 1 धुमबङके गूम पर परा 
षपता करते दे षयाय बहुर्छदेन परम्प उष्ठगिह षता म रण्ये 
भोदति गही्यषटशती पोर प्रपते पान्तरिक भद्‌ ढे पान मं तदनार 
भरित कर तैवा है (१ 

पटनाडपा-दिह्धान, दठनकरे हान पपर दपयप ट पोर तिणनिश्वव 
पोयना के पनुलार वहामो ए दम्बग्पव है-- 


१ जस्त हाता पोर दत्त रोम वादा तत्पारित्‌, दमषटेड रेष पो 
षपप्रं नेष्टे चोयत्‌ ( भण्ड १६३१२३६}, पष्ठ १, एण १२१) 


११२ पमरष ददन का इतिदाप 


सदान्तिक ददान 

१ प्रष्वेवणा ( निचैषण के बिज्ञान } 

(क) गणित ( श्लस्मनिरू बतुं का निरीख } 

(ह) वंभ ( सामान्य निश्णं प्र्पात्‌ सावारणा पिरौलस बिष किती 
बिष्ठेष रपकरणों पा प्रमिभियों की पावस्यकृदा महीं होती ) 

(१) पराजध्यक ( घामिरु नुम श्म निरीखण ) 

(क) बवा-न्छिपा-बि्ञात 

(क) परादर्छक विज्ञान ( वकद नीठिजाल छौन्दय-खाक् ) 

(ष) छलल-मीमांसा ( जिते पृराने शलोग 'मौतिक्ये कहेते धै घामाग्ध 
पाहि मिज्ञात } 

(९) मामिक्‌ श्म मे महत्वदूरं ख भौर मादु धनुदारवा (माकर स्म 
मै म्टवपूौ निप क सम्बरत्ष मे छारी बुरा बात प्रहिसामाग्ब होगौ तनके 
मरे में हारे वकं भ्रसंमव हेगि प्रोर उना प्राण प्भ्ययतं पौन पौर 
मन्दा होना । 

२. पमौला 

ष्पाबहूरिक वितान 

श्िशण-एाह्म पनारी शिष्टाजार छवूतरणाडौ हिठाग-नि्ताब, पीड? 
सर्षण नौकाचाब्रन प्रापि यै स्वीक्मर करता ह कि धसी बहुरेगी मीर पे 
स्कु छम्प्रमिव कर दैवी है । ^ 

काजक प्रुमष के सर्षापिक सामि पर्भो के छामन्प निपलणवे ह्म तीन 
पदा मिलते व--एए कप्य घौर निभार, जिनं पीवरं हुमा # पिष प्रषमठा 
प्रितीपवा भौर दृतीमवा ककवै & । 

कीपसं के पदाप-छिडत्त के िद्धतो १८६०्मे मीरे भाक्तो, गय 
ठते पित में निम्बो सूजरो भौर प्रठीर्णे के बीच पष्टर सिवा प्री १५९० 
मँ मौ, जम उन्होने भसष्ठ कार्ण इखो, पम्दर्यो प्रौर्‌ निषप्णो मे 
किवा 1९ कु पपतै भ्यवरिषत भटना-क्रिपा-मिद्नान कषा ध्रारम्म उनि १८१ 


१ बढी, चण्ड १, पृष्ठ ६७७, २४१ 

२. बही, पण्ड १, प्रष्ठ ५६०५१०७ । पीयत भे एला बर्णनस्िपाहैरि 
षदाबर्या प जिति प्रहार प्रपने यरितनब्न पिताकोपेष्ापे ष्णु ष्ठे 
पदार्भा के सष्न्त का प्रप्ययक स्पा पौरष नतीजे प्पे षिक्ाष्टका 
य्क्पनष्टौषाकति क्वर्योषे वदाप्‌ एश प्रशार तै परौपचारिष तपा 
पष्मिरर षिते ह पौर्णि स्प प्रशार प्रष्ु प्रर उच्छ स्रत हे प्रस्य 


सौसिङ नुमभाव १११४ 


क पसम स्वा, जब रषेने द दष दैट दी रिम्पिः ( देती शृण्नै शे दक 
शष्य ) पोप रना क्य मसौदा कैपार क्रिया ¦ एव मसौदे क पारम्म व उनि 
धा, "पोर मह पूस्ठक प्र क्षती सिष्ठी घी पोरप्रमर्वैरेयाश्सषी 
त्विमे हुपालो पीददसिद्धी बयेमी पो श्रह$भग्मो नखे एषहोपी । ” 
रही ष्ी धागली का प्रयोय करे हए, छ्य शै मस्ये को हन पसदमीड्म 
क्हष्श्यै €) इषे डे बहूतेरो चधुर परिभशपनाए्‌ पर्यु शेषै पौर 
हेलनूमान पे बेषर जीकन्य ठक हर एकार को विपिष्ट बिवयनस्यु पर पपन 
हीन प्कपो कने लागू दरे है । डिनतु वाशी के परम्तिम शण मे उन्होने मटिप 
के दोषटदाद्म क धम्दल्ध रे १ दिदधाम्त €ो धविरु प्यषस्थित हप मे मिष 
क्कि) ११०९ पृं बटमा-श्धपाजिञ्ात इने शूरम्‌ वकषपान' { माए्पूर 
लामिषट ) ष्य एक प्रयु भंव बमा पौर १६०१ यें उन्मि रपं ्यवहारणाद 
हम्बगशी मापण" ( हेकभरय पन पेमैरिस्य } पे स्वाम दिषा । 

पीयत का पष्ममाण पठेत ( बा पटमा-प्ल्या-वि्ान ) बह शी है जिषे 
पराजेकम एामाग्वत कटनाच्धपा-मिङधाम के सपमे जाना भाता) यह किसी 
बिपप्ट किपय-बस्तु हा बटना-षट्पा-जिशाग मह ह, दृष्य-पन्नार्पो कर परना- 
निथवा-बित्ाम तो बिवुलषही भदौ है । वन्यो पट हदा है उका कवत" 
मीहे, षन्‌ मो प्रोत होता है उपक्र प्रप्ययतेः है 1 प्प हृ१षस्वु 
षम बर्णन दा स्ीदभ्यका प्रष्रहुर्दीहै गण्‌ एक वि्मेपणु है! प्स्व 
अटना-दिमा-बिारनो धे मह षष शयं फं मिलता है मि एषम्‌ पपा कोर 
सिद्धाण्व धम्मिहिव बही है ! पपन सिद्धान्त को मिस्पुव निरा कणठे हुए रीपपं 
बै पटनापो कै प॑त प्राद्मारी बिदसमेपठ भौर उनके भस्तुपरक भिषेफण वै 
पर्व द्यि; एष्मूज दिपूत्र भौर बदूतूष दै पापारमून पामरी पठन ई, 
शु बूत शरौ संपोजिद पिसूर्णो दे दिष्लेपिव श्वा जा घद्ताहै। एोदूष 
भ्पक्ि हे । दिपूष पीप प्रम्बन्बौ हेते है । भिमूव म्पाहियां हवे & । प्रदाहरण 
के तिए, दै एष यरितौष मिखाले हं मिघश्ना पो पीष्षंमे नदीम द। 
हषा प्रु वराटक पए हरगमीमाप्यरषड श्दूररर दर दुमे । उन्म 
निक्ष्य पमन प्‌ प्पृलिष पयोद देरेपोपेड ( र्ताप्रौ भदो बृदो भर्‌ ) 
प्रमेप्विन पेकदैती प्रा प्रारर्त एंएड सयम्पेड शी १८९७० शो धोतीरिम्यः 
{ र्षी } च पाणा १य्द१ ध रक एता पपे यनी रना ध्पारा 
लोजिद् कम बहुत प्यप्यार दषतेकापा। 


१ ष्ठु, पण्ड १, एष्ट १८१ ए१० 1 ए प्याय ओ श्वूाण्टोद ररपम१ 
प्रधावत भी देिए । 





११४ पमरीकी शन का पिद 


भषरक ख, भीन गिष्डुहो ठोये बि्दु पए्सूभहै,कष छमभोरक्ष 
शापक प्रन्तिम भित्ु, डमे प्िमूषहि प्रोरक़डग जिकोगा का कोगप 
निसू है । भव दन भव्नारमक्‌ धत्तो को णो छनिक कम मे किरी धी षटता 
पर खाद नियै शापक है किसी भटना भाुपरक "तत्वों केख्पर्मे म्यास्पा 
कौ जावे तो उनसे ह्म गणा प्य प्रर निवमङे प्रापारभ्रूव शत्वमीमांस्ासक 
भन्छर प्राठ हठ ई । उबाहर्णा क लिए, परपनी दुणारमक पष्ितीयता मेँ माबसापे 
म्पि ह बटगाए्‌ मातभ्यनद्य | एष स्पर्मे वे एस्मत , हरायी ना सकने 
षाली है, भात घम्माष्य जिनष्डी सिद्धि प्ागस्यक्‌ गहो" § राक एथ्नवर 
घामाग्य गही है षुञचयापीड़ाए्‌ मही मे पटितन होमे बाली, मात्र शेषापनः 
ई । “भान सम्माम्यठा भिम क्व सिदिके चतबाती है)" दपु कष्य 
भटलाप्‌, भस्वित्व मपी प्रकृति से शरिुलोप प्ुवीम होये है उमे पपं वलाम 
सक्त्य रा परमम होता है । जित्ार मा पपं भिपूभी होते है उनर्मे निश्मण 
माद, स्रामाम्मवा षा घमयेष्र होता है । इस प्रम हम तवत्व-मीमांवाल्मक 
ष्टि तै होने केक्रीन मूत प्रकार रेख सकते ~ पम्मबवा प्रस्विलि पौर 
सामान्यता! 

कही-ष्टौ पीप पै सुया कि परापों हा बिक एकपरे पे पा पौर 
ध्व प्रकार भपमै पटना-छ्पा-निह्यन को धपनै मिकास सिद्धत्वे गोकनेष्री 
चेष्टाश़्ी। 

“जव यै कता हू कि पूत्यता एषसूत शमी धम्म्मता ह, कि दकार, प्प 
दी सम्मबता&, प्रादि 0ो देये क्यों का स्वर ह़ीषैलभाचौ स्तीति होठाहै। 
निस्ल्देह उनकी प्राम्वरिष प्रकृति धी ६ । दत पणो मे मै एक जिकास्य्म शरे 
पनुघार भतव्रा ह--सम्भभता पे बाप्यिनिकठा का भिक्ष हठा है) हीषेलभी 
देषा ही फएपते § । हर परं पर बे पिप्ले पदाणं से चण कर चैते श्यतला | पुकार 
कर पटहे ६। प्रयतेकधो लागे शची भोर रषद प्राव पर पते हवाननेक 
उन प्रषछिया भया (है ) पड़ चाहे भिवनी भी महतमो भा हो धेया 
ए निस्वार की बात ह जिसमे मै शमी उख महान्‌ पाबरंबारौ चे समव दीवा 
पौर श्रमी भेरा मारं उपे मिश्षटेदाहै। देखा षस श्रर्ण श मेदी प्रमी 
प्रणी वपा क उमाप्य हठिकम्ड के प्रधिक धिमपूषं परी ऋ परिम 
ह ( जिसपर दषे श्रा पुमर॒जिदपव- उलक्मन सपना देप पौर उमे मी परमिह 
मे स्ववं निर्वि श्म मे इवत वे ) । सपस्वस्य मेरी प्रणाथी क्स्म पतिक 
प्वापष है, उं वैल्य कौ पुसी समवा द विवद बह पप्ने कवे मूत प्रषपारणा 


१ बी शण्ड, पष्ठ १०४) 





मोचिष पमुमबभाद १९११४ 


किकी भियेयस्पङ्े प्नुकूम बमा सके! रमी उसे निष्पद करे धमय 
गहीह) यै उद्रका प्रयोग करताह) पाठक प्रणर देघाष्टरस्ष्वा है तो 
एडमधि चे पप्रष्ठ प्रनुप्ररण करवा ¶ै । ` 
न पिपी षी व्दास्या घम्मबत पीयष हारा हीमे की “छेनपिनाागी" 
{ पदना-पिष्वा-भिहान } ते एकु कदय पदे भये के प्रद-पस्मीर प्रदाठके क्म 
त कटनी भपरिये । भमी भेष्ठ मिनोरप्रिमता प्रं पीय पपने जीबन फ प्रस्त ठक 
पपै पदाभो ते द्वितगा\ करते रहि । पै पराध एक उतम सोना प्रमाणिव 
हर । एम्मषत हम उनके सावं पापक भयाय रये प्रयर इम उनके पटमा-ष्प्वा- 
बिशन क्यो प्रिकल्पनास्यक रीति दै रखकर म्मध प्रयोर्यो मे देस, बजाय दयक 
दि व्रत्लमौमांघा के मलम एतके बहुसंस्यक्‌ प्रमिरामो को सिद्धान्तं के एक 
हषे, तरम राजमानं का क्पदेनै षी देष्टा $ । वीक्य टा निर्दर पिद्धाम्तः 
गहे प्रिय द्धै उन्द्‌ द्धिनि दिषार्मोमृन जतेभे यके प्रतिषे प्तपभिष 
उदा्ठीने प्रतीत हेते बे। 
मौलिक प्रनुपजमादि के हत्थमीनांसाको से एक मम्ब भपुजमाद्मम सुटि" 
आजि एष मीदश्रौ षी ९ पीट सवपणम एक पामाजिष्ठ मनोवैडरानिद् वै| 
उमेति मन कोम्पक्ठिषेदनादके सन्मे यं नही रत्‌ तामाजिक कापोके श्द्य 
मे देखना धो्चाभा) उनके जिए दसलोममें पड़ भना पाषाण भाक भि 
बे "तम्ूणो वपाम्‌ शो पगुमब के प्रवत ताने की पिपा पराषोजना भते 
यै रपं ( प्रपते पिष , एम भैम पात्रषादियो श्न परनुहरणा करर प्ररप्कः 
परम श्रपुयाप ङे पट्म पर धापारिवठ पवापंदा एक ह्दाग्व निर्मिव कर्‌) 
प्श ररोमे एसः वितु निपरीद्रे शयं दिया । उण्दामे समदार्यो घोर मर्गे 
उषुवप गौ भ्पाल्या, परारतिक उदूनम श पपिर लामान्य प्रग्ध्नि कै एक उदाहरण 
केष््मे षो । उल मवातुपार, भणाषे पोर प्रमुमब दोनो रो हो प्दिलवमय 
्भृरम समषना होया प्रौर्‌ "सस्ठि्य मेहोतरै भरा ध्यं है, ब्तिक बपुमानपे 
होना भिस एक प्रतत पौर एक पविप्य हा । कतिक वतमान, प्रहित्य 
काचम्‌ स्पप्ोरस्वत्‌ हेपोर विष्व, षटनापाशारिषब है! दने का 
पथं ६--गवीगठामो का पम्धहीत उषूमम प्रातिक पमाणे पर पर्णे हए 
परिपरस्यो मे पाय तेना पस्टिष्श मे पाते बा संकगपूणं पर्ठिद। देगे 
संक्पएपोल पोर बहूत्वुएं भंमान पषति दो विमो पारत भ्दगरवाङढे 


१ बटौ, तणाः ६ पृष्ट ४५१॥ 


९ कने लनोषिमिन दा दिषरप एड पष्यापतै (्रानुदक धापा ) 
शान्‌, रे प्रन्तपत हिप 1 


३१ पमरष श्छ का एतिष्यष 


भ्म होवे ! परहृति प्पती सम्पूंडा मँ पबोपभ्य पीर स्म बर्तमात 
एक प्रन्दषिरोषी सम्ब है । पव॑स्व घोर डान श्वी बस्तुपरण्वा श्रो गहा 
भ्रौर प्रमी परिपरक्मो को पारस्परिकवा या सम्बदला मं क्लोज होगा । भूक 
परवूमबम हो परमद प्रोर म भ्यश्िपरकं प्रव घापेशवा के सिद्धत्व 
अल्युपरफया फो जिस पर्थ मृ लिमा भावा ह, उस प्रवं ये परदुमम भस्तुपरक हे 
शकता ह । यह सम्बन्धारमक मी है प्रौर तरशमरी पंपीपमो है भौर श्मभिकमी। 
मौड ढे प्रनुखार मवार्कालिकू परिपे्या" या स्मितिर्मौः का एक सपृश्प ६, 
निमे हर स्पिति उवनी हयौ भ्म है भिनी पर्य कोई । प्रर इर स्वत किसी 
दसो मबीनदा मा भिरोषी धस्य के सम्दमं मृ परिप्रापिव होता ४, जिकर एक 
अर्ुपरक म्यषस्वा ये पमाहिव हो कमे के पमे पूर्णाम पसपि्यौ की पूलःरषता 
पाभष्यके होती ह । हर स्विति या बर्तमापं का पपना मरतौठ होवा है, जिते 
प्रस्व श्प में परिवंनौप होगे पर॒मी, भिषकी तिरण्वर पुनब्पांस्मा पौर 
पूनड्पलन्पि होती ती भी । इर व्तंमात का प्रपा भनिप्य पी होवाहै, 
जिका पूर्वयुमान श्याव छी बेमाम चेष्टा करता है, किन जो परततं 
पादै पर मयोभटनाएे शमे पप्परिस्च शावा पोर इश ठह नबी स्बितिां 
एत्न करवा ह । दपर प्रकार जौवत केषल एक स्विति के बाद दूरी हिता द, 
पौर एमे मी भु, एष स्विति मेँ दूरौ स्मिधि होता है । हए भटवा क 
परियो फे सापे होने के कारण उल लाठी है । जव कभी षटनापुं क 
जर्तमार्ो शौ शापो माप सती हे पून प्रहुत हतौ दै, चो पराम पौर 
सनुमब की खम्पायना उल्पम्न हो बाती ह । पुम के समुगपीं बो मूष 
प्रापाम होते ै- किक मामाम पमिष्यश्भ षष्टि मे प्रतीत का पुनाीिपेक्षण 
कोने के करस माषिक होता है । पौर रिक-भापाम पा भूरी" षम प्रापाम 
ग्या -कोएल का भभ" होता है । प्रदीठ की पुन रणनाङके ह्वा प्रौर एक जैद 
स्ट ङेकायो ये पररस्न भ्युपरो के वृष्टीठ होने ए श्ट पपरिष्यो का 
प्रम निमि होता है 1 पह प्रम एक भ्त॑मात फ सिए प्रप प्राप को उसी स्व 
म लना सम्भ बताता, जिर स्मर्य एसे इूषर देखते ह पौर ईस प्रष्यरं 
भास जाः चै प्राणति शमो छम्यव बताता ६। “न्ा-कवरहके देच पे देसी षृरदि 
दै परातिक प्रप्य प महतल्वपुरों परिवर्तन हौ जाता है । तिया प्रतीकारमक 
अविश्िपाप्‌ बन जाती ह असह खामाकिक बाठाबरणा बन णते ¶ै प्रौर ष्यक 
भारम बन जतत है । एष प्रप्र प्राफटठिक प्रशा सं बुद्धपूर्खं पवमव $ 
हूममव स्वर्यं एक दसो पटमाहैषो भिसो प्राहविक श्विवि' पे एबरदस्व 
भरिकतन कर देतो है, भिन्ु कमो भी चट क्दिक प्रौ पाकसमिक भरिषो 
शूर ठह मष्ट वरह कएतौ ¦ 


मौनिङ प्रगुपवमाब ३२५ 


न्पहस्मानपै विष्व, दसी समथ द्यि क न्दम्‌ मे प्रतिक्रिया के 8ंमरन 
शो र्तरडेवा है पदेन हे प्रन्ठगे कीटं भिएीर वस्व पपर बहम्यान 
को गस्ुहै, समेमन शी प्मिष्त्ति उलश्र श्रो है| बस्तु भी स्पितिमे हर 
परिजन के छाप, पूदप्य क एक संकेणिन घमस्पी पुन र्ना होए है । पम 
रना षौ माजा उन रकेठिव प्रपिण््िपशलो मा्रपर निर्मर तीहि षो 
महिपरोच्च धस्तु हे स्त हाती है 
श्म पदमे मिण मे रहते है जिस पतीठ उसे वैलानिष जिषर्णरमे 
हमे बले हर परिमर्वन के घाव बरछा है । छिरिमौ हमे पड प्पृचिहिवोहै 
किम पये चेदिष्टं प्रोर सामाजिक बीन का पर्प दैतिहामिक पस्मा्मोके 
केप भ्मोगुपौर भरीतश्य पटनार्प्रो केम मे देदत ह हम परिषिार, 
म्प, बर्भप्रौरस्मूसको उन मोष हदय सममा पसम्दकूरते है जो इदिह 
ते उनके सानाविषमर्व्नोषो प्रदान ष््यिहे बनाय पपरष ¶्न संस्ाभोंके 
पषा मा पपं खन कायो पौर गापो मेरे गो इमाय घामाजिक विशाम 
प्रषयिव करवा ६ । 
किम्तु सामाजिक संस्वाप्रो शा सारा विकार भमृपाह्धीप प्पास्पापे दू 
हश्यपाद पौर उने बोडन कय प्रमं प्रतीपमा पविप्यंके गाप वर्तमाने 
राथा है । स्पग्मरभाद के प्रकार को हत्वमीमांणा एष स्वामाबिक पमरष 
तच पो । पवि शी प्रम केशा णिक छंच्सङेप्ाव यह्‌ पर्ण 
पमरष 1 ^१ 
छामजिक्‌ कार्य भौर परिक पावर षर प्राह मौढषौ पतिर 
छत्वदीमामा पं भितेप्ठा हे । स्तु प्ापूमिरु प्राहृषिष् विजान यं प्रापिता के 
विष, प्रौर द्वाष््देर श्ठेत नैस्विलदैदौ की मिषारज्यरस्वा्पो बम 
आतिङयी पवार्यवाद मो प्यषत्या्मो को एवनाषे उन परेरा मिली मिथ 
कवक दयोन फो मोविकृविजन पर भाप्रू षर। रो प्तिाप्रयै पष्पदी 
मेदेषट (अर्॑माण ा दन्‌) पार्द शरण मापणोर्भे जाखी परपढे 
शुष्माद १६१. मै प्रप्रण्वि हुए, मन्दते हार हैर शौ पवता श्ये दैग 
सियतिटी (पश्चि भोर पषा) का दक प्यबष्टारारौ कऋपान् परस्नुत धा । 
पप्ने मौतिर पेद भा पिक मिस्य दिरमेयणा कष्टेन दप उतम रो 
येहा, तरि मख्य यै, त एक्पयेसिमिर्स देशिषठ पो मैचूरव हापण्म" 
(णिक सन कए प्रपोपयक्‌ पापार) पौर € शतेष प्रद पादएष एत 





१ भोगं शकटं गोद, “दी प्ति पा दी दष्टः ( िशागो, २६१८ } 
इष्ठ २९८० ६२९) 


११८ प्रमरीषे दरपन कय दरिङास 


नजर (ति मे मत कौ प्रहा) इन रो को पुना बहुत हो कणन है, भोमि 
इमे न केवत सिफापो बाकि प्रारभ्मिषकास ष्टी परनमड़ कामक माप्य 
दिशां देती ई, मलिक वैमानिक पदधि की दुषी गदी ममपारणा्मो श वला्च भी 
परिलक्षिव हयी है घो प्यूटन शारा षि क माजन धोद यवापृषापिो 
हारा सनूमव के भमूर्तन, दोनो शो मिप्ममाबितं करर घट । कितु भपनी धारी 
कटिनाप्मा शरोर ममेयणाएमष्ठ अरक्म्मो के बाबपूव, ये सच्च करपी मौपिक 
शरगुमबब्ी दारा सोदिश्ये के मिए एक कलव-मीमांखा निपमिव करते का सर्वानि 
पूर्णता धक धाने बासा प्रमाष है। 
मीरे प्राति निञ्ञान कै घिपएुणो कु रते $ प्रमाप दा, बुरे 
एक्मीरिपूर्स दैष्ड मैजर' (पुम प्रोर प्रहृत) एयक परपने हारणा भाषणे 
मे (१९.२५) बहौ प्रपास प्रति के एाष पषूप्य ङे पतिष् प्रामाप्य म्पबहारङे 
म्बन मे किमा ! मानव परस्ठिणि श सर्वाधिकं 'भ्मागहारिक' भौर घापाष्य 
निप चिन्ह गोयं #ै प्रत्पषिषठ "पम्ध्रमित करये बहे" कह कर पो हिमा 
धरोर जिनका मोढमे इ तरह परिम्क्मर करिया छि उोकास्ष्प ही धवरेभमा 
उष निषेजना ए पावर मे पसाबार्णवः प्रत्पद प्रनौपभारिकि पोर धाष्पक 
रौतिषिषकी मयी दै । बु के मापणो श्ये ठतलमोमांघाप्मक-म्भबत्या कहना कठिन 
है, जिन्त माब जीषेण के चितम पर्णो के तापं भैया त्पाप ठग कषियागमाहै, 
बैठा मौलिङृ धनुमवनार को द्यी प्भ्य प्रमरीशो की देल म मब तक मीं 
क्षिपाप्वाहै 1 स्मयंप्राति क ्णन शपते श्वैश्रें शष्ट महोष्ी पकी 
टै, प्रीर इस शटारणा देसे ग इमेणा ही गि जो मालये भस्वित्व के एक दैन 
को ष्पाश्या ध्यच्िनिप्यषादइ घे इपित एक ्रहति-धियाप्त क स्मर्मे कर्ये। 
क्तु लोम एम॒ भारिस ध्रौर मिश्षियित के प्म्य मागषादिय कीर्माति बनी 
हवाल “बाष्य' विष क प्रस्वित्व कौ पलै पे मात श्रबबतेषे, पोर 
होमे प्रकृति के प्रस्तित्व को कमी ङि सम्मोर पाक्य विपथ नही माना 
ना! १९०६ संहते णेम्खको सिखागाकिि एन्य शात का उपकरण 


१ “शपि हरं शो पुष्ट ध्रशिदतनीय क्य तं तराबष्ेमपे लिश्चौ मौ 

ह निन्तुर्का बार पठृभे के दाद, मुपे लया हि उमे ब्रह्ष्ड ष्टो धाम्परिष्ता 

के साब लिष्ट्ता छी एक पेशलो लगना है, भो प्तुषतीय है । भूमे देना लपा 

हि सपर प पयर पन््यकि शी क्षमता र होती, सितु यह्‌ बनाने षी तोत्र 

प्ठा हीतो हि द्हयाग्डक्याहैः तो ब्रती प्रशार असत, -[ श्रोलिर 

देणे होर, एम शीतुरछ हि कारा सम्पादित प्रोरम्त-योतोक [+ 
„ ( कमिव, १९४१) य सण्ड २, प्रष्ठ २८७। ] 


मौविङ पनुभषदाद ष्द् 


पिन्द सष भस्वमियेय पूं ह, धमर दै स्वश्व धस्दित्व गही है जिह 
विषारप्वातपे पथे है पौर तके स्गरम्दररा के धिषए पे णये करते है। 
स्मे पाये कहा, ये जे कितनी गार कुष्ठ हमि पंञानारमड़ स्मयो 
पौर जेस षते परारबाद पं प्रस्लिल देह मौर “प्तक तार प्रम 
(दातालक त्विषि पौर रेष्यो शा) शमे हैम स्वदत भस्य के 
निपतर् पो पूरमूष्योन मेदे भि प्रषमरदृस्वसेयकषणे है) ^ शिर भी 
हके मिवार बीरे-ीर प्रहठिगाद शेधार मे! पप्य पं सौ कि उम्टोमे 
प्रहतिकाको्‌ छिटाम्ड निस्पिऽ षठा बरण्‌ पए भं मँ ङि मानम्‌ प्ास्विष्व 
कपे षिदाप्ठ के षाटवत्यीय भमिगयो छो उन्म धरमिष्ापिह समश्य 
१९०७ उने गेम्पषोचिशा-- 

“मेरे प्रमे मऽ कड प्रभिहप्हिगादी है प्रौर बे ¶ केष बुद्धिभारौ 
भौर एष्वतववासे मविशददहे भल नैवेह पार्योप्रे घो कर, समी पणर 
छामषादके दिष्ट प्रर प्रठिश्पि है) पे कतरा हैक प्रण परपर 
दिखिरकी भपेहापाङप्रपिष निषदि वै तिर्वि स्म नीद 
चषा) वरी पोर पे पिमे तेन से सिमर उख प्रये परिणाम पर 
शारदे प्रतीत होतेह, ज कहो भिषार भये गखोटी हरा है- पण्णा स्वप 
प्रानी प्रह्ये उतना व्िनाषपपे पफ्िबदेयो भी भिषारष्टे, उमौ 
मावदी पृत्तिकतो वप्त ६ ।प्रौर पद्ये पापष्ये प्रेता उनके मपि 
तिष्ट प्रतो हेरा  ।**५ 

भिम बृ भोर मोट "पथि प्रह््यिा" हुते दे बडु दहु इतनी प्पापकपोर 
पहि हवा मामी पनु दोनों भो पपके मृ समेतमे भामो पवी होवी बौ 
ङि उरक हम्पूणं स्पदा भयं तिदा्व न धावेपषपा न पम्मव। 

केप छते तिनागदी र्ठ शष्ठाङ् न्धि रा कं पर्व शिष्तेप्य 
चैम्प-ययव्‌ भौर भिषा भयन्‌ षो स्रव तषि प्रप्य केही शे प्रवुरूणो 
क्सुर पन केसष्प पं प्रषतुत कोवा-पतुग्यी प्म कष्ण डि हैर पक 
श्ेप्ररताएहकपं ष्लाणताहै भिवे श्रये स्ते दून को वहागवाकौ 
पाणप्पप्ा पनी दै । हय प्रकिदा स्वये द्िमो कम्पय वस्तु कयमद 
प्रहोष (बरेवम्नकेसगर्पपे बादिषारके) मदद षकारा धिक 
मप्युररष़ कृष पन्त उपम धये कायं एला मे सम्बद हेते ै--रष्डे मि 
क ह पर्पन-अनास्मक या पव्पारता्मष स्मि मो प्र के स्यू 


१ बेरी की कुष्तक, तः २, पृष्ठ ५३२ 
१ बटौ, शष्ट ५९८५२६१ 


१२. प्रमरीकी दरपन का ¶तिहाच 


क्पे यह परे होता टी एमे स्वटप्ठा, स्वत" स्फूं पावि क़ बद्धैव भिद प्रदान 
कृर्ठा परषीच होवा है ! पोर संयोग को ईष्वदीय स्म देने ठो बेसापीयपं कणे 
परीव होते है, यह परताजस्यकृ बनाता है 1 यै हमे परमुमष करवा द मि (पते 
योन कषम्यन्पमे) भे रसी प्रक्मरषी पबणारणारमक रना करे है 
जिका बे प्रम्यपा भिरोन क्रतो है । फिर मी मुषे माना प्डेमादन्िमै पुव दर 
शरसाभ्राया टं भव भै देता हु रि स्य वपं यै पीयर्सं से किठना षष प्रहर 
में पौर पविशो घाघ्ानी से छन्द एमण पेता हू, जव कि शु मपे पहते षे 
मेर भनिए्‌ शपि एक न्ब ङिति घे । 1 

पीय से भी प्रभिक बुढरिज तै इको परोरसाहिव का किमे प्रहरिषादौ 
डेन तै सो, तत्व-मीमांसा को भानुमविक्‌ दष्ट चे देशं भरर “एक्सपीरिपएम्य वैष्ड. 
षर, सिद्धं । 

मीडभ्ये परारि इक निए भरी प्रि प्पूमाशिक एमन्वितङ़ाहिक परिवर्तो 
माभटनार्पो छा लाम ई। घ क्तवत्मक या पण्य" जातु का प्रपना निर्बारिति 
पठत है धरोर माधी पम्मावनाएु है । चर्धमान' मे, पह निर्षारणः बा मप्यस्पता" 
क्पे एक प्रश्ध्म ६ै- एक एचि, निर्षारित, बते हुए “तौव श, धनुपृत 
ज्व क्षा निर्माण करणै मे छम्माषनार्मो का निरम्तर एपयोय हो दा ह । बटनार्पो 
क्मक्रम बेपाहप्रा वही है पौर यचचपि इम इठे बिष कड प्ते है ङ्श 
विक्रा का कों गिर्बित म तह ह, क्योकि मस्टित्व किसी मी समम प्रनिष्बित 

हिता है। 

4 हष्टिपोचर है,भह पप्य मं स्वि & । पौर प्रन े, पदस्य ष्का 
मिश्नय करता है कि षव क श्याशोठाहै। भो प्रतं है, बह प्रपूत पोर प्ुद्धैत 
पर धस्थिर क्प मे साधारं है। बस्युपों के ठात्कहिक स्पष्ट धौर मामीम 
पक्ष का ठन भप्रत्यस प्रौर पष कारको ठे निरोष पोर घम्बाम्य प्रसाम॑जस्य, जो 
भिमानः कै उषम प्रौर पत्म को निर्बारिव को दहै, हर परनुमणके 
परपरम पंगहै। पष विरो को हमारे परसो भे जिषस्यमं किया, णरेष्ठम 
पल्वनिर्वापुपूरण कड पठे द, ङ्त य़ विरोषं स्वयं प्र्बमिप्वासर मही है। 
यक्षी भो पनुभव की प्राषमिक प्राधार-सामधी &ै। 

दमम प्रलवमिस्वास $ स्वाय पर नायरछत्कयोको रक्ञदिमाहै, कमक 
कषस हर दक ङ्िष्पेदेष्ठाथा सक्तादहै। सु बे संस्कार बहुषाण्तमेष्ी 
परखनापष्कपरोर एर््यो परमिम॑र होरे है जिठना ये प्र्भिस्माप्र विका 
स्यान पे ब्रह्य कपो है) मिस्य ऊ पनिर्डित अरिभि कै निष्ठ हमारी 





१ बरी, पष्ठ ५२२-५९३। 


३२४ प्रमरीकी दछन धम इतिप 


एते सादना उभि नही 1 पवता कध्यै होया फि हम उपपुंठ निभो नं देत 
परवारणं प्रोर त्पापनारमो ए युक करते दी, धा प्रयोगयासा मे वेकार हो, 
पौर उपयोभी प्रमनों को पौमसं हारा पुश्य पये सण्वमों भे परिमापिन्‌ करै 
शौ तामाम्य प्रपृतति ्रोरेलरसे। धस प्र्ार प्रमधीक्ौ निद्वान प दाहरते भायै 
ये प्रपि निष़ट प्रतीव कफे तारिक बस्ुनिप्ठाजराद गरे प्राम्दोत म गीषष्ड़ी 
जिते म्यबहमरवारो प्रान्दोकन के करुण परो को प्रागिति विस्तार प्ररान 
क्या है पोर क घम्प पर्णो फो भ्रष्ट क्या है। प्यबह्मजापिो तै कमीमौ 
भैस सोषाथा पसरसे पथिक 'बिद्भात को एकवा के प्रब्तनके तिदे इते 
चेष्टाकी ट प्रौर बैडानिक वरशान् का परार वष्यारमक प्रमोर्बपीवा पि हटा 
करपरभ्विकया भापाके बाङ्-तोढृ पर लापा ै। पपर्मे प्यबहारवबेक 
बस्तुनिष्टामादइ पथिक पराकाप्टवारो हो गया दै भौर पनुमगबाद शवा तारिक 
होपयाै कि मोनिक वषीष्डवया। 


पिष्ठते धिनो क बैञञानिए़ एतिहास श्रै प्पेञा चमं मं व्यबह्मरवाद क प्रयोग 
ष्मा इतिषठाव एप माढानी छे गदाया भा घ्या है, श्पोफि पह ठका परमाम 
एटा पड़ा पा-क प्रमाक प्रषिभि-मिरोभी ोक््निय प्रौर मजु णा । कैम्म 
मै जिस हस्के दयते उनषटी गम्मीएवम" घमस्यापो फो रप कए ध्मा रषपै 
पम्नी पौर दानिक दोमों ह गदे धुम्ब हप । ने पात्या को प्रनिक तष्य 
भोर षमपाल्न को प्रथिक् दारधनिक बनाना बहते बे । भेम्प षै यष पूषैमान्यवा 
षो किष स्वत-रपूततं क्पे भिष्ठ रार जिमा भादा है उमे प्रव 
कुण पमर प्रसौकरिके तदीठो मपिपूर्णः प्रोर प्रणि-वार्ि होवादै। षह 
त्नापरक प्रठीठ हो इङ सारे प्रयाय प्रपषल ष्ठ होगे । निर्य ही पह 
जिद रण्डमि श्रष्म्युर ये भणते प्रादे पाठस्य प्रौर पद्पपि पष्ेने 
पतै पिता के ए्ल्लवाद प्रर “समामगादण का बरिस्यापक्ए दमा, किन्बु 
रनक पाडरियद-जिरोप तोर्कनादाद के निरोप प्रौर भैतिषता-बिेप परए उमा 
शिष्वास ना णा । 


५१८०५ मे ही उन्हे बेञजामिन गोन प्य दी रचना दिगेत्येशिक रैमेतेएन" 
{ समेदमहारी दिग्यान) ष्टी धी श्रौर उसङे शाद ॐ उने छारे भिचारपं 
बह एक प्रारार-यिप्ा षती रही । उनके प्रपमै चीवनक्मम मृं मिलित पोर 
प्रकाण्िठि प्रम्तिम रबना्मे एसी लेखकक प्रपंदाधी पौर उषा पीप्कषा 
ए प्मूरशिरिटक सिर्टिक्" { परु बहृल्तबारी रास्यबादी } । शतन मं ग्द 
एगमष्ड पर्णो के 'हाप्पयिरिकल मुपरमैचुरमि्मः (परिविस्वमाप्पक पीति कार) 
मै भराश्पि प्िपापा जिदं श्रफठि क्व वर्मान प्यबस्थाष्ठे निरतर्‌ एष 


१९६ धमरीष्यी रपम भर इविषा 


शरन पर्नोमे बीरित रहा है, क्तु त्य प्रर वस्य उवरकर पपौ 

रीदिोसे हमारे थीबनर्मे प्ररे ह, भो शाब्दिक निस्पण ष्टी धीमा पे वाइर 
शरी भाती ह । प्रस््च-कान क नीमि कार्ये हयेषा शष देषा होवा है णो 
पहक्ता पोर फिलमित्तावा है, सेषिनि पकडे तहा प्राता पौर जिसे निर्‌ 
बिम शद्ी दैरये प्राता है। षो ये रनौ पण्छौ दरह तट जातवा भिवता 
दार्यनिष । उपे प्रपनी भवपारएारमण अदूष् से तमी पमानलिया णौ बौर 
करनी पड़ी है वरपोकि मह उघोम ही उठे प्पषसाप म दण्ड है, शेकिनि महौ 
मत बह इपर बोश्लसेतन प्रर पपरानिषष्वा छो बनता है । 
__ र्मे का ए प्रालाचनात्मह भिञ्जान धायद पन्ठटोपत्वा उठनी हौ सामाग्य 
भन-स्वीकृति प्रा फर ते, भितनी किप मोदि भिञ्जान को प्रा होतो है। 
निजीस्परमे सजामि ध्यछि भी पम्ममध इवे निष्कपो श्रो भरोये के प्रापार 
प्रस्वीकार करसे, बहुत ब बेदी चैवे प्रष्ने प्रि प्राम दृष्टि प्म्बन््ी 
व्यो टो स्वीकार कर नेमे है--उनदे धनष्यर करला उठता ही पू॑तापूणं प्रतीव 
हो पष्ताहै। शिशु घर्॑मगम हष्ठि-भिशान के धिए देये बाते ध्वक्ियो ्रारा 
प्नुधूत श्य प्रस्व करनै परते है पौर उशी प्रामाणिम्णा शी निण्ठर बाच 
करनी प्तौ ह । प्रत" अमे य मिज्ञात परपनो मोलिकषामप्रौक्े निए नियौ 
श्नतुमव के ठप्ो पर भिर्म॑र होगा सौर सपनी धारो पाघोचनमष पुन रषनापो 
मे खे भिमो भनुमष फे घज मल बिखमा होया । शेष बिन्दमी है बह प्पनेष्े 
कमी ब्रम वही र पघकेया । "+ 

पषा पम॑णस्तर पोर द्य॑न को उपद्र पा 'मप्यस्व' मी शी माना मपा है, 
धरन्‌ धामि सुम क्ये शारमूद बिषिबता निता प्रौ प्र-त्नापरकता के 
प्रत्पप्र ङ्प पे बिड्ट माना णयाहै। 

“पमं को भोमिवं स्डप्रे वापी बत्तु पपूर्वं परिमापाप्रो पौर काण्िक्प 
मं म्पि बिचेपर्यो श म्पम्स्मार्थो से मिनद प्रोप्पर्मद्रष्वके पंकपो प्रौ 
प्रो धे विम्कुत प्रदाह पै घाते बोडे बाद ष्ये उप्िपाहै ९ 
खस चामिष पनुमनाके समूहुमे बुहुजाने बते गौण वत्वे गा षामम्व 
जितौ, मनुय क जाडनम्‌ पदो दर पोद्धे प्रा नगाषस्णु कयै आली मावना 
पौर प्राब्रदधे पाने का परस्पर मम्बड कटे । प्रपर प्रागपृ् करिबे 

१ बित्तिपम पेम्पः छदी वैराटौर म्रौ शेतिजत पक्तपौर्पिम्पः पष्ट्टी 
धत हापन मेषः (पपूरपोश्ं १९१०१); प्रष्ठ ५५४ एव ०) ४५१५, ४४८ ४५१ 

" थत) दद -४ १०) ४५६ 


क्रय परमरीष्टे वन का इरिद्यस 


धात्रि वत्र निजी चेवना श्च पसामाम्ववापो मे महौ भरतु “पहुमायी मदुमद 
मेषधाग्देदै, गे पमि प्रास्या को देयो बस्ु मानते हषो मतुपो मे सामान्य 
शौ सकी है प्रौ होनी पावे । मनुष्प जो कुष यमां स्म मे षटु परनुषब 
श्रे ह भोर जिसे इट पादय मानते ¶ उन घम्बद षय के मनिगन पचम 
मँ षामिक प्रास्मा मनुष्यो रे एकता धती  । विमाय करते बर्हो ष 
एदा क पतौक भोर बास्तजिषष्या ठमा प्रादं श्व प्रादिऊ एष्वाके मामङे 
स्प वर, स्मीति कि वयाप तिष्ठा पत्र है। प्रद ङं ्पूनवम पर्मणतत 
शौर शरह्याण्वर्छन तथा मथिकठम प्हृतिमादी उ्दारवाद क पुष्ट हो बाते इ । 
भामि पनुमवबादी प्रामूखपसिजिनिगाष के प्रनयं मत्वपूरो स्यो 
पराभ जा पक्ती है, कितु मेम्व मौरङरक्नेष्न रो उदाहरणो परवा 
भाता दै [ भ्यगहारभाद मे किस प्रर प्रास्मा के एकं सिद्धान्तं को पनप्रतिष्टिवि 
केके पभ साप समौ परम्पपमव स्वाप धापा पमस प्रौर पर्णो 
प्ममिसनीय पिद करना चाहा । किन्तु प्राल्ा ढे ध्यबह्यरवापै पिवात्वप्रभी 
प्रपि महत्वुणं यह बाष्णा री ६ कि भामि पनुमेम भावना तात्कालिक 
स्वात्म ष्वा है, जिसे मनोजिञ्जान या सम्मतः मानव-क्ड्ातषकेि सन्धमतं 
खमप्र जा पक्ता है प्रोर बह पमप्र पूषि के भजाम माधकन्रहति प्रो मातेबी 
शसम॑जर्नो पर प्रका डघ्रता है । 
अम पौर दैवना्यमे बेम्सक्मी निरन्तर दिके भरणा णो निषषव हौ 
व्यष्ह्मवाद की सोमपा का एष प्पृदध कारणा भा उक कुण प्रि मोर्‌ 
परषृत्ि के भि उने द्र होगये) यै भित मेषि दगध भागषाश्चो निका 
देना पते पे पौर भ्यगढारवार को राजनीतिष् प्रौर्‌ पाविष मभारब॑षद नमर 
सेस ङ्प देना जाहूतै वै । एतर्मे एवविकं प्यष्ट-बच्छय गर्टिष प्रोतिषर बेषैत 
हौत्म्ठपे भिन्दति भहु पडते द्वं मे हृ दत्वमीमाषामष चर्ष्गोमे ये 
करप्योमे मामङ्धिषाना अम्पष्ो दादमसोजीः का स्वागत स्विपाजाप्रौर णो 
हातूमो ्यदब्ह्मरमादके माम्य बैताषन पमैये। द्द कव पेम्पको रवा 
पेपैरयम' परहापित हरं पो उण्डेने पपतै मिष घर फेषरिक पोर को मिशा-- 
शै सममा हि दिपरम्‌ म्यक प्रय॑मतीय पौर युिखितव भोबनके 
भायै प्रसयम-शात पि मि उदी परञिष्ठीज परिद्क्यतापो के समान स्यबहारवाद 
प्रौ पुरु मन्ररंगफ पारख । मूढे तारो परिकहनाए्‌ दद्मेशन मशो पमौ 


चे धाये धदुनिके यदाद गतिहोन अना पवि बानेन एमन 
कपप्रडो प्रा योनु) पीर एर णित हारा सम्राहिति हो हिता प्रो 
( इ च, ( एवाह, इतिगोपत १९१९ }› प्रण २१। ] 


भौतिक पमुमनबाद शर्ट 


प्रार्पाक्ो उनकेगरचर एही स्य भवीव हवी है-पोभ्परकाम् वायक 
भयर घ्ाष रोनी कम क्र दं वो बह चमत्कार पिलादगा । चैषा पै कुप क् 
बष्प ह, पष्य भैरा वातं ठोस हाता जिर षदेविनानैमणष्डष्कूं। 
बहत शिनि फते बिदा पया एष उदाहरण श, तो युष वष्स्पके पताम 
विजिममभेम्यषाधकं भीष्मे उसो कोटिक प्रतीव हमा षा विसश्य विक 
मैने छपरस्पाहै) बह तकं स्वतम्व बिषार बाते एष्स्वशादी पादरि्यो परौर 
मङ्गिपापो फो प्रपत्रकटतै बाधा मा) मृमरहमेण ब्रम भ्राग्म्श्मे एकभाव 
मव प्रती है हि दर्पति शे प्राम दे रहने बाबे बयं पे यहु प्रमादे कर 
कैतिएमपेप्रसगास्ाहैकि पङ्गु दीषहै ) मै मी सम्ध्या किस 
त्त दीक "दै" हिनु मिस मिम्नकारणोये) छारी बका लद प्रर उष्य 
पामिषहै) प्रगर मह पिप्त्यंमषहेदा ठो यै षमण्ना है हम दये एम नपय 
धरर मी कृषन पुनदे ! धारो बद श महत्य दसी को मनि एर वै उसे भमत्र 
क्ण्वाहा " 
कितु जरि होर्छ स उनकी पणी मावुप्ठा बो-जीवम ङे प्॑पपेषौ 

महिमा निखपिष्‌ कामे का मुर्य प्रन्तिमि पथो फो वला षो प्या) 

प्जोषष दपा है, प्रपनी पमो का प्रयोय } उनद्यं एोमा वंक उमां पमोभ 
हमार पनन्द धीर क्म्य ६) पतः यी सव्य ह रिर्य भौविटप धपव 
परपर्पेहै। ष 

लीक भो धपम-परापरये एष तयप घमण्डर। बो कूप ह श्वर्पालक्मा ६ै-- 
जि इम उश्वतर पार की कार्यपरा शह है उषी दै हमा पपिस्वष 
परपमटाहै' रै सोच्दादु डिका गिषार्‌, पतिया ध प्याय मात्वपूषे 
ष्वा; 

ह्ला “माप भैमि उत्तेमना शा पयायते वेम्तक्ा दतनाहीभप्िपिभा 
जिना पैम्ब षौ पामि परिक्सनाप्‌ हेत्म्सश्रदो। 

शरे पठ सिति दभानातपवा ६, पौर वेषलं देता बर्‌ मूम गहे 
परिखनष पतने एमोवृ श्वम्यरीमषछोय मी उने (यमनो दरि क्ट, 
कै की निः भोकर वितपते है मोह भने किणो घवानों ये प्यते पपपंकन 


१ एम ड़दृ हाड हारा तम्पारिति ठोतन-पोर्षाक सेत ( कर्दम 
१६४८१), तण १ प्रष्ठ १६८१५४० 


र प्मोनिष वैगेन होम्म्त, शदीदेद, ( ग्पृपर, १९१६ } ~~ - 
१ शोत्म्तमोलारि सेट पष २, शष्ठ १२ १ 


११. ममरौकी दन श्म इष्डित 


भागन्ध चैते है । पत उदं भम ्ोडृ दं | मान उत्तमा एक पमौढ़ भार 
ह, एर्गोज्किस्पामाप्म ॐ परमिह नमो ढे प्रयो । + 
होर््छ भै जित सागुक पश्य स्यकिषाह रा प्रभा द्विया, प्रह यादो कोपे 
के सिए नया वसेम गद्ये भा पर्‌ उसका भ्यबहारवाद से कोए प्सयषठसम्बग्म 
नहीणा। न्तु जम उन्होमै कानूनी निर्णय मँ उष्टा प्रासोचतात्मकं प्रपोम 
स्पा, तो उन्म जिबिष्ठास्म षा एक हसेजल मथा देते भाषा चिखान्त 
निरमिह क्या, चिदे दूनी भ्यमहारयाड मा यथावा केतागपे प्रसिद्ध 
मदत्वदूणं भाग्वोखन धारम्म हया । हाम्म्ख भे नेम्यः # 'दिम्य-डात निरोध" कोः 
क्ामाभ्प क्ृनूष पर शापं किया । 
तरून जीषत दरेठत्व महीर पर्ुमवरहाहै। मवुप्य निनं 
नियमो हा छासि रहो उल निर्भर कमै मे हेलनुमान श्री पपेस्ा षमय 
कवी प्रतुमूव पाष्फापो का प्रचलित नैतिक मोर रा्गीिक्‌ सिदटाष्ठी क 
धा्दजनिक वीतिश्रौ जौपित पाप्रम्प पष्ठ षा पहात कि परन 
पवग कामभो जां पत्य म्ुप्यो $ धाक-साबव्यायाबीर्पोरफे भी शेते ह बहुत 
भभ्कि इषि फाहै। " 
दषे परवुमभषाद को प्रस्थान-मिन्बु बना कर उम्होतै ८६७ सङ्काव्राषि 
प्रपमी अयि भ्यबहारभदी परिभापा निश्पिव श्ये (कदरूष) भवाशर्तोके 
माप्यम से घ्ंजनिक एकि के बटल का पूर्-कपर्व है । प्र उषी चेष्ट भाप 
श्रो पापर्पारयी सो! (कतृर छा माप॑) मे उति प्राते ¶्डा-- 
शरद भहुषा न्दे क्षेवा है हि मर कानून हे वैतिक महत्व का हर शम्ब 
विष्ुल निष्प विपा णाप्‌, परौर प्रप्य तम्ब भपना लिये जाए भो हूतो निरा 
को कानून के बाहरके प्रमागो श विषुव पृष्ठ र्शक्र पष्य कदं वा ष्मा 
दे साम मही हामा । हम इपिष्टासके करटौ बढ़े हस्ते नरि पृराते रीष 
परमिका का धरोर मैतिक सम्बन्वाठे प्राप्ठ बहतांसषोपो स्मि ङिममु प्रना्स्यक्‌ 
शम्प्रम धै पपमेकोमुक्करकेनैमे बिषार्येष्ची ्प्टवाकेषष्टिमेदर्मैबया 
छाय हेया! श्फापिष निं षमी मापा सश्पदः पष््धात्व श्ी मापा शौरी 
श्रौए्ठक्ि परि प्रोर स्म निष्षय प्रौर सिरता शरो उव ध्राष्रताको घनतुष्ट 
केह जोहर मानव मनम हीह । दस्तु ताङ्किस्म केपी तरिषि 
निर्माण के पतियोगी प्रापारो के सापैय बूष्म पौर महस सम्बन्धो निप हेवा 
है। बिपि-निमणि कनो भीति ढे प्रन परदएष़ पिमा हमा, भये-पेतन पर्प 


१ चेरी यो पुस्तक शण्ड २, पष्ठ २५१३ 
१ प्नौलिषद दैऽ्ेन दोस्त, "दो संपन सो" (बोस्टन १८१) प्रष्ठ १; 


मौलि प्रदुमयवाद ४३१९ 


फैवा है मौर प्रपर कोरा सोष्ाहै हि नि्मन कष्टा दाहमेपाढेह्धिप्‌ 
ये ूत्म्प्या भा घश्वा है, घो यै फेबल इतना हौ कठ्‌ प्ता है कि मेरे बिचार 
प्रेष दैडम्तिके खतो करवा 1 

शतन पपन सिए म्ुम्य श्ये यभ्मोरवम पृष प्रष्ियो छे स्यादा पप्र 
पमिप षी माव शठा} 

रयन उरेप्य तदी प्रदान करता क्श बड ममूर््ो को र्ाताहै र्जा 
रष पएतेठेहीकरना बाह्ये है उषे करना पठा नही है \ † 

कपतूनो दन ने यह मौधिष संशयाद्‌ देवश कानून के प्राचौत निषमन 

शिद्ा्ठ श्वे प्रामोधना ही नही दा, जिते निभिनपास्ं की दविष्ठ भरर 
तिषाएमारो सारा पशे हौ घमाप्ठ केर दिपाथा) यह स्यापि कार्षि 
शै पमपारणारमक प्रिमापय म्बन्धरो पीयसे को एकि का प्रमाबद्रायेप्रपाय 
बा! होस करौ परिपापा $ परबुखार, तिस श्यनून श पर्य मर्पारिव स्ने के 
लिये भज उड प्रानुमभिक परिणामो क पोर ध्यान दे ध्वा पा } मिरे घमा 
एप्प निभिदास् शा णपा रषे सिये षे शर बुष ग्या पोए परास्त 
स्पष्ट रकार मो्ठि फी एमेन्ट भेल मपी ) भिषिननिर्माणा पे सपणाद प्रृतो 
ढे प्रति हर्श प्रपना श्टफरोणु शोपानरेषणपूणौ हीते" काधा। किमु 
गन्म वनी कदे षदिपयुद्रा थौ हि बड दै पगृियां पिपान-मष्यष की एण्या 
काष्पष्ट मरम म्पककरटीं तोषे एम्ह्‌ सागर करते पमि एष नागरिके 
षर वे णहु प्रतवाचारपूा कद्‌ कर उतश्च मिष्या करये । बे पनी "वक्षि 
कषालायोकी भम्भोर्ठम भृहप्रवृिपो केडिष्टश्दाष्रमे शोतैयारमदीषे 
पधौरमबे दयं प्रपा नैतिक कर्तम्य समम्ेधे हि भगघामाम्य क मणोपेमो 
प्म सा येषा कि सयम प्रर सन्धुलन श्य परएना चिरान्व धि्ावा पा। तिमी 
पये नीदिशवराक रोपोये पौरमानतं येह्ज्ननून श्वे षमदष्टकी 
ष्वा ाररियवके पावर प्रौर धर्मोदयं उषी भिपेपाज्रिणरप्ट विधि 
वैमृष्छकरकेे ह्ामून शी मर्मोहेगाकररेये दस्यव सादर की परत 
वमौ पर्‌ इद शपोमिवाबादी पापार पर शरदा छि या शदे १५ 





१ प्ोलिदर हेग होत्म्त, श्ेकेड सोन बेस ( म्पूपा्, ११२०), 
पृष्ठ १७६-६८१) २००, ११६॥। पन्तिम ग्दप्ठ भेदष्त लो ( प्रह्मनि 
निप } बर्‌ कमरे निजन्प ते लिषा सपाह? 

१ {डमु निगीस्पतडे एडम बुष शर्लारपु धयन्‌ हो (नते 
पै! उलङक्टिनि बप्थिपषे यतिच ष्वद तिरषरारक्ापुनवष्एते ये, णाद) 
जनो के तिद शितो ष्ददल्था यने प्ये पदान करर ये। प्र रेक 


१६२ ममसेष्ये बेन का पदप 


यह श्यं रेदान्तिक शेव मे सत्प पारुष्य भौर म्यगार मं भरट पष्प 
भौर भम्र कार्ड ऊ दिष्ठे पे प्राया {क पक पमाणप्रास्मीय भिषि-्ास्म 
क्न भिदा कर भके त्रम नैतिक सिरा भ्रौर सामायिक नीट एष 
स्परे का समर्पन करस्क्‌। 
रिद्धान्धां नियर्मो पौर प्रतिमार्गो के यख मामर्धो थे परीसयश्च प्रन्चिपा 
केद्वारा भज बास्तमिक क्ामून बनाता है । बह उनके प्याक्ारिक मोम शे 
दैप है भोर बहवैरे शरणो के प्रवमब पे बीरे-पीरे पता घमाता है कि उत 
भ्मोम कि प्रकार करे जिसे उनके हारा म्पाय करर धके । 
मुनीति क जिका ढे द्रा दरुतम तिक्ता कन प्रेण, भिपिनिमाए शै 
उपसम्ि गही, षरम्‌ प्रदालर्वो का कर्मं बा । श्वापारियो फ अद्रनों का हूर म 
माब, प्रजिनिममो के ण नही हेमा, वण ग्यायिक निरो क दराद्य हृषा । 
एक कार्‌ बैषानिक मि्ारप्रौरम्मापिष निर्णिश्ची षाराके किसी तयै मान पर 
भुङे कं बाब स्पायिक प्रमुमवभादौ षी इमापै पेम्लो-ममदीकी पडि हेषा 


पोली के लाम एक पत्र के निम्नतिघित भरं उभषी निमी पुरता प्रीर एक 
लोष्ताग्वि गिपि-वाड क वितोपक्षो ष्यक कते --"यमिवोतरसेनोकाम 
करता ह, उनके सम्बम्य से ण्डो ने उस मिन पुषे एक बदरो तीन्ली बात 
कही । उन्होनि कहा, भाप पपा दिषाप्र सुपाप्मे हो भात करती ह, रष्व प्राप 
उषा प्रयोज कैवेम एव विप्यो पर श्यते है, जिनते प्राप परिक । पाप 
किती नई जीड के तिद धयत्व क्यो कहौ करते, तष्य फ किती शेता प्रप्ययन 
श्यी नही क्ते } मंपादुपर के ग्ज शोय कोते तं प्नौर पम्य्धित रपट 
का पपि पप्पमत करते के बाष प्राप तरेत लापर्से ह पौर कुपु बा 
ष्म ह हि बस्तिमे है कया । एषे ठष्यो प्रे लरत है । मे हमेजा कहता है 
छि मदुध्य क्षा पुष्प लक्ष्य पापाप्य सए्पाषनाप्रो का तिष्य करना है--िर 
य्ह जोक़रेला हं रि घासे ्तामाम्य स्वापनाय पूस्यहीतं होती है । बेर 
सामास्य स्वापमा दल त्यां को पिरोने श्रा पाया होता है प्रौर सूपे इते 
एह नहो {क धपरधं उनम पटू, तो मेते प्रनषवर प्रादा को लान होवा, 
शष कायं के तप्पाबन मे भी मुपे लाब्रहोवा। पतेस्निे इत भ्वसि बद्धा 
हसक ेताष्टर कि षसया उत पीर ष्टो पने शा पबत सोनाली 
जता, भि एक भद-पुष्प को ममे के पठते पद लेना बहिए्‌ । पुषे पाद 
हं (क ममे शनी सद्धियाशेसी टौ रथा मिन्ध श्रौ हो- मोर मे (ईशपेय) 
लिय के दिन्‌ की बतत सोबत हं ॥› - (दपस्स-योलांऱ तेद चण्ड २ प्रष्ठ 
५ ११.१४) } 





मौसिङ प्रनुमगदाद ९३१ 


परवप्वि सिद हृ है ! हमारे एामान्य सून ये दै छामम है कि समे प्रापारमूत 
कोमेषरबह ध्याय को पावपष्वाभों शी पूर्तिके सिये उन निष्सित कृषे 
प्रौर परिणामो को एरु बैतानिक़ ष्यस्व मे इति ! पसक श्रपिरिक्छ रसमे भर 
धापर्योकोप्रहयशयैष्टी पचि है जै रने दुमीति (पिचिरी) ए बिषयः 
पेप्मौर श्वापरारिक नियमो को धमाविष्ट कमे पिपा । बस्तु सगमगश्चन 
चनि ही, हतार छदूनी प्पदस्मा भ प्राधारदठ परिपतन होत पठे, हमार 
निर्णीप बिपि मे एक रर्िवि्वम होवा रह ६। हमारे विपि-मिर्माण नीषि 
षररिमर्तन वमा कष्ट होमे $ पह ही हम रभरीसगो पताब्दी ढे भ्यव 
श्वे तते जिते कानूनी प्पाय का पर्वूे गाम दिया पमा पा पाके सामानिष 
न्मायक्षो श्रोरबदृषहेपे। › 
पदा ष्ष्टिषनीण भेम्ड घोर होम्स् फ पृस्क्पमा" सेब हटकर दुध्रो 
ष्पद शच्यै प्रौर पारगो हे सामाजिक मीरिमरास पर प्राजयाहै। तू) 
क्षा भरस्तव, उष संपपंमे णो भोमन है" भिमिप्न पक्ि-संस्म्पो शो पेमा 
पै नही, भरन्‌ उस कताङ़द्रार जो पणन है परापस्पष्तापा फो पूति षै 
छिपे है। 
बिपि-छद्यी मानभौ ंषस्पो के गजाय मापबी भ्राबपपक्तापो व 
पषाशाभो क सष्दमे तं पोपते तथे । चे दोषे प्पे कियन बेवनरसीर्योरे 
एमा पा पमरमष्ठा सही सानी षी कणम्‌ प्ादापस्तामो गी पति मे प्रपः 
लमानिवानेही तोकमत कम छषरन्ता भाभी यी । षे दामा पा भावप्यरापर 
जा पाषराप्रा शा तुल मा शरन्दुडन भोर मापा करप तपे उमी प्रद्र 
वैरो पदममे वहो वा रम्बुमय वासमाप श्टेपे! ेध्रोषये तैम 
कानून क सस्य पतिप्वम स्वाष्ठ्‌ नटी बल्‌ पाबयप्वारमो ष्टी पप्वय पहि 
६ । फषस्वस्य शृण धमय वषे नोतिराष्न, बिपिणास्र पौर पएजनोटिकौ 
शमस्या का मुख्यकः पूयभ्न षी दयस्या, दवद फ पपेष्र भूष्यते क्योरिपौ 
चोगने को हमस्या माने णठ । विभि-एान्च पोर शजनोगिपे उन्दने श्या 
ह्मे ्चायिह वा पयाघरीव लर शर्व केषर हि्नौकने प्रमादो कननेषै 
पम्मादना भरौ प्वा्टारिकि सम्या बो मी भाला होपा । दिसतु पहवः प्रन 
पभा पाकष्दश्नपों शो माम्यधारं बपे-म्नि दि रो सोदर 
धीर शुक स्वया वये 1 दैदी पाबरयह्यार्पो दायो धोद पतो को पूषौ वपा 
कतेक, जिद धष्डस्ि नाष्य पोर मिन दिप शरनूनी धुरा 





१ सेको पाग्णय स्तो षरि प्क दी रयन्‌ सोः ( शोगटम, १६९१ }, 
शष्ट १५९ १८४१८६६ 


1.1 परमै्तौ दंव का पतिहाष 


मगीषादटी षै, ह्मे ठनकन मृत्पौकन क्एयाभा भिक मान्यठादेनी षौ उकम 
श्वयलक्षरना पा पौर धन्व माप्पष्धींष्मषटष्टिमे उन घीमार्पो दा निर्भारख 
करना पा जिने परन्दर उन्हु प्रमाभो बनाना बा प्रौर पता समाता पाकि नूनी 
क्म्य शे प्रष्वतिहिद षीमाप्रो को हथ मे, कहां ठक हम जन्तून हमरा 
भरमाभौ बना श््तेहै। ^ 

हम प्रमषीशये न केवस घामाजिषटस्याप सेकेपेै उन नीजो बचे 
परषं मे जिसे कष्ट प्रौर ह्यति होवी &, षै बन का प्रसमात मिवरण, भरन्‌ इम 
पषवः भोषठल्व से बेचे है । जिघ् पामाजिकम्यापषिसिए्‌ हम प्वषकए्यं 
है बह हमारा पुष्प श्य पषहौ भरम्‌ हमारे शोकटठम्ब षी एक पटना है । पा 
कना प्रपिक्‌ उभि होया छि यह मोक का शस है-णयद उसकी सर्बोत्तप 
धषिम्पछ्ि- ददु पड़ मोष्तण्व एर हौ माषारि ¢, मिरे जना द्य सान 
निहित है भरर इष शरण, जिप सस्य फे भिम हमं प्रमाप करता द, बनता 
हाया घात श्री पलम्बि है, भिष्मं राजनोतिक लोकता क घाण-साप प्रौधौगिष 
साक मी निहितं है । 

को पषा म्पक्ठि क्या पथपुश्‌ स्वतत्हो षष्ठा, जिर निरम्तर्मा 
शठराहा छिप्से मात जीषल-मिर्वाहि के धिये स्वयं भप प्रपात भोर प्राभरण 
मे मिश्र क्सीभष्तुयाश्यछ्ि पर निर्म॑र होभा परै? प्राभि निवि की कंपति 
स्ववाचा के प्राण ठमौ क्ोवी ६, भम भगपोपणा श्च शाका भविक्मर भर भ्राषारिवे 
हो पनुब्रह परर बही। 

शव्पक्छि की स्वतखता सफल शोफवत्त की उतनी दही प्राबप्यड़ धतं है, 
भ्रितनी उषी प्पकषा । प्रमर्‌ पान देषी प्वितिर्यो की प्रनुमतिश्वा हनो 
भूभरिकरं के बहूप॑स्य बमो शो भार्ण ठे पपी बनाती है घोरम्वक्ये 
शाहिये कि स्वयं उक कमियो से एत्र बोकको किसी श्प मे स्वं पपै षर 
कषर्‌, पातो पैसा करके कि दूरं उसे प्रपते उपरतिं पराधीनता की कवत 
बराक कमै कम करे । 

श्त्वठसता प्राप्ति का मूस्य भ्रामर पर बहुत पथिषशेवाई। 

कमरीष्मी हतु के एए सतुभवगादी प्राम्दोसन गे भामपता पे तपाकषिति 
यवाभषारिमो का एक पयव है, भो मैदिङ दिद्ाग्वो, विपीम भमिगारसामो, 


१ रोसो पारणा, "ठन पषटोशप्रतह दी प्िपषष्ठी पाठतः (च्व 


हैमेन, २६२२) एष्ट ०८९२-६ । 
ब्‌ प्रते लीढ द्वारा पष्यद्व 'ो सोल पेण्ड एषोनपि प्यृत प्रो 


प्िर्टद शस्टित पज्डोत" ( श्दूपाकं १६१० } पष्ठ १८२, ३१६ । 


६३ 


जौरमिष भनुमवमाद ३२१ 


प्रर प्रत्य प्रह्मर मी “परालसरणादरी बकवास" रे यु ज्ातूम के एक भस्युपरक 
मिन कये धावता प्ता है। रन प्रपा है कि धमन्य धह ढे 
उपपोपिठामारी विदन्तो लौ प्रमे, घतामयाद्मीय मिपि याश्च के छमर्मक 
शकक कुष माम्य धामामिक्‌ सस्यो को सोभ्वाग्तिक माहा, 
हननी म्पगस्थ ढे सिदारतो को प्रोर धम्य भेदक कोटियो का ते मामा वार्ह 
षा बास्वय ने पानुमगिगती है! बे ए भारथ मिम" बाषवेहै, गो 
माम्य शष परर र्यो पर नही बष्न्‌ भुयो के षास्ठबिड र्यो भोर दि 
पषनिपरितहा। उनका पादह्‌ प्रापरािक कषातून शी श्यशा दीवानी कानून पर 
पिक हैप्रोरमेह्ाटूत नो तमस्यरपो नो ससी बीम शीष ईष्टि पि देखते 
है--वायिङू गिम क पूमनुमात षै एमस्यामो के स्प मृ । वे प्रास्वस्त होना 
भाते हैक मिनिघाद्नमे भो मी क्ाूली भिगम पै पस्य घम्मिभित 
शपि षाप्‌, बे केवल प्रहदरदधी शषोको भूल्धने श्यै प्याबहरिक प्रकिमाके 
रमर हो उन्न पानुतमिष सत्याश ह धके पोरे पष पातपिकल्ण 
मृदौ पपौभाते तह बोद्ती निर्णीय के बाद उवे पायेण ठो मदानकर्‌ 
शेकिनिकों बोडिकका्गमकरतीहे। 
छतून ॐ परति म्ययदारमादी द्यो मे भो विमिष्गा दिशां रेनी ह, चैष 
हौ बिभिषवा रायि प्रति भ्यबहारागो हष्टिणे को छमीला कवे पर सामन 
भाती ट) नि्िमम म्द स्वमा भौर दातेनिष क्षय मे ध्यच्िषादो पे । ए 
बिएासता धनै भाष भे परिम्‌ पी, भपिषवम स्ानीय रायभीयि $ पणिरि् 
शाप एमगीति हे भने षी, साप्राम्पनाद पे पवेग्पूषं पृरा वी यहां वरम 
कतिपाशेषी लवा से मौ सछपवषी। वे बोरा सोर मेहनती गीदनमं 
विर्वा क्रते यै तेपि हन पुसो को मिगयुस नियी ष्ण म पोर ष्ठे वमाने पर 
सेवेषे। गुससयष्प्टे-ाटे निनी शमये शस भातो पे उदरे ष्ठि यो 
पौर दम्ने द घदरापठा ष्रवेवे, प्सु, सापराग्यगाद के मिष्य व॑प्प॑डे 
प्रिरिक, भो वैमानि कै एजनीतिः पलो पोर पछयपो मे उन्हे सर्थनिषट भ 
बर कल प्रित ष्टो ) एते विपती बु मे भरता नोतियास्र बदु धमे 
कालके धुक्य दजनीविर पौर प्रापि परयनोके परमे बिगरिन स्वि पा। 
कै अनवा पोर उष्य एमस्वापनौ ठु नना पतिक उमणपे हमि कमी-षमौ 
वि्मकते रहै िवे ्जी स्क वि्वाठप्िगदा्से। प्क 
पामि दयन उष पामध्िठके शरीदियात्य पर पापारिति है पौरभिपेबे 
भया प्यष्नाद' कनो बदवदविगमदै (हिन्व स्यि शो श्रमायी 
स्दश्यनाः प्रदम कर्यै के निर पौर प्रयै पिदिट दिगा पोर पाररयगरर्पोङे 
पथि श म्पा दमम प्राग श्र्ष (लिये चायम श्येश्ोप 


११६ पमरीकी दरपन का इति 


खार्यनिक प्रनुमष प्राजस्यङ है । बे घोरतान्विक ्षमाववाद के भुस्व प्रमरीकरी 
प्याक्याता पोर स॑र बग गै है । 

ड्द हमारे इविहाख हो प्ट 8, ्यबहारषादी श्एनिर्णो के राजमीठिष 
मो से पथिक महत्यपूर्ण रायधीतिक दिष्ठन नो थे प्यगहार्वादी पाष्तहैणो 
स्पाबहवरिक राजपीठ मे भ्यूनाषिक स्मत-पूष्ं हो निक्षित हो णमो £ पदं 
चेष क्कि पिष्धेते दिनोंके प्रमरीष्टी सामासिश प्रयुमब के एक बेन बिभारदर्ेन 
का निमि हौ समा है । यह जिभार-दरन पभी एक्‌ भुनिमिठ स्यषस्वा में पध्वि 
वोनहीं हुमा फिरमी ष्ठे एक निष्ट प्रमरीषठी छामाजिक पिटान्तकेष्प 
मै पाना जा कताह। हमारे द्टेस्यो केतिएयु पु्माग्पपूसंहै निस 
िवान्वं श्रो एक म~मह छौ पपेसा एषषामाजिष पिकेक्ष्परमे भ्पादा 
प्रासामी घरे पहृभाना जा शष्ता है । ङिन्न इम मोटे कोर पर प्रपोगारमकक्मर्मे 
इतह्मी मस्य विद्रेपवाधो रां भित्र कर प्ते ६ पह वाद र्दवे {एमि दइगफे 
जिनां पूर्वं मूषनाकरेठा महो दन्तु स्मिति घे षरा प्री मी भवानी मिघतै पर 
ही परिव॑चिठहोषाने की सम्मावणा है) स्वपरगम इस निवार-दपम षप 
गकारारगक् प्रमुद गिरोपठा है कि दमने कोषं इतिहाव-द्॑ निरूपित षी कवा 
पौर यह प्रपा पसे ध्यगहारणारी प्वमाब क पुञ्वर प्रमाणा है ! प्रमरीकपै 
इतिहास शी प्रामिक प्याङ्वा मी जितै मक्डषारियों श्री प्रणया ये 
इतिहापरो संश्रु प्रगति शरौ बी भ्नोर यह एम्मादनामी ङि उप्ते ण्मरीषी 
राजनीदिं को परम्परागतं विहासौ शै परपेखा पथिऱ वशर्मपुं परपरिपय प्राप्व 
केषा सा प्रतीठ हाता ट कि बोपढं पौर प्राते पर्प मिर्भोडढारा (नर्दबारी 
प) प्रोहोभाी ६) मोर इतिद्भख फो यह म्बस्या भी सामाम्य द्विष श्य 
एक शारपनिक कपरेखा होने के वयाप शतिषहापङारयो श एर प्राबिपिक़ प्रोजार 
हौष्टौहै। होेतबारी पस्प्राहके हाफ षाद ने तो माभयुवादी शविहाष 
दरपन ते परौरम किषी प्रस्य एतिष्यय-व्यग ते ही प्रमदीढी एामाजिक्‌ दरपन पर 
कोर गम्भीर परमाव डला ह । पमदीषो कालनिष-घमायवावी प्रौर पमदीष्ी बम 
शुके खां दानिक कमी-कमौ जन-मानव पर छ जति है दन्तु एम मिपा कए, 
बे तिङापि परिपरेदय प्रन करै मै उतने प्रमाभयानी महीं ै-ण्तिते एक 
पोर मानय प्रहि" सम्दन्पौ प्रमामी चिन्ता ये भोर दूषरी भोर प्रतिभ 
प्रास्या प्रपया योम प! दिपै भिनोप्रविर्मे पमसेौ पास्वा इतिष्ष 
पर मही भरन्‌ पपे मालवी पोर प्राकृतिक परसाषनों पर हमारे विष्नराघठ पर 
प्रापारिद ़ी ६ । एयसे हम राजनीविङ़ स्यबहारादके दूरे घए पर्प 
अति हे-मृस्यतः यहद क़ा,पा देशा कहं कि परयो का बहुतत्वायी, 
पभरभयरवारो दिदधनश्वदहै। इं भै सामास्य दर्पनङे किर गो दुघक्हयापा, 


५५ 


११०५ प्रमरीषमै दन क्र इपिह्यष 


भर्गसारषण के स्प मं रगे प्रोर यू शीस" (१९२६ श्ने मणी के बाद, राष्ट्रपति 
ष्डमेस्ट छ शास मे १६२२ घे शरमाया यमा घमा पोर धायि शुषार 
का शा॑कम प्रनु* ) के परन्प्रविपारक ए दर्यन को बािणटने मये जहां 
धे भ्पाकहारिके पाग शी ग्रमिन्परीा से पगरा पदा । 
मौलिक भ्यवहारबादं जद षन बहुत भु प्यगस्यित घामाभिक फपारमो दे 
विषे कर्मो की रार पद्म, छो पक महीं पपि माड कायं उषके धाममे 
भाया । कलात्मक ह्टया-कष्ाप का भिग्तेपस करने प्रोर यह शितानि फ प्रमार्णे 
मभि शिते कताय मौर परिदधति भ्नुमम" फ पयिस बृस्यनामय पागन्द 
फिर भकार नितयरति के जीबन की जिन्दा घे जुरे हह नाः दुं मोर 
देर प° भार्नेख मे पायुममिक पौर व्पबहारादे बिरमेपस का धन्तिम प्रमो 
किया । बारे ने बताया छ कलार, जिसके धिये कशा एक कोस पा पृजष 
की प्रविभि ह मौर मागक़ जो दरो शमी पखा-डरिमो श प्रानन्द देषा £, दनो 
केही सिप रि प्रकार बिष्नेपयारमक बुद्धि पुाषन प्रौर सम्पपणीयता 
भाष्यत है । प्रतः घोन्दपरिमक सनुभम एठनी ही बोयिष़ भौर धामाजिक &, 
जितना बेडानिक मा मष्ठीती पुमन्‌ । ने द पिढान्व फा प्रषिर्तम उपयोग 
सा, कोरि पये ऊरुं यह दिलाने छा उम धवसर मिल भया कि घा्यो छ्य 
खपगरोम पौर परम्प का प्रसास शि प्रकार धम्ब्ठ है) 
¢ जब कसात्म़ बस्दुएं उद्गम श स्पिवियौ पौर प्रनुमब षी त्वपि दोनों 
प्रसमषरदौजातीदहै तोरनके भारोप्रोर एद वीषरारङ़ीकिरवी भीष 
जिससे ठमष्ी पहं मान्य पर्णम्ा लगमम पाड हो जतीहै भो पोम्दयं 
शास्म फ सिटान्त का मिषपहै । कला को एषु पछगधेष मेडन पिवाजावा 
है, बद मन्य इर म्र कै मानदौ परमास् भुम पौर एपलम्नि शरी शापपियौ 
प्रर भर्स्यो छे उषष्ना घम्बन्व दट जादा 8! मव भो ग्यछठि वमिव प्माभोष 
दर्पति पर पिमे बैय्ता है, उसकी एक रापमिक भिम्मेशरौ हो बातो; पह 
अिम्मेवादे है, पनुमब कै परित पोर बनीगरूव सपो जो कला-उशिमां है पोर 
श्वा्रिषठल्य ये पनुमद मानी जभ बाली नित्पपठिष्ौ बटनामो श्यौ भौर 
श्ीङ्धभो के गोज निरन्तरपा कौ पुनः स्यापि करना । * 
“इम रप्योनी कमापरो मौर सिव कलो के घम्दल्पके रेमे एते 
तिष्ट पर पूते, जो प्रवयाभ्रशदो यौर्द्यराजिगी के भनिप्राय केटी 
जिपरीत ६, पर्वन्‌ घसिव शला काशेठन ह्यद किया मपािर्माठ प्रयै प्राप 
मे, पिप्प उपमोगौ खं बाषा होवा है 1 पड यिका तिवै भउामो मयी 


१४५ भरमसैषी दर्छन का शिष्टा 


"म्प्य के म्यबसाय के प्रदिशो सं्छिषा प्रविष्म माना जवा 
६ उदार सिखा माता भाता है, जबकि कारीमर, पंगीदञ्ज बील डाक्टर, 
किस म्यापापै या श्य कन्पनी के प्रबन्बक ढे प्रपाण को पूरं प्रामिषिक 
पौर प्याषखापिक माना भावा है । पलस्वस्म इम धपे चारो भोर “पूंसहत 
सोमो प्रौग "मतोः श निमाय सिदान्च भौर प्यवह्मर का प्रहगाव देते 
है। -हमारे छिष्रा-बकत्‌ के भेता षि्ा ङ घस्य प्रौर घाष्यकेस्ममें कति 
श्प व्यक्तित्व के बिका कमी बाठंकरठे है, अगङििस्मू्शोके प्रघ यरे 
बालो का बहुत धड़ा बहुमत श्ये कवल संकरं स्म मे ष्पाषहाणिकि प्रीदार 
मानता है, जिषरकमी मदद से बह एक पीभित दिन्दगो वितामे मरके रोरीक्मा 
शके । ममर्‌ इम प्रपमै पैषणिकः शस्य प्रौर साप्य को एवन प्रसमाभपूर्णं मध 
मरेले, षे लोर्गो को पाकपिव करत बाली छ्िपापरो को मौ चेलणिक प्र््याप्रो 
मे सम्मिलिष कर जिनष़्ी मुख्य रचि करे पौर बनने मे होती है, णो प्रपते 
वस्यो पर स्कृ का प्रभाग पथिषु जीवतत प्रणि दीषं प्रौर धमि शंष्कर 
मुछ ्ौ बायेपा । 

"न्िि कायो क पषति के पथ्यपन प्रारम्भिक भिज्ञाण कलापरौर 
इपिद्ठासच का धमाबेष मातर प्रतीकाटमक पौर प्रौप्ारिकि जातको पौणास्त्रान 
पर एना) स्यू के नैक बाताबरस मे दत्र प्रौ पथ्यापक के पम्बन्वमे 
भनुसिन सम्बग्ी परिवबर्ठंम धपिक षद्धिपि प्रभिष्य॑बनारमकः भौर प्रामः 
निष्क तत्थ का मागे ये षव मात संबोग सही ¶ नरन्‌ प्रमि स्पापष 
खामाजिक निकास क्षी प्राबप्यश्ताप्‌ है । 

मगर हम एक बार अोवत मु भिर्वाकर, ठो सभी करय प्रीएरपमोप 
तषो साय इतिहा प्रौर विद्यत कपना भौर एसे हारा ( बीवमभी) 
घमृष्धि मौर स्यषप्याके भिकाषकेि एपश्रण पोर भंस्कार कौ प्रामप्रियाबम 
आर्येये । जह इम पाज केवल बाह्य कमं भोर गाद्य उति देश्ये है बहा सारे 
हृष्य परिणामो के पचै मागधिक द्प्टिकयेसु शा पूगस्समंमन है पपिर स्पापक 
प्रर सहानमूविपूर्णं ष्टि है, अवृती हए पलि ष प्नुमबे है शौर पष्दष्टि दषा 
धमता दोनो ष्ेही विष्व तथा मनुप्यके छवो ठे एकस्म मानमै शरौ चतर 
योगब है । श्ररर्खस्छति केवत उपरी पालिए बही पोत्वपर सोमैम्म 
पानी चाना महौ ६, ठो बह दस्पता श्रो प्यापकठा स्ी्ेपन भोर घष्यनुमूति 
शे प्रभिगृदधिदै जवटकहि बहु बीगन गिसपे प्मक्ि गोवा, श्रकृतिभीर 
खमाज के ्ौवन ते भनृपिरिति के षौगन ये प्रयुपेरिदिधष्ठो जायै।' 

१ नोन हः बी रटत देष्ड घोत्रायटौ" ( चिद्धायो, १९०० ), पृष्ठ ४१- 
४.४, ०८१-७३ | 


मौनिक भनुमषषाए अ 


बुं शय रिचार्म्यव्स्वा फ सोश्व" भोर शिता सपपव पर्प ह 
पौर येनो म्यो ष्च उरेय डस्य कना हि मसि प्रनुपषवारमे 
चििन्ठो पर कलनेक्ा भ्या पपंहै। 

"वायस बह दिश दहै कि मायौ पनुमदर्गे दैत लायो प्यैर पदविर्यो 
श्येषामरेते मे रोष्यता दै जिन पाण प्नोर पपि प्तुमष भ्यषस्विध पमुख मे 
तिष्व हारे, भस्यहृर प्रकारश्च कतिक सौर सामाजिक दिष्वाष षम 
हिर पर पाभारितहै कि यनलयद्र विपी ब्रकार का बाह नियशख-- 
पुम षै प्रशमा के बाहर शै दसि "उत्ता भा निपनण-- किीग्द्धिदी 

विषु पर परावप्यष होठा दहै) शोषटर यदु निष्डषठहे कि पदमबके प्रध्या 
सो विपे उपलन्व पर्णि हे भप महन्वपूणं हषो है 1 प्लस्वष्प 
उततम्प भिरेप बणाप भम्टवः वदी तक मूष्यमाम्‌ हेते ह, बद तर पका 
शपपोप बम ष्टो प्रण्धिपा को समू पौर म्पपस्पिठ बमात दे लिये हेता। 
प्तुपषषीप्रण्पि प चैषखठिकहेनि षौ मषा पत साक्हग्वद स्पार 
पमुमब छपा पित्ता मे प्राप्वा एही है। करि साप्य परौरमूल्य णोत 
ब्रषते शरे हुए हवे हे सशादट पौर भरदा दन चतेटै\ गलामषय 
पपोष मार्वं शो उन्ुष्ठ करम प्रर नये तमा बेहतर पन्यो की पोर निष्प 
क्रमेय, करने केवमापरषावने श्वेपष्यश्येै। 

श्पपष्कीं पूते षष प्रडपमे धूम काधर्पश्याई तोपिया णवष 
है क्कि पमुमभें षाताषए्णं दयी स्डिधिपो के ताप भिदेप्ल मागदी बादर 
छाव प्पद्कि मनरप्यो की प्रम्पोरम.न्पा है, मो बतुरपोकशो पथास्पितिषा अत 

बदु कर प्राषष्वद्ता पौर पराद्नका षो एति कती ई) एम्येप्य पौर षहभावं 
केमिर्‌ यदारिपितिकाङ्गात हौः ददमातर हैन पावा है । परम्प से दथ्येषरः 
काप्पे हे हिन म्दयो केमते प्रति सनि पष्य स्पदियो भो पषरीनता। 
पाद-ष्दा प्रौर्‌ प्राध्र॑प-जिनमे सप्प परौर्‌ कर्य के निरपनका भिर 
होला दै-- वर्तमान पसव के धये यत्रो है पौर इष कराएण अन प्रर भिकान 


कृषभौपपि जाठोदै) दे निण्र प्रदो पर भनुरसप्य मषिप्य श्म प्‌ 
जन्म करय 1.१ 


१ भिदः "दौ स्तिषशए पठ दौ राजन्‌ दैवः ( प्युषोषट, १६४१ ॥) 
अं "दिपक रेमोरेली-दौ ट्छ विद्ये चर पष्टः ३३७ १ 


नयाँ भ्रष्याय 


नये प्रतिवाद अर यथा्थ॑वाद का उद्य 


विलियम केम्स के वोददांन 


भेम्प की. पुस्वक प्िम्विपिस् परो घादकोपोगी केदो बदे-बदे खोक 
पाठक का ध्याने र्ता के घंयठन की प्रसम्बड़ता की पोर जाता है! निष्षपी 
छन दिनो (१८१०) मनोगिज्ञान एक दिङु-गिज्ान ही बा पीर तव तष रका 
को परम्मरायषठ कजा गह भा, णि भी प्पार्यो क भनुषम कै प्रति कैक 
उदासीनता स्पष्ट &ै । हर प्रप्वाब प्रपने माप मं एक निन्य के ऋपर्मेहै, 
प्रौर गर्गे षदं भ्ण चेलो करे स्पर्मे प्रापित भी हइृएने। किन 
बुं पाद-रिप्पपि्पो का पाठक रेशचेपा कि समम हर श्रष्याय मेही तेव 
मै श्न समस्यापु गदं हैप्रोर काह क्रि वैजानिङ् रदेस्योके जिये एका 
हब पनाजस्यक धा प्रषम्मष है । रन मे घन परमस्यां शी परिकर्पगाप्मक 
पा ्त्वमीमांठ्मक प्राखंयिक््ता के कारणा, बे प्रन्िम प्रभ्पायर्मे ध्वक्ी भरणा 
कमे के इरे धिष स्वगित कर हेठेहै। प्रपने-भापमे पृश पिधेष 
प्रारषयं कमे जवं मद्ये क्पोडि मिक्टोरिपा-कातीन ह्य-भटनानादी घामान्पत 
दा करै घे, उसो प्रर जै इष षटना-ष्टिपा-वेआनिक रु वत्वमीमांपारमष 
भ्रष्ीं को समन्यवः इष्टाः कर दते है। भहूतेरे शनि पवक इष्यति 
साकमेव पये भौर उन्मि बम्प यै एजनाके प्रमि को मात धनुम्नराद 
कट क्रप्रोद पा भोर भम्पङे दन क्म स्परेशा प्रज्तिम पर्याप पृश्रोजनी 
चाही । स्थ यष एष गम्पार मूतदहै, योहि भेम दृष्ठ वैष्ड दी एक 
चां एक्पीरिप्म् ( प्रदस्य सत्प प्रोर पनुमव का प्रमा ) ीप॑क पन्ठिमि 
भम्यायर्म, केम्द हारा उदे सवे परिकभमकस्मक पलो मेतेषेग्य परकै 
चतर ६। एमे जन्होते "भनो-उत्तति" ङौ खमस्या कह 1 है, यह प्रप्त कि मानविष 
सल्नष्ामूख बीजातीत है वा प्रादुमबिहध प्रन श्छ पर वै प्रयता मतं तताल 


नेमै पतिगाद प्रोर पपार्थगाद का उदय |, 


प्रकट कए देते, जिसका घां मह --परात्णडादी धष्य के प्रपपर 
स्ह प्रौर प्रहतिादी इरण प्रप्मपर षह) प्कतिकििर्यो से 
उमा दर्यं शाजिमबारिरमो पेणा; बैगिक्‌ परनोको मतरे निदे हकर 
सयम्धर ररा पप्ौढृ रीति दवे जाहि के भरगुमम भा श्ारामेमेभो बेम्समेभो 
पासोकनात्‌ शी, बहु पम्यायमी परमे एषह) भम् शर्ण शेएर 
अपिमषारी व्याप्या केष ई, पर्षत्‌, ममुप्य शा पदा्मीय नाम्रिकिपरोर 
नैदिक पठन ठन बहुतर सम्म श्वत पूर्तं बरिवक्तगो मेषे एकह गोषटता 
कप मे हयामबण हए प्नोर्‌ वह भ्रपना उपयोविहा कक्ारणा भषाष्छा। पमे 
ाभिनषादी करल स्पष्टवे प्रहठिवादी भ्यास्यापं नही, भरन्‌ विद्ापषापी 
पभिभारणाएं है! धय प्रषार, वह शारी भथा दका एष प्रौर्‌ गदर टै 
कि एकङ्पता ये धोर भनुमद मे हाहं के नियम की भ्पूताषिक्‌ पान्विक दिप 
त ेम्धर कै विस्वाह को धभरेखा अम्य हृति $ परिचनो की श्वत पपत 
पे डाभितषाौ विरत कै पत मे पै) परते मतोनिजान में बस्य बत एमतवारी 
परमो कं प्रपोय कने क प्रम्यस्ठ बे, उनके चये प्रङटि ये स्वव रपस उम 
एष पपे्वया गेलानि स्थाएता प्रतीव होती बो धूमम मे विषार के. 
काषिरिमक स्वाम सम्यन्पी प्रण परते सप्त के षिपयको किः म वडषमदै 
प्रे घरे दनक साराय प्ररदुध क्रमे शक्चेष्टा केह) रमे वेषा 
पराषारमूत एतो ङे दम्यत भरिजिप्ठि क्से रौ ष्टा षे ह~ 

१ सषाम सा तप्य जिसका मस्तिस्वं शम्यमय प्रादयः कष्पमेट 

२ धुम प्रप्ुल, विमा ( विकार क ) शबनात्यष काप॑के चण्ड 
धनुभ्यो को धराञाता पा हमारे परवुमक शी भगु प्यदरषा, 

३ किषार, जा धरा दिवि (२) फो विभारके प्रागु-प्रानुमभिषे 
पदमे बैटावा दै, 

४ पका भवुप्य के निर्वि प्रपद्‌ उरेप्य, प्रपिमाग्यत्ताण । 

कम्तिभस्स पो हापकनोगी" मे (८) (१) मौर (४) पप्य 
शैम्बपो की सिहता है) एम पू्यहमे मम्तरमे (१) पोर (८) गे ह्यन्पकी 
भर्णानहषीषहै, दा उने जन ठामान्य रो मम्योषिदितेणो प्रीर भप 
षव ६, धोर भिम निजी स्प छ उनको पापारद् अनरिक द्रप! (*) 

 दिखिपम बेग) न्वित प्रो राषरीतांडी ( म्दूणक, १८०. } 
श २, इष्ठ ६१] 

गेव, प्प २, पृष्ट ६६४ प्रौ शदो चिनु दिलोर' (म्र 
१९०८ } घं वृषवु्ित लिकण्प सम्दग्धो बाह स्ष्पी १ 


9: 


१४४ भमरीकी दन श्च इतिप 


मभाभ॑याठेम्य केसिदन्त को नस्त ्वारोधोजी' तं भरम्‌ पपे षरे 
शैल मेभम्पने एतताह्यष्टक्रटाभ् प्याह कि त्विव कोमातकर 
चलते है पा बे एक परस-मिस्वाघपूयं पामाम्य-ुदधि यवार्षवायो है, पाकि 
साबवाश प्रात शोभैव्टाही नही रहै ।) उनषो दाक्षनिक पमप्यार्मो का 
विपम मी केवत (र), (६) भोर (४) के घाप (१) फ ठष्य पम्बन्पहै। 
कु पह तम्प-बिष्लेपखु शमलं के दो मिल्कुस मिश्र विवर्णो रं बेट वाटा 
धै, हर ए$भ्रषनेमे पूं जो इपर निर्म॑रटैडिकै पपमा मिषेण (र) तै 
भारम्म करवै है वा (*) घे! (र) प्ररपाषारिठिदषठमको एकाशनं श्च 
परनवर्वंघनमादी खिदधान्त' पा “बैठना श्वा बटना-ष्ठिपा-बिज्ञात कठा णां एषठ है । 
धाषकोशांजी में एषका पारम्म घाठर्ये प्रर प्र्व्वे पथ्याय मं रीपिमिषात 
शम्ब्मौ परम्म चवा फ बाद मर्ये पथ्यागसे होता है। गिषार क्षी बारा 
(शे स्टरीम प्रर बोट) शीर्षक पह पम्बाप ए्प्णमेहौ पोत सम प्रोमिशम्प 
भा ष्रंसेनिन्ब घराद्कोलोगी' (प्र्तददनारमक मनोदिङान के कुल कमि) 
लाम दे प्रश्पप्िवि ष्ठो शरा भा। हं निबल्ब मे प्रतिपादित िपय किनि परिप्बिवियो 
भम रके दिमाप्रमें प्राया इसषी जनां उष्हेनि स्वयं मापर्मेषौदै। 
का षयं पहले, जवटी एच प्रोत $ विचार प्रत्यधि प्रममषती 
धै उनके द्वारा घंमेजी शषिदनागाद' शै पादोचना पमे कायौ पर्त करती 
भो । उमक़ा एष तिप्य भिषठेयत- ममे हमेशा हता } सवभ (व्ये 
का सूत सम्मषतः पुभेदतार्मक़ डो घ्या ६ । शकि सम्बन्ध" भया है धाव 
षिणां पर उपरते प्राने षापे पुडङ्पमे्रुदिके पौर एष पश्र प्रवि 
केकापोके? पूऱेप्रण्ी तएडयपार हैक एष रिति पह मषक ममे 
प्रजनक कितनी राहत मिषौपी किकम पे कम दिक्-यम्बन्व उत प्र्योके 
शडातीप ९ जिनमे मोत बे मध्यस्मता करते है । पण्ड स्वायै प्रोर वेम्बन्प 
शोषर्मे धाते बातेप्स्य्वानये। \ 
स्वान के प्रतपञ्-जञान सम्दन्वी प्रष्पायर्मे पौरपृस्वकके ॥एषाेप्र॑पमं 
जेम् ष ध्मात स्पष्टठः उष धमस्पा पष्टै णो प्रररेजी मागार शमे करेगौप 
समस्या §, परात्‌, सम्बरन्णो को प्रतुनि करये क वे कते सम्बम्पिवन्निपा ना 
सक्ता? चेम्ठ कय सौपासारर गाङ सप्यज्ब पौर पष्ट दोग दही पस्तु 
हति 8 । रन्गे शपेखठा कमै भावना, पर चोर्‌ रि । इव पार पर बनते 


१ रेल्‌, श्वी सनि पोढ दूषः ( स्पुपोक, १६०२ ), पष्ठ ५० एवम, 
१६९॥ 
९, बही, पष्ट १२२ एम । 


भे प्रहलिवाद मोर बबाभबाद क्वा उदय 1, 


तां प्याय “दो कन्दे पोऽ वेल" { धारम जेदसा } निरि कि 
जिम उन्मि यह नि्ार दिसत स्यि ड़ श्ुदरता हा मिका दी जिषारक 
है पठे बाद पुरं ह उद्ीठं पष्याय दकष को पाति उनके च्वपा्यं के 
प्रष्पस-्ाम' के पिदाम्ठरेष्ेदीङैः एषम प्रण्ठिमि पक्र भप्याय 
मेदे मिरषापके पावनाद्मष पणयो उठे है-पे रगे £ कि करकिस्माप 
एक षष्टे होवाहै। बघ्ल॑भे सष्ट स्प्येषन बा पनुसर्ण भणे ष! 
पन्तमे बे बर्बाकापारराण् ष्य स्पमे प्रस्तु ध्यय नि वित्वस् परोरध्यान 
एषे वष्य दै; मसि थमे हम जिस्य पोर प्यति देष दैः पहं पषा हो 
।१ एए चर्बाश्षे पडृबे परर वह्‌ स्षष्टयषहो बाताहै ङि पहा गेम्ह निरन्तर एक 
जनोगेानिक है पोर बे पयार्यश भरदा उपर दिय विस्वेप्णत्‌ (२) ४ धर्ष 
मेमहौ, बर्‌ भैना ववाबुके प्म पा प्रत्यत के पभर्मेकररेटै) 

दस्र वक्पर "धादनामी' केप मधष्यमाय मं भैरना शन एक परस्स 
सम्बद रिदरएा द, जिस्म पाण्य प्रस्तुत शवे शपु-ग्पबस्वा मा बे, केने, णोर 
अरे प्रम" हे हेता, मोर दिश्य परिएति मिबाघ के बनोदिनरातरपहेवौ 
वै भिदे शाद यं रेने शभ्यदष्ारयाद का विल हुमा \ पल कय पह एए बिद 
प्षटुयके स्परे भत सम्बन्धो भ्राम्य ठत्ातिक षष्टि प्र प्पान केन 
करवा ६ प्रोर षम पूतत्रः एषा दित्वुठ निस्पख है भित पायल “प्रत्युत कतो 
षौरिष्यत्रा श्य बताह) वे परिणय लात प्रौर "सम्बष्य सत्‌" था वनपम्‌ 
शाम्‌ कै प्रत्तर्‌ के प््दर्ं े प्ती स्विति स्पष्टः निष्प कठे ह ।* 

षव स्त क उनके ममक पिङधाम्य को परिषद श्ञानङके "दाप ब हात, 
श्वा ६, एषह विदरणं शृ बा एडना है । षठ षष्टिर धि मत मिषारक परो 
पूरे हुए भिषार' श पएञ्स्पठाहै । पौरस्ारा भिषार्य दमी ने किमी 
श्रप्मरकाषस्न्प्ितिया भाषा टै! दूमरे प्न, चेतनाढेरपरे शिद्रामके 
परिषि भाडनार्पो के स्वस्यके मिष्मेदणा मं हादी टै कन षारणतैणा 
दटि्णामो के र्िषद्ये ग) जष्दकमा पह पिरम मादा पोदन का 
एक पटना -दिष्यन है, भिरं जिरदाठ रमै चोर दाने $ इथ्टिर्यो पष 
ओ र्पि चट) 

च पेष्छभौ शापंागीः मे एरु मोर दर्यषभौ ६, (ते इव उन 
मद्र ास्धरिषार्डतष्ते है एम्येणठ सादे बो, पौरान्‌ 
मे ध्म्दीतर ईन पप्पा्यो ठं उदे ठ पागधिष रेद्‌ जीवनेसानिरु दिष्ण्ल 


१ शविन्तिरिप् परो तुवरो, नण्टय्‌ प्रु ११९ एम । 
ग शो, तण्ड १, पह १८५२२११ द्यः 


1 \ १ श्रमरीष्ी बसन का एतिद 


कौ सम्मद जिभेजना ६ निरु्धो परिखति संकस्म शव प्रतिवाद भिनेषना से होवी 
४। बे शठे & कि “मनोमिज्ञात एक्‌ पाहतिकू मिज्ञाम है 1 ^ क्ष्या की प्राणि 
का प्रयाप्ठ मानसिक कायो की उनको जीब-वैहानि परिमापा & 1२ पिरि 
मस्विपक्‌ के कायं के रीर-प्दिास्मक बिश्लेषण के बाद श्रादत' सम्यग््ी नका 
भरसिद प्रभ्याव प्राता है। बे शृहते है फ़ मष प्रादे “वैव पामपियों के लबीप्रेपन 
ककारा हेदो ¢> तब व धाश्व षो प्रयल्न ते बोडे है भौर श्रनी विष्ट 
उछि निमित कसते है, बो उनके मोतिघ्ास् कम एक प्रापारमव स्पापना &-- 
प्रयत्न षी मग-पक्ति छो जीक्ति रल । ‹ ष्पे जे प्पातके जीब-तरितान पर 
प्रौरघर््ना के पूरे पिवान्व पर प्रा जतै है जिसकी परिणति प्रषषारणा प्रर 
कना घम्बम्धी दो प्रध्यायो में होती है 1 एय धिदान्त मे महत्वप्रणं मत पहं ¶-- 
सार-तस्व का एकमात्र पथं उरेष्पवापी है । ^ मह वरन पषु-बुदि पा बायुयं 
के त्किं मं बिका षरा सिद्धान्त है । पमे कहा पयाह कि मनका 
स्पाबहारिक स्य में कायं करणा सामान्बीकरण को पाष्तो पर प्रौर कायंकेलिये 
प्रासंगिक सार्ठत्वोका शयत करमे शौ पोप्य्ापर गिर है । वह मत 
उपयु (१) कै प्रषेमे एक प्राहतिक ठष्यभा "वपा ह प्रौर रसकेन 
(४, हारा तियनक एक प्रकार का जीवत पाकाय कन्तु (४) परम्‌ सकस 
भीद्ठी जीव-बेयानिक तस्यो के धषीसेपन क वर््योकेशेषमेहै। नेन्वशी 
सा्मलागी 9 पय पण म स्पष्टतः पयु-बुदधि प्रौर मापषी तषु फ प्म्मन्य 
मं एक विषादी ष्टि है । 

जेम्स वै 'सापए्कापांजी % प्रन्तिम पथ्याय पेममकेष्ने दा निष्कुल मिश्च 
स्िरार््वो को पम्बदध कै का प्रयास किमा है--चेठना का पटना-प्व्पा-विम्नाते 
(भिसी परिचि मालिक पो कौ प्रागनुमम प्रहि के समर्णन पे होता 
६) भरौ बुद्धि का भोग-जिद्वान (जिषक्ठी पर्णिति प्राहषिष प्मतस्प्वठ मे 
उनके बि्वास म होती है) । 

कई जपो तक जेम्त पोमा दसं पर बहुत स्वटा्च श्पम्‌ कवं कपे 
श, यद्यपि पेखा परतौव हाता है कि फमो-कमी उम्हं पनुमव होवा पाकिवेषे 
गरे ष्ट्व ये) जिन दो एष्टिषरोणों रै भेम्दडे हुए धे उनकं प्रापार्टूत 


१ हौः तण्ड २, एष्ट २८६ 
२ बही, लष्ड १, पृष्ट १२१ 
# बडी, पण्ड १ प्स्ठ ००५) 
४ बहौ, पण्ड १ श्ट १२६ 
५. अशी, पण्ड २ प्रष्ठ १३५1 


नख प्रहता प्रर पपरापवादका दय्‌ + 


भ्वर ङे स्थर यै जेम्य को चेठमा क्य एक दयनीय उबद्ष्य जनके दाष 
भाकभारमक प्राधार्‌ पर्‌ "स्वणामित यश्च विडाम्त ‰ी पोषा में मिनतादै) 
मे ममक एक पूरयैव याचि ब्यास्या पर पम्भीराि मिणारभरण्डपे जव 
(मपे मषुमास के बौव) ष्ट पह स्यात्न प्राम कि कों स्वथालिह प्रेमिका 
फाश्चकुष्ष्टि से पर्थयां निरोप हतै पर मी पारस्परिक संवेदना ोषश 
मारिषा के समाग मे पूण याशन्वोपयनर जेमिश्न मही हणो) रष छमय 
पौर उपति धाद भारभार वन्हने कहा करस्य मा मन का एष पृणते 
प्रतिदा दछन कमी प्री सनुप्यो के सिए संलोधजनके नहीं होवा मैसन 
को षह कहे जितमाजिष्वद्गीप स्मे 0 

धन्व रमे, प्रपते श्न पे मिहि कराय क पम्बन्प पे उमको चिन्तातै पह 
निर्खप क्रमे शमे प्रषम्पंठाभा उपतिगाक्रिषिबयोका संपोगनह्मंपकताहै 
पाशो । स्गकं शामन दिविमायो किञेमयातो मानिक परु मे निरा 
कहे भा व्ेननोगाद् म भवरििदोर्लोको हवे प्रपते प्मूष्ल बही पतिबे। 
यङ्क असे वे माह विषया हिलाकर एलको रा कती दि उनका माबषाने 
"एकक्पता का वु ए त्पाम्य बुद्धिषादः भा) 

श्तु भमत बहु स्केष्ठी( मानकर द्रि चैतना स्यम कों प्रठित्विने 
होकर एष पप्तन है, उष्हेनि गन ङे एक षम्भरपारमक चिदाम्त श्वा विषा 
सपि, जिषे दहेति शद पनुमद का शरन कहा भद्ठपि परव्वां मबा्पगादिरणा 
भै उप्प्म प्पास्वा 'बसपुपरक शपिसदादकेक्परये ह । दिन्ु एष तयै पथार्थवाद 
पर भजर उपने ये पह भिखद़ी भार यकन प्रन्तिमि बरपोर्पे वेमा 
भुमभवा इमे एटज्िकाएके विबरराको बोगर्मेहीपोढ कर, देदमाष्ेणा 
हिन्त $ एङ्‌ एप्प व उनः मनोभि के विरोदी पिषारयो शो सि प्रषार 
ए ध्यदरिमवं तषार म विकतित स्यि । 


साम्तायमा का प्पथरिपत्त हप्तवाद 


कृष भमी यपार्चदारो प्रशमी घाण्ापना कश्पयो सा प्रपोम घान 
बापो भीष्ण शृरठहे एमजिपएनठेटिजे एः वपाक) दाननिष्ये 
दत्‌ एलतिष्‌ हि उन श्प्यासरू पातकरिष्ठा बवापंवाने तपदेनो दहि 
प्रमि उष्ठम हामी है) सनरोमे पपाकेवादो धारो को प्राप्य शो प्यायष्णा 
भए रार शनो हौ प्रदान्‌ द्द ¦ उष्टक परी पदापवाद क धियेरुष्र 


क्र पमरीकमे दछन का इषस 


पाहृक्क प्राभार' प्रौर एक शाद परिपृठि, दोनो का निस्य किया । फिर 
भी सा्तायता स्वयं शमी प्रा दिल प भ्यादा जा्वादी नी ष्ठे पौर 
प्रमरीक चो उभे मी ष्ये । परमरी्े यजा्पेबादईी मत $ षर्वाभिक सामाम्प 
पौर पराबारण़ठ प्र्॑षोमेष्ठे एक मरि्लान के प्रि निष्टा) मांवा 
महत्वाङक्ञा प्रब भी एके टेसी क्ममीर्माखा या कमद्चै कम घस्वित्वका 
सिद्ान्द निपिव करते को है, बो पूणंठः मैजानिक हो ! सान्ठापना रे यह प्रागेम 
अहुत केम धा प्नोर पवार्थवाद के निवापो पे भुख्यतः सनके मिष चाभयं भ्रापस्टस 
सदरम जनह कीज लाये । एष निगाद से घाम्तायता की रचना स्केष्टिकिसम हेम 
दैनिमघ छव" ( घंयबार प्रर पषु मालला--१ २१६) का जल्प हा मिसमे 
निकषय हौ उनका एठमाव मपने पर्ोठम श्प ते ग्य हुमा ६ । ( धान्तायना 
कै प्रहृतिवाग क भिबरण टे प्रध्याय पे हवा प्रहतिगाद' क़ परन्वत 
देखिए  ) बाव मे भम उनि प्रपते “पस्तित्व के "वार" तेभो ीश्चोबष्ौ तो 
पारमा के जीबन पर्वणा रोर दिवा छि ठतके प्रकिक्रंघ बैद्वानिक शष्ट 
बाणे मौर मवार्थवावी मित्र बहे प्रक हुए । उमम पाच णा किः घान्तामनां 
ष्ट्री से सम्मबत पित रोम (रोम कोति जभ्‌) ध प्रमागित हो पपेषै। 
खण्डने स्वयं कहा कि एमे स्टापतदो मित्र सिमोन भिन्ते पै एर प्रमा करो 
गम्भीरता शि छेना धिद्धाया षा । इसका मतलब पा कि ऊर्मि तकुि क 
पपे प्ण्ठमशाको मिलान शौ पयेका कत्पता को मपिर बम्मीरता है पेमा 
शीय जरिया । जब उन्मि धपली प्रारम्मिक रता ^रीफत इत कामत धैम्" 
(सामाम्बनुद्धि मे वना) को देखा ठो उदके छम्पर्मो पै उम्ट्‌ बकरा ब्म लमा, 
प्रौर पन्ने घोषा षि त्ये पूरी रहण हे निदं किन्तु, एरय षोचकर 
कि टैतिदासिक समठि-चिह फेस्ममे उका कृष पस्य, मे एक तमी बूमिष्म 
िं्धकरदही षत्तुष्ट हयो ष्ये। डन इन कमन चेन्स' पे श्कि्टक्िकिमि एण 
दैनिमखफेय" को धंकमणा केम्प क मनोजिजनो से ्रेवभारौ पपा्बादर ढे एषम 
कयि कहानी है । 

शौन इन कमत हेन्म' मे भा नाप भाोठ सैडन' (दना का बौद) 
क्म सूमिका-पन्व है, जेम्स के निजार प्रमाधी है पदि पृस्वदकीभापा पादेव 
है । पूर्व फे लाम मं सामान्यदधि (कमन-तेम्प) शा प्रयोग एक प्रतो हिस्म 
श्प भरमा है, ्योकि पह पष्ठ पुस्ठक़ क प्रन्दए कहौ नप पाठा । य्हस्तष्टदै 
कि छाम्वायना शय सम्य षा प्रयोय दी प्रादिधिकु पमं मेनके पेम्पश्ने 
माति रश निस्वासपूं यथार्पवोड महतिक जान को वैवता पर बहुन कणे कौ 
परनिरष् प्रौर प्रनुमग क सामास्य दर्यो षो पूरा स्वीहति को म्यक्त कमै 
बे भिपेष्ररहैय। एष पन्यं वेम्स को शसाषकतोगौण को मापि, मलुप्यो 


मेढे प्रहतिदार प्रर पयार्यवाद भन सदम ११६ 


मे दभि के विकास शो प्राङ्तिक पा चीव-गेहानिक दापो श्रा वर्णान दै 
सिवर कुष षस प्रार्‌ है-ठना शी धारा प्रदाह" पोर क्समा भूस 
मरहमत की गोभि पथ्या ये रो प्रष्मरके भूवं उत््रहाते है दि प्रशमः 
ष्म पूतन एतश होवा है यह इस पर मिमेर है छि पनुमड "मानवा क सदर्थं 
प्रास षस्ति होटा है पा 'रिषटला के घाहशयं' दए । मूर्तेन" (कोसपन्ष) 
एक चतुरा एे जका मपा प्रस्पष्ट पष्दहै, भो प्रयुम् के सस्यूषहन" (पिदेमित) 
एम्बन्वी बेम्पष्ी बारणीाकयो स्यचछकरता है समानष्ठा इश ष्यं इर 
प्माारिति गुन, भिषार या हार-वत्व या एम्पादण में भृतेन" हेते है । षदिम्य्ता 
हाप सईषयं पर प्रामारिव भुवे श्र्वु' होवे है !^ दारयत के प्रस्यद-बान" 
क्षरात्‌ भेम्पद्मो मधि उम्टायमाको भमीष्षस्मापमाश्चैप्रोरशे जत्रा 
कि "ताय भिभार व्यावहारिक होवा है।२ 
श्रवा" के एयुसौ विषय करय पूषरपाठ पस्वित्व की प्रम्पष्यः [इसी 
पप्याय क पिपत इष्डर्मे भजित (१) के पप॑र्मेजेम्मङा "वपां ) जिमहम 
मानं छेद चस ङ्त है पौर मानी पनम मे परम्म पम्ययस्षा 
्सप्पाष्वितं' जावा ह्वी वात्लिषताङे बीच पलारते होता! म्प 
मि सम्ताकना इष दोनो छो एक दोहृरो पथ्यवस्वा' कषम एलञेहै) बे 
बटमारपोकेष्ठिपि कते शवग्म प्रवह्‌" बहठे है पौर शमिय-वेदन के प्रबाहको 
ष्का एक उदादष्ण मानते है । बे ए भम्यदस्या भोप्राति सही षृहूयै बण 
पहवि एम काप्रपाम पाष्वादिया की माति प्रति कौ व्यषस्पा रे भिषा 
के लिये कपये ह, जिवस्न उदय पामान्ब बुधि बहाव ९, प्य निमे पीप 
सिनग पौर वाभ्विप्ने कै विषा यही पयं परममर भिननी 1 मृष्य 
पाहतिक पल्य, जिनकावे परारि करत है वृलन्रहदिया' पापषुप्रा के 
व्टनाहौन घावेम है 1» पमामतौर प्र यहेस्पच्ल है ढि ष्टौडन इम काम सेन्तः 
के भैमी पाति इर अपह मावा दष्दादती का धरये देवप परपापस्य 
पया है 1 खाल्ठायमा गौ माण वेम्ड शे प्येता पोगर पविष्ट निष्टं 
किण्दु पणार चैम्दके पथिक निष्ट है \ सयाद" पतो शदटमामङ प भ्र 
द, नेन्न पलपादग्ड) 
द भप बाद, दूमरे सस्कर्ण शौ इूमिभा त पालादगा भे स्वयं दम 
पह्मप्ट्ठा शा दिष्ट कष्ठे स्वीष्यर कपि दै ङि दी लाषछ सो एीयनः 
१ श्रेत" श्दीरष्‌ इष कानमे" देखिए, ( पार, १६०५ ) पष्ठ 
१६५११६१) 
२. बहौ, एष्ट १५६ १८२। 
१ बो) ब्ष्ठ एलन 


१५० पमरीकी लल का इतिष््त 


शिम $ बाद उन्दने प्रति को घथि यम्भीरवाः ये परर मनुष्य के मामो 
काकम गम्भीरता घि देना सीडा। उण्हनि कहा कि इण्टिय-वेदन ये प्रतिक 
उषय बान मँ उनका वात्य प्हृहि षम्बन्बी जिषार्ये पा भोहि प्रति यी 
कसी श्ट चे उविठ षह होती | 

श्केप्टिशदिप द्ड देमिमसर फेज" (१६२१) मे जीम-मजानिक प्रकदिवाव 
प्रर प्नतरनाह्मक़ः पनूमजवाव का यह घारा मिण ांणेम्प णी प्रौर 
भरारम्मिक ऋल में साम्तायना श्रौ बिदैपता है, भुप्ठ हयो बाता ६। यहां प्रस्तुत 
पौर जिष्षस्ये के बो ए$ बहुत टो साप प्घमाब है । चैवमा के परितिस्व के 
शम्बरम मे चेम्प $ परबर्ी सन्दे की स्मयं पपमो म्पास्या करप हृए बे साफ 
भरो है कि किसी धी प्रस्तु बस्तु षा पर्वित्व गं है । माव मन ("नाकः 
शपशत्रापना श्यी छम्राषषठी मृ एक नपा पोर महत्वपूं प्रम) के दो मूलतः भिर 
कये होते है- मस्तु को पन्ठ परा पीर पप्स्युव मँ पष मारा । मात्र परिणय 
मा तात्छालिकृठा, क्न्ती मो परस्वित्व का लात गही है। फिर भी, "सी पपनी 
एप बस्ुप्‌ होती है प्र्णात्‌, ारदत्व । यष खमासता ध्रा घाहं श साय 
खिदाम्त निप्र पर उन्न पौर भेम्ि सार-तत्व के प्रयया दान एम्बग्बी प्रपनी 
उरेष्यबादी इष्टि ले प्राथार्वि क्लिप ना प्रमाप्तहं जाता । उषे स्वानपर 
मए बटगा-कियात्मक प्रतिपादन है कि पी प्राषार-तामप्री कौ उपस्विति मात 
मे भिता ्प्ी बिर्वास के कों पईणामी जा सकमै चापौ भस्तु मिहिवेहोवी 
१ । पु पण्ठरशाके एसे कायं मे एषठ प्रा्यार्मि पुण प्रानष्यक है, 
भयो मरामाप्यत मत॒ धपमी पषु-पास्पा वा मूत प्रगृपति को प्य कपि बिना 
मषी पवना । सार-ठत्वो मे डरेष्यभारी इथि की घामाम्य मा "णु प्रादर्तोका 
मुषटाबलला शरै ढे लिये, घाम्वायना परब तटस्वता या मनन शे परादतो भै बिका 
पर ख्ोरदेत ह। भव रण्ड देषा प्रीत ष्टोवा बा ङि केष प्रप्तित्व ष प्रमे 
सार-वस्वी के बारिरप्र सोचे फठपर्वं हैप्रधुदाष्टासे वि्जानकेपल्मं क्क्ना 
को पपु प्रस्वाङे प्रयाम $ परमे एार-तत्य के उपोप भविदात करना । 

षयो ध्रोए, श्केष्टिकिरम दैष्ड एेनिमस ष" म गे बताते ह कि एनत 
घरमप्रपम भटवि सम्गत्पी संश्रेव के काराः प्रष्टा श्रे पर्णा करना 
श्राबस्पष छमभ्य 1 उश मौलिक संपाद मुख्यतः ोठिभिषान पम्बष्वी है, 
परषविक पानके सिदन्द्मे शैठनासेष्टी पकाय पैक एक ईपहै। 
दनुर, इम देखते रै कि उदे जिजारम्यवस्पा कय भयु माप्वा' बघा माग 
बाह शट प्राषरणधार ({ मिदगिमरिदम ) 8, पैठाकि पै पिदा्तण्ये 
पपरीष्य सं कहा णवै शमा हि) कंखयवाद को रौहिबिषान सम्बन्बी भडांजलि 
कने केषाद युपमा भै जिल प्रास्माके कामश भार मुक्ते ह ष 


नये प्रवा" धोर्ययाचेषार का ग्दब १५ 


केकधजेम्पके पमान्‌, पयु वृदिष्याकापं हेमे क पपेमंहो "पपु कहोटै। 
शन्छापना के किए प्रपर यहु मुप, छात घामाजिक पाम्विषिर्यो के एक 
म्ब भतुपरः स्यम्स्याहै। श्रयये प्रान पोरदूषसेकं शान दोनोकेषही 
शिवे च्ययौया पभौहि$ मटियोकमाप्यम पैद्ी दृष्टि धदानास्यक बमं 
है षप कारणं कि पारर्तवोखीचेवताया पृद्ध परन्ठशञामे प्राम शेहना 
निहित गही ह मित्र प्रर पसद-हारमकक जान ष्ा सिडन्त पुरी वहार 
तो क प्रान्हरिक सम्डभ्पो पर्‌ प्माभारिष है उसी वड पस्तित्य सम्दापो शान्‌ 
प्रयै दर ग्रहति म्युपो क मोक बाद्य सम्यम्पों पद्‌ प्रापार्विहै। पयु 
प्रस्था पोर द्न्तित्व मम्ड्पो शनि पण्टायना ढे धाषरसाबारी पिद्धान्तं भे 
हो पपी पदापेषाः श्नौर नये पिभा क याह्य मे विभेव पाप न्दिदै। 

स्स कष्ठारणा स्मय मन्ध ठ भरने म्पबह्पिव दैवबाए को भिक्षि 
कष्ठे ष पौर निरन्त तपाग्यबहार्पोर्नोमंदौ दर्स्व जोषते परर प्पाष्ाणिः 
शनि मे तितिक गेगसे्यष्नै वोद्रतर स्रव रै) वे पपिकाषिष एषसम्याषीका 
मा णौदन्‌ शिवे लवे घोर प्रपिषटधिह पएष्िपा पौर परञुरथा' घ पना पू 
मे पानग्थित दृप्‌ । मरना पनविम पृष्व र्मेद्रे एद 6 पराएस्णारप्रएठ श्प 
षन दा यले (पर्म-खिटाग्डा पं हमा सम्बम्मी दिवर्‌) ये उषम "सान्तर 
उदार को जिभिनकरमे भये पनी अषौ इरानी एण्या क प्रननुष्ट वपा । 
पमे उनि ह्साक जीगतकेदढम पंगकोतिदादहैजा भुगर्गविन" पौर 
वर्षारोहफ फे बोष्मे धाठाहै, गष पक्वादनाकेषणोर्मे स्नराएषषै 
धरतो परवा प्रौरदूधरास्यगेरमे) रेपा बीएल पल्टरापना कोम बेवन दिष्य 
जरन्‌ गानदौ हस्प पी धति उम प्रोत द्रौषा है । 

भ्या चव देखाप्रत्रोऽमदी हमै कपा ह्िलम प्रामाका पुमाफीपम 
छायष्परष्तिन हो? तिव पनुपाय ये हम श्रमे पयु पपिष्सी पौर शपिर्यौ 
कम पररिल्यिजक््ते है उव गोतावध् ब्याहइप पपिष्वादौ प्रौ स्वत्प्ययदम 
बु मेवात भते? गरा दुताहो पम्ना{ङ़ि हर षप्युका 
प्वाम र भु से परटियर र २ भोर हर्‌ भू षा उल भासयनिष पथां 
कारपेद्वेवाप्र ष्टवे प्ोरमापदही हमारे हग्योषाभी पप्युद षणम्‌ 
हर, हरमे ददार बनने क ठता प्रदात कमे । १ 

प्रपरी्ममे योदय प्रषरङेपन्ध षेये सम्योपमेषो उपक परतिष्पि 
तो {स्स देष पराम्केो दे घवम मरणस्य दयय हम एमपी 
पराप॑सारको नापनायबटुवदूरहते है) 


¢ पिमो कम्मागने स्वि वद एष पार्त श्वाः रेतिजगनहञे। 


१५२ प्रमयौषयी वन का एिष्य 


मर्षो फा प्यवहारवादौ मिसम 


१४०४ के प्रपते मिव शवयाबेदनाशया प्रस्तित्वहै मे पौर 'मौिक 
पनुमागेबाप' पर प्रपमे बाद के निबरम्णो मेँ निसिपम येम्पभै रष देववारौ रपन 
भा पाए र्मयोमें कष्ठ क्रिया जिते एक नेव-कोष्टषादी' केश्य मे रोने 
मात्वा शी धी । प्रीरघापष्टौ प्पक्िनिष्ठ पोर बस्तुगिष्टके प्रन्तरका निधे 
भे ्ेवाप का पज्तिम दपं घममते भे स्व करै मे लग षये | प्रपते सम्बर्वो के 
शमनुसार, बहो "बस्य मा शर" म्यच्छिपरण या बस्तुपरके स्प मे कार्यं कर समते 
है । चेतना केषरे्मे सम्बन्ारमक्‌ दष्ट परपनातेढेगाद धम्य परब सरक 
भिष्डा्पूर्यो अमार्णेवादौ नही भे । श्रस्ठित् के द्यम प्राकाष्ठ' प्रीर शेन 
मसूमव क भरम्यबस्पा" फ बौ सामान्य-बुदधि का प्रष्ठर करते के अभाव दनम 
एक लते पदामं का पाभिसप्कमर किमा बो भप्नैर्मे दोनोंषोषह्टौ घमानिष्ट के 
सौरो परिभापायेल बगस्तृपरकष्ो म प्पक्छिपरक । एस च्वरस्व' प्छाक्ो 
सम्होमे पु" धनुमम बहा । प्रनुभगषादी दप्टिये ए्होनि श्ये प्य $ स्वान 
प्ररका। 

शेता के संयोषन्‌ के किसी भोपगम्य सिटाम्त शी पराकषयकता स्वौकमर 
कयम के जाद त चैम् ध्य दिणार्मे परिकिरूणनार्पु करणं णहे धै। धद पनुमष" 
का ष्फ मया पापं उषी एमस्वा को इल करता प्रतीठ हपा योषि मानसिक 
स्मिति्ों ये पत्ते मं छंमोजित करने के स्क से रत्तच्च कटिमापर्यो को षे प 
पम्बत्पातमक म्यगप्पापो मे सूपात्तरिव कट सकय भ । चैषा एन्होनि माबबाद ङ्के 
भिड़ धपते प्रारम्मिक निबरग्बो म कहा भा, एम्बन्पो कं बस्दुपरक पयां एते 
हए भौ खला ष्यद्छिपरक प्रयुमष प्प णा घटा था । प्रग धै सपे भिषार 
कौषारा सिडधन्त कमै पुतर्प्यस्मा, छन्दो पा पम्बन्ारमक म्यवप्याप्रोंकी 
भिजिषा केः छिन्त के एत्वं मकर एक्ट बे! इत पम्बन्पाएमक म्यषस्वापरो 
मे शुद या छात्कासिक पर्तर्यस्तु, मि घंजञानात्मष़ उदस्य फ शिवे ष्यषस्विव 
श्यना पकती पी) दन्तु गुड वा तात्छटिकु प्रगुमबका सपक उगके 
अपापवाग $ तिप दुमम्यप्रुखं सिय हु । दषे एसस्स्य उन्मि मनोवेजानिक 
म्टिठि इ एरस्व धेत डी स्याश्या जवनारमरू भनुमष के सन्वममेंकौ। 
जआबनाप्‌, जिषार तषी होठौ प्रौर एष शपरस परम्परा प्रजं म॑ मानसिक मह 
होती । जेम्स ते इमं “माबत्सक वप्यः का पौर य्डत््कदिपाकि षन ल््यौ 
क्रा धविष्वम तत्वमीमांसारमक पाष है, क्वोकि पे दर््नातमक लान पौर 
भिजत की पवपारणाों कौ मपेषा "वधां के पपि निषट' हाते है । पाषषापों 


नये प्हविबाद पौर ययार्पशा क्ष रदय द्रे 


के रणान्‌ होते के िदन्व के पीते कारी ले पुप्नपूमि षी | हन निदितार्मो 
षो यमम्प्रे हृद, ऊेम्ब मै शपते मोविष् घनुमगबाद के र्रण्दत्तावादी सष्पापो 
क्षो घनन । कद्ध तस्वमीमांयसे नै मिमे दुष्टर पमु ये धम बिषारक्म 
जेजनिह सपाय क्से क्च पेष्यश्ी । शिन्यु पमरष्ो याधम ए बिरान 
दहुमह भे प्के प्पद्िपिएक प्रौर स्वश्छन्दताभारी दोर्या के कारण एम प्रस्योशयर 
ल्पा! मे वरस्य एकतयमावः की मापा स्यादा पषठम्द कम्मे पै । 
ष्म जोष प, यह ममश्छर ङि पड भनुमवश्म यहु धान्त प्तमवरमाव 
कैपहये पेयो सम्प्रमिति सेमे मं पपिर शम्धमउलक्नकर शापा भेप्णष 
कुष भिव, भिये श्रो* एु* ष्टम पोर सिस्यन मिसर प्यषारयाती पडति 
्प्राएठ एक पुन्यप्‌ शेष उनण्ठे प्साषो प्रमे) ठेते मेन्द प्ापरहविपा 
षवे मनमकञानिषपेस्य मँ दारामित्का धम्यन्सी पपी म्मम्ताष्े षद्‌ 
प्रौ श्रामाम्प वस्तु $ एष प्यबहारवानी चिदान्त श्म धिर हरे । उन्हाने 
चेम्परषाप्यान पएयतष्य कीधोर द्ठीषाकि एक प्रारम्मिष् पेते उण्हीने 
स्वयं गताया पाङ भद मर्नामे दि प्यार मामाम्प वस्तू हा सवता &। 
प्यारा पाषा पर, भयान देषा माना जये करि जिष्व भा सामाम्प 
प्रस्व प्रान हताहै। पष ामान्प विदय माबनाप्राया पिपबाोभा ज्रि 
उतना मषी कै, जितना प्रजे प्रप्त की बस्नुमो % स्वानन्दे ह पिये 
प्रयु बहुरे निदर्शन एष सपु एन्य । पौर प्पान-निह्शाष्व 
भ्ग्टिपा श म्पास्या ब्ुररष्योपिद्धे, सामामिरुरौठिमे श्रा गाधा) 
जम्पभे गहं पुमा पपा स्वीकार दिवा पोरे मोदि पनुमब्रबादमे 
एषे कमाचष्ट दृएमे्ी चैष्टाकी। जव पापे मोमो बमत पभस 
मोमब्ही मी भुम जातो ६, शाम दैषाक्योन्‌ श्दद्ि हेमाय एक खामान्व 
मोमो टै? भेम्प्रमेक्हाहि हमार मोपष्चिपोढे एप वष पाषरणाष्रमे 
बटु हमारे पन मिति है । जेप्यकेषयोन मे केताः धंयोगन घम्बण्पी उनको 
तिन्हाप्रो षर सवात पड मर्नोका प्यदटारषायो मिलनकौ भम प्पाध्यातेते 
लवा ) पौर मिन्वन है ङि एस पदाम्तभो रनवे प्रापित दपावाद 
कय । शय उन क पिपा पौर धटुयारिया १ प्यवबहा्डाते ष्डनि माष 
फथापेवान्को गोदे व दहपवा मिती स्र कमा भयाद हेवा हैकिमम्प 
स्थपं पपत प्वब्रवादप्रोर एते ात्त्क पवाद क घम्छ्पदोनौ 
षेए पये । 
सिमी मेन्धष्ोर्‌ उनफ़धातो यपाशप्षाके विप्‌, पटासन फ एन 
भा काषएमस्त घमाव ददुस उदज रोष इिशनो दु पन्य 


निष्टप्राण्दे जेम्यभेन्गषोर वेत व्यि मर्द एरप्रानषा बदा 
२१ 


३५४ प्रमदे शंन कषा हतिदाप 


चाहे जिवनी मौ निमौ कपोत हौं हेम उनको स्िपि साबैजनिक्‌ स्यात मे देशत 
है । प्यबह्मरवारी ष्टि से रेल पोर ह्वाष्ट्टेर शा यह कवन पथ नी ६ैकि 
हेम प्रमे प्रस्यस तानो कये पह निगौ स्वान मे रञ्जते है प्रौर णर प्रपते स्वान 
रे प्ग्प मलों के स्वानो प्र परम्पर म्ब करना षीश्ते है । हारे पसिश्य फे 
प्र्वर घार्बजनिष् प्रस्तर होते है प्रौर एष सामान्य परििञ्पस्वव पा परमते 
उती पूभ-मान्यवा होती है ! इष प्रप्नर.बेम्प वै ष्हाकिश्वोवा पिक मर्नोकी 
शस्व हष्टि क एष सी पन्तगसतु" पर भिस्वास कटे मे शोर कटिनारटनहौ ई ।* 

एसे बिभार्येने पवेपणाके एकम्ये जगद्‌ काही मापें सम्मृक् करदा 
प्नोर भ्रमरी यपार्थशापिर्यो को प्रेष्क्य बे प्रयक्षञ्वान की घमस्पार्पो 
से सम्बन्बित प्रपती आन-मीमा्ास्मषट म्पस्वता छो घषर उन रिशापोँर्मे 
चते जोपुरोपर्मे बिह्धानकेदर्णनर्मे पबे प्रतिष्ठिता बुधि षीं। पन्वि 
एक छम्नन्बों मे प्नुमदबाद का एषते छपिश्षवार्का मागं प्रथरप्न निवा । 
विसिय्म भेम हन विष्यो ठक मनोबलानिक बिषारपकेमाप्पमधे पष्प 
भत पमटीका मे पथाजमाद पौर पयुमतषार को भो म उक्ते मद्त्रणं 
सोम भिम । देविष्ासिक्प्टि ध षह बात मश्तयंहै मि परस्य कहीष्ैमी 
श्रनि प्रमरीका पंएक प्राहतिक यार्गेवादण कमै उपसम्निः एन्र मौतिष 
सनुमभमाद, के माध्यम से हु! पुम फ िषार को वित्वार बे उपर्मेन 
केवल भावना केक्षेभषठो बत्कि सामाष्पद्ा ङे हेता मी पम्मि्तिव षर 
केने पे भमरीषम मभापेवाद कोप मोग्व बनाया एषह भानुपरति$ पतिक 
परति परपनी निष्को बनाये रपे । मौव ववार्थगाद वैता हि ष्पे कुष 
श्गुपायी प्ते कना पठम्द करते है मिष्ट पर बेम्ठ प्रोर प्रस्य भ्रमरी पते फो 
सरल-मिषषायपूणं मबार्थवाद नही है । पौरनषहौ पई पमरीक्ों ढे निमे एण 

स्वामाबिण एष्टिषयेए भा । मह परिम ते प्राष्ठ एड प्राषिषि € रपतभ्वि पी । 


छह संधपंरतर यथार्य॑शारी 


१९१०, पर्वत, शममग भेम्तणय मृदु कषमय उने का पूर्मं 
प्रथो मे मिश्च कर मागार पर पमणय स्वि! तैणड तेरो दें प्रमी 


१ बिलिदम जेष्य प्दचेड इन ररिकमि एष्पिरिलिरमः ( ग्पूयाष्टः १९१२), 
शष्ठ ८५ । 


बवे प्रृहिबाद मोर यणापंबाद का उदय १५५ 


माबकाद षकृता घे जमा हमा णा । { छादे पथ्याय मे “जाया को बारापण 
के पतरमेत शेलिए 1 ) हार्द म गोखिा सेयम प्रव भी उसके र्यां 
दम्मेकथै । कव मे धिव स्यूत पड किसपपमेण कगप श्य पा प्रर 
बोम दे पुषा सियो को परेभ्य मे पैसिरू परो परमेगष्ठाधा ) नमर्नििल 
भ्रमरीव दापंमिक सप ए ववृत मो भाववाद्ये षा! प्यवहयरभादियो घौर 
मिलिदम्‌ भैम्घ को मह्यम्‌ लोकप्रियता ये परेणा होने के श्जाप पाबषायिरयोमे 
ब्पबह्मरयादी प्रपाण तै स्त व्यदिनिप्टवादः पौर छम्प्रम का पूरा एषयोय 
भ्या पौरः प्म माबषाव को देने बस्वुपरकटा के एकमाभ प्ठृष्ैस्परमे 
भ्रु कपा ) युवा यपार्मवादियो के एक समूह नै धपना पषषर दपा पै 
भागबारियो से बन्दुनिष्डा कय सव्या छीनने को दत्सर ए ! 

शस धूह के तेषा राहर ार्टन रेरी पै ) भिलिमम केम्त जिष् प्रनुवूततब॑णणे 
पावा पोर, भिपेप्ठ पेरी व्ाठ निरूपित पपाम॑गार कोधोरम्देषे 
उठे उन बङ्गा प्र्ोप मिशाषा। पेद षयेन फो पम्वदैरोनाप्मक मनोदिकनाम 
प्रो ्ाम-पीनाएा के स्यम्‌ ध गदर मिकसमे श्रो उतु पे वाक उम पपिष 
तुरक मिनो से धम्बद कृर धर भियेपतः प्ाहृदिक बिष्ठानो पोर उम्बन्पो 
केदषपाशरके पाप 1 १९९० फे पारप्म पे "अर्व पोह छि्वोमप" पे प्रणि 
शो दमो-पेष्टिक परेिकामेरः ( स्व-केश्विक स्मिति ) ोपेक़ मेद घे दन्द पना 
शरभिपान पारम्म किक) पह भावभादी पवि स्वतम्मवाकी पोपणाषी 
भोर एषभोपणाङेसमपृनर्मे जोत रिया पपा उषे धंसेप मेष प्रर 
गाणा वष्ठा है-- 

"करी (ध्यक) कस्ये ष्ष्टत मेके बदु यादरएाहे) गोद 
मीैपरताहूं चइ परे मपह मेरे प्पती द्वु । पवःशोर्दण्ली चोर 
नी चामी जास्ती भामेरे पिव पातिमी पष्य ष्यद्ठि र विप्‌ -पष्दूव म 
ष्टो । हर हठ पस्तु सिमी राठहोपौ) जता कावप पतप कषमा 
पषम्मभ है । एम स्पष्ट तष्य जे ज्ञान को धामाग्य प्रियाया स्विदि श्न बरुन 
स्नु भव एङ लामान्दीष्ष्या पा जाता ह, जेमा मादर करते है शो कह 
मदत्वीन हो णाता दै । इमद्म प्रवे देवत एतना ह गवा द्रिगोवृप चात्र 
दै दात) भागरापिवोङे बाददूर, एममं पु निप पटी निष्लवानि 
समो भयुपङान है पादि रप्न धसव देष व्यचो शो बत्युपोक स्म 
भदै) पन अतद्ी स्पिन सिमर्वे सनद सविधि बस्वमिष्रहै पोर 
परस्वितव के प्म्यओआन प्रध्ये $ बव धस्तरक्ला पददपर ६, धगर पि 
शठ म्ब्यो मे श्वादीनशा श शम्ण्पपीहै। मरे परम्येम्‌ र्वि 
पपि वरदः एयापोन घोर पदभोन बन्गुप्ये ङ प्लवका पवा शयना 


१५५ प्रमरीकी ददम रा इपिष्यमर 


म्म है । पतः स्वकणिकं स्पिति पार-वत्वीम गही है प्रौर्‌ ठत्वमीमांचा, 
शान के सिद्धाभ्त पर निर्परनहीह। 

इस शेक का प्रय स्पष्ट पा। प्रमसैकमे यपार्वंडादौ दलवमौमां गत्मक्‌ भिष्योपणं 
केष्यापक ठो के प्म्तगंत एष्ट बिरोपकेमके श्प मे म्यण्छिनिप्य मौर प्रत्यदा 
शरान ष्म पमस्पार्भो शीर्णा करमैकोवैमारये दन्तु बे षरे प्रस्वो 
अस्तु पा ष्यक्तिमो म प्रोर सारे म्बल्धों को शंद्ानारमक एम्बल्थो मं घीमित 
कतै को तैपार नेर्ही पे । बे प्रपते प्रहम्‌ से हनषार मही कररैषे हिन्दु प्रष 
बे उ केरछिय डनाने को तैयार मही भे-- ते म्ब्यो का बर्तुरक बिष्येपस 
करना बाते पै । बे मावबाद-केन्दिक स्मिणि से ऊष गये भे। 

पै केक्ठाप सामि होम भरो ये एष भिलियम पेपरेल माष्ध्युबे बो 
हश मंपेरीके प्रान रहभङेपे भोरवाद में कोसम्बिया बिष्वमिद्ासपर्मे 
दयन के पापसर भे पूरे सश्वंएन-विरोषी मनोवैज्ञानिक ६* धौ» होष्ट बे 
प्रौर धौत प्य ब्यक्तिपे जिनके पणत प्रकाल यवार्पषादी प्राम्दोलते केनिप 
चे महत्व के धहीपे। जनत भोर एिलोसपमै" के सम्मान एफ बै, १. 
शुशिम पपौर बेष्डैभ टी° बु दार्नो हौ मागबादके बिद पिवादके निमे तैपार 
धे) उन्होने प्रपनी पत्रि इन पपार्णबारिपो भो उवारताघे श्पान दिया। 
मोष्टमूते शवीम्पू रिय्तिजम दैष्ड दी पोह्डण (मया पोर पुराना बबार्बषाद } 
सयक एफ तेत तिङा । यह भी भावगारो पठटि के प्रमि प्पेयं क्री पोपणाभी। 
भोर ९१ बुषा १६१० फो जनंत प्रोफ फिलोषषी' मे वी प्ौप्राम दषणं 
स्वैरम्‌ पफ सिक्ख रिवमिस्ट्ख' ( घडह पथा्मादिर्यो शा कायम प्रर प्रपम 
मंच) प्रषरारिवं हप ।^ 

प्रहमाग के प्रथम भ्ापेकेद्परते एन प्रहु “नँ पपापंबादिर्मो ते ( पपत 
प्रौर साण्ठायना धै स्प॑म्पपूरगह उष्टं पड नाम दिया भा, कूं सिदाम्त निरूपितं 
क््यि जिग्ये सामास्य स्प मे स्वीकार करते े--टत्वमीमासा ्ानमीमा्राद्च 
स्वठम्् हादी है; बहुतेरो ष्ठाए्‌ सी मौ श्प मे प्रपते प्रात हाने पर निर्भर नहं 
होवो) एष्तल्वशाद को ध्रपेला बहुतत्ववाद मपिर धममस्य है, वका प्रानरिक 
घम्बग्पौ भै गिनामो षाम चला सक्ता विचमादवार्णंया प्वबारणप्‌ मी 
उठवी ही पमाणं हठो है जिदमे प्रस्ठित्व । एन समी सिङाम्ठा भा लस्य भागबाद 
काजिरापबरनापा। हनम पस्य उन कारणो षाष्ठारातही भा जिने 
प्रापारपरब भाश्गादको प्पाम्य करतये। किम्पु एन पदाबादिषा श्च 





१ दम्‌ (दी प्वू-स्विप्िरम ( स्पूं, १६१२) के एष्परिष्ष्टके 
ङ्पति प्रराण्ति। 


नये परहविषाष भौर पवापेबाद का उदप ४५४ 


हमान्य मेष स्व अहव समस न पा भानि एन मिङधा्ठो का पतिपाहन 
षछामान्य कपे महीं दिया गया । हर एकन षडे प्रपते ही शग से रकन पद्म्द 
नपि यचपिबेसारे द्य परसहमदये दिवे एरुष्े गावश्हुनेश्षोरेष्याश्रर 
षम हंमयापूरमोकोप्देहभा कर्म यपापंबादो माखाबतारमे बट्तपिषाद 
बव प्रपिषषा) 
देबा $ प्रवर एल प पापवा्या शी एरु पूस्वक कण्व री 
न्यू पिपिलिर्म शोप्रापरेटिष स्टडी एनं फो ( गेया गाषेवाइ दनम 
घकार भष्ययन ) 1 शरस्य र्ना हमारे "का्येद्म प्रोर्‌ प्रपम मेज' दारा 
पारम्मश्यं श्नेद्ध समाद्य बडे पैमाने षर पापै भतीडहपोर हम पाप 
शृएतै ह मि इसके बाद पपमनो कै प्रस्य घप्र मो प्रपिये। सदुषटारी प्रष्ययतः 
कमी भवा शम्पपन शप्र" इद रषा सिप प्र्गिक यप्युण्म्दटै। हर 
मिग मे उ पेक्लक हारा जी बिष्ट पिप्य परक्वामया श्यं ।गै 
एमी प्वापक प्रमे यृ पवादभादी है रिन्तुयै म परस्पर सम्बम्षितहै भ पर्णेव 
धक हौ । एनम हे कण कचे प्रोर बुष भोगो द्य ध्यान भया ध्योररमपरटीरग्शी 
पमौ, नस्तु मब मिलाकर देषा प्रतीठहोताहैषि एम दुन्ष्केपाणक कमह 
धै। पैसै पौर माष्टगू श्न परिशयादमक निबन्ध परपम मंब" प्रौर नूषारङ 
यभव टमः कोश्ेप भषिक पणं मौर भ्यरत्यित स्परे रिष्छ्व 
कठा है । भरम्प तिबम्प प्रष्ट च्प्मृ बहठही बष्ुपरक, प्राषिपिक् पौर 
ियेपश्तादूणं १ पो किमी युषार कायरम $ त्रये प्रप्परिषट भीर £! 
पहप्नरी भार्पषटम पाये षिष्यित मही हासा) शदरकम्पर्मेपरो शपा 
प्रर प्रामम्‌ सराममे मेही प्राया । ऽम्मितिषं पाश्मणय पीपी समावहो गवा 
भोर समूह चिर भपा कदं वप॑ बदयेरी पोर मायू ते पपै धाप्ये भौर 
एकद्रकरे हे श्ृएा मरि पूुषार शप्य्यमकषा हुपणस्या 1 निस्गन्देह नवा 
अषापपा" प्रपरीकी एतिद मृ ष पषा प्रदनास्पात बनापवा बिनु नि 
श्छ शवा कास्य धारण करवा भद कमो पवीव श हृप्य { 
फिर्भो, पए सत्प्ति निर्णय पपे कपपेन्न एोश्रा नण 

पपार" पकम षहा । मायबाद कौ द्दासम इष्टि परपमामो पडी पौर बह 
परपिकापिर रप्पषट हहा प्या) समायबादिरफो ए पर्क्ाकरे शोषय 
पषापमाद दढा भये पामरी दोन मे परावषाडी शाममीपामा प्रौ पपषष 
ध प्रणत, बष्टुदर रासकयेङे प्रति प्यापक उपयात परयाथौरप्र 
शूर पी लिए रत्त्रष्वि्योपोर परमाथी पप्तम्ास्यद-मधया) 
इृषर्पदा हक्य जजन कएमै क पिद पत मतग चवापबान्यो दनाः 
केअर पे शयानाप्रमिरया है क्यार पद नव-वार्पवासी' { पमा प 


३५ प्रमरीके दरपन का विद्यास 


जते सपे ) पौर साप्ोचतारमक मधावा का प्रचिष्ष्री समूह शो्तोहौ 
संमच्वि मूर मा 'बारर्पो के स्प मं महत्मपरं नही धे । गदी हृद ठक, श्मुषार 
भावाब्ररणय" दानिक चर्ण पौर बिच्ारशो बन्धनम कले मे विशियम जम्ब 
की पफता का पर्वियकना। भेपापेरीने कहा ये भ्यक्ठि बहौ बिियम 
मेम्सके जिनो का धरवसररा वौ रवे बे, बह मीये निभिय धेम्पकी भावना 
के प्नुखारः काम कूर रहै वे। प्रम्बोखन शम ए्ं-यस्तुनिष्टागाप कसो भी दण 
उ्रीए्गी ताग्दी के बिद्धामनारः का दुख प्रमदेव मही भा । महं एक नया 
सूर्जन भा एक रबनलत्मक्‌ मिद्रोहपा। 

बस्तुपरक बिद्तेपरा के पठते बड़े कायं के क्प मेराप्यु बार्टन येरी तैम 
ङिजञाना बाहा कि परारष्य स्यबह्मर का प्रप्ययन भौर उषष्टी परिलाधा भोष 
जिहात की सभारणा निरष्षणास्मष्ट पडटियो घे श्वे वासको ह प्रौर रेपो 
या प्रविमान्पवपो को दमे व्वैपष्ठिकि' ठ्य कहने कीषेम्षी प्रादतक् 
प्नुरणा करने कष कई करणा हीं है । एष पेलमाला मेँ स्ते षोषष्य प्रौर 
निद्देस्य कर्मो के बीच पूर्णत पाभारएवादी पनर किपा । पह कष वुकने के भाद 
भे ननिपेश्चित हितो" के एन्द्भ मृ मूर्स्यो का एक छामात्म सिस्व निरि कणे 
को रैपार बे । कमं मानी ठ बहे पामाजिक होमा बी प्वापौ होमा 
भंनर, पन्य हितो पा पूरस्ो धे धम्बन्वित क्या जा पष्ता है । हितो तै बाषाप्रो 
क लाच मृप्य जी उत्पन्न हेते है । हिरतो का रकराग हिर्वोश्य कंकठन मूष्यो 
की व्पवस्वा प्रारि पभी आप्तविक प्रष्यपन के पेषे जिषे वैरम पपना 
पपि जीवम मामा । धस प्रकर पेरी का भोविप्रस्त पोर मृत्य कषा घामान्य 
िद्धान्त प्रमरीश्रौ यपा्थबाद श्रै एरुषोस उपषभ्पि बन गये। वे प्रमागकारी 
क्म में परस्पयत माषबादी नीतिप्रस्म क सामना करने मे सपं बे, जिसके 
मवुखार हविषां भौर पष्य को प्रधिपसीमागा भावा । पेरो प्रर हिषोषमे 
पूश्च के ्यर्मे ूर्स्यो का भ्पगस्थितर, बिस्तैपसय न केवल माभवाड को एक सीषी 
चुतौती , भरम्‌ पयोगिताषाद को एष कत्तुपरक पापार पर पूननिमिव कलै 
ष्मप्रपाषमी 

जिियम पेपरेस मा्ेयू ते पपार्पवादकाकर बीर दी, पोरव कां भरगषये 
पर ाबवाद प्रोर भ्वमहारबाद दार्नोकेष्टो मिष्ड पथा्ुणारी दस्वमीमांता प्रौर 
ज्ञान के पिदा द प्रयु समर्थक कमे । दिसु ठतकी शर्बपिष्ठ बिपिष्ट देन 
जिसपर म स्ववं सवस धपिषट कार देये रना चेतत ऊजां का मौतिक्वापी 
सिद्धान्त पा । प्रपोपाह्मक धाषासो पर उन्ोनि इय स्वापन का घमर्बेन दपा 
एक प्स्विस्वमय परमार्थ कं स्परे केवत एष्‌ प्रकर यै धम्माम्य ऊर्जा है |, वै चेतना 

१ उदाहूप्ल $ पिए्‌, देलिए्‌ शीम्‌ रिपपिस्म प्रष्ठ २८५-२८९ 1 


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लये अषृलिषाद पीर एथा्यवाड का उदय १५६ 


हे देधे छिन्त को बपापयाद के हामाण्य मिक्स के लिपु महतपृरौ भाने वै 
कबोकि षे चेतना फ पतस्तित्य के विय पर मेम्पतरे प्हमव पे पौर प्रप 
धतिश्स नव-पयार्यजादी स््योपिर्यो ये मो णो गेदना को सा्बन्पाहमष प्यस्य 
कणे ये, सकाम मिश्च भाषे एसे एष भिषिष्ट, नौविक र्वा इमम्‌ 
पएवानना सम्मष समम्पे यै । राहु शेदन प्यषहार के ऋ्मयरिमक प्रष्ययन पर 
अैसाकिपेरीभैद्मिषा, को प्रापि नहीं जो, दिन्ु उसषय विभारया दि 
कमो की परर किपाद्मक प्यास्यापे की णा ष्य पी) परमास्य भोष्टयू 
भोर य बुर दसस यपाबेादी एन्दो क मोपिकगादी पत्‌ का प्रतिनिषित्व 
क्रये  । न्दु उने मोविद्बार दरु चैते गही है पौर धामवोर्‌ पर प्रमरौकी 
पपायंवारौ निषार भे भोषिदिवाद भा स्थाम पोरा है 1 प्ान्योलन षो धपनी 
परम्प त कै माप्यम ठे पाो्ेयू सौर रेख गही एपिक प्रमाबणाकी ये-- मोषे 
एकः परिकक्मनारमक पहृतिबारी कै शपरमे प्रौर देत एम भंभरयतीष मानमनादी 
केम] 
किट नवयवादेवानदो बी मभोगिद्ञान पेकोःषिरोप रथि वहीपीपौर 
तरे आनमोमोष्ा को बिल्कूत पएाढ़ देना चाहते पे) इनके विपरी 'भातोभनारमक 
भपाषंवारिवोकाष्पृषुषा गो प्रषमो परत्प्लाम कै पमोदिद्नाम प्रो वीष्य 
सिप के छाप प्रनूमद डे एम्दत्व कौ समस्या स्यस्जा। इमे देमेकेषत 
शोको शर्वा भषपा भि पट सपृषट पायदे मषयपापेगारीसमूहसे बदाषा 
क्योकि रके भामं मे बवीनताक्मपोप्रोरदे षएपोगणकीबातकम श्एेषै) 
मोलम्विपा निरवमिदालय में मनोतरा फे पोऽषर बस्पं पोपष्टस ष्टा 
णो प्र प्रबष्रप पहणा करके णाप ढेः शाप येरि पौर छीषोपतर्पे ह हेये 
शारो माफएषटैदप् मदी (ममनापुकतरीरक्या है) गे तेकडेस्पये 
प्रतिढ हए भे । ममोकानिक विजेपणदय महु एष प्व पम्मीरपीर 
जतेदारीपृतौ तमना दै । स्नु सनिरोै षये शव पम्मीायै महीत्िपा 
दुएरेष मी सूर्म पौर म्य॑पदूर्ख बिनेदप्रिपताकेश्रर पोरवुप्रश्रन 
करट {क पट एक पूत मनोदद्ानिकः प्डना एमभो अदीपो) एसे उद्रिण 
इए सिना ष्टण वै पप्ने हामायिकू प्रौर गोरिषट ध्रेलेदनमे प्पददानदा 
एष चिस्यूत “पेयः पदान जिस्स िमा 1 पते वमदालीनो बा एम पाणा 
शस्व दै कर किः दृष्य पटनाप्‌ माश पापार्-मापर्िपा या रपभ्पितिवां हाप 
ह सम्दने बत्य र्क्व पणा बधे त पनु षा प्राणन ग्र 
भदत (क उरिति का दिषार एय गदि षे जारा । परमापप्व धद 
पटमागादे ढे जिदड रम्टेने वदानि सिये पुस ददा जाठाहै, षट पन 
शर्वा षाष्णाङे पपि प्व्टर् पपम्‌ बोर्धुः (विपिपनादय) 


३९ पमरीक्मी दन शा इतियः 


टै भोर रष ण्य शपरेओेषटेशनः वैषा भ्य करवा ¢ उसमे प्रपिष 
पतीकरारमष है उन्न कहा ङि हम भसपू्मो का प्रगुमब धपनी हातेगधिप 
मः भीं करते बर्‌ केवल उतके "माप्यम से" करते ह । बस्पुएु रो पर घनुमभ 
भैबाती ह पौर हमारी जञानेन्छिवाँ प्परिश्य स्वस मे खनं इ प्रष्ठर्‌ निरि 
कएतौ है करिप्रार हमारा पररोर उनसे धत्व सम्प (स्मर) करमा बाहे, तो व 
अही पाणा स्क बहां बे प्रषमूच है । दरे घर्मो म उन्होने दैनिक भुम 
को मूलतः प्रेरक प्रपिद्धिमाकेख्प मे वेज्ञा चिस सार मोिक युपो बरार 
हमारे भन्दर उहौपिवि प्रमार्गो का एक दोन प्रावार्मो बाते परिपरेश्य-पट पर, णो 
मोतिक्‌ यबा शरो है, पर्तरित करम शे यु (पत्यल-चात परिपेद्प) धी ह 
है । हम जते है फेम भसदुरमोको बही देखत है पटं मे एषमुष ¢ भरू 
कमाण बेडता प्रदोषस्मक है । 

जि प्रकार स्ट्रांग का प्यान दिक-परत्पएञ्चात पर ठया उप प्रभ्नर 
जभ्य होपङिम्छ विष्वविद्ासय क प्रा्पर प्रो धव्ांप का प्यात श्मनि 
परत्म्ञ्ञान पर केन्य बा । धनुपस्पिव फो कि प्रकार एरस्मिव धनापा जावा 
्, पस पम्बन्म मे पातर के कच निरनेपरछो का पृषं श्म उनमे मिषता है । उनके 
परगुखार श्रकीव प्र समिम्प को परस्तु कटका भुम शरा पूष शकं है । भवे 
भमव श्म श्टम प्रर पटनाप्रोकाष्ठम ये दो गत भिश्रकामिक गठन है । पप 
परम्दप्टि $ एसस्वकप भमजाय एमे धमय मे एड पेतमाशी शर्त के समक बन 
मये जब प्रमरीकी दानिन क्ये बरसा पवाद के बिष्ड बिगरोहकरणीभी। 
भिपेगे तेरह स्पबहारमाद' भ्त जे प्रभम खनति उषी भाषोषना षे प्रौर्‌ 
यह प्रमाणित करे केष्टाद्ी हि भ्यबहारमारी पिदान्ठ पौर सम्प्रम क्ञाम 
की कास्दपिक मस्याशनो रामे क प्रवाप्र यै । परस्र्मे उण्ट्टेते भरती पसप 
भिवादपूखं रषमा शो रिजल्ट प्ेत्स्ट बुभसिगम' (देवव के पिस्द भिद) 
रशरप्ि की भिम उन्दोत्े यहं प्रणव शएपै का प्रयाप्य ग्ि हेववादपे 
जते के जिमि प्रतिमादौ पवोगवादै भोर पजीरषुवादी प्रमाद पणत 
एषे) 

भिवे प्सफम पेमा नहो पु यप ठष्यहै दि पिमे रलो 
श्रिकिय श्रमदरी बार्थनिरो # परपता ध्यान शान षी षमस्वाफे स्चक्पदये 
ह्य पिपा है भवदा पाढबादिर्यो ते उययोम पौर निङ्पण हियाना पौरे 
भूमी धोर मुदे नो उन पथिद र्तारमक प्रठीद हुए । उन निष्नाष षै 
खमा प्रशन, बोष-मामणो पीर जिय ष्ट्व ति शवेन षी पान्विकीण 
कापा उदको अाप्टभिढ़ यमस्याएं परोर-ण्व्समङ मनोषेनिकों के पिए 
पेद णा शण्ठीहै। रन के मस भय भिक पर्य प्रर सषि 


कने प्रह्राद पौर यमेषादक्रा उदप ६६१ 


परमास्य समस्मात्‌ ब्‌ } यह प्रपरोद पथार्थदा श लिद्वप्ट श्थ्कयेराः दै, गो 
उपे पंगनिस्दानो ययार्थभाद से पल करठा है} डवै एष््ार स्वी तिपा 
दाद्धिदमते पमस्वाषरोहरदीष््या ह श्प म्ये) 


शमरोकी यथाय के खन्य सोत 


जभूषारो चप क पिष्ट घ वपामि ते १६१० स जोध पोषि 
कथि भा, समं यथार्वार शये पा विप हई । यमार्मगाग पनपा प्ररिशापिष 
बेभिप्यपूरं बना, पम्ठये्तु मे प्रभ समृ हृपरा खमय॑शनो मे पमस हमरा भ्रौर 
चैष जमद्‌ पृ निष परमाय दुमा) सावमाद पो हटा उसके समर्बक्शो 
सषि मे बेट णवे ! स्यणठिलिष्ठ या 'मानसिकदयवादी' माभनादी जो धरवमी 
मिपप बते क विदम्‌ निवाय करीम ध्यायं गव कमद्‌यये। 
ञे षस पमा्ैमादियो शे भरन्‌ दषारकणिठि (रिकटानातमकं दापूमिको, 
भधुनिष्ठ पा "किख भाववारिगो क सण समृदक पागोनापो केम 
सिषा एए ! वे परिकर्म माषगादी रथमा मेडन बासी हद्वष 
पृषाषगापो ब्युनिम्ट का स्शागव शेध! जगे भी मिर्यायद्रतेये कि भम 
एष बह्दूुयरफ मटन है । दे भो प्रष्णक्-सानं क मनागिञ्ञात सेढ्म पेये । बै 
पएयमे मदश्एकरिरप्रापाठेवर रवमैषोहैयार बे वेस्वाणारकरेपेन्रि 
निष्सन्येद, पप्तू जनके प्रस्य जतं ये स्वठन्य होवी है, दन्तु जिन कारणात्मके 
एम्बं के पएन्डमे पृहप बलयुप्येषठो धवपारित एदं याने लाक 
इभ्यर्पो ते प्वस्ख ह ? बहूए यपापबायि दो पहं भत मादर्‌ क्‌ पसित्पाष्‌ 
प्री ठा बा प्रेमा भैर दो पेटत्रे भ “जावो दे दामि 
स्थार्मादे तिषतेः सिने बहूमरे पमाभवारी सहमत हते को कैदार मे । यथपि 
शह पशव भै पपापेबादिपों रे भी पिभायितं कर दिया दन्तु एनम द भवपरेर 
शोषणे तो तमहा म्ादवारिमो घे पिर थो\ हम वोच प प्यवषहारवाते 
ातोभनामे भरम के पाषषाने पदान्त को कमभोरश्र्न्पर षा प्रर भरम 
के ए के घाष एत माभवाद दो धाशपरपठाभो बटन पमा प्ते मको 
करोषि एयक पापि पयः पर ऋीष्टा। पु माकषादं पर्‌ यदापशहसपो 
षेद कमरिक मिथि रनु कोटं यय शा्परम नदी देखते, जिह वरद 
श षै} णगरोने धो एवा पा सिदध पो वट बमेण \ प्रच श्दा कर | 


निषे चाप्त रिषि श्मम्य जादा मा एम एष एन 9,... 


१६५ प्रमरीकौ दर्प का एधि 


पीयसे धमरीक्ये मपाप॑मादके दो बियो को तीष राती-{१) एवन 
घाजिकवार्भो के भिदाम्व कं प्राङृधिक शिजि के एड्भंगकेक्पमे दे्ाप्रौर 
(९) बे प्रपनी पदा्पो की भ्यवस्वा का पक प्रयोगारमष्‌ व्व-मीमांसा मानते बै, 
प्रणति बैश्ञानिक कायेपडति का एरु प्नोपजारिक विरहेपएा मौर एक प्राप्त 
जिञ्राते पोनों हौ 

फडरिक चे ई भुक्ति से मौ पणापवाद केषी दोपर्घो परश्रोर 
दमा यदपि बे पषापेवाद तक एष बिन्भुल मिश्रमानं पे पुमे वे। ए 
गेव-कोप्टगादोकै न्प प्रदिस्िवि होते पर भो बे प्रपिकाभिक प्रस्तूमारी बन 
यदे । उम्हति श्रापूनिक एम्नाषली सं पौर ध्रापुतिक मिक्षान के दिए, एक श्रषमं 
दछन" पा पत्ित्म के पर्वामिक सामाभ्य पक्षों का सिदान्त निश्पिव रवे 
का प्रया क्या । दैसे घिाम्त रे मिए सर्वाधिक षामान्य शषा उयोनि 
धव्मधाल केष्ण पा आर्दाके निष्वः शरो पापा। वषया भौर पार-द्म- 
बिह्लनिक्ये एक्ताका एप समर्बन करने केकारएा बे मषा्ेषापिर्यो मे प्क 
पे समुह के भिता बम मपे बो मूसर्ठः ताङिक्तागादी म हीमे पर मौ पहु मानते 
भे कि समार्भवादी वर्णम का पाकारङ्लान के मनोजिज्ञान षी ध्पेका तार्कि प्न 
श्प सिदन्ति होमा चाहिये । 

यिय्य-सतू पीर सर का भन्ठर पुरक के पकापडाद का शष वत्व ह 
परप्ू के प्भ्योंमे दु हाष्पोकधमेलीनः पौर मोषा" कम न्तर । बुद्रिय 
मै ई हापोषेमेमोन' शी म्याश्या मत्दु केश्य महो कि प्रौर विर्णमडी 
प्रमुद के पकष्टानकेख्प ये मीषही भर्‌ षोसी भोर प्ननेपाशरी पमी 
लम्ममे स्तुमो की एरु पदता केष ैष्मी। वार्ता कपट विदय सर्व 
श्पापीहै प्रोर श्छ कारण एषषा पठन पर्माभिकृ प्रामान्य है) एसो के प्रन्दर 
अस्तित्व $ शरे धन्वरद्रोर प्रक्मरण्ट्तेहै। श्त भिस्वशफ भामीकेदार 
सहवा जा षता है, दन्तु रषे भरष्य पल पा सचे पो पम्मििठ है, जिर 
श्रलगधरलय पवि $ ख्य में परह्निता ममुप्यस्ीयकिवा है भैेगम्यया 
परापे का मिव प्रहतिक बाताबरणा श्य टृप्य-अपत्‌, मातरी पापरापौ 
भारणफाप्रो भौर पु धाति क परयाषो शा अयत्‌, भो पूर्मयोका बगत्‌ है। इत 
पर्मर मानव प्र्तित्व फे शार भायामो मेधे छीन बस्तुपरक, वायं पटमहै। 

हत द्यो म सर्वाधिक व्यापक भारा े विव को बुरतरिड वै बीजावीष 
मन कहा 1" इतरया शरण एए शो पड़ षा डि पत्नि दात्ठाममा द्राण इव 


१ चिरोपनः देप्धिए्‌ तिभष एण्य म्ण्दण्डः ( स्परपांक, १६१८), प 
२६५, १०४१-१०५२ 
# 


क्पे बहतिदाद पौर वथा्बाद शटा उदव ३६ 


म्ये प्रयोग शौ सामशपष पाया पौर दुष्ट पह छदे पपार रेप फ 
तिर्‌ माभभाई का उपयाम रना बाहे चे मान्ति भमत्‌, एम्प-व्वू्पं वे 
श्रफ़तिह रउरृष्यदाद पौर मनुप्यबे िषार-पन्तः शी प्र्त्पिए, दनक 
स्वाषार रते घे ) तीसरी व्यवस्था टप्य-बमद्‌, प्रखपीप षरिदेष्प रा षय 
है । ब्ाहिव क मिष्यषया म्प्राषाप ग्राम्य होने श्ये प्पेा प्रयाय 
गा प्यादाष्डौ स्प हा उनका बिनबास भाटिहष्टिभा णाप, 
भिष्मे घमानान्तर रेणाएं सिठिज कमै धार अद्ठ हुए मितमे सगवोषहै गतिक 
ब्पत्‌ $ धमान भस्वुपरक है, बिसर्मे हमानान्दर रेषां कमी नही मिलतो 
भौर उका सवर्मीप है ) यति-जयद्‌ के मात ही हत्य-जाचु मे स्पान-नि्दत 
श्ण म परिपेदया श्चै एरु प्परिमिव स्या धम्मितिवे हवी है जिनमे सस्मि 
काको िरेपस्ान हीहोठा) कां परम दष्टिकोणा षहीहोता पथपमि 
पपिकपो का म्न पने प्रापरमे परपहावाहै) एनटीम भतुपरम भगत 
षद बुदियमे मानबा-मृभ्य। हे जमत्‌ शा रदः जिस्म मनुष्य शूजनगर्चा 
ह) द्ु ममूष्य पूजनपणौन वहीषठस्होगा ह, णहार षा मते मूर््योको 
परपमै प्रस्वित्व बे भरन्यधेत्रो से हमंजिगि करना सीद धवा है। 
पीयष भौर शुददरिजके निर्णे षा मिलन मोरिमि पारण भोहैन ढे 
म्प्र पृंहुपरा। कोदेन स्वयं एष पाण्य छारिकप्रोर बडेहो प्रमाव्णापौ 
पम्याङ्धै) पराति केदर्पन पौर मातव-बोषन बे दयन रो्नोहीष्पोपेवे 
हता म्दबत्पाप्ा श्ये पररिनष्टिरमे षणव हए । उन्न यप्माः पमरौरा 
मषा्षाती विषिशास्तके बिषखकः हिण बितेपतं मदत्वपूम पा। कोन पौर 
उनङे पातोक माप्यमसे एय प्रकारका पपा्पवादी प्रदिवाद पियिमेधिनोके 
भमरोष्मे जिभारक्ये एष वि्यष्ट प्रवृति भन्‌ थया । धने प्रवृति मे छापाम्प 
अषपबो पानदान काष्नारामे परै सिषदापक लप्पयदु ६ 
दाङ पठति प्रोर्‌ पयापत्मष् विजानो षट एषमयागन क्षं धमी भपस्पापो 
द बिरोपत सामाजिक पोर नैतिष विज्चाना रर नपू भवि गये। 
जिन पैम यदं रवापयाद बहा है, जनि द्राक्रायंमी पौरसंकोनरि 

स्एडीष्ठाकापामे षेवानहोदं पौरञजतम कयमोरमाना के वदारय दासा 
केष अदिदद्मवावे इद पष्टयवयै । सिया प्दोमन षो उक्षन 
दिम जम्य्चे प्रष्टी । वैश्यो मा पगपपसदरुन वपा्बासे गष 
षै भेषानेम्म धपनेभक्हुवदेपोर प्रारम्मन प्तेरारा एम पपाषषा 
शिदास्य धा, छिद ककम एनय पोर पानु्रम पडते दम्यग्पा उनरो 
भाषा यम्यभ स्र जित्रषा ( ल-रणप्पायमे लबटाग्या। 3. 
पन्दमेत धैन्णण } । माम पोर षेनपूर्पं शा पुनरस्य भरात्‌, उनो 


१९६ भमरोषौ ददन का दधिष 


ह्येष धारा िक्पपित किार क इना धिदान्छ छी भालोचमा कये भौर निर 
को णति के पदा या पुतर्रएषनारमक थ्या क क्रमे देप । उका भिषा 
पाकि परिवर्ठन एक भरम यपाथं ह पौर भर्ठित्व के पराण भरस्तू रे पणो 
कोमांति गति के पदां होषि, जिन्त जिचार कै पतिया मो म्मिभिवं श्यौ 1 
दे ष्तेलबुबं शयो माति उन्होने हेत्वनुमान के सिदटास्त भो भाप्दतिकीकरला के 
सिन्ध छे भवीन शचा प्नोर मास्ठबिकीकष्णा को पुनरणना के । मिप भेम्प के 
जीम-वैलानिक मनोबिङञाम श्लौ बानरारौकेभार दृष मिमे फदपा' षी प्ति 
जादी पोर जीकद्नानिक परिपापा करता प्रासा पा । य प्रक्र बुर्के 
पनुएार, मचुम्ब भोर उसके सारे कायं कयं के एक प्राटति भिव ढे प्र्तधिहित 
भन है । माषं दा भरम पवाभं कायबस्तु है (लाधिनी पे देख) । मनुप्य "ऋं 
मस्तु के मस्य मे" रता ६ । मनुप्य भाति ढे कयो भौर पीकर को परिनर्न 
के प्रपि छामाम्य मिरजं से भरलेन नही किया गा सक्ता भोर शारीरिक ठा 
मानघिष् श्वो पा का के बाह्य भौर घश्वरिक सोपाणो के भोच एक व्वाबहारिकि 
रेका प्रभिकि शोर निभाजत हम्यब महौ है । 

शरयुमन को पतस्मक नस्तु भम यह अणार्दजादी प्वधारणा उदक प्रारम्मिक 
मैशन मे भो मिती द, पौर न्ति बधन पे मी | प्प्रनी बतं को वीक्णता 
प्रदान करभे $ लिये, प्रपते पण्धिम पां मे उन्द्ोने ब्सयुधोके दीष परस्पर 
स्मि के परस्परागत भिर फ बजाय बस्तु के बीज भ्यापार" की परषभारणापं 
प्रपनायी । केवले मनुप्य हौ धपती कम॑बस्तुपरो चर भ्यापाए असावा हे दैवा 
ही है, ष्मो घारीरिक दायं मौ छमभेण पोर प्वास्याफे कायं है । वभे 
इष सिस्व श्ये मानने के कारणा उन्होनि कमी मी घामान्यबुदि के विस्व भये 
पृष-माम्यवा ही दौ प्रौर तषाकणिठ बाह्य मिदव के प्सितित्व टौ समस्या षो 
न स्वीकार करने ॐ भिद्‌ भासोकनारमर काए्रा शये । 

भिजार शे किमाभो भैषी विवैप नव्यो को बिष्व गै भ्तुपक ध्वा 
के धमिक भ्याप पाधार-त्मल से विमुक्त कर देने के परे पर्‌ उरई का गिरष्ठर 
पभ्राप्रह एण मीविज्के स्प मे ववागंाद को उनकी देन पी । द्र्प्रोश्न 
ंस्वाकरणा बोदमेम्य है प्रर समभ्वय तथा बस्तुपरक सदि की प्रण्प्पिषैक्प 
मर्ये उभि वडशवाजा षष्ठाहे। द्बे एठठतरे शौ प्रोर्‌ बार-बार 
श्श्ठकएते ह कि न््पापों कौ प्रानिधिषट निपणपि भौर प्यव्रसायीषरण घंशार 
मे बाषरूहो घक्ते है पौर शिप हिठो पौर मूरस्यो को उतश्च कर षणे १। 





१ दिए बनि हरं प्रर प्रर्पर्एण बष्टते, शोय देष्यवो भो" 
( बोस्टत्‌, १६४६.) प्रष्ठ २७२ २८४॥ 


भै प्रहेतिङाष प्र मथार्ंवा क्म उदय १६४ 


मूष्योध्न की ठक हापाभ्य पदि याह पीषट्बे षी दिपिष्ट हिवि भो प्यदट 
कनो ङे प्रजिह ध्याम सनदर्मये रण श्र यषटभगसाष्एीने 6 यहष्यापद 
यादं निवे (तो का पूर्वान करै ठ एटश्षोदो शाकम्‌ करेगा। 1 
सीचिणास् श्ये एक शर्वा पूप दिष्य-वस्तु के ङ्ययेंनष्डाषहर मानक 
यमार्पवादी परीदणक स्यम पद्व ये--द्मनह बो पम्दादग्व पर्प 
मपो परियो फ प्रनुष्ठ नाते के छिपे स्तबक स्वितिपा तिर्य पत्पच्च 
कएल रहनी है} कातूती मानश के प्रयोमाटषट शरोर क प्राष्या पे उम्होने 
जिमिनिर्पाख-भिबान स्यपि निए के परस्पर सम्बर्द छा एष परमाषी भिनेपण 
द्विपा । लोयन्मर मे जनक्मै प्या एम विराम पर प्रापाप्वि पीडि प्रकापन 
पर्प एापारिष्ट भम्बन्णो पोर एषपोके साठ) पौर परिणामो को भुमीप्वीवृरि 
पश्व का पषठदष् परमासि पाप्यम है । उनषा नीति्ास्मन रच््पिशो 
मैहिष्ता पौ ४ प्रदुरेधनोपो ऋ धरन परिसिमो क उपपापिद्ाकारी गणना 
षोभ बरमु देये बासदभिक हितो प्रीर मृ्योशै हाय पी निन्द प्माबो हि 
शौर एम्य येपिहपाप्पि हुए पडे र्मे डते है) एन ददे हुए यादे हेएत्णो 
शरौ पेठ माठार्बडनिक दनाण् ब्द छमाज पपन को एष चूतो धमज धना 
सेत है पयोर परम्प मागर बास्येणिर पावस्शदतापो हे प्रापार पर सुरे 
जति है । विष्तेप्ल भो बपा्दारी प्रार्थी के कारण एदं प्रादक' नीतिपालत 
मे बभव | उतरा भिधारषा कियद मानष निर्दर है मार धैजार 
मयै दिषानौ शो वे स्पूतापिश् वेष प्रोर हम कारणा प्रमाद्टाग मान्ते बै ! दूपे 
यर्ते पं अबोपात्मके मेषता पर उनष्य पाष उतरे व्यदहारवादके धात 
उत पषाववादकाभौएषपदषा 
सिक्मपौ प्रर मिरिमने मिरयमिधातणो मेदक वाप पयव ष्एपाय ४ 
भालं भविं एवन सीम रु ४ एप धामाजिष बदारपषान्से सहमय । विपु 
अद दुं दिष्म) पोक्‌ कर मोसस्बिया दिरष्भिदालय षै यथै तोमीषने 
पमलामाजिष्दपंनश्ये षष प्रम प्रचर प्रथा प्र वहात के दा 
खामा्य धिदाप् वं दिङ्षिये हिरा, विषय बभे श्यी उ्पाषनदो ध्पि! 
द विवार्स्यवस्या भो 'दयुरत पपिलशाः शहा यने तमा भोर प्रतिमे 
-पमार्षबद्ये ष्िदन्त ब एम प्युतयोगष्टाटै। 
पह दप पणिदमो के वषन्यय दे निदण्ठ पर पापरणदि है \ जिवि प्रकारं 
दिक पूना षा दषप्यट ङे पप्य प्रयत वैते ष्तामातिष्शययं म भाददेमे बान 
कौ एष्पसिप्यदे हट कर दृषदे पसिदप पे अनि षी पापठा पाषपणहोती [1 
षश प्रदा प्राक वथयार्यो को परमरन) परिन्योः भन्ठरयुकेतेत 
कपविषरषटोती है प मीएङा रिषार्दाि परियेग्ोमे ददं-छम्दन्दय वाभुष 


३६८ प्रमरीष्ये श्म का एठिहात 


परार कारिक भनुमय मे मिलठा है--ब्तमा के एकु परपरेम्म घे बृसरेर्मे धाने 
ङे चाचा प्रतोत शी म्मास्पाष्टी पून एषना 1 बर्तमान फ परिवरचि होत 
के माष “नये प्रतौत हमारे पीते उदित हठे § । यच्चपि मीढ प्रपमै धरिदन 
क परो वरह निस्पिव करने के त्ि पीन महष, दन्द प्रपती रजना वी 
किसोधण्ठी" भोऽ दी पेदेष्ट ( बर्तमान शरा दन २९२२ ) म उम्होनि इक 
एरु क्मरेषचा परस्तु शनो जिसमे उन्दोमे प्ासतिक हान को पषिहासिक घान 
घमामिष्ट करने की शष्ट की । प्रारम्म मे रम्दोगे कहा कि जिपव एक पटनीर्मो 
को मिप है प्रौर धारी पटनापु किसी भतंमाव में परिव होतो ह । प्रतीव श्रौर 
मिष्य मेणा किसी बंमान के यपे होते है पौर बद तरु बतंमान परिगत 
हेवा सधवा इृतिष्ाघ को पुनप्यस्या करनी पदेगी । सन््ेषे देविष्यधिष 
घान भ इष शवस्दुपएक छापेषता को भोति निहान मे पेता पि बोना 
चाहा परौर दिक्तशाष मे मिन्ु-खएो के एक भार प्रायामों & नैरत्वय को एक 
जरम सन्दम-तेतके क्पे स्वीषार करे के लिमे उम्हनि मुए प्रलेषङेष्डर्‌ 
मिकोग्त्े पोर ह्भाषटहेद की भासोजना फ । एष एश्ा “उदुपामी मि एरा्वाद 
प्रभिक पूं क्प मे सापेकषबादी हागा खा उना दा भा । पक्त नैरन्तमं मन्ड 
एमी रह का प्रमूंन प्रतीत होवा बा जेय कालागपि के पपुषो भ सिशाश्व 
भि कि्ठी ब्तमात की र्पना छी था तष्दी हो । उनका इरादा रेतिरापिक 
प्रर प्रृदिभं शनो प्रच्ट्पापो मे सथानं" व्त॑मात की विवेचनाकरते काभा। 
प्रतः उ्हात दूरी के घपिक्षताबादी षिदाम् का स्मात्र किया क्योकि स्षानिक 
श्पाल्पा में खा एपेसमाष काम॑ धेन शेवा श्राय॑-कौपस केषेत्रणको 
पमि भ्पापक बनाता है, जिषदे पश्वमं मे मतो भोर बत्तमान सम्दग्पि होते 
है 1 समोप्य पदरमेष्टेतप्यहोरेद प्रौरये ठम्प ठी एव ठड़ श्र्तुव' हेते 
है जिहर वष दे ङि भमान ङे भ्रतीठया रके मनिप्य से सम्बग्निति 
हृति है । हवमूषार, पाए हाना प्रम क ठष्यो य उप्र परिष्व 
मरिपेक्यो के कार्‌ प्रतीत काबर्दमान मे "नामा" होता है 1 
षरे एते मे, मोड का कमान का रन मेम के गि्वपतीय्‌ बरतमाग" 
कै विदाम् का बस्तुपरक प्रधिस्प दै । बेठनाम्ने पारार्मे बर्तपानर्मे पटनार्भो 
शरो पाया शस्दुपरक स्र्मे पाको जाती स्योकिष्परष्य षै पस्रिस्व 
उसच्र पौर सवृ-खम्बन्पठ इषे हे ¦ 
क्ामागिन्वा" क सिडान्व दो मोठिक घापिसठा क सिदाण्त $ साब एं 
कएने के मी # महत्वाक्लापूणणं भयात को प्रसरीद्ये यगार्यगाद में धाणै मिपि 
करते का प्रपा बहुत क्म हुमा! मीय जयद्वपरकषायंकर षे गप 
घम वैषा प्रतीदं ष्वा पा एद मजप्य ङे कर्यं के तिये यह उना ध्यक 


मयै ्हतिबाद पोर यपार्बबाद का उदम १६४२. 


श्राषारन प्रमाितद्ये गोभीहा जिच प्रक्मरष्टो दर्पति धरशना्मे 
भमरीषमो पपापंषाद पड्गया उषे रश्हत्छके खपे ध्वे यडा भित्र 

थना रबिप ह । हाट्देड के दन के प्रमायते प्रमरोष्धिपाके विर्‌ ष्ठ एश्नर 

शी घंरिषिष्टि भ उम्र दिप है । पाय पव शयन श्वे मी धमते ववाया 
पाम्डोसम के एक प्रमुत प्र॑पकेस्प मे सतामिह देना बहिये। यैनेषप् 
प्रापारं षर शते धामि गही चयि कि ठयक्ने मुद्य भरेरत हानिम्तातदे 

भरापीहि भोरमेएष्यापहै ङि एठा कर्तमानप्रवेलत एयर ए धुत शाता 
तष्य! । दिन्हुपै इष तरमयपह स्माकार शग्मा एप पायां 

भ्रन््ेधनं पमी मो पतिया है भौर इव वम्पू्णष्रमे या षतक पय्पामका 

पङ्ति करये का वच धमो भमम मही दारा ६ । शहानी प्रमीप्रौर ह भा 
मयं कपा पोर भिष्ि ्ठीडिनि धायव शनो देखा पतिदायफार कड शोषे 
भवि पर्याषठ परिपिष्य मे दप सकं ।